आयशा मलिक : पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश

नई दिल्ली। एक ऐसे देश में जहां महिलाओं को हमेशा पुरुषों से कमतर माना गया, लड़कियों की शिक्षा की हिमायत करने वालों को गोली मार दी जाती, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के जीने से लेकर मरने तक उनपर किसी पुरुष का अख्तियार होता है, और उससे भी अधिक जहां अदालतों में कुछ मामलों में महिलाओं की गवाही का वजन पुरुषों की गवाही से आधा होता है, उस देश में एक महिला का सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बन जाना अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।

 

अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से इस चमत्कार को अंजाम दिया है आयशा ए मलिक ने, जो पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनने जा रही हैं। देश के न्यायिक आयोग ने उनके नाम को मंजूरी दे दी है और अब संसदीय समिति से मंजूरी मिलने के बाद वह पड़ोसी मुल्क में एक ऐसा दर्जा हासिल कर लेंगी, जो वहां की महिलाओं के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं।

 

तीन जून 1966 को जन्मी आयशा मलिक ने कराची ग्रामर स्कूल से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद कराची के ही गवर्नमेंट कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद कानूनी शिक्षा की तरफ उनका रुझान हुआ और लाहौर के कॉलेज ऑफ लॉ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में मेसाच्यूसेट्स के हॉवर्ड स्कूल ऑफ लॉ से एलएलएम (विधि परास्नातक) की पढ़ाई की। उनकी उल्लेखनीय योग्यता का सम्मान करते हुए उन्हें 1998-1999 में ‘लंदन एच गैमोन फेलो’ चुना गया।

 

आयशा मलिक ने अपना करियर कराची में फखरूद्दीन जी इब्राहिम एंड कंपनी से शुरू किया और 1997 से 2001 तक चार साल यहीं गुजारे। अगले 10 बरसों में उन्होंने खूब नाम कमाया और कई मशहूर कानूनी फर्मों के साथ जुड़ी रहीं। 2012 में वह लाहौर उच्च न्यायालय में जज के तौर पर नियुक्त हुईं और कानून की दुनिया में एक बड़ा नाम बन गईं।

 

अपने निष्पक्ष और बेबाक फैसलों के कारण अकसर चर्चा में रहने वाली आयशा की हालिया नियुक्ति का कुछ न्यायाधीशों और वकीलों ने विरोध किया है। उन्होंने आयशा की वरिष्ठता और इस पद के लिए उनकी योग्यता पर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि ‘वीमन इन लॉ इनिशिएटिव-पाकिस्तान’ ने इस विरोध के जवाब में इससे पहले के 41 मौकों का हवाला दिया है, जब वरिष्ठता के बिना नियुक्ति की गई। याद रहे कि पिछले बरस न्यायिक आयोग ने इस पद पर आयशा की नियुक्ति से इंकार कर दिया था।

 

आयशा मलिक देश में महिला अधिकारों की पैरोकार मानी जाती हैं और उन्होंने इस दिशा में प्रयास भी किए हैं। इसका एक उदाहरण उनका पिछले वर्ष का एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसमें बलात्कार के मामलों में महिलाओं पर किए जाने वाले एक विवादित परीक्षण को उन्होंने रद्द कर दिया, जो अकसर आरोपियों को कानून के फंदे से बच निकलने में मददगार होता था और पीड़ित महिला के चरित्र को संदेह के घेरे में खड़ा कर देता था।

 

बहरहाल आयशा मलिक की नियुक्ति का पाकिस्तान की कई प्रमुख हस्तियों ने समर्थन किया है। सत्तारूढ़ तकरीक-ए-इंसाफ पार्टी की सांसद और कानून के लिए संसदीय सचिव मलिका बुखारी ने उनकी नियुक्ति पर ट्वीट किया, ‘‘हमारे देश के लिए एक महत्वपूर्ण और निर्णायक पल जब एक शानदार वकील और बेहतरीन जज को पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनाया गया। रवायतें टूट रही हैं।’’

 

पाकिस्तानी लेखिका बीना शाह ने उनकी नियुक्ति पर कहा कि उन्होंने नया इतिहास बनाया है।

 

पाकिस्तान में महिलाओं के हालात दुनिया में किसी से छिपी नहीं हैं और महिला अधिकारों के पैरोकारों के संघर्ष का भी अपना एक इतिहास रहा है। आशा है कि आयशा मलिक की नियुक्ति से महिला अधिकारों की बहाली की दिशा में भी एक नया इतिहास लिखा जाएगा।