धर्मस्थलों के तेज साउंड पर पुलिस का एक्शन

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में सोमवार सुबह-सुबह ही पुलिस ने मजहबी ‘शोर’ पर एक्शन ले लिया. प्रतापगढ़ में 350 लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों से उतारे गए. पुलिस ने भोर 5:00 बजे से 7:00 बजे तक ध्वनि प्रदूषण फैला रहे ऐसे धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर उतरवाने की कार्रवाई की. साथ ही धार्मिक स्थलों पर नियम कानून का उल्लंघन कर लाउडस्पीकर लगाने पर एफआईआर की भी कार्रवाई की जा रही है.

प्रतापगढ़ के नगर कोतवाली, रानीगंज, लालगंज, कुंडा, पट्टी समेत सभी थाना क्षेत्रों में यह एक्शन हुआ. शासन के निर्देश पर सुबह 5 बजे से ही एसपी सतपाल अंतिल समेत सभी पुलिस अफसर अपने-अपने सर्किल क्षेत्र में स्थित धार्मिक स्थल का औचक निरीक्षण करने पहुंचे. इस दौरान पाया गया कि मस्जिद और मंदिर समेत कई सार्वजनिक स्थल पर पुलिस प्रशासन के निर्देशों के बाबजूद तेज लाउडस्पीकर के जरिए ध्वनि प्रदूषण किया जा रहा था. जिसके बाद पुलिस ने मस्जिदों और मंदिरों से लाउडस्पीकर को उतरवा कर उन्हें जब्त कर लिया. पुलिस की इस कार्रवाई से धार्मिक स्थल के मौलाना और पुजारियों में हड़कंप मचा रहा.

एसपी सतपाल अंतिल का कहना है कि शासन और पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर आज जिले में सभी अफसर, थाना अध्यक्ष  और चौकी प्रभारी द्वारा अवैध लाउडस्पीकरों पर कार्रवाई की जा रही है. क्षेत्र में धार्मिक स्थलों पर अधिक तय मानक अधिक आवाज में लाउडस्पीकर बजाए जा रहे थे. जिनके खिलाफ एक्शन लिया गया है. साथ ही लगातार संवाद स्थापित करते हुए लाउडस्पीकर की आवाज काम करने का निर्देश दिया गया था. पर बार-बार मना करने के बाद भी निर्देशों का उल्लंघन करने वाले ऐसे धार्मिक स्थलों के संचालक पर एफआईआर दर्ज कराई जा रही है.


...

छठी मैया के व्रतियों के लिए दंड प्रणाम साधना से कम नहीं

 छठ पूजा व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेटकर घर से छठ घाट तक जाना है. इस साधना को दंडी या दंड प्रणाम (Dand Pranam) कहा जाता है. इसका संबंध मन्नत से जुड़ा है.

लोक आस्था का पर्व छठ पूजा का यूं ही कठिन नहीं माना जाता है. एक तो इसमें व्रती को 36 घंटे तक निर्जल रहना पड़ता हैं. वहीं इस पर्व को मनाने के लिए पवित्रता के सख्त नियम लोगों पर काफी भारी पड़ता हैं, लेकिन इस पर्व में सबसे ज्यादा कठिनाई का उन्हें करना पड़तो हैं जो इच्छित मनोकामना पूर्ण होने की वजह से माता छठी का दंड प्रणाम देने के वादे से बंधे होते हैं.

निर्जल व्रत रख दंड प्रणाम आसान नहीं

छठ पर्व में दंड प्रणाम को सबसे कठिन इसलिए माना गया है कि इसमें दंड देने वाले को भी 36 घंटे तक निर्जल व्रत के नियमों का पालन करना होता है. साथ ही व्रती को जमीन पर लेटकर सशीर दंड प्रणाम देते हुए  सड़क होते हुए पूजा घाट तक पहुंचना होता है. इतना ही नहीं, यह काम शाम में अस्ताचल और सुबह के समय सूर्य को अर्घ देने तक पानी में खड़ा भी अन्य व्रतियों के साथ होना पड़ता है. 36 घंटे का निर्जला उपवास दंड देते हुए घाट तक जाना किसी साधना से कम नहीं माना जाता है. दंड प्रणाम देने वाले लोगों को देखकर छठी माता के भक्तों में यह सवाल उठता है कि आखिर इस तरह दंड देकर घाट तक लोग क्यों जाते हैं. 

इसे कहा जाता है दंड प्रणाम

दरअसल, छठ व्रत का सबसे कठिन साधना जमीन पर लेटकर घर से छठ घाट तक जाना है. इस साधना को दंडी या दण्ड प्रणाम भी कहा जाता है. इसका संबंध मन्नत जुड़ा है. बहुत कम लोग जानते हैं कि छठ पूजा को मन्नतका पर्व भी माना जाता है. जो भी माता या पिता या कोई और व्यक्ति छठी माता और सूर्य भगवान की श्रद्धा पूर्वक आराधना करते हैं, उनकी मनोकामनायें जरूर पूर्ण होती हैं. जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वो दंड प्रणाम देते हैं. दंड प्रणाम देने वाले व्रती सूर्य भगवान के 12 नाम को एक-एक जाप कर जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई बराबर निशान देते हुए आगे बढ़ते हैं. हर बार उठकर सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं. यह प्रक्रिया तब तक करते हैं ज तक कि घाट तक वो पहुंच न जाएं. प्राचीन समय में तो इस तरह केवल 13 बार दंड देने का प्रावधान था लेकिन परंपराएं बदलीं और लोग घर से छठ घाट तक दंड देकर जाने लगे हैं.

ये है दंड देने की प्रक्रिया

बता दें कि छठ पर्व पर संतान प्राप्ति और बीमारी से छुटकारा को लेकर जिनकी मनो कामना पूरी होती हैख् वे दंड देते हैं. दंड देने वाले पुरुष या महिलाओं के एक हाथ में लकड़ी होता है जो आम का होता है. व्रती जमीन पर लेटकर अपने शरीर की लंबाई का लकड़ी सें एक निशान लगाते हैं. फिर उसे निशान पर खड़े को सूर्य भगवान को प्रणाम करते हैं. यह प्रक्रिया छठ घर से नदी घाट तक चलती है. दंड प्रणाम ढलते सूर्य को अर्घ देने के समय और उगते सूर्य को अर्घ देने के समय किया जाता है. महिलाओं और पुरुष के द्वारा दंड प्रणाम के बाद ही लोग डाला लेकर घाट तक जाते हैं. यही वजह दंड प्रणाम को सबसे कठिन साधना माना गया है. ऐसा करने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते हैं. 


...

भक्तों ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

अमरोहा के हसनपुर में शनिवार को शरद पूर्णिमा के अवसर पर पूठ गंगा धाम एवं मुबारिजपुर गंगा घाट पर आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ा। हर हर गंगे के जयकारों से गंगा घाट गुंजायमान हो गए। दूर दराज इलाकों से आकर श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान किया।

स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने गरीबों, ब्राह्मणों को दान-पुण्य किया। शरद पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। पंडित प्रमोद शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से भगवान शिव और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा बरसती है। इस मान्यता के चलते हसनपुर तहसील क्षेत्र में स्थित गंगा घाट पूठ धाम, मुबारिजपुर गंगा घाट, पौरारा गंगा घाट पर स्नान के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।

गंगा घाटों पर कई जगह भंडारे में प्रसाद का वितरण किया गया। श्रद्धालुओं ने व्रत रखकर मन्नतें मांगी। सुबह से श्रद्धालु गंगाघाट पर स्नान को पहुंचने लगे। हर हर गंगे के जयकारों के बीच श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ कमाया। गंगास्नान कर श्रद्धालुओं ने मां गंगा का दुग्धाभिषेक किया। इस दौरान श्रद्धालु अपने-अपने वाहनों से गंगा घाट पहुंचे।

...

क्यों मेघनाद का वध केवल लक्षमण ही कर सकते थे?

लंका के युद्ध के कुछ वर्षों बाद एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए। श्रीराम ने उनकी अभ्यर्थना की और आसन दिया। राजसभा में श्रीराम अपने भ्राता भरत, शत्रुघ्न और देवी सीता के साथ उपस्थित थे। बात करते-करते लंका युद्ध का प्रसंग आया। भरत ने बताया कि उनके भ्राता श्रीराम ने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा। 

अगस्त्य मुनि बोले - "हे भरत! रावण और कुंभकर्ण निःसंदेह प्रचंड वीर थे, किन्तु इन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और उन्हें पराजित कर लंका ले आया था। तब स्वयं ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए। और ये भी सत्य है कि इस पूरे संसार में मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और मार भी नहीं सकता था, यहाँ तक कि स्वयं श्रीराम भी नहीं।" भरत को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे। 

उन्होंने श्रीराम से पूछ कि क्या ये बात सत्य है और जब राम ने इसकी पुष्टि की तो भी भरत के मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था? उन्होंने पूछा "हे महर्षि! अगर आप और भैया ऐसा कह रहे हैं तो ये बात अवश्य ही सत्य होगी और मुझे इस बात की प्रसन्नता भी है कि मेरा भाई विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है किन्तु फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्या रहस्य है कि मेघनाद को लक्षमण के अतिरिक्त कोई और नहीं मार सकता था?"

अगस्त्य मुनि ने कहा - "हे भरत! मेघनाद ही विश्व का एकलौता ऐसा योद्धा था जिसके पास विश्व के समस्त दिव्यास्त्र थे। उसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हा का ब्रम्हास्त्र, नारायण का नारायणास्त्र एवं महादेव का पाशुपतास्त्र भी था और उसे ये वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता था इसी कारण वो अजेय था। उस समय संसार में केवल वही एक योद्धा था जिसने अतिमहारथी योद्धा का स्तर प्राप्त किया था। 

ये सत्य है कि उसके सामान योद्धा वास्तव में कोई और नहीं था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा ली और समस्त दिव्यास्त्र प्राप्त किये। भगवान रूद्र ने स्वयं ही उसे रावण से भी महान योद्धा बताया था और उसकी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात कहा था कि वो एक सम्पूर्ण योद्धा बन चुका है और इस संसार में तो उसे कोई और परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्हें संदेह है कि स्वयं वीरभद्र भी मेघनाद को परास्त कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी परम पवित्र पत्नी सुलोचना का सतीत्व भी उसकी रक्षा करता था।"

इसपर भरत ने कहा "हे महर्षि! आपके मुख से मेघनाद की शक्ति का ऐसा वर्णन सुनकर विश्वास हो गया कि वो वास्तव में महान योद्धा था किन्तु बात अगर केवल दिव्यास्त्र की है तो श्रीराम के पास भी सारे दिव्यास्त्र थे। उन्होंने भी त्रिदेवों के महास्त्र प्राप्त किये। साथ ही साथ महाबली हनुमान को भी ये वरदान था कि उनपर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होगा और उनके बल और पराक्रम का कहना ही क्या?

 लक्ष्मण निःसंदेह महा-प्रचंड योद्धा थे और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे किन्तु उसे पाशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाद को था। फिर भी लक्षमण किस प्रकार मेघनाद का वध करने में सफल हुए। और आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे?"

इसपर अगस्त्य मुनि ने कहा "आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाद के पास थे उतने लक्ष्मण के पास नहीं थे किन्तु इंद्रजीत को ये वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जिसने:

चौदह वर्षों तक ब्रम्हचर्य का पालन किया हो। 

चौदह वर्षों तक जो सोया ना हो। 

चौदह वर्षों तक जिसने भोजन ना किया हो। 

चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख ना देखा हो।

पूरे विश्व में केवल लक्ष्मण ही ऐसे थे जिन्होंने मेघनाद के वरदान की इन शर्तों को पूरा किया था इसी कारण केवल वही मेघनाद का वध कर सकते थे।"

तब श्रीराम बोले "हे गुरुदेव! मेघनाद और लक्ष्मण दोनों के बल और पराक्रम से मैं अवगत हूँ। अगर शक्ति की बात की जाये तो निःसंदेह इन दोनों की कोई तुलना नहीं थी। लक्ष्मण के ब्रम्हचारी होने की बात मैं समझ सकता हूँ किन्तु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उसे देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था और बगल की कुटी में लक्ष्मण…

Edit By Priya Singh

...

मंदिर ढहा, 5 की मौत:25 से ज्यादा लोग दबे

उपभोक्ता जनघोष:  हिमाचल की राजधानी शिमला में सोमवार सुबह बड़ा हादसा हो गया। यहां के समरहिल इलाके में स्थित शिव बावड़ी मंदिर भारी बारिश की वजह से भूस्खलन की चपेट में आ गया। यहां मौजूद 25 से ज्यादा लोग मलबे में दब गए। अब तक 2 बच्चों समेत 5 शव निकाले जा चुके हैं। बाकी की तलाश जारी है।

यह मंदिर शिमला के उपनगर बालूगंज इलाके में है। सावन सोमवार होने की वजह से मंदिर में सुबह से भीड़ थी। कई परिवार दर्शन के लिए गए थे।

बारिश से रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कत
भारी बारिश की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कत हो रही है। पहाड़ी से अभी भी पत्थर गिर रहे हैं। मंदिर के ऊपर मलबे के साथ चार से पांच पेड़ आ गिरे। इससे ज्यादा नुकसान हुआ है। SDRF, ITBP, पुलिस और स्थानीय लोग रेस्क्यू में जुटी हुई है। जेसीबी मशीन से मलबा हटाया जा रहा है।

अभी लोग मलबे में दबे, फोन कर मदद करने की गुहार लगा रहे

  • 4 भतीजे मंदिर में खीर बनाने गए थे: स्थानीय निवासी किशोर ठाकुर ने बताया कि उनके 4 भतीजे भी मंदिर के अंदर फंसे हुए है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कह रहे कि मंदिर के अंदर फंसे लोगों के रेस्क्यू के लिए फोन आए हैं। यह सच्चाई है या अफवाह, इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि मंदिर में हर साल 15 अगस्त को भंडारा होता है और आज सावन का अंतिम सोमवार है। इसलिए भी उनके भतीजे सहित मंदिर में छह-सात लोग खीर बनाने के लिए मौजूद थे।
  • सामान घर भूलने से बची जान: शिव मंदिर में खीर बनाए आए नरेश ने बताया कि जब वह सुबह मंदिर आया था, तब यहां सब कुछ ठीक-ठाक था। वह कुछ सामान घर पर भूल गया। इसलिए मंदिर से वापस घर गया। जैसे ही दोबारा घर से मंदिर पहुंचा तो लैंडस्लाइड शुरू हो गया था और तबाही का यह मंजर उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा। उन्होंने बताया कि हादसे के वक्त मंदिर में दो कारपेंटर, एक नेपाली और कुछ लोग मौजूद थे। लोकल लोगों ने नेपाली को उसी वक्त मलबे से निकाल दिया। मगर कुछ लोग मंदिर के अंदर फंसे हुए है।

CM सुखविंदर सिंह ने घटनास्थल का दौरा किया
CM सुखविंदर सिंह सुक्खू भी घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन मलबे को हटाने के लिए काम कर रहा है। फंसे लोगों को निकाला जा रहा है। उधर, CM के मीडिया एडवाइजर नरेश चौहान ने कहा, 10 से 15 लोगों के फंसे होने की आशंका है।

शिमला के ही फागली में 10-12 लोग मलबे में दबे

शिमला के ही फागली में आज सुबह के वक्त लैंडस्लाइड की चपेट में 10 से 12 लोग आ गए। इनमें से पांच को सुरक्षित रेस्क्यू कर दिया गया है, जबकि पांच से सात लोग अभी भी मलबे में फंसे हुए है। इन्हें रेस्क्यू करने का काम चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सुबह के वक्त कुछ टैम्परेरी ढारे मलबे की चपेट में आ गए।

सोलन में बादल फटा, 7 मरे, 3 लापता

हिमाचल में पिछले 55 घंटों से तेज बारिश हो रही है। शिमला के अलावा सोलन में भी लैंडस्लाइड के चलते हादसा हो गया। जादोन गांव में बादल फटने से एक ही परिवार के 7 लोगों की मौत हो गई। देर रात हुई इस घटना में दो घर बह गए, जिसमें 3 लोगों के लापता होने की भी खबर है। उधर मंडी जिले की बल्ह घाटी में तेज बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थिति बनी हुई है। ब्यास नदी उफान पर है। अधिकारियों के मुताबिक, यहां कई पर्यटक फंसे हुए हैं। राज्य में पिछले दो दिनों में 30 से ज्यादा घर पूरी तरह और 180 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए है। 

...

मैं कर्नाटक की हिजाब गर्ल हूं

पिछले साल कर्नाटक की हिजाब गर्ल खूब चर्चा में रही। दुनियाभर में सुर्खियां बटोरीं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट में जिरह हुई। सोशल मीडिया पर मीम्स बने। कई लोगों ने तारीफ की, विदेश में पढ़ाई के ऑफर मिले, तो कुछ लोगों ने विरोध भी किया।

मैं वहीं हिजाब गर्ल मुस्कान खान हूं। जिसने अपने कॉलेज में कुछ हिंदू कट्टरवादी लड़कों के जय श्री राम का नारा लगाने पर अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए थे। उसके बाद दुनियाभर में मेरी वाहवाही तो हुई, लेकिन जिस दौर से मैं और मेरा परिवार गुजरा, वो कभी भूल नहीं सकती।

मैं कर्नाटक के मंडेया की रहने वाली हूं। फिलहाल बीकॉम सेकेंड ईयर में हूं। मेरे तीन भाई-बहन हैं। अब्बू का अपना बिजनेस है। मां घर पर रहती हैं। अब्बू ने हमेशा हम भाई-बहनों को पढ़ाने पर जोर दिया। अब्बू का कहना था कि पढ़-लिखकर लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं, तो फिर उन्हें किसी के आसरे नहीं रहना पड़ेगा।

10वीं के बाद मेरे साथ की ज्यादातर लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी। उनकी शादी कर दी गई, लेकिन मैंने कॉलेज में दाखिला लिया, क्योंकि हमारे लिए पढ़ाई और परिवार ही सब कुछ था। राजनीति और किसी तरह की दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं था।

उस दिन कॉलेज में जो हुआ, उस पर हर किसी ने मुझ पर कमेंट किए। रिश्तेदार अब्बू से कह रहे थे कि इसे कॉलेज क्यों भेजा, हंगामा हो गया न, इन सब चीजों की क्या जरूरत थी…? पर अब्बू ने मेरा साथ दिया। हिम्मत बनकर वे मेरे साथ खड़े रहे। कोई और होता तो शायद पढ़ाई छुड़वा देता, कॉलेज भेजना बंद करा देता, लेकिन अब्बू ने कहा कि तुमने जो किया ठीक किया।

दरअसल, सारा विवाद शुरू होता है हिजाब से। इस्लाम इल्म की इजाजत देता है। औरत को आजादी देता है। मुझे लगता है कि हिजाब डालना या नहीं डालना उसकी निजी चॉइस है। कोई किसी पर थोप नहीं सकता है।

हम कभी भी स्कूल या कॉलेज बुर्का पहन कर नहीं गए। घर से बुर्का पहनकर जाते थे और कॉलेज में हमें ड्रेस बदलने के लिए एक कमरा दिया गया था। वहां बुर्का निकाल कर हम सिर पर स्कार्फ बांध लेते थे। जो लड़कियां स्कार्फ नहीं बांधती थीं, वे कंधे पर दुपट्टा लेती थीं। कभी उस अनुशासन को नहीं तोड़ा।

बीते साल की बात है। बड़े भाई का रोड एक्सीडेंट हो गया था। उसे सिर में गहरी चोट आई थी। वह सीरियस था। कुछ कहा नहीं जा सकता था। हम सब डिप्रेशन में थे। दिन-रात रोते और दुआ करते बीतता था। घर में मातम जैसा माहौल था। इसी वजह से कई दिनों से मैं स्कूल भी नहीं जा पा रही थी।

एक दिन मेरी क्लासमेट का फोन आया कि इकोनॉमिक्स का असाइनमेंट जमा करने की कल आखिरी तारीख है। मेरा ध्यान तो भाई में ही था, कोई तैयारी की नहीं थी। मैंने फौरन अपनी स्कूटी निकाली और कॉलेज पहुंच गई।

मुझे पता नहीं था कि कॉलेज में क्या चल रहा है। मैंने गेट पर स्कूटी खड़ी की। उस वक्त कुछ लड़के मुझे घूर रहे थे और जय श्री राम के नारे लगा रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं अंदर गई तो वे कहने लगे कि बुर्का निकालो, बुर्का निकालो, निकालो इसे।

जबकि मैंने चूड़ीदार सूट के साथ हिजाब पहना था। वहां सिर्फ मैं और नारा लगा रहे लड़के ही मौजूद थे। बाकी कोई और नहीं था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। फिर वे लोग एकदम मेरे सामने आ गए। नारेबाजी करने लगे। इस पर मैंने भी चिल्ला कर बोल दिया अल्लाह हू अकबर..अल्लाह हू अकबर...अल्लाह हू अकबर।

इससे वे लोग और गुस्से में आ गए, लेकिन मैं डरी नहीं। सच बताऊं, तो मुझे नहीं पता कि उस वक्त मुझे कहां से हिम्मत आई थी।

मैंने यह सब पहली बार देखा था। ऐसी भीड़ से पहली बार सामना हुआ था। मुझे अंदर से इतना गुस्सा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकती। मेरा दिल जार-जार रो रहा था कि मेरा भाई बिस्तर पर है, उसकी जिंदगी खतरे में है और ये लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं। मुझे परेशान कर रहे हैं। इसी बीच एक टीचर आए और मुझे कॉलेज के अंदर ले गए।

मैं कॉलेज में ही थी। इसी बीच मेरा वीडियो वायरल हो गया। एक सहेली ने बताया कि मुस्कान तेरा वीडियो यूट्यूब पर आ रहा है, मैंने ध्यान नहीं दिया। इतने में पता लगा कि कॉलेज में धारा 144 लग गई है। एक दोस्त ने मैसेज किया कि मुस्कान तुम टीवी पर आ रही हो, मैंने तब भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मुझे प्रिंसिपल ने बुलाया और पूछताछ की। मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया। थोड़ी देर बाद पुलिस भी आ गई। मुझे देखकर पूछने लगे कि तुम्हीं हो न वो? फिर मैंने अब्बू को फोन लगाया। उन्हें बताया कि मेरे साथ ऐसा-ऐसा हुआ है। अब्बू ने कहा कि कोई बात नहीं, तुम घर आ जाओ।

मैं घर पहुंची तो मेरा ही इंतजार हो रहा था। अब्बू के दोस्त भी घर पर ही थे। वे कह रहे थे कि देखो तुम्हारी बेटी ने क्या किया है। कैसे मीडिया में आ रही है। मैंने अब्बू को सारी बात बताई। मां लगातार रो रही थीं। वे कह रही थीं कि तुमने ऐसा क्यों किया, तुम्हें कुछ हो जाता तो…।

मैंने टीवी ऑन किया। मेरा ही वीडियो टीवी पर चल रहा था। इसी बीच मीडिया वाले भी घर आ गए। मीडिया वालों की कतार लग गई। सब आवाज दे रहे थे कि मुस्कान को बाहर भेजो, मुस्कान को बाहर भेजो। मुस्कान बताओ आखिर हुआ क्या था, घटना की जानकारी दो।

इस पर पहले तो अब्बू ने मुझे मना कर दिया कि कुछ कहना नहीं है, कहीं जाना नहीं है। इधर मीडिया की भीड़ बढ़ती जा रही थी। वे वापस जाने को तैयार नहीं थे। फिर अब्बू के कहने पर मैं बाहर आई और मीडिया को सारी बात बताई।

इसके बाद तो हर दिन मीडिया वाले घर आने लगे। विदेशी मीडिया वाले भी बहुत आए। हम लोग पागल हो गए थे, परेशान हो गए थे रोज-रोज एक ही सवाल का जवाब देते-देते।

खैर उस घटना के बाद अल्लाह ने दुनिया में इतनी इज्जत दी, इतनी शोहरत दी कि मेरे पास शब्द नहीं हैं। हर जगह से मुझे दुआएं और तारीफें मिल रही थीं। कॉलेज में जो मेरी नॉन मुस्लिम दोस्त थीं, वे भी फोन करके बोल रही थीं कि मुस्कान तुमने अच्छा किया है।

हालांकि ये एक पक्ष था, जो दुनिया को दिख रहा था। एक दूसरा पक्ष भी था जिससे सिर्फ मैं और मेरा परिवार ही गुजर रहा था। मेरे खिलाफ समाज का एक तबका खड़ा हो गया था। हमारे अपने ही हमें कोस रहे थे। पापा को ताने मार रहे थे। कई कट्टरवादी लोग धमकी भी दे रहे थे।

घर में सभी लोग डर गए थे। कई महीने हम सोए नहीं, ठीक से खाना नहीं खाया, अम्मी हमेशा कहती थी कि तूने ऐसा क्यों किया। कोई तुम्हारे साथ कुछ गलत कर देगा तो क्या होगा, हम कहां जाएंगे..वगैरह, वगैरह। खैर इस घटना के बाद मैंने रेगुलर कॉलेज जाना छोड़ दिया था। पढ़ाई डिस्टर्ब हो गई। अब मैं ओपन स्टडी कर रही हूं।

मुझे कई विदेशी यूनिवर्सिटीज से पढ़ाई के लिए ऑफर आए, लेकिन मैं परिवार को छोड़कर नहीं जा सकती। मुझे भारत पसंद है, अपने देश से प्यार है और मुझे यहीं रहना है। यहां जिन कॉलेजों से मुझे पढ़ने के लिए ऑफर आए, वहां मेरे सब्जेक्ट नहीं थे। इसलिए मैंने घर पर ही रहकर ओपन स्टडी करना शुरू किया।

अब्बू मुझे शेरनी बुलाते थे और आज भी कहते हैं कि तुम सच में शेरनी हो। इतनी हिम्मत उन लड़कियों में ही होती है, जिनके पापा उनका साथ देते हैं। मैं अगर पढ़ी-लिखी नहीं होती तो रोकर या डरकर भाग जाती, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरे अधिकार क्या हैं।

मुझे लगता है कि मैं उस कॉलेज की स्टूडेंट थी और लड़के भी उसी कॉलेज के स्टूडेंट थे। अगर उन्हें जय श्री राम कहने का हक था तो मुझे भी अल्लाह हू अकबर कहने का हक था। जैसा उनका हक, वैसा मेरा हक।

आज सब ठीक हो चुका है। मैंने उन लड़कों को भी माफ कर दिया है। उनसे कोई रंजिश नहीं है। एक और बात, यहां की पुलिस और सरकार ने हमारा साथ दिया। आज भी हम कहीं जाते हैं तो उन्हें बताकर जाते हैं। वे लोग हमारी हिफाजत करते हैं।

...

3 हजार करोड़ की ठगी करने वाला बना 'गुरू'

देश में 3 हजार करोड़ का फ्रॉड करने वाला 7वीं फेल फ्यूचर मेकर कंपनी का चेयरमैन कम मैनेजिंग डायरेक्टर (CMD) राधेश्याम अब 'गुरू' बन गया है। राधेश्याम 4 साल 3 महीने जेल में रहा। जनवरी 2022 में वह जेल से बाहर आया। इसके बाद वह अपने हिसार स्थित घर जाने के बजाय गायब हो गया। अब अचानक वह प्रवचन के नाम पर ज्ञान बांटते हुए नजर आने लगा है।

राधेश्याम खुद को भगवान श्रीकृष्ण का भक्त बता रहा है। उसने परमधाम नाम से अपनी संस्था बनाई है। इसी नाम से उसने अपना सोशल मीडिया अकाउंट बनाया हुआ है। इस पर अपने प्रवचनों के 12 वीडियो अपलोड किए है। इनमें वह आजकल के दूसरे बाबाओं को कोस रहा है।

राधेश्याम कहता है कि बाबा अध्यात्म का ज्ञान नहीं दे रहे बल्कि व्यापार कर रहे हैं। यह सोचने वाली बात है। लोगों से करोड़ों ठगने वाला राधेश्याम कह रहा है कि परमात्मा ने जितना दिया है, उसी में आनंद लेना चाहिए।

जानिए कौन है राधेश्याम और कैसे उसने 3 हजार करोड़ का फ्रॉड किया..

प्रॉपर्टी के काम में पैसा कमाया: राधेश्याम हिसार के सीसवाल गांव का रहने वाला है। वह आदमपुर में प्रॉपर्टी का काम करता था। छोटे भाई के साथ मिलकर उसने मोटा पैसा कमाया। हालांकि जब प्रॉपर्टी का काम मंदा हुआ तो शातिर राधेश्याम ने फ्यूचर मेकर कंपनी खोली।

नेटवर्किंग चेन वाली कंपनी बनाई: राधेश्याम ने फ्यूचर मेकर कंपनी की स्कीम लॉन्च की। इसमें एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के साथ जुड़कर पूरी चैन बनानी होती थी। जॉइनिंग के लिए साढ़े 7 हजार रुपए देने पड़ते थे। कंपनी जॉइनिंग के बाद ढ़ाई हजार रुपए वापस लौटाने का लालच देती और बाकी बचे हुए पैसों के बराबर की राशि का इस्तेमाल कपड़े और दवाइयां खरीदने का लालच दिया जाता।

इसके साथ ही स्कीम के अनुसार, अगर एक व्यक्ति 7200 रुपए कंपनी में इन्वेस्ट करता है तो उसे दो साल में 60 हजार रुपए वापस मिलने का लालच दिया जाता। नए मेंबर्स जोड़ने पर पुराने मेंबर को कमीशन भी दिया जाता था।

सेमिनार के जरिए जोड़े लोग : राधेश्याम लोगों की जोड़ने की कला में माहिर था। वह सेमिनार के जरिए लोगों को जोड़ता। जहां उसकी बातों व ठाठ-बाठ देखकर युवा उसके जाल में फंसते चले गए। आलम यह था कि राधेश्याम ने एक साल में कंपनी में 1 करोड़ लोगों को जोड़ने का दावा किया। उसकी पर्सनल सिक्योरिटी थी और वह जगुआर से चलता था। देश के बड़े शहरों में उसके सेमिनार होते थे।

ऐसे फूटा राधेश्याम का भांडा
तेलंगाना की साइबराबाद पुलिस ने हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर हिसार में चल रही मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनी का पर्दाफाश किया। यह कंपनी पिछले 4-5 सालों से लोगों से करीब 1200 करोड़ रुपए की ठगी कर चुकी है। तेलंगाना पुलिस ने हरियाणा की एसटीएफ के साथ मिलकर आरोपियों को दबोचा।

इसी मामले के मास्टरमाइंड के तौर पर राधेश्याम और सुरेंद्र सिंह के तौर पर हुई। राधेश्याम फ्यूचर मेकर लाइफ केयर ग्लोबल मार्केटिंग का चेयरमैन और सुरेंद्र सिंह डायरेक्टर था। पुलिस ने कंपनी के 200 करोड़ रुपयों को सीज किया है।

9 राज्यों में 50 एफआईआर
2018 में राधेश्याम की फ्यूचर मेकर कंपनी में निवेश के नाम पर 3 हजार करोड़ का फ्रॉड उजागर हुआ। इस ठगी के केस में हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में करीब 50 केस दर्ज हुए। इन मामलों में पुलिस 21 आरोपियों को पकड़ चुकी है। एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने करीब 300 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की है।

राधेश्याम ने बताई 'गुरू' बनने की कहानी
राधेश्याम कह रहा है कि उसने चार साल में गहरा चिंतन किया। जिसमें उसने ज्ञान अर्जित किया। उसने कहा कि भगवान ने रास्ता दिखाया कि आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान दें। चार साल में मैने भगवत गीता पर काम किया है। 8 से 10 ग्रंथ लिखे हैं और जल्द ही मेडिटेशन कैंप शुरू करने जा रहा हूं।

लोग बोले- हमारा पैसा खाकर गुरू बन गया
राधेश्याम के ज्ञान की बातों पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं कि कई गरीब लोगों की बद्दुआ है, अब ज्ञान देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऊपरवाला देख रहा है। इसी जन्म में भुगतना पड़ेगा तुझे। एक यूजर ईश्वर मेहता ने कहा कि लोगों का पैसा खा कर गुरु बनना ठीक नहीं है। पहले गरीब लोगों का पैसा लोटा दो।

...

संपूर्ण जीवन और वैदिक ज्ञान का सार

नई दिल्ली: श्रीमद्भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। ये हमारे संपूर्ण जीवन और वैदिक ज्ञान का सार है। आप सभी जानते है इस महाग्रंथ के वक्ता स्वयं विष्णु अवतार श्री कृष्ण जी है। इस ग्रंथ के सभी पृष्ठ ज्ञान के सार से भरे हुए है। इस महाग्रंथ में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहते है की मैं तुम्हे इस परम रहस्य को इसीलिए प्रदान कर रहा हु क्योंकि तुम मेरे मित्र और भक्त हो। इससे ये ज्ञात होता है की ये महाग्रंथ विशेष रूप से भगवदभक्त भक्तो के निमित्त है। अध्यात्मवादियो की तीन श्रेणियों है। 

1. ज्ञानी2. योगी3. भक्त इस महाग्रंथ में भगवान कृष्ण अर्जुन कहते है की वे उनको इस परंपरा का सबसे पहला पात्र बना रहे है। क्योंकि उस समय प्राचीन परंपरा खंडित हो गई थी। वे चाहते थे की द्रोणशिष्य अर्जुन इस महाग्रंथ का प्रमाणिक विद्वान बने। आप सभी जानते भी है इस महाग्रंथ का उपदेश केवल विशेष रूप से अर्जुन के लिए ही दिया गया था। क्योंकि आप सभी जानते भी है अर्जुन कृष्ण भगवान का भक्तप्रत्यक्ष शिष्यतथा घनिष्ठ मित्र था। जिस व्यक्ति में अर्जुन जैसे गुण पाए जाते है वो इस महाग्रंथ को सबसे अच्छी तरह समझ सकता है। मेरे इस वाक्य का साधारण सा अर्थ है इस महाग्रंथ को पूर्ण रूप से समझने के लिए भक्त को भगवान से सच्ची भावना सच्चे मन और सच्चे भाव से समर्पित होना चाहिए। जैसे ही कोई सच्ची भावना के साथ भगवान का भक्त बन जाता है उसका सीधा संबंध भगवान से बन जाता है। अर्थात मुंह में राम बगल में छुरी वाली भावना नहीं होनी चाहिए। आज मैं  भगवान और भक्त के मध्य होने वाले कुछ संबंध आपके सामने रख रहा हूंआशा करता हूँ आपको अच्छे से समझ में आएगा।

...

ओम और अल्लाह एक; विरोध में संतों ने जमियत का मंच छोड़ा

नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अधिवेशन के आखिरी दिन मौलाना अरशद मदनी के बयान पर जबर्दस्त बवाल हो गया। मदनी RSS चीफ के उस बयान का जवाब दे रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा था- हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक जैसे हैं। मदनी ने कहा- तुम्हारे पूर्वज हिंदू नहीं, मनु थे यानी आदम। उनके इस बयान के विरोध में अधिवेशन में पहुंचे अलग-अलग धर्मगुरु मंच छोड़कर चले गए।

दिल्ली के रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 34वें अधिवेशन के आखिरी दिन मौलाना मदनी ने कहा- मैंने पूछा कि जब कोई नहीं था। न श्रीराम थे, न ब्रह्मा थे और न शिव थे; जब कोई नहीं था तो मनु पूजते किसको थे। कोई कहता है कि शिव को पूजते थे। बहुत कम लोग ये बताते हैं कि मनु ओम को पूजते थे। ओम कौन है? बहुत से लोगों ने कहा कि उसका कोई रूप-रंग नहीं है। वो दुनिया में हर जगह हैं। अरे बाबा इन्हीं को तो हम अल्लाह कहते हैं। इन्हें आप ईश्वर कहते हैं।

जैन गुरु ने विरोध किया, कई संत उठकर चले गए
मौलाना मदनी के बयान का जैन मुुनि लोकेश ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह अधिवेशन लोगों को जोड़ने के लिए हो रहा है। ऐसे में इस तरह का बयान कहां तक जायज है। मुनि लोकेश ने मंच पर यह बात कही। इसके बाद वे कार्यक्रम से उठकर चले गए। उनके बाद दूसरे धर्मों के संतों ने भी कार्यक्रम छोड़ दिया। 

अरशद मदनी बोले- हम जिसे आदम कहते हैं, वही मनु
मौलाना मदनी ने कहा, 'हजरत आदम जो नबी थे, सबसे पहले उन्हें भारत की धरती के भीतर उतारा। अगर चाहता तो आदम को अफ्रीका, अरब, रूस में उतार देता। वो भी जानते हैं, हम भी जानते हैं कि आदम को दुनिया में उतारने के लिए भारत की धरती को चुना गया।'

मदनी बोले- मैंने बड़े-बड़े धर्मगुरुओं से पूछा कि अल्लाह ने जिस पहले आदमी को धरती पर उतारा वो किसकी पूजा करता था। दुनिया के अंदर अकेला आदम था, उसे कहते क्या हो। लोग अलग-अलग बातें कहते थे। धर्मगुरुओं ने कहा कि हम उसे मनु कहते हैं, हम आदम कहते हैं, अंग्रेजी बोलने वाले एडम कहते हैं। हम आदम की औलाद को आदमी और ये मनु की औलाद को मनुष्य कहते हैं।

मदनी बोले- देश में शिक्षा का भगवाकरण मंजूर नहीं
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मदनी ने कार्यक्रम में कहा कि पैगंबर का अपमान मुस्लिम मंजूर नहीं करेंगे। मोहम्मद साहब के खिलाफ बयान नहीं दिए जाने चाहिए। भारत में अभी शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है और ये उचित नहीं है। दूसरे धर्मों की किताबें थोपी नहीं जानी चाहिए। ये संविधान के खिलाफ है।

जमीयत चीफ महमूद मदनी के चाचा हैं मौलाना अरशद
जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना असद मदनी थे। उनका 2008 में इंतकाल हो गया था। इसके बाद जमीयत की अगुआई को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौजूदा चीफ महमूद मदनी का अपने चाचा मौलाना अरशद मदनी से विवाद हो गया। लंबे झगड़े के बाद जमीयत दो हिस्सों में बंट गई। एक गुट की अगुआई महमूद मदनी और दूसरे गुट की अगुआई अरशद मदनी करने लगे। दोनों ने अपनी-अपनी जमीयत उलमा-ए-हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद ले लिया था। हालांकि पिछले साल दोनों में सुलह हो गई थी।

देश के बड़े इस्लामिक संगठनों में शामिल है जमीयत
जमीयत उलेमा-ए-हिंद भारत के अग्रणी इस्लामिक संगठनों में से एक है। यह देवबंदी विचारधारा से प्रभावित है। इसकी स्थापना साल 1919 में हुई थी। कहा जाता है कि देशभर में जमीयत के फॉलोअर्स करोड़ों में हैं। जमीयत पदाधिकारियों के अनुसार, इस संगठन का इतिहास देश की आजादी में लड़ाई से भी जुड़ा रहा है। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ महमूद मदनी ने कहा है कि भाजपा और RSS से हमारा कोई धार्मिक मतभेद नहीं है, बल्कि वैचारिक मतभेद है। दिल्ली के रामलीला मैदान में शनिवार को जमीयत के 34वें अधिवेशन में उन्होंने कहा- भारत जितना मोदी और भागवत का है, उतना ही मदनी का भी है। जमीयत चीफ ने कहा- हमें सनातन धर्म से कोई शिकायत नहीं है, आपको भी इस्लाम से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। 

असम में बाल विवाह के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को जमीयत-ए-उलमा-ए-हिंद का समर्थन मिला है। जमीयत-ए-उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि ये बिल्कुल सही है। लेकिन ऐसे लग रहा है कि ये कार्रवाई किसी धर्म विशेष के खिलाफ की जा रही है। इसे निष्पक्ष होना चाहिए।उन्होंने कहा कि अगर समान नागरिक संहिता पर आम सहमति बनाने के लिए कुछ संजीदा कोशिशें की जा रही हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। सरकार को अपना एक्शन निष्पक्ष रखना चाहिए।

...

6 करोड़ साल पहले पेड़-पौधों के दबने से बने पत्थर

लखनऊ: नेपाल के जनकपुर से 40 टन वजनी शालिग्राम की 2 शिलाएं 7 दिन के सफर के बाद बुधवार रात अयोध्या पहुंचीं। इन्हीं शिलाओं से भगवान राम और माता सीता की भव्य मूर्तियां बनाई जाएंगी। माना जा रहा है कि ये मूर्तियां अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की जाएंगी।

वैज्ञानिक मान्यता : 6 करोड़ साल पहले बने जीवाश्म पत्थर

साइंस की भाषा में शालिग्राम डेवोनियन-क्रिटेशियस पीरियड का एक काले रंग का एमोनोइड शेल फॉसिल्स है। डेवोनियन-क्रिटेशियस पीरियड 40 से 6.6 करोड़ साल पहले था। ये वो पीरियड था जब धरती के 85% हिस्से पर समुद्र होता था।

जीवाश्म शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘जीव’ तथा ‘अश्म’। अश्म का अर्थ होता है-पत्थर। इस प्रकार जीवाश्म का अर्थ हुआ वह जीव जो पत्थर बन गया। अंग्रेजी में जीवाश्म को फॉसिल कहा जाता है।

जीवाश्म करोड़ों सालों तक पृथ्वी की सतह में गहरे दबे हुए जंतुओं एवं वनस्पति अवशेषों से बने हैं। जीव अवशेष धीरे-धीरे तलछट के नीचे दबकर एकत्रित हो जाते हैं जिससे उन्हें ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पाती। तलछट के आवरण के कारण न तो जीव अवशेषों का ऑक्सीकरण हो पाता है और न ही विघटन। इसी के चलते ये जीवाश्म मजबूत और कठोर चट्‌टान में बदल जाते हैं।

प्राचीनकाल की मूर्तिकला में इस पत्थर का इस्तेमाल किया जाता रहा है। शालिग्राम पत्थर बेहद मजबूत होते हैं। इसलिए शिल्पकार बारीक से बारीक आकृति उकेर लेते हैं। अयोध्या में भगवान राम की सांवली प्रतिमा इसी तरह की शिला पर बनी है।

जीवाश्मों को हिंदू पवित्र मानते हैं क्योंकि माधवाचार्य ने उन्हें अष्टमूर्ति से प्राप्त किया था। माधवाचार्य को व्यासदेव के नाम से भी जाना जाता है। यह विष्णु के प्रतीक यानी शंख जैसा होता है। शालिग्राम अलग-अलग रूपों में मिलते हैं। कुछ अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छेद होता है। इस पत्थर में शंख, चक्र, गदा या पद्म की तरह निशान बने होते हैं।

धार्मिक मान्यता: भगवान विष्णु ने तुलसी के पति को छल से मारा, शाप के चलते पत्थर बने

देवी भागवत पुराण के अध्याय 24, शिव पुराण के अध्याय 41 के अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण में शालिग्राम शिला की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया गया है। वृषध्वज नाम का एक राजा था। वह शिव के अलावा किसी और देवता की पूजा नहीं करता था। इसी के चलते सूर्य ने उसे शाप दिया कि वह और उसकी पीढ़ियां गरीब ही रहेंगी।

अपनी खोई हुई समृद्धि को पाने के लिए वृषध्वज के पोते धर्मध्वज और कुशध्वज देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करते हैं। देवी लक्ष्मी तपस्या से प्रसन्न होती हैं और उनकी समृद्धि लौटा देती हैं। साथ ही दोनों की पुत्रियों के रूप में जन्म लेने का वरदान देती हैं।

इसके बाद देवी लक्ष्मी कुशध्वज की बेटी वेदवती और धर्मध्वज की बेटी तुलसी के रूप में अवतार लेती हैं। तुलसी अपने पति के रूप में भगवान विष्णु को पाने के लिए बद्रिकाश्रम में तपस्या करने चली जाती हैं। ब्रह्मा उन्हें बताते हैं कि इस जीवन में पति के रूप में विष्णु उन्हें नहीं मिलेंगे और उन्हें शंखचूड़ नामक दानव से विवाह करना होगा।

अपने पिछले जन्म में शंखचूड़ ही सुदामा थे। दरअसल, राधा ने सुदामा को शाप दिया था कि वह अगले जन्म में दानव बनेंगे। इसी वजह से शंखचूड़ स्वभाव से सदाचारी और पवित्र था और विष्णु का भक्त था। उन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा पर तुलसी से विवाह किया।

विवाह के बाद शंखचूड़ के नेतृत्व में दानवों ने अपने प्रमुख शत्रुओं, देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। शंखचूड़ के गुणों की वजह से यह युद्ध दानव जीत गए। इसके बाद दानवों ने स्वर्ग से देवताओं को बाहर निकाल दिया। पराजय से हतोत्साहित देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि शंखचूड़ की मौत भगवान शिव के हाथों होनी तय है।

देवताओं के अनुरोध पर शिव शंखचूड़ के खिलाफ युद्ध छेड़ देते हैं। हालांकि कोई भी पक्ष एक दूसरे पर हावी नहीं हो पाता। ऐसे में ब्रह्मा जी शिव को बताते हैं कि शंखचूड़ को तब तक नहीं हराया जा सकता, जब तक कि वह अपना कवच पहने हुए है और उसकी पत्नी की पवित्रता भंग न हो जाए।

इसके बाद भगवान विष्णु एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश धारण कर शंखचूड़ के पास पहुंचते हैं और भिक्षा कवच मांगते हैं। शंखचूड़ उन्हें अपना कवच दे देता है। इसके बाद वह शिव के साथ युद्ध में व्यस्त हो जाता है। इसी बीच विष्णु कवच पहन कर शंखचूड़ का रूप धारण करते हैं और तुलसी के साथ सहवास करते हैं। इस प्रकार तुलसी की पवित्रता भंग हो जाती है और शिव के त्रिशूल द्वारा शंखचूड़ को मार दिया जाता है।

शंखचूड़ की मृत्यु के क्षण तुलसी को संदेह हो गया कि जो पुरुष उस वक्त उनके साथ था वह शंखचूड़ नहीं था। जब उन्हें पता चला कि विष्णु ने उनके साथ छल किया है तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का शाप दिया। तुलसी का मानना था कि वह अपने भक्त शंखचूड़ को मारने के लिए और उसकी पवित्रता चुराने के दौरान पत्थर की तरह भावहीन थे।

इसके बाद विष्णु ने तुलसी को यह कहकर सांत्वना दी कि यह उन्हें पति के रूप में पाने के लिए की गई तपस्या का फल था। साथ ही वह अपनी देह त्यागने के बाद फिर से उनकी पत्नी बन जाएंगी। इसके बाद लक्ष्मी ने तुलसी के शरीर को त्याग दिया और एक नया रूप धारण किया जिसे तुलसी के नाम से जाना जाने लगा। तुलसी का परित्यक्त शरीर गंडकी नदी में बदल गया और उसके बालों से तुलसी की झाड़ी निकली।

तुलसी से शापित होने के कारण विष्णु ने गंडकी नदी के तट पर शालिग्राम के नाम से जाने जाने वाले एक बड़े चट्‌टानी पर्वत का रूप धारण कर लिया। वज्र के समान मजबूत दांतों वाले कीड़े वज्रकिता ने इन चट्‌टानों पर कई चिह्नों को उकेरा। वज्रकिता द्वारा उकेरे गए पत्थर जो उस पर्वत की सतह से गंडकी नदी में गिरते हैं, शालिग्राम शिला के रूप में जाने जाते हैं।

इतिहास: आदि शंकराचार्य के कई लेखों में इसका जिक्र

आदि शंकराचार्य के कई लेखों में भी शालिग्राम शिला का जिक्र है। वह विष्णु की पूजा में शालिग्राम शिला के उपयोग की सलाह देते हैं। तैत्तिरीय उपनिषद के श्लोक 1, 6, 1 और ब्रह्म सूत्र के 1, 3, 14 में भी शालिग्राम शिला का जिक्र है।

इन 4 बड़े मंदिरों की मूर्तियां भी शालिग्राम शिला से बनाई गई हैं

नेपाल से इस पत्थर को भिजवाने में नेपाली कांग्रेस नेता और पूर्व डिप्टी PM बिमलेंद्र निधि का अहम योगदान है। उन्होंने बताया कि काली गंडकी नदी में पाए जाने वाले ये पत्थर बहुत कीमती हैं। यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि ये पत्थर भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने कहा था कि यदि यह पत्थर मिल जाए तो अयोध्या में राम लला की मूर्ति इसी से बनाई जाएगी। इस अनुरोध के बाद मैं एक्टिव हुआ और पत्थर को अयोध्या पहुंचाने के लिए काम करने लगा।

नेपाल में पोखरा स्थित शालिग्रामी नदी (काली गंडकी ) से यह दोनों शिलाएं जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में निकाली गई हैं। 26 जनवरी को इन्हें ट्रक में लोड किया गया। पूजा-अर्चना के बाद दोनों शिलाओं को ट्रक के जरिए सड़क मार्ग से अयोध्या भेजा गया।

राम मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने बताया कि नदी के किनारे से इन विशाल शिलाखंड को निकालने से पहले धार्मिक अनुष्ठान किए गए। नदी से क्षमा याचना की गई। विशेष पूजा की गई। एक शिला का वजन 26 टन जबकि दूसरे का 14 टन है। यानी दोनों शिलाओं का वजन 40 टन है।

 

...