गुजरात में बढ़ता जा रहा Chandipura Virus का कहर

पिछले कुछ दिनों से गुजरात में लगातार चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus) के मामले सामने आ रहे हैं। इस वायरस से अब तक गुजरात में 15 बच्चों की जान जा चुकी है। वहीं, इससे संक्रमित लोगों की संख्या 29 तक पहुंच गई है। इस जानलेवा बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब अलग-अलग राज्यों में हाई अलर्ट जारी किया गया है।

यह वायरस दिमाग में सूजन का कारण बनता है और फ्लू जैसे लक्षणों (Chandipura Virus Symptoms) के साथ कोमा और मौत तक का कारण बनता है। इसे बीमारी को लेकर देशभर में चिंता और डर का माहौल बना हुआ है। ऐसे में इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने मणिपाल हॉस्पिटल, गोवा में इंटरनल मेडिसिन के सलाहकार डॉ. पोकले महादेव वी से बातचीत की। आइए जानते हैं क्या है यह बीमारी और क्यों है यह खतरनाक-

क्या है चांदीपुरा वायरस?

डॉक्टर बताते हैं कि चांदीपुरा वायरस (CHPV) रबडोविरिडे (Rhabdoviridae) फैमिली से संबंधित एक अर्बोवायरस (arbovirus) है, जहां रेबीज वायरस भी मौजूद होता है। इसका मतलब यह है कि वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम को संक्रमित करता है, जो तेजी से अल्टर्ड सेंसरियम, दौरे और फोटोफोबिया का कारण बन सकता है। इसमें ब्रेन के टिश्यू की सूजन बाद में एन्सेफलाइटिस और कोमा में बदल सकती है। इतना ही नहीं यह वायरस शरीर की कई अन्य प्रणालियों को भी प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि इससे बचाव के उपायों के साथ-साथ लक्षणों सहित इसके कारणों के बारे में ज्यादा जानना जरूरी है।

पहली बार यहां मिला था वायरस

चांदीपुरा वायरस यानी CHPV पहली बार साल 1965 में महाराष्ट्र में पाया गया था। यहां इस वायरस ने 36 वर्षों में बड़े पैमाने पर बच्चों की जानें ली और एक प्रकोप की तरह फैलकर पूरे चांदीपुरा गांव को नष्ट कर दिया था। इसी गांव के आधार पर इस वायरस का नाम चांदीपुरा वायरस रखा गया।

कैसे फैलता है यह वायरस?

डॉक्टर ने बताया कि इस वायरस को फैलाने में फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज (Phlebotomine sandflies) और फ्लेबोटोमस पापटासी (Phlebotomus papatasi) प्रजातियां मुख्य किरदार निभाती हैं। इसके अलावा एडीज एजिप्टी, जो डेंगू बुखार के फैलने का भी कारण बनता है, मच्छर की एक और ऐसी प्रजाति है, जो रेबीज की तरह ही इस बीमारी को फैलाती है। इसलिए, यह ट्रिपैनोसोमा क्रूजी जैसे परजीवियों के लिए प्राकृतिक जलाशयों में पाया जा सकता है। साथ ही जब कीड़े इंसानों या बिल्ली जैसे अन्य जानवरों को काटता है, तो यह बीमारी फैलती है।

चांदीपुरा वायरस के लक्षण

जब कोई इस बीमारी से संक्रमित हो जाता है, तो सबसे पहले उसमें फ्लू के लक्षण दिखाई देंगे, जिसमें निम्न शामिल हैं-

सिरदर्द

ब्लीडिंग

एनीमिया

शरीर में दर्द

अचानक बुखार आना

सांस लेने में कठिनाई

इन लक्षणों के बाद भी अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो एन्सेफलाइटिस के कारण यह बीमारी गंभीर हो जाती है, जिससे मौत हो जाती है।

चांदीपुरा वायरस का इलाज

इसके इलाज (Chandipura Virus Treatments) के बारे में डॉक्टर ने बताया कि वर्तमान में, इस मामले के लिए विशेष रूप से एंटीरेट्रोवाइरल दवा या वैक्सीनेशन मौजूद नहीं है। ऐसे में इसके इलाज के तौर पर मरीजों को सिर्फ लक्षणों से राहत देने और जटिलताओं को रोकने के लिए सहायक देखभाल दी जा सकती है। इसके अलावा, एन्सेफलाइटिस से पीड़ित व्यक्तियों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए और आईसीयू में उनकी देखभाल की जानी चाहिए।

वायरस का निदान

सीएचपीवी का निदान आमतौर पर इसे संकेतों, न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ी और लक्षणों के जरिए किया जाता है। हालांकि, लैब टेस्ट से ही इसे स्पष्ट किया जा सकता है। इसलिए, खून के सैंपल या cerebrospinal fluid के नमूनों में वायरल आरएनए का पता लगाने के लिए, आमतौर पर आरटी-पीसीआर का उपयोग किया जाता है।

चांदीपुरा वायरस से बचाव

इस बीमारी के खतरनाक परिणाम से बचने के लिए जरूरी है कि बचाव (Chandipura Virus Preventions Tips) के कुछ तरीके अपनाए जाएं। ऐसे में इससे बचने के लिए मॉस्किटो रिपेलेंट का इस्तेमाल और मच्छरदानी इस्तेमाल करें। मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर के आसपास पानी न जमा होने दें। इसके अलावा मच्छरों को काटने से रोकने के लिए सुरक्षात्मक कपड़े पहनना भी एक कारगर उपाय है।