हिंदुओं पर अत्याचार

1947 में भारत विभाजन के बाद पाक के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने पहले भाषण में कहा था कि 'हमें अपने व्यवहार और विचार से अल्पसंख्यकों को यह जता देना चाहिए कि हम उनकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं और उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है।Ó लेकिन पाकिस्तान की हुकूमत जिन्ना के वादे पर खरा नहीं रही है। जिन्ना के समय से ही पाकिस्तान में गैर-मुसलमानों विशेष रूप से हिंदुओं और सिखों पर कहर जारी है। गत रोज पहले जिस तरह ननकाना साहिब में गुरुद्धारा तंबू साहिब के ग्रंथी भगवान सिंह की नाबालिग

बेटी को अगवा कर जबरन धर्मांतरण कराकर बलपूर्वक निकाह किया गया, उससे साफ है कि पाकिस्तान अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा करने में विफल है। यह उचित है कि इन घटनाओं को लेकर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कुछ महीने पहले सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक समुदाय की दो नाबालिग हिंदू बहनों रवीना और रीना के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। पाक में हर साल 1000 से अधिक हिंदू लड़कियों को अगवा कर जबरन धर्मांतरण करा शादी की जाती है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष की मानें तो सिर्फ सिंध राज्य में ही हर महीने 20 से 25 हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण कराकर मुसलमानों से शादी कराई जाती है। याद होगा जनवरी माह में अनुषा कुमारी का अपहरण किया गया था और फिर मुस्लिम युवक से उसका जबरन निकाह कराया गया। 2017 में दो हिंदू लड़कियों रवीता मेघवार और आरती कुमारी तथा सिख युवती प्रिया का जबरन निकाह कराया गया। गत वर्ष पहले ही सिंध प्रांत के जैकोबाबाद में एक नाबालिग हिंदू लड़की मनीषा का अपहरण कर उसे जबरन इस्लाम कबूलवाया गया। सुनील नाम के एक हिंदू किशोर को एआरवाई डिजिटल चैनल के स्पेशल रमजान लाईव शो में इस्लाम धर्म स्वीकार करते दिखाया गया। 19 वर्षीय हिंदू लड़की रिंकल कुमारी और भारती का अपहरण कर जबरन इस्लाम धर्म कबूल कराया गया। गौर करें तो पाकिस्तान में हिंदू और सिख लड़कियों का जबरन धर्मांतरण कोई नई बात नहीं है। भारत विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में हिंदुओं को खत्म करने की साजिश चल रही है। विभाजन के समय पाकिस्तान में 15 फीसद हिंदू थे जो आज उनकी आबादी घटकर 1.6 फीसद रह गई है। गौर करें तो पाक की हुकूमत और कट्टरपंथी ताकतें अल्पसंख्यक हिंदुओं व सिखों को खत्म करने के लिए दो रास्ते अपना रही हैं। एक उनकी हत्या और दूसरा जबरन धर्मांतरण। यह खेल पूरा पाकिस्तान में चल रहा है। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और ब्लूचिस्तान में स्थिति कुछ ज्यादा ही भयावह है। यहां अल्पसंख्यक हिंदू-सिख समुदाय से जबरन जजिया वसूला जा रहा है। जजिया न चुकाने वाले हिंदू-सिखों की हत्या कर उनकी संपत्ति लूट ली जाती है। मंदिरों और गुरुद्वारों को जला दिया जाता है। 1947 में पाक में 428 हिंदू मंदिर थे। आज सिर्फ 26 मंदिर शेष बचे हैं। यानी अन्य मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हिंदू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति भयावह है। वे गरीबी एवं भुखमरी के दंश से जूझ रहे हैं। आर्थिक रूप से विपन्न और बदहाल हैं। वे आतंक, आशंका और डर के साये में जी रहे हैं। एचआरसीपी की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। धर्म परिवर्तन का ढंग भी बेहद खौफनाक औैर अमानवीय है। हिंदू लड़कियों का पहले अपहरण कर उनके साथ रेप किया जाता है और फिर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है। त्रासदी यह कि जब मामला पुलिस के पास पहुंचता है तो पुलिस भी बलात्कारियों पर कार्रवाई करने के बजाए हिंदू अभिभावकों को ही प्रताडि़त करती है। उन्हें मानसिक संताप देने के लिए बलात्कार पीडि़त नाबालिग लड़की को उनके संरक्षण में देने के बजाए अपने संरक्षण में रखती है। पुलिस संरक्षण में एक अल्पसंख्यक लड़की के साथ क्या होता होगा सहज अनुमान लगाया जा सकता है। बाद में पुलिस कहानी गढ़ देती है कि लड़की ने इस्लाम कबूल कर लिया और वह अपने पुराने धर्म में लौटना नहीं चाहती। गौर करने वाली बात यह है कि सरकार व पुलिस ने बलात्कारियों और मजहबी कट्टरपथियों को संरक्षण और धर्मांतरण कराने की पूरी छूट दे रखी है। लिहाजा उनके मन में कानून का भय नहीं है। पाक का अल्पसंख्यक समुदाय एक अरसे से अपनी सुरक्षा और मान-सम्मान की रक्षा की गुहार लगा रहा है। कुछ सामाजिक संगठन अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज उठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कट्टरपंथी संगठन उन्हें डरा धमकाकर चुप करा देते हैं। पाक सीनेट की स्थायी समिति बहुत पहले ही हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाएं रोकने के लिए सरकार को ताकीद कर चुकी है। लेकिन किसी सरकार ने ठोस पहल नहीं की। इमरान सरकार भी हाथ पर हाथ धरी बैठी है। जाहिर है कि अल्पसंख्यकों को लेकर उसकी भी मंशा और नीयत में खोट है। सरकार को डर है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने पर कट्टरपंथी ताकतें नाराज हो जाएंगी। यही वजह है कि पाक में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति दोयम दर्जे की हो गयी है। अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने के नाम पर महज एक ईसाई सांसद तय किया जाता है। इसके अलावा कानूनी तौर पर भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है।


-सिद्धार्थ शंकर-