एक फुटबॉल ग्राउंड के आकार की लैबोरेटरी, वजन 430 टन से अधिक और धरती से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई। 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रही इस लैबोरेटरी को हम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कहते हैं। 1998 में इसकी लॉन्चिंग के बाद से अब तक 26 देशों के 280 से ज्यादा एस्ट्रोनॉट ISS का दौरा कर चुके हैं।
लेकिन नासा अब इसे प्रशांत महासागर में गिराने की तैयारी कर रहा है। इसकी वजह ये है कि ISS के प्राइमरी स्ट्रक्चर जैसे मॉड्यूल, ट्रस और रेडिएटर खराब हो रहे हैं और 2030 के बाद इसका संचालन काफी जोखिम भरा व महंगा होता जाएगा। कई विकल्पों पर विचार करने के बाद इसे प्रशांत महासागर के पॉइंट निमो में गिराने का फैसला किया गया है।
क्या होता है पॉइंट निमो?
पॉइंट निमो दक्षिण प्रशांत महासागर का एक ऐसा क्षेत्र है, जो पृथ्वी का सबसे एकांत स्थान माना जाता है। इंसान तो छोड़िए, पक्षी भी इसके आसपास नहीं फटकते। न्यूजीलैंड के ईस्ट कोस्ट से 3000 मील और अंटार्कटिका से 2000 मील दूर ये जगह लंबे वक्त से रिटायर हो चुके सैटेलाइट और अंतरिक्ष यानों की कब्रगाह बनी हुई है।
ISS का संचालन नासा, रोस्कोस्मोस, ईएसए, जेएक्सए और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी करती है। अब इसको डिऑर्बिट करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है। 150 अरब डॉलर की लागत वाले इस स्पेस स्टेशन को डिऑर्बिट करने के लिए स्पेसएक्स डिऑर्बिट व्हीकल बनाएगा। यह एक ऐसा विशेष अंतरिक्ष यान है, जो ISS को नियंत्रित तरीके से पॉइंट निमो तक ले जाएगा और इसी के साथ ISS के 30 साल के इस शानदार सफर का अंत हो जाएगा।
क्या ISS को गिराना ही आखिरी विकल्प?
ऐसा नहीं है कि नासा ने ISS को गिराने के अलावा किसी अन्य विकल्प पर विचार नहीं किया। पहला विचार इसी बात पर किया गया कि इसे अधिक ऊंचाई की कक्षा में धकेल दिया जाए, जिससे यह ऐतिहासिक अवशेष के रूप में हमेशा के लिए बना रहे। ISS जहां है, वहां उस पर अंतरिक्ष में किसी मलबे से टकराने का खतरा 50 साल में एक बार का है, लेकिन अधिक ऊंचाई पर ले जाने से यह 4 साल में एक बार या उससे अधिक भी हो सकता है।
इसके अलावा इस बात पर भी विचार किया गया कि ISS को उसकी कक्षा में ही विघटित कर दिया जाए और फिर इसे वापस लाकर म्यूजियम या रिसर्च के लिए रखा जाए। लेकिन यह लगभग असंभव था। इसमें अत्यधिक फंड और एस्ट्रोनॉट की जान जोखिम में डालने जैसे फैसले लेने पड़ते और इसी कारण ये फैसला टाल दिया गया। इसकी जगह डिऑर्बिट के बाद जलने से बचे हुए टुकड़ों को एकत्र करने का प्लान बनाया गया है।
क्या अब नहीं रहेगा कोई स्पेस स्टेशन?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक जगह है, जहां पूरी दुनिया के एस्ट्रोनॉट जाकर माइक्रोग्रैविटी में रिसर्च करते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसके गिराए जाने के बाद कोई स्पेस स्टेशन नहीं रहेगा। दरअसल नासा की कोशिश है कि वह अब निजी कंपनियों के स्पेस स्टेशन को डिमांड के अनुसार इस्तेमाल करे। एक्सिओम स्पेस, ब्लू ओरिजिन और वॉयेजर जैसी निजी कंपनियां इसी दिशा में काम कर रही हैं।
वहीं चीन दुनिया का एकमात्र देश है, जिसके पास अभी वर्किंग स्पेस स्टेशन तियांगोंग है। रूस भी 2033 तक अपना स्पेस स्टेशन बनाने पर काम कर रहा है। भारत ने 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन बनाने का लक्ष्य रखा है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि धरती पर गिराए जाने के दौरान ही ISS का अधिकांश हिस्सा जलकर राख हो जाएगा और पॉइंट निमो की गहराई में हमेशा के लिए दफ्न हो जाएगा।