खरीद के बाद 6-7 महीने के भीतर राशन दुकानों से ज्वार, रागी वितरित कर सकते राज्य

नई दिल्ली : केंद्र ने राज्य सरकारों को अब खरीद अवधि की समाप्ति से 6 और 7 महीने के भीतर क्रमश: ज्वार तथ रागी वितरित करने की अनुमति दी है। अबतक यह यह अवधि तीन महीने थी।


सरकार के इस प्रयास का मकसद राशन की दुकानों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मोटे अनाज की आपूर्ति को बढ़ावा देना है।


केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने एक सरकारी बयान में कहा कि भारत सरकार ने 21 मार्च 2014 और 26 दिसंबर 2014 के मोटे अनाज की खरीद, आवंटन, वितरण और निपटान के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


मोटे अनाज की खरीद को वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों द्वारा विनियमित किया जाता था, जिसके तहत राज्यों को केंद्रीय पूल के लिए एमएसपी पर किसानों से मोटा अनाज खरीदने की अनुमति दी गई थी। यह भारतीय खाद्य निगम के परामर्श से राज्यों द्वारा तैयार की गई विस्तृत खरीद योजना पर भारत सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन था।


वर्ष 2014 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, खरीद अवधि समाप्त होने के तीन महीने के भीतर पूरी की पूरी मात्रा का वितरण किया जाना होता था।


अंशधारकों के साथ चर्चा के आधार पर केंद्र ने वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


खाद्य मंत्रालय ने कहा, ''ज्वार और रागी की वितरण अवधि को पहले के 3 महीने से बढ़ाकर क्रमशः 6 और 7 महीने कर दिया गया है।''


इससे ज्वार और रागी की खरीद और खपत में वृद्धि होगी क्योंकि राज्य के पास इन वस्तुओं को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) / अन्य कल्याणकारी योजनाओं में वितरित करने के लिए अधिक समय होगा।


खरीद बढ़ने से इन फसलों की खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ेगी।


मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल नहीं बनाने वाले, लसीलापन मुक्त (ग्लूटन मुक्त) होते हैं और इनमें बेहतर आहार गुण होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण से निपटने और मोटे अनाज के सेवन से प्रतिरक्षा तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।




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अनाज, सब्जियों के दाम घटने से अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.3 प्रतिशत पर

नई दिल्ली :  अनाज और सब्जियों सहित खाद्य उत्पादों के दाम घटने से खुदरा मुद्रास्फीति अगस्त में मामूली घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई। सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। हालांकि, खाद्य तेल के दाम में इस दौरान वृद्धि दर्ज की गई।


यह लगातार तीसरा महीना है जबकि खुदरा मुद्रास्फीति नीचे आई है और रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर के दायरे में बनी हुई है।


उपभोक्ता मूल्यू सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने जुलाई में 5.59 प्रतिशत थी। वहीं एक साल पहले अगस्त में यह 6.69 प्रतिशत पर थी।


राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अगस्त में 3.11 प्रतिशत रही जो कि इससे पिछले महीने जुलाई में 3.96 प्रतिशत थी वहीं अगस्त, 2020 में यह 9.05 प्रतिशत के उच्चस्तर पर थी।


खुदरा मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 6.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। अप्रैल में यह 4.23 प्रतिशत थी। उसके बाद से यह लगातार नीचे आ रही है। जून में खुदरा मुद्रास्फीति 6.26 प्रतिशत तथा जुलाई में 5.59 प्रतिशत रही।


रिजर्व बैंक ने अगस्त में अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा था। केंद्रीय बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पर निर्णय के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर गौर करता है।


सरकार ने केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है।


एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों और अनाज एवं उत्पादों के दाम में क्रमश: 11.68 प्रतिशत और 1.42 प्रतिशत घट गई। लेकिन 'तेल एवं वसा' खंड में मूल्यवृद्धि एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 33 प्रतिशत रही।


त्योहारी मौसम के दौरान खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार ने हाल में पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेलों पर मूल सीमा शुल्क घटा दिया है। उद्योग का मानना है कि इससे तेलों के खुदरा दाम चार से पांच रुपये प्रति लीटर घट जाएंगे।


हालांकि, उपभोक्ताओं की जेब पर 'ईंधन और प्रकाश' खंड अब भी भारी बना हुआ है। इस खंड में मुद्रास्फीति 12.95 प्रतिशत रही।


डीबीएस सिंगापुर की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट अनुकूल आधार प्रभाव तथा खाद्य वस्तुओं के दाम घटने की वजह से आई है। उन्होंने कहा कि तेल एवं वसा को छोड़कर अन्य उप खंडों की मुद्रास्फीति घटी है।


रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के 5.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि दूसरी तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत, तीसरी में 5.3 प्रतिशत और चौथी में 5.8 प्रतिशत रहेगी। वहीं, अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया।


कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष उपासना भारद्वाज ने कहा कि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में अधिक अनुकूल और कम रहेगी।


उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के नरम रहने से नीति निर्माताओं को राहत मिलेगी और नीति के सामान्यीकरण की ओर से धीमी रफ्तार से चलने के लिए ज्यादा गुंजाइश होगी।









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बासमती धान के मामले में एमपी को मिली बड़ी कामयाबी, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-जीआइ टैग पर पुनर्विचार करे मद्रास हाईकोर्ट

भोपाल : प्रदेश में बासमती धान की खेती तो बरसों से होती है पर इसे बतौर बासमती धान मान्यता नहीं है। इसे हासिल करने के लिए शिवराज सरकार पिछले कार्यकाल से संघर्ष करती आ रही है, जिसे अब बड़ी सफलता मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए आदेश दिया है कि मद्रास हाईकोर्ट फिर भौगोलिक संकेतक (जीआइटी टैग) पंजीयन मामले में सुनवाई करे। प्रदेश सरकार के तर्कों को ध्यान में रखकर निर्णय ले।


प्रदेश के 13 जिलों में परंपरागत रूप से बासमती धान की खेती होती है लेकिन जीआइ टैग नहीं होने की वजह से इसे बासमती धान की मान्यता नहीं मिली है। इससे किसानों को बासमती धान की खेती करने पर भी उचित मूल्य नहीं मिला। इसके मद्देनजर शिवराज सरकार ने पिछले कार्यालय में जीआइ टैग के लिए आवेदन किया था। शुरुआत में मध्य प्रदेश के पक्ष में निर्णय आया था जिसे लेकर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।


इसमें प्रदेश के पक्ष को खारिज कर दिया गया था, जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तुत दलीलों को स्वीकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट को इस मामले में फिर से सुनवाई करने के आदेश दिए हैं।


इन जिलों में होगी है बासमती धान

मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर।


छह सौ पेज में रिकॉर्ड किया था प्रस्तुत

सरकार ने प्रदेश में बासमती धान की खेती और उसके विक्रय से जुड़े कारोबार के प्रमाण छह सौ पेज में प्रस्तुत किए थे। इसमें बताया गया था कि पांच मंडियों में वर्ष 2014-15 से फरवरी 2017 तक प्रदेश की उत्पादित बासमती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के प्रसंस्करणकर्ताओं और निर्यातकों ने 80 लाख क्विंटल बासमती धान की खरीद की। आठ हजार ट्रकों से इसका परिवहन हुआ। प्रदेश में जितनी बासमती धान होती है उसमें से लगभग पचास प्रतिशत की खरीद अन्य राज्यों के ख्याति प्राप्त निर्यातक करते हैं। देश के कुल निर्यात में मध्य प्रदेश के किसानों की भागीदारी लगभग 15 प्रतिशत है।


मंडीदीप से अमेरिका, इंग्लैंड में होता है निर्यात

केंद्र सरकार की डीजीसीआइएस वेबसाइट पर मध्य प्रदेश के मंडीदीप कंटेनर डिपो से लगातार बासमती धान के निर्यात की जानकारी दी गई है। 2010-11 से 2017-18 तक प्रतिवर्ष बासमती चावल का निर्याज हुआ है। वर्ष 2016-17 में मंडीदीप से 44 हजार 218 टन बासमती चावल का निर्यात किया गया।


केंद्र सरकार ने दिया ब्रीडर सीड

केंद्र सरकार अप्रैल 1999 से वर्ष 2016 तक प्रदेश को लगातार बासमती का ब्रीडर सीड आवंटित करती रही है। 34 हजार 700 क्विंटल बीज शासकीय और अर्द्धशासकीय एजेंसियों के माध्यम से विक्रय किया गया। प्रदेश के किसानों ने शपथ पत्र दिए कि उनके पूर्वज 70 वर्ष से भी अधिक समय से बासमती की खेती करते आ रहे हैं।


ग्वालियर इस्टेट की रिपोर्ट में बासमती धान का उल्लेख

प्रदेश में बासमती धान की पारंपरिक खेती के प्रमाण दस्तावेजों में मिलते हैं। ग्वालियर इस्टेट की कृषि विभाग की वार्षि रिपोर्ट 1944-45 में स्पष्ट लिखा है कि बासमती प्रजाति की धान ने अच्छा परिणाम दिया। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च हैदराबाद ने प्रतिवर्ष चावल की खेती के लिए कराए जाने वाले सर्वे के आधार प्रकाशित होने वाली पुस्तक में मध्य प्रदेश में बासमती की खेती का उल्लेख किया है।




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बढ़ती कीमत दालों की और जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए सरकार का बड़ा फैसला

नई दिल्ली : बढ़ते दाम और जमाखोरी रोकने के लिए केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मूंग को छोड़कर अन्य सभी दालों की स्टॉक सीमा तय कर दी। यह सीमा थोक, खुदरा विक्रेताओं, आयातकों और मिल मालिकों सभी के लिए अक्टूबर 2021 तक लागू की गई है। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से इस संबंध में एक आदेश जारी किया गया है जिसके मुताबिक दालों का स्टॉक रखने की सीमा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है।


मंत्रालय ने आदेश में कहा कि थोक विक्रेताओं के लिए 200 टन दाल की स्टॉक सीमा होगी। हालांकि, इसके साथ ही यह शर्त होगी कि वह एक ही दाल का पूरा 200 टन का स्टॉक नहीं रख सकेंगे। खुदरा विक्रेताओं के लिए यह स्टॉक सीमा 5 टन की होगी। मिल मालिकों के मामले में, स्टॉक की सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी अधिक है उसके मुताबिक होगी।


आयातकों के मामले में दालों की स्टॉक सीमा 15 मई, 2021 से पहले रखे या आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर की स्टॉक सीमा होगी। आदेश में कहा गया है कि 15 मई के बाद आयात दालों के लिए आयातकों पर स्टॉक सीमा आयातित माल को सीमा शुल्क मंजूरी मिलने की तिथि के 45 दिन बाद लागू होगी। स्टॉक सीमा वही होगी जो कि थोक विक्रताओं के लिए तय की गई है।


मंत्रालय के अनुसार, यदि संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग के ऑनलाइन पोर्टल पर इसे घोषित करना होगा और आदेश की अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा। मंत्रालय ने कहा कि मार्च-अप्रैल में दालों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। बाजार को सही संकेत देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय की आवश्यकता महसूस की गई।



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खाद्य तेल, चावल महंगे, गेहूं नरम, दालों, चीनी में टिकाव

नई दिल्ली : विदेशों में खाद्य तेलों में नरमी के बीच दिल्ली थोक जिंस बाजार में शुक्रवार को खाद्य तेलों के दाम बढ़ गये। चावल में भी तेजी देखी गई। गेहूं का भाव टूट गया जबकि दालों और चीनी में टिकाव रहा। तेल-तिलहन : वैश्विक स्तर पर मलेशिया के बुरसा मलेशिया डेरिवेटिव एक्सचेंज में पाम ऑयल का जुलाई वायदा 48 रिंगिट टूटकर 3,888 रिंगिट प्रति टन रह गया। जुलाई का अमेरिकी सोया तेल वायदा 0.18 सेंट गिरकर 59.71 सेंट प्रति पौंड बोला गया। स्थानीय बाजार में ग्राहकी आने से सूरजमुखी तेल 585 रुपये, सोया तेल 440 रुपये और सरसों तेल 292 रुपये प्रति क्विंटल महंगा हो गया। मूंगफली तेल, पाम ऑयल और वनस्पति के भाव गत दिवस के स्तर पर पड़े रहे। ...

इंदौर में चना, मसूर, मूंग, तुअर के भाव में वृद्धि

इंदौर, (वेबवार्ता)। स्थानीय संयोगितागंज अनाज मंडी में शुक्रवार को चना कांटा 125 रुपये, मसूर 100 रुपये, मूंग 100 रुपये एवं तुअर (अरहर) के भाव में 100 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई। आज चना दाल 100 रुपये, मसूर की दाल 100 रुपये, मूंग दाल 100 रुपये, मूंग मोगर 100 रुपये व तुअर दाल 100 रुपये प्रति क्विंटल महंगी बिकी। दलहन चना (कांटा) 5350 से 5375, चना (देसी) 5200 से 5250, मसूर 6050 से 6100, तुअर (अरहर) निमाड़ी 6300 से 7000, तुअर सफेद (महाराष्ट्र) 7150 से 7200, तुअर (कर्नाटक) 7400 से 7500, मूंग 7500 से 7600, मूंग हल्की 6000 से 6800, उड़द 7300 से 7500, हल्की 6000 से 6700 रुपये प्रति क्विंटल। दाल तुअर (अरहर) दाल सवा नंबर 9400 से 9700, तुअर दाल फूल 9800 से 9900, तुअर दाल बोल्ड 10100 से 10300, नई तुअर दाल 10400 से 10700, चना दाल 6700 से 7200, मसूर दाल 6850 से 7150, मूंग दाल 9000 से 9300, मूंग मोगर 9400 से 10000, उड़द दाल 8500 से 8800, उड़द मोगर 10000 से 10800 रुपये प्रति क्विंटल। चावल बासमती (921) 9000 से 9500, तिबार 7500 से 8000, दुबार 6500 से 7000, मिनी दुबार 6000 से 6500, मोगरा 3500 से 5500, बासमती सैला 5500 से 7000, कालीमूंछ 5000 से 7000, राजभोग 5900 से 6000, दूबराज 3500 से 4000, परमल 2500 से 2700, हंसा सैला 2500 से 2600, हंसा सफेद 2300 से 2400, पोहा 3200 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल। ...

आढ़तियों ने कहा: आखिर हम भी तो किसान के पुत्र हैं, और किसानों के साथ है

कैथल, (वेबवार्ता)। मंडी आढ़तियों की हड़ताल के दूसरे दिन आज राहत की बात यह रही कि दोपहर बाद आढ़तियों द्वारा एस.डी.एम. डा. संजय कुमार के आश्वासन व किसानों की पीड़ा को देखते हुए हड़ताल वापिस ले ली गई और खरीद का मंडी में पुन: श्रीगणेश हुआ। किसानों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए एस.डी.एम. डा. संजय कुमार मौके पर पहुंचे और मंडी में किसानों को समझाकर शांत करवाया। उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि जल्द ही मंडी में गेहूं खरीद शुरू हो जाऐगी। मौके पर ही पहुंचे मंडी जिला प्रधान अश्वनी शोरेवाला, नई मंडी प्रधान श्याम लाल नौच, पूर्व प्रधान सुरेश चौधरी, श्याम बहादुर खुरानिया ने किसानों को आश्वस्त किया कि मंडी आढ़ती पूरी तरह से किसानों के साथ है और दोपहर बाद गेहूं खरीद कार्य को लेकर कोई मार्ग निकाला जाऐगा। इसके बाद मंडी आढ़तियों व एस.डी.एम. के बीच बैठक का दौर शुरू हुआ। एस.डी.एम. डा. संजय कुमार ने आढ़तियों से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि आढ़ती अपनी हड़ताल वापिस लें और मंडी में गेहूं खरीद का कार्य सुचारु रूप से चल सके। आढ़तियों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करने दिया जाऐगा। इस पर एसोसिएशन पदाधिकारियों ने एस.डी.एम. से आग्रह किया कि वे दोपहर 3 बजे मंडी प्रधान के प्रतिष्ठान पर आए और उनके समक्ष आढ़तियों की समस्याएं रखी जाऐगी, जिसके बाद पूरी मंडी फैसला लेगी। दोपहर बाद मंडी प्रधान की दुकान पर एस.डी.एम. पहुंचे जिनके साथ मार्कीट कमेटी सचिव रोशन लाल व सरकारी खरीद एजैंसी के कर्मचारी भी मौजूद थे। बैठक के दौरान मंडी आढ़तियों ने एस.डी.एम. के समक्ष अपनी समस्याएं रखी, जिनमें प्रमुख रूप से सीजन में गेट पास सुचारु रूप से कटने, तीनों एजैंसी द्वारा एक साथ खरीद करने, बिना सुविधा शुल्क दिए जल्द लोडिंग आदि समस्याएं रखी। एस.डी.एम. ने आढ़तियों को आश्वस्त किया कि आढ़तियों की सभी मांगे पूरी होगी और कमेटी सचिव को मौके पर ही गेट पास कार्य में तेजी लाने के लिए और अधिक कर्मचारी नियुक्त करने के आदेश दिए। जिस पर आढ़तियों ने एस.डी.एम. के आश्वासन व किसानों को आ रही परेशानी को देखते हुए हड़ताल वापिस लेने का निर्णय लिया। जिसके बाद नई मंडी में एस.डी.एम. ने आढ़तियों व एजैंसी कर्मियों की मौजूदगी में स्वयं घुटने के बल गेहूं की ढेरी के बीच बैठकर नमी की मात्रा की जांच की और इस प्रकार गेहूं खरीद का कार्य शुरू हो गया। इस मौके पर मंडी आढ़ती धर्मपाल कठवाड़, रामनिवास मित्तल, राजपाल चहल, बीरभान जैन, देसराज बंसल, जयकिशन मान, रामफल खुराना, कृष्ण चंदाना, रामनिवास जैन सहित काफी संख्या में आढ़ती मौजूद थे। किसानों की पीड़ा को देखते हुए हड़ताल ली वापिस: मंडी प्रधान जिला मंडी प्रधान अश्वनी शोरेवाला व मंडी प्रधान श्याम लाल गर्ग नौच ने कहा कि एस.डी.एम. डा. संजय कुमार के अधिक से अधिक गेट पास कटने, जल्द उठान जैसे समस्याओं का हल के आश्वासन देने व किसानों की पीड़ा को देखते हुए आढ़तियों ने अपनी अन्य मांगों को दरकिनार हड़ताल वापिस ले ली है। मंडी में खरीद का कार्य शुरू हो चुका है और इसके लिए मुनियादी भी करवा दी गई है। वर्जन कोशिश रहेगी तीनों एजैंसी एक साथ करें मंडी में खरीद: एस.डी.एम. एस.डी.एम. डा. संजय कुमार ने कहा कि आढ़तियों की सभी मांगों को पूरा करने का भरसक प्रयास करते हुए उसे पूरा किया जाऐगा। यह भी कोशिश है कि मंडी में तीनों एजैंसियां एक साथ खरीद करें, ताकि जल्द उठान व खरीद हो। इसके लिए बैठक कर रूपरेखा तैयार की जाऐगी। किसी भी कीमत पर सीजन के दौरान किसानों व आढ़तियों को परेशानी नहीं आने देंगे। ...

दिल्ली में गेहूं खरीद के लिए एफसीआई ने नहीं खोला एक भी काउंटर, फिर भी एक अप्रैल से एमएसपी पर खरीदारी करने का कर रहा झूठा दावा- गोपाल राय

दिल्ली के कृषि मंत्री गोपाल राय ने एमएसपी पर गेहूं की फसल नहीं खरीदने पर एफसीआई को कटघरे में खड़ा किया है। एफसीआई ने दिल्ली में गेहूं खरीद के लिए अभी तक एक भी काउंटर नहीं खोला है और झूठा दावा कर रहा है कि एक अप्रैल से एमएसपी पर खरीदारी की जा रही है, जबकि हम काउंटर खोलने के लिए एफसीआई को तीन बार चिट्ठी लिख चुके हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार फसल की एमएसपी निर्धारित करती है और एफसीआई खरीदारी करती है, लेकिन भाजपा झूठा आरोप लगा रही कि दिल्ली सरकार एमएसपी पर गेहूं नहीं खरीद रही है। उन्होंने कहा कि एमएसपी पर फसल खरीदने के प्रधानमंत्री के आश्वासन की यही हकीकत है और इसलिए एमएसपी का कानून बनाना बहुत जरूरी है। हमारी केंद्र सरकार से मांग है कि नजफगढ़ और नरेला मंड़ी में तत्काल एमएसपी पर खरीदारी शुरू की जाए और एक अप्रैल से दिल्ली में खरीदारी करने के झूठे दावे की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए। दिल्ली के कृषि मंत्री गोपाल राय ने आज दिल्ली सचिवालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि लंबे समय से देश के किसान केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ-साथ मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) को कानूनी दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार के तमाम मंत्रियों, केंद्रीय कृषि मंत्री और संसद के अंदर भाजपा के तमाम नेताओं ने बार-बार कहा कि प्रधानमंत्री ने जब कह दिया कि एमएसपी दी जाएगी और एमएसपी पर खरीदारी की जाएगी, तो इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए। आंदोलन के दौर में देश भर में गेहूं की फसल तैयार हो चुकी है और कटाई शुरू हो चुकी है। दिल्ली के अंदर बहुत छोटे से हिस्से में खेती होती है। दिल्ली के नार्थ और वेस्ट हिस्से नरेला, बवाना, मुंडका, नजफगढ़ और मेहरौली में खेती होती है, जहां गेहूं की फसल तैयार है और कटाई हो रही है। हमारे बार-बार निवेदन के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा संचालित फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) मंडी के अंदर अभी तक किसानों की उपज को एमएसपी के रेट पर लेने के लिए तैयार नहीं है। किसान अपनी उपज लेकर मंडी में आ रहे हैं और उन्हें अलग-अलग रेट पर आढ़तियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। गोपाल राय ने कहा कि हमने सबसे पहले एफसीआई को 11 फरवरी को कृषि विभाग की तरफ से चिट्ठी लिखी थी कि गेहूं की फसल आने वाली है और खरीदने के लिए दिल्ली की मंडियों में तैयारी की जाए, ताकि सही समय पर किसानों की उपज की खरीदारी हो सके और उन्हें एमएसपी मिल सके। 11 फरवरी के बाद हमने एक मार्च को उन्हें रिमाइंडर भेजा कि एफसीआई गेहूं की खरीदारी की तैयारी करे। इस पर एफसीआई की तरफ से लिखित में जवाब आया कि हम मायापुरी एफएसडी, शक्तिनगर एफएसडी, नरेला मंडी और नजफगढ़ मंडी में काउंटर लगाएंगे। वहीं, किसानों की कई शिकायत आने पर दो दिन पहले जब मैने इसकी समीक्षा की, तब पता चला कि अभी तक कोई काउंटर नहीं लगा है। इसके बाद हमने 6 अप्रैल को फिर एफसीआई को चिट्ठी भेजी कि आप जहां मर्जी वहां काउंटर लगाएं, लेकिन नरेला और नजफगढ़ मंडी में काउंटर जरूर लगाएं और एमएससी की गारंटी दी जाए। कृषि मंत्री ने कहा कि सबसे बड़ी यह बात है कि अभी तक काउंटर तो नहीं लगे, लेकिन उन्होंने 6 अप्रैल को चिट्ठी भेज कर बताया कि एक अप्रैल से दिल्ली के अंदर काउंटर लग गए हैं और खरीदारी हो रही है। जब हमें चिट्ठी मिली, तो मैंने आज दोनों मंडियों से रिपोर्ट तलब की। नरेला मंडी के सेक्रेटरी ने हमें लिखित में भेजा है कि आज तक एक दाना भी एसबीआई की तरफ से मंडी में खरीदारी नहीं की गई है। काउंटर लगाए ही नहीं गए हैं। इसी तरह नजफगढ़ मंडी की भी लिखित में रिपोर्ट आई है और वहां भी काउंटर नहीं लगाया जाए गए हैं। वहीं, भाजपा के नेताओं ने कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि केजरीवाल सरकार एमएसपी पर खरीदारी नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि एमएसपी केंद्र सरकार ने निर्धारित किया है, फसल को एफसीआई को खरीदना है। हम बार-बार निवेदन कर रहे हैं कि एफसीआई फसल खरीदे, अभी तक एफसीआई के काउंटर लगे ही नहीं है और फिर भी लिखित में जवाब दे दिए कि एक अप्रैल से खरीदारी हो रही है। आज तक जमीन पर एक भी काउंटर लगा नहीं है। अगर देश की राजधानी दिल्ली में नाक के नीचे यह सारा तिकड़म चल रहा है, तो सुदूर गांवों और जिलों के अंदर किसानों की क्या हालत हो रही होगी। प्रधानमंत्री के नाम की दुहाई देकर किसानों से कहा जा रहा है कि आप आंदोलन खत्म करिए। उस पूरे आश्वासन की यह हकीकत है। कृषि मंत्री गोपाल राय ने कहा कि मैं आज केंद्र सरकार से दो मांग कर रहा हूं। एक यह कि केंद्र सरकार तत्काल प्रभाव से इसमें हस्तक्षेप करें और नजफगढ़ और नरेला मंडी में कल से काउंटर की शुरुआत कर खरीदारी की जाए और दूसरा जो अधिकारी इस तरह की कार्रवाई में शामिल है और लिखित में कह रहे हैं कि एक अप्रैल से मंदी में खरीदारी शुरू हो गई है, जबकि दोंनों मंडियां कह रही हैं कि वहां पर एक दाना तक नहीं खरीदा गया है, तो इसकी जांच होनी चाहिए। अगर इसमें कोई अधिकारी सम्मिलित है, तो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। यह चीजें इस बात को दर्शा रही हैं कि एमएसपी का कानून बनाना कितना जरूरी है, क्योंकि दिल्ली के अंदर तो सिर्फ दो मंडी है, लेकिन जो बड़े-बड़े राज्य है, वहां पर हर ब्लाक के अंदर खरीदारी की जरूरत है। दिल्ली में एक छोटा सा हिस्सा है, जहां पर खेती होती है। आज मैं इन सारी तथ्यों को रख कर यह बात कहना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री ने अगर कहा था, तो उन्हें इस सारे मसले पर तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। अगर उनकी बात का महत्व है, तो इसमें पीएमओ को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। इस पूरे प्रकरण की जांच होनी चाहिए और कल से दोनों मंडियों में अनाज की खरीदारी शुरू होनी चाहिए। ...