दुनिया की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं के समूह BRICS की 16वीं समिट रूस के कजान में हो रही है। रूस, चीन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका समेत 28 देशों के राष्ट्र प्रमुख इसमें पहुंचे हैं। इस साल समिट की अध्यक्षता रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन कर रहे हैं। PM मोदी आज यहां भाषण देंगे।
यूरोपियन यूनियन (EU) को पछाड़कर BRICS दुनिया का तीसरा सबसे ताकतवर आर्थिक संगठन बन चुका है। ग्लोबल GDP में EU के देशों की कुल हिस्सेदारी 14% है, वहीं BRICS देशों का हिस्सा 27% है।
BRICS का अपना अलग बैंक भी है, जिसे न्यू डेवलेपमेंट बैंक के नाम से जाना जाता है। इसका हेडक्वार्टर चीन के शंघाई में है। यह सदस्य देशों को सरकारी या प्राइवेट प्रोजेक्ट्स के लिए लोन उपलब्ध कराता है।
‘राइजिंग इकोनॉमी’ के कॉन्सेप्ट पर बने इस ग्रुप में पिछले साल तक 5 देश ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। इस साल UAE, ईरान, इजिप्ट और इथोपिया औपचारिक सदस्य बन जाएंगे। पिछले साल 34 और इस साल 40 देशों ने संगठन से जुड़ने की इच्छा जताई है।
दुनियाभर में मंदी के बीच BRICS देश तेजी से आगे बढ़े
2008-2009 में जब पश्चिमी देश आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। तब BRICS देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी। आर्थिक संकट से पहले पश्चिमी देश दुनिया की 60% से 80% अर्थव्यस्था को कंट्रोल कर रहे थे, लेकिन मंदी के दौर में BRICS देशों की इकोनॉमिक ग्रोथ से पता चला कि इनमें तेजी से बढ़ने और पश्चिमी देशों को टक्कर देने की क्षमता है।
पश्चिमी देशों के लिए BRICS कितनी बड़ी चुनौती
हाल ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने SWIFT पेमेंट सिस्टम की तरह BRICS देशों के लिए एक अलग पेमेंट सिस्टम बनाने को लेकर हो रही चर्चा को लेकर जानकारी दी थी।
इससे पहले पिछले साल ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने एक समिट के दौरान कहा था कि BRICS संगठन के देशों को व्यापार के लिए एक नई करेंसी बनाने की जरूरत है। हम क्यों डॉलर में ट्रेड कर रहे हैं।
हालांकि, इस मामले में अभी तक कोई जरूरी डेवलपमेंट नहीं हुआ है। राष्ट्रपति पुतिन ने भी पिछली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ये बहुत आगे की बात है, फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं होने वाला है।
हालांकि, संगठन के कुछ देश जरूर अपनी नेशनल करेंसी में ट्रेड शुरू कर चुके हैं। चीन और रूस इन देशों में शामिल हैं। यूक्रेन जंग के बाद रूस नेशनल करेंसी के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है।
इसकी वजह ये है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस के एसेट्स को सीज करा दिया है। इससे रूस को काफी नुकसान हुआ है।
नए देशों के शामिल होने कितना बदलाव होगा
BRICS में नए देशों के शामिल होने से इसकी ताकत बढ़ी है। UAE, ईरान, इजिप्ट, इथियोपिया के जुड़ने BRICS देशों का बाजार बढ़ा है। UAE जैसी तेज गति से बढ़ती अर्थव्यस्था इससे जुड़ी है जिसकी ग्लोबल निर्यात क्षमता 2% से भी अधिक है।
इसके इन देशों के साथ आने से BRICS के कुल लैंड एरिया और जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस संगठन की संयुक्त सैन्य क्षमता में भी इजाफा हुआ है। हालांकि, BRICS कोई सैन्य संगठन नहीं है।
भारत की चिंता- नियम तय किए बिना विस्तार न हो
BRICS समिट से पहले 18 अक्टूबर को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बताया कि 34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इससे पहले पिछले साल भी लगभग 40 देश इसमें शामिल होने की इच्छा जता चुके हैं। भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी इसमें शामिल होने के लिए आधिकारिक तौर पर अप्लाय किया था।
हालांकि, भारत इसके विस्तार को लेकर हिचकिचाता रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये है कि इसके सदस्य बनने का अभी नियम तय नहीं हुए है। फिलहाल BRICS में जो देश हैं उनका बड़ा आधार अर्थव्यवस्था है। ऐसे में बड़ा सवाल होता है कि नए सदस्यों को इकोनॉमी के आधार पर शामिल किया जाए या जियोग्राफी के आधार पर।
प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक BRICS में कम देश होने की वजह से फैसले लेने में आसानी होती है। ऐसे में ज्यादा सदस्यों को संगठन में शामिल करना बड़ी चुनौती होगी।
दूसरी तरफ भारत चीन के मंसूबों को लेकर भी सतर्क रहना चाहता है। चीन और रूस दोनों BRICS संगठन को पश्चिमी देशों के खिलाफ बने समूह के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते हैं।