बुलबुल शाह खजाना समिति की फिर से गठन की मांग

श्रीनगर, (वार्ता) कश्मीर सोसायटी के अध्यक्ष फारुक रेंजू ने हजरत बुलबुल शाह के खजाने के तथ्यों का पता लगाने के लिए बनाई गई तथ्य खोज समिति को बुधवार को फिर से बनाने और इससे जुड़ी कलाकृतियों को वापस करने की मांग की। हजरत बुलबुल शाह के खजाने को कथित तौर पर कश्मीर लाते हुए वर्ष 1937 में लूट लिया गया था और इसी का पता लगाने के लिए तथ्य खोज समिति बनाई गई थी। यह समिति हालांकि जम्मू-कश्मीर से पांच अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाए जाने के साथ ही समाप्त हो गई थी। कश्मीर सोसायटी के अध्यक्ष रेंजू ने अब फिर इस समिति का गठन करने की मांग करते हुए कहा,“ वर्ष 1937 में बर्लिन और रूसी तोपों की सहायता से संचालित कम्युनिस्ट और निरंकुश लॉबी ने काशगर और कश्मीर के खंजरीब बॉर्डर की तरफ से आते हुए कश्मीर में चुंगी चौकी के डोमेल में बुलबुलशाह के जायरीनों के एक काफिले को पकड़ लिया था। इस काफिले में काशगर के सबसे प्रमुख जायरीन मोहम्मद मोहिती वर्ष 1321 शताब्दी के हजरत बुलबुलशाह के गहने, मोती, सोना, और हीरे की नौ संदूकों के साथ कश्मीर में प्रवेश कर रहे थे।” उन्होंने कहा,“ कम्युनिस्ट स्टालिन ने रूस में लगभग 400 काशगर हनफ़ी छात्रों की हत्या कर दी थी। काशगर के जनरल मोहिती के काफिले के पकड़े जाने के बाद बुलबुल शाह के खजाने पर स्टालिन बलों द्वारा कब्जा कर लिया जाएगा। जिसके बाद उन्होंने इस खजाने को सफा कदल के पास बुलबुल शाह के पवित्र खानकाह में जमा करने का फैसला किया था।” श्री रेंजू ने कहा,“ इस खजाने के संबंध में सबसे भयावह और चौकां देने वाली बात यह है कि वर्ष 1963 में कश्मीर के बुलबुल शाह ट्रस्ट और मुफ़्ती अंजाम की सहमति के बिना खजाने की सातवीं और नौवीं संदूक को चीन के साथ युद्ध में सैकड़ों किलोमीटर जमीन का आत्मसमर्पण करने के कृत्य के लिए नयी दिल्ली में स्थित तीन मूर्ति पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को दान कर दिया गया था।” श्री रेंजू हजरत बुलबुलशाह ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कश्मीर के डिवीजनल कमिश्नर की अगुवाई वाली टीम से श्री नेहरू को दिए गए अवैध दान के कारण को खोजने की अपील की है और मांग की है कि यह पता लगाया जाए कि किसकी सहमति से दान दिया गया था। जतिन.श्रवण वार्ता