लोकसभा में नारे लगे- तीसरी बार मोदी सरकार

संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार 4 दिसंबर से शुरू हो गया। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचते ही एनडीए के सांसदों ने उनका जोरदार स्वागत किया। सांसदों ने नारे लगाए- बार-बार मोदी सरकार। तीसरी बार मोदी सरकार। यह सेशन 22 दिसंबर तक चलेगा। 19 दिन में 15 बैठके होंगी।

वहीं, सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से अपील की। उन्होंने कहा कि बाहर मिली पराजय का गुस्सा सदन में मत निकालिए। सभी का भविष्य उज्ज्वल है। सदन में सकारात्मक चर्चा कीजिए।

लोकसभा में कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी सांसदों ने बैनर लहराए। इस पर स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा कि सदन में प्लेकार्ड्स नहीं ला सकते। सदन नियमों के मुताबिक ही चलेगा। हंगामे के चलते लोकसभा की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित कर दी गई।

मोदी बोले- विपक्ष के लिए ये सत्र अपनी बात रखने का अच्छा मौका

पीएम ने कहा कि राजनीतिक गर्मी बड़ी तेजी से बढ़ रही है। चार राज्यों के नतीजे आए हैं। बहुत ही उत्साहवर्धक परिणाम हैं। ये देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए हैं। महिलाएं, युवा, किसान और गरीब ये ऐसी महत्वपूर्ण जातियां हैं, जिनका एम्पॉवरमेंट जरूरी है। जब आप लोक कल्याण के लिए काम करते हैं तो एंटी-इन्कंबेंसी फैक्टर खत्म हो जाता है।

नई संसद है, कुछ कमियां महसूस हो सकती हैं। उन्हें दूर करेंगे। मुझे विश्वास है कि स्पीकर और उपराष्ट्रपति के निर्देशन में संसद चलेगी। सत्र के लिए हम विपक्ष के साथियों के साथ चर्चा करते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। लोकतंत्र का ये मंदिर जनआकांक्षाओं के लिए, विकसित भारत की नींव मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण मंच है। सभी सांसद ज्यादा से ज्यादा तैयारी करके आएं। बिलों पर अच्छी बहस हो और ज्यादा से ज्यादा सुझाव आएं। जब चर्चा नहीं होती तो देश इन चीजों को मिस करता है। वर्तमान चुनाव नतीजों के आधार पर कहूं तो विपक्ष के साथियों के लिए अच्छी अपॉरच्युनिटी है।

पिछले 9 साल की नकारात्मकता छोड़कर सकारात्मकता लेकर आइए। सबका भविष्य उज्जवल है। बाहर की पराजय का गुस्सा सदन में मत उतारिए। लोकतंत्र के मंदिर के वो मंच मत बनाइए। थोड़ा सा अपना रुख बदलिए। देशहित में सकारात्मकता का साथ दीजिए। देश के मन में कुछ बातों को लेकर नफरत पैदा हो रही है, उसे दूर कीजिए। सदन की कार्यवाही में सहयोग दीजिए। देश को सकारात्मकता का संदेश दें। लोकतंत्र में विपक्ष में महत्वपूर्ण और सामर्थ्यवान है। अब देश विकसित होने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहता। सभी सांसद इस भाव का आदर करते हुए आगे बढ़ें।

सत्र शुरू होने से पहले I.N.D.I.A ब्लॉक की मीटिंग हुई

सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A ब्लॉक के सांसदों ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ मीटिंग की। इसमें सदन की कार्यवाही को लेकर रणनीति तैयार की गई। विपक्षी सांसदों ने तय किया कि महुआ मोइत्रा मामले में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट सदन में रखे जाने से पहले लीक कैसे हो गई, इसे सदन में उठाया जाएगा।

विपक्ष के प्रस्तावों पर चर्चा के लिए तैयार है सरकार

सत्र की शुरुआत से ठीक पहले 2 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक हुई। जिसमें 23 दलों के 30 नेता शामिल हुए। विपक्षी नेताओं ने क्रिमिनल लॉ के अंग्रेजी नामकरण की मांग, महंगाई, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और मणिपुर के मुद्दों को भी उठाया।

मीटिंग के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। बशर्ते विपक्ष चर्चा के लिए माहौल बना रहने दे। इसलिए विपक्ष से सदन को सुचारू रूप से चलने देने का अनुरोध किया गया है।

जो बिल पेश किए जाने हैं, उनके बारे में जानिए:

भारतीय न्याय संहिता 2023 : मानसून सत्र के आखिरी दिन सरकार ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया। ये बिल इंडियन पीनल कोड, 1860 (IPC) की जगह लेगा। भारतीय न्याय संहिता लोकसभा में पेश होने के बाद स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया था। 10 नवंबर को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता भी मानसून सेशन में आया था। इसका उद्देश्य कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 (CrPC) की जगह लेना है। 11 अगस्त, 2023 को इसे लोकसभा में पेश किया गया था। फिर स्टैडिंग कमेटी के पास भेजा गया।

चीफ इलेक्शन कमिश्नर एंड अदर इलेक्शन कमिश्नर (अपॉइंटमेंट, कंडीशंस एंड टर्म ऑफ ऑफिस) बिल 2023 : मुख्य चुनाव आयुक्त और बाकी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए ये बिल लाया गया। चुनाव आयुक्तों की योग्यता का आधार क्या होगा, सर्विस के दौरान क्या नियम कानून होंगे, ये सब इसी बिल के आधार पर तय होगा। ये बिल 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था।

एडवोकेट्स (अमेंडमेंट) बिल 2023 : इस बिल के पास होने पर लीगल प्रैक्टिसनर एक्ट 1879 से कुछ सेक्शंस को हटाया जाएगा। उन्हें एडवोकेट्स एक्ट 1961 के अंतर्गत लाया जाएगा। ये बिल राज्यसभा में पास हो चुका है, लोकसभा में पेंडिंग है।

जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल 2023 : जम्मू-कश्मीर के वीक एंड अंडर प्रिविलेज्ड क्लास का नाम बदल कर अदर बैकवर्ड क्लास किया जाएगा। 26 जुलाई को लोकसभा में बिल पेश किया गया था, अभी पास होना बाकी है।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (अमेंडमेंट) बिल 2023 : जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 83 सीटों को बढ़ाकर 90 सीट किया जाएगा। 7 सीटें अनुसूचित जाति और 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की जाएंगी। बिल 26 जुलाई 2023 को लोकसभा में पेश किया जा चुका है। इस बिल में विधानसभा की एक सीट विस्थापित नागरिक और दो सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है।

द कॉन्स्टिट्यूशन (जम्मू-कश्मीर) शेड्यूल्ड कास्ट ऑर्डर (अमेंडमेंट) बिल 2023 : इस बिल के पारित होने के बाद जम्मू-कश्मीर में पिछड़े जातीय समुदायों के लिए 'वाल्मीकि' शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। साथ ही राज्य की अनुसूचित जाति की लिस्ट में शामिल किया जाएगा। इस साल 26 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया था।

द कॉन्स्टीट्यूशन (जम्मू-कश्मीर) शेड्यूल्ड ट्राइब ऑर्डर (अमेंडमेंट) बिल 2023 : इस बिल के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए अनुसूचित जनजाति की लिस्ट अलग-अलग होगी।

द पोस्ट ऑफिस बिल 2023 : यह बिल भारतीय डाकघर अधिनियम 1898 को निरस्त करेगा। पोस्ट ऑफिस की कार्यप्रणाली, शिपमेंट की प्रक्रिया के प्रावधान तय किए जाएंगे। ये बिल राज्यसभा में पेश किया जा चुका है।

द प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिक बिल 2023 : प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन एक्ट 1867 को खत्म करेगा। इसके अंतर्गत अखबारों, वीकली, मैगजीन और बुक्स का रजिस्ट्रेशन भी होगा। इस बिल के पास होने के बाद प्रेस रजिस्ट्रार जनरल की नियुक्ति होगी। ये बिल इस साल 3 अगस्त को राज्यसभा में पास हो चुका है।

वे बिल जो पहली बार इस सत्र में टेबल किए जाएंगे

जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाजेशन (अमेंडमेंट) बिल 2023 : इसके तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा की एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी।

द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (अमेंडमेंट) बिल 2023 : पुडुचेरी विधानसभा में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने का प्रावधान होगा।

द नेशनल कैपिटल टैरिटरी ऑफ डेल्ही लॉज (स्पेशल प्रोवीजन) सेकंड (अमेंडमेंट) बिल 2023 : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की अवधि को तीन साल के लिए बढ़ाया जाएगा। बिल के पास होने पर 31 दिसंबर 2026 तक कार्रवाई पर रोक लग जाएगी।

द सेंट्रल यूनिवर्सिटी (अमेंडमेंट) बिल 2023 : ये बिल तेलंगाना में सेंट्रल ट्राइबल यूनिवर्सिटी बनाने के लिए लाया जा रहा है।

द बॉयलर्स बिल 2023 : ये बिल स्टीम बॉयलर्स को रेगुलेट करने वाले बॉयलर्स एक्ट की जगह लेगा।

महुआ के निष्कासन पर अधीर-रंजन का लोकसभा स्पीकर को लेटर

पार्लियामेंट का विंटर सेशन शुरू होने से पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को 4 पन्नों का लेटर लिखा। जिसमें रंजन ने कहा कि - टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित करना बेहद गंभीर सजा होगी। इसका बड़े पैमाने पर असर होगा। 



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राजस्थान-मध्य प्रदेश में भाजपा, छत्तीसगढ़-तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार.

पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में वोटिंग की प्रक्रिया गुरुवार, यानी 30 नवंबर को पूरी हो गई। वोटों की गिनती 3 दिसंबर को होगी। उससे पहले एग्जिट पोल और उसके आधार पर पोल ऑफ पोल्स।

इन 5 राज्यों में 8 प्रमुख न्यूज ऑर्गनाइजेशन और सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल किए हैं। इन सबको मिलाकर पोल ऑफ पोल्स का हिसाब लगाया है। इस हिसाब से राजस्थान-मध्यप्रदेश में भाजपा, छत्तीसगढ़-तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही है। मिजोरम में हंग असेंबली के आसार हैं।

इस लिहाज से 5 में से 2 राज्यों में भाजपा और 2 में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही है।

राजस्थान: 8 एग्जिट पोल में से 5 में भाजपा की सरकार बन रही है। 1 पोल में कांग्रेस की सरकार बन रही है, जबकि दो में उसे सरकार बनाने के करीब बताया गया है। पोल ऑफ पोल्स में भाजपा को 102, कांग्रेस को 86 और अन्य को 11 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है।

मध्य प्रदेश: 8 एग्जिट पोल में से 4 भाजपा की सत्ता में वापसी करवा रहे हैं, जबकि 3 पोल कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना जता रहे हैं, जबकि एक सत्ता के करीब बता रहे हैं। पोल ऑफ पोल्स में भाजपा को 125, कांग्रेस को 100 और अन्य को 5 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है।

छत्तीसगढ़: सभी 8 पोल कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी करवा रहे हैं। इनमें से पांच पोल में भाजपा सत्ता से 4 से 6 सीट दूर दिख रही है। पोल ऑफ पोल्स में भाजपा को 39, कांग्रेस को 48 और अन्य को 3 सीटें मिलने का अनुमान है।

तेलंगाना: 6 पोल्स जारी हुए। इनमें 5 पोल कांग्रेस को पहली बार सत्ता में आने का अनुमान जता रहे हैं, जबकि एक में सत्ता के करीब बताया गया है। सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति (BRS) किसी भी पोल में सत्ता में आती नहीं दिख रही है। पोल ऑफ पोल्स में BRS को 44, कांग्रेस को 64, भाजपा को 7 और अन्य को 7 सीटें मिलने का अनुमान है।

मिजोरम: 5 एग्जिट पोल में से एक में जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) को सरकार बनाते दिखाया गया है। बाकी 4 पोल में हंग असेंबली का अनुमान जताया गया है। पोल ऑफ पोल्स में सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) को 15, ZPM को 16, कांग्रेस को 7 और भाजपा को 1 सीट मिलने का अनुमान है।


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यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा के लिए सपा और बीजेपी के बीच मुकाबला

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. केंद्र की लड़ाई के बीच प्रदेश में राज्यसभा को लेकर भी समाजवादी पार्टी (SP) और बीजेपी (BJP) में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिल सकती है. यूपी में अगले साल अप्रैल के महीने में दस राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं. जिसके लिए अभी से जोड़ तोड़ और सियासी समीकरण बिठाने की रणनीति शुरू हो गई है. 

यूपी में अगले साल दोहरी जंग देखने को मिलेगी, मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले 2 अप्रैल को यूपी से राज्यसभा की दस सीटें खाली हो रही हैं. इनमें नौ सीटे बीजेपी के पास हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के पास एक सीट है, जिससे जया बच्चन सांसद हैं. ऐसे में लोकसभा से पहले मार्च महीने में राज्यसभा के लिए चुनाव की घोषणी की जा सकती है. 

लोकसभा से पहले राज्यसभा की टक्कर

पिछली बार 2018 में जब राज्यसभा का चुनाव हुआ था, तब बसपा से गठबंधन की कोशिश में सपा ने बसपा उम्मीदवार भीम राव अंबेडकर को समर्थन दिया था, हालांकि क्रॉस वोटिंग में भाजपा का उम्मीदवार जीत गया और बीजेपी ने नौ सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि सपा से सिर्फ जया बच्चन हीं जीतीं थीं. 

समाजवादी पार्टी को फायदा होना तय

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद अब सियासी समीकरण बदल गया है. ऐसे में भाजपा के लिए सभी सीटों को बचाना मुश्किल होगा, जबकि सपा के पास राज्यसभा में अपनी संख्या बढ़ाने का मौका होगा. विधानसभा में मौजूदा सदस्य संख्या के हिसाब से एक प्रत्याशी को जिताने के लिए 37 वोटों की जरुरत होगी. सपा गठबंधन के पास कुल 118 विधायक हैं. ऐसे में सपा तीन सीटें जीतने की स्थिति में होगी. वहीं एनडीए गठबंधन के पास 279 विधायक है ऐसे में सात सीटों पर भाजपा की जीत पक्की है. 

इसके अलावा कांग्रेस के पास दो, जनसत्ता दल के पास दो और बसपा का एक विधायक है. जो किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. ऐसे में चुनाव से पहले इन दलों से भी तालमेल और जोड़ने तोड़ने की कवायद जारी है. इसके साथ ही राज्यसभा सांसद के लिए लॉबिंग भी शुरू हो गई है. 

इन नेताओं की सीटें हो रही है खाली

राज्यसभा में सपा सांसद जया बच्चन का कार्यकाल खत्म हो रहा है. माना जा रहा है कि अखिेलश यादव उन्हें फिर मौका देने के मूड में नहीं है. वो अपने परिवार से किसी को राज्यसभा में भेज सकते हैं. इस रेस में तेज प्रताप यादव का नाम रेस में आगे चल रही है. इसके अलावा एक मुस्लिम नेता पर भी दांव लगाया जा सकता है. वहीं बीजेपी से अनिल अग्रवाल, अशोक वाजपेयी, अनिल जैन, कांता कर्दम, सकलदीप राजभर, जीवीएल नरसिम्हा राव, विजय पाल तोमर, सुधांशु त्रिवेदी, हरनाथ सिंह यादव का कार्यकाल खत्म हो रही है. इनमें से बीजेपी सुधांशु त्रिवेदी को छोड़कर किसी को दूसरा मौका देने के मूड में नहीं है. बीजेपी का फोकस पिछड़ों और दलितों पर रह सकता है. 


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राजस्थान में 9 बजे तक 10 फीसदी मतदान

 राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार (25 नवंबर) को मतदान हो रहा है. मतदान सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे चलेगा. राज्य में विधानसभा की 200 सीटें हैं लेकिन 199 सीटों पर मतदान हो रहा है. करणपुर सीट से विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर के निधन के कारण वहां चुनाव स्थगित किया गया है. वह इस बार भी इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे. विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियों का प्रचार अभियान गुरुवार (23 नवंबर) को थम गया था. 

राजस्थान में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. 1993 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से हर पांच साल में यहां सरकार बदलने का रिवाज रहा है. इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी की सरकारें ही बनती रही हैं. इसलिए बीजेपी नेता उम्मीद लगाए हैं कि इस बार भी यह रिवाज जारी रहा तो सत्ता की बागडोर बीजेपी के हाथ आएगी. वहीं, कांग्रेस को उम्मीद है कि करीब तीन दशक से चला आ रहा यह रिवाज इस बार बदलेगा.

कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ओर से कई चुनावी वादे किए गए हैं. कांग्रेस ने सात गारंटियों की घोषणा के साथ ही अशोक गहलोत सरकार के कार्यों, उसकी ओर से चलाई गई योजनाओं और कार्यक्रमों पर जनता का ध्यान खींचने की कोशिश की है. वहीं, बीजेपी ने इस चुनाव के मद्देनजर अपने चुनाव प्रचार अभियान में महिलाओं के खिलाफ अपराध, तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार और पेपर लीक जैसे मुद्दों को लेकर गहलोत सरकार को जमकर घेरा है.

बीजेपी ने राज्य की सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि कांग्रेस ने 2018 की तरह अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के लिए एक सीट छोड़ी है. आरएलडी के मौजूदा विधायक सुभाष गर्ग भरतपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं.

सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, मंत्री शांति धारीवाल, बीडी कल्ला, भंवर सिंह भाटी, सालेह मोहम्मद, ममता भूपेश, प्रताप सिंह खाचरियावास और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट आदि शामिल हैं.      

वहीं, बीजेपी के प्रमुख उम्मीदवारों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया, सांसद दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़ और बाबा बालकनाथ आदि मैदान में हैं.





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विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ की भारी डिमांड

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव जारी हैं. एमपी, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में जहां मतदान हो चुके हैं वहीं तेलंगाना और राजस्थान में अभी वोटिंग बाकी है. यूं तो ये चुनाव उत्तर प्रदेश के नहीं हैं और इनके परिणामों का यूपी सरकार पर नहीं पड़ना है लेकिन ऐसा नहीं है कि इन चुनावों में यूपी के नेताओं की मांग नहीं है. एमपी में जहां समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने-अपने दल के लिए प्रचार किया वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ की जनसभाओं की भारी डिमांड है.

राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को मतदान होना है. इसके लिए राज्य में भारतीय जनता पार्टी की ओर सीएम योगी की जनसभाओं की भारी डिमांड है. इतना ही नहीं सीएम को कुछ खास टारगेट दिए गए हैं ताकि बीजेपी राज्य में रिवाज बदल सके और दोबारा सत्ता हासिल करे. 

पहले तो हम बात करेंगे राजस्थान में सीएम योगी के टारगेट की. सीएम योगी की रैलियों का मुख्य टारगेट वो विधानसभा सीटें हैं जिनकी सीमा यूपी से सटती है या ये सीट राज्य के आसपास हैं. राजस्थान के यूपी बॉर्डर से सटे इलाकों में सीएम की जनसभाओं की भारी मांग है. इसके अलावा हिंदुत्ववादी चेहरे के लिए भी सीएम योगी के रैलियों की मांग है.  जिन सीटों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं वहां भी सीएम योगी की मांग है.

इसके साथ ही सीएम योगी उन सीटों पर भी रैली कर रहे हैं जहां बीजेपी के बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा जिन विधानसभा क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला है या बागी, बीजेपी पर भारी पड़ सकते हैं, वहां भी सीएम योगी रैलियां कर रहे हैं.

अब बात करते हैं सीएम योगी के चुनावी रैलियों के स्ट्राइक रेट की. यानी उन्होंने किस राज्य में कितनी रैलियां की और उनमें से कितनी सीटें बीजेपी ने जीतीं.

गुजरात में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सीएम योगी ने 35 सीटों पर रैलियां की और 20 पर जीत हासिल हुई. यानी यहां सीएम का स्ट्राइक रेट 57% रहा.  त्रिपुरा में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सीएम ने 9 सीटों पर प्रचार किया 8 पर जीत मिली. यहां बीजेपी, सीएम योगी की रैलियों वाली 89% सीटें जीती. कर्नाटक में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सीएम योगी ने 33 पर रैली की और 17 पर जीत मिली. यहां सीएम की रैलियों वाली 52% सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की. बात मध्य प्रदेश में साल 2018 के विधानसभा चुनाव की करें तो उस वक्त सीएम योगी ने 15 सीटों पर रैलियां कीं और 10 पर जीत हासिल की. इस हिसाब से यहां बीजेपी, सीएम की जनसभाओं वाली 67% सीटों पर जीती. 

महाराष्ट्र में साल 2019 के चुनाव में सीएम ने 12 विधानसभा सीटों पर प्रचार किया और 7 पर जीत हासिल की. यहां सीएम का स्ट्राइक रेट 58% रहा. इसके साथ ही बिहार में साल 2020 के चुनाव में सीएम ने 19 सीटों पर रैली की और 13 पर जीत हासिल की. यहां सीएम योगी रैलियों वाली कुल सीटों में से 68% बीजेपी जीती. उत्तराखंड में साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 1 सीट पर प्रचार किया और उस पर जीत हासिल करते हुए स्ट्राइक सीएम ने 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया.

उसी साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सीएम ने 181 सीटों पर प्रचार किया और 121 पर जीत हासिल की. यहां सीएम का स्ट्राइक रेट 67 फीसदी रहा.  बात गुजरात में साल 2022 के विधानसभा चुनाव की करें तो इस साल सीएम ने साल 2017 के मुकाबले 13 कम सीटों पर रैली की. सीएम ने साल 2022 के विधानस भा चुनाव में 22 सीटों पर प्रचार किया 15 पर जीत हासिल की. इस चुनाव में सीएम का स्ट्राइक रेट 68% रहा. इस साल त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में सीएम ने 6 सीट पर प्रचार करते हुए 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया.


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मध्य प्रदेश में बंपर वोटिंग हुई

 विधानसभा चुनाव के इस रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा दी है. वोटिंग के बाद चौक-चौराहे से लेकर सियासी गलियारों तक एक ही चर्चा है कि आखिर इस वोटिंग के संकेत क्या हैं?

हत्या, गोलीबारी और धांधली के आरोपों के बीच मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए शुक्रवार को वोट डाले गए. वोट डालने के लिए कई जगहों पर देर रात तक लोग कतारों में खड़े नजर आए. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य में कुल 76.2 प्रतिशत वोट पड़े, जो अब तक का रिकॉर्ड है. 

2018 में 75.63 प्रतिशत तो 2013 में 72.13 प्रतिशत वोट पड़े थे. चुनाव आयोग के मुताबिक विधानसभा की करीब 85 सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़े हैं. सिवनी जिले के बरघाट सीट पर सबसे ज्यादा 88.2 प्रतिशत वोट डाले गए हैं. 

विधानसभा चुनाव के इस रिकॉर्डतोड़ मतदान ने सियासी दलों की धड़कनें बढ़ा दी है. वोटिंग के बाद चौक-चौराहे से लेकर सियासी गलियारों तक एक ही चर्चा है कि आखिर इस वोटिंग के संकेत क्या हैं?

मध्य प्रदेश के चुनाव में टूटे कई रिकॉर्ड

- बालाघाट जिले के सोनेवानी मतदान केंद्र में सबसे कम 42 मतदाता हैं, लेकिन यहां 100 प्रतिशत मतदान हुआ है. बालाघाट नक्सल बेल्ट माना जाता है और यहां दोपहर 3 बजे तक ही मतदान करवाया गया. 

- पहली बार महिला वोटरों ने जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक कुल 2.72 करोड़ महिला वोटरों में से 1.93 करोड़ ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. 

- 2020 में बागी हुए कांग्रेस के 22 में से 14 विधायकों की सीट पर इस बार पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट पड़े हैं. इनमें कई मंत्रियों की सीट भी शामिल हैं. ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए थे.

- पहली बार विधानसभा चुनाव में 3 केंद्रीय मंत्री और 7 सांसद मैदान में थे. 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार भी चुनाव मैदान में उतरे हुए थे. 

5 प्वाइंट्स में समझिए क्या है वोटिंग का ट्रेंड?

सवाल यही है कि क्या मध्य प्रदेश के वोटिंग में जो बढ़ोतरी हुई है, क्या वह सामान्य है? मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नितिन दुबे कहते हैं- जिस तरह से मतदाता रात तक लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे, इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता है.

वे कहते हैं- यह सत्ता विरोधी लहर है और लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया है. कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा मजबूती से सरकार बनाएगी.

बीजेपी के प्रवक्ता हितेश वाजपेई इसे सामान्य बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हैं, '2 प्रतिशत वोट मध्य प्रदेश के चुनाव में हर बार बढ़ता है.' वाजपेई वोट प्रतिशत बढ़ने की मुख्य वजह दिनों-दिन बढ़ रही जनसंख्या और चुनाव आयोग की जागरूकता अभियान को बताते हैं.

ऐसे में इस स्टोरी में समझते हैं कि क्या सच में वोट प्रतिशत का बढ़ना एक सामान्य राजनीतिक घटना है या कुछ खेल होने वाला है?

1. महिला वोटों से मिलेगी सत्ता की चाभी?

महिलाओं ने इस बार मध्य प्रदेश में जमकर मतदान किया है. आयोग के मुताबिक पिछली बार की तुलना में इस बार 18 लाख से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले हैं.

आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 52 विधानसभा सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट किया था. जानकारों का कहना है कि इस बार यह संख्या 100 के पार जा सकता है. 

ऐसे में महिलाओं के वोट उन सीटों पर काफी अहम रहने वाला है, जहां पर कांटे या त्रिकोणीय मुकाबला है. 

महिलाओं को साधने के लिए बीजेपी की ओर से लाड़ली बहना योजना चलाई जा रही थी. कांग्रेस ने इस योजना की काट में नारी शक्ति योजना शुरू करने की बात कही थी. 

2. सत्ता-विरोधी वोट बूथ तक जा पाए या नहीं?

आमतौर पर जब किसी चुनाव के वोटिंग में बढ़ोतरी होती है, तो उसे सत्ता विरोधी लहर से जोड़कर देखा जाता है. मध्य प्रदेश के संदर्भ में भी कांग्रेस इसे ही आधार बना रही है. 

जानकारों का कहना है कि जब-जब वोट प्रतिशत बढ़ता है, तब-तब सत्ताधारी दल को नुकसान होता है, लेकिन सवाल है कि क्या सत्ता विरोधी वोट बूथ तक पहुंचा या नहीं?

ग्वालियर दक्षिण सीट, जहां पिछली बार कांग्रेस 111 वोटों से जीती थी. वहां इस बार वोटिंग काफी धीमा रहा. यहां के एक बूथ का वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. 

वीडियो में कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक जिले के कलेक्टर से स्लो वोटिंग कराने को लेकर बहस कर रहे हैं. पाठक का आरोप है कि कलेक्टर ने मुस्लिम इलाकों में जानबूझकर समय से वोटिंग नहीं करवाई.

दिमनी में भी कम मतदान चर्चा का विषय है. यह सीट अभी कांग्रेस के पास है, लेकिन यहां से चुनाव केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं.

3. स्थानीय स्तर का समीकरण काफी अहम

मध्य प्रदेश चुनाव को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रवि दुबे के मुताबिक इस बार चुनाव में स्थानीय स्तर का समीकरण काफी महत्वपूर्ण है. एक-एक सीट का अपना समीकरण है और उसी हिसाब से आकलन होना चाहिए.

वे कहते हैं- पहले की तुलना में इस बार का वोटिंग पैटर्न काफी बदला हुआ नजर आया. लोग वोटिंग के वक्त स्थानीय कैंडिडेट को ज्यादा देख रहे थे. कई सीटों पर निर्दलीय और अन्य पार्टियों के उम्मीदवार भी काफी मजबूत हैं. 

दुबे के मुताबिक इस बार कई सीटों पर जीत-हार का मार्जिन काफी कम रहने वाला है. ऐसे में कौन कहां जीतेगा,यह तो मतगणना के दिन ही पता चल पाएगा.

राजनीतिक विश्लेषक मयंक शेखर मिश्रा भी स्थानीय समीकरण को काफी अहम मान रहे हैं. वे कहते हैं- ग्रामीण सीटों के मुकाबले शहरी सीटों पर वोटिंग कम हुआ है. इंदौर और भोपाल की कई सीटों पर 70 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ है.

मिश्रा आगे कहते हैं- ग्रामीण इलाकों की सीटों पर वोट बढ़ा है. ऐसे में बड़ा उलटफेर ग्रामीण इलाकों की सीटों से ही होगा. शहरी इलाकों में ज्यादा बदलाव मुश्किल है. 

4. सपा और बीएसपी उम्मीदवार पर भी बहुत कुछ निर्भर

दिमनी, सिरमौर, सुमावली, सतना जैसी 2 दर्जन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इसी तरह देवतालाब, निवाड़ी समेत 1 दर्जन सीटों पर सपा मजबूत स्थिति में है. 

पिछले चुनाव में बीएसपी को 2 और सपा को 1 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार अखिलेश यादव ने काफी मेहनत की है. बीएसपी से आकाश आनंद भी सक्रिय थे. ऐसे में सपा और बीएसपी को मिले वोट भी नतीजे को काफी प्रभावित करेगा. 

2018 में सपा और बीएसपी को कुल 6.30 प्रतिशत वोट मिले थे. अगर यह 10 प्रतिशत के पार पहुंच गया, तो समीकरण काफी हद तक बदल सकता है.

5. नया वोटर किधर, यह भी जीत-हार तय करेगा

चुनाव आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश में इस बार 18-19 साल के 22 लाख युवा वोटर थे, जिनका नाम पहली बार मतदाता सूची में था. इन वोटरों के मुद्दे और वोटिंग के पैटर्न भी जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.

मध्य प्रदेश के स्वतंत्र पत्रकार रत्नदीप बांगरे के मुताबिक युवा वोटरों का मुख्य मुद्दा फ्रीबीज और रोजगार था. दोनों पार्टियों ने उन्हें लुभाने के लिए कई अहम घोषणाएं की.

बांगरे आगे कहते हैं- राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. नए वोटर अब खुद फैसला लेने लगे हैं और इस बार युवाओं ने बढ़ चढ़कर मतदान भी किया है. ऐसे में आप यह कह सकते हैं कि यह जिधर गए होंगे, उसकी सरकार बननी तय है. 

वोट प्रतिशत बढ़ने पर इन राज्यों में क्या हुआ था?

इसी साल कर्नाटक में चुनाव हुए थे, जहां 73.19 प्रतिशत मतदान हुआ था. यह 2018 के मुकाबले एक प्रतिशत ज्यादा था. वोट बढ़ने की वजह से कांग्रेस को फायदा हुआ और पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई.

रिजल्ट में 90 सीट वाली कांग्रेस 135 सीटों पर पहुंच गई. बीजेपी 75 के आसपास सिमट गई. जेडीएस को 19 सीटों पर जीत मिली.

गुजरात चुनाव के वोटिंग में कमी आई, तो सत्ताधारी दल को जबरदस्त फायदा हुआ. गुजरात में इस बार 64.25 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो पिछली बार से करीब 3 प्रतिशत कम था. 

वोटिंग प्रतिशत में गिरावट का फायदा सीधे सत्ताधारी बीजेपी को मिली. पार्टी ने रिकॉर्ड सीटों से गुजरात में जीत हासिल की. 


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एमपी-छत्तीसगढ़ में विधानसभा सीटों के लिए आज वोटिंग

मध्य प्रदेश विधानसभा की सभी 230 सीटों और छत्तीसगढ़ की 70 सीटों के लिए शुक्रवार (17 नवंबर) को मतदान हो रहा है. छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से 20 पर पहले चरण (7 नवंबर) में मतदान हुआ था. छत्तीसगढ़ में पहले चरण में 76.47 प्रतिशत मतदान हुआ था. 

दोनों की राज्यों में बुधवार (15 नवंबर) शाम चुनाव प्रचार थम गया था. बाकी तीन राज्यों राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के साथ ही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की मतगणना 3 दिसंबर को होगी. दोनों ही राज्यों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने चुनावी घोषणापत्रों में कई वादे किए हैं. 

न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 5 करोड़ 60 लाख से ज्यादा मतदाता 2,533 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन ने बताया है कि बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिले के कई विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्रों पर सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक मतदान होगा. वहीं, शेष विधानसभा क्षेत्र में मतदान सुबह 7 से शाम 6 बजे तक होगा.

मतदान शुरू होने से 90 मिनट पहले मॉक पोल कराया जाएगा. उन्होंने आगे बताया है कि प्रदेश में 64,626 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें 64,523 मुख्य मतदान केंद्र और 103 सहायक मतदान केंद्र हैं. राज्य में क्रिटिकल मतदान केंद्रों की संख्या 17,032 है. वहीं, वल्नरेबल क्षेत्र की संख्या 1,316 है. इस चुनाव के दौरान बाधा पहुंचाने वाले 4,028 लोगों की पहचान की गई है. सभी के विरुद्ध प्रतिबंधात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की गई है.

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी राजन के अनुसार राज्य के 5,160 मतदान केंद्रों को पूरी तरह से महिला मतदान कर्मी संचालित करेंगी, इन मतदान केंद्रों पर महिला अधिकारी और कर्मचारियों का दल है, वहीं दिव्यांग जनों में आत्मविश्वास और सम्मान की दृष्टि से कुल 183 मतदान केंद्र दिव्यांग व्यक्तियों की ओर से संचालित किए जाएंगे. 371 यूथ मैनेज्ड बूथ पहली बार बनाए गए हैं, जबकि 2,536 आदर्श मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जबलपुर जिले में 50 और बालाघाट में 57 ग्रीन बूथ बनाए गए हैं.

उन्होंने आगे बताया कि निर्वाचन के दौरान एक एयर एंबुलेंस गोंदिया महाराष्ट्र में उपलब्ध रहेगी. इसी तरह मतदान समाप्ति तक एयर एंबुलेंस जबलपुर में उपलब्ध रहेगी. एक हेलीकॉप्टर बालाघाट में रखा जाएगा, जबकि एक अन्य हेलीकॉप्टर भोपाल में उपलब्ध रहेगा.

राज्य में आचार संहिता लागू होने के बाद प्रशासनिक स्तर पर चलाई गई मुहिम से 335 करोड़ से ज्यादा की नगदी, अवैध शराब, जेवरात, मादक पदार्थ आदि जब्त किए गए हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में राजिम जिले की नक्सल प्रभावित बिंद्रानवागढ़ सीट के नौ मतदान केंद्रों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में मतदान सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक किया जाएगा. विशिष्ट क्षेत्र में सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक मतदान किया जाएगा.

चुनाव अधिकारियों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में 70 सीटों के लिए कुल 958 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 827 पुरुष, 130 महिलाएं और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल हैं. छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के लिए मतदाताओं की संख्या 1,63,14,479 है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों के 70-70 उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) के 44, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के 62 और हमार राज पार्टी के 33 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं, जिनके क्रमशः 43 और 26 उम्मीदवार मैदान में हैं.


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4 चुनावी राज्यों में 11% ही महिला प्रत्याशी मैदान में

देश के चार चुनावी राज्यों (मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम) में कुल 560 सीटों के लिए 5,764 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें सिर्फ 609 (11%) महिलाएं हैं। तेलंगाना की 119 सीटों के पूरे आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन यहां भी भाजपा ने 14 व कांग्रेस ने 11 महिला उम्मीदवार ही उतारी हैं।

साफ है कि देश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अब भी कितनी कम है। यह स्थिति तब है, जब 20 साल में चुनाव लड़ने वाली महिलाएं 152% बढ़ी हैं और इनका सक्सेस रेट पुरुषों से 4% तक ज्यादा रहा है। यही नहीं, जहां महिलाएं विधायक रहीं उन इलाकों में विकास की रफ्तार पुरुष विधायकों के मुकाबले 15% तक ज्यादा रही।

वर्ल्ड बैंक, राइस यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर की जॉइंट स्टडी के मुताबिक, जहां महिलाओं की शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है, वहां 10% ज्यादा महिलाओं के चुनाव लड़ने और उनके जीतने की संभावना 4 गुना तक बढ़ जाती है।

1993 से 2004 के बीच चले डिस्ट्रिक्ट प्राइमरी एजुकेशन प्रोग्राम (डीपीईपी) का विश्लेषण करने पर ये नतीजे सामने आए। यह प्रोग्राम देश के कुल 593 में से 219 जिलों में चला था, क्योंकि वहां महिला की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत 40% से भी कम थी।

इस स्टडी के लिए 1980 से 2007 के बीच 16 राज्यों की 3,473 विधानसभाओं का डेटा खंगाला गया। देश की करीब 95% आबादी इन्हीं विधानसभाओं में रहती है।

38% ने माना- जिम्मेदार पदों पर महिलाएं हों तो रिश्वतखोरी कम

यूएन यूनिवर्सिटी वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च के मुताबिक, 1992 से 2012 के बीच 4 चुनावों के दौरान 4,265 विधानसभाओं का डेटा कहता है कि महिला विधायकों के मुकाबले पुरुषों पर पेंडिंग आपराधिक मामले करीब तीन गुना हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 37% लोग मानते हैं कि पुरुष ज्यादा भ्रष्टाचार करते हैं। 38% लोग कहते हैं, जिम्मेदार पदों पर महिलाएं हों तो घूसखोरी घटेगी।

महिला विधायकों की संपत्ति पुरुषों के मुकाबले हर साल औसतन 10% कम बढ़ी है। महिला विधायक वाले ग्रामीण इलाकों में अधूरे सड़क प्रोजेक्ट पुरुष विधायकों की तुलना में 22% तक कम हैं।

चुनौतियां जो बेड़ियां बनीं... उम्मीदवारी में पीछे हैं, तभी हिस्सेदारी भी कम

2000 से 2007 के बीच 40 मुख्य पार्टियों (जिन्होंने कभी भी राज्य में 5% से ज्यादा सीटें जीती हों) में से सिर्फ 4 की प्रमुख महिला थी। 1980 से 2007 के बीच 3,473 विधानसभाओं में हुए 6 चुनावों का विश्लेषण कहता है कि 70% विधानसभाओं में एक भी महिला उम्मीदवार नहीं थी। सिर्फ 7% सीटें थीं, जिनमें एक से ज्यादा महिला उम्मीदवार मैदान में थी।

वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में महिलाओं की साक्षरता दर 77% और पुरुषों की 85% है। जिन राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है, वहां उनके जीतने की संभावना भी कम। जहां लिंगानुपात बेहतर है, वहां महिला की जीत से अन्य महिला उम्मीदवारों का वोट शेयर बढ़ता है। साथ ही अगली बार महिला प्रत्याशी के जीतने के आसार भी बढ़ जाते हैं।


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मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में भी सपा देगी कांग्रेस को चुनौती

  राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि सपा को सबसे ज्यादा उम्मीद एमपी से थी जहां कांग्रेस ने उन्हें एक भी सीट नहीं दी. इसके बाद से अखिलेश के निशाने पर बीजेपी के साथ कांग्रेस भी है.

 इंडिया गठबंधन में दरार और बढ़ती जा रही है. जहां मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों पर असहमति के बाद तकरार हो गई वहीं अब इसका असर राजस्थान में देखने को मिल रहा है. समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में भी पांच उमीदवार उतार कर कांग्रेस के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. समाजवादी पार्टी राजस्थान की प्रदेश अध्यक्ष वंदना यादव ने बताया कि हमारी पार्टी यहां पर पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

इन सीटों पर सपा लड़ेगी चुनाव

समाजवादी पार्टी ने यहां अलवर जिले की राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, थानागाजी, धौलपुर, नदबई और नगर सीट पर प्रत्याशी उतारे हैं. हमें उम्मीद है कि पार्टी यहां अच्छा प्रदर्शन करेगी. उन्होंने बताया कि कांग्रेस से यहां पर कोई समझौता नहीं हो सका है. हमारा संगठन हर जिले में है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी प्रचार करने आयेंगे.

2008 में जीती थी एक सीट

चुनावी आंकड़े बताते हैं कि 2018 के चुनाव में सपा ने यहां से पांच उमीदवार उतारे थे, लेकिन उन्हें कामयाबी एक भी सीट पर नहीं मिली. हालांकि उन्हें 7.56 प्रतिशत वोट शेयर जरूर मिला था. राजस्थान में सपा को 2008 में एक सीट मिली थी.

सपा को एमपी में थी ज्यादा उम्मीद

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि सपा को सबसे ज्यादा उम्मीद मध्य प्रदेश से थी जहां कांग्रेस ने उन्हें एक भी सीट नहीं दी. इसके बाद से अखिलेश के निशाने पर भाजपा के साथ कांग्रेस भी है. हालांकि दोनों ओर से अभी इंडिया गठबंधन में ही लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा किया जा रहा है.

अखिलेश ने कांग्रेस पर लगाया गंभीर आरोप

मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे चालू पार्टी तक कह दिया. यही नहीं अखिलेश ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी को धोखा देने का भी आरोप लगाया है. इसके बाद दोनों पार्टियों में तल्खी और बढ़ गई है. वहीं जबलपुर में सपा प्रमुख ने ये भी कहा कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में हमसे दूरी बनाई है हम उत्तर प्रदेश में उनसे दूरी बनाएंगे.


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लोकसभा चुनाव-2024 के कैंडिडेट्स को चुनने का प्रोसेस शुरू

भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपने संभावित कैंडिडेट्स को चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस बार हर राज्य की अलग-अलग राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से प्रत्याशी तय हो सकते हैं, क्योंकि जातीय जनगणना और समुदाय आरक्षण की मांग के बीच सियासी समीकरण नए मोड़ ले रहे हैं।

इस बार ये भी मुमकिन है कि जीत की ज्यादा संभावनाओं वाली ए कैटेगरी की सीटों पर भी पार्टी प्रत्याशी बदल सकती है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने लोकसभा के लिहाज से संभावित प्रत्याशियों की लिस्ट बनाने के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है।

यह समिति उम्र, जीत की संभावना, उम्मीदवार की जाति, लोकसभा क्षेत्र के विकास, सीट की समस्याएं तथा प्रमुख विरोधी दलों के संभावित उम्मीदवारों की प्रोफाइल बना रही है।

आम चुनाव की घोषणा के पहले तय हो सकते हैं नाम

पार्टी के एक सीनियर मेंबर का कहना है कि जैसे पांच राज्यों के चुनाव घोषित होने से पहले कुछ सीटों के प्रत्याशियों के नाम को अंतिम रूप दे दिया गया, वैसे ही कुछ सीटों के प्रत्याशियों को लोकसभा चुनाव घोषित होने से पहले भी तय किया जा सकता है।

भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीट जीत सके, इसके लिए संभावित उम्मीदवारों के अलावा लोकसभा सीटों की स्क्रीनिंग जरूरी है और पार्टी इस काम में लग गई है।

जहां जिस जाति की संख्या ज्यादा, वहां उसी का प्रत्याशी

पार्टी के एक सीनियर लीडर का कहना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना की मांग के चलते सीटों के जातीय समीकरण आने वाले दिनों में प्रभावित हो सकते हैं। इसे ऐसे समझें कि यदि OBC समुदाय बाहुल्य सीटों पर मौजूदा भाजपा सांसद दूसरी जाति का है तो उसकी सीट अगले लोकसभा चुनाव में बदल सकती है।

दिसंबर के दूसरे हफ्ते से मूल्यांकन और समीक्षा

भाजपा राज्यों के प्रभारी महासचिव, राज्य के संगठन महासचिव और मुख्यमंत्री के फीडबैक के आधार पर सीटों का मूल्यांकन कर रही है। दिसंबर के दूसरे हफ्ते से मौजूदा सांसदों के तरफ से किए गए डेवलपमेंट वर्क की समीक्षा का काम शुरू करने की योजना है। प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया में भाजपा के सहयोगी दलों के संभावित प्रत्याशियों को लेकर भी विचार होगा।

राजस्थान के चुनावी रण की तस्वीर साफ हो गई है। सूचियों को देखें तो एक बात सामने आती है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास अब समान अवसर हैं। मैदान की स्थिति एक जैसी है। दोनों के सामने बागियों का संकट है। मिलते-जुलते झगड़े हैं। घिसे-पिटे फॉर्मूले से बनते-बिगड़ते हार-जीत के निष्कर्ष हैं। लेकिन चुनाव इस बार वैसा नहीं है, जैसा हर बार होता है।








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