‘कोर्ट भी महिला को पति संग रहने पर मजबूर नहीं कर सकता -गुजरात हाईकोर्ट ने परिवार अदालत का आदेश पलटा

अहमदाबाद : एक परिवार अदालत का आदेश पलटते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि न्यायिक आदेश के बावजूद एक महिला को उसके पति के साथ रहने और दांपत्य अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।


हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पहली पत्नी अपने पति के साथ रहने से इस आधार पर इनकार कर सकती है कि मुस्लिम कानून बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन इसे कभी बढ़ावा नहीं दिया है। हाईकोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में कहा, भारत में मुस्लिम कानून ने बहुविवाह को मजबूरी में सहन करने वाली संस्था के रूप में माना है, लेकिन प्रोत्साहित नहीं किया है, और पति को सभी परिस्थितियों में पत्नी को किसी अन्य महिला को अपनी साथी (कंसोर्टियम) के तौर पर रखने के लिए मजबूर करने का कोई मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया है। हाईकोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि समान नागरिक संहिता संविधान में केवल एक उम्मीद नहीं रहनी चाहिए। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति निरल मेहता की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक मुकदमे में निर्णय पूरी तरह से पति के अधिकार पर निर्भर नहीं करता है।


पीठ ने गुजरात के बनासकांठा जिले की एक परिवार अदालत के जुलाई 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। परिवार अदालत ने महिला को अपने ससुराल वापस जाने और वैवाहिक दायित्व के निर्वहन का निर्देश दिया था।


क्या है मामला

युगल का निकाह 25 मई 2010 को बनासकांठा के पालनपुर में किया गया। जुलाई 2015 में उनका एक बेटा हुआ। याचिका के मुताबिक, एक सरकारी अस्पताल में नर्स के तौर पर काम करने वाली महिला ने ससुरालवालों द्वारा ऑस्ट्रेलिया जाकर वहां नौकरी करने के लिए दबाव बनाने पर जुलाई 2017 में अपने बेटे के साथ ससुराल छोड़ दिया था। महिला ने कहा कि उसे यह विचार पसंद नहीं था, इसलिए उसने बेटे के साथ ससुराल छोड़ दिया था।


हाईकोर्ट ने इस नियम का दिया हवाला

हाईकोर्ट ने नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 32 (1) का हवाला दिया। कहा कि कोई भी किसी महिला को उसे पति के साथ रहने और वैवाहिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। यदि पत्नी साथ रहने से इनकार करती है तो ऐसे मामले में उसे दांपत्य अधिकारों को स्थापित करने के लिए एक डिक्री के जरिये मजबूर नहीं किया जा सकता है। महिला के पति के मुताबिक, उसकी पत्नी बिना किसी वैध आधार के घर छोड़कर गई थी।