खेलो भारत खेलो

भारत में खेल स्पर्धाओं को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है। खेलों पर राष्ट्रीय नीति घोषित करनी चाहिए। हालांकि ‘टोक्यो ओलंपिक’ के बाद खेलों में देश की नयी छवि उभरकर सामने आयी है। भारत अब खेलना चाहता है और खूब खेलना चाहता है, लेकिन उसके लिए माहौल होना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर खेलों पर नीतिगत फैसले लेने चाहिए। खेलों के लिए बेहतर क्या किया जा सकता है इसके लिए केंद्र स्तर पर एक स्वतंत्र खेल आयोग का गठन होना चाहिए। खिलाड़ियों के लिए आवश्यक है सुविधाएं चाहिए। किन-किन खेलों के लिए क्या बेहतर होना चाहिए उस पर विचार करना चाहिए।


खेलों को बढ़ावा देने के लिए धन की कितनी आवश्यकता होगी। खिलाड़ियों को प्राथमिक स्तर पर कितनी बेहतर सुविधाएं मिल सकती हैं। ग्रामीण स्तर पर खेलों के मैदान की उपलब्धता क्या होनी चाहिए इस तरह की सुविधाओं का विकास देश में होना आवश्यक है। हमारे यहां खिलाड़ियों की कमी नहीं है, लेकिन नीतियों का भाव है। खेलों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद देश उन पर खुले दिल से धन की वर्षा करता है, अगर यही सुविधाएं खिलाड़ियों को पहले से मुहैया करा दी जाएं तो भारत सिर्फ पदक तालिका में अपना मुकाम हासिल ही नहीं करेगा बल्कि ग्लोबल रैंकिंग पर अपना बेहतर प्रदर्शन करेगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिए उनसे सीधी बात कर उनका मनोबल बढ़ाने का काम किया। लेकिन इस काम के लिए भी उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी।


खेलों में ‘ग्लोबल रैंकिंग’ की बात करें तो भारत की स्थिति आज भी बहुत बेहतर नहीं है। यह दीगर बात है कि टोक्यो ओलंपिक में हमने अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन हमें नीरज चोपड़ा से आगे भी निकलना होगा। ग्लोबल रैंकिंग में आज भी संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान जैसे देश बने हुए हैं। भारत से कई गुना छोटे मुल्क बेहतर प्रदर्शन करते हैं। टोक्यो ओलंपिक में ग्लोबल रैंकिंग में भारत का 48 वाँ स्थान है। हमें अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस की कतार में खड़ा होना होगा। यह तभी संभव होगा जब खेलों पर सरकार अच्छी नीति लेकर आएगी। जीत के बाद खिलाड़ियों पर खजाना लुटाने कि नीति से हमें बचना होगा।


देश के खिलाड़ियों का सर्वांगीण विकास जरूरी है। सारा पैसा एक खिलाड़ी के व्यक्तिगत मद में चला जाता है। जिससे दूसरे खिलाड़ी जो बेहतर प्रदर्शन के बाद जीत हासिल नहीं कर पाते हैं उनमें निराशा हाथ लगती है। हम यह भी नहीं कहते हैं कि खिलाड़ियों का सम्मान नहीं होना चाहिए लेकिन प्रतिभाग करने वाले दूसरे खिलाड़ियों का भी मनोबल नहीं गिरना चाहिए। उनके लिए भी बेहतर सुविधाएं और खेलों का माहौल होना आवश्यक है। खेलों को हमें राष्ट्रीय नीति में शामिल करना होगा। हरियाणा जैसा राज्य देश में सबसे अधिक खिलाड़ियों को पैदा करता है। खेलों को लेकर हमें हरियाणा सरकार की नीतियों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहिए। तभी हम खेलों का विकास कर सकते हैं।


टोक्यो ओलंपिक के बाद पैरालंपिक में भी सुखद खबर आयी है। पैरालंपिक में भी हमारी ग्लोबल रैंकिंग 35 वें स्थान पर है। अब तक हमारे खिलाड़ियों ने एक गोल्ड के साथ 7 मेडल जीता है। यहाँ भी चीन, अमेरिका और ब्रिटेन अपनी स्थिति को मजबूत किए हुए हैं। फिलहाल भारत का संघर्ष जारी है। देश की मीडिया और दूसरे क्षेत्रों में पैरालंपिक को लेकर वह उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है जो ओलंपिक को लेकर रहा। ओलंपिक में खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर जिस तरह देश जश्न मना रहा था वह स्थिति पैरालंपिक में नहीं दिख रही है। इसे हम अच्छा संकेत नहीं कर सकते हैं। जबकि हमारे लिहाज से यह गर्व का विषय है कि पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने ओलंपिक से बेहतर प्रदर्शन किया है। हमें उम्मीद है कि ओलंपिक से कहीं अच्छा प्रदर्शन करके हमारे खिलाड़ी स्वदेश लौटेंगे। खिलाड़ियों की हौसलाआफजाई के लिए सरकार और दूसरी संस्थाओं को भी व्यक्तिगत रूप से आगे आना चाहिए।


टोक्यो ओलंपिक में भारत की अवनि लखेड़ा ने एयर राइफल स्टैंडिंग में स्वर्ण पदक जीता है। पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। इसके अलावा देवेंद्र झाझरिया, योगेश कथुनिया और सुंदर सिंह ने रजत, ब्रांज मैडल जीत कर देश का मान बढ़ाया है। दूसरे खिलाड़ी भी इस जीत में शामिल हैं। लेकिन जिस तरह का जश्न नीरज चोपड़ा की जीत पर दिखा था वह जोश लखेड़ा की जीत पर नहीं दिख रहा है। जबकि यह उपलब्धि ओलम्पिक से कहीं अधिक बड़ी है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लेखारा को बधाई दी है। मीडिया और देश को यह खाई पाटना होगा। हमें उन्हें सर आंखों पर बिठाना होगा। अवनी राजस्थान से आती हैं 12 साल की उम्र में वह पैरालिसिस की शिकार हो गई थी, लेकिन जिंदगी से उन्होंने हार नहीं मानी और टोक्यो पैरालंपिक में उन्होंने इतिहास रच दिया। भारत की इस बेटी पर हमें गर्व है।


टोक्यो पैरालंपिक में नौ इवेंट्स में भाग लेने के लिए 54 खिलाड़ियों का दल भेजा गया है। पैरालंपिक का आयोजन 5 सितंबर तक चलेगा। भारत ने अभीतक 7 पदक जीते हैं, आगे भी उम्मीद है कि पैरालंपिक खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे। पैरालंपिक के लिए 1972 में मुरलीकांत पेटकर ने भारत के लिए पहला पदक जीता था। भारत के ओलंपिक इतिहास पर नजर डालें तो अबतक 24 ओलंपिक खेलों में हम 35 पदक जीत चुके हैं। भारत खेलना चाहता है और खेल में सबसे अधिक मौके ग्रामीण इलाकों में है। इस हालात में सरकार को खेलों पर एक ठोस नीति नीत बनानी चाहिए।


केंद्र सरकार को राज्य के सहयोग से ग्रामीण इलाकों में खेलों के मैदान का विकास, बेहतर सुविधाएं और वित्तीय व्यवस्था उपलब्ध करानी चाहिए। अगर हमारी तैयारी जमीनी स्तर पर रहेगी तो निश्चित तौर पर भारत आने वाले दिनों में ग्लोबल रैंकिंग में चैंपियन बनकर आएगा। सरकार खेलों को बढ़ावा देती है तो भारत के युवाओं में असीमित ऊर्जा है। इस मिट्टी से हजारों ध्यानचंद, मिल्खा सिंह, नीरज चोपड़ा, अवनी लेखारा,पीटी उषा, मीराबाई चानू और पीवी सिंधु की फौज तैयार होगी। अब वक्त आ गया है जब खेलों पर सरकारों को विशेष ध्यान देना चाहिए। खेलों को स्कूली पाठ्यक्रमों में भी शामिल करना चाहिए। खेल शिक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए। उम्मीद है कि सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी।


-प्रभुनाथ शुक्ल-

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)