पाकिस्तान अपनी तौहीन क्यों करा रहा?

'तहरीके-लबायक पाकिस्तान' नामक इस्लामी संगठन ने इस्लाम और पाकिस्तान, दोनों की छवि तार-तार कर दी है। पिछले हफ्ते उसके उकसाने के कारण सियालकोट के एक कारखाने में मैनेजर का वर्षों से काम कर रहे श्रीलंका के प्रियंत दिव्यवदन नामक व्यक्ति की नृशंस हत्या कर दी गई।


दिव्यवदन के बदन का, उसकी हड्डियों का चूरा-चूरा कर दिया गया और उसके शव को फूंक दिया गया। इस कुकृत्य की निंदा पाकिस्तान के लगभग सारे नेता और अखबार कर रहे हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। उसी कारखाने के दूसरे मैनेजर मलिक अदनान ने प्रियंत को बचाने की भरसक कोशिश की लेकिन भीड़ ने प्रियंत की हत्या कर ही डाली।


'तहरीक' ने प्रियंत पर यह आरोप लगाया कि उसने तौहीन-अल्लाह की है। काफिराना हरकत की है। इसीलिए उसे उन्होंने सजा-ए-मौत दी है। प्रियंत ने तहरीके-लबायक के एक पोस्टर को अपने कारखाने की दीवार से इसलिए हटवा दिया था कि उस पर पुताई होनी थी। हमलावरों का कहना है कि उस पोस्टर पर कुरान की आयत छपी हुई थी।


इन हमलावरों से कोई पूछे कि उस श्रीलंकाई बौद्ध व्यक्ति को क्या पता रहा होगा कि उस पोस्टर पर अरबी भाषा में क्या लिखा होगा? मान लें कि उसे पता भी हो तो भी कोई पोस्टर या कोई ग्रंथ या कोई मंदिर या मस्जिद वास्तव में क्या है? ये तो बेजान चीजें हैं। आप इनके बहाने किसी की हत्या करते हैं तो उसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि आप बुतपरस्त हैं, मूर्तिपूजक हैं? क्या इस्लाम बुतपरस्ती की इजाजत देता है? क्या अल्लाह या ईश्वर या गाॅड या जिहोवा इतना छुई-मुई है कि किसी के पोस्टर फाड़ देने, निंदा या आलोचना करने, किसी धर्मग्रंथ को उठाकर पटक देने से वह नाराज़ हो जाता है? ईश्वर या अल्लाह को किसने देखा है लेकिन इंसान अपनी नाराजी को ईश्वरीय नाराजी का रूप दे देता है। यह उसके अपने अहंकार और दिमागी जड़ता का प्रमाण है। इसका अर्थ यह नहीं कि दूसरों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना उचित है।


जिन्ना पाकिस्तान को एक सहनशील राष्ट्र बनाना चाहते थे लेकिन पाकिस्तान दुनिया का सबसे असहिष्णु इस्लामी राष्ट्र बन गया है। कभी वहां मंदिरों, कभी गुरुद्वारों और कभी गिरजाघरों पर हमलों की खबरें आती रहती हैं। कभी कादियानियों पर हमले होते हैं। 2011 में लाहौर में राज्यपाल सलमान तासीर की हत्या इसलिए कर दी गई थी कि उन्होंने आसिया बीबी नामक एक महिला का समर्थन कर दिया था। आसिया बीबी पर तौहीन-ए-अल्लाह का मुकदमा चल रहा था।


सलमान तासीर अच्छे खासे पढ़े-लिखे मुसलमान थे। वे मेरे मित्र थे। उनकी हत्या पर गजब का हंगामा हुआ लेकिन यह सिलसिला अभी भी ज्यों का त्यों जारी है। इस सिलसिले को रोकने के लिए सरकार की सख्ती तो चाहिए ही लेकिन उससे भी ज्यादा जिम्मेदारी मजहबी मौलानाओं की है। ईश्वर और अल्लाह को अपनी तारीफ या तौहीन से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन उसके कारण पाकिस्तान की तौहीन क्यों हो?



-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)