कानपुर में स्मॉग के साथ बढ़ रही विसिबिलिटी : मौसम वैज्ञानिक

कानपुर : कानपुर शहर में स्मॉग तीव्रता से बढ़ रही है और पिछले 17 सालों में एक खतरानाक स्थिति पैदा हो गई है जिससे स्वास्थ्य आपात स्थिति के रूप में जाना जा रहा है।


लॉस एंजिल्स, बीजिंग, दिल्ली, तेहरान आदि के वायुमंडलीय प्रदूषण का स्तर विलोमन है जो कि प्रदूषण को जमीन के करीब तेजी से बढ़ा रहा है। कानपुर स्मॉग के कारण विसिबिलिटी खराब हो रही है और बच्चों को घर के अंदर रहने की प्राथमिकता दी जाती हैं, क्योंकि यह मनुष्यों के लिए बेहद जहरीला है और गंभीर बीमारी का कारण हो सकता है, यहां तक कि मृत्यु का कारण भी हो सकता है। यह बातें सीएसए के मौसम वैज्ञानिक डा. एसएन सुनील पाण्डेय ने कही।


चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डा. एसएन सुनील पाण्डेय ने बताया कि स्मॉग (धुआं) दो शब्दों अर्थात धुंए (स्मॉग) और कोहरे (फॉग) से मिलकर बना है, जिसे फॉग या धुंध में धुंए या कालिख कणों के मिले होने से भी जाना जाता है या धूल और जल वाष्प के साथ विभिन्न गैसों का मिश्रण जो कोहरे में मौजूद होता है जिसकी वजह से सांस लेना भी मुश्किल हो, इस रूप में भी वर्णित है। यह एक पीला या काला कोहरा होता है जो वायु प्रदूषण के एक मिश्रण से बना है, जिसमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर आक्साइड और कुछ अन्य कार्बनिक यौगिक होते हैं जो कि सूर्य के प्रकाश के साथ गठबंधन कर ओजोन का निर्माण करते हैं।


बताया कि हम कह सकते हैं कि स्मॉग विशुद्ध रूप से वायु प्रदूषण के कारण होता है। जब ईंधन जलता हैं, वायुमंडलीय प्रदूषण या गैसें हवा में मौजूद सूरज की रोशनी और वातावरण में इसकी गर्मी के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, जिससे स्मॉग बनती है। वीओसी, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन आक्साइड के बीच जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाओं की वजह से भी बनती है, जिन्हें अग्रगामी के रूप में भी जाना जाता है।


ऐसा वातावरण जहां हवा में ओजोन, हाइड्रोजन तथा दुसरे कार्बनिक परोक्साइड्रस हो, वहां फोटो केमिकल स्मॉग का होना देखा गया है। जब वातावरण में पाए जाने वाले नाइट्रोजन सूर्य के प्रकाश में हाइड्रोकार्बन (ये मोटर साइकिलों तथा गाडियों के धुएं में होते है।) से क्रिया करते है, तब यह विशेष स्मॉग पैदा होते हैं। परोक्सी बेजॉयल नाइट्रेट जो कि प्रदेषित वातावरण में आमतौर पर होते है ही आंखों में जलन एवं आंसू लाते हैं। बताया कि किसी भी कारण से जब वातावरण में ओजोन बनने लगे तो फोटो केमिकल स्मोग की सम्भावना बढ़ने लगती है। जब एक घंटे में 0.15 पीपीएम (एक लाख पर एक भाग से अधिक) ओजोन या कोई अन्य ऑक्सीकारक बनता है, तो यह माना जाना चाहिए कि अब इस वातावरण में फोटो केमिकल स्मोग होने की सम्भावना लगभग निश्चित है।


नाइट्रोजन के ऑक्साइड सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्मॉग के बनने में खास योगदान देते हैं। गाडियों में धुंए में पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बनों की जब वातावरण की ओजोन से क्रिया होती है तब भी स्मॉग बनता है। वातावरण में सामान्यतया प्रदूषित होकर दोनों की तरह की हाइड्रोजन सल्फाइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैसें आ जाती है। अगर ये वातावरण की सहन करने की सीमा को पार करती है , तो उनके परिणाम बहुत गंभीर होते है। अम्ल वर्षा , विभिन्न वस्तुओं का क्षरण , दृष्टि में अचानक कमी तथा स्वास्थ्य के लिए दुसरे कई गंभीर खतरे , इन्ही गैसों की देन है। ऐसा वातावरण जो पहले से प्रदूषित हो तथा यदि संयोग से वहां स्मोग भी हो, तो सल्फर डाइऑक्साइड एवं हाइड्रोजन सल्फाइड के असर बहुत तीव्र होते है। बहुत अधिक असर होने पर आसपास के पेड़ पौधों पर भी इनका असर होने लगता है।