चुनावी नतीजे भाजपा अब गंभीर आत्मचिंतन को मजबूर

आगामी 3 सालों में पूरे देश की सरकारों पर चक्रवर्ती राज का सपना देखने वाली देश पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से ऐसी कौन सी बड़ी गलती हो गई जिसके कारण उसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में यह दुर्दिन देखने को मजबूर होना पड़ रहा है ज्यादा नहीं सिर्फ 2 साल पहले ही लोकसभा चुनाव में भारी-भरकम बहुमत प्राप्त कर अपने अकेले बलबूते पर अपनी सरकार स्थापित की और अब सिर्फ 2 साल में उसे देश की सबसे अधिक बुद्धिजीवी वोटरों वाले राज्य पश्चिम बंगाल में यह दिन देखने को बाध्य होना पड़ रहा है। यह बात किसी से भी छुपी हुई नहीं है कि पश्चिम बंगाल पर कब्जा करने के लिए भाजपा ने एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया था और इस राज्य के विधानसभा चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था किंतु ना खुदा ही मिला न विसाले सनम। स्थिति वही कि वही है जो 2 महीने पहले थी आज न सिर्फ ममता दीदी ने अपनी ताकत का सार्वजनिक प्रदर्शन कर भाजपा के दिग्गजों को मात दे दी बल्कि उन्होंने इन परिणामों के माध्यम से खुद को प्रतिपक्ष की सशक्त नेत्री घोषित कर दिया अब जैसे कि आसार नजर आ रहे हैं और देश के सभी भाजपा विरोधी दलों के शीर्ष नेता ममता दीदी को बधाई देने के लिए पंक्ति बना कर खड़े हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि अब पश्चिम बंगाल में मोदी विरोधियों को नेतृत्व करने की क्षमता अर्जित कर ली है देश के शीर्ष नेता शरद पवार कश्मीरी नेता फारूक व उमर अब्दुल्ला दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल सपा नेता अखिलेश यादव आदि कई शीर्ष विरोधी नेता आज ममता दीदी को उनके सामने आत्मसमर्पण की मुद्रा में उन्हें बधाई दे रहे हैं कुल मिलाकर इस चुनाव परिणामों ने न सिर्फ मोदी विरोधी प्रतिपक्ष में एक नई ऊर्जा का संचार किया बल्कि पूरे प्रतिपक्ष को एकजुट होने का मंत्री भी बता दिया अब जहां तक कांग्रेसका सवाल है उसकी स्थिति खिसियानी बिल्ली जैसी है उसने चुनाव पूर्व जिस तरह के ममता दीदी से संबंध बनाकर रखें उनके कारण आज वह स्थिति में नहीं रह गई की अन्य प्रति पक्षी नेताओं की पंक्ति में खड़ी होकर ममता जी को बधाई दे सकें। कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने पक्ष प्रतिपक्ष सभी को अपने भविष्य के बारे में गंभीर चिंतन करने को मजबूर कर दिया है। यद्यपि इन चुनाव परिणामों के परिपेक्ष में भाजपा को इस बात पर गर्व करने का पूरा सिम बंगाल में 3 से बढ़कर 73 हो गई अर्थात 2016 के विधानसभा चुनावों में वहां भाजपा को केवल 3 सीटें ही मिल पाई थी जो अब बढ़कर 7 दशक से अधिक हो गई किंतु इसके साथ ही भाजपा के शीर्ष नेताओं को इसपरिपेक्ष मैं अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाने और दिन-रात अविरल मेहनत करे प्रयासों के बारे में भी सोचना चाहिए। यद्यपि आज देश के बुद्धिजीवी वर्ग और यहां तक कि न्यायपालिका का भी यह गंभीर आरोप है कि देश में जो कोरोना महामारी का खतरनाक विस्तार हुआ और उससे जनहानि हुई उसके पीछे देश के शीर्ष सत्ताधारी नेताओं की चुनावी तैयारियों व व्यवस्था दी है यदि केंद्र की पूरी सत्ता पश्चिम बंगाल पर कब्जे में व्यस्त नहीं होती तो इस महामारी से बचाव के रास्ते खोजने के प्रयास हो सकते थे किंतु वह नहीं हो पाए और देश के ढाई लाख से ज्यादा लोग इस महामारी के ग्रास बन गए। इसलिए कुल मिलाकर यह चुनाव परिणाम भाजपा के लिए सुखद तो नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि पांचों राज्यों में भाजपा के हाथ कुछ विशेष नहीं आ पाया किंतु हां यह सही है कि इस चुनाव परिणामों ने भाजपा को अपनी रीति नीति व सत्ता संचालन की मौजूदा प्रक्रिया पर गंभीर चिंतन के लिएअवश्य मजबूर कर दिया है यदि वह चिंतन करें तो?