युवाओं में Heart Attack के बढ़ रहे मामले, AIIMS के नए शोध से खुलेंगे राज़

कोविड-19 वैक्सीन को लेकर देशभर में उठ रहे सवालों के बीच एम्स ने स्पष्ट किया है कि अब तक के अध्ययनों में कोविड वैक्सीनेशन और अचानक मौतों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है। हालांकि, एम्स ने युवाओं में अचानक हार्ट अटैक से हो रही मौतों के कारण जानने के लिए दो नए अध्ययन शुरू किए हैं।

युवाओं में अचानक हार्ट अटैक पर दो अध्ययन शुरू

गुरुवार को एम्स की ओर से इस मामले को लेकर एक प्रेस वार्ता की गई। इसमें बताया गया कि 18 से 45 वर्ष के युवाओं में हार्ट अटैक से हो रही अचानक मौतों को गंभीरता से लिया गया है। पैथोलॉजी और फॉरेंसिक विभाग की ओर से ‘युवाओं में अचानक और अज्ञात कारणों से मौत के कारण जानना’ नाम से एक अध्ययन किया जा रहा है।

पांच साल का डेटा और जेनेटिक जांच

एम्स के डॉ. सुधीर कुमार अराबा ने बताया कि भारत में यह चिंता बढ़ रही है कि 18 से 45 साल के युवा अचानक हार्ट अटैक (कोरोनरी आर्टरी डिजीज) से क्यों मर रहे हैं। पहले यह बीमारी 45 साल से ऊपर के लोगों में अधिक देखी जाती थी। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद युवाओं में हार्ट अटैक के मामले बढ़े हैं या नहीं, इसे समझने के लिए पिछले पांच साल के आंकड़ों से तुलना की जा रही है।

अध्ययन के लिए ICMR द्वारा फंड

डॉ. कुमार ने बताया कि इस अध्ययन में उन युवाओं की पूरी जेनेटिक जांच की जा रही है जो पहले स्वस्थ थे और अचानक हार्ट अटैक से मर गए। अब तक 100 लोगों की जांच हो चुकी है, लेकिन दिल में कोई ऐसी अधिक सूजन नहीं पाई गई जिससे मौत को सीधे जोड़ा जा सके।

यह अध्ययन ICMR द्वारा फंड किया गया है। पहली रिपोर्ट समीक्षा के लिए भेज दी गई है और अगले चरण में 300 और मरीजों की जांच होगी, जिसकी रिपोर्ट अगले साल आएगी।

कोविड और वैक्सीन पर अलग अध्ययन

एम्स के हेमेटोलॉजी विभाग की ओर से दूसरा अध्ययन किया जा रहा है जिसमें कोविड और वैक्सीन के दीर्घकालिक प्रभावों को देखा जाएगा। डॉ. तुलिका सेठ ने बताया कि यह अध्ययन लंबा चलेगा और अभी मरीजों का डेटा एकत्र किया जा रहा है। रिपोर्ट अगले साल तक आने की उम्मीद है।

वैक्सीन से हार्ट अटैक का सीधा लिंक नहीं : डॉ. राय

डॉ. संजय राय ने भी बताया कि पिछले अध्ययनों में वैक्सीन और हार्ट अटैक के बीच कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है।

पिछले अध्ययन में क्या निष्कर्ष निकला था

पिछले साल अक्टूबर में ICMR और एम्स के डॉक्टरों द्वारा किए गए एक बड़े अध्ययन में कहा गया था कि कोविड वैक्सीन से युवाओं में अचानक मौत का खतरा नहीं बढ़ता। बल्कि पहले कोविड से अस्पताल में भर्ती होना, परिवार में अचानक मौत का इतिहास और कुछ गलत जीवनशैली की आदतें इसके मुख्य कारण हो सकते हैं।

सरकार ने भी साफ किया स्थिति को

दो जुलाई को स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी कहा था कि कोविड वैक्सीन से युवाओं की अचानक मौत का कोई प्रमाण नहीं मिला है। यह अध्ययन मई से अगस्त 2023 के बीच देश के 19 राज्यों के 47 बड़े अस्पतालों में किया गया था।

...

दिल्ली समेत NCR में भी International Yoga Day का दिखा जोश, सीएम, मंत्री से लेकर सांसदों तक ने किया योग

दिल्ली और दिल्ली-NCR समेत देशभर में आज 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता सोनिया विहार में योग करने पहुंची। उनके साथ दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा और सांसद मनोज तिवारी भी थे। वहीं पर फरीदाबाद में केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने योग किया तो गाजियाबाद में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मोर्य ने योग किया। देखें तस्वीरें। 

गाजियाबाद: आईएमएस कॉलेज में योग करते उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य।

पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार में योग करती हुईं सीएम रेखा गुप्ता, उनके साथ सांसद मनोत तिवारी और मंत्री कपिल मिश्रा।

दक्षिणी दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष में दैनिक जागरण एवं ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद के संयुक्त तत्वाधान में एनटीपीसी बदरपुर स्थित केंद्रीय विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में योग करने के लिए जुटे प्रतिभागी।

गुरुग्राम :उद्योग विहार फेज-एक में संचालित गारमेंट सेक्टर की मल्टीनेशनल एक्सपोर्ट कंपनी मोडलामा एक्सपोर्ट इंडिया लिमिटेड के परिसर में आयोजित योग उत्सव में योगाभ्यास कराते योग एवं आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. सुनील आर्य


...

दिल्ली में फिर डराने लगा कोरोना, Covid से दो और मरीजों की मौत

दिल्ली में कोविड से दो मरीजों की मौत हो गई। पहली घटना में महज पांच महीने का एक मासूम बच्चा, जो कोविड के साथ सेरेब्रल पाल्सी (सीपी), विकास में देरी (जीडीडी), दौरे (सीज़र्स), निमोनिया और सेप्सिस से पीड़ित था, ने दम तोड़ दिया।

बच्चा पहले से ही श्वसन विफलता से ग्रस्त था और तमाम चिकित्सकीय प्रयासों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। दूसरी घटना में 87 वर्षीय बुजुर्ग मरीज की मौत हुई। वह मधुमेह (डायबिटीज), उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), हृदय रोग, किडनी की बीमारी जैसी अनेक जटिल बीमारियों से पीड़ित थे।

उन्हें गंभीर एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) और कोविड निमोनिया हो गया था, जिसके चलते उन्हें सेप्सिस और सेप्टिक शाक की स्थिति का सामना करना पड़ा। वह पहले से ही डायलिसिस पर थे। उनकी हालत बिगड़ती गई और अंततः उन्होंने दम तोड़ दिया।


...

हेल्दी लिवर के लिए सही डाइट है जरूरी, यहां जानें क्या खाएं और क्या नहीं

हेल्दी लिवर के लिए सही डाइट है जरूरी, यहां जानें क्या खाएं और क्या नहींक्या आप जानते हैं कि अगर आपका लिवर बीमार हो जाए, तो आपके पूरे शरीर का हाल बिगड़ सकता है। इसलिए अपने लिवर की सेहत के लिए जागरूक होना बहुत जरूरी है। इस बारे में लोगों को और जानकार बनाने के लिए हर साल 19 अप्रैल को वर्ल्ड लिवर डे (World Liver Day 2025) मनाया जाता है। इस दिन लिवर की हेल्थ (Liver Health) और इससे जुड़ी बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक बनाया जाता है। 

आपको बता दें कि हेल्दी लिवर के लिए हेल्दी डाइट (Healthy Diet for Liver) बहुत जरूरी है। खान-पान में हेल्दी फूड्स शामिल न होने की वजह से लिवर को नुकसान पहुंचता है और बीमारियों का खतरा बढ़ता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे फूड्स (Foods for Healthy Liver) के बारे में, जो लिवर को हेल्दी बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। 

लिवर के लिए फायदेमंद डाइट (What to Eat for Healthy Liver?)

क्रुसिफेरस सब्जियां (Cruciferous Vegetables)

ब्रोकली, पत्ता गोभी, गोभी और केल जैसी हरी सब्जियों में एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन्स और मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। ये लिवर को डिटॉक्सीफाई करने और उसकी काम करने की क्षमता बढ़ाने में मदद करती हैं।

लहसुन (Garlic)

लहसुन में सेलेनियम और एलिसिन जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो लिवर को डिटॉक्स करने और उसे इन्फेक्शन से बचाने में मददगार होते हैं। रोजाना एक या दो कली कच्चा लहसुन खाने से लिवर हेल्दी रहता है।

हल्दी में करक्यूमिन नाम का एक्टिव कंपाउंड होता है, जो लिवर की सूजन को कम करता है और उसकी मरम्मत में मदद करता है। दूध या खाने में हल्दी को नियमित डाइट में शामिल करना लिवर के लिए फायदेमंद है।

ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले फूड्स (Omega-3 Fatty Acid)

अखरोट, फ्लैक्ससीड्स, चिया सीड्स और फैटी फिश (जैसे सालमन और मैकेरल) में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो लिवर में जमा फैट को कम करता है और उसे स्वस्थ रखता है।

ग्रीन टी (Green Tea)

ग्रीन टी में कैटेचिन एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो लिवर की फंक्शनिंग को बेहतर बनाता है। रोजाना एक या दो कप ग्रीन टी पीने से लिवर डिटॉक्स होता है।

सेब और एवोकाडो (Apple and Avocado)

सेब में पेक्टिन फाइबर होता है, जो शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है। एवोकाडो में ग्लूटाथियोन एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो लिवर को डैमेज होने से बचाता है।

नींबू और संतरा (Lemon and Oranges)

विटामिन-सी से भरपूर नींबू और संतरा लिवर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद करते हैं। सुबह गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर पीने से लिवर स्वस्थ रहता है।

ऑलिव ऑयल (Olive Oil)

ऑलिव ऑयल में हेल्दी फैट्स होते हैं, जो लिवर पर जमा टॉक्सिन्स को कम करते हैं। इसे सलाद या खाना बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

लिवर के लिए हानिकारक फूड्स (What to Avoid For Healthy Liver?)

अल्कोहल- शराब पीने से लिवर सिरोसिस और फैटी लिवर की समस्या हो सकती है।

प्रोसेस्ड फूड- पैक्ड फूड, फास्ट फूड और तले-भुने स्नैक्स में ट्रांस फैट होता है, जो लिवर को नुकसान पहुंचाता है।

ज्यादा नमक- ज्यादा नमक खाने से लिवर में पानी जमा हो सकता है, जिससे सूजन की समस्या होती है।

शुगर वाली ड्रिंक्स- कोल्ड ड्रिंक्स और पैक्ड जूस में हाई फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप होता है, जो लिवर के लिए हानिकारक है।


...

रक्तदान: स्वास्थ्य लाभ और भ्रांतियां

कल्पना कीजिए कि आपके द्वारा दिया गया सिर्फ एक घंटा भी किसी की जान बचा सकता है। यही रक्तदान (Blood Donation) की शक्ति है। हर साल, लाखों लोग जीवित रहने के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन (एक मेडिकल प्रक्रिया जिसमें रक्त को रोगी के शरीर में डाला जाता है) पर निर्भर होते हैं- चाहे वे दुर्घटना के शिकार हों, कैंसर के मरीज हों या सर्जरी करवाने वाले हों। रक्तदान की भूमिका महत्वपूर्ण है, फिर भी कई लोग इसे करने से हिचकिचाते हैं। यह हिचकिचाहट अक्सर डर, भ्रम या आम गलतफहमियों से पैदा होती है। आइए रक्तदान के फायदों को समझें और उन मिथकों पर चर्चा करें जो आपको यह नेक काम करने से रोक रहे हैं।

रक्तदान आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद क्यों है?

स्वास्थ्य को पहुंचाए लाभ: रक्तदान से सिर्फ रक्त लेने वाला मरीज ही नहीं, बल्कि रक्तदाता भी लाभान्वित होता है। नियमित रूप से रक्तदान करने से शरीर में आयरन की अधिकता कम हो सकती है, हृदय रोग का खतरा घट सकता है और वजन प्रबंधन में भी सहायक हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि रक्तदान से रक्त में आयरन का स्तर संतुलित रहता है, जिससे दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा कम हो सकता है।

रक्तदान करके, आप न केवल दूसरों की मदद करते हैं बल्कि अपने हृदय को भी मजबूत बनाते हैं। इसके अलावा, रक्तदान से पहले एक त्वरित स्वास्थ्य जांच होती है, जिसमें रक्तचाप, हीमोग्लोबिन स्तर और पूरे स्वास्थ्य की जांच शामिल होती है। यह एक निःशुल्क मिनी हेल्थ चेकअप की तरह है, जो आपके स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में अहम जानकारी देता है।

संतोष और सामुदायिक जुड़ाव की भावना

यह जानना अविश्वसनीय रूप से संतोषजनक होता है कि आपके एक छोटे से प्रयास ने किसी के जीवन को बचाने में मदद की। रक्तदान से आपको अपने समुदाय से गहरा जुड़ाव महसूस होता है और यह समाज के प्रति योगदान देने का एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका है। इसके अलावा, जब आप किसी की मदद करते हैं, तो आपके शरीर में "फील-गुड" हार्मोन एंडोर्फिन रिलीज होता है, जिससे आपका मूड बेहतर होता है और तनाव कम होता है।

जब आप जानेंगे कि आपके रक्तदान से किसी की जान बची है, तो आपको आत्मसंतुष्टि और उपलब्धि की भावना का एहसास होता है। क्या आप जानते हैं कि एक बार रक्तदान करके आप तीन लोगों की जान बचा सकते हैं? सोचिए, सिर्फ एक घंटे में आप किसी व्यक्ति का जीवन बदल सकते हैं, चाहे वह व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो या सर्जरी या कैंसर के उपचार से गुजर रहा हो। रक्त एक अनमोल रिसोर्स है, और इसे दान करने से अस्पतालों को आपात स्थितियों में तैयार रहने में मदद मिलती है।

रक्तदान के बारे में आम मिथकों का खंडन

'रक्तदान दर्दनाक है और इसके लिए मेरी उम्र सही नहीं है'

यह सच है कि इंजेक्शन का नाम सुनते ही डर लगता है, लेकिन रक्तदान की प्रक्रिया आमतौर पर बहुत कम दर्दनाक होती है। कई लोग जो ब्लड डोनेट कर सकते हैं, वे मानते हैं कि वे योग्य नहीं हैं, जबकि अधिकांश स्वस्थ वयस्क रक्तदान कर सकते हैं। रक्तदान के लिए सामान्य एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया हैं:

अच्छा स्वास्थ्य

18 से 65 वर्ष की आयु (पहली बार रक्तदान करने वालों के लिए 60 वर्ष)

कम से कम 45 किलोग्राम वजन

अगर इसके बाहजूद भी आपको कोई संदेह है, तो अपने नजदीकी रक्तदान केंद्र से जानकारी लें।

'रक्तदान में बहुत समय लगता है और इससे कमजोरी आएगी'

रक्तदान की पूरी प्रक्रिया, जिसमें रजिस्ट्रेशन, चिकित्सा जांच और रक्तदान शामिल है—आमतौर पर सिर्फ एक घंटे का समय लेती है। असल में रक्तदान तो केवल 8-10 मिनट में हो जाता है, जिसके बाद थोड़ी देर आराम और स्नैक्स के लिए जाते हैं। इसे किसी के जीवन को बचाने के लिए छोटा-सा योगदान समझें।

कई लोग मानते हैं कि रक्तदान के बाद कमजोरी आएगी, लेकिन यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है। आपका शरीर दान किए गए रक्त को कुछ घंटों के भीतर फिर से बना लेता है। थोड़ी देर के लिए हल्की थकान महसूस हो सकती है, लेकिन यह जल्द ही खत्म हो जाती है।

'रक्तदान केवल कुछ खास ब्लड टाइप वाले लोगों के लिए है'

एक गलत धारणा है कि केवल कुछ खास ब्लड टाइप वाले लोगों को ही रक्त की जरूरत होती है, जबकि वास्तव में सभी ब्लड ग्रुप मूल्यवान होते हैं। उदाहरण के लिए, O-नेगेटिव ब्लड सभी को दिया जा सकता है, लेकिन रोगियों की अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए सभी ब्लड ग्रुप आवश्यक हैं।

'अगर मेरे पास टैटू, पियर्सिंग है या मैं दवाइयां ले रहा हूं, तो मैं रक्तदान नहीं कर सकता'

अगर आपका टैटू या पियर्सिंग किसी लाइसेंस प्राप्त, रेगुलेटेड केंद्र में हुआ है और आपने जरूरी 12 महीने की प्रतीक्षा अवधि पूरी कर ली है, तो आप रक्तदान कर सकते हैं। वहीं, अगर आप दवाइयां ले रहे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप रक्तदान नहीं कर सकते। आमतौर पर, यह दवा की बजाय उसके प्रेस्क्रिप्शन पर निर्भर करता है। कुछ दवाओं के मामले में, अंतिम खुराक लेने के बाद थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है।

'रक्तदान जीवन में सिर्फ एक बार किया जा सकता है'

यह सबसे बड़ा मिथक है! स्वस्थ व्यक्ति हर 3 महीने में एक बार रक्तदान कर सकता है। रक्तदान के बाद शरीर जल्दी ही रक्त की भरपाई कर लेता है, जिससे नियमित रक्तदान संभव हो पाता है। रक्तदान को आसान और सुरक्षित बनाने के लिए कुछ सुझाव

पर्याप्त मात्रा में पानी और अन्य तरल पदार्थ पिएं।

रक्तदान से पहले पौष्टिक भोजन करें और अच्छी नींद लें।

ढीले-ढाले कपड़े पहनें ताकि कोहनी तक आस्तीन आसानी से ऊपर हो सके।

अगर कोई स्वास्थ्य समस्या हो, तो डॉक्टर से सलाह लें।

जैसा कि हम देख सकते हैं, रक्तदान के लाभ दूरगामी हैं- न केवल रोगी के लिए, बल्कि रक्तदाता के लिए भी। रक्तदान करके आप न केवल अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना रहे हैं, बल्कि एक स्वस्थ और अधिक परोपकारी समाज बनाने में भी योगदान दे रहे हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात—आप उन लोगों को जीवनरक्षक उपहार के रूप में रक्त प्रदान कर रहे हैं, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। तो, मिथकों को छोड़िए और आज ही रक्तदान कीजिए। हर दान मायने रखता है। हर बूंद महत्वपूर्ण है।

हीरो बनें। रक्तदान करें। जीवन बचाएं।

डॉ. अंजलि हजारिका

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड)

प्रभारी - ब्लड ट्रांसफ्यूजन सर्विस

कार्डियो-न्यूरो सेंटर

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली-110029

...

महाराष्ट्र में GB सिंड्रोम के 130 मरीज, 20 वेंटिलेटर पर

महाराष्ट्र के पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के मामले बढ़कर 130 हो गए हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने अब तक के परीक्षण में पानी में कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि बैक्टीरिया नहीं मिला है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी अब जीन अनुवांशिकी के माध्यम से इस बैक्टीरिया के स्वरूप का विश्लेषण करेगा। इससे प्रकोप के कारणों का पता चलेगा।

यह बैक्टीरिया कम से कम पांच मरीजों के मल के नमूनों में पाया गया था। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) अब इस रहस्य को सुलझाने के अन्य तरीकों पर विचार कर रहा है। इस बीच, तीन और मामलों की पुष्टि के साथ जीबीएस के मरीजों की संख्या बढ़कर 130 हो गई है। विभिन्न अस्पतालों में 20 मरीज अभी भी वेंटिलेटर पर हैं।

कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि का अध्ययन करेगा एनआईवी

एनआईवी अब मरीजों में पाए गए कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि का अध्ययन करेगा। वे यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या मरीज कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि के किसी खतरनाक प्रकार से संक्रमित हुए थे। अधिकारियों ने कहा कि कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि के पूरे बैक्टीरियल जीनोम की आनुवंशिक विशेषताओं का अध्ययन करने से इसके विषाणु के बारे में जानकारी मिल सकती है।

डॉक्टरों ने कही ये बात

डॉ. डी वाई पाटिल मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. शहजाद बेग मिर्जा ने बताया कि एनआईवी के विश्लेषण से यह पता चल सकता है कि क्या जीबीएस के कई मामलों के लिए कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि का कोई विशिष्ट प्रकार जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कुछ कैंपाईलोबेक्टर जेजुनि प्रकार, जिनमें विशेष आनुवंशिक लक्षण होते हैं, जीबीएस से दृढ़ता से जुड़े होते हैं। जीबीएस के पीछे प्रमुख तंत्र 'आणविक मिमिक्री' है। बैक्टीरिया के घटकों और मानव तंत्रिका संरचनाओं के बीच समानता के कारण प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया गलती से तंत्रिका तंत्र पर हमला कर सकती है।

शरीर पर ऐसे हमला करती है ये बीमारी

बैक्टीरिया के एक घटक एलओएस (लाइपोओलिगोसेकेराइड) में बदलाव इस प्रकोप की गंभीरता का एक कारण हो सकता है। आनुवंशिक अध्ययन से यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि क्या इस प्रकोप में शामिल प्रकार में ये उच्च जोखिम वाले आनुवंशिक लक्षण हैं, जो जीबीएस मामलों की बढ़ी हुई संख्या की व्याख्या कर सकते हैं। जीबीएस एक दुर्लभ लेकिन इलाज योग्य बीमारी है जो मरीज के तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है।







...

पुणे में संदिग्‍ध बीमारी से हाहाकार, एक मरीज की मौत और 17 वेंटिलेटर पर

महाराष्ट्र के पुणे में दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी से हड़कंप मच गया है। पुणे और उसके आसपास के शहरों में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। मामलों की संख्या 100 के आंकड़े को पार कर गई है। सोलापुर में तो एक संदिग्ध की इसके कारण मौत हो गई है।

सोलापुर में एक व्यक्ति की मौत

स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, महाराष्ट्र के सोलापुर में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिसके तंत्रिका संबंधी विकार 'गुइलेन-बैरे सिंड्रोम' से पीड़ित होने का संदेह था। पीड़ित पुणे में संक्रमण हुआ और बाद में वह सोलापुर पहुंचा।

सोलापुर मामले के अलावा, महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग ने पुणे, पिंपरी चिंचवाड़, पुणे ग्रामीण और कुछ पड़ोसी जिलों में जीबीएस के संदिग्ध 18 अन्य लोगों की भी पहचान की है। विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे 101 मरीजों में से 16 वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। इनमें 68 पुरुष और 33 महिलाएं हैं।

मरीजों की संख्या हुई 100 के पार

राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा शुरू से किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि 101 मरीजों में से 19 मरीज 9 वर्ष से कम उम्र के हैं, 15 मरीज 10-19 आयु वर्ग के हैं, 20 मरीज 20-29 आयु वर्ग के हैं, 13 मरीज 30-39 आयु वर्ग के हैं, 12 मरीज 40-49 आयु वर्ग के हैं, 13 मरीज 50-59 आयु वर्ग के हैं, 8 मरीज 60-69 आयु वर्ग के हैं, और एक 70-80 आयु वर्ग का है।

इनमें से 81 मरीज पुणे नगर निगम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों से, 14 पिंपरी चिंचवड़ नगर निगम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों से और शेष 6 अन्य जिलों से हैं।

ये मामले तब प्रकाश में आए जब अस्पतालों ने मुख्य रूप से सिंहगढ़ रोड, खड़कवासला, धायरी, किरकट-वाडी और आसपास के क्षेत्रों से जीबीएस रोगियों की रिपोर्ट करना शुरू किया।

संदूषण की आशंका के चलते पुणे के विभिन्न भागों से पानी के नमूने रासायनिक और जैविक विश्लेषण के लिए भेजे गए हैं।

शुरुआती दिनों में, 23 रक्त के नमूने भी एकत्र किए गए थे और उन्हें आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को भेजा गया था। इन रक्त नमूनों में डेंगू, जीका और चिकनगुनिया के लिए नकारात्मक परीक्षण किया गया।

हालांकि, जीबीएस रोगियों के 11 मल के नमूनों में से नौ नोरोवायरस संक्रमण के लिए सकारात्मक पाए गए। इनमें से 3 नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी जीवाणु संक्रमण के लिए भी सकारात्मक परीक्षण किया गया।

लिया गया कुएं के पानी का सैंपल

डॉ. भोसले ने कहा, इसके अलावा, मैंने सभी निजी अस्पतालों में चार सहायक चिकित्सा अधिकारियों को तैनात करने का निर्देश दिया है, जो सभी चीजों की निगरानी करेंगे और मरीजों और उनके रिश्तेदारों की जो भी जरूरतें होंगी, उन्हें पूरा किया जाएगा। मैं उन सभी स्रोतों पर गया था, जहां से कुएं के पानी को पंप किया गया है और हमने इसका परीक्षण किया है... चूंकि हम मरीज की पहचान कर रहे हैं, इसलिए हम सभी नागरिकों से पानी उबालकर पीने और फिर उस तरह के पानी का सेवन करने के लिए कह रहे हैं। घबराने की कोई बात नहीं है।

गिलियन-बैरे सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिकाओं पर हमला करती है। यह कमजोरी, सुन्नता या पक्षाघात का कारण बन सकता है। हाथों और पैरों में कमजोरी और झुनझुनी आमतौर पर पहले लक्षण होते हैं। ये संवेदनाएं तेजी से फैल सकती हैं और पक्षाघात का कारण बन सकती हैं। इस स्थिति वाले अधिकांश लोगों को अस्पताल में इलाज की आवश्यकता होती है। गिलियन-बैरे सिंड्रोम दुर्लभ है, और इसका सटीक कारण ज्ञात नहीं है।

कब होती है GBS बीमारी?

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि रविवार तक 25,578 घरों का सर्वे किया जा चुका है। हमारा मकसद ज्‍यादा से ज्‍यादा बीमार लोगों को ढूंढना और जीबीएस मामलों में वृद्धि के लिए ट्रिगर का पता लगाना है।

बताया गया कि जीबीएस का इलाज काफी महंगा है। हर इंजेक्शन की कीमत 20,000 रुपये है। जीबीएस तब होता है जब शरीर का इम्‍यूनिटी सिस्‍टम सहित बैक्टीरिया वायरल संक्रमण पर प्रतिक्रिया देते वक्‍त दिमाग के संकेतों को ले जाने वाली नसों पर गलती से हमला करती है।

5 मरीजों को मिली इलाज के बाद छुट्टी

पुणे नगर निगम (पीएमसी) आयुक्त के एक अधिकारी ने बताया कि महाराष्ट्र के पुणे जिले में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 64 मामले सामने आए हैं। पाए गए सभी मामलों में से लगभग 13 मरीज वेंटिलेटर पर हैं, जबकि पांच मरीजों को ठीक होने के बाद छुट्टी दे दी गई है।

रविवार को एएनआई से बात करते हुए, पीएमसी कमिश्नर डॉ राजेंद्र भोसले ने कहा, इस समय, पुणे नगर निगम क्षेत्र में लगभग 64 मरीज हैं। इनमें से 13 वेंटिलेटर पर हैं। 5 मरीजों को ठीक होने के बाद छुट्टी दे दी गई है। कमला नेहरू अस्पताल में पीएमसी ने 15 आईसीयू बेड की पहचान की है, जहां हम जीबीएस से प्रभावित मरीजों को मुफ्त इलाज देंगे। जो लोग गरीब हैं और इलाज का खर्च नहीं उठा सकते, उनके लिए हमारे पास 'सेहरी गरीब योजना' है।

अधिकारी ने आगे बताया कि पीएमसी ने चार सहायक चिकित्सा अधिकारियों को निजी अस्पतालों की स्थिति पर नजर रखने तथा मरीजों और उनके परिजनों की जरूरतों और आवश्यकताओं में सहायता करने का निर्देश दिया है।

डॉ. भोसले ने बताया कि पीएमसी की टीमें विभिन्न स्रोतों से पानी का परीक्षण कर रही हैं। उन्होंने बताया कि निवासियों को पानी उबालकर पीने को कहा गया है।

स्वास्थ्य विभाग ने जारी की सलाह

स्‍वास्‍थ्‍य विभाग को 9 जनवरी को पुणे के अस्पताल में भर्ती एक मरीज पर इस क्लस्टर के अंदर पहला जीबीएस मामला होने का संदेह है। परीक्षणों से अस्पताल में भर्ती मरीजों से लिए गए कुछ नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। इससे पहले शनिवार को प्रशासन द्वारा जारी किए गए परीक्षण के नतीजों से पता चला था कि पुणे में पानी के मुख्य सोत्र खडकवासला बांध के पास एक कुएं में बैक्टीरिया ई कोली का हाई-लेवल है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि कुएं का उपयोग किया जा रहा था या नहीं। लोगों को सलाह दी गई है कि वे पानी को उबाल लें और खाने से पहले उसे गर्म कर लें।

मरीजों का होगा मुफ्त में इलाज- अजित पवार

पुणे में बढ़ रहे गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के बढ़ते मामलों को लेकर डिप्टी सीएम अजित पवार ने बड़ा एलान किया है। उन्होंने कहा कि बीमारी से पीड़ित मरीजों का अब मुफ्त इलाज होगा। मरीजों को दवाएं मुहैया कराने के लिए भी सरकार ने फैसला लिया।


...

रूस बना रहा एक और वैक्सीन, 48 घंटे में दिखेगा असर

आज के समय में पूरी दुनिया कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से परेशान है। कैंसर का मंहगा इलाज और वैक्सीन ना मिलने के कारण कई लोगों की मौत हो जाती है। वहीं, इस बीच रूस ने इस बीमारी के समाधान के लिए एक बड़ा एलान किया है, रूस ने कहा कि उसने कैंसर की वैक्सीन बना ली, जो सभी नागरिकों के लिए फ्री में उपलब्ध होगी।

रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर आंद्रेई काप्रिन ने कहा, रूस की इस कैंसर वैक्सीन को अलग-अलग तरह के मरीजों के लिए अलग-अलग बनाया जाएगा।

इस खासियत की वजह से इसकी कीमत करीब 2.5 लाख रुपए होगी। रूसी नागरिकों को ये वैक्सीन मुफ्त में मिलेगी। हालांकि दुनिया के बाकी देशों के ये वैक्सीन कब मिलेगी, इसके बारे में काप्रिन ने कोई जानकारी दी है।

2025 में कैंसर वैक्सीन होगी लॉन्च

रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एलान किया है कि उसने कैंसर के खिलाफ एक टीका बना लिया है जिसे 2025 की शुरुआत से रूस के कैंसर रोगियों को फ्री में लगाया जाएगा।

रूसी राज्य के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी TASS के अनुसार, रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के जनरल डायरेक्टर एंड्री काप्रिन ने रूसी रेडियो चैनल पर इस वैक्सीन को लेकर जानकारी दी।

वहीं, डायरेक्टर आंद्रेई काप्रिन ने बताया कि प्रीक्लिनकल ट्रायल में वैक्सीन प्रभावी साबित हुई है। इससे ट्यूमर का विकास धीमा होने के साथ उस पर 80% तक कमी देखी गई है। इस वैक्सीन को मरीजों के ट्यूमर सेल्स के डेटा के आधार पर स्पेशल प्रोग्राम के जरिए डिजाइन किया जाता है।

48 घंटो में होगा वैक्सीन का असर

रूस की फेडरल मेडिकल बायोलॉजिकल एजेंसी की प्रमुख वेरोनिका स्वोर्त्सकोवा ने वैक्सीन के काम करने के तरीके को मेलानोमा (स्किन कैंसर) से समझाया है। सबसे पहले कैंसर के रोगी में से कैंसर सेल्स का सैंपल लिया जाता है।

इसके बाद वैज्ञानिक इस ट्यूमर के जीन की सीक्वेंसिंग करते हैं। इसके जरिए कैंसर सेल्स में बने प्रोटीन की पहचान की जाती है। प्रोटीन की पहचान के बाद पर्सनलाइज्ड mRNA वैक्सीन बनाई जाती है। R को लगने वाली कैंसर वैक्सीन शरीर को T सेल्स बनाने का आदेश देती है।

ये T सेल्स ट्यूमर पर हमला कर कैंसर को खत्म कर देती हैं। इसके बाद इंसानी शरीर ट्यूमर सेल को पहचानने लगता है, जिससे कैंसर दोबारा नहीं लौटता है।

अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा के कैंसर एक्सपर्ट एलियास सयूर के 

मुताबिक इस तकनीक से बन रही वैक्सीन ने ब्रैन कैंसर के लिए 48 घंटों से भी कम वक्त में असर दिखा दिया था।

एक और वैक्सीन का एलान करेगा रूस

रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल मेडिकल रिसर्च रेडियोलॉजिकल सेंटर की वेबसाइट के मुताबिक कैंसर से लड़ने के लिए दो तरह की खोज में जुटे हुए थे। इनमें पहली mRNA वैक्सीन और दूसरी दूसरी ऑन्कोलिटिक वायरोथेरेपी है।

इस थेरेपी के तहत लैब में मॉडिफाई किए गए इंसानी वायरस से कैंसर सेल्स को टारगेट कर संक्रमित किया जाता है। इससे वायरस कैंसर सेल्स में खुद को मल्टीप्लाय करती है। इसका नतीजा ये होता है कि कैंसर सेल नष्ट हो जाती है। यानी इस थेरेपी में ट्यूमर को सीधे तौर पर नष्ट करने की जगह इम्युनिटी को सक्रिय करके कैंसर सेल्स नष्ट की जाती है।

इस थेरेपी के लिए बनाई जा रही वैक्सीन का नाम एंटेरोमिक्स है। इस वैक्सीन का रिसर्च साइकिल पूरा हो चुका है। जल्द ही इसका ऐलान हो सकता है।


...

74 करोड़ भारतीयों को फाइलेरिया का खतरा

भारत ने बीते कुछ सालों में लिम्फेटिक फाइलेरिएसिस (फाइलेरिया) से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हाल ही में नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल (NCVBDC) ने इस बीमारी से निपटने के लिए 6 राज्यों के 63 जिलों को टारगेट करके एक मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) अभियान चलाया। इसका उद्देश्य साल 2023 में अचीव किए गए 82.5% कवरेज रेट को पार करना था।

फाइलेरिया एक संक्रामक बीमारी है, जो मच्छर के काटने से फैलती है। इसके कारण फ्लूइड रिटेंशन हो सकता है यानी शरीर के किसी हिस्से में फ्लूइड जमा हो सकता है। कई मामलों में तो इससे विकृति या विकलांगता भी हो सकती है।

इस बीमारी से जो अंग प्रभावित होता है, वह सूजकर भारी-भरकम हो जाता है। आमतौर पर इसके चलते पैर का आकार बहुत भारी हो जाता है। यही कारण है कि इसे एलिफेंटियासिस या हाथी पांव बीमारी भी कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में लोग इसे फाइलेरिया कहते हैं। मौजूदा वक्त में भारत के 74 करोड़ लोगों को फाइलेरिया का रिस्क है।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे फाइलेरिया की। साथ ही जानेंगे कि-

फाइलेरिया के क्या लक्षण होते हैं?

यह बीमारी कैसे फैलती है?

इसका इलाज और बचाव के उपाय क्या हैं?

भारत में 3.1 करोड़ लोगों को है फाइलेरिया

इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के लगभग 74 करोड़ लोगों को फाइलेरिया का रिस्क है, जबकि 3.1 करोड़ लोग इससे संक्रमित हैं। इनमें लगभग 2.3 करोड़ लोग सिंप्टोमेटिक हैं यानी उनके शरीर में इसके लक्षण नजर आते हैं। ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो फाइलेरिया से संक्रमित हैं पर उनके शरीर में इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। इसके बावजूद उनका लिम्फेटिक सिस्टम और किडनी डैमेज हो रहे हैं।

फाइलेरिया होने पर हाथ-पैर बड़े क्यों होने लगते हैं?

लिम्फेटिक सिस्टम हमारे शरीर का महत्वपूर्ण तंत्र है।

यह टिश्यूज से अतिरिक्त पानी को निकालकर वापस ब्लड स्ट्रीम में ले जाता है।

यह एक तरह की व्हाइट ब्लड सेल्स बनाता है, जो कीटाणुओं से लड़कर हमें बीमारियों से बचाती हैं।

यह डाइजेस्टिव सिस्टम से फैट सॉल्यूबल विटामिन और प्रोटीन एब्जॉर्प करके उसे ब्लड स्ट्रीम में भेजता है।

यह हमारे ब्लड से वेस्ट प्रोडक्ट को ट्रांसपोर्ट करता है। इसे किडनी यूरिन के जरिए बाहर निकालती है।

लिम्फेटिक सिस्टम ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में बनाए रखने में मदद करता है।

इस सिस्टम के खराब होने से इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ने लगता है। टिश्यूज में पानी भरने लगता है। इसके कारण इन्फेक्शन और एलर्जी का जोखिम बढ़ जाता है और इन्फेक्टेड अंगों में सूजन बढ़ने से उनका आकार बढ़ने लगता है।

फाइलेरिया के क्या लक्षण होते हैं?

गुरुग्राम के नारायणा हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पंकज वर्मा कहते हैं कि फाइलेरिया के ज्यादातर मामलों में कोई लक्षण नजर नहीं आता है। इसका मतलब है कि ज्यादातर लोग एसिंप्टोमेटिक होते हैं।

इससे संक्रमित कुछ लोगों में हल्के लक्षण नजर आते हैं, जबकि हर 3 में से 1 व्यक्ति में इसके लक्षण गंभीर होते हैं। इसमें हाथ, पैर या चेहरा इतने भारी हो जाते हैं कि यह विकलांगता का रूप ले लेता है।

इसके क्या लक्षण होते हैं, ग्राफिक में देखिए।

फाइलेरिया का असर किन अंगों पर पड़ता है?

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, फाइलेरिया का असर कई अंगों पर होता है। इससे किडनी पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा हाथ-पैर और स्किन भी प्रभावित होती है। इससे हमारा इम्यून सिस्टम भी प्रभावित होता है।

डॉ. पंकज वर्मा कहते हैं कि फाइलेरिया का मुख्य कारण परवीजी होते हैं। ये हमारे लिम्फेटिक सिस्टम को धीरे-धीरे खराब करते हैं। पहले इसका असर इंटरनल ऑर्गन्स पर होता है। इसलिए शुरुआत में कुछ पता नहीं चलता है। जब संक्रमण बहुत बढ़ जाता है तो शरीर के बाहरी अंगों में भी इसका असर दिखने लगता है।

फाइलेरिया के कारण क्या कॉम्प्लिकेशन होते हैं

इस बीमारी में सबसे बड़ा कॉम्प्लिकेशन ये है कि हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। शरीर छोटी-छोटी एलर्जी और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से नहीं लड़ पाता है। हर छोटी-बड़ी बीमारी घेरने लगती है।

इसके अलावा टिश्य़ूज में फ्लूइड जमा होने के कारण पैदा हुआ इंफ्लेमेशन भी बड़ी समस्या है।

फाइलेरिया परजीवी वर्म के कारण होता है। ये वर्म बहुत धीरे-धीरे ब्लड स्ट्रीम के जरिए लिम्फेटिक सिस्टम में पहुंचते हैं। वहां एक एडल्ट परजीवी वर्म 7 साल तक जिंदा रहता है। यह इस दौरान लाखों परजीवी पैदा करता है। इनकी संख्या में बहुत तेजी से इजाफा होता है। इसलिए इलाज करना मुश्किल हो जाता है।

फाइलेरिया का इलाज क्या है

डॉ. पंकज वर्मा कहते हैं कि फाइलेरिया का इन्फेक्शन होने पर शुरुआती दिनों में इसका इलाज कमोबेश आसान है। इसके लक्षण भी गंभीर होने से रोके जा सकते हैं, लेकिन समय बीतने के साथ इसका इलाज मुश्किल होता जाता है। समस्या ये भी है कि शुरुआती दिनों में इसके लक्षण नहीं पता चलते हैं। इसलिए यह लाइफटाइम डिजीज बन जाती है।

इसके इलाज में अल्बेंडाजोल, डीईसी और आईवरमेक्टिन दवाएं दी जाती हैं।

फाइलेरिया है तो बरतें सावधानियां

डॉ. पंकज वर्मा कहते हैं कि अगर किसी को फाइलेरिया है तो उसे अपनी लाइफस्टाइल में कुछ सुधार करने चाहिए, ताकि बैक्टीरियल इन्फेक्शन और एलर्जी से बचा जा सके और जिंदगी आसान बन सके।

फाइलेरिया से बचने के क्या उपाय हैं

फाइलेरिया से बचने का सबसे अच्छा उपाय ये है कि हमें मच्छर के काटने से बचना चाहिए। चूंकि भारत में फाइलेरिया का रिस्क काफी ज्यादा है तो हमें विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।


...

भारत को करनी चाहिए अगली महामारी की तैयारी

कोरोना महामारी को आखिर कोई कैसे भूल सकता है. कोरोना के 4 साल बीतने के बाद भी लोग वो डरावने साल को अब तक भूल नहीं पाए हैं. कोविड महामारी के उस खतरनाक मंजर को किसी के लिए भूलना बेहद मुश्किल है. 4 साल बाद भी कोरोना महामारी के जख्म ताजा है. कोविड संकट के कारण कई परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गए. नीति आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की है. जिसमें बताया है कि स्वास्थ्य आपात स्थितियों या महामारियों से निपटने के लिए एक खास बॉडी बनाई जा रही है.

इसका नाम 'पैंडेमिक प्रिपेयर्डनेस एंड इमरजेंसी रिस्पांस' (PPER) होगा. साथ ही इसमें 'पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी मैनेजमेंट एक्ट' (PHEMA) बनाने और सलाह देने के लिए रखी गई है. महामारी फैलने के 100 दिनों के अंदर प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित होगी. चार सदस्यीय समूह का गठन कोविड-19 के बाद भविष्य की महामारी की तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने के लिए किया गया था.

महामारी के लिए 100-दिवसीय

इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकोप के पहले 100 दिन प्रभावी प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसमें कहा गया है कि इस अवधि के भीतर उपलब्ध कराई जा सकने वाली रणनीतियों और जवाबी उपायों के साथ तैयार रहना महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट किसी भी प्रकोप या महामारी के लिए 100-दिवसीय प्रतिक्रिया के लिए एक कार्य योजना प्रदान करती है.

प्रस्तावित सिफारिशें नए पीपीईआर ढांचे का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की तैयारी के लिए रोड मैप और कार्य योजना तैयार करना और इन 100 दिनों में एक अच्छी तरह से व्यक्त प्रतिक्रिया देना है. विशेषज्ञ समूह ने चार क्षेत्रों में सिफारिशें की हैं: शासन और कानून, डेटा प्रबंधन और निगरानी, अनुसंधान और नवाचार, और जोखिम संचार.

शासन के लिए, रिपोर्ट में एक अलग कानून (PHEMA) बनाने की सिफारिश की गई है, जो स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की अनुमति देगा, जिसमें रोकथाम, नियंत्रण और आपदा प्रतिक्रिया शामिल होगी, साथ ही यह राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कुशल सार्वजनिक स्वास्थ्य संवर्गों के निर्माण का भी प्रावधान कर सकता है.

समूह की रिपोर्ट में कहा गया है PHEMA महामारी से परे विभिन्न पहलुओं को संबोधित कर सकता है. जिसमें गैर-संचारी रोग, आपदाएं और जैव-आतंकवाद शामिल हैं, और इसे विकसित देशों में लागू किया जाना चाहिए. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रणनीतियों और प्रतिवादों के साथ तैयार रहना महत्वपूर्ण है. जिन्हें पहले 100 दिनों के भीतर उपलब्ध कराया जा सकता है.


...