दुनिया के लिए आफत बन गया चीन का ये अनोखा कीड़ा

भारत का पड़ोसी देश चीन अक्सर अपने कारनामों की वजह से दुनिया में बदनाम होता है. कभी किसी वायरस की वजह से तो कभी अपनी गलत सीमा नीतियों की वजह से. लेकिन इस बार चीन अपने यहां के एक कीड़े की वजह से दुनियाभर में बदनाम हो रहा है. दरअसल, चीन का ये अनोखा कीड़ा पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है. इसके अंदर इतनी शक्ति है कि यह पूरा का पूरा जंगल तबाह कर सकता है.

कौन सा है ये कीड़ा?

हम जिस कीड़े की बात कर रहे हैं. उसे लॉन्ग हॉर्न बीटल कहा जाता है. एक समय तक ये सिर्फ चीन, ताइवान और कोरिया के कुछ हिस्सों में ही पाया जाता था. हालांकि, आज ये दुनिया के कई देशों में पहुंच गया है. ये कीड़ा पेड़ों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है. लेकिन अगर ये आपके घर के अंदर पहुंच गया तो वहां मौजूद लकड़ी की हर चीज तबाह कर सकता है.

इसे भगाना मुश्किल है?

इस कीड़े की सबसे खास बात है कि अगर ये किसी पेड़ या पौधे में लग गया तो उसे वहां से हटाना लगभग नामुमकिन है. इसे हटाने का एक ही रास्ता है कि उस टहनी को काट दिया जाए, जिसे इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया है. अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मध्य पूर्व, ऑस्ट्रेलिया, स्‍व‍िटजरलैंड और भारत के कई राज्‍यों में यह कीड़ा आफत मचा रहा है.

वैज्ञानिक भी हैरान

इस कीड़े से वैज्ञानिक भी हैरान हैं. जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, अगर ये कीड़ा आपके घर में घुस जाए तो यह आपका सोफा, डाइनिंग टेबल, कुर्सियां यहां तक खिड़कियां और दरवाजे भी खा सकता है. स्‍व‍िटजरलैंड में तो इस कीड़े की वजह से जंगल का एक पूरा हिस्सा काटना पड़ा था. खासतौर से बांस की लकड़ी को यह कीड़ा सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. दरअसल, लॉन्ग हॉर्न बीटल गोल छेद बनाता है और वहीं अंडे देते हैं. इसके बाद बच्‍चे पैदा करते हैं और फ‍िर तेजी से फैल जाते हैं.


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RO का 'शुद्ध' पानी पीते हैं तो सावधान, डॉक्टर ने दी चेतावनी

भारत के ज्यादातर घरों में स्वच्छ पानी के लिए RO यानी वाटर प्यूरीफायर लगा हुआ है. आमतौर पर हमें ये बताया जाता है कि आरओ का पानी सेहत के लिए काफी अच्छा होता है. यही कारण है कि हम अपने घरों में महंगे से महंगा वाटर प्यूरीफायर (RO) लगवाते हैं. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी की विशेषज्ञों ने आरओ का पानी पीना सेहत के लिए हानिकारक बताया है.

दरअसल हाल ही में आरओ सिस्टम पर एक वेबिनार हुआ था. जिसमें विशेषज्ञों ने बताया कि आरओ यानी वाटर प्यूरीफायर से जब हम पानी साफ करते हैं तो इस प्रक्रिया के दौरान न सिर्फ पानी की गंदगी खत्म होती है, बल्कि पानी में घुले खनिज पदार्थों भी खत्म हो जाते हैं. 

ऐसे में RO का पानी जब शरीर में जाता है तो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है. साफ साफ कहा जाए तो आरओ के पानी का लंबे समय से सेवन करने से शरीर में कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती है. 

वेबिनार में विशेषज्ञों ने क्या कहा

इस वेबिनार के दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि अगर आप अपने घर में आरओ का इस्तेमाल कर ही रहे हैं, तो इस बात का ख्याल रखें कि प्यूरिफाई किए गए पानी में कम से कम 200 से 250 मिलीग्राम प्रति लीटर के दर से ठोस पदार्थ घुले हुए हो. 

अगर आप ठोस पदार्थ वाला पानी पीते हैं तो आपके शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसी जरूरी खनिजों की सप्लाई होती रहेगी.

डब्ल्यूएचओ भी दे चुके हैं चेतावनी 

बता दें कि इस वेबिनार से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन भी आरओ फिल्टर के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दे चुके हैं. साल 2019 में ही डब्ल्यूएचओ ने कहा था, 'आरओ फिल्टर पानी को साफ तो करती है लेकिन इसके कैल्शियम और मैग्नीशियम को खत्म कर देती है, ये मिनरल शरीर में ऊर्जा पैदा करने के लिए बेहद जरूरी हैं.  

डब्ल्यूएचओ के अनुसार से पीने वाले पानी का टीडीएस 300 मिलीग्राम से कम होना चाहिए. टीडीएस लेवल 900 से ऊपर है, तो उसे भूल से भी नहीं पीना चाहिए.

आरओ की जगह इस तरीके का इस्तेमाल करना सही 

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में मेदांता अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अश्विनी सेत्या ने कहा कि आरओ से फिल्टर करने के दौरान जरूरी खनिजों का खत्म हो जाना सच है. ऐसे में आरओ से बेहतर है कि आप उबला हुआ पानी पीयें.  उन्होंने कहा कि पानी से आवश्यक खनिज खत्म होने से आपकी इम्यूनिटी पर असर पड़ सकता है. 

डॉक्टर ने आगे कहा कि लंबे वक्त तक बोतलबंद पानी पीना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है, लेकिन सामान्य आरओ का पानी पीने से आपके शरीर को ना तो किसी तरह का फायदा होता है और न ही किसी तरह  का नुकसान. आरओ से पानी फिल्टर करते समय टीडीएस लेवल 70 से 150 के बीच होना ज्यादा सुरक्षित है.

एसएसजी हॉस्पिटल की एक स्टडी में पता चला है कि काफी लंबे समय तक आरओ का पीने से आपके शरीर में विटामिन बी12 की कमी हो सकती है. इस अध्ययन में पाया गया कि फिल्टर से पानी की सफाई करते वक्त आरओ कोबाल्ट भी अलग कर देता है और ये विटामिन बी12 का जरूरी तत्व है. रिसर्च  में देखा गया कि आरओ वाटर पीने वालें लोगों के शरीर में विटामिन बी12 नॉर्मल लेवल से नीचे था.

पानी का टीडीएस इतने से ऊपर नहीं होना चाहिए

एक्सपर्ट्स की मानें तो पाने वाले पानी का टीडीएस अगर 500 से नीचे है, तो उसे पीने योग्य माना जाता है. लेकिन इससे ज्यादा टीडीएस वाला पानी पीने से बचना चाहिए,  सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है.                                             


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जीरो फूड चिल्ड्रन रिपोर्ट में दावा

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में 12 फरवरी को एक रिसर्च पब्लिश हुई थी। इसमें भारत के 6 से 23 महीने के बच्चों की स्टडी की गई थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में 67 लाख (19.3%) बच्चे जीरो-फूड कैटेगरी में आते हैं। इसका मतलब देश में 67 लाख ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने 24 घंटे में न तो दूध पिया या न ही खाना खाया।

इस स्टडी में दावा किया गया है कि दुनिया के 92 लो और मिडिल इनकम वाले देशों की लिस्ट में भारत तीसरे नंबर पर है, जहां इतने बच्चे जीरो-फूड चिल्ड्रन की कैटेगरी में हैं। इसमें भारत से आगे गिनी (21.8%) और माली (20.5%) आते हैं, जहां हालत भारत से भी ज्यादा खराब है।

केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय ने इस स्टडी को बेबुनियाद बताया। मिनिस्ट्री की ओर से 12 मार्च को कहा गया कि इसमें प्राइमरी रिसर्च नहीं की गई है। इसे सनसनीखेज बनाई गई है। यह स्टडी फेक न्यूज फैलाने के लिए की गई है। इसमें किए गए दावे भ्रम फैला रहे हैं।

मिनिस्ट्री ने स्टडी को गलत क्यों बताया, 3 पॉइंट्स में समझिए

मिनिस्ट्री ने कहा कि रिसर्चर्स ने स्टडी में ऐसे 9 पॉइंट्स गिनाए हैं, जिसके जरिए उन्हें लगता है कि रिसर्च में कुछ कमी रह गई है। इसलिए स्टडी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जीरो फूड चिल्ड्रन की वैसे भी कोई साइंटिफिक डेफिनेशन नहीं है।

मिनिस्ट्री ने कहा स्टडी में फूड के लिए जानवरों का दूध और खाने की ही बात की गई है, लेकिन इसमें मां का दूध पीने वालों का जिक्र नहीं किया गया है। स्टडी में कहा गया है कि 19.3% बच्चों में से 17.8 % ब्रेस्ट फीडिंग करते हैं। अगर ऐसा होता वे भूखे कैसे हुए?

मिनिस्ट्री ने कहा कि देश में आठ करोड़ बच्चों के खान-पान की आंगनवाड़ी सेंटर के जरिए ट्रैकिंग होती है। इसके लिए पोषण ट्रैकर नाम से पोर्टल बना हुआ है। स्टडी में पोषण ट्रैकर का डेटा नहीं लिया गया है। पोषण ट्रैकर के मुताबिक, बहुत कम बच्चे ही भारत में कुपोषित हैं।

सेंट्रल अमेरिका के कोस्टा रिका में हालत सबसे बेहतर

यह स्टडी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम और विजिटिंग साइंटिस्ट रॉकिल किम ने की है। उन्होंने 92 देशों के 6 से 23 महीने के कुल 2 लाख 76 हजार बच्चों पर रिसर्च की है। इसके लिए उन्होंने 2010 से 2022 तक का डेटा लिया है, अलग-अलग देशों ने पब्लिक किया हुआ है।

प्रोफेसर्स के मुताबिक सभी 92 देशों में 10.4% बच्चे ऐसे है जो जीरो फूड कैटेगरी में आते हैं। सेंट्रल अमेरिका का कोस्टा रिका देश में सबसे कम 0.1% बच्चे ही 24 घंटे में बिना दूध और खाने के रहते हैं। प्रोफेसर्स का मानना है कि 6 से 23 महीने की उम्र बच्चों के डेवलपमेंट के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस उम्र में उनको सही खाना मिलना चाहिए। यह दिक्कत सबसे ज्यादा वेस्ट अफ्रीका, सेंट्रल अफ्रीका और भारत में है।

बच्चों के कुपोषण मामले में गुजरात दूसरे नंबर पर, राज्य में 5 साल से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे कुपोषित

गुजरात में कुपोषण की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो 5 वर्ष से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे बौनेपन (ऊंचाई के अनुसार कम वजन) का शिकार हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुसार, गुजरात में 15-49 आयु वर्ग की 1.26 करोड़ महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।


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लांच किया मोबाइल ऐप 'राइज अगेंस्ट कैंसर', खतरनाक बीमारी से जंग लड़ने का बना दमदार हथियार

इंडियन कैंसर सोसाइटी (ICS) भारत में कैंसर से लड़ने वाले सबसे बड़े एनजीओ ने एक अभूतपूर्व मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर' पेश कर विश्व कैंसर दिवस मनाया। मेड इन इंडिया ऐप का मकसद कैंसर मुक्त भारत बनाने के लिए जानकारी की कमी दूर करना, जागरूकता बढ़ाना और संबद्ध समुदायों को एक करना है। इस अभियान में राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) और रोश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड का समर्थन मिला।

ICS ने लांच किया मोबाइल ऐप 'राइज अगेंस्ट कैंसर'

ग्लोबोकैन के आंकडे कहते हैं कि हर साल लगभग 1.3 मिलियन लोगों में कैंसर का पता चलता है और सिर्फ वर्ष 2020 में लगभग 800 हजार लोगों ने इस बीमारी से दम तोड़ दिए। आंकड़ों की गंभीरता समझते हुए आईसीएस ने अगले एक दशक में कुल वयस्क आबादी के 50 प्रतिशत लोगों तक पहुंचने का मिशन बनाया है। यह बीमारी का जल्द पता लगाने और तुरंत इलाज शुरू करने के लिए जरूरी कैंसर के बारे में सटीक जानकाकी और सलाह देगा।

इंडियन कैंसर सोसायटी की नेशनल मैनेजिंग ट्रस्टी उषा थोराट ने कहा कि "कैंसर पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर समस्या बनी हुई है। भारत सहित पूरी दुनिया के लाखों लोगों का जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित है इसलिए आईसीएस की दिल्ली शाखा ने पहल करते हुए इसकी रोकथाम में मोबाइल टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने की ठान ली है।

इससे कैंसर पीड़ितों और उनके परिवारजनों को पूरी जानकारी और सटीक मार्गदर्शन आसानी से मिलेगा। आईसीएस की राष्ट्रीय प्रबंधन समिति के प्रतिनिधि होने के नाते हम आज यह अभूतपूर्व एप लांच करने की बहुत खुशी है। एप पांच भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी और बांग्ला में उपलब्ध होगा। हमें विश्वास है कि आने वाले चरणों में कई फीचर और भाषाएं जुड़ेंगी।"

इस अवसर पर आईसीएस दिल्ली शाखा की अध्यक्ष ज्योत्सना गोविल ने कहा कि "आईसीएस समुदाय की जरूरतें और समय की मांग बखूबी समझता है इसलिए आईसीएस बहुत बारीकी से यह मोबाइल एप्लिकेशन तैयार करने में सफल रहा है। 'राह अगेंस्ट कैंसर' एप की दूरदृष्टि कैंसर पीड़ितों को सक्षम बनाना है ताकि वे स्वास्थ्य के अपनी जिम्मेदारी समझें और पूरी करें। एप में एक सूचना केंद्र, संसाधन पुस्तकालय, कार्यक्रम, समुदाय और सहायता समूह जैसे अलग-अलग सेक्शन हैं।

समाचार और अपडेट के भी सेक्शन हैं। एप वर्तमान में 5 भाषाओं में उपलब्ध है और फिलहाल 4 तरह के कैंसर के बारे में जानकारी देता है।"आईसीएस पिछले सात दशकों से अधिक समय कैंसर की रोकथाम, उपचार, इसके लिए वित्तीय सहायता और इलाज के बाद के जीवनयापन में सहयोग दे रहा है। यह कैंसर रजिस्ट्री सेवाओं के माध्यम से बहुत उपयोगी डेटा देता है और इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर का प्रकाशन करता है। आईसीएस ने विश्व कैंसर दिवस 2024 की थीम 'क्लोज द केयर गैप' पर काम करते हुए यह एप लांच किया है, जो कैंसर से जंग में पीड़ितों और समुदायों को सशक्त बनाने का टूल है और कई भाषाओं में उपलब्ध है।

इस ऐतिहासिक अवसर पर आईसीएस की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अनीता बोर्गेस ने कहा कि " आज हमारे मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर का लांच हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। आईसीएस पिछले सात दशकों से कैंसर के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रहा है। वंचित वर्ग के हजारों कैंसर मरीजों के लिए आईसीएस आशा की किरण है।

दरअसल, अधिकतर मरीजों का इलाज कारगर हो सकता है। बशर्ते कैंसर का जल्द पता लगे लेकिन जागरूकता कम और इस भयानक बीमारी के बारे में भ्रामक जानकारी अधिक है। ऊपर से इलाज बहुत महंगा है इसलिए अक्सर लोगों की नियमित जांच और इलाज मुमकिन नहीं हो पाता है। लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम मिल कर इसी तरह अथक प्रयास करते रहें तो लोगों को 'कैंसर से दो कदम आगे रहने का हौसला मिलेगा। कैंसर का जल्द पता चलेगा और इलाज भी जल्द शुरू होगा।"

लांच के अवसर पर आरजीसीआईआरसी के सीईओ डीएस नेगी ने कहा कि "हम ने कैंसर से लड़ने की ठान रखी है और इसकी रोकथाम के लिए उपचार का महत्व समझते हैं। आईसीएस टीम के मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर' लांच पर पूरी टीम को बधाई। यह एप कैंसर की रोकथाम के लिए जागरूकता और जानकारी बढ़ाने में कारगर होगा। हम ने आईसीएस से साझेदारी कर जन-जन के लिए इस एप की उपयोगिता में हमारा विश्वास व्यक्त किया है। यह आरजीसीआईआरसी के मिशन के अनुरूप है, जो इनोवेशन के साथ स्वास्थ्य सेवा देना है। हम मिलकर जन-जन को जानकार बनाएंगे और कैंसर की रोकथाम और इलाज का नया दौर शुरू करेंगे।"

इंडियन कैंसर सोसायटी का परिचय

इंडियन कैंसर सोसाइटी का गठन डॉ. डी. जे. जुसावाला और नवल टाटा ने 1951 में किया। यह कैंसर से लड़ने वाला भारत का पहला गैर-आर्थिक लाभ संगठन है। आईसीएस कैंसर से जुड़े सभी पहलुओं पर काम करता है, जैसे कि जागरूकता बढ़ाना, प्रारंभिक जांच, वित्तीय सहायता, सहायता समूह, कैंसर से उबरने के बाद जीवनयापन में सहयोग, अनुसंधान, रजिस्ट्री और जानकारी देना आदि। इसके अलावा, आईसीएस इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर प्रकाशित करता है, जो भारत का पहला इंडेक्स्ड ऑन्कोलॉजी जर्नल है।

आईसीएस अब तक 480,000 से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग कर चुका है और 44,000 लोगों को कैंसर के निदान, उपचार, उबरने के बाद जीवनयापन और पुनर्वास में सहयोग दे चुका है। विवरण www.indiancancersociety.ong पर देखें।


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AIIMS दिल्ली में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन नहीं बंद रहेंगी OPD सेवाएं

दिल्ली एम्स ने 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के दिन 2.30 बजे तक ओपीडी सेवाएं बंद करने का फैसला वापस ले लिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने यह जानकारी दी. यानी अब सोमवार को आम दिनों की तरह ही ओपीडी चालू रहेगी. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि लेडी हार्डिंग, सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया सभी अस्पताल खुले रहेंगे, यहां तक कि एम्स ने भी अपना फैसला पलट दिया है. 

दरअसल, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मद्देनजर AIIMS, सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया समेत राजधानी में केंद्र द्वारा संचालित चार अस्पतालों को 22 जनवरी को दोपहर 2.30 बजे बंद रखने का फैसला किया गया था. केंद्र के इस फैसले पर विपक्ष ने सवाल उठाए थे.  शिवसेना (उद्धव गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने पूछा कि क्या भगवान राम इस बात से सहमत होंगे कि उनके स्वागत के लिए स्वास्थ्य सेवाएं बधित हैं. 

इसी तरह राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि राम राज्य में ऐसा कभी नहीं होगा.

अस्पतालों ने क्या कहा था?

एम्स द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 22 जनवरी को दोपहर 2.30 बजे तक आधे दिन की छुट्टी घोषित की है. हालांकि, एम्स ने अपने बयान में साफ किया कि इस दौरान इमरजेंसी सेवाएं जारी रहेंगी. शाम को ओपीडी चालू रहेगी. वहीं, सफदरजंग अस्पताल ने बयान जारी कर कहा कि 22 जनवरी को ओपीडी सेवाओं के लिए रजिस्ट्रेशन सुबह 8 से 10 बजे तक होगा. लैब सेवाएं/रेडियोलॉजिकल सेवाएं प्रातः 11:30 बजे तक उपलब्ध रहेंगी. वहीं, फार्मेसी सेवाएं दोपहर तक चालू रहेंगी. 

राम मनोहर लोहिया अस्पताल की ओर से कहा गया है कि ओपीडी, लैब सेवाएं और नियमित सेवाएं अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह के दिन दोपहर 2.30 बजे तक बंद रहेंगी. इसके अलावा लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल में ओपीडी सेवाओं के लिए सोमवार को सुबह 8-10 बजे तक रजिस्ट्रेशन होगा और रजिस्टर्ड मरीजों को देखा जाएगा. हालांकि, इन सभी अस्पतालों ने साफ किया है कि इमरजेंसी सेवाएं उपलब्ध रहेंगी. 

22 जनवरी को खुली रहेंगी OPD

स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने साफ कर दिया है कि इन अस्पतालों में 22 जनवरी को ओपीडी बंद नहीं रहेगी. अस्पताल हर रोज की तरह तय समय पर चलेंगे.


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डरा रहा कोरोना! पिछले 24 घंटे में ली 12 की जान, 761 नए केस मिले

देश में कोरोना के बढ़ते मामले एक बार फिर डरा रहे हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार (5 जनवरी 2024) सुबह 8 बजे जारी बुलेटिन के मुताबिक, देश में 24 घंटे में कोरोना के 761 मरीज मिले हैं और 12 लोगों की मौत हुई है. इस वक्त देश में कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या 4334 है. वहीं केरल में कोरोना से सबसे ज्यादा 5 लोगों की मौत हुई है, जबकि कर्नाटक में 4 संक्रमितों ने दम तोड़ा है. वहीं, महाराष्ट्र में 2 और यूपी में 1 की कोरोना से मौत हुई है. 

सबसे खतरनाक स्थिति कर्नाटक की है, इस राज्य में कोरोना के 298 नए केस मिले हैं. पिछले 24 घंटे में यहां कोरोना से 4 लोगों की मौत की भी खबर है. सबसे चिंता की बात ये है कि राज्य में कोरोना की सकारात्मकता दर भी गुरुवार को 3.46 प्रतिशत से बढ़कर 3.82 प्रतिशत हो गई.

कर्नाटक में सबसे बुरा हाल

स्वास्थ्य विभाग के दैनिक बुलेटिन में कहा गया है कि 298 नए मामलों में से 172 अकेले बेंगलुरु से थे. अब यहां कुल 704 एक्टिव केस हैं. कर्नाटक के हसन जिले में 19, मैसूरु में 18 और दक्षिण कन्नड़ में 11 केस मिले हैं. वहीं, चामराजनगर से 8 मामले सामने आए हैं, जबकि बल्लारी और कोप्पाला में 6-3 नए केस मिले हैं. तुमकुरु, विजयनगर और चिक्कमगलुरु में 5-5 एक्टिव केस मिले.

महाराष्ट्र में नए वेरिएंट के मरीज ज्यादा

कर्नाटक के बाद महाराष्ट्र में भी केस बढ़ रहे हैं. यहां गुरुवार को कोरोना के नए वेरिएंट जेएन.1 के 78 केस मिले. अब तक यहां 110 मरीज मिल चुके हैं. राज्य में पिछले 24 घंटों में कोरोना के कुल 171 नए केस दर्ज किए गए हैं.

कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर केंद्र अलर्ट

कोविड मामलों के आंकड़ों में बढ़ोतरी के चलते और जेएन.1 सब वेर‍िएंट का पता चलने के बाद से केंद्र सरकार ने राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों से निरंतर निगरानी बनाए रखने के न‍िर्देश द‍िए हैं. साथ ही कोरोना के प्रसार के मद्देनजर केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय की ओर से समय-समय पर नई गाइडलाइन भी जारी की जा रही हैं. साथ ही राज्‍यों और यूटी प्रदेशों को इन सभी गाइडलाइन का सख्‍ती के साथ अनुपालन करने के निर्देश भी द‍िए हैं.



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देश में फिर से पांव पसार रहा कोरोना वायरस, पिछले 24 घंटे में दो मरीजों की मौत

भारत में कोरोना वायरस फिर से पैर पसार रहा है और मामलों में इजाफा हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को बताया कि पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 760 नए मामले दर्ज किए गए। साथ ही कोविड-19 से दो मरीजों की मौत हो गई।

सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 4,423

स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि नए मामले सामने आने से देश में कुल सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 4,423 हो गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि गुरुवार सुबह आठ बजे अपडेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, 24 घंटे में केरल और कर्नाटक से एक-एक मरीज मौत हुई है।

तेजी से पांव पसार रहा नया वेरिएंट

वहीं, कोरोना के नए वेरिएंट के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। कोरोना के नए वेरिएंट जेएन.1 के अब तक 541 मामले दर्ज हुए हैं।  

बता दें कि पिछले साल पांच दिसंबर तक दैनिक मामलों की संख्या घटकर दोहरे अंक में पहुंच गई थी, कोरोना के नए वेरिएंट मिलने के बाद इसके मामले में तेजी से वृद्धि हुई है।

रोजाना मिल रहे थे लाखों संक्रमित

जब कोरोना वायरस अपने चरम पर था, तब रोजाना लाखों मामले दर्ज हो रहे थे। 2020 से अब तक भारत में 4.5 करोड़ से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं और 5.3 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है।

मंत्रालय ने बताया कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले लोगों की संख्या 4.4 करोड़ से अधिक है। उसने बताया कि ठीक होने का दर 98.81 प्रतिशत है। वहीं, देश में अब तक कोविड टीकों की 220.67 करोड़ खुराकें लगाई जा चुकी हैं।


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भारत में 2019 में कैंसर से 9.3 लाख मौतें

भारत में साल 2019 में कैंसर से 9.3 लाख लोगों ने जान गंवाई थी, साथ ही करीब 12 लाख नए कैंसर के मामले आए। इसकी जानकारी मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने अपने एक आर्टिकल में दी है। साथ ही यह भी बताया है कि 2019 में कैंसर पीड़ितों की संख्या के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर रहा।

रिसर्चर्स ने पाया कि भारत, चीन और जापान कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या के मामले में एशिया के तीन सबसे बड़े देश हैं। 2019 में एशिया में कैंसर के 94 लाख नए मामले सामने आए और 56 लाख मौतें हुई थीं। सबसे ज्यादा चीन में 48 लाख नए मामले आए और 27 लाख मौतें हुई थीं। रिसर्चर्स का कहना है कि कैंसर, पब्लिक हेल्थ के लिए खतरा बन चुका है और यह काफी चिंताजनक है।

49 एशियन देशों में 29 तरीकों के कैंसर के लक्षणों की स्टडी की

रिसर्चर्स की अंतरराष्ट्रीय टीम में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) कुरुक्षेत्र, AIIMS जोधपुर और AIIMS बठिंडा के शोधकर्ता भी शामिल थे। इन्होंने बताया कि टीम ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज, इंजरीज एंड रिस्क फैक्टर्स 2019 स्टडी (GBD 2019) के अनुमानों का उपयोग करके 1990 और 2019 के बीच 49 एशियाई देशों में 29 तरीकों के कैंसर के पैटर्न की जांच की।

उन्होंने पाया कि एशिया में सबसे ज्यादा श्वास नली, ब्रोन्कस और फेफड़े (टीबीएल) का कैंसर पाया गया, इसकी वजह से करीब 13 लाख मामले दर्ज हुए और 12 लाख मौतें हुई। यह भी सामने आया कि कैंसर की बीमारी पुरुषों में सबसे अधिक और महिलाओं में तीसरी सबसे अधिक होने वाली बीमारी है।

ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) टीका कैंसर को रोकने में एफेक्टिव

साइंटिस्ट्स ने पाया कि महिलाओं में, सर्वाइकल कैंसर कई एशियाई देशों में दूसरे या फिर टॉप 5 कैंसरों में से एक है। रिसर्चर्स ने कहा कि 2006 में आया ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) टीका, कैंसर को रोकने और एचपीवी से संबंधित मौतों को कम करने में इफेक्टिव साबित हुआ है।

स्मोकिंग,शराब का सेवन और प्रदूषण कैंसर के मुख्य कारणों मे से एक

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि स्मोकिंग, शराब का सेवन और प्रदूषण भी कैंसर के 34 कारणों में से एक है। साइंटिस्ट्स ने रिपोर्ट में लिखा है कि एशिया में बढ़ता वायु प्रदूषण भी चिंता का विषय है। एशिया में बढ़ते वायु प्रदूषण की मुख्य वजहों में इंडस्ट्री आधारित इकोनॉमिक डेवलपमेंट के साथ-साथ शहरीकरण, गांवों से लोगों का शहरों में बसना और गाड़ियों का बढ़ता इस्तेमाल शामिल है।

तंबाकू (गुटखा) से बढ़ रहे कैंसर के मरीज

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, बांग्लादेश और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों में खैनी, गुटखा, पान मसाला जैसे धुआं रहित तंबाकू का इस्तेमाल सोशल हेल्थ कंसर्न है। इनकी वजह से दुनियाभर में 2019 में हुई मौतों में अकेले भारत की हिस्सेदारी 32.9% रही, जबकि होंठ और मुंह के कैंसर के 28.1% मामले यहां दर्ज हुए।

ओरल कैंसर के 50% से ज्यादा मामलों के लिए धुआं रहित तंबाकू को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिसर्चर्स ने माना कि खैनी, गुटखा, पान मसाला न केवल ओरल कैंसर के खतरे को बढ़ाता है बल्कि ग्रासनली (esophageal cancer) और अग्नाशय (pancreatic cancer) के खतरे को भी बढ़ाता है।

5 साल से कम उम्र के बच्चों में ल्यूकेमिया कैंसर कम

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1990 और 2019 के बीच 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ल्यूकेमिया जैसे कैंसर के मामले कम मिले। हालांकि, समान समय अवधि में प्रोस्टेट, अग्नाशय और स्तन कैंसर जैसे लंबी उम्र से जुड़े कैंसर के मामले बढ़ गए।

कैंसर ट्रीटमेंट का खर्च सरकार की नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिए

साइंटिस्ट्स का कहना है कि अगर कैंसर का उपचार सभी के लिए उपलब्ध नहीं है या लोग इसका खर्च नहीं उठा सकते हैं तो सिर्फ कैंसर की पहचान हो जाने से जिंदा रहने की संभावना नहीं बढ़ जाती है। एशिया के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में कैंसर के इलाज के लिए बुनियादी ढांचा या तो उपलब्ध नहीं है या आम लोगों की पहुंच से बाहर है।

रिसर्चर्स ने कहा कि अगर छोटे मेडिकल सेंटर में कैंसर का पता लगाने के लिए इक्विपमेंट्स नहीं है, तो उसे बड़े अस्पताल में रेफर करने में देर कर दी जाती है। ऐसे में मरीजों के कैंसर का पता देर से चल पाता है और इलाज देर से शुरू हो पाता है, जिससे उसके जिंदा रहने संभावना कम हो जाती है।

इसलिए, कैंसर की समय रहते जांच और ट्रीटमेंट की उपलब्धता बढ़ाने के साथ-साथ सरकार को कैंसर के ट्रीटमेंट का खर्च कम करने और इस खर्च का कवरेज देने की दिशा में काम करना चाहिए। ये योजनाएं सरकार की पॉलिसी मेकिंग में प्रायोरिटी पर होनी चाहिए।

सेहतनामा- कीमो से ज्यादा बेहतर इम्यूनोथेरेपी:कैंसर से लड़ाई में शरीर की कोशिकाओं को बनाती मजबूत, चौथे स्टेज में भी कारगर

अमेरिका से हाल ही में कैंसर के इलाज को लेकर एक अच्छी खबर आई है। अमेरिका के ‘बर्मिंघम एंड वुमेन हॉस्पिटल’ में कोलोरेक्टल कैंसर और एंड्रोमेट्रियल कैंसर के 1655 मरीजों पर एक रिसर्च की गई। रिसर्च में पाया गया कि कैंसर के रोगियों के लिए ‘इम्यूनोथेरेपी’ एक बहुत ही सफल इलाज है।

सेहतनामा- भारत पर लैंसेट की नई स्टडी:रुक सकती हैं कैंसर से होने वाली 67% मौतें, समय रहते स्क्रीनिंग और इलाज से

अक्टूबर 2023 में मेडिकल जर्नल ‘लैन्सेट’ में भारत के बारे में एक स्टडी आई। ये स्टडी कहती है कि भारत में सही समय पर जांच और स्क्रीनिंग के जरिए कैंसर से होने वाली 67 फीसदी महिलाओं की मौत को रोका जा सकता है। इतना ही नहीं, यह रिपोर्ट कहती है कि स्क्रीनिंग के अलावा यदि समय रहते इलाज हो जाए तो 37% महिलाओं को कैंसर जैसी बीमारी से मरने से बचाया जा सकता है।


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घंटों रूम हीटर या ब्लोअर के सामने बैठना हो सकता है खतरनाक

सर्दियों में ब्लोअर और रूम हीटर का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में कई लोग जल भी सकते हैं. नॉर्थ इंडिया ठंड की मार झेल रही है.  कई लोग ऐसे होते है जो बहुत लोग लगातार रूम हीटर ब्लोअर के सामने बैठे रहते है. कई लोग सोते समय ब्लोअर ऑन रखते है. लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है. दरअसल, लगातार रूम हीटर जलाकर बैठने से सेहत को कई तरह के नुकसान झेलना पड़ता है. कमरे का ऑक्सीजन लेवल कम होने लगता है. जो शरीर के अंगों के लिए काफी ज्यादा खतरनाक हो सकता है. 

शरीर के इन अंगों को होता है नुकसान

त्वचा को होता है नुकसान

अगर कोई व्यक्ति लंबे वक्त तक रूम हीटर ब्लोअर के सामने बैठता है तो उससे उसके त्वचा को काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ता है. इसकी वजह से चेहरे पर मोटे-मोटे फफोले और पूरे शरीर पर दाने निकलने लगते हैं. यह एक तरह की हीट एलर्जी है. जो काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. यह आपके स्कैल्प को ड्राई कर सकती है. साथ ही इसके कारण बाल झड़ने की समस्या भी शुरू हो सकती है. 

नेसल पैसेज सूख सकता है

ब्लोअर और रूम हीटर के ज्यादा इस्तेमाल करने से नाक का पैसेज सूखने लगता है. जिसकी वजह से नाक से खून निकलने लगता है. जिसके कारण नाक के ऊपरी हिस्से में दर्द होने लगता है. यह आपको अंदर से परेशान कर सकती है. इसलिए ब्लोअर और रूम हीटर का इस्तेमाल सोच समझक कर करें. 

ब्रेन में हो सकती है इंटरनल ब्लीडिंग

ब्लोअर और हीटर के ज्यादा इस्तेमाल के कारण ब्रेन को गंभीर नुकसान पहुंचता है. हीटर के ज्यादा इस्तेमाल के कारण मृत्यु का जोखिम बढ़ता है. साथ ही यह रूम में कार्बन मोनोऑक्साइड का लेवल बढ़ता है जिसके कारण ब्रेन में खून की कमी होने लगती है. इसकी वजह से ब्रेन में इंटरनल ब्लीडिंग भी हो सकती है. और यह मौत का कारण भी हो सकता है. इसलिए सोच समझकर ब्लोअर और रूम हीटर का इस्तेमाल करें. अगर सर्दियों में इस्तेमाल कर भी रहे हैं तो लंबे वक्त तक न करें. 


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किडनी के मरीजों के लिए सेंधा नमक का सेवन घातक

खाना अगर स्वादिष्ट बनाना हो तो उसमें जितना अहम योगदान मसालों का है, उतना ही अहम योगदान नमक का भी है. नमक के बिना खाना अधूरा है. नमक खाने में स्वाद और शरीर को आयोडीन प्रदान करता है. आयोडीन शरीर में थायराइड ग्रंथि के कार्य को रेगुलेट करने में मदद करता है. नमक में सोडियम पाया जाता है जिसका अगर अत्यधिक सेवन किया जाए तो हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की समस्या और हृदय से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं. किडनी की बिमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए सफेद नमक का अत्यधिक सेवन घातक साबित हो सकता है. आज जानिए आखिर किडनी पेशेंट के लिए कौन-सा नमक हेल्दी है. 

किडनी रोगी खाएं ये नमक

एक रिसर्च में ये पाया गया कि सेंधा नमक किडनी की बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए अच्छा है. साईं संजीवनी के संस्थापक डॉ. पुरु धवन ने कहा कि किडनी की बीमारी से ग्रसित मरीजों को अपने नमक के सेवन पर ध्यान देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि नमक का अधिक सेवन ब्लड प्रेशर को बढ़ा सकता है जो किडनी रोगियों के लिए हानिकारक है. उन्होंने कहा कि आप भोजन में एक चुटकी नमक के लिए तरसते हैं तो आप नॉर्मल नमक के बजाय सेंधा नमक खाने में ले सकते हैं. इसमें सोडियम की मात्रा कम होती है जो किडनी रोगियों के लिए फायदेमंद है. बता दें सेंधा नमक में आयरन, मैग्नीज, तांबा और निकल सहित कुछ आवश्यक पोषक तत्व पाएं जाते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद हैं.

सोडियम कैसे पहुंचाता है किडनी को नुकसान

दरअसल, नमक में सोडियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को बढ़ाता है. किडनी से जुड़ी बीमारी होने पर मरीजों को कम सोडियम वाला नमक और आहार खाना चाहिए जिससे किडनी का स्वास्थ्य अच्छा रहे. डॉ. पुरु धवन बताते है कि हाई ब्लड प्रेशर किडनी की समस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा कारण है.

किडनी रोगियों को खानपान का रखना चाहिए विशेष ध्यान

 जो लोग किडनी से जुड़ी बिमारियों से जूझ रहे हैं उन्हें अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर खाने-पीने में लापरवाही होती है तो किडनी शरीर की गंदगी को ठीक से फिल्टर नहीं कर पाती जिससे ये गंदगी खून में आ जाती है. ऐसी स्थिति में खून में मौजूद इलेक्ट्रोलाइट के स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो शरीर के लिए फायदेमंद नहीं है. किडनी के रोगियों को सेंधा नमक का सेवन करना चाहिए जिससे किडनी का स्वास्थ्य अच्छा रहे और शरीर रोगमुक्त रहे.









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