68 वर्षीय कैंसर मरीज को दर्द से मिला निजात, कारगर साबित हुई नर्व फ्रीजिंग टेक्नोलॉजी

नई दिल्ली : दर्द का बना रहना कैंसर मरीजों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिससे निजात दिलाने के लिए कई तरह की आधुनिक, परिष्कृत तकनीके ईजाद की गई हैं। इन्हीं में से एक तकनीक क्रायोएब्लेशन भी है। हाल ही में इसे भारत में उपलब्ध कराया गया और इस तकनीक के माध्यम से एक मरीज को तुरन्त दर्द से निजात दिलाने में कारगर साबित हुई है। दर्द से निजात दिलाने वाली इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य उन नसों को नियंत्रित तरीके से शून्य से 80 डिग्री तक नीचे के तापमान पर फ्रीज करते हुए निष्क्रिय कर देना है, जिनसे दर्द संबंधी संकेतों का प्रसारण होता है। दिल्ली निवासी 68 वर्षीय कैंसर मरीज रमाकांत (बदला हुआ नाम) जिन्हें दाहिनी ओर छाती, पेट और पीठ में पिछले दो सप्ताह से गंभीर दर्द की शिकायत थी। मरीज को दर्द के कारण सोने में भी काफी समस्या आती थी। हालांकि दिल्ली के अस्पताल में जब मरीज का सीने की सीटी स्कैन कराया गया तो पता चला कि दाहिने फेफड़े में मांस इतना बढ़ गया था कि रीढ़ तक पहुंचने वाली नसों के स्थान पर फैल चुका था। रमाकांत का गुर्दा बुरी तरह खराब होकर आखिरी चरण में पहुंच चुका था। इस स्थिति में ज्यादातर दर्दनिवारक दवाइयां निष्प्रभावी हो गई थीं, उन्हें दर्द से निजात दिलाने की चुनौती तब और बढ़ गई जब उन्हें दाखिल करने के बाद ब्रेन स्ट्रोक का दौरा पड़ गया। दिल्ली साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के पेन मैनेजमेंट के प्रमुख डॉ आमोद मनोचा ने बताया, फेफड़े के मांस से दबी उनकी नसों का क्रायोएब्लेशन किया गया। अल्ट्रासाउंड और एक्सरे के जरिये उन दबी हुई नसों को पहचान कर लक्षित किया गया। क्रायोएब्लेशन उपचार के बाद उनके दर्द में बहुत कमी आ गई। डॉ आमोद मनोचा ने कहा,गंभीर दर्द से बहुत हद तक आराम मिला और दर्द के कारण जो मरीज सो या लेट नहीं सकता था, उसका दर्द कुछ ही घंटे में छूमंतर हो गया। दरअसल क्रायोएब्लेशन तकनीक एक ऐसी न्यूनतम शल्यक्रिया है जिसमें मरीज को दर्द से निजात दिलाने के लिए कोई कट या चीरा नहीं लगाना पड़ता है। यह सुरक्षित और एक दिन की उपचार प्रक्रिया है जिसमें तत्काल और लंबे समय तक दर्द से निजात दिलाने की क्षमता होती है। यह प्रक्रिया विशेष जांच क्रायोप्रोब का इस्तेमाल करते हुए अपनाई जाती है। इसके लिए अल्ट्रासाउंड और एक्सरे इमेजिंग के इस्तेमाल से सही लोकेशन का पता लगाया जाता है। अस्पताल के अनुसार, क्रायोप्रोब एक खोखली सुई होती है जिसके जरिये जांच से सही स्थिति का पता लगा लेने के बाद नाइट्रस ऑक्साइड या कार्बन डाइऑक्साइड जैसे बहुत ठंडी गैस प्रवेश कराई जाती है। क्रायोप्रोब की नोक पर तापमान इतना कम रखा जाता है कि वहां आइस बॉल बन जाती है और इसे अल्ट्रासाउंड की मदद से देखा जा सकता है। इससे आसपास की नसें जम जाती हैं और मरीज का दर्द कम होने लगता है। दर्द कम होने के साथ ही मरीज की सामान्य गतिविधियां भी सुचारु हो गई, उसे दर्दनिवारक दवाइयां लेने की जरूरत भी कम हो गई और उसके अंगों की सामान्य गतिविधियां भी बढ़ गईं। कैंसर के दर्द के अलावा जोड़ों का दर्द और खासकर ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी से बचने वाले युवा मरीजों को दर्द से छुटकारा दिलाने और अन्य दर्द से निजात दिलाने में भी क्रायोएब्लेशन प्रक्रिया बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।