10 महिला सांसदों ने संसद भवन की यादें शेयर कीं

संसद का विशेष सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है। पांच दिन के इस सत्र के पहले दिन का कामकाज संसद की पुरानी बिल्डिंग में होगा। इसके बाद संसद नई बिल्डिंग में शिफ्ट हो जाएगा। रविवार को संसद की नई बिल्डिंग पर पहली बार तिरंगा फहराया गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद भवन के गजद्वार पर ध्वजारोहण किया। कार्यक्रम में अलग-अलग पार्टियों के सांसद मौजूद रहे।

इस मौके पर 10 महिला सांसदों ने संसद की पुरानी इमारत से जुड़ी यादें शेयर कीं। भाजपा की स्मृति ईरानी, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल, अपना दल की अनुप्रिया पटेल, भाजपा की पूनम महाजन, NCP की सुप्रिया सुले, कांग्रेस की रम्या हरिदास, निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और राज्यसभा सांसद पीटी ऊषा ने नोट लिखकर पुरानी इमारत को अलविदा कहा।

 पढ़ें सांसदों ने क्या लिखा...

स्मृति ईरानी ने संसद की नई इमारत में कामकाज शुरू होने का लेकर शुभकामनाएं दी।

हरसिमरत कौर बादल ने लिखा- 2006 में संसद देखने से लेकर 2009 में पहली बार सांसद बनने तक, 2014 में पहली बार मंत्री बनने तक इस इमारत के 144 पिलर्स से मेरी कई यादें जुड़ी हैं। इतिहास और हजारों भारतीय कलाकारों, मूर्तिकारों और मजदूरों की कला से सजी यह खूबसूरत इमारत मेरे लिए गहन शिक्षा का स्थान रही है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने लिखा- यादें, सीख, नीति निर्माण, दोस्ती। इस जगह का इतिहास और इसका खूबसूरत वास्तुशिल्प, जिसने गहन बहस और हंगामे देखे हैं। इस परिसर में राजनीति के दिग्गज और इतिहास बनाने वाले काम करते हैं। इस संसद ने एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर हमारी यात्रा को आकार दिया है। इस यात्रा का हिस्सा बनने पर मुझे गर्व है और उम्मीद करती हूं कि पुरानी संसद की आत्मा नई संसद में जिंदा रहेगी।

अनुप्रिया पटेल ने लिखा- जब मैंने पहली बार इस इमारत में कदम रखा तो मैंने गहराई से महसूस किया कि मैं एक ऐतिहासिक इमारत में प्रवेश कर रही हूं, जिसने देश को आजादी पाते 

हुए देखा, संविधान बनते हुए देखा और देश के लोकतांत्रिक संस्थानों को बढ़ते हुए और मजबूत होते हुए देखा।

पूनम महाजन ने लिखा- अन्तिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलाएं। आओ फिर से दीया जलाएं।”

महुआ मोइत्रा ने लिखा- इस इमारत की मेरे दिल में हमेशा एक खास जगह रहेगी, ठीक वैसे ही जैसे किसी के पहले घर की होती है। इस हॉल ने हम सभी को गले लगाया। इसने हमें मदद की कि हम इसमें अपने लिए छोटे कोने ढूंढ सकें। ये इमारत एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के लिए एक मुक्त स्थान था और ये हमारी जिम्मेदारी होगी कि भले ही इमारत बदल जाए, लेकिन ये स्वतंत्रता का प्रतीक बनी रहे।

सुप्रिया सुले ने लिखा- महाराष्ट्र और बारामती की जनता के प्रति अपना आभार जताना चाहती हूं कि उन्होंने मुझे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा बनने और संसद की खूबसूात इमारत का हिस्सा बनने का मौका दिया।

रम्या हरिदास ने संसद की पुरानी इमारत को लोकतंत्र का महल और मजबूत फैसलों की जन्मस्थली बताया।

नवनीत राणा ने लिखा- जब मैंने पहली बार पुरानी संसद में कदम रखा था, उसकी याद आज भी मेरे मन में है। इस संसद ने मुझे बहुत सारी चीजें सीखने का मौका दिया। यह वाकई में लोकतंत्र का मंदिर है।

पीटी ऊषा ने लिखा- 1986 में मैंने पहली बार संसद का दौरा किया था। इसके बाद मैं 2-3 बार और संसद आई, लेकिन 20 जुलाई 2022 को मैं राज्यसभा सांसद के तौर पर पहली बार संसद आई। वह मेरे लिए बड़ा दिन था।

नई संसद का वर्चुअल टूर...

 मैं संसद हूं… मेरी उमर 95 बरस हो चुकी है
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज में सिलेबस कोऑर्डिनेटर धनंजय चोपड़ा ने संसद की तरफ से एक आर्टिकल लिखा।

अब वक्त आ गया है, जब अपने सभी अधिकार नई-नवेली संसद को सौंप दूं। मेरे लिए यह क्षण जितना सुखद है, उतना ही भावुक भी। आज वो हर लम्हा याद आ रहा है, जब मेरी गोद में बैठकर कानून निर्माताओं ने देश की तस्वीर बदलने वाले फैसले लिए। मेरी पैदाइश अंग्रेजों के जमाने में 1927 में हुई। मुझे डिजाइन करने वाले हर्बर्ट बेकर और उद‌्घाटन करने वाले ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड इरविन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि दो बरस बाद 8 अप्रैल 1929 को देश की आजादी के दीवाने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त, बहरी अंग्रेज सरकार को देशवासियों की आवाज सुनाने के लिए विस्फोट कर देंगे। ये वो धमाका था, जिसमें मुझे आजादी की धमक सुनाई दे रही थी। हालांकि, मेरे कानों को वंदे मातरम की गूंज सुनने के लिए 18 साल इंतजार करना पड़ा। आखिर, 15 अगस्त 1947 को वो दिन आ ही गया।

आजाद भारत का वो पहला भाषण मुझे आज भी याद है
 पं. जवाहरलाल नेहरू का पूरी दुनिया के दिलोदिमाग को संवेदनाओं से भर देने वाला ‘आजाद भारत’ का वो पहला भाषण मुझे आज भी शब्दश: याद है। 26 जनवरी, 1950 को जब भारतीय गणराज्य की घोषणा हुई तो मेरा रोम-रोम खिल उठा। वहीं, मेरे जेहन में दर्द और वेदना के वो क्षण भी जस के तस हैं, जब तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की घोषणा की। युद्धकाल में देश को आर्थिक संकट से बचाने के लिए लाल बहादुर शास्त्री द्वारा देशवासियों से एक समय का भोजन छोड़ने की अपील करने वाला दिन भी कभी भूल नहीं सकती।

मगर, उस वक्त मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया, जब इंदिरा गांधी ने अपनी बुलंद आवाज में बांग्लादेश को आजाद कराने और सिक्किम के भारत में विलय का ऐलान किया। मुझे 21 जुलाई 1975 की वो तारीख भी अच्छी तरह याद है, जब उसी लोकसभा में आपातकाल की घोषणा की गई थी। समय के पहिये पर सवार उन लम्हों को भी मैंने सहेजा, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को ‘परमाणु हथियार संपन्न देश’ से गौरवान्वित किया।

हर संस्कृति, परंपराओं और आकांक्षाओं की अनुगूंज को सहेजने वाली मैं संसद, कैसे भूल सकती हूं उन दिनों को जब वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के रूप में संसद का विश्वास खोना पड़ा था।

2001 की वो मनहूस घड़ी याद करके मैं आज भी सिहर जाती हूं
 यह सही है कि इनमें से अटल बिहारी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो बाद में चुनाव जीतकर फिर मेरा साथ पाने में कामयाब रहे। 13 दिसंबर 2001 की वो मनहूस घड़ी याद करके मैं आज भी सिहर जाती हूं, जब आतंकियों ने मुझ पर हमला किया और मुझे बचाने के लिए मेरे गार्ड समेत 9 लोगों को शहीद होना पड़ा। 21वीं सदी का वह दिन भी मेरी यादों में तरोताजा रहेगा, जब पक्ष-विपक्ष की जोरदार बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करा दिया।

सब जानते हैं कि मैं 144 खम्भों वाली इमारत हूं और आज मैं लगभग 140 करोड़ लोगों की आवाज हूं। अपनी लंबी यात्रा में मैंने देश-दुनिया में कई बदलाव देखे हैं और आगे भी हर बदलाव के लिए तैयार हूं। सच यही है कि वर्षों से अपने केंद्रीय सभाकक्ष के प्रवेश द्वार पर लिखे इस वाक्य “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। (यानी यह मेरा है, यह पराया है, ऐसी गणना छोटी मानसिकता वाले करते हैं, जबकि उदार चित्त वाले तो पूरे विश्व को ही अपना परिवार मानते हैं) को चरितार्थ करते हुए अपने देशवासियों के साथ-साथ पूरी दुनिया की बेहतरी की कामना करती हूं और आगे भी करती रहूंगी। जय हिन्द, जय भारत।

970 करोड़ और 29 महीने में बनी नई संसद बिल्डिंग
 10 दिसंबर 2020 को PM नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन के ठीक सामने नए भवन का पहला पत्थर रखा था। 29 महीने और 973 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद नई संसद बनकर तैयार हुई। फोटो-वीडियो के जरिए नई संसद के अंदर का पूरा वर्चुअल टूर करने के लिए

 G20 देशों के स्पीकरों को होस्ट करेगी नई संसद
 नई संसद 13-14 अक्टूबर को G20 देशों के स्पीकरों को होस्ट करेगी। यहां पार्लियामेंट-20 मीटिंग होगी। आमंत्रित देशों की संसद के स्पीकर भी इसमें हिस्सा लेंगे। यह पार्लियामेंट-20 ग्रुप की नौवीं मीटिंग होगी।