आंदोलन के दौरान किसानों की मौत संख्या के सवाल पर कृषि मंत्री ने कहा: सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि सरकार के इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई।


उन्होंने जनता दल (यू) के राजीव रंजन सिंह, कांग्रेस के अब्दुल खालिक, गौरव गोगोई और अदूर प्रकाश, बसपा कुंवर दानिश अली तथा कुछ अन्य सदस्यों के प्रश्न के लिखित उत्तर में यह भी कहा कि आंदोलन के दौरान जान गंवाने किसानों के परिवारों को मुआवजा देने से जुड़ा कोई प्रस्ताव नहीं है।


इन सदस्यों ने सवाल किया था कि क्या सरकार इस बात से अवगत है कि आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई और कितने किसान बीमार पड़े? क्या सरकार के पास कोई प्रस्ताव है कि जिन किसानों की मौत हुई है उनके परिवारों को मुआवजा दिया जाए?


तोमर ने अपने उत्तर में कहा, ‘‘भारत सरकार के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। बहरहाल, सरकार ने किसान संगठनों के साथ बातचीत के दौरान उनसे यह अपील की कि सर्दी और कोविड के हालात को देखते हुए बच्चों तथा बुजुर्गों खासकर महिलाओं को घर जाने दिया जाए।’’


उन्होंने मुआवजे से जुड़े सवाल पर कहा, ‘‘उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, जी नहीं।’’


कृषि मंत्री ने हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी के एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि किसान संगठनों के साथ उनके मुद्दों को लेकर 11 दौर की बातचीत की गई और सरकार आगे भी उनसे बातचीत करने के लिए तैयार है।







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किसानों के आने की सूचना पर जीडीए गेट पर पुलिस बल तैनात हुआ

गाजियाबाद : किसानों की मंगलवार को जीडीए कार्यालय को घेरकर प्रदर्शन करने की सूचना फैलते ही अधिकारी हरकत में आ गए। तुरंत सिहानी थाने को फोन कर पुलिसबल बुला लिया। फिर जीडीए के मुख्य गेट के बाहर अस्थाई बैरियर लगाकर पुलिस बल तैनात हो गया। लेकिन पूरा दिन बितने के बाद भी जब किसान कार्यालय नहीं पहुंचे तो अधिकारियों ने राहत की सांस ली।


जीडीए कार्यालय पर लगातार किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को भी वेव व सन सिटी टाउनशिप से प्रभावित किसानों ने प्राधिकऱण के मुख्य गेट पर विरोध प्रदर्शन कर धरना दिया था। मंगलवार को क्रासिंग रिपब्लिक से प्रभावित किसानों के विरोध प्रदर्शन करने के लिए आने की सूचना प्राधिकरण में फैल गई। इस सूचना के बाद अधिकारी तुरंत हरकत में आए और प्राधिकरण के मुख्य गेट पर अस्थाई बैरियर लगा दिए। साथ ही सिहानी थाने फोन कर पुलिस बल बुला लिया। प्राधिकऱण के मुख्य गेट पर बैरिकेटिंग के साथ पुलिस बल भी तैनात हो गया, लेकिन काफी इंतजार क रने के बाद भी कोई किसान दल वहां नहीं आया। हालांकि इस दौरान प्राधिकरण कार्यालय के अंदर भी किसानों के विरोध प्रदर्शन करने के लिए आने की चर्चा होती रही। लेकिन किसी भी किसान के नहीं आने से अधिकारियों ने राहत की सांस ली।





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किसानों ने सिंघु और टीकरी बॉर्डर के बाद पूर्ण रूप से खाली किया गाजीपुर बॉर्डर

नई दिल्ली : कृषि कानून और अन्य मांगों पर सरकार के साथ सहमति बनने के बाद किसान दिल्ली सीमाओं से वापस अपने घर की ओर रवाना हो गए हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के नेतृत्व में सभी किसानों ने आज बॉर्डर को पूर्ण रूप से खाली कर दिया है।


गाजीपुर बॉर्डर खाली करने से पहले किसानों ने सुबह हवन किया और सभी को धन्यवाद देते हुए बॉर्डर खाली कर दिया। इस अवसर पर राकेश टिकैत व अन्य किसान अब जीत का जश्न मनाते हुए बॉर्डर से मोदीनगर, मेरठ, दौराला टोल प्लाजा, मंसूरपुर होते हुए सौरम और अपने गांव सिसौली पहुंचेंगे।


भारतीय किसान यूनियन राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बॉर्डर खाली करने के दौरान मीडिया से बात करते हुए कहा कि, मैं सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। दिल्ली की सीमाओं पर जिन लोगों ने लंगर चलाया, उनको भी धन्यवाद देना चाहता हूं।


उन्होंने आगे कहा कि, अभी आंदोलन खत्म नहीं हुआ है सिर्फ स्थगित हुआ है।


गाजीपुर बॉर्डर पर सुबह से ही काफी जश्न का माहौल था। बच्चे, बुजुर्ग व महिलाएं खुशी में थिरकते हुए भी नजर आए। नौजवान युवाओं ने ट्रैक्टरों पर गाने बजाकर अपनी खुशी का इजहार किया।


किसानों के स्वागत के लिए सिसौली गांव को दुल्हन की तरह सजाया गया है। किसान भवन को भी रौशनी से जग मग किया गया है, क्योंकि राकेश टिकैत व अन्य किसान 380 दिनों से अधिक समय बाद अपने घर की दहलीज पर कदम रखेंगे।


इससे पहले सिंघु व टीकरी बॉर्डर से किसानों ने बॉर्डर खाली कर दिया था। अब नेशनल हाइवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के कर्मचारी एक्सप्रेस वे पर सफाई , बिजली के तारों की मरम्मत में लगे हुए हैं ताकि आम नागरिकों के लिए जल्द तमाम मार्गों को खोला जा सके।



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मेरठ में धरने पर बैठे युवा किसान की सर्दी से मौत, किसानों ने जमकर किया हंगामा

मेरठ : कृषि कानून खत्म होने के बाद भी किसानो का आंदोलन और धरना खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। मेरठ में धरने पर बैठे किसानों का आरोप है कि एक युवक की ठंड लगने से मौत हो गई। मृतक युवक भी उनके साथ धरने पर बैठा था। युवक की मौत से किसानों में भारी रोष है।


उधर, मेरठ के परतापुर क्षेत्र में धरने पर बैठे एक युवक की ठंड लगने से मौत होने की सूचना से हड़कंप मच गया। बताया गया कि भूमि अधिग्रहण की नई नीति के तहत मुआवजे की मांग को लेकर शताब्दी नगर सैक्टर-4 बी में भाकियू का धरना जारी है। वहीं, कुछ किसान पानी की टंकी पर बैठकर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।


किसानों ने बताया कि धरने पर बैठे राहुल चौधरी (27) की बीती रात ठंड लगने से मौत हो गई। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता विजयपाल घोपला का कहना है कि इस मामले में शासन-प्रशासन ढुलमुल रवैया अपना रहा है। पहले भी कई किसान धरने पर अपनी जान गवां चुके हैं।


मौके पर मौजूद किसान मृतक की मां को सरकारी नौकरी और एक करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं। भाकियू नेता विजयपाल घोपला ने कहा कि अगर मांग पूरी नहीं की गई तो शव उठने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा इस बार किसान चुप बैठने वाले नहीं हैं।


सपा नेता पवन गुर्जर तमाम कार्यकतार्ओं के साथ मौके पर पहुंचे हैं। सपा नेता ने किसानो के धरना स्थल पर बैठ कर किसानो के साथ धरना प्रदर्शन में हिस्सा लिया और कहा कि सपा सदैव ही किसानों के साथ है।





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किसानों के वापस जाने से सूना हुआ एसकेएम मु्ख्यालय, पहले रहती थी खूब चहल-पहल

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसानों के अपने-अपने घरों की ओर लौटने के बाद शनिवार को सिंघू बॉर्डर पर स्थित संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के मुख्यालय में सन्नाटा पसर गया। कृषि कानूनों के निरस्त कर दिया गया है, जिनके खिलाफ किसानों ने लगभग एक साल तक विरोध प्रदर्शन किया।


हरियाणा के कुंडली में प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा बंद किये राजमार्ग पर टाइल के गोदाम में स्थित एसकेएम मुख्यालय आंदोलन के दौरान किसानों का केंद्र हुआ करता था। यहां अनिगन बैठकें और संवाददाता सम्मेलन हुए।


मुख्यालय के लोहे के जिस द्वार पर एसकेएम के स्वयंसेवक आगंतुकों पर नजर रखते थे, आज सुबह वहां सन्नाटा पसरा दिखा। किसान अपने तंबू और अन्य ढांचे उखाड़ने और सामान पैक करने में व्यस्त दिखे।


मुख्यालय के अंदर लगभग साठ साल की आयु के व्यक्ति बलिराम भोजन कर रहे थे। वह गोदाम में चौकीदार के तौर पर काम करते हैं।


बिहार के बेगुसराय के रहने वाले बलिराम ने कहा, ''इस जगह बहुत चहल-पहल रहती थी और किसान नेता यहां रोजाना बैठकें और चर्चा करते थे। अब देखिये, मैं यहां अकेला हूं।''


पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान संघों के नेताओं ने एसकेएम मुख्यालय में अपनी कई महत्वपूर्ण बैठकें कीं, जिसमें पिछले बृहस्पतिवार को हुई एक बैठक भी शामिल है, जिसमें उन्होंने अपना आंदोलन स्थगित करने और राजमार्ग खाली करने की घोषणा की थी।


एसकेएम 40 किसान संघों का नेतृत्व करने वाला संगठन है, जो केंद्र के तीन कृषि कानूनों कानूनों को निरस्त करने और फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहा था।





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यूपी गेट पर किसानों ने मनाया विजय दिवस

गाजियाबाद : यूपी गेट बॉर्डर पर शनिवार को किसानों ने विजय दिवस मनाया। किसानों ने मंच से सुखमणी साहब का पाठ कर पूजा अर्चना की। यूपी गेट से रविवार सुबह को जत्थों के निकलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। जबकि भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत तीन दिन के दौरे के बाद सबसे बाद में यूपी गेट बॉर्डर छोड़ेंगे।


यूपी गेट पर सुबह से ही किसानों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। मंच पर सुबह करीब 10 बजे से सुखमणी साहब का पाठ शुरू हुआ। पाठ कर गुरुवाणी की गई। सुखमणी पाठ के दौरान ही भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत को सरूपा पहनाया गया। भाकियू राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि रविवार से तीन दिन में यूपी गेट बॉर्डर को खाली कर दिया जाएगा। सामान खोलने और बांधने में थोड़ा समय लगेगा। हालांकि रविवार से वह तीन दिन अमृतसर, चंडीगढ़ व हरियाणा के दौरे पर रहेंगे। चंडीगढ़ में चल रहे तीन धरने को समाप्त कराएंगे। हरियाणा में आयोजित होने वाली पंचायतों में भाग लेंगे। 14 दिसंबर की शाम को यूपी गेट वापस आएंगे। फिर 15 दिसंबर को यूपी गेट से वापस घर की ओर रूख करेंगे। वह सबसे बाद में ही यूपी गेट बॉर्डर से जाएंगे। साथ ही विभिन्न मुद्दों को लेकर राज्य सरकारों से वार्ता की जाएगी। 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी। जरूरत पड़ने पर सरकार से भी बात की जाएगी। सरकार समझौते के आधार पर किसानों की सभी बातों को मानेगी। मंच से भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैट ने किसान आंदोलन को सफल बनाने वाले किसान और अन्य लोगों को बधाई दी। इसके मंच से किसान नेता योगेंद्र यादव ने भी किसानों को बधाई और शुभकामनाएं दी।


यूपी गेट पर किसान के परिवारों के सदस्यों का पहुंचने का सिलसिला शनिवार को भी जारी रहा। बहनों ने किसानों का टीका कर उनके एक साल चले आंदोलन की जीत होने पर बधाई दी। किसानों का कई स्थानों पर टीका कर उनके ऊपर पुष्प वर्षा भी की। दिल्ली निवासी रीना चौहान ने बताया कि विजय दिवस किसानों की जीत का प्रतीक है। इस उपलक्ष्य को भव्य व यादगार बनाने के लिए अपने किसान भायों का टीका करने पहुंची हैं। उन्होंने दिनभर हजारों किसानों का टीका कर उनका मुंह भी मीठा किया।


यूपी गेट पर किसान के परिवारों के सदस्यों का पहुंचने का सिलसिला शनिवार को भी जारी रहा। बहनों ने किसानों का टीका कर उनके एक साल चले आंदोलन की जीत होने पर बधाई दी। किसानों का कई स्थानों पर टीका कर उनके ऊपर पुष्प वर्षा भी की। दिल्ली निवासी रीना चौहान ने बताया कि विजय दिवस किसानों की जीत का प्रतीक है। इस उपलक्ष्य को भव्य व यादगार बनाने के लिए अपने किसान भायों का टीका करने पहुंची हैं। उन्होंने दिनभर हजारों किसानों का टीका कर उनका मुंह भी मीठा किया।


यूपी गेट पर अधिकांश किसानों के माथे पर तिलक ही लगा नजर आया। कुछ लोगों के पहुंचने पर किसान तिलक को विजय का प्रतीक बताते दिखे। किसान मूछों में ताव देकर विजयी तिलक कहकर इतराते दिखे। साथ ही किसान घर वापस जाने और खुशी मनाने के पीछे सरकार द्वारा भेजे गए लिखित प्रपत्र का भी बखान किया। किसानों ने कहा कि अब सरकार ने सब कुछ लिखित में दिया है तो सरकार को कुछ वक्त देना चाहिए।


यूपी गेट पर शनिवार को काफी भीड़ बढ़ गई। किसान अपनी सहूलियत व सुविधाओं के हिसाब से पहुंचते रहे। इससे यूपी गेट पर चारों को लोगों के अलावा वाहन ही वाहन नजर आए। यूपी गेट के अलावा मैक्स के सामने स्थित सड़क पर भी वाहन खड़े दिखे। यूपी गेट पर यूपी, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड व महाराष्ट्र के नंबरों की लिखे वाहन खड़े दिखे। इनमें सबसे ज्यादा वाहन यूपी के अलावा उत्तराखंड के ही रहे।


यूपी गेट पर कुछ युवा किसान लंगर का खाना खाकर मौज मस्ती भी करते दिखे। इनमें से कुछ युवा किसान दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे की लेन पर क्रिकेट खेलते भी दिखे। कभी-कभी उनकी बॉल एक्सप्रेसवे दिल्ली की ओर से आने वाली लेन पर भी पहुंचती रही। साथ ही कुछ बच्चे एक्सप्रेसवे पर गिल्ली डंडा खेल का भी आनंद लेते दिखे।


किसान आंदोलन के दौरान भी यूपी गेट से एंबुलेंस सहित जरूरी सेवाओं से जुड़े लोगों को निकाला जा रहा है, लेकिन शनिवार को यूपी गेट पर वाहनों का दबाव बढ़ने, सामान को लादने, किसानों की भीड़ बढ़ने से आवागमन में परेशानी आई रही। साथ ही एंबुलेंसों को निकलने में सबसे ज्यादा परेशानी आई। भीड़भाड़ के चलते उनका तेजी निकलना दिनभर प्रभावित हुए रहा। ऐसे में किसानों ने एंबुलेंस को निकालने में मदद की। जबकि, पैदल चलने वाले लोगों को वाहनों के आवागमन करने से मंच तक पहुंचने में परेशानी आई। एक दूसरे को मिठाई खिलाने का सिलसिला भी गेट से लेकर मंच संचालन तक चलता रहा। इससे भी जगह-जगह किसानों की भीड़ लगी रही।


वहीं तड़के से ही किसानों ने अपने-अपने टेंट, झोपड़ी व कैंपों को खोलना शुरू कर दिया। दूरदराज के किसान तंबू खोलने और अपना सामान बांधने में जुटे रहे।खोड़ा किसान चेक पोस्ट के आसपास से लेकर मंच और मैक्स के पास वाले प्रवेशद्वार के आसपास से भी कई झोपड़ी व टेंट हट गए। किसानों ने उनको अपनी सुविधानुसार ट्रक, मेटाडोर व टैक्टर में भरा। फिर उनको अपने घरों की ओर रवाना कर दिया। जबकि कुछ किसानों को स्थाई कैंप, टेंट व झोपड़ियों को खोलने में खासी परेशानी आ रही है। शुरूआत में टेंट व झोपड़ियों को वेल्डिंग मशीन से बेल्ड कर दिया था। टेंट व झोपड़ी की छत आसानी से खोल दी गई। लेकिन लोहे के ढांचे को हटाने में मशीनों का प्रयोग करना पड़ा। युवा किसान टेंट व झोपड़ियों की छत पर चढ़े नजर आए। उन्होंने ग्लैडर मशीन व ड्रिल मशीन से लोहे के ढांचे को खोला। जबकि बुजुर्ग किसान नीचे ही रहकर युवाओं को काम में मदद करते रहे।





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फूलों की बारिश से हुआ दिल्ली से पंजाब जा रहे किसानों का स्वागत

जींद :  दिल्ली में एक साल से अधिक समय तक विभिन्न मांगों को लेकर धरना दे रहे किसान अब घर वापिस जा रहे है। हाइवे के रास्ते दिल्ली से पंजाब जा रहे किसानों का जोरदार स्वागत बांगर के लोगों द्वारा किया गया।


खटकड़ टोल पर आस-पास के गांवों से भारी तादाद में किसान, युवा, मजदूर, महिलाएं पहुंची। यहां किसानों को फूलों की बारिश की गई।


हाइवे पर उचाना की अतिरिक्त मंडी के पास आढ़ती एसोसिएशन द्वारा लगाए गए भंडारे में पहुंचे पर किसानों का स्वागत किया। यहां पर हरियाणा, पंजाब भाईचारा जिंदाबाद के नारे लगाते हुए पंजाब, हरियाणा के किसान आपस में गले मिले। हाइवे पर खड़े होकर पंजाब जाने वाले किसानों को भंडारे में लेकर लोग जा रहे थे। उचाना की अतिरिक्त मंडी में लगे भंडारे में किसानों के लिए स्पेशल देशी घी की जलेबी के अलावा खीर, हलवा, पूरी-सब्जी, पकौडे का प्रबंध किया हुआ था। लस्सी, कढ़ी, रायत भी बनाया हुआ था। यहां पर सुबह पांच बजे से ही किसान आने लगे थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया किसानों की संख्या यहां पर बढ़ती गई। करीब दस हजार से अधिक किसानों के खाने की व्यवस्था की हुई थी। आस-पास के गांवों से पहुंचे किसान गांव से दूध लेकर यहां पहुंचे ताकि चाए, खीर में दूध की कमी न पड़े। दिल्ली से आ रहे किसानों ने अपने-अपने ट्रैक्टरों को फूलों, गुब्बारों से सजाया हुआ था।


अतिरिक्त मंडी में लगाए गए डीजे पर किसानी गाने पूरे दिन बजे। यहां पर युवा, बुजुर्ग, महिलाएं डीजे पर झूमी। बुजुर्ग महिला राजकौर, बलिंद्रकौर ने कहा कि अपनी जमीन, युवा पीढ़ी को लेकर लड़े गए इस आंदोलन में जीत किसानी की हुई। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, यूपी के साथ-साथ सभी के भाईचारे की जीत इस आंदोलन में हुई। सरकार को झूकना पड़ा जो कानून सरकार ने बनाए थे उन्हें वापिस लेना पड़ा। पंजाब से आ रहे किसानों ने हरियाणा के किसानों को पगड़ी बांध कर स्वागत भी किया।


किसानों ने कहा कि एक साल तक धरनों पर ही हर पर्व मनाए गए। अब घर वापिसी के बाद आज का दिन उनके लिए होली, दिवाली जैसा है। 700 से अधिक किसानों को इस आंदोलन में खोने का दर्द है। ये जीत आंदोलन में जो मौत का ग्रास बने किसान है उनको समर्पित है। आंदोलन में किसानों ने देखा कि कौन उनके साथ है कौन उनके खिलाफ।




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सिंघू धरना स्थल पर किसानों की भावनाएं हिलोरे मार रहीं, कई जगह यातायात प्रभावित

नई दिल्ली/चंडीगढ़ : दिल्ली-हरियाणा सीमा पर एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के पश्चात किसानों के घर लौटने के क्रम में शनिवार को फूलों से लदी ट्रैक्टर ट्रॉलियों के काफिले 'विजय गीत' बजाते हुए सिंघू धरना स्थल से बाहर निकल गए, लेकिन इस दौरान किसानों की भावनाएं हिलोरें मार रही थीं। सिंघू बॉर्डर छोड़ने से पहले, कुछ किसानों ने 'हवन' किया, तो कुछ ने कीर्तन गाये, जबकि कुछ किसान 'विजय दिवस' के रूप में इस दिन को चिह्नित करने के लिए 'भांगड़ा' करते नजर आये।


उधर, पंजाब और हरियाणा में सिंघू बॉर्डर से लौटे किसानों की घर-वापसी पर मिठाइयों और फूल-मालाओं से जोरदार स्वागत करने का सिलसिला शुरू हो गया है। दिल्ली-करनाल-अम्बाला और दिल्ली-हिसार राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही नहीं, बल्कि राजकीय राजमार्गों पर अनेक स्थानों पर किसानों के परिजन अपने गांववालों के साथ किसानों का स्वागत करते नजर आये। इस अवसर पर लड्डू-बर्फी भी बांटे जा रहे हैं।


ट्रैक्टर ट्रॉलियों और अन्य वाहनों के हुजूम की वजह से दिल्ली-सोनीपत-करनाल राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहनों की रफ्तार धीमी पड़ गई। दूर-दूर तक वाहनों का काफिला नजर आ रहा है।


मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान, तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में और इन कानूनों को वापस लिये जाने की मांग को लेकर पिछले साल 26 नवंबर को बड़ी संख्या में यहां एकत्र हुए थे।


संसद में 29 नवम्बर को इन कानूनों को निरस्त करने तथा बाद में एमएसपी पर कानूनी गारंटी के लिए एक पैनल गठित करने सहित विभिन्न मांगों के सरकार द्वारा मान लिये जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने बृहस्पतिवार को विरोध प्रदर्शन स्थगित करने की घोषणा की थी।


अब जब सिंघू बॉर्डर से किसान अपने घरों को लौटने लगे हैं तो उनकी भावनाएं उफान पर हैं और मन में खुशियां हिलोरें मार रही हैं। ये किसान पिछले एक साल साथ रहने के बाद एक-दूसरे से विदाई लेते वक्त आपस में गले मिलते और बधाई देते नजर आए।


सिंघू बॉर्डर से रवाना होने को तैयार अम्बाला के गुरविंदर सिंह ने कहा, ‘‘यह हमलोगों के लिए भावनात्मक क्षण है। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारा बिछोह इतना कठिन होगा, क्योंकि हमारा यहां लोगों से और इस स्थान से गहरा लगाव हो गया था। यह आंदोलन हमारे यादों में हमेशा मौजूद रहेगा।’’


यद्यपि कुछ किसान सिंघू बॉर्डर पर केएफसी के निकट पेट्रॉल पम्प पर इकट्ठा होकर कीर्तन और अरदास कर रहे थे तो कुछ टेंट को उखाड़ने और उन्हें ट्रैक्टर ट्रॉलियों पर लादने में मदद कर रहे थे। उसके सौ-दो सौ मीटर की दूरी पर ही पंजाब के युवकों का एक समूह जीत की खुशी में पंजाबी गानों पर भांगड़ा नृत्य कर रहे थे।


सिंघू बॉर्डर पर पुलिस की उपस्थिति बहुत ही कम थी और जितने भी पुलिसकर्मी वहां मौजूद थे, उनके चेहरे पर सुकून के भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे। एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘‘हम अपनी ड्यूटी बेहतर तरीके से कर रहे थे। प्रदर्शन के समाप्त हो जाने से निश्चित तौर पर यात्रियों और स्थानीय लोगों को बड़ी राहत मिलेगी।’’


इस बीच वाहनों के काफिले की वजह से विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात की गति धीमी हो गयी है।


सोनीपत के एक यातायात पुलिस अधिकारी ने कहा कि सोनीपत-करनाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर वाहन धीरे-धीरे चल रहे हैं। कुछ वाहन राजमार्ग पर गलत साइड से घूस आये हैं, जिसकी वजह से भी वाहनों की आवाजाही में समस्या खड़ी हुई है। दिल्ली-रोहतक राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी कुछ स्थानों पर जाम की स्थिति बनी हुई है।



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किसानों ने टेंट खोलने और सामान पैक करने की तैयारी शुरू

गाजियाबाद : यूपी गेट पर सालभर से जमी करीब 200 से 250 टेंट व झोपड़ियों को सिमटने की कवायद शुक्रवार से शुरू कर दी गई। किसान टेंटों के अंदर सामान बांधने में जुट गए हैं। दूरदराज के किसानों ने गैर जरूरी सामान को भिजवा भी दिया। दिनभर यूपी गेट पर किसान एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर व डांस कर जश्न मनाते भी दिखे।


फैसले के मुताबिक, किसान 11 दिसंबर को घर लौटने की तैयारी में हैं। शुक्रवार सुबह को पंजाब, हरियाणा सहित दूरदराज के किसानों ने अपने टेंटों को खोलना शुरू कर दिया। कुछ किसान ट्रैक्टर व मेटाडोर आदि में सामान लादकर ड्राइवर को सामान सहित निकालते रहे। सुबह से युवा किसान अपने टेंट व झोपड़ी आदि को खोलने में जुट गए। इस कार्य में बुजुर्गों ने भी मदद की। किसानों के टेंट के अंदर से अपना जरूरी सामान डिब्बे, गत्ते व कट्टों आदि में भरा। ताकि, आसानी से सामान को घर पहुंचाया जा सके और घर लौटते समय किसी तरह की परेशानी नहीं आए। एक दो बुजुर्ग किसान अपने कंधे पर ही सामान लादकर पैदल ही निकलते दिखे।


वहीं आसपास के किसान सामान समेटने को लेकर पूरी तरह से निश्चिंत दिखे। अधिकांश किसान अपनी ट्राली आदि को ही तंबू व टैंट बनाकर रख रहे थे। अब उनको महज ट्राली में ट्रैक्टर जोड़कर गांव की ओर निकलना है। इसको लेकर किसान अपने परिजनों से ट्रैक्टर की व्यवस्था करने को लेकर फोन पर बात करते रहे। किसानों के मुताबिक जश्न से अगले दिन शनिवार को किसानों के निकलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।


यूपी गेट पर सुबह के समय किसानों के सामान्य ही चहल पहल रही। इसके बाद दोपहर से किसानों के यूपी गेट पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। किसानों के परिवार सहित महिलाएं भी शनिवार को मंच से होने वाले विदाई कार्यक्रम में शामिल होने की लिए पहुंची। पीलीभीत से पहुंचे सुखविंदर ने बताया कि किसानों को जीत की बधाई देने और जशन में शामिल होने के लिए पहुंचे हैं। वह परिवार सहित यूपी-26 नाम से बने कैंप में रुकेंगे।


यूपी गेट पर दिनभर मुंह मीठा कराने का सिलसिला भी जारी रहा। किसानों ने एक दूसरे को जलेबी, बर्फी, रसगुल्ले, लड्डू आदि खिलाकर जीत की बधाई दी। यूपी गेट पर प्रवेश द्वार के पास ही लंगर व भोजनालय के अलावा मेज लगाकर मिठाई बांटी गई। किसान मिठाई खाने के साथ-साथ डांस करने से भी खुद को रोक नहीं पाए। किसानों के अलावा उनके परिवार से पहुंचे लोग भी ट्रैक्टर आदि पर लगे डीजे व साउंड सिस्टम पर नाचते रहे। जबकि युवा किसान ट्रैक्टर पर लगे झंडे व साउंड सिस्टम का आनंद लेते हुए राउंड मारते रहे। साउंड सिस्टम की पर बजती धुन से यूपी गेट का माहौल कुछ और नहीं नजर आया।


यूपी गेट पर शनिवार को होने वाले जश्न की तैयारियां लंगर व भोजनालय में भी देखने को मिली। लंगर व भोजनालयों में सुबह से मिष्ठान आदि को बनाया जाना शुरू हो गया। लंगरों में देशी घी के मिठाई व कच्ची इमरती बनाए जाने की तैयारिया जोरों पर दिखीं। इसके लिए लंगर में लगे किसान भी कड़ी मेहनत करते दिखे। कोई रसगुल्ले की गोली तो कोई बख्खर बनाने में जुटे रहे।


किसानों का एक साल से आंदोलन जारी रहा। संघर्षरत किसानों और सरकार के बीच सहमति बन गई। किसान आंदोलन समाप्त कर अपने घरों को लौट जाएंगे। किसानों ने समाधान निकलने पर ईश्वर का धन्यवाद करते दिखे। किसानों के मुताबिक शुक्रवार सुबह को किसान नेता राकेश टिकैत समेत पदाधिकारी यूपी गेट से जाकर दिल्ली बंग्ला साहिब में मत्था टेकने के लिए गए। सभी ने मत्था टेककर दुआएं मांगी।


यूपी गेट पर सुबह को किसानों ने हवन कर पूजा अर्चना की। किसानों के हवन में आहुति देकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। आहुति देने वालों में युवाओं के अलावा बुजुर्ग किसान भी शामिल रहे।






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प्रदर्शनस्थल घर की तरह थे, जीवन भर याद रहेंगे : किसानों ने कहा

 नई दिल्ली : दिल्ली के तीन सीमा स्थलों पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय तक आंदोलन करने वाले कई किसानों ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि प्रदर्शनस्थल घर की तरह थे और उन्हें ये दिन जीवनभर याद रहेंगे।


संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने घोषणा की है कि हजारों प्रदर्शनकारी 11 दिसंबर से विरोध स्थलों को खाली करना शुरू कर देंगे।


इस घोषणा के बाद पटियाला के रहने वाले लगभग 65 वर्षीय अमरीक सिंह ने कहा कि उन्होंने सिंघू बॉर्डर पर अपने तम्बू में घर जैसा महसूस किया और इसे छोड़ने की बात सोचकर लग रहा कि कुछ छूट रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे यह सब पीछे छोड़ने और संघर्ष की उन सभी यादों, खुशी के पल और दोस्तों को छोड़ने का मन नहीं करता है।’’


पिछले साल 26 नवंबर से किसानों ने दिल्ली के सीमावर्ती स्थल -सिंघू, गाजीपुर और टीकरी में राजमार्गों की घेराबंदी कर दी थी और अपने रहने का इंतजाम कर लिया था।


लुधियाना के एक किसान सौदागर सिंह ने सालभर के विरोध प्रदर्शनों के दौरान अपने संघर्षों को याद करते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शनस्थल पर उन्हें कई नए दोस्त मिले। उन्होंने कहा, ‘‘हमने सोचा था कि सरकार हमारी नहीं सुनेगी और हमें यहीं रहना होगा। लेकिन आखिरकार हम जीत गए और कृषि कानून निरस्त हो गए। अब घर जाने का समय है और हमें अब अजीब लग रहा है।’’


कई किसान प्रदर्शनकारियों ने घर जाने की तैयारी करते हुए कहा कि वे रोजाना इस्तेमाल की कई चीजें यहीं छोड़ देंगे और अपने निजी सामान और वाहनों को ले जाएंगे। सौदागर सिंह ने कहा, ‘‘घर वापस ले जाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। इसमें से अधिकतर सामान स्थानीय लोगों को दिया जाएगा, जिनमें से कई यहां आते रहे।’’


केंद्र द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और किसानों की अधिकतर मांगों को स्वीकार करने के साथ, कई प्रदर्शनकारियों ने महसूस किया कि यह आंदोलन को समाप्त करने और घर वापस जाने का समय है।


ज्यादातर किसानों का कहना कि सिंघू बॉर्डर पर विरोध का उनका अनुभव जीवनभर याद रहेगा और वे इस जगह को याद करेंगे। सिंघू बॉर्डर पर एक प्रदर्शनकारी हरकीरत ने कहा, ‘‘हमने विरोध के दौरान मारे गए अपने किसान भाइयों के लिए एक स्मारक बनाये जाने की मांग की है। एक बार यहां स्मारक बन जाएगा तो हम बार-बार इस जगह पर आएंगे।’’


किसान संगठनों का दावा है कि कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर के आंदोलन के दौरान विभिन्न स्थानों पर 700 से अधिक किसानों की मौत हुई। ऐसे कई प्रदर्शनकारी भी हैं जो अपने नेताओं की इच्छा पर आने वाले कई दिनों तक धरना स्थल पर रुकने के लिए तैयार हैं।


अयोध्या से आए कमलापति बागी ने कहा, ‘‘हमने यहां सभी व्यवस्था की। बीच-बीच में हम अपने घर जाते थे और विरोध में शामिल होने के लिए फिर से वापस आ जाते थे। जरूरी हुआ तो हम महीनों और वर्षों तक रह सकते हैं।’’


फतेहगढ़ साहिब के एक युवा प्रदर्शनकारी बलप्रीत सिंह ने कहा कि विरोध समाप्त हो सकता है लेकिन किसानों के लंबित मुद्दों पर संघर्ष जारी रहेगा।




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