बासमती धान के मामले में एमपी को मिली बड़ी कामयाबी, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-जीआइ टैग पर पुनर्विचार करे मद्रास हाईकोर्ट

भोपाल : प्रदेश में बासमती धान की खेती तो बरसों से होती है पर इसे बतौर बासमती धान मान्यता नहीं है। इसे हासिल करने के लिए शिवराज सरकार पिछले कार्यकाल से संघर्ष करती आ रही है, जिसे अब बड़ी सफलता मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की दलीलों को स्वीकार करते हुए आदेश दिया है कि मद्रास हाईकोर्ट फिर भौगोलिक संकेतक (जीआइटी टैग) पंजीयन मामले में सुनवाई करे। प्रदेश सरकार के तर्कों को ध्यान में रखकर निर्णय ले।


प्रदेश के 13 जिलों में परंपरागत रूप से बासमती धान की खेती होती है लेकिन जीआइ टैग नहीं होने की वजह से इसे बासमती धान की मान्यता नहीं मिली है। इससे किसानों को बासमती धान की खेती करने पर भी उचित मूल्य नहीं मिला। इसके मद्देनजर शिवराज सरकार ने पिछले कार्यालय में जीआइ टैग के लिए आवेदन किया था। शुरुआत में मध्य प्रदेश के पक्ष में निर्णय आया था जिसे लेकर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।


इसमें प्रदेश के पक्ष को खारिज कर दिया गया था, जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तुत दलीलों को स्वीकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट को इस मामले में फिर से सुनवाई करने के आदेश दिए हैं।


इन जिलों में होगी है बासमती धान

मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर।


छह सौ पेज में रिकॉर्ड किया था प्रस्तुत

सरकार ने प्रदेश में बासमती धान की खेती और उसके विक्रय से जुड़े कारोबार के प्रमाण छह सौ पेज में प्रस्तुत किए थे। इसमें बताया गया था कि पांच मंडियों में वर्ष 2014-15 से फरवरी 2017 तक प्रदेश की उत्पादित बासमती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के प्रसंस्करणकर्ताओं और निर्यातकों ने 80 लाख क्विंटल बासमती धान की खरीद की। आठ हजार ट्रकों से इसका परिवहन हुआ। प्रदेश में जितनी बासमती धान होती है उसमें से लगभग पचास प्रतिशत की खरीद अन्य राज्यों के ख्याति प्राप्त निर्यातक करते हैं। देश के कुल निर्यात में मध्य प्रदेश के किसानों की भागीदारी लगभग 15 प्रतिशत है।


मंडीदीप से अमेरिका, इंग्लैंड में होता है निर्यात

केंद्र सरकार की डीजीसीआइएस वेबसाइट पर मध्य प्रदेश के मंडीदीप कंटेनर डिपो से लगातार बासमती धान के निर्यात की जानकारी दी गई है। 2010-11 से 2017-18 तक प्रतिवर्ष बासमती चावल का निर्याज हुआ है। वर्ष 2016-17 में मंडीदीप से 44 हजार 218 टन बासमती चावल का निर्यात किया गया।


केंद्र सरकार ने दिया ब्रीडर सीड

केंद्र सरकार अप्रैल 1999 से वर्ष 2016 तक प्रदेश को लगातार बासमती का ब्रीडर सीड आवंटित करती रही है। 34 हजार 700 क्विंटल बीज शासकीय और अर्द्धशासकीय एजेंसियों के माध्यम से विक्रय किया गया। प्रदेश के किसानों ने शपथ पत्र दिए कि उनके पूर्वज 70 वर्ष से भी अधिक समय से बासमती की खेती करते आ रहे हैं।


ग्वालियर इस्टेट की रिपोर्ट में बासमती धान का उल्लेख

प्रदेश में बासमती धान की पारंपरिक खेती के प्रमाण दस्तावेजों में मिलते हैं। ग्वालियर इस्टेट की कृषि विभाग की वार्षि रिपोर्ट 1944-45 में स्पष्ट लिखा है कि बासमती प्रजाति की धान ने अच्छा परिणाम दिया। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिसर्च हैदराबाद ने प्रतिवर्ष चावल की खेती के लिए कराए जाने वाले सर्वे के आधार प्रकाशित होने वाली पुस्तक में मध्य प्रदेश में बासमती की खेती का उल्लेख किया है।