बढ़ते पदक -घटते स्टेडियम और दावा 'खिलाड़ियों के प्रधानमंत्री' होने का?

भारतीय खिलाड़ियों ने कुछ दिन पूर्व टोकियो में संपन्न हुये ओलम्पिक खेलों से लेकर पैरालिम्पिक खेलों तक में अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के द्वारा अपनी शानदार प्रतिभा का लोहा तो ज़रूर मनवा दिया है परन्तु कई आलोचकों का यह भी मानना है कि भारत जैसे विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के लिहाज़ से देश में जीत कर आने वाले पदकों की संख्या फिर भी कम है। परन्तु यदि पदक विजेता खिलाड़ियों की पारिवारिक व आर्थिक पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो पायेंगे कि  इनमें अधिकांश खिलाड़ी मध्यम,निम्न मध्यम अथवा ग़रीब परिवार के सदस्य हैं। कुछ पदक विजेता खिलाड़ी तो ऐसे भी हैं जिनके मां बाप ने मज़दूरी कर अपने बच्चों को इस योग्य बनाया कि उन्होंने पदक जीत कर देश का नाम रौशन किया। इन खिलाड़ियों को प्रशिक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों को प्राप्त होने वाली वह सुविधायें तथा उस तरह का आहार भी नहीं मिल पाता जिसके वे हक़दार भी हैं और उनके लिये ज़रूरी भी है। ऐसे ही मध्यमवर्गीय व ग़रीब परिवार से आने वाली प्रतिभाओं की बेबसी को उजागर करने वाली एक ख़बर पिछले दिनों तब सामने आयी जब धनबाद की रहने वाली एक प्रतिभाशाली निशनेबाज़ कोनिका लायक ने समाज सेवी फ़िल्म अभिनेता सोनू सूद से लगभग तीन लाख रूपये क़ीमत की एक जर्मन निर्मित राइफ़ल खरीदने हेतु ट्वीटर के माध्यम से मदद मांगी। कोनिका लायक ने सोनू सूद को टैग करते हुए अपने ट्वीट में लिखा, "11वीं झारखंड स्टेट राइफ़ल शूटिंग चैंपियनशिप में  मैंने एक रजत और एक स्वर्ण पदक जीता। हालांकि, सरकार ने मेरी बिल्कुल भी मदद नहीं की है। कृपया एक राइफ़ल के साथ मेरी मदद करें'।" सोनू सूद ने फ़ौरन उसकी सहायता की और उसे वह रायफ़ल मिल सकी। कोनिका ने इससे पहले  खेलमंत्री मंत्री से लेकर स्थानीय सांसद तक से अपनी रायफ़ल की ज़रुरत की गुहार लगायी थी। परन्तु हम आम तौर पर अपने देश में तो यही देखते आ रहे हैं कि पदक जीतने के बाद ही सरकारें अपनी 'इनायतों की बौछार ' करती हैं। जबकि इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि खिलाड़ियों को वह सभी सुविधाएं मुहैय्या कराई जायें जो उनकी खेल प्रतिभा को निखारने व पदक जीतने में सहायक हों।


इन सब वास्तविकताओं के बावजूद खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने ओलम्पिक में खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय प्रधानमंत्री को देने के आशय का एक लेख देश के तमाम अख़बारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित कराया। इस आलेख में उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा नीरज चोपड़ा को चूरमा तथा पीवी सिंधु को आइसक्रीम पेश करना, बजरंग पुनिया के साथ हंसते रहना, रवि दहिया को और हंसने के लिए कहना तथा मीराबाई चानू के अनुभव सुनना तथा टोक्यो में भाग लेनेवाले प्रत्येक एथलीट के साथ समय बिताना,व पैरा ओलिंपिक दल के साथ बातचीत तथा उनकी प्रेरक जीवन यात्रा पर चर्चा तथा गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में खेल महाकुंभ पहल की शुरूआत करने जैसी कई बातों का उल्लेख किया। और यहां तक लिखा कि वे 'भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें 'खिलाड़ियों का प्रधानमंत्री' कहा जा सकता है।सरकार के और भी कई पक्षकारों ने ओलम्पिक में खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय प्रधानमंत्री व उनकी सरकार की खेल नीतियों को देने की कोशिश की। अभी देश ओलम्पिक तथा पैरालिम्पिक खेलों में भारत के अच्छे प्रदर्शन का जश्न मना ही रहा था कि इसी बीच भारत सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने घोषणा कर दी कि रेलवे के 400 रेलवे स्टेशनों, 90 यात्री ट्रेनों के साथ साथ  15 रेलवे स्टेडियम व कई रेलवे कालोनियों तथा कोंकण व कई अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की ट्रेनों व रेल लाइनों के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पी पी पी ) के तहत निजी क्षेत्रों को देने का फ़ैसला किया गया है। सरकार इस व्यवस्था को 'मॉनेटाईज़ेशन' का नाम भी दे रही है। परन्तु दरअसल सरकार द्वारा पी पी पी  और मॉनेटाईज़ेशन जैसे शब्दों का प्रयोग 'निजीकरण ' शब्द के स्थान पर ही किया जा रहा है।


बहरहाल 'खिलाड़ियों के प्रधानमंत्री' की दौर-ए-हुकूमत में रेलवे की जो अरबों रूपये की संपत्ति पी पी पी के निशाने पर है उनमें खेल स्टेडियम के रूप में स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स डीएलडब्लू वाराणसी,मुंबई के परेल में स्थित इंडोर स्टेडियम और क्रिकेट ग्राउंड,पटना स्थित इंडोर स्टेडियम स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, चेन्नई स्थित बेहाला स्टेडियम, रेलवे स्टेडियम स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स,कोलकाता, रायबरेली स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, गुवाहाटी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स,मालिगांव, कपूरथला स्टेडियम, बंगलुरू का येलाहंका क्रिकेट स्टेडियम स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, सिकंदाराबाद, महालक्ष्मी स्टेडियम,मुंबई ,हॉकी स्टेडियम,राँची,लखनऊ क्रिकेट स्टेडियम ,गोरखपुर स्टेडियम तथा करनैल सिंह स्टेडियम, दिल्ली शामिल हैं। इनमें अनेक स्टेडियम ऐसे भी हैं जहां से प्रशिक्षित होकर हमारे देश की खेल प्रतिभाओं ने देश का नाम रौशन किया है। इन्हीं में रेलवे का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध दिल्ली के कनॉट प्लेस का वह करनैल सिंह स्टेडियम भी है जहाँ से अभ्यास कर पी टी उषा ने 'उड़न परी' का ख़िताब हासिल किया था। इतना ही नहीं बल्कि ओलम्पिक में  बजरंग पूनिया,मीरा चानू ,सुशिल,रवि कुमार,साक्षी, सहित और भी कई सुप्रसिद्ध पदक विजेता खिलाड़ी दिल्ली के इसी करनैल सिंह स्टेडियम की देन हैं। यह स्टेडियम दिल्ली के केंद्र कनॉट प्लेस में लगभग 6 एकड़ ज़मीन पर बना है जहाँ प्रशिक्षु खिलाड़ियों के प्रशिक्षण,आवास,अभ्यास आदि की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसी स्टेडियम से प्रशिक्षित होकर रेलवे ने अब तक ओलंपिक के 6 स्वर्ण पदक  जीते हैं। परन्तु शायद  'खिलाड़ियों के प्रधानमंत्री' को लगता है कि ज़मीन के मूल्य के अनुसार इस ज़मीन से फ़ायदा नहीं उठाया जा रहा है और अनुमानतः दो हज़ार करोड़ से ज़्यादा क़ीमत की इस ज़मीन का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। यहाँ क्रिकेट  में रणजी ट्राफ़ी  के अलावा मुक्केबाज़ी ,कुश्ती और कई अन्य खेलों के अभ्यास व प्रशिक्षण होते रहे हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ खेलों के राष्ट्रीय शिविर भी लगते रहे है। ज़ाहिर है पी पी पी (निजीकरण ) के बाद यह सभी गतिविधियां शायद संभव न हो सकें। खेल विशेषज्ञों का मानना है कि स्पोर्ट्स हब के रूप में अपनी पहचान रखने वाले इस स्टेडियम को समाप्त करने से भारतीय खेल प्रभावित होगा। परन्तु सरकार के क़दम से तो यही लगता है कि  उसे खिलाड़ियों की सुविधाओं व उनके पदक से ज़्यादा फ़िक्र सरकारी संपत्ति से धनार्जन करने की है। ऐसे में सवाल यह है कि जब एक ओर देश में आने वाले पदकों की संख्या तो बढ़ रही हो और ठीक उसी समय स्टेडियम्स की संख्या में सरकार द्वारा कमी की जा रही हो इसके बावजूद 'खिलाड़ियों के प्रधानमंत्री' होने का दावा करना क्या विरोधाभास पैदा नहीं करता ?


-निर्मल रानी-