न्यायालयों की चिंता

-सिद्धार्थ शंकर- देशभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, बेड और जरूरी दवाओं की किल्लत को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस लिया है। इस मामले में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हई। इस दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि हालात डरावने हैं। कोरोना महामारी और अस्पतालों में अव्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आपातकाल जैसा बताया है। साथ ही हालात से निपटने के तरीकों को लेकर सरकार से कार्ययोजना मांगी है। कोरोना की दूसरी लहर रोंगटे खड़े कर रही है। हालात से निपटने में केंद्र और राज्य सरकारों की लाचारी भी सामने आ गई है। महामारी की सबसे ज्यादा मार झेल रहे राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में अस्पताल ऑक्सीजन की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। ज्यादातर अस्पताल कुछ ही घंटे की ऑक्सीजन के सहारे चल रहे हैं। ये हालात पिछले तीन-चार दिन में कुछ ज्यादा ही बिगड़े हैं। हर रोज, हर घंटे अस्पतालों में सायरन बज रहा है। इसके बजते ही परिजनों की भागदौड़ शुरू हो रही है। अंदर मरीजों की सांस फूल रही है। हर राज्य, हर अस्पताल में बइंतजामी के हालात हैं। बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा करने वाली सरकारों की सच्चाई सामने आ रही है। अब हालत यह हो चली है कि अस्पतालों ने बिस्तर और ऑक्सीजन न होने से नए मरीजों को भर्ती करना ही बंद कर दिया है। गौरतलब है कि देश में मौतों का आंकड़ा लगाातर दो हजार के ऊपर बना हुआ है। इतना ही नहीं, देश में एक दिन में तीन लाख से ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं। अगर हालात बेकाबू नहीं होते तो दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को तल्ख टिप्पणियां नहीं करनी पड़तीं। अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मुहैया करा पाने से नाराज दिल्ली हाई कोर्ट को तो यहां तक कहना पड़ा था कि लोगों को मरते हुए नहीं देखा जा सकता। अदालत का रुख गौरतलब है कि चाहे भीख मांगिए, उधार मांगिए या चोरी कीजिए, किसी भी सूरत में अस्पतालों को ऑक्सीजन उपलब्ध करवाइए। हाई कोर्ट की ऐसी टिप्पणी सरकारों की अक्षमता और लापरवाही बताने के लिए काफी है। जब तीन हफ्ते पहले हालात बिगडऩे शुरू हुए थे, तभी से ऑक्सीजन की उपलब्धता बनाए रखने के प्रयास होते तो कई जानें बचाई जा सकती थीं। अभी ज्यादातर अस्पतालों की हालत यह है कि उन्हें जरूरत की आधी ऑक्सीजन भी नहीं मिल रही है। अक्सर यह देखने में आता रहा है कि महामारी से निपटने संबंधी मुद्दों को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल का अभाव रहा है। कई राज्यों ने तो हालात से निपटने में मदद को लेकर केंद्र पर पक्षपात के आरोप भी लगाए। इससे केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थितियां पैदा हुईं और खमियाजा जनता को भुगतना पड़ा। हाल में ऑक्सीजन और टीके उपलब्ध कराने में भी ऐसा देखा गया। महामारी की तीव्रता और इससे पैदा हुए हालात में केंद्र और राज्य सरकारों का ऐसा रवैया कम से कम जनकल्याणकारी सरकारों का तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता। यह वक्त आपस में लडऩे या राजनीति करने का नहीं, बल्कि एकजुट होकर महामारी से निपटने का है।