भारत तक पहुंची चीन की रहस्यमयी बीमारी

उत्तराखंड में चीन में फैली बीमारी को लेकर अलर्ट जारी किया गया था. स्वास्थ्य विभाग के द्वारा अलर्ट जारी करने के बाद हर एक चीज पर बारीकी सी नजर रखी जा रही थी. इसी क्रम में उत्तराखंड के बागेश्वर में दो बच्चों में इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण पाए गए हैं. इसको लेकर बच्चों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं. 

चीन में तेजी से बच्चों में श्वास संबंधी संक्रमण फैल रहा है. हर रोज वहीं बड़ी संख्या में मरीज सामने आ रहे हैं. कोरोना के बाद अब चीन से सामने आई इस बीमारी को लेकर देश के लगभग सभी राज्य भी अलर्ट पर हैं. चीन में फैली माइक्रो प्लाज्मा निमोनिया और इन्फ्लूएंजा फ्लो को लेकर उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग ने सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है. जिसको लेकर अलर्ट भी जारी किया गया है. अब अलर्ट के बाद बागेश्वर जिले में दो बच्चों में इन्फ्लूएंजा फ्लू जैसे लक्षण देखे गए हैं. दोनों के सैंपल जांच के लिए सुशीला तिवारी अस्पताल भेजे गए हैं और जांच रिपोर्ट आने का इंतजार किया जा रहा है. 

हल्द्वानी में जांच के लिए भेजे सैंपल

बागेश्वर में बुधवार के दिन जिला अस्पताल में दो बच्चों को लाया गया था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ के साथ इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षण की आशंका को देखते हुए डॉक्टर ने सैंपल सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में जांच के लिए भेजे हैं. जांच रिपोर्ट 4 से 5 दिन में आ जाएगी. जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद ही आगे कोई निर्णय लिया जाएगा कि यह वायरस वही है या फिर नहीं है. फिलहाल स्वास्थ्य विभाग इसको लेकर पूरी तरह से सतर्क दिखाई दे रहा है. 

अस्पतालों को दिए गए ये आदेश

बताया जा रहा है कि इस बीमारी के पांचवें स्टेज में ऑक्सीजन की जरूरत होती है. इसको लेकर प्रदेश भर के तमाम अस्पतालों को अलर्ट जारी किया गया है. सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन की पूरी मात्रा रखने को कहा गया है. साथ ही वेंटिलेटर व अन्य सामानों को भी तैयार रखने के आदेश दिए गए हैं. अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड भी बनाए गए हैं. 

अलर्ट मोड पर सरकार

उत्तराखंड के सभी जिलाधिकारी और सीएमओ को उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के द्वारा अलर्ट मोड पर रखा गया है. स्वास्थ्य सचिव और राजेश कुमार ने आदेश जारी करते हुए सभी को हिदायत दी है कि बीमारी के प्रति पूरी तरह से सतर्क रहें, हॉस्पिटलों में व्यवस्थाएं पूर्ण रूप से रखी जाए और किसी भी चीज के प्रति लापरवाही न बरती जाए. 


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चीन में फैल रही है फेफड़े फूलने वाले बीमारी , भारत में 6 राज्य को किया अलर्ट

चीन में फेफड़े फुलाने वाली रहस्यमयी बीमारी को लेकर भारत के छह राज्यों में अलर्ट है। राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने हॉस्पीटल्स और स्वास्थ्य कर्मियों को सांस से जुड़ी बीमारी के मरीजों के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया है।

राज्य सरकारों ने लोगों के लिए भी एडवाइजरी जारी की है। इसमें लोगों को भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। पीडियाट्रिक यूनिट्स में बच्चों के इलाज के लिए पूरी व्यवस्था करने को कहा गया है।

चीन में रहस्यमयी बीमारी का असर सबसे ज्यादा बच्चों पर हो रहा है। तेज बुखार के साथ फेफड़े फुला देने वाली इस बीमारी की वजह से हर रोज करीब 7000 बच्चे अस्पताल पहुंच रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना की तरह ये बीमारी भी संक्रामक है।

भारत सरकार ने 24 नवंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की थी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने बताया कि भारत में चीन की रहस्यमयी बीमारी का एक भी मामला अभी सामने नहीं आया है। सरकार इस पर बारीकी से निगरानी कर रही है।

कोरोना की जानकारी देने प्लेटफॉर्म ने अलर्ट जारी किया

प्रो-मेड नाम के एक सर्विलांस प्लेटफॉर्म ने 15 नवंबर को चीन में रहस्यमयी बीमारी को लेकर दुनियाभर में अलर्ट जारी किया था। प्रो-मेड ने कोरोना को लेकर भी दिसंबर 2019 में एक अलर्ट जारी किया था। ये प्लेटफॉर्म इंसानों और जानवरों में फैलने वाली बीमारियों की जानकारी रखता है।

हालांकि, प्लेटफॉर्म ने ये नहीं बताया कि ये बीमारी सिर्फ बच्चों तक सीमित है या युवाओं और बुजुर्गों को भी अपनी चपेट में ले रही है। इस बीमारी ने कब फैलना शुरू किया, ये भी पता नहीं चल पाया है।

नए वायरस से बीमारी फैलने की बात से चीन का इनकार

23 नवंबर को चीनी मीडिया ने स्कूलों में रहस्यमय बीमारी फैलने की जानकारी दी थी। चीन ने बताया कि पीड़ित बच्चों में फेफड़ों में जलन, तेज बुखार, खांसी और जुकाम जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए स्कूलों में छुट्टी कर दी गई।

चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में कोरोना के कारण लगाई गई पाबंदियां हटा ली गई थी। इसके कारण फिर से बीमारी फैल रही है। हालांकि, चीन सरकार ने इन दावों को खारिज किया।

चीन की हेल्थ अथॉरिटी का कहना है कि ये सामान्य निमोनिया बीमारी है। नई बीमारी या दूसरे बैक्टीरिया या वायरस का संक्रमण नहीं है। इस वक्त चीन में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। कोरोना की पाबंदियां हटने के बाद ये सीजन की पहली ठंड है। सर्दियों में वायरल बीमारियों के फैलने का खतरा ज्यादा रहता है।

चीन में फैल रही इस बीमारी के लक्षण

खांसी

गले में दर्द या खराश

बुखार

फेफड़े में सूजन

सांस नली में सूजन

रहस्यमयी बीमारी को महामारी कहना जल्दबाजी

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने बताया कि चीन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सांस से जुड़ी एक बीमारी फैलने की जानकारी दी थी। WHO ने बीमारी की जांच के लिए चीन से हाल-फिलहाल में फैले सभी तरह के वायरस की सूची मांगी है।

लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने का निर्देश दिया गया है। WHO ने फिलहाल रहस्यमयी बीमारी के महामारी होने पर कोई जानकारी नहीं दी है। वहीं, सर्विलांस प्लेटफॉर्म प्रो-मेड ने भी कहा कि इसे महामारी कहना गलत और जल्दबाजी होगा।

चीन की रहस्यमयी बीमारी कोरोना जैसी संक्रामक, क्या भारत में भी फैलेगी; स्वीडिश डॉक्टर से जानें 10 सवालों के जवाब

अगस्त 2023, चीन ने कोरोना लॉकडाउन में 3 साल रहने के बाद सारी पाबंदियां हटा लीं। एक महीने बाद यानी अक्टूबर में ही यहां एक रहस्यमयी बीमारी फैलने लगी।

एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना की तरह ये बीमारी भी संक्रामक है। ये चीन के एक शहर से दूसरे शहर में फैल रही है। WHO जवाब मांग रहा है, लेकिन चीन शांत है।

भारत सरकार ने राज्यों से कहा- ऑक्सीजन-दवाएं तैयार रखें, चीनी बच्चों को फेफड़े में जलन के साथ तेज बुखार

चीन की रहस्यमयी बीमारी पर भारत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से पब्लिक हेल्थ सिस्टम को अपडेट करने के लिए कहा है।

इसके अलावा किसी बड़ी बीमारी के फैलने को लेकर अस्पतालों में तैयारी करने के लिए भी कहा गया है। वहीं, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने भी च‍िंता जाह‍िर करते हुए चीन से इस बीमारी से जुड़ी जानकारी मांगी है।


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चीन में फैल रही फेफड़े फुलाने वाली रहस्यमयी बीमारी

अगस्त 2023, चीन ने कोरोना लॉकडाउन में 3 साल रहने के बाद सारी पाबंदियां हटा लीं। एक महीने बाद यानी अक्टूबर में ही यहां एक रहस्यमयी बीमारी फैलने लगी। तेज बुखार के साथ फेफड़े फुला देने वाली इस बीमारी की वजह से हर रोज 7000 बच्चे अस्पताल पहुंच रहे हैं।

एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना की तरह ये बीमारी भी संक्रामक है। ये चीन के एक शहर से दूसरे शहर में फैल रही है। WHO जवाब मांग रहा है, लेकिन चीन शांत है।

स्वीडन के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राम शंकर उपाध्याय ने 10 सवालों के जवाब में बताया कि आखिर ये बीमारी है क्या और भारत में इससे कितना खतरा है?

सवाल 1 : चीन में फैल रही सांस की बीमारी क्या है? क्या इस बीमारी का कोई नाम है?

जवाब: चीन कोरोना की तरह ही इस बीमारी को लेकर भी डेटा रिलीज नहीं कर रहा है। WHO कई बार चीन सरकार से इस बीमारी के बारे में पूछ चुका है। चीनी ऑफिशियल अथॉरिटी इस बीमारी को मिस्टीरियस निमोनिया बता रही है।

कुछ लोग इसे वॉकिंग निमोनिया भी कह रहे हैं। एक तरह से चीन में फैल रही बीमारी को निमोनिया बताया जा रहा है। ये बीमारी बैक्टीरियल इन्फेक्शन के जरिए फैलती है। इस बैक्टीरिया को माइको प्लाज्मा निमोनिया बैक्टीरिया कहते हैं।

सवाल 2: निमोनिया कब और किन वजहों से फैलता है?

जवाब: सर्दी के समय में 5 साल तक की उम्र के बच्चों में आमतौर पर माइको प्लाज्मा निमोनिया बैक्टीरिया का इन्फेक्शन होता है। सर्दी के समय ही निमोनिया फैलने की दो वजह हैं...

1. ठंड के समय में वातावरण और शरीर का तापमान कम हो जाता है। 8 डिग्री से 15 डिग्री तक का तापमान इस बैक्टीरिया के लिए अनुकूल होता है।

2. सर्दी में पॉल्यूशन काफी ज्यादा होता है। इसकी वजह से ये बैक्टीरिया आसानी से सर्दी में लोगों को अपनी चपेट में लेता है।

सवाल 3: क्या चीन में फैल रही बीमारी सामान्य निमोनिया ही है?

जवाब: चीन की हेल्थ अथॉरिटी का कहना है कि ये सामान्य निमोनिया बीमारी ही है। नई बीमारी या दूसरे बैक्टीरिया या वायरस का संक्रमण नहीं है। हालांकि, 15 नवंबर 2023 को प्रो-मेड नाम के एक सर्विलांस प्लेटफॉर्म ने चीन में निमोनिया को लेकर दुनियाभर में अलर्ट जारी किया है।

इसी संस्था ने 2019 में भी कोरोना को लेकर भी अलर्ट जारी किया था। इस संस्था का कहना है कि एक दिन में 13 हजार बच्चे बीजिंग के अस्पतालों में भर्ती हुए हैं। 7 हजार से ज्यादा बच्चे हर रोज अस्पताल में आ रहे हैं। ये सब कुछ 2019 के कोरोना जैसे हालात की याद दिला रहा है। ये सब कुछ देखकर ऐसा नहीं लगता है कि ये सिर्फ सामान्य निमोनिया है।

सवाल 4: चीन की ये बीमारी सामान्य निमोनिया नहीं तो क्या है और कोरोना से इसका क्या कनेक्शन है?

जवाब: जब किसी को निमोनिया होता है तो उसमें कफ भी डेवलप होता है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि चीन के रहस्यमयी निमोनिया में बच्चों में कफ नहीं बन रहा है। उनके चेस्ट के एक्स रे में उनके लंग्स पर नोड्यूल यानी एक तरह के गोल चकत्ते दिखाई दे रहे हैं। इन्हें पल्मोनरी नोड्यूल कहते हैं। जिस तरह के नोड्यूल बन रहे हैं वो ज्यादातर बैक्टीरियल इन्फेक्शन में बनते हैं, वायरल इन्फेक्शन में ऐसा नहीं होता है।

बीमारी से पीड़ित बच्चों को देखकर लग रहा है कि उनमें सिर्फ माइको प्लाज्मा निमोनिया का ही केस नहीं, बल्कि कोई वायरल इन्फेक्शन भी है। एक साथ उनमें बैक्टीरिया और वायरस दोनों का इन्फेक्शन है। इसे को- इन्फेक्शन या क्रॉस इन्फेक्शन कहते हैं।

अगर ऐसा है तो काफी गंभीर है क्योंकि ऐसे कई केस में तो दवाइयां तक काम नहीं करती हैं। बच्चों में सिर्फ माइको प्लाज्मा निमोनिया होता तो उसके लिए दवाइयां हैं। चीन में बच्चों पर दवाइयां काम करतीं तो स्थिति कंट्रोल में होती। चीन ने भी इस बात को स्वीकार किया है। चीन ने रविवार को बताया है कि ये कई पैथोजन यानी रोगाणुओं से फैलने वाली बीमारी है।

सवाल 5: ये रहस्यमयी बीमारी चीन में ही तेजी से क्यों फैल रही है?

जवाब: चीन के बिगड़ते हालातों की एक वजह वहां कोरोना के वक्त लगी जीरो कोविड पॉलिसी भी हो सकती है। उस वक्त बरती गई कड़ाई की वजह से काफी सारे बच्चों में इम्यूनिटी डेवलप नहीं हो पाई। वो घरों में कैद रहे।

अब जब वो बाहर निकल रहे हैं तो वो वायरस और बैक्टीरिया की चपेट में आ रहे हैं। इनसे लड़ने के लिए उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता ही नहीं है। इसलिए यहां तेजी से बच्चे बीमार पड़ रहे हैं।

सवाल 6: क्या ये सिर्फ बच्चों में फैलने वाली बीमारी है या किसी को भी हो सकती है?

जवाब: बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, इसलिए ये बीमारी बच्चों को अपनी चपेट में ले रही है। इसका मतलब ये नहीं है कि ये सिर्फ बच्चों में फैलने वाली बीमारी है। जिसकी भी इम्यूनिटी कमजोर होगी, ये बीमारी उसे अपना शिकार बनाएगी।

सवाल 7: चीन में फैल रही इस बीमारी के लक्षण क्या हैं?

जवाब: इस बीमारी के चपेट में आने पर ज्यादातर ये लक्षण दिखते हैं…

खांसी

गले में दर्द या खराश

बुखार

फेफड़े में सूजन

सांस नली में सूजन

सवाल 8: क्या चीन की ये बीमारी संक्रामक है और एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकती है?

जवाब: हां, ये बीमारी एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलती है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज के संपर्क में आने से ये बीमारी फैलती है। यही वजह है कि इस बीमारी के फैलने की संभावना बढ़ रही है।

सवाल 9: क्या चीन में फैल रही ये बीमारी भारत या दूसरे देशों में भी फैल सकती है?

जवाब: अगर हम चीन का ही उदाहरण लें तो वहां के काफी हिस्सों में ये बीमारी फैल चुकी है। खासकर वहां के उत्तरी इलाके में इसका काफी ज्यादा असर है।

कुछ मामले चीन के पड़ोसी देश वियतनाम से भी सामने आए हैं। ये साफ दिख रहा है कि बीमारी फैल रही है। ऐसे में इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दूसरे देशों में भी ये बीमारी फैल सकती है।

ये भारत में भी फैल सकती है। भारत को इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।

सवाल 10: रहस्यमयी बीमारी से क्या कोरोना की तरह मौतें हो सकती हैं?

जवाब: कोरोना वायरल इन्फेक्शन था, जबकि ये बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। हालांकि, कोरोना होने के बाद भी निमोनिया ही होता था। मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होती थी। इसलिए कई मरीजों को वेंटिलेटर पर ले जाना होता था।

बैक्टीरियल इन्फेक्शन को रोकने के लिए काफी सारे एंटीबायोटिक्स हैं। इनका इस्तेमाल करके इसके असर को कम किया जा सकता है। हालांकि चीन में जो हालात हैं उन्हें देखकर लग रहा है कि ये सिर्फ बैक्टीरियल इन्फेक्शन नहीं, कुछ और भी हो सकता है। ये चीन के डेटा शेयर करने के बाद ही पता चलेगा।

अगर ये बैक्टीरियल इन्फेक्शन है तो एंटीबायोटिक्स दवाओं से मरीजों की मौत को टाला जा सकता है।


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चीन की रहस्यमयी बीमारी से भारत में अलर्ट

चीन के लोगों खासकर बच्चों में माइकोप्लाज्मा निमोनिया और इन्फ्लूएंजा फ्लू फैलने के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं. इस मामले पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी च‍िंता जाह‍िर करते हुए चीन से संबंध‍ित जानकारी मांगी है. इसको लेकर भारत सरकार (Government of India) भी पूरी तरह से अलर्ट मोड में आ गई है.

 केंद्र सरकार की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर अस्पताल की तैयारियों की समीक्षा करने के सख्‍त न‍िर्देश द‍िए हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने भी कहा है क‍ि स्वास्थ्य मंत्रालय चीन में बच्चों में फैली सांस की बीमारी के मामलों में वृद्धि पर करीब से नजर रख रहा है. 

इन्फ्लूएंजा और सर्दियों के मौसम में ज्‍यादा सावधानी बरतने की सलाह

मंत्रालय की ओर से पत्र में सभी राज्‍यों को यह खास न‍िर्देश द‍िया है क‍ि वो अस्‍पतालों में मौजूदा स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं का बारीकी से न‍िरीक्षण करें. साथ ही इन्फ्लूएंजा और सर्दियों के मौसम में ज्‍यादा सावधानी बरतने की सलाह भी दी गई है. 

अस्‍पतालों में बेड्स उपलब्‍धता, दवाओं व अन्‍य पर फोकस करने का न‍िर्देश   

मंत्रालय ने राज्यों से अपने अस्पताल की तैयारी के उपायों में जैसे कि अस्पताल बेड्स उपलब्‍धता, इन्फ्लूएंजा के लिए दवाएं और टीके, चिकित्सा ऑक्सीजन, एंटीबायोटिक्स, पीपीई आदि की जांच करने को व‍िशेष तौर पर कहा गया है.

सरकार हर तरह की आपात स्थिति से न‍िपटने तैयार

 इससे पहले मंत्रालय की ओर से कहा गया था क‍ि रहस्‍यमयी निमोनिया से भारत को खतरा कम है लेकिन सरकार हर तरह की आपात स्थिति के लिए तैयार है. बच्चों और किशोरों में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी और गंभीर तीव्र श्वसन बीमारी के सभी मामलों की निगरानी की जानी चाहिए. पत्र में गले के स्वाब के नमूनों को रोगाणुओं के परीक्षण के लिए भेजने की जरूरत पर भी व‍िशेष बल द‍िया गया है. 

किसी भी तरह की चेतावनी का कोई मामला सामने नहीं 

मंत्रालय ने इस बात को भी दोहराया कि फिलहाल किसी भी तरह की चेतावनी का कोई मामला सामने नहीं है. दरअसल, चीन की तरफ से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को सूचित किया है कि कोई नया रोगाणु (Pathogen) नहीं पाया गया है. 

चीन के दक्षिणी और उत्तरी प्रांतों में बढ़ रहे हैं इस तरह के मामले  

इस बीच देखा जाए तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार (24 नवंबर) को एक बयान में कहा था कि चीन के बच्चों में एच9एन2 के प्रकोप और उनके श्वसन संबंधी कई बीमारी से घिरने की घटना पर सरकार गहन नजर रखे हुए है. अपने दक्षिणी और उत्तरी प्रांतों के लोगों खासकर बच्चों में माइकोप्लाज्मा निमोनिया और इन्फ्लूएंजा फ्लू के बढ़ते मामलों पर वैश्विक चिंताओं के बीच, चीन ने दावा किया है कि मौसमी बीमारी के अलावा इसका कारण कोई असामान्य या नया रोगाणु नहीं पाया गया है. 


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तनाव शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है: सरल शब्दों में संबंध को उजागर करना

मुंबई उपभोक्ता जनघोष: तनाव अब हमारे दैनिक जीवन का एक सामान्य हिस्सा है। चाहे यह काम के दबाव के कारण हो या व्यक्तिगत दैनिक जीवन के मुद्दों के कारण, यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित कर सकता है। इस लेख में हम तनाव और स्वास्थ्य के बीच संबंधों को समझेंगे, और पता लगाएंगे कि तनाव शरीर और दिमाग को कैसे प्रभावित कर सकता है।

तनाव को समझें: तनाव का विश्लेषण करने से पहले। सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि तनाव क्या है। तनाव किसी खतरे या चुनौती के प्रति शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। यह स्थिति से निपटने और इनसे लड़ने के लिए खुद को तैयार करने का हमारा तरीका है। अधिकांश समय तनाव लोगों की प्रतिक्रियाओं का कारण होता है और इसका असर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। हालांकि यह प्रतिक्रिया जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण है, नियमित या लंबे समय तक तनाव हमारे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है।

तनाव का शारीरिक प्रभाव और कोर्टिसोल की भूमिका, जिसे अक्सर "तनाव हार्मोन" के रूप में जाना जाता है, तनाव की प्रतिक्रिया में जारी होता है। हालांकि यह अल्पकालिक तनाव प्रतिक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन कोर्टिसोल के स्तर में नियमित वृद्धि कई प्रकार की शारीरिक समस्याओं में योगदान कर सकती है। हृदय संबंधी प्रभाव लंबे समय तक तनाव हृदय संबंधी समस्याओं के बेहतर जोखिम से जुड़ा होता है। इससे रक्तचाप बढ़ सकता है, हृदय गति बढ़ सकती है और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। प्रतिरक्षा प्रणाली का दमन दीर्घकालिक तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, जिससे हम संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। तनाव बना रहने पर शरीर की वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता ख़राब हो जाती है। और पाचन तंत्र पर प्रभाव तनाव पाचन तंत्र को बाधित कर सकता है, जिससे अपच, एसिड रिफ्लक्स और आंत्र की आदतों में बदलाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं। क्रोनिक तनाव को चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (आईबीएस) जैसी स्थितियों से भी जोड़ा गया है।

तनाव हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और चिंता और अवसाद सहित मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से संबंधित है। तनाव प्रतिक्रिया की निरंतर सक्रियता मस्तिष्क रसायन विज्ञान को बदल सकती है, जिससे मूड-विनियमन न्यूरोट्रांसमीटर प्रभावित हो सकते हैं। मानसिक दुर्बलता लंबे समय तक तनाव संज्ञानात्मक कार्य को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे स्मृति, एकाग्रता और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इससे जीवन के दैनिक कार्यों और जिम्मेदारियों में समग्र प्रदर्शन में बाधा आ सकती है। नींद में व्यवधान भी होता है तनाव अक्सर नींद के पैटर्न को बाधित करता है, जिससे सोने या सोते रहने में कठिनाई होती है। परिणामस्वरूप नींद की कमी तनाव को बढ़ा सकती है और नींद के दुष्चक्र में योगदान कर सकती है। और व्यवहार परिवर्तन पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। दीर्घकालिक तनाव में रहने वाले व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन हो सकता है, जैसे बढ़ती चिड़चिड़ापन, सामाजिक अलगाव, या अस्वास्थ्यकर मुकाबला तंत्र जैसे कि अधिक खाना या मादक द्रव्यों का सेवन और यह सब हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

 तनाव का दुष्चक्र सड़क चक्रीय के संदर्भ में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक संबंध है। तनाव से प्रेरित शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का कारण बन सकती हैं, और इसके विपरीत। और तनाव से निपटने और कल्याण पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी रणनीति विकसित करने के लिए इस परस्पर क्रिया को समझना महत्वपूर्ण है। मुकाबला करने की व्यवस्था और तनाव प्रबंधन जैसे स्वस्थ जीवन शैली विकल्प अपनाना, स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से तनाव के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद समग्र लचीलेपन में योगदान करती है, स्वस्थ और फिट रहती है और दैनिक कार्य करने में मदद करती है। माइंडफुलनेस और रिलैक्सेशन तकनीकें जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं, माइंडफुलनेस मेडिटेशन और गहरी सांस लेने जैसी प्रथाएं शरीर की तनाव प्रतिक्रिया के प्रभावों का प्रतिकार करते हुए, शरीर की विश्राम प्रतिक्रिया को सक्रिय कर सकती हैं। सामाजिक समर्थन निर्माण और रखरखाव मजबूत सामाजिक संबंध बना सकता है और कठिन समय के दौरान भावनात्मक समर्थन प्रदान कर सकता है। दोस्तों, परिवार या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के साथ तनाव के बारे में बात करना फायदेमंद हो सकता है। और समय प्रबंधन और प्राथमिकता प्रभावी समय प्रबंधन कौशल सीखना और कार्यों को प्राथमिकता देना हावी होने की भावना को कम कर सकता है, जिससे जीवन में तनाव को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिलती है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव का प्रभाव बहुत शक्तिशाली और संबंधित है। और तनाव के संकेतों की पहचान करना, समग्र कल्याण को बनाए रखने के लिए स्वस्थ मुकाबला तंत्र को लागू करना महत्वपूर्ण है। तनाव और स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझकर, हम खुद को सूचित विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाते हैं जो जीवन की अपरिहार्य चुनौतियों का सामना करने में लचीलेपन और संतुलित जीवन को बढ़ावा देते हैं। तनाव और स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझकर, हम भविष्य में जीवन की अपरिहार्य चुनौतियों का सामना करने के लिए लचीलेपन और संतुलित जीवन को बढ़ावा देने वाले विकल्पों के बारे में जानकार होने के लिए खुद को सशक्त बनाते हैं।

Edit By Priya Singh 

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कैंसर से अब नहीं होगी मौत! वैज्ञानिकों को मिल गया है 'किल स्विच'

कैलिफ़ोर्निया के साइंटिस्टों को कैंसर के इलाज में एक बड़ी सफलता मिली है. उन्हें एक 'किल स्विच' मिल गई है. जो कैंसर के सेल्स को मारने में कामयाब है. 'सैक्रामेंटो में यूसी डेविस कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर सेंटर के कैलिफ़ोर्निया विशेषज्ञों ने कहा है कि कि उन्होंने एक रिसेप्टर की है जो एक प्रोटीन की पहचान की है जिसे कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए डिज़ाइन किया जा सकता है. यह CD95 रिसेप्टर्स है जिन्हें Fas भी कहा जाता है. यह डेथ रिसेप्टर्स कहलाते हैं. ये प्रोटीन रिसेप्टर्स कोशिका झिल्ली पर रहते हैं. जब कैंसर के सेल्स एक्टिव होकर संकेत छोड़ते हैं तो यह रिसेप्टर्स उन्हें मारते हैं या रिसेप्टर्स के कॉन्टैक्ट में आकर वह खुद मर जाते हैं.

थेरेपी कैसे दी जाएगी?

शोधकर्ताओं ने इसे सीएआर टी-सेल थेरेपी नाम दिया है. जिसमें मरीज के ब्लड से टी कोशिकाओं को इकट्ठा करके लैब में इंसान के जीन में डालेंगे. जिसके बाद शरीर में काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) नामक रिसेप्टर्स बनकर तैयार होता है. उसके बाद फिर इन सेल्स को मरीज के शरीर के ब्लड सर्कुलेशन में वापस डाल दिया जाता है.  मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर और रिसर्च के वरिष्ठ लेखक जोगेंदर तुशीर-सिंह ने कहा, हमने साइटोटॉक्सिक फास सिग्नलिंग के साथ-साथ सीएआर टी-सेल बायस्टैंडर एंटी-ट्यूमर फ़ंक्शन के लिए सबसे महत्वपूर्ण एपिटोप पाया है.

कितना प्रभावी है ये थेरेपी

अब तक थेरेपी ने तरल कैंसर, ल्यूकेमिया और अन्य रक्त कैंसर के खिलाफ आशाजनक प्रभावकारिता दिखाई है. वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे ब्रेस्ट कैंसर, फेफड़े और आंत कैंसर जैसे ठोस ट्यूमर के इलाज में सफलता मिलेगी. हालांकि, टीम को उम्मीद है कि निकट भविष्य में ठोस कैंसर को भी लक्षित करने के लिए थेरेपी विकसित हो सकती है.

मॉड्यूलेटिंग फास डिम्बग्रंथि के कैंसर

टीम ने अपने बयान में कहा कि मॉड्यूलेटिंग फास डिम्बग्रंथि के कैंसर जैसे ठोस ट्यूमर के लिए काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी के लाभों को भी बढ़ा सकता है पहले तो हमें रिसेप्टर की पहचान करने में सफलता नहीं मिली लेकिन जब इस पर हमने और रिसर्च किया और जब हमने एपिटोप की पहचान कर ली है तो हमने देखा कि इसके जरिए ट्यूमर वाले कैंसर के इलाज करने में काफी पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिख रहा है.


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डब्ल्यूएचओ ने टीबी के प्रबंधन में भारत की सफलता

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने 'ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2023' की रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है और टीबी मरीजों के इलाज का कवरेज 80% तक बढ़ गया. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में 'ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2023' जारी की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल यानी 2022 में पूरी दुनिया में ट्युबरकुलोसिस (टीबी) के 75 लाख मामले आए, ये मामले अब तक के सबसे ज्यादा मामले हैं. 

'ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2023'  के अनुसार भारत में साल 2022 में टीबी के 28.22 लाख मामले दर्ज किए गए. जिसका मतलब है कि दुनिया में ट्युबरकुलोसिस के कुल मामलों में से 27 फीसदी मामले सिर्फ भारत में हैं.

आसान भाषा में समझे तो दुनिया के कुल टीबी मरीजों का हर चौथा मरीज भारत में है और भारत में हर 1 लाख की आबादी में से 210 लोग टीबी से संक्रमित हैं.

हालांकि, इस आंकड़े के बावजूद अगर इसकी तुलना साल 2021 के आंकड़े से की जाए तो पिछले साल की तुलना में साल 2022 में टीबी के मरीजों की संख्या में एक प्रतिशत की कमी आई है.

रिपोर्ट में भारत के लिए दो सकारात्मक रुझानों का भी उल्लेख किया गया है. दरअसल इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है और टीबी मरीजों के इलाज का कवरेज 80% तक बढ़ गया. 

टीबी के मामले में जागरूक हो रहा है भारत 

डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है. यानी अब पहले से ज्यादा लोग टीबी को लेकर जागरूक हैं.

इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार देश के भीतर टीबी के खिलाफ लड़ाई और लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से शुरू किए गए पहलों में टीबी के एक्टिव मरीज को ढूंढना, ब्लॉक स्तर पर निदान को बढ़ावा देना और आयुष्मान भारत केंद्रों के माध्यम से स्क्रीनिंग करना शामिल है.  

बता दें कि साल 2019 के बाद से राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण पूरा करने वाला भारत एकमात्र देश है. 

लोगों तक कितनी पहुंच पा रही है इलाज की सुविधा 

डब्ल्यूएचओ के अनुसार टीबी के मरीजों के इलाज की पहुंच के मामले में साल 2022 में भारत में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसके साथ ही यह भारत दुनिया के उन 4 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जहां 80 प्रतिशत से ज्यादा टीबी के मरीजों तक इलाज पहुंच पा रहा है.

सरकार की मानें तो साल 2021 में 22 करोड़ से ज्यादा लोगों की टीबी की जांच की गई है. इस बीमारी के जांच के लिए भारत के अलग अलग राज्यों, शहरों और गांव में 4,760 से ज्यादा जांच मशीनें लगाई गई हैं, जिनकी पहुंच हर जिले तक है. 

टीबी से कितने लोगों की गई जान 

इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी के कारण होने वाली मौत के आंकड़ों में पिछले साल की तुलना में कमी आई है. साल 2021 में देश में इस बीमारी की चपेट में आकर 4.94 लाख लोगों ने अपनी जान गवाई थी, जबकि साल 2022 में ये आंकड़ा 3.31 लाख का हो गया है.

यही कारण है कि दुनियाभर में इस बीमारे से हुई मौतों में भारत का मृत्यु दर योगदान 36 से घटकर 26 प्रतिशत पर आ गया है. 

 अपने लक्ष्य के कितने करीब है यह भारत 

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से देश में टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए साल 2025 तक का लक्ष्य रखा है. अभी इस लक्ष्य को पूरा करने में 3 साल शेष है लेकिन अगर भारत इस बीमारी को जड़ से खत्म करना चाहता है तो साल 2025 तक हर एक लाख जनसंख्या पर 44 से ज्यादा टीबी के मामले नहीं आने चाहिए.

हालांकि, वर्तमान में जो मरीजों के आंकड़े आ रहे हैं उससे इस लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल है, क्योंकि यह देश फिलहाल 2023 के लक्ष्य के हिसाब से भी पीछे चल रहा है.

2023 इस देश ने हर एक लाख लोगों पर 77 मरीज का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी 199 मामले सामने आ रहे हैं.

टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए क्या कर रही है सरकार 

साल 2018 से लेकर साल 2022 तक केंद्र सरकार ने टीबी के 71 लाख मरीजों को नि-क्षय पोषण योजना के तहत 2,000 करोड़ रुपए दिए हैं. इसके अलावा पिछले साल 1 करोड़ 40 लाख जांच और 58 लाख न्यूक्लिक एसिड एम्पिलिफिकेशन टेस्ट किए गए हैं.

साल 2020-2021 के दौरान, भारत ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के जरिए टीबी रोगियों को 670 करोड़ रुपये की राशि दी है. साथ ही प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान भी शुरू किया गया है.

क्या होता है ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) ?

ट्यूबरक्लोसिस एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है. धीरे-धीरे ये दिमाग या रीढ़ सहित शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल सकती है. 

क्यों होती है ये बीमारी?

टीबी की बीमारी की शुरुआत माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम के एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होती है. शुरुआत में तो शरीर में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह संक्रमण बढ़ता जाता है, मरीज की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. जिन लोगों के शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है, उन्हें टीबी का खतरा ज्यादा रहता है. 

ये बैक्टीरिया शरीर में कैसे प्रवेश करता है 

टीबी का बैक्टीरिया शरीर में खांसने या छींकने से हवा के जरिए प्रवेश करता है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकलने वाली छोटी-छोटी बूंदों के जरिए अन्य लोग प्रभावित हो सकते हैं.

फेफड़ों के अलावा टीही ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी या गले में भी हो सकती है. लेकिन फेफड़ों में होने वाली टीबी से ही खांसने या छीकंने के जरिए बीमारी फैलती है. 

एक्सपर्ट की मानें तो फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों में टीबी के संक्रमण को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है और टीबी की बीमारी किसी भी अंग में हो सकती है. 

इस बीमारी से बचने का तरीका 

बीमारी से दूर रहने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है जागरूक होना. अगर आप टीबी के मरीज हैं तो मरीजों को समय-समय पर जांच कराने की सलाह दी जाती है क्योंकि टीबी का सही समय पर इलाज ना होने पर बीमारी गंभीर हो जाती है. टीबी की गंभीर स्थिति में दवा लेने पर भी काम नहीं करती. 

कितने प्रकार के होते हैं ट्यूबरकुलोसिस 

टीबी दो प्रकार की होती हैं पहला लेटेंट ट्यूबरकुलोसिस और दूसरा सक्रिय ट्यूबरकुलोसिस. 

लेटेंट ट्यूबरक्लोसिस: टीबी के इस प्रकार में बैक्टीरिया इंसान के शरीर में होता तो है, लेकिन शरीर की इम्यूनिटी पावर ज्यादा होने के कारण इम्यूनिटी इस बैक्टीरिया को सक्रिय नहीं होने देती है.

लेटेंट ट्यूबरक्लोसिस के लक्षण इंसान को अनुभव नहीं होते हैं और यह बीमारी के कारण फैलती भी नहीं है. हालांकि, अगर किसी इंसान को लेटेंट ट्यूबरकुलोसिस है तो वह आगे जाकर सक्रिय ट्यूबरकुलोसिस बन सकता है.

सक्रिय ट्यूबरक्लोसिस: टीबी के इस प्रकार में बैक्टीरिया इंसानी शरीर में विकसित हो रहा होता है और इसके लक्षण भी नजर आते हैं. अगर किसी व्यक्ति को सक्रिय ट्यूबरक्लोसिस यानी सक्रिय टीबी है तो यह दूसरे को भी संक्रमित कर सकती है. 

ट्यूबरक्लोसिस को इसके अलावा भी अन्य दो भागों में बांटा जा सकता है जिसमें पल्मोनरी और एक्स्ट्रा पल्मोनरी शामिल हैं.

पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस: ये टीबी इंसान के फेफड़े को प्रभावित करता है और टीबी का प्राथमिक रूप है. ज्यादातर मामले में यह बच्चों या बूढ़ों में देखने मिलता है. 

एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस: टीबी का यह प्रकार फेफड़ों से अन्य जगहों जैसे, हड्डियां, किडनी और लिम्फ नोड आदि में हो सकता है.  

 



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फेफड़े के साथ दिल के लिए जानलेवा हुई दिल्ली की हवा, यहां सांस लेने से बढ़ रहा हार्ट अटैक

 दिल्ली की खराब आबोहवा का असर आसमान को देखने पर मालूम पड़ जा रहा है. राजधानी में चारों ओर धुंध की एक चादर बिछी हुई है.

 दिल्ली की हवा इन दिनों बेहद ही जहरीली हो गई है. मौजूदा वक्त में दिल्ली के लगभग हर इलाके में एक्यूआई 400 के पार है. ऐसे में दिल्ली की हवा में सांस लेना जहर भीतर लेने के बराबर है. इस बीच बेंगलुरू के एक कार्डियोलॉजिस्ट ने बताया है कि बेहद खराब क्वालिटी वाली हवा में सांस लेने से हार्ट अटैक की वजह से मौत होने का खतरा बढ़ जाता है. इस तरह ये कहा जा सकता है कि दिल्ली की हवा फेफड़ों के साथ-साथ दिल के लिए जानलेवा है.

दरअसल, बेंगलुरू में रहने वाले सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दीपक कृष्णमूर्ति ने दिल्ली की हवा के खतरे को बताया है. वह साकरा वर्ल्ड हॉस्पिटल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट हैं. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले लोगों को सलाह दी है कि जब भी वे घरों से बाहर निकलें मास्क को जरूर लगाएं. सड़कों पर उड़ रही धूल और धुआं फेफड़ों के साथ-साथ दिल के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. उन्होंने कई सारे ग्राफिक इमेज के जरिए खराब हवा में सांस लेने के खतरे को बताया है. 

कैसे वायु प्रदूषण बढ़ा रहा हार्ट अटैक का खतरा?

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर डॉ दीपक कृष्णमूर्ति ने कहा, 'वायु प्रदूषण दिल संबंधी बीमारियों (जैसे हार्ट अटैक) के लिए एक महत्वपूर्ण और कम गौर किए जाने वाले कारकों में से एक है. पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) के हाई लेवल की वजह से एंडोथेलियल डिसफंक्शन और कोरोनरी में खून का प्रवाह धीमा हो जाता है. इससे सूजन होती है. इसकी वजह से तेजी एथेरोस्क्लेरोसिस और थ्रोम्बस होने लगाता है, जिसे खून के थक्के बनने के तौर पर जाना जाता है.'

उन्होंने बताया, 'यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि पीएम 2.5 के साथ थोड़ा का संपर्क भी हार्ट अटैक की वजह से मौत के खतरे को बढ़ा देता है. पीएम 2.5 का असर दिल्ली के वायु प्रदूषण में भी देखा जा सकता है. अब समय आ गया है कि सरकार इस खतरे को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए.' जब उनसे पूछा गया कि क्या मास्क लगाने से खतरा कम हो जाएगा, तो डॉ कृष्णमूर्ति ने कहा, 'हां, खासतौर जब आप ट्रैफिक से गुजर रहे हों.'

एड्स, मलेरिया से ज्यादा जान ले रहा वायु प्रदूषण

डॉ कृष्णमूर्ति की तरफ से एक इंफोग्राफिक भी शेयर किया गया है, जिसमें बताया गया है कि हार्ट अटैक से होने वाली 25 फीसदी मौतें खराब हवा के साथ संपर्क में आने की वजह से होती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण वैश्विक मृत्यु दर की एक प्रमुख वजह है. इसकी वजह से दुनियाभर में एड्स, मलेरिया, तपेदिक, सड़क दुर्घटनाओं और शराब के दुरुपयोग जैसी बीमारियों से भी ज्यादा लोगों की मौत होती है.


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गाजियाबाद के लोनी में दमघोंटू हुई हवा, हालत सबसे ज्यादा खराब

 यूपी में सर्दी का मौसम आने से पहले ही कई शहरों की हवा बेहद खराब होती जा रही है. इनमें खासतौर से वो जिले शामिल हैं जो राजधानी दिल्ली से जुड़े हुए हैं.

यूपी समेत पूरे उत्तर भारत में अब सर्दी का मौसम दस्तक देने को तैयार है, लेकिन ठंड से पहले ही हवा में प्रदूषण ने सबको परेशान कर दिया है. प्रदेश में सुबह और शाम हल्की ओस हो रही है, जिसके साथ ही धूल और धुएं का असर भी हवा की गुणवत्ता पर दिखाई दे रहा है. खासतौर से राजधानी दिल्ली से सटे जनपदों नोएडा (Noida), गाजियाबाद (Ghaziabad) और ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) में हवा की गुणवत्ता खराब स्थिति में बनी हुई है. ऐसे में सांस के मरीजों को खासी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

सबसे ज्यादा खराब हालत गाजियाबाद के लोनी इलाके की है, जहां हवा की गुणवत्ता सबसे ज्यादा खराब है. दिल्ली से सटे नोएडा, गाजियाबाद और ग्रेटर नोएडा में मंगलवार को हवा चलने की वजह से प्रदूषण में थोड़ी कमी जरूर देखने को मिली थी, लेकिन बुधवार को एक बार फिर से इसका असर बढ़ गया है.

गाजियाबाद, नोएडा में बढ़ा प्रदूषण

नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक नोएडा सेक्टर 62 में आज सुबह आठ बजे एक्यूआई 260 दर्ज किया गया, जो खराब हवा की श्रेणी में आता है. वहीं ग्रेटर नोएडा में एक्यूआई लेवल 255 दर्ज किया गया. इनमें गाजियाबाद की हालत सबसे ज्यादा खराब है, बुधवार को भी लोनी इलाके में एयर क्वालिटी इंडेक्स 309 रहा, जो बेहद खराब श्रेणी में आता है. 

राजधानी लखनऊ की कैसी है हवा

उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों की बात की जाए तो मेरठ में गंगानगर स्टेशन में आज एयर क्वालिटी इंडेक्स 245 रहा और हवा की श्रेणी खराब क्वालिटी में हैं. वहीं बागपत में एक्यूआई मॉडरेट श्रेणी में 157। तक रहा, आगरा के संजय पैलेस में एक्यूआई लेवल 151 और हवा की क्वालिटी मॉडरेट श्रेणी में दर्ज की गई. बात करें राजाधनी लखनऊ में हवा की गुणवत्ता 126 तक दर्ज की गई है. जो मॉडरेट यानी मध्यम श्रेणी में आती है.

इन शहरों की हवा साफ

यूपी के ओद्योगिक नगरी कानपुर की बात की जाए तो यहां पर हवा कि क्वालिटी बेहतर देखी गई. आज यहां किदवई नगर में एक्यूआई लेवल 97 दर्ज किया गया जो संतोषजनक हालत में है वहीं वाराणसी में भी हवा की गुणवत्ता संतोषजनक बनी हुई है और एक्यूआई लेवल 89 दर्ज किया गया है. हालांकि गोरखपुर में हवा में हल्का प्रदूषण का लेवल बढ़ा है. यहां पर एयर क्लाविटी इंडेक्स 120 और हवा कि क्वालिटी मॉडरेट दर्ज की गई.


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कानपुर में संक्रमित खून चढ़ाने से 14 बच्चों की जिंदगी दांव पर

 कानपुर में थैलेसीमिया से पीड़ित 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाया गया. जिससे ये बच्चे एचआईवी, हेपेटाइटिस जैसी घातक बीमारियों की चपेट में आ गए. सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में अस्पताल की बड़ी लापरवाही सामने आई है. यहां कथित तौर पर संक्रमित खून चढ़ाने से 14 बच्चों की जिंदगी दांव पर लग गई है. ये बच्चे अब एड्स और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों की चपेट में आ गए हैं. कानपुर के मेडिकल कॉलेज में सामने आए इस मामले में इन बच्चों को खून चढ़ाने से पहले उसका टेस्ट नहीं किया गया था. वहीं मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया है. 

इस मामले पर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच के निर्देश दिये हैं. सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ बच्चों और उनके परिजनों के साथ खड़ी है. निजी लैब से खून चढ़ाने की बात शुरुआती जांच में सामने आयी है. बाकी विस्तृत रिपोर्ट सामने आने के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से निवेदन है कि ऐसे मामलों में राजनीतिक रोटियां न सेकें. 

कानपुर में बच्चे एचआईवी से संक्रमित

संक्रमित खून ने थैलेसीमिया से पीड़ित इन रोगियों की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है. दरअसल, थेलेसीमिया से पीड़ित इन 14 बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाया गया था. इनमें से ज्यादातर बच्चे एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सी की चपेट में आ गए हैं. ये बच्चे उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के हैं. 

थैलेसीमिया की बीमारी में बच्चों को हर कुछ महीने में खून चढ़ाया जाता है. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के मुताबिक, कई प्राइवेट अस्पताल या अन्य जगहों से खून चढ़वाने के बाद कुछ बच्चों में इंफेक्शन हुआ जिनकी वजह से इन्हें एचआईवी और हेपेटाइटिस बी, सी से संक्रमित होना पड़ा. 

14 बच्चों में इन्फेक्शन की पुष्टि

डॉक्टर के मुताबिक कई सालों से इन बच्चों को खून चढ़ रहा था और क्योंकि कानपुर मेडिकल कॉलेज आसपास के जिलों का एक बड़ा केंद्र है, जो इन्फेक्शन बाहर और प्राइवेट या अन्य जगहों पर डिटेक्ट नहीं होता उसे डिटेक्ट करने का सक्सेस रेट यहां ज्यादा है. ऐसे में अन्य जिलों से आए बच्चों का जब यहां टेस्ट किया गया तो उसमें से 14 बच्चों में इन्फेक्शन पुष्टि हुई है. उन्होंने स्वीकार किया कि थैलेसीमिया की स्थिति के अलावा अब नाबालिगों को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण रक्त चढ़ाना जरूरी हो गया है.

सरकार द्वारा संचालित लाला लाजपत राय (एलएलआर) अस्पताल में टेस्ट के दौरान इसका पता चला. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है कि प्राइवेट हॉस्पिटल हो या कोई ब्लड बैंक, बिल्कुल भी लापरवाही नहीं होनी चाहिए. ब्लड सैंपल्स की अच्छे से जांच होनी चाहिए ताकि इस तरीके की लापरवाही न हो पाए.

क्या है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है. इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है. जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं. इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है. इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है.


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