गांधी 6.5, नेहरू 9, सावरकर 15 साल जेल में रहे; 170 साल बाद भारत ने दिखाया आईना

साल 1911 की बात है। अंडमान के सेल्यूलर जेल में विनायक दामोदर सावरकर नाम के एक क्रांतिकारी को लाया गया। उस छोटी-सी कोठरी में रहने के दौरान कई वर्षों तक सावरकर को भनक तक नहीं लगी कि इसी जेल में उनके सगे भाई भी बंद हैं। जेल को बनाया ही कुछ इस तरह से गया था कि कैदी एक-दूसरे से बिल्कुल अनजान रहें।

टापू के बीचोंबीच एक टॉवर था। उससे लगी कोठरियों की तीन मंजिला 7 कतारें बनाई गई थीं। ये साइकिल के पहिए की तरह हैं। जैसे साइकिल के बीचों-बीच के गोल चक्कर से तीलियां निकलकर बिना जुड़े बड़े गोल रिम से जुड़ती हैं। इसी तरह ये इमारत भी बनाई गई थी। 15 गुना 8 फीट की इन कोठरियों में तीन मीटर की ऊंचाई पर एक रोशनदान था, जो समुद्र की ओर खुलता था। जहां से भागने का मतलब था-सिर्फ मौत।

‘नेहरू परिवार की ख़ानदानी जेल’, जहां तीन पीढ़ियां रहीं

1884 में एक और जेल इलाहाबाद के नैनी में खुली। इसे नेहरू परिवार की ख़ानदानी जेल कहते हैं। कई बार मजाक में ऐसा कहा जाता है कि नेहरू परिवार ने आनंद भवन से ज्यादा वक्त इस जेल में गुजारा। मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज गांधी भी इस जेल में बंद रहे। पांच बार इस जेल में सजा काट चुके नेहरू ने इंदिरा गांधी को यहीं से चिट्ठियां लिखीं जो बाद में मशहूर किताब ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ की शक्ल में आईं।

आज गणतंत्र दिवस के इस मौके पर हम परतंत्र भारत की उन इमारतों के बारे में बात कर रहे हैं जिनमें हजारों कहानियां दफ़न हैं। ये वो जेलें थीं, जिनमें आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी, नेहरू और सावरकर बंद रहे। हम यह भी जानेंगे कि किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने किलों और घरों को जेल में तब्दील कर दिया, किस तरह आगरा में देश की पहली सेंट्रल जेल खुली और किस तरह 170 साल बाद विजय माल्या मामले ने ब्रिटेन और उसकी जेल नीति को भारत ने आईना दिखाया।

शोले फिल्म का एक मशहूर डायलॉग है; जिसमें जेलर बने असरानी शान से कहते हैं - ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं’

फिल्म के इस डायलॉग का मतलब यह था कि अंग्रजों को जेल बनाने और लोगों को उसमें बंद करने के काम में उस्ताद समझा जाता था।

भारत आते ही अंग्रेजों ने खोलीं सैकड़ों जेल

1784 में ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश राजशाही से भारत में राज करने का अधिकार मिला। जिसके बाद अपनी हुकूमत को बनाए रखने और किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिए कंपनी ने बड़े पैमाने पर जेलों का निर्माण शुरू किया। कुछ नई जेल बनाई गईं तो कुछ पुराने किलों और हवेलियों को जेल में तब्दील कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत के इस शुरुआती दौर में ही देश में 143 सिविल जेल, 75 क्रिमिनल जेल और 68 मिक्स जेल खुल चुकी थीं।

ऐसी जगह जो अपने आप में थी जेल, जहां से कैदी भाग ही नहीं सकते थे

भारत आने के बाद से ही अंग्रेज बड़ी-बड़ी जेल बनाने लगे। एक समय ऐसा आया जब देश की सारी जेलें भर गईं। ऐसे में अंग्रेजों को नए और बड़ी जेल की जरूरत महसूस हुई।

1789 में अंग्रेजों ने पहली बार अंडमान में कैदियों की बस्ती बसाने की कोशिश की थी। अंडमान कोलकाता से 1400 किलोमीटर दूर समुद्री टापुओं का एक समूह था, लेकिन मुश्किल मौसम और दुश्मन देशों के आक्रमण के चलते अंग्रेजों का ये सपना पूरा न हो सका।

1857 में भारतीय बैरकों में बड़े पैमाने पर विद्रोह हुए। जिसके चलते अंग्रजों ने साल भर के भीतर ही 1858 में कैदियों का पहला जत्था अंडमान भेज दिया। खास बात यह थी कि तब तक पूरे अंडमान द्वीप पर जेल की एक ईंट भी नहीं पड़ी थी। अंग्रेज अधिकारियों ने तंबुओं में शरण ली और कैदियों को खुले जंगलों में छोड़ दिया गया। वहां से उनके भागने की कोई संभावना नहीं थी।

ऐसी जेल जो कैदियों ने खुद अपने लिए बनाई, बर्मा से आईं ईंटें

शुरुआत में कैदियों ने बारिश और जंगली कीड़ों से बचने के लिए टहनियों और पत्तों के सहारे अपने लिए झोपड़ियां बनाईं, लेकिन समुद्री हवाएं अक्सर इन झोपड़ियों को उड़ा ले जातीं और कैदियों को खुले में रहना पड़ता। जिसके चलते बड़े पैमाने पर कैदी बीमार होकर मरने लगे।

कैदियों के आने के 38 साल बाद 1896 में अंग्रजों ने अंडमान में जेल की बिल्डिंग बनाने का फैसला किया। इसके लिए बर्मा से ईंटें मंगवाई गईं। कैदियों ने खुद अपने लिए जेल बनाई। इस तरह 5 लाख रुपए में 1906 में अंडमान की प्रसिद्ध सेल्यूलर जेल बनकर तैयार हुई।

सेल शब्द से आया सेल्यूलर जेल, कई कमरों की बैरक

जेल की भाषा में एकांत कमरे को सेल कहा जाता है। अंडमान में बनी जेल की खासियत यह थी कि इसमें हर कैदी के लिए एक छोटा सा सेल बना था। जिसके चलते इसे ‘सेल्यूलर जेल’ नाम दिया गया।

जेल को एक सेंटर से निकले 7 कतारों में इस तरह बनाया गया था कि कैदियों को बाहर कुछ नजर न आए और वो बिल्कुल अकेले रहें।

आगरा में खुली देश की पहली सेंट्रल जेल

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कारोबारी विरोधियों को पकड़ने और जुर्माना लेने के लिए सैकड़ों छोटी-बड़ी जेलें खोल रखी थीं, लेकिन ये जेल मौजूदा जेलों की तरह ऊंची चारदीवारी वाली नहीं होती थीं। कहीं किसी कमरे को तो कहीं पुरानी इमारत को जेल बना दिया गया था।

1835 में लॉर्ड मैकॉले ने सिफारिश की कि भारत में जेलों की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नई और बड़ी जेल खोलने की जरूरत है। इस कमेटी की सिफारिश के बाद 1848 में आगरा में देश की पहली सेंट्रल जेल खोली गई।

1837 में तत्कालीन मद्रास में भी अंग्रेजों मे एक बड़ी जेल खोली। यह अंग्रेजी शासनकाल की शुरुआती नियोजित जेलों में से एक थी। 1855 में इसे सेंट्रल जेल का दर्जा दिया गया। 16,496 रुपए की लागत से बनी इस जेल में कालेपानी की सजा पाए कैदियों को रखा जाता था। जिन्हें बाद में अंडमान या बर्मा के मांडले जेल में भेज दिया जाता।

नैनी जेल में अंग्रेज क्रांतिकारी भी बंद किए गए

इलाहाबाद आजादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। जिसे देखते हुए अंग्रेजों ने साल 1884 में यहां 3000 की क्षमता वाली सेंट्रल जेल बनाई। इस जेल को क्रांतिकारियों का दूसरा घर माना जाता था। यहां ज्यादातर राजनीतिक कैदियों को रखा जाता।

नैनी जेल का इतिहास काफी रोचक है। यहां भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले अंग्रेज कैदियों को भी रखा गया था।

एलसी लैडली, पीएच हॉल्डन, डगलैस्टर, आईआर डायमंड, जॉर्ज हेरॉल्ड और बेंजामिन फ्रांसिस पर भारतीय क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ‘वंदे मातरम्’ गाने और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने का आरोप था। सभी को इसी जेल में बंद किया गया। नैनी जेल में आज भी इन अंग्रेज क्रांतिकारियों के नाम लिखे हुए हैं।

17 फीट की दीवार फांदकर जेल से भागे थे जेपी

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान हजारीबाग सेंट्रल जेल में जयप्रकाश नारायण को बंद किया गया था। इस समय तक महात्मा गांधी और नेहरू जैसे सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार हो चुके थे। ऐसे में जेल में बंद जेपी और साथियों ने बाहर निकलकर आंदोलन को नेतृत्व देने की ठानी।

9 नवंबर, 1942 दिवाली की रात थी। जेपी और उनके 5 साथियों ने 56 धोतियों के सहारे 17 फीट ऊंची दीवार को फांदकर फरार हो गए। अंग्रेजों को 9 घंटे बाद जब इसकी खबर मिली, जेपी और उनके साथी हजारीबाग से काफी दूर निकल चुुके थे। जिसके बाद अंग्रेजों ने जेपी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया।

मौजूदा वक्त में ऐतिहासिक जेल की इस इमारत में एक गर्ल्स स्कूल चल रहा है। जेपी के ही नाम पर एक जेल उससे हटकर बनाई गई है।

सिराजुद्दौला ने 14 फीट के कमरे में बंद किए 146 अंग्रेज, सिर्फ 23 जिंदा बचे

भारत में बड़ी-बड़ी जेल बनाकर क्रांतिकारियों को बंद करने वाले अंग्रेजों के साथ भी जेल की एक दुखद घटना जुड़ी है। बात तब की है, जब अंग्रेज भारत में व्यापारी बनकर आए थे। एक बार बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला अंग्रेजों से किसी बात पर खफा हो गए।

सन् 1756 में सिराजुद्दौला ने पकड़ में आए 146 अंग्रेजों को सजा देने की ठानी। तब आज की तरह आधुनिक जेल और बैरक तो नहीं थी। ऐसे में नवाब के सिपाहियों ने सभी अंग्रेजों को 14 फीट के कमरे में बंद कर दिया। इसमें महिलाएं भी शामिल थीं। छोटे से कमरे को रात भर बंद रखने के बाद जब सुबह उसे खोला गया तो सिर्फ 23 अंग्रेज जिंदा, लेकिन बेहोश मिले। बाकी सभी की दम घुटने से मौत हो चुकी थी।

गांधीजी के लिए महल को जेल में तब्दील कर दिया गया

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधीजी को कुल 13 बार गिरफ्तार किया गया। उन्हें दूसरी किसी जेल में आम कैदियों की तरह रखना संभव नहीं था; दूसरी ओर अंग्रेज यह भी नहीं चाहते थे कि जेल में गांधीजी दूसरे सत्याग्रहियों से मिलकर उन्हें प्रभावित करें। इसके लिए ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान गांधीजी को गिरफ्तार कर पुणे के आगा खां पैलेस में बंद कर दिया गया।

कहने को तो ये 6.5 एकड़ में फैला एक शानदार महल था, लेकिन इसे चारों ओर से घेर कर जेल में तब्दील कर दिया गया। किसी को बिना अनुमति अंदर या बाहर आने की इजाजत नहीं होती। इस महल जेल में गांधीजी के साथ कस्तूरबा गांधी को भी रखा गया था। इसी जेल में गांधी के दो प्रियजनों की मृत्यु हुई। कस्तूरबा गांधी और बापू के सहयोगी महादेव देसाई की। अब इस महल जेल को म्यूजियम में बदल दिया गया है। यहां कस्तूरबा गांधी और महादेव देसाई की समाधि है।

जब विजय माल्या ने जेल बनाने में मास्टर अंग्रेजों को दिखाया आईना

भारत के बैंकों से हजारों करोड़ रुपए लेकर फरार हुए कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण के लिए CBI लंबे समय से कोशिश कर रही है। ब्रिटिश कोर्ट में तमाम दलीलों के चूक जाने के बाद विजय माल्या ने कहा कि भारत के जेलों की स्थिति बहुत दयनीय है, अगर उसे वहां रखा गया तो इससे उसके मानवाधिकार का हनन होगा। इसके जवाब में CBI ने ब्रिटिश कोर्ट से कहा कि भारत की ज्यादातर जेलें ब्रिटिश हुकूमत की ही बनाई हुई हैं। ब्रिटिश कोर्ट या विजय माल्या के पास इसका कोई जवाब नहीं था।

जेल में ही लिखा गया स्वतंत्रता समर का इतिहास

आजादी के आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों के पास इतना वक्त नहीं रहता था कि वो किताबें लिखें। ऐसे में जब वे जेल में डाल दिए जाते तो किताबों और पत्रों की मदद से आजादी की अलख जगाते। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगभग सभी महत्वपूर्ण किताबें जेलों में ही लिखी गईं। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, भगत सिंह जैसे सेनानियों ने जेल में रहने के दौरान किताबें लिखीं। मात्र 2 साल जेल में रहने के दौरान भगत सिंह ने 4 किताबें लिखीं। उनकी आखिरी किताब फांसी से कुछ दिन पहले ही पूरी हुई।

आपने ब्रिटिश जेलों की कहानी जान ली। साथ ही अंग्रेजी क्रूरता के किस्सों को भी जाना, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ जेलों में हुआ। ब्रिटिश दौर के कई जेल अब संग्रहालय में तब्दील हो चुके हैं, कुछ को अस्पताल तो कुछ को स्कूल भी बना दिया गया। पर ज्यादातर जेलें आज भी उसी रूप में काम कर रही हैं। अंग्रेजों के जमाने के जेलरों के दिन भले लद गए, पर अंग्रेजों के जमाने की जेलें आज भी कायम हैं।