मंत्रिमंडल की पहली बैठक में मुफ्त राशन योजना को तीन महीने तक बढ़ाने का निर्णय

लखनऊ, 26 मार्च। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शनिवार को मंत्रिमंडल की बैठक में कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई मुफ्त राशन योजना को तीन महीने तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया।

 

मार्च 2022 तक के लिए लागू की गई योजना अब जून तक जारी रहेगी। इसमें 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का प्रावधान है। इस योजना के तहत अगले तीन और माह तक खाद्यान्न योजना के तहत प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को दाल, नमक, चीनी के साथ खाद्यान्न मिलता रहेगा। योजना मार्च 2022 में खत्म हो रही थी।

 

माना जा रहा है कि इस बार भाजपा की जीत में मुफ्त राशन की इस योजना का जबरदस्त प्रभाव रहा है। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के बाद आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार की पहली कैबिनेट बैठक शनिवार सुबह यहां लोकभवन में हुई।

 

मुख्यमंत्री ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रधानमंत्री ने देश के हर नागरिक के लिए ‘प्रधानमंत्री अन्न योजना’ प्रारंभ की थी। इस योजना के अन्तर्गत देश की 80 करोड़ जनता को इसका लाभ मिल रहा है।’’

 

उन्होंने कहा, ‘‘मार्च-अप्रैल 2020 से लेकर मार्च 2022 तक लगभग 15 महीनों तक इस योजना का लाभ लोगों को प्राप्त हुआ है। 15 करोड़ लोगों को उत्तर प्रदेश में इसका लाभ प्राप्त होता था। राज्य सरकार ने भी उत्तर प्रदेश के अंत्योदय के लाभार्थी और पात्र परिवारों सहित 15 करोड़ लाभार्थियों के लिए यह योजना अपनी ओर से अप्रैल 2020 से आरंभ की थी।’’

 

उन्होंने कहा कि योजना के अन्तर्गत राज्य की 15 करोड़ अंत्योदय जनता को 35 किलोग्राम खाद्यान्न और पात्र परिवारों को पांच-पांच किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त होता है। राज्य सरकार ने इसके साथ ही प्रत्येक परिवार को एक किलोग्राम दाल, एक किलोग्राम रिफाइंड तेल, एक किलोग्राम आयोडीनयुक्त नमक भी उपलब्ध कराया था। इसके साथ ही अंत्योदय परिवारों को राज्य सरकार ने एक किलोग्राम चीनी भी उपलब्ध करायी थी।

 

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘यह योजना मार्च 2022 तक थी। इसलिए मंत्रिमंडल ने शनिवार को निर्णय लिया कि अगले तीन महीनों तक प्रदेश के 15 करोड़ लोगों के लिए यह योजना जारी रहेगी। ‘डबल इंजन की सरकार’ पहले भी जनता के साथ खड़ी रही। महामारी के दौरान निशुल्क इलाज, निशुल्क टीका उपलब्ध कराया गया।’’ संवाददाता सम्मेलन में योगी आदित्यनाथ के साथ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक तथा कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना एवं स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद थे।

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खरीद के बाद 6-7 महीने के भीतर राशन दुकानों से ज्वार, रागी वितरित कर सकते राज्य

नई दिल्ली : केंद्र ने राज्य सरकारों को अब खरीद अवधि की समाप्ति से 6 और 7 महीने के भीतर क्रमश: ज्वार तथ रागी वितरित करने की अनुमति दी है। अबतक यह यह अवधि तीन महीने थी।


सरकार के इस प्रयास का मकसद राशन की दुकानों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मोटे अनाज की आपूर्ति को बढ़ावा देना है।


केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने एक सरकारी बयान में कहा कि भारत सरकार ने 21 मार्च 2014 और 26 दिसंबर 2014 के मोटे अनाज की खरीद, आवंटन, वितरण और निपटान के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


मोटे अनाज की खरीद को वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों द्वारा विनियमित किया जाता था, जिसके तहत राज्यों को केंद्रीय पूल के लिए एमएसपी पर किसानों से मोटा अनाज खरीदने की अनुमति दी गई थी। यह भारतीय खाद्य निगम के परामर्श से राज्यों द्वारा तैयार की गई विस्तृत खरीद योजना पर भारत सरकार के पूर्व अनुमोदन के अधीन था।


वर्ष 2014 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, खरीद अवधि समाप्त होने के तीन महीने के भीतर पूरी की पूरी मात्रा का वितरण किया जाना होता था।


अंशधारकों के साथ चर्चा के आधार पर केंद्र ने वर्ष 2014 के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।


खाद्य मंत्रालय ने कहा, ''ज्वार और रागी की वितरण अवधि को पहले के 3 महीने से बढ़ाकर क्रमशः 6 और 7 महीने कर दिया गया है।''


इससे ज्वार और रागी की खरीद और खपत में वृद्धि होगी क्योंकि राज्य के पास इन वस्तुओं को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) / अन्य कल्याणकारी योजनाओं में वितरित करने के लिए अधिक समय होगा।


खरीद बढ़ने से इन फसलों की खरीद से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ेगी।


मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल नहीं बनाने वाले, लसीलापन मुक्त (ग्लूटन मुक्त) होते हैं और इनमें बेहतर आहार गुण होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण से निपटने और मोटे अनाज के सेवन से प्रतिरक्षा तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।




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टमाटर से लाल हुआ घरेलू बजट

रंग में लाल, खाने को लजीज बनाने वाले और भारतीय सब्जी की तरी को क्लासिक बनाने वाले टमाटरों की महंगाई हर आदमी की जुबान पर है। देश की अधिकांश जगहों पर सर्दियों के दिनों में टमाटर के भाव 10 से 20 रुपए प्रति किलो तक होते हैं, लेकिन इस साल कुछ शहरों में टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं। कई जगहों पर खुदरा बाज़ार में इसकी क़ीमतें 80 रुपए प्रति किलो से ऊपर हैं। कुछ दक्षिण भारतीय शहरों में तो क़ीमतें 120 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई थीं।कहा जा रहा है कि बारिश के कारण टमाटर की सप्लाई बाधित हुई है जिसके कारण इसकी क़ीमतें बढ़ रही हैं। कर्नाटक का कोलार भी टमाटर के लिए जाना जाता है और देश भर में अधिकतर टमाटर कोलार से ही जाते हैं। या यह कहें कि नासिक और कोलार तो ऐसे हब हैं जो देश में टमाटर की जरूरत को पूरा करते हैं। ऐसे में क्या कारण है कि सोने की खान के लिए मशहूर कोलार में इन दिनों टमाटर सोने के भाव बिक रहा है? हिमाचल प्रदेश में भी पिछले वर्ष सब्जी मंडी सोलन में साढ़े सात लाख टमाटर क्रेट से तीन अरब 75 करोड़ का कारोबार हुआ था, जबकि इस बार साढ़े छह लाख क्रेट से एक अरब 95 करोड़ का ही कारोबार हो सका है। यानी, इस बार पिछले वर्ष की तुलना में कारोबार पौने दो अरब रुपए कम हुआ है। टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। इसका पुराना नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है। वर्तमान समय में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो बिना टमाटर के खाना बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिकी ऐन्डीज़ में हुई।


 मैक्सिको में इसका भोजन के रूप में प्रयोग आरंभ हुआ और अमेरिका के स्पेनिस उपनिवेश से होते हुए विश्वभर में फैल गया। टमाटर का पौधा दक्षिण अमरीका से दक्षिणी यूरोप होता हुआ इंग्लैंड पहुंचा था। 16वीं शताब्दी में इसे अंग्रेज भारत लाए थे। तबसे यह लोगों के जायके को बदल रहा है। स्वादिष्ट टमाटर से जुड़ा अर्थशास्त्र पेचीदा है। टमाटर के दाम कैसे तय होते हैं, कैसे उतार-चढ़ाव आता है? क्या दाम बढ़ने पर किसान का मुनाफा भी बढ़ जाता है, घटने पर घट जाता है? ये सब समझना होगा। मान लें एक किलो टमाटर को प्रोड्यूस करने की लागत आती है करीब तीन रुपए, लेकिन थाली तक जो टमाटर पहुंचता है, उसकी लागत हो जाती है करीब 6 से 7 रुपए। ट्रांसपोर्ट और टमाटर के लॉस (टूट-फूट) को मिलाकर। फिर रिटेलर से लेकर ठेले वाले तक का मार्जिन जुड़ता है। फिर भी टमाटर अगर आपको 9-10 रुपए में भी मिल रहा है, तो मान लीजिए पूरी-पूरी लागत तो निकल ही रही है। लेकिन बीच में ट्रेडर्स लॉबी कुछ फसलों में काफी सक्रिय रहती है। यही वजह है कि टमाटर में ज़रा भी सप्लाई कम हुई तो दाम बहुत ज़्यादा ऊपर-नीचे हो जाते हैं। रिसर्च बताती है कि टमाटर का उत्पादन पांच फीसदी बढ़ता है तो दाम 50 फीसदी गिर जाते हैं। ये स्टॉक मार्केट जैसा है। लेकिन हमारे यहां के सप्लाई चेन में दाम बढ़ने से किसान के पास मुनाफे का बड़ा हिस्सा आता ही नहीं है। सीधे खेत से उपभोक्ता तक फसल की थ्योरी अभी भी अमल में नहीं आ पाई है। इसलिए सब्जी का दाम बढ़ने पर भी किसान के हिस्से में बहुत कम ही मुनाफा आ पाता है। टमाटर की ही बात करें, तो इसकी खेती लागत भी बढ़ी है क्योंकि कीटनाशक का खर्चा काफी बढ़ गया है।


 तमाम पुराने कीड़ों ने पुरानी दवाइयों से प्रतिरोधक क्षमता डेवलप कर ली है। अब वो उससे मरते ही नहीं। किसान को नए किस्म के कीटनाशक लाने पड़ रहे हैं। एक कीटनाशक का दाम तो 550 से 600 रुपए प्रति 60 ग्राम है। सोचिए किसान की लागत कहने को तो लोग 2-3 रुपए प्रति किलो बताते हैं, लेकिन ये सारी लागत जोड़ना भी ज़रूरी है। टमाटर के व्यापार से जुड़ी आर्थिकता बताती है की आमतौर पर टमाटर अच्छा भाव हो, तब भी 300 रुपए प्रति क्रेट बिकता है। एक क्रेट में 25 किलो टमाटर होते हैं। इस समय एक क्रेट टमाटर एक हज़ार रुपए से लेकर 1400 रुपए तक बिक रहे हैं। सर्दियों में कभी टमाटर के दाम इतने ऊंचे नहीं गए हैं। ये समय आते-आते तो दस रुपए प्रति किलो तक टमाटर बिकना मुश्किल हो जाता था, क्योंकि पैदावार बंपर होती थी। इस बार बारिश ने फसल ख़राब कर दी है। मंडी में माल नहीं है। इसलिए मांग बहुत ज़्यादा है। टमाटर की खेती करना आसान नहीं है। लागत बहुत लगानी पड़ती है। एक बीघा खेत में बीस हज़ार रुपए तक की लागत आ जाती है। ऐसे में किसान को दाम न मिले तो भारी नुक़सान होता है। नवंबर के पहले सप्ताह में बारिश होने की वजह से फसलें प्रभावित हुई हैं जिसकी वजह से दाम बढ़े हुए हैं। दाम बढ़ने की एक वजह परिवहन में देरी, डीज़ल के महंगे दामों को भी माना जा रहा है। भारी बारिश की वजह से तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बारिश ने फसलों को ख़राब कर दिया है। इसकी वजह से आपूर्ति प्रभावित हुई है। एक तरफ जहां टमाटर के दाम बढ़ने से उपभोक्ताओं पर मार पड़ रही है, वहीं किसानों ने कुछ राहत की सांस ली है। दरअसल बेमौसम हुई बरसात ने टमाटर की फसल को ख़राब कर दिया था जिससे किसानों को भारी नुक़सान हुआ।


 बंगाल की खाड़ी में कम दबाव के क्षेत्रों के बार-बार बनने या अरब सागर में चक्रवात के कारण नवंबर के पहले सप्ताह से पूर्वोत्तर मानसून के दौरान भारी बारिश के कारण टमाटर की फसल को नुकसान हुआ है, जिससे टमाटर की फसल खराब हो गई और आपूर्ति बाधित हुई। दक्षिण भारत में जबरदस्त बारिश होने से टमाटर को लेकर यह संकट आया है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में टमाटर की खेती वाले इलाके बारिश के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और देरी भी हुई है। आम तौर पर टमाटर की फसल बोने के लगभग दो से तीन महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। ऐसा माना जा रहा है कि अभी तक आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित टमाटर की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में कटाई चल रही है। इसके सप्लाई में आते ही परचून में टमाटर के दाम जायज हो सकते हैं। सरकार ने लोगों की चिंताओं के बीच कहा है कि देश के उत्तरी राज्यों से टमाटर की नई फसल की आवक के साथ दिसंबर से इसके भाव नरम पड़ने की उम्मीद है। टमाटर का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य बेमौसमी बारिश के कारण पिछले वर्ष की तुलना में 63 प्रतिशत बढ़कर 67 रुपए प्रति किलो होने के साथ सरकार का यह बयान आया है। वहीं प्याज के मामले में, खुदरा कीमतें वर्ष 2020 और वर्ष 2019 के स्तर से काफी नीचे आ गई हैं। इस साल नवंबर में आवक 19.62 लाख टन थी, जो एक साल पहले की समान अवधि में 21.32 लाख टन थी। टमाटर की कीमतों में तेज वृद्धि देश भर के घरों के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि आम आदमी का बजट पहले ही महंगाई से बढ़ा है। कुल मिला कर टमाटर की बेलगाम कीमतों ने इस समय आम आदमी का घरेलू बजट बिगाड़ दिया है।


-डा. वरिंदर भाटिया-







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सस्ती होने को तैयार नहीं सब्जी, बजट गड़बड़ाया

मोदीनगर :  बेमौसम की बात तो दूर, मौसमी सब्जियां इन दिनों भी खूब भाव खा रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा लाल टमाटर हो रहा है। इसके भाव में गिरावट आने को तैयार नहीं हैं। गोभी, मटर, मूली, आलू, मैथी पालक जैसी मौसमी सब्जी हर बार सर्दी शुरू होने से पहले ही सस्ती हो जाती थीं, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं है।


हापुड़ रोड स्थित फल एवं सब्जी मंडी के थोक आढ़ती अय्यूब खान का कहना है कि बेमौसम बारिश ने इस बार सब्जी की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। इसीका नतीजा अब लोग भुगत रहे हैं। जानकारों की मानें तो आने वाले एक माह में सब्जियों के भाव में गिरावट आनी मुश्किल है। आसपास से मांग पूरी नहीं होने के कारण कई सब्जियों का आयात बाहर से कराना पड़ रहा है। हालांकि, सब्जियों की बढ़ती कीमत के लिए कुछ लोग बिचौलियों को जिम्मेदार बता रहे हैं।


आलू के उत्पादक मनीष त्यागी ने बताया कि भले ही फुटकर भाव में आम आदमी को आलू 30 रुपये प्रति किलो मिल रहा हो, लेकिन किसान का आलू मंडी में 15-17 रुपये प्रति किलो ही बिक रहा है। बढ़ती महंगाई को लेकर गोविदपुरी की गृहणी पुष्पा शर्मा का कहना है कि इस मौसम में सब्जी हर बार सस्ती हो जाती थी, लेकिन इस बार भाव कम नहीं हो रहे हैं। रसोई में सबसे ज्यादा टमाटर, आलू, प्याज की जरूरत पड़ती है और इनके ही भाव कम नहीं हो रहे हैं। सब्जी- भाव


1-आलू-30


2-टमाटर-80


3-प्याज-50


4-गोभी-50


5-लौकी-40


6-मटर-120


7-शिमला मिर्च-120


8-मैथी-60


9-बैंगन-40


10-गाजर-40


11-मूली- 30


-सभी भाव प्रति किलो के हिसाब से हैं। सब्जियों के भाव मोदीनगर मुरादनगर के प्रमुख दुकानदारों से लिए गए हैं।







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अनाज, सब्जियों के दाम घटने से अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.3 प्रतिशत पर

नई दिल्ली :  अनाज और सब्जियों सहित खाद्य उत्पादों के दाम घटने से खुदरा मुद्रास्फीति अगस्त में मामूली घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई। सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। हालांकि, खाद्य तेल के दाम में इस दौरान वृद्धि दर्ज की गई।


यह लगातार तीसरा महीना है जबकि खुदरा मुद्रास्फीति नीचे आई है और रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर के दायरे में बनी हुई है।


उपभोक्ता मूल्यू सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने जुलाई में 5.59 प्रतिशत थी। वहीं एक साल पहले अगस्त में यह 6.69 प्रतिशत पर थी।


राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अगस्त में 3.11 प्रतिशत रही जो कि इससे पिछले महीने जुलाई में 3.96 प्रतिशत थी वहीं अगस्त, 2020 में यह 9.05 प्रतिशत के उच्चस्तर पर थी।


खुदरा मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 6.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी। अप्रैल में यह 4.23 प्रतिशत थी। उसके बाद से यह लगातार नीचे आ रही है। जून में खुदरा मुद्रास्फीति 6.26 प्रतिशत तथा जुलाई में 5.59 प्रतिशत रही।


रिजर्व बैंक ने अगस्त में अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा था। केंद्रीय बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पर निर्णय के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर गौर करता है।


सरकार ने केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया है।


एनएसओ के आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों और अनाज एवं उत्पादों के दाम में क्रमश: 11.68 प्रतिशत और 1.42 प्रतिशत घट गई। लेकिन 'तेल एवं वसा' खंड में मूल्यवृद्धि एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 33 प्रतिशत रही।


त्योहारी मौसम के दौरान खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार ने हाल में पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेलों पर मूल सीमा शुल्क घटा दिया है। उद्योग का मानना है कि इससे तेलों के खुदरा दाम चार से पांच रुपये प्रति लीटर घट जाएंगे।


हालांकि, उपभोक्ताओं की जेब पर 'ईंधन और प्रकाश' खंड अब भी भारी बना हुआ है। इस खंड में मुद्रास्फीति 12.95 प्रतिशत रही।


डीबीएस सिंगापुर की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट अनुकूल आधार प्रभाव तथा खाद्य वस्तुओं के दाम घटने की वजह से आई है। उन्होंने कहा कि तेल एवं वसा को छोड़कर अन्य उप खंडों की मुद्रास्फीति घटी है।


रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के 5.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है। केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि दूसरी तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत, तीसरी में 5.3 प्रतिशत और चौथी में 5.8 प्रतिशत रहेगी। वहीं, अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया।


कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष उपासना भारद्वाज ने कहा कि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में अधिक अनुकूल और कम रहेगी।


उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के नरम रहने से नीति निर्माताओं को राहत मिलेगी और नीति के सामान्यीकरण की ओर से धीमी रफ्तार से चलने के लिए ज्यादा गुंजाइश होगी।









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बासमती धान के मामले में एमपी को मिली बड़ी कामयाबी, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-जीआइ टैग पर पुनर्विचार करे मद्रास हाईकोर्ट

भोपाल : प्रदेश में बासमती धान की खेती तो बरसों से होती है पर इसे बतौर बासमती धान मान्यता नहीं है। इसे हासिल करने के लिए शिवराज सरकार पिछले कार्यकाल से संघर्ष करती आ रही है, जिसे अब बड़ी सफलता मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए आदेश दिया है कि मद्रास हाईकोर्ट फिर भौगोलिक संकेतक (जीआइटी टैग) पंजीयन मामले में सुनवाई करे। प्रदेश सरकार के तर्कों को ध्यान में रखकर निर्णय ले।


प्रदेश के 13 जिलों में परंपरागत रूप से बासमती धान की खेती होती है लेकिन जीआइ टैग नहीं होने की वजह से इसे बासमती धान की मान्यता नहीं मिली है। इससे किसानों को बासमती धान की खेती करने पर भी उचित मूल्य नहीं मिला। इसके मद्देनजर शिवराज सरकार ने पिछले कार्यालय में जीआइ टैग के लिए आवेदन किया था। शुरुआत में मध्य प्रदेश के पक्ष में निर्णय आया था जिसे लेकर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।


इसमें प्रदेश के पक्ष को खारिज कर दिया गया था, जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तुत दलीलों को स्वीकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट को इस मामले में फिर से सुनवाई करने के आदेश दिए हैं।


इन जिलों में होगी है बासमती धान

मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर।


छह सौ पेज में रिकॉर्ड किया था प्रस्तुत

सरकार ने प्रदेश में बासमती धान की खेती और उसके विक्रय से जुड़े कारोबार के प्रमाण छह सौ पेज में प्रस्तुत किए थे। इसमें बताया गया था कि पांच मंडियों में वर्ष 2014-15 से फरवरी 2017 तक प्रदेश की उत्पादित बासमती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के प्रसंस्करणकर्ताओं और निर्यातकों ने 80 लाख क्विंटल बासमती धान की खरीद की। आठ हजार ट्रकों से इसका परिवहन हुआ। प्रदेश में जितनी बासमती धान होती है उसमें से लगभग पचास प्रतिशत की खरीद अन्य राज्यों के ख्याति प्राप्त निर्यातक करते हैं। देश के कुल निर्यात में मध्य प्रदेश के किसानों की भागीदारी लगभग 15 प्रतिशत है।


मंडीदीप से अमेरिका, इंग्लैंड में होता है निर्यात

केंद्र सरकार की डीजीसीआइएस वेबसाइट पर मध्य प्रदेश के मंडीदीप कंटेनर डिपो से लगातार बासमती धान के निर्यात की जानकारी दी गई है। 2010-11 से 2017-18 तक प्रतिवर्ष बासमती चावल का निर्याज हुआ है। वर्ष 2016-17 में मंडीदीप से 44 हजार 218 टन बासमती चावल का निर्यात किया गया।


केंद्र सरकार ने दिया ब्रीडर सीड

केंद्र सरकार अप्रैल 1999 से वर्ष 2016 तक प्रदेश को लगातार बासमती का ब्रीडर सीड आवंटित करती रही है। 34 हजार 700 क्विंटल बीज शासकीय और अर्द्धशासकीय एजेंसियों के माध्यम से विक्रय किया गया। प्रदेश के किसानों ने शपथ पत्र दिए कि उनके पूर्वज 70 वर्ष से भी अधिक समय से बासमती की खेती करते आ रहे हैं।


ग्वालियर इस्टेट की रिपोर्ट में बासमती धान का उल्लेख

प्रदेश में बासमती धान की पारंपरिक खेती के प्रमाण दस्तावेजों में मिलते हैं। ग्वालियर इस्टेट की कृषि विभाग की वार्षि रिपोर्ट 1944-45 में स्पष्ट लिखा है कि बासमती प्रजाति की धान ने अच्छा परिणाम दिया। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च हैदराबाद ने प्रतिवर्ष चावल की खेती के लिए कराए जाने वाले सर्वे के आधार प्रकाशित होने वाली पुस्तक में मध्य प्रदेश में बासमती की खेती का उल्लेख किया है।




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61 कारोबारियों को आवंटित होगी मंडी में दुकानों

नोएडा :  फेस-टू मंडी में बनी दुकानों का आवंटन 14 जुलाई को ई-टेंडरिंग से किया जाएगा। इसके लिए 67 आवेदकों में 61 आवेदकों का चयन किया गया। मंडी प्रशासन ने 30 जून को 122 दुकानों के आवंटन के लिए आवेदन मांगे थे। मंडी सचिव संतोष कुमार ने बताया कि मंडी में बनी 122 दुकानों की आवंटन प्रक्रिया जून में शुरू की गई। इसके लिए 67 आवेदन आए थे, जिसमें 61 आवेदकों को पात्र पाया गया है। 14 जुलाई को ई-टेंडरिंग दुकानों का आवंटन किया जाएगा। मंडी में वर्तमान में 100 दुकानें संचालित हैं।



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बढ़ती कीमत दालों की और जमाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए सरकार का बड़ा फैसला

नई दिल्ली : बढ़ते दाम और जमाखोरी रोकने के लिए केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मूंग को छोड़कर अन्य सभी दालों की स्टॉक सीमा तय कर दी। यह सीमा थोक, खुदरा विक्रेताओं, आयातकों और मिल मालिकों सभी के लिए अक्टूबर 2021 तक लागू की गई है। केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से इस संबंध में एक आदेश जारी किया गया है जिसके मुताबिक दालों का स्टॉक रखने की सीमा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है।


मंत्रालय ने आदेश में कहा कि थोक विक्रेताओं के लिए 200 टन दाल की स्टॉक सीमा होगी। हालांकि, इसके साथ ही यह शर्त होगी कि वह एक ही दाल का पूरा 200 टन का स्टॉक नहीं रख सकेंगे। खुदरा विक्रेताओं के लिए यह स्टॉक सीमा 5 टन की होगी। मिल मालिकों के मामले में, स्टॉक की सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी अधिक है उसके मुताबिक होगी।


आयातकों के मामले में दालों की स्टॉक सीमा 15 मई, 2021 से पहले रखे या आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर की स्टॉक सीमा होगी। आदेश में कहा गया है कि 15 मई के बाद आयात दालों के लिए आयातकों पर स्टॉक सीमा आयातित माल को सीमा शुल्क मंजूरी मिलने की तिथि के 45 दिन बाद लागू होगी। स्टॉक सीमा वही होगी जो कि थोक विक्रताओं के लिए तय की गई है।


मंत्रालय के अनुसार, यदि संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग के ऑनलाइन पोर्टल पर इसे घोषित करना होगा और आदेश की अधिसूचना के 30 दिनों के भीतर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा। मंत्रालय ने कहा कि मार्च-अप्रैल में दालों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। बाजार को सही संकेत देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय की आवश्यकता महसूस की गई।



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मंडी में 14 जुलाई को होगा दुकानों का आवंटन, 55 लोगों ने किए आवेदन

नोएडा : फेज टू सब्जी-फल मंडी में बनी 122 दुकानों का आवंटन 14 जुलाई को होगा। हालांकि, अभी तक 55 लोगों ने ही आवेदन किए है, जबकि 63 लोगों ने आवेदन फॉर्म खरीदा था।


मंडी विस्तार के लिए शासन की ओर से मंडी में 114 नई दुकानें बनाई हैं। आठ पुरानी दुकानों भी हैं। कुल मिलाकर मंडी समिति ने 122 दुकानों के आवंटन के लिए 30 जुलाई तक लोगों से आवेदन मांगे थे। इस दौरान 63 लोगों ने दुकान आवंटन के लिए फॉर्म की खरीदारी की, इनमें से 55 लोगों ने ही अभी तक आवेदन किए हैं।


14 जुलाई को होगा दुकानों का आवंटन


मंडी समिति की ओर से आगामी 14 जुलाई को दुकानों को आवंटन किया जाएगा। आवंटन ई-टेंडरिंग के माध्यम से किया जाएगा। मंडी सचिव संतोष कुमार यादव ने बताया कि दुकानों के आवंटन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। निर्धारित समय में दुकानों का आवंटन किया जाएगा, जो दुकानें आवंटन के बाद बचेंगी, उनका आवंटन दूसरे चरण में किया जाएगा।


एक साल देरी से हो रहा आवंटन


मंडी समिति में दुकानों का आवंटन 2020 जून तक होना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के प्रकोप और लॉकडाउन के चलते दुकानों का निर्माण कार्य तय समय में पूरा नहीं हो सका। इसके बाद दुकानों का निर्माण फरवरी 2021 में पूरा हुआ। दोबारा लॉकडाउन लगाने से आवंटन मे देरी हुई।






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प्रियंका ने उप्र सरकार से कहा : गेहूं की अधिकतम खरीद सुनिश्चित की जाए

नई दिल्ली : कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश सरकार से आग्रह किया कि राज्य में गेहूं की अधिकतम खरीद सुनिश्चित की जाए।


उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘उप्र में गेहूं की सरकारी खरीद की अंतिम तारीख निकल गई और कई किसानों के गेहूं की खरीद नहीं हो पाई है।’’


कांग्रेस की उत्तर प्रदेश प्रभारी ने कहा, ‘‘अंतिम छोर के किसान तक गेहूं की खरीद यदि जुमला नहीं था तो भाजपा सरकार गेहूं खरीद की तिथि आगे बढ़ाए और अधिकतम खरीद सुनिश्चित करे। अन्यथा बारिश में किसानों का गेहूं बर्बाद हो जाएगा।’’


इससे पहले, प्रियंका गांधी ने सोमवार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि किसानों की उपज की खरीद सुनिश्चित की जाए।








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