गुजरात में बढ़ता जा रहा Chandipura Virus का कहर

पिछले कुछ दिनों से गुजरात में लगातार चांदीपुरा वायरस (Chandipura Virus) के मामले सामने आ रहे हैं। इस वायरस से अब तक गुजरात में 15 बच्चों की जान जा चुकी है। वहीं, इससे संक्रमित लोगों की संख्या 29 तक पहुंच गई है। इस जानलेवा बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब अलग-अलग राज्यों में हाई अलर्ट जारी किया गया है।

यह वायरस दिमाग में सूजन का कारण बनता है और फ्लू जैसे लक्षणों (Chandipura Virus Symptoms) के साथ कोमा और मौत तक का कारण बनता है। इसे बीमारी को लेकर देशभर में चिंता और डर का माहौल बना हुआ है। ऐसे में इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने मणिपाल हॉस्पिटल, गोवा में इंटरनल मेडिसिन के सलाहकार डॉ. पोकले महादेव वी से बातचीत की। आइए जानते हैं क्या है यह बीमारी और क्यों है यह खतरनाक-

क्या है चांदीपुरा वायरस?

डॉक्टर बताते हैं कि चांदीपुरा वायरस (CHPV) रबडोविरिडे (Rhabdoviridae) फैमिली से संबंधित एक अर्बोवायरस (arbovirus) है, जहां रेबीज वायरस भी मौजूद होता है। इसका मतलब यह है कि वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम को संक्रमित करता है, जो तेजी से अल्टर्ड सेंसरियम, दौरे और फोटोफोबिया का कारण बन सकता है। इसमें ब्रेन के टिश्यू की सूजन बाद में एन्सेफलाइटिस और कोमा में बदल सकती है। इतना ही नहीं यह वायरस शरीर की कई अन्य प्रणालियों को भी प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि इससे बचाव के उपायों के साथ-साथ लक्षणों सहित इसके कारणों के बारे में ज्यादा जानना जरूरी है।

पहली बार यहां मिला था वायरस

चांदीपुरा वायरस यानी CHPV पहली बार साल 1965 में महाराष्ट्र में पाया गया था। यहां इस वायरस ने 36 वर्षों में बड़े पैमाने पर बच्चों की जानें ली और एक प्रकोप की तरह फैलकर पूरे चांदीपुरा गांव को नष्ट कर दिया था। इसी गांव के आधार पर इस वायरस का नाम चांदीपुरा वायरस रखा गया।

कैसे फैलता है यह वायरस?

डॉक्टर ने बताया कि इस वायरस को फैलाने में फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज (Phlebotomine sandflies) और फ्लेबोटोमस पापटासी (Phlebotomus papatasi) प्रजातियां मुख्य किरदार निभाती हैं। इसके अलावा एडीज एजिप्टी, जो डेंगू बुखार के फैलने का भी कारण बनता है, मच्छर की एक और ऐसी प्रजाति है, जो रेबीज की तरह ही इस बीमारी को फैलाती है। इसलिए, यह ट्रिपैनोसोमा क्रूजी जैसे परजीवियों के लिए प्राकृतिक जलाशयों में पाया जा सकता है। साथ ही जब कीड़े इंसानों या बिल्ली जैसे अन्य जानवरों को काटता है, तो यह बीमारी फैलती है।

चांदीपुरा वायरस के लक्षण

जब कोई इस बीमारी से संक्रमित हो जाता है, तो सबसे पहले उसमें फ्लू के लक्षण दिखाई देंगे, जिसमें निम्न शामिल हैं-

सिरदर्द

ब्लीडिंग

एनीमिया

शरीर में दर्द

अचानक बुखार आना

सांस लेने में कठिनाई

इन लक्षणों के बाद भी अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो एन्सेफलाइटिस के कारण यह बीमारी गंभीर हो जाती है, जिससे मौत हो जाती है।

चांदीपुरा वायरस का इलाज

इसके इलाज (Chandipura Virus Treatments) के बारे में डॉक्टर ने बताया कि वर्तमान में, इस मामले के लिए विशेष रूप से एंटीरेट्रोवाइरल दवा या वैक्सीनेशन मौजूद नहीं है। ऐसे में इसके इलाज के तौर पर मरीजों को सिर्फ लक्षणों से राहत देने और जटिलताओं को रोकने के लिए सहायक देखभाल दी जा सकती है। इसके अलावा, एन्सेफलाइटिस से पीड़ित व्यक्तियों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए और आईसीयू में उनकी देखभाल की जानी चाहिए।

वायरस का निदान

सीएचपीवी का निदान आमतौर पर इसे संकेतों, न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ी और लक्षणों के जरिए किया जाता है। हालांकि, लैब टेस्ट से ही इसे स्पष्ट किया जा सकता है। इसलिए, खून के सैंपल या cerebrospinal fluid के नमूनों में वायरल आरएनए का पता लगाने के लिए, आमतौर पर आरटी-पीसीआर का उपयोग किया जाता है।

चांदीपुरा वायरस से बचाव

इस बीमारी के खतरनाक परिणाम से बचने के लिए जरूरी है कि बचाव (Chandipura Virus Preventions Tips) के कुछ तरीके अपनाए जाएं। ऐसे में इससे बचने के लिए मॉस्किटो रिपेलेंट का इस्तेमाल और मच्छरदानी इस्तेमाल करें। मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर के आसपास पानी न जमा होने दें। इसके अलावा मच्छरों को काटने से रोकने के लिए सुरक्षात्मक कपड़े पहनना भी एक कारगर उपाय है।


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डेंगू या जीका वायरस जानें कौन सी बीमारी ज्यादा खतरनाक

भारत के ज्यादातर हिस्सों में मानसून ने दस्तक दे दी है. बारिश का मौसम गर्मी से राहत तो दिला रहा है लेकिन मच्छरों से होने वाली बीमारियों का खतरा भी बढ़ा रहा है. इस मौसम में डेंगू फीवर तेजी से बढ़ जाता है. हर साल बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आते हैं. कुछ के लिए तो यह बीमारी जानलेवा भी बन जाती है. इस मौसम में डेंगू के अलावा जीका वायरस (Zika Virus) होने का भी जोखिम रहता है. ये बीमारी भी मच्छरों के काटने से फैलती है.

डेंगू और जीका वायरस दोनों ही बीमारियों के लक्षण करीब-करीब समान होते हैं. यही कारण है कि बहुत से लोग इनके बीच अंतर नहीं समझ पाते हैं. इससे समस्याएं बढ़ जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं दोनों बीमारियों में क्या अंतर है...

 डेंगू और जीका वायरस में क्या अंतर है

दोनों ही बीमारियां एडीज मच्छर के काटने से होती है. ये मच्छर दिन में ही काटता है. खासकर सुबह और शाम इन मच्छरों से बचकर रहना चाहिए. डेंगू एक से दूसरे इंसान में नहीं फैलता है, जबकि जीका वायरस संक्रामक बीमारी है, जो एक मरीज से दूसरे में फैल सकती है. जीका RNA वायरस है. यह प्रेगनेंसी में मां से नाल से बच्चे में भी पहुंच सकता है. यह ब्लड संक्रमण के माध्यम से भी फैल सकता है.

डेंगू और जीका वायरस के लक्षण

दोनों की बीमारी के लक्षण करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं. इनमें बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द, थकान, शरीर पर चकत्ते, आंखों में दर्द, प्लेटलेट्स कम होने जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. डेंगू में उल्टी, मतली, भूख की कमी, दस्त और नाक से खून आने जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं. डेंगू के गंभीर मामलों में शॉक सिंड्रोम होने का भी खतरा रहता है, जिससे मौत भी हो सकती है. जीका वायरस गर्भवती महिलाओं के लिए काफी खतरनाक होता है, इससे मिसकैरेज और जन्म से बच्चे में कोई दोष तक हो सकता है.

डेंगू और जीका वायरस से बचने के लिए क्या करें

1. मच्छरों से बचाव करें. मच्छरदानी लगाएं, पूरी बांह के कपड़े ही पहनें, मच्छरों को भगाने वाली क्रीम का यूज करें.

2. घर और आसपास साफ-सफाई रखें. पानी जमा न होने दें.

3. किसी में जीका के लक्षण नजर आए तो मरीज के संपर्क में न आएं.

4. आराम करें, पर्याप्त मात्रा में लिक्विड लें.

5. बुखार के साथ सिरदर्द या मांसपेशियां दर्द करें तो देर किए बिना अस्पताल पहुंचे.


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PM मोदी ने डल झील के किनारे योग किया

आज 10वां अंतरराष्ट्रिय योग दिवस है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर में योग किया। पहले यह कार्यक्रम डल झील के किनारे 6:30 बजे होना था, लेकिन बारिश की वजह से इसे हॉल में शिफ्ट कर दिया गया। यह करीब 8 बजे शुरू हो पाया। इसमें 7 हजार लोगों को शामिल होना था, लेकिन हॉल में शिफ्ट होने के कारण सिर्फ 50 लोग शामिल हुए।

2014 में संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून के दिन को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया था। तब से इसे अलग-अलग थीम पर मनाया जा रहा है। इस बार की थीम 'योगा फॉर सेल्फ एंड सोसाइटी' है।

PM मोदी दो दिन के दौरे पर जम्मू-कश्मीर में हैं। 2013 के बाद से यह उनकी जम्मू-कश्मीर की 25वीं यात्रा है। वहीं 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद 7वीं यात्रा है। चुनाव आयोग सितंबर में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने तैयारियां कर रहा है। ऐसे में PM मोदी का यहां जाना और योग दिवस जैसे इंटरनेशनल इवेंट में शामिल होना पॉजिटिव मैसेज माना जा रहा है।

इसके अलावा समुद्र पर भी योग दिवस का उत्साह देखने को मिला। INS विक्रमादित्य पर नौसेनिकों ने सुबह योगासन किया। उधर, LAC के करीब पैंगॉन्ग झील के किनारे ITBP के जवानों ने अलग-अलग आसन कर 10वां योग दिवस मनाया।

राज्यों से योग दिवस के अपडेट्स...

राजस्थान: पानी के अंदर ध्यान, रेतीली धोरों में योग

मध्य प्रदेश: राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर बारिश के बीच योग

उत्तर प्रदेश: काशी में गंगा की लहरों से 2 फीट ऊपर योग

पंजाब: अटारी बॉर्डर पर जवानों का योगाभ्यास

योग दिवस से जुड़े बड़े इवेंट

इस साल योग दिवस के बड़े इवेंट सेना, सेलेब्रिटीज और सोशल गैदरिंग के तौर पर हाेंगे। कर्नाटक के मैसुरू पैलेस में लगभग 10 हजार लोग एकसाथ योग करेंगे। इसके अलावा, गुजरात के बनासकांठा में भारत-पाक सीमा से महज 20 किमी दूर नाडा बेट में भी 10 हजार लोग योग आसन करेंगे।

पिछले 9 योग दिवस में क्या खास रहा...

2015- गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 2 रिकॉर्ड बने

पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम थी- सद्भाव और शांति के लिए योग। PM मोदी के साथ 84 देशों के प्रतिनिधियों समेत 35 हजार से ज्यादा लोगों ने दिल्ली के राजपथ पर योग के 21 आसन किए थे। इस आयोजन में भारत के दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बने– एक दुनिया का सबसे बड़ा योग एकसाथ करने का जिसमें 35 हजार 985 लोगों ने एकसाथ किया। दूसरा 84 देशों के नेताओं की एकसाथ भागीदारी के लिए।

2016- दुनिया के 170 देशों ने योग दिवस मनाया

दूसरे योग दिवस की थीम थी- युवाओं को जोड़ें। भारत में दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2016 का मुख्य आयोजन चंडीगढ़ में हुआ, जिसमें करीब 35 हजार लोग शामिल हुए। इस आयोजन का नेतृत्व भी पीएम मोदी ने ही किया था। इस योग दिवस में 170 देशों ने हिस्सा लिया। आयुष मंत्रालय ने चंडीगढ़ में हुए मेन इवेंट के लिए करीब 7 करोड़ रुपए खर्च किए थे।

2017- लखनऊ में 55 हजार ने PM के साथ किया योग

तीसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम थी- स्वास्थ्य के लिए योग। मुख्य आयोजन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 55 हजार लोगों के साथ योग किया। इसी साल योग दिवस से 2 दिन पहले 8387 बच्चों ने मैसुरू में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए सबसे लंबी योग चेन बनाई थी।

2018- पहली बार मुस्लिम देश सऊदी अरब शामिल हुआ

चौथे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम शांति के लिए योग थी। योग दिवस 2018 का मेन इवेंट उत्तराखंड में हुआ। राजधानी देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में प्रधानमंत्री मोदी के साथ करीब 50 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। खास बात यह थी कि इसमें सऊदी अरब भी शामिल हुआ।

2019- क्लाइमेट एक्शन के लिए योग थीम के साथ मना 5वां योग दिवस

पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम थी- योगा फॉर क्लाइमेट एक्शन। मेन इवेंट झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित किया गया था। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ 40 हजार लोगों ने योग आसन का प्रदर्शन किया।

2020- कोरोना महामारी के चलते थीम रखी- योगा एट होम

छठा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस वर्चुअली मनाया गया। इसकी थीम थी- योगा फॉर हेल्थ- योगा एट होम। PM मोदी ने 15 मिनट की स्पीच के जरिए कोरोना वायरस से लड़ने में योग की भूमिका बताई थी। लोगों ने अपने-अपने घरों पर योग करते हुए वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किए थे।

2021- लगातार दूसरे साल वर्चुअली मनाया गया योग दिवस

सातवां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी वर्चुअली ही मनाया गया। कोरोना वायरस सेकंड वेव के चलते इस योग दिवस की सेंट्रल थीम ‘योग के साथ रहें, घर पर रहें’ रखी गई। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर पर भी 3000 से ज्यादा लोगों ने सोशल डिस्टैंसिंग के जरिए योग आसन किए।

2022- धरोहरों पर हुआ योग दिवस का सेलिब्रेशन

दो साल बाद लोगों ने घरों बाहर आठवां योग दिवस देश की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों पर मनाया। थीम रखी गई मानवता के लिए योग। पीएम मोदी ने मैसूर में हुए मुख्य इवेंट में हिस्सा लिया। अलग-अलग देशों में वहां के लोकल टाइम के मुताबिक सूर्योदय के दौरान ही योग दिवस की शुरुआत हुई।

पिछले साल गुजरात में बना था वर्ल्ड रिकॉर्ड

गुजरात के सूरत में 2023 में योग दिवस पर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना था। राज्य में 72 हजार लोकेशन पर लगभग 1.25 करोड़ लोगों ने योग किया। अकेले सूरत में एक लाख से ज्यादा लोगों की भागीदारी के साथ विश्व रिकॉर्ड बना था।

इससे पहले यह रिकॉर्ड 2018 में बना था, जब राजस्थान के कोटा में पतंजलि योगपीठ में हुए एक सेशन में 1 लाख 984 लोग शामिल हुए थे।

2023 में पहली बार योग दिवस पर देश से बाहर गए PM

नौंवे योग दिवस की थीम थी- वसुधैव कुटुम्बकम। पहली बार पीएम मोदी देश से बाहर योग दिवस मनाने न्यूयॉर्क गए। यहां 180 देशों के लोगों ने उनके साथ UN हेडक्वॉर्टर कैम्पस में योग आसन किए।

योग दिवस पर करें सबसे आसान सूर्य नमस्कार, जानिए क्या हैं इसके फायदे...

PM के दौरे से पहले श्रीनगर रेड जोन घोषित

पीएम ने 9 जून शपथ ली थी तब से कश्मीर में 4 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। इसलिए श्रीनगर में सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए हैं। श्रीनगर में रेड जोन घोषित किया गया। पुलिस के मुताबिक ड्रोन रूल्स, 2021 के नियम 24(2) के तहत श्रीनगर को तत्काल प्रभाव से ड्रोन और क्वाडकॉप्टर के लिए टेम्परेरी रेड जोन घोषित किया गया है। इस जोन में ड्रोन उड़ाने पर केस दर्ज हो सकता है।

स्थानीय लोग बोले- पिछले कुछ साल में कश्मीर में शांति आई

स्थानीय लोगों ने दैनिक भास्कर से बातचीत करते हुए कहा कि यह हमारे लिए सम्मान की बात है कि PM मोदी डल झील के किनारे योग दिवस मनाएंगे।

स्थानीय निवासी इश्तियाक सोफी का कहना है कि PM ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह के लिए डल झील के किनारे SKICC को इसीलिए चुना, क्योंकि पिछले कुछ साल में कश्मीर में शांति आई है। हम बहुत उत्साहित हैं, क्योंकि वे जम्मू-कश्मीर के लिए किसी विशेष पैकेज की घोषणा करेंगे।

एक अन्य स्थानीय फैयाज अहमद ने भास्कर को बताया कि PM के जम्मू-कश्मीर दौरे से पहले यहां के लोगों के लिए कोई विशेष या अन्य लाभ नहीं थे, लेकिन इस बार हमें उम्मीद है कि कुछ घोषणाएं होंगी।

2014 में आखिरी बार हुए थे जम्मू-कश्मीर में चुनाव

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मी से आर्टिकल 370 खत्म कर दिया गया था। साथ ही राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था। इससे पहले यहां 2014 में आखिरी बार चुनाव हुए थे। 2018 में BJP और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की गठबंधन वाली सरकार गिर गई थी, क्योंकि BJP ने PDP से अलायंस तोड़ लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2023 में चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि सितंबर, 2024 तक हर हाल में जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा लिए जाएं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि 30 सितंबर से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे।

मई 2022 के परिसीमन के बाद अब जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों वाली विधानसभा बनाई गई है, जिसमें कश्मीर में 47 और जम्मू में 43 सीटें हैं। यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा भी बहाल कर दिया जाएगा।


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कोरोना के नए वेरिएंट 'FLiRT' ने बढ़ाई चिंता, वैक्सीन लगवा चुके लोगों को भी कर सकता है संक्रमित

कोरोना (Coronavirus) महामारी ने दुनियाभर भयंकर कोहराम मचाया था, जिसे आज तक लोग भूले नहीं भूल पाए हैं। कोरोनाकाल (Coronavirus Pandemic) का वह दौर आज भी याद कर लोग सहम जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से भले ही कोरोना के मामलों में कमी आई हो, लेकिन यह वायरस अभी भी हमारे बीच मौजूद है और समय-समय पर इसके अलग-अलग स्ट्रेन हेल्थ एक्सपर्ट्स और लोगों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। इसी बीच अब कोरोना के और एक नए स्ट्रेन लोगों की चिंता बढ़ा दी है।

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में COVID-19 के वेरिएंट का एक समूह चिंता का कारण बन गया है। कोरोना के इस नए वेरिएंट को वैज्ञानिकों ने 'FLiRT' नाम दिया है। यह नया वेरिएंट ओमिक्रोन फैमिली का माना जा रहा है। बात दें कि ओमिक्रोन कोरोना वायरस का वही स्ट्रेन है, जिसने दुनियाभर में सबसे ज्यादा तबाही मचाई थी। भारत में आई कोरोना की दूसरी लहर के पीछे भी ओमिक्रॉन ही जिम्मेदार था।

वैक्सीन लगवाने पर भी खतरा

हेल्थ एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना का यह वेरिएंट फिलहाल अमेरिका के कुछ हिस्सों में फैल रहा है। इस नए स्ट्रेन के बढ़ते मामलों को देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि यह वेरिएंट दुनिया के अन्य हिस्सों में भी अपने पैर पसार सकता है। इतना ही नहीं ऐसा भी कहा जा रहा है कि बूस्टर डोज लगवाने के बाद भी यह स्ट्रेन आपको अपनी चपेट में ले सकता है, जिसकी वजह से लोगों की चिंता बढ़ गई है।

कहां पाया गया नया वेरिएंट

कोरोना का ये नया वेरिएंट अमेरिकी वैज्ञानिकों को वेस्ट वॉटर की निगरानी में मिला है। अमेरिकी वैज्ञानिक जे. वेइलैंड के अनुसार, लोगों को इस नए वेरिएंट को लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि वेस्ट वॉटर की निगरानी कर रही उनकी टीम को पानी के कुछ सैंपल में कोरोना का नया वेरिएंट मिला, जिसके बाद उनकी चिंता बढ़ गई है। उनका ऐसा मानना है कि गर्मी की वजह से यह वेरिएंट कोरोना के मामले बढ़ा सकता है।

इन लोगों को संक्रमण का ज्यादा खतरा

यह वेरिएंट चिंता का विषय इसलिए भी बना हुआ है, क्योंकि अमेरिका के अलावा यह दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि यह वेरिएंट कोरोना की एक नई लहर का कारण बन सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कोरोना का यह वेरिएंट इसके अन्य वेरिएंट्स की तुलना में कुछ अलग है। यह अन्य वेरिएंट की तुलना में ज्यादा संक्रामक हो सकता है। खासकर अगर आप डायबिटीज या दिल की बीमारी के मरीज हैं, तो इसे लेकर ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।


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Ghaziabad की साया गोल्ड सोसायटी में दूषित पानी पीने से 200 से ज्यादा लोग बीमार

इंदिरापुरम की साया गोल्ड सोसायटी में दूषित पानी पीने से 200 से ज्यादा लोग बीमार हो गए हैं। लोगों का कहना है कि पानी में कई दिन से सीवर का पानी मिलकर आ रहा था, जिसे लोग पी रहे थे।

पानी पीने से 100 से ज्यादा बच्चे और बड़े कुल मिलाकर 200 से ज्यादा लोग बीमार हो गए हैं। सोसायटी में इतने ज्यादा लोगों के बीमार होने से सोसायटी के लोगों में आक्रोश है।

शुरुआत में नहीं पता चली बीमारी की वजह

शुरुआत में लोगों को पता नहीं चला कि आखिर लोग बीमार क्यों हो रहे हैं, लेकिन बाद में जब जानकारी की गई तो पता चला कि दूषित पानी पीने से सोसायटी में 200 से ज्यादा लोग बीमार हो गए हैं।

लोग इसके विरोध में सोसायटी में शुक्रवार को हंगामा कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम सोसायटी में पहुंची है। काफी संख्या में लोग दवा ले रहे हैं।

लोगों ने बताया कि बच्चों को उल्टी-दस्त, पेट में दर्द सहित अन्य दिक्कत हो रही है। सोसाइटी में 1500 से ज्यादा फ्लैट हैं। बिल्डर इसका मेंटेनेंस देखता है।


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भारत में लगी इस कोविड वैक्सीन से आ सकता है हार्ट अटैक

कोविशील्ड वैक्सीन लेने के 4 से 42 दिन के अंदर थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) हो सकता है। यानी ब्लड क्लॉट बन सकता है और प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं। कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्टाजेनेका ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान अपनी वैक्सीन के रेयर साइड इफेक्ट्स को स्वीकार किया है। इसके बाद भारत में भी इस पर चर्चा शुरू हो गई है। एक्सपर्ट का कहना है इसको लेकर पैनिक होने की जरूरत नहीं है। खासकर हार्ट अटैक को लेकर अफवाह पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।

डॉ. अंशुमान ने कहा कि कंपनी ने यह भी माना है कि टीटीएस ब्रेन में, लंग्स में, आंत की खून की नली में और पैर में पाया गया है। जितने भी लोगों ने शिकायत की है उसमें से किसी ने भी हार्ट अटैक की समस्या नहीं बताई है। इसलिए वैक्सीन को लेकर हार्ट अटैक होने के खतरे को लेकर चिंतित होना बेकार की बात है। हां, यह बात सच है कि कोविड संक्रमण की वजह से ब्लड क्लॉट बनते हुए पाया गया है और इसका असर हार्ट पर भी हुआ है। देश की आईसीएमआर ने भी अपनी स्टडी में इस बात को खारिज किया है वैक्सीन की वजह से कार्डियक अरेस्ट होता है।

क्या होता है टीटीएस?

कोविड एक्सपर्ट डॉ. अंशुमान कुमार ने कहा कि किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि वैक्सीन की वजह से हार्ट अटैक हो रहा है। इसमें बताया गया है कि वैक्सीन की पहली डोज के 4 से 42 दिन के अंदर टीटीएस होने की बात स्वीकार की गई है। जब वैक्सीन की पहली डोज दी जाती है तो उसका इम्यून सिस्टम का टी सेल और बी सेल एक्टिव हो जाता है। इम्यून रेस्पॉन्स बढ़ जाता है और खून की नली में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से ब्लड क्लॉट बनता है। जब ब्लड क्लॉट बनता है तो इससे प्लेटलेट्स ज्यादा खर्च होती है, जिसकी वजह से प्लेटलेट्स कम होने लगती है और ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है। इसे ही टीटीएस कहा जाता है।

क्यों हो रह है हार्ट अटैक?

डॉ. अंशुमान ने कहा कि कोविड की बीमारी के दौरान हार्ट में भी क्लॉट बन रहा था। मांसपेशियों में सूजन की वजह से हार्ट बीट प्रभावित हो रही थी। कई प्रकार की दिक्कत हो रही थी। लॉकडाउन की वजह से लोगों का लाइफ स्टाइल खराब रही। मूवमेंट थम गया था, असुरक्षा थी, मेंटल स्ट्रेस बढ़ा हुआ था। मोटापा और डायबिटीज का स्तर बढ़ गया था। खानपान हैवी हो गया था। साथ में फिजिकल एक्टिविटी की कमी की वजह से हार्ट अटैक का रिस्क बढ़ा हुआ था। यही नहीं मोटापा एक गंभीर समस्या बन रही है। 33 परसेंट डायबिटीज के मरीज हैं, पल्यूशन भी एक वजह है। ये सभी वजह स्टैबलिश हैं।

'वैक्सीन को दोष देना सही नहीं है'

गंगाराम अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अश्विनी मेहता ने कहा कि इस खुलासे से यह साफ हो रहा है कि वैक्सीन का एक रेयर साइड इफेक्ट था। 4 से 42 दिनों के अंदर वैक्सीन के बाद टीटीएस हुआ। यह समस्या वैक्सीन लेने वाले और कोविड संक्रमण वालों में देखी गई, लेकिन कोविड वैक्सीन वाले मरीज बहुत रेयर थे। इसके लिए वैक्सीन को एकदम से दोष देना सही नहीं है। क्योंकि वैक्सीन इतने ज्यादा लोगों को लगी है और खतरा एक लाख में 2 लोगों को बताया जा रहा है। डॉक्टर ने कहा कि मैंने ऐसे 5 मरीजों का इलाज किया है, जिनमें से चार की उम्र बहुत कम थी। भले ही टीटीएस रेयर हो, लेकिन इसे नकारा नहीं जा सकता।

कंपनी को यह बताना चाहिए था

जीबी पंत के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. युसूफ जमाल ने कहा कि कंपनी ने अब स्वीकार किया है कि उनकी वैक्सीन में टीटीएस का साइड इफेक्ट था। कंपनी को यह बात छिपानी नहीं चाहिए थी, इसे पहले ही बताया जाना चाहिए था, ताकि लोगों को पता होता और वह अपनी इच्छा से वैक्सीन लेते।

'इफेक्ट करेगी तो साइड इफेक्ट भी'

डॉक्टर अंशुमान ने कहा कि कोई भी दवा या वैक्सीन अगर असर करेगी तो उसका साइड इफेक्ट भी होगा। मल्टीविटामिन की भी दवा का साइड इफेक्ट होगा। ऐसे में वैक्सीन का असर 1 लाख लोगों में से दो पर हो रहा है, जो .0002 परसेंट है। इसको लेकर बिना वजह पैनिक होना सही नहीं है। सच तो यह है कि जितने लोग की मौत कोविड के डेल्टा फेज में हुई उससे कहीं ज्यादा लोगों की जान इस वैक्सीन से बची है। डॉक्टर ने कहा कि मुझे लगता है कि वैक्सीन पर इंटरनैशनल राजनीति चल रही है।



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दुनिया के लिए आफत बन गया चीन का ये अनोखा कीड़ा

भारत का पड़ोसी देश चीन अक्सर अपने कारनामों की वजह से दुनिया में बदनाम होता है. कभी किसी वायरस की वजह से तो कभी अपनी गलत सीमा नीतियों की वजह से. लेकिन इस बार चीन अपने यहां के एक कीड़े की वजह से दुनियाभर में बदनाम हो रहा है. दरअसल, चीन का ये अनोखा कीड़ा पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है. इसके अंदर इतनी शक्ति है कि यह पूरा का पूरा जंगल तबाह कर सकता है.

कौन सा है ये कीड़ा?

हम जिस कीड़े की बात कर रहे हैं. उसे लॉन्ग हॉर्न बीटल कहा जाता है. एक समय तक ये सिर्फ चीन, ताइवान और कोरिया के कुछ हिस्सों में ही पाया जाता था. हालांकि, आज ये दुनिया के कई देशों में पहुंच गया है. ये कीड़ा पेड़ों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है. लेकिन अगर ये आपके घर के अंदर पहुंच गया तो वहां मौजूद लकड़ी की हर चीज तबाह कर सकता है.

इसे भगाना मुश्किल है?

इस कीड़े की सबसे खास बात है कि अगर ये किसी पेड़ या पौधे में लग गया तो उसे वहां से हटाना लगभग नामुमकिन है. इसे हटाने का एक ही रास्ता है कि उस टहनी को काट दिया जाए, जिसे इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया है. अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मध्य पूर्व, ऑस्ट्रेलिया, स्‍व‍िटजरलैंड और भारत के कई राज्‍यों में यह कीड़ा आफत मचा रहा है.

वैज्ञानिक भी हैरान

इस कीड़े से वैज्ञानिक भी हैरान हैं. जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, अगर ये कीड़ा आपके घर में घुस जाए तो यह आपका सोफा, डाइनिंग टेबल, कुर्सियां यहां तक खिड़कियां और दरवाजे भी खा सकता है. स्‍व‍िटजरलैंड में तो इस कीड़े की वजह से जंगल का एक पूरा हिस्सा काटना पड़ा था. खासतौर से बांस की लकड़ी को यह कीड़ा सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. दरअसल, लॉन्ग हॉर्न बीटल गोल छेद बनाता है और वहीं अंडे देते हैं. इसके बाद बच्‍चे पैदा करते हैं और फ‍िर तेजी से फैल जाते हैं.


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RO का 'शुद्ध' पानी पीते हैं तो सावधान, डॉक्टर ने दी चेतावनी

भारत के ज्यादातर घरों में स्वच्छ पानी के लिए RO यानी वाटर प्यूरीफायर लगा हुआ है. आमतौर पर हमें ये बताया जाता है कि आरओ का पानी सेहत के लिए काफी अच्छा होता है. यही कारण है कि हम अपने घरों में महंगे से महंगा वाटर प्यूरीफायर (RO) लगवाते हैं. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी की विशेषज्ञों ने आरओ का पानी पीना सेहत के लिए हानिकारक बताया है.

दरअसल हाल ही में आरओ सिस्टम पर एक वेबिनार हुआ था. जिसमें विशेषज्ञों ने बताया कि आरओ यानी वाटर प्यूरीफायर से जब हम पानी साफ करते हैं तो इस प्रक्रिया के दौरान न सिर्फ पानी की गंदगी खत्म होती है, बल्कि पानी में घुले खनिज पदार्थों भी खत्म हो जाते हैं. 

ऐसे में RO का पानी जब शरीर में जाता है तो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है. साफ साफ कहा जाए तो आरओ के पानी का लंबे समय से सेवन करने से शरीर में कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती है. 

वेबिनार में विशेषज्ञों ने क्या कहा

इस वेबिनार के दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि अगर आप अपने घर में आरओ का इस्तेमाल कर ही रहे हैं, तो इस बात का ख्याल रखें कि प्यूरिफाई किए गए पानी में कम से कम 200 से 250 मिलीग्राम प्रति लीटर के दर से ठोस पदार्थ घुले हुए हो. 

अगर आप ठोस पदार्थ वाला पानी पीते हैं तो आपके शरीर में कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसी जरूरी खनिजों की सप्लाई होती रहेगी.

डब्ल्यूएचओ भी दे चुके हैं चेतावनी 

बता दें कि इस वेबिनार से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन भी आरओ फिल्टर के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दे चुके हैं. साल 2019 में ही डब्ल्यूएचओ ने कहा था, 'आरओ फिल्टर पानी को साफ तो करती है लेकिन इसके कैल्शियम और मैग्नीशियम को खत्म कर देती है, ये मिनरल शरीर में ऊर्जा पैदा करने के लिए बेहद जरूरी हैं.  

डब्ल्यूएचओ के अनुसार से पीने वाले पानी का टीडीएस 300 मिलीग्राम से कम होना चाहिए. टीडीएस लेवल 900 से ऊपर है, तो उसे भूल से भी नहीं पीना चाहिए.

आरओ की जगह इस तरीके का इस्तेमाल करना सही 

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में मेदांता अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अश्विनी सेत्या ने कहा कि आरओ से फिल्टर करने के दौरान जरूरी खनिजों का खत्म हो जाना सच है. ऐसे में आरओ से बेहतर है कि आप उबला हुआ पानी पीयें.  उन्होंने कहा कि पानी से आवश्यक खनिज खत्म होने से आपकी इम्यूनिटी पर असर पड़ सकता है. 

डॉक्टर ने आगे कहा कि लंबे वक्त तक बोतलबंद पानी पीना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है, लेकिन सामान्य आरओ का पानी पीने से आपके शरीर को ना तो किसी तरह का फायदा होता है और न ही किसी तरह  का नुकसान. आरओ से पानी फिल्टर करते समय टीडीएस लेवल 70 से 150 के बीच होना ज्यादा सुरक्षित है.

एसएसजी हॉस्पिटल की एक स्टडी में पता चला है कि काफी लंबे समय तक आरओ का पीने से आपके शरीर में विटामिन बी12 की कमी हो सकती है. इस अध्ययन में पाया गया कि फिल्टर से पानी की सफाई करते वक्त आरओ कोबाल्ट भी अलग कर देता है और ये विटामिन बी12 का जरूरी तत्व है. रिसर्च  में देखा गया कि आरओ वाटर पीने वालें लोगों के शरीर में विटामिन बी12 नॉर्मल लेवल से नीचे था.

पानी का टीडीएस इतने से ऊपर नहीं होना चाहिए

एक्सपर्ट्स की मानें तो पाने वाले पानी का टीडीएस अगर 500 से नीचे है, तो उसे पीने योग्य माना जाता है. लेकिन इससे ज्यादा टीडीएस वाला पानी पीने से बचना चाहिए,  सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है.                                             


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जीरो फूड चिल्ड्रन रिपोर्ट में दावा

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में 12 फरवरी को एक रिसर्च पब्लिश हुई थी। इसमें भारत के 6 से 23 महीने के बच्चों की स्टडी की गई थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में 67 लाख (19.3%) बच्चे जीरो-फूड कैटेगरी में आते हैं। इसका मतलब देश में 67 लाख ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने 24 घंटे में न तो दूध पिया या न ही खाना खाया।

इस स्टडी में दावा किया गया है कि दुनिया के 92 लो और मिडिल इनकम वाले देशों की लिस्ट में भारत तीसरे नंबर पर है, जहां इतने बच्चे जीरो-फूड चिल्ड्रन की कैटेगरी में हैं। इसमें भारत से आगे गिनी (21.8%) और माली (20.5%) आते हैं, जहां हालत भारत से भी ज्यादा खराब है।

केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय ने इस स्टडी को बेबुनियाद बताया। मिनिस्ट्री की ओर से 12 मार्च को कहा गया कि इसमें प्राइमरी रिसर्च नहीं की गई है। इसे सनसनीखेज बनाई गई है। यह स्टडी फेक न्यूज फैलाने के लिए की गई है। इसमें किए गए दावे भ्रम फैला रहे हैं।

मिनिस्ट्री ने स्टडी को गलत क्यों बताया, 3 पॉइंट्स में समझिए

मिनिस्ट्री ने कहा कि रिसर्चर्स ने स्टडी में ऐसे 9 पॉइंट्स गिनाए हैं, जिसके जरिए उन्हें लगता है कि रिसर्च में कुछ कमी रह गई है। इसलिए स्टडी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जीरो फूड चिल्ड्रन की वैसे भी कोई साइंटिफिक डेफिनेशन नहीं है।

मिनिस्ट्री ने कहा स्टडी में फूड के लिए जानवरों का दूध और खाने की ही बात की गई है, लेकिन इसमें मां का दूध पीने वालों का जिक्र नहीं किया गया है। स्टडी में कहा गया है कि 19.3% बच्चों में से 17.8 % ब्रेस्ट फीडिंग करते हैं। अगर ऐसा होता वे भूखे कैसे हुए?

मिनिस्ट्री ने कहा कि देश में आठ करोड़ बच्चों के खान-पान की आंगनवाड़ी सेंटर के जरिए ट्रैकिंग होती है। इसके लिए पोषण ट्रैकर नाम से पोर्टल बना हुआ है। स्टडी में पोषण ट्रैकर का डेटा नहीं लिया गया है। पोषण ट्रैकर के मुताबिक, बहुत कम बच्चे ही भारत में कुपोषित हैं।

सेंट्रल अमेरिका के कोस्टा रिका में हालत सबसे बेहतर

यह स्टडी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम और विजिटिंग साइंटिस्ट रॉकिल किम ने की है। उन्होंने 92 देशों के 6 से 23 महीने के कुल 2 लाख 76 हजार बच्चों पर रिसर्च की है। इसके लिए उन्होंने 2010 से 2022 तक का डेटा लिया है, अलग-अलग देशों ने पब्लिक किया हुआ है।

प्रोफेसर्स के मुताबिक सभी 92 देशों में 10.4% बच्चे ऐसे है जो जीरो फूड कैटेगरी में आते हैं। सेंट्रल अमेरिका का कोस्टा रिका देश में सबसे कम 0.1% बच्चे ही 24 घंटे में बिना दूध और खाने के रहते हैं। प्रोफेसर्स का मानना है कि 6 से 23 महीने की उम्र बच्चों के डेवलपमेंट के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस उम्र में उनको सही खाना मिलना चाहिए। यह दिक्कत सबसे ज्यादा वेस्ट अफ्रीका, सेंट्रल अफ्रीका और भारत में है।

बच्चों के कुपोषण मामले में गुजरात दूसरे नंबर पर, राज्य में 5 साल से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे कुपोषित

गुजरात में कुपोषण की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो 5 वर्ष से कम उम्र के 1.5 लाख बच्चे बौनेपन (ऊंचाई के अनुसार कम वजन) का शिकार हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुसार, गुजरात में 15-49 आयु वर्ग की 1.26 करोड़ महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।


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लांच किया मोबाइल ऐप 'राइज अगेंस्ट कैंसर', खतरनाक बीमारी से जंग लड़ने का बना दमदार हथियार

इंडियन कैंसर सोसाइटी (ICS) भारत में कैंसर से लड़ने वाले सबसे बड़े एनजीओ ने एक अभूतपूर्व मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर' पेश कर विश्व कैंसर दिवस मनाया। मेड इन इंडिया ऐप का मकसद कैंसर मुक्त भारत बनाने के लिए जानकारी की कमी दूर करना, जागरूकता बढ़ाना और संबद्ध समुदायों को एक करना है। इस अभियान में राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) और रोश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड का समर्थन मिला।

ICS ने लांच किया मोबाइल ऐप 'राइज अगेंस्ट कैंसर'

ग्लोबोकैन के आंकडे कहते हैं कि हर साल लगभग 1.3 मिलियन लोगों में कैंसर का पता चलता है और सिर्फ वर्ष 2020 में लगभग 800 हजार लोगों ने इस बीमारी से दम तोड़ दिए। आंकड़ों की गंभीरता समझते हुए आईसीएस ने अगले एक दशक में कुल वयस्क आबादी के 50 प्रतिशत लोगों तक पहुंचने का मिशन बनाया है। यह बीमारी का जल्द पता लगाने और तुरंत इलाज शुरू करने के लिए जरूरी कैंसर के बारे में सटीक जानकाकी और सलाह देगा।

इंडियन कैंसर सोसायटी की नेशनल मैनेजिंग ट्रस्टी उषा थोराट ने कहा कि "कैंसर पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर समस्या बनी हुई है। भारत सहित पूरी दुनिया के लाखों लोगों का जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित है इसलिए आईसीएस की दिल्ली शाखा ने पहल करते हुए इसकी रोकथाम में मोबाइल टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने की ठान ली है।

इससे कैंसर पीड़ितों और उनके परिवारजनों को पूरी जानकारी और सटीक मार्गदर्शन आसानी से मिलेगा। आईसीएस की राष्ट्रीय प्रबंधन समिति के प्रतिनिधि होने के नाते हम आज यह अभूतपूर्व एप लांच करने की बहुत खुशी है। एप पांच भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी और बांग्ला में उपलब्ध होगा। हमें विश्वास है कि आने वाले चरणों में कई फीचर और भाषाएं जुड़ेंगी।"

इस अवसर पर आईसीएस दिल्ली शाखा की अध्यक्ष ज्योत्सना गोविल ने कहा कि "आईसीएस समुदाय की जरूरतें और समय की मांग बखूबी समझता है इसलिए आईसीएस बहुत बारीकी से यह मोबाइल एप्लिकेशन तैयार करने में सफल रहा है। 'राह अगेंस्ट कैंसर' एप की दूरदृष्टि कैंसर पीड़ितों को सक्षम बनाना है ताकि वे स्वास्थ्य के अपनी जिम्मेदारी समझें और पूरी करें। एप में एक सूचना केंद्र, संसाधन पुस्तकालय, कार्यक्रम, समुदाय और सहायता समूह जैसे अलग-अलग सेक्शन हैं।

समाचार और अपडेट के भी सेक्शन हैं। एप वर्तमान में 5 भाषाओं में उपलब्ध है और फिलहाल 4 तरह के कैंसर के बारे में जानकारी देता है।"आईसीएस पिछले सात दशकों से अधिक समय कैंसर की रोकथाम, उपचार, इसके लिए वित्तीय सहायता और इलाज के बाद के जीवनयापन में सहयोग दे रहा है। यह कैंसर रजिस्ट्री सेवाओं के माध्यम से बहुत उपयोगी डेटा देता है और इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर का प्रकाशन करता है। आईसीएस ने विश्व कैंसर दिवस 2024 की थीम 'क्लोज द केयर गैप' पर काम करते हुए यह एप लांच किया है, जो कैंसर से जंग में पीड़ितों और समुदायों को सशक्त बनाने का टूल है और कई भाषाओं में उपलब्ध है।

इस ऐतिहासिक अवसर पर आईसीएस की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अनीता बोर्गेस ने कहा कि " आज हमारे मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर का लांच हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। आईसीएस पिछले सात दशकों से कैंसर के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रहा है। वंचित वर्ग के हजारों कैंसर मरीजों के लिए आईसीएस आशा की किरण है।

दरअसल, अधिकतर मरीजों का इलाज कारगर हो सकता है। बशर्ते कैंसर का जल्द पता लगे लेकिन जागरूकता कम और इस भयानक बीमारी के बारे में भ्रामक जानकारी अधिक है। ऊपर से इलाज बहुत महंगा है इसलिए अक्सर लोगों की नियमित जांच और इलाज मुमकिन नहीं हो पाता है। लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम मिल कर इसी तरह अथक प्रयास करते रहें तो लोगों को 'कैंसर से दो कदम आगे रहने का हौसला मिलेगा। कैंसर का जल्द पता चलेगा और इलाज भी जल्द शुरू होगा।"

लांच के अवसर पर आरजीसीआईआरसी के सीईओ डीएस नेगी ने कहा कि "हम ने कैंसर से लड़ने की ठान रखी है और इसकी रोकथाम के लिए उपचार का महत्व समझते हैं। आईसीएस टीम के मोबाइल एप 'राइज अगेंस्ट कैंसर' लांच पर पूरी टीम को बधाई। यह एप कैंसर की रोकथाम के लिए जागरूकता और जानकारी बढ़ाने में कारगर होगा। हम ने आईसीएस से साझेदारी कर जन-जन के लिए इस एप की उपयोगिता में हमारा विश्वास व्यक्त किया है। यह आरजीसीआईआरसी के मिशन के अनुरूप है, जो इनोवेशन के साथ स्वास्थ्य सेवा देना है। हम मिलकर जन-जन को जानकार बनाएंगे और कैंसर की रोकथाम और इलाज का नया दौर शुरू करेंगे।"

इंडियन कैंसर सोसायटी का परिचय

इंडियन कैंसर सोसाइटी का गठन डॉ. डी. जे. जुसावाला और नवल टाटा ने 1951 में किया। यह कैंसर से लड़ने वाला भारत का पहला गैर-आर्थिक लाभ संगठन है। आईसीएस कैंसर से जुड़े सभी पहलुओं पर काम करता है, जैसे कि जागरूकता बढ़ाना, प्रारंभिक जांच, वित्तीय सहायता, सहायता समूह, कैंसर से उबरने के बाद जीवनयापन में सहयोग, अनुसंधान, रजिस्ट्री और जानकारी देना आदि। इसके अलावा, आईसीएस इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर प्रकाशित करता है, जो भारत का पहला इंडेक्स्ड ऑन्कोलॉजी जर्नल है।

आईसीएस अब तक 480,000 से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग कर चुका है और 44,000 लोगों को कैंसर के निदान, उपचार, उबरने के बाद जीवनयापन और पुनर्वास में सहयोग दे चुका है। विवरण www.indiancancersociety.ong पर देखें।


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