17 साल की बेटी ने पिता को लिवर दिया

केरल में 17 साल की लड़की ने अपने पिता को लिवर डोनेट किया है। ऐसा करके वह देश की सबसे कम उम्र की ऑर्गन डोनर बन गई है। लड़की का नाम देवनंदा है और वह 12वीं की स्टूडेंट है। देवनंदा के पिता गंभीर लिवर रोग से जूझ रहे थे और लिवर ट्रांसप्लांट ही उनके इलाज का तरीका था।

देश के ऑर्गन डोनेशन नियमों के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के लोग अंगदान नहीं कर सकते हैं। ऐसे में देवनंदा ने केरल हाईकोर्ट से विशेष इजाजत मांगी, जिसे कोर्ट ने मान लिया। कोर्ट की इजाजत मिलने के बाद देवनंदा ने 9 फरवरी को अपने पिता प्रतीश को लिवर का एक टुकड़ा डोनेट किया। देवनंदा की बहादुरी को देखकर अस्पताल प्रशासन ने सर्जरी का बिल भी माफ कर दिया।

सितंबर 2022 में पहली बार दिखे थे लिवर डिजीज के लक्षण
त्रिशूर की रहने वाली देवनंदा बताती हैं कि उनके पिता कैफे चलाते है। पिछले साल सितंबर में ओणम के समय उनके पिता जब काम से घर लौटते थे, तो उनके पैर सूजे होते थे। उस वक्त उसके पिता की बहन की ब्रेस्ट कैंसर से मौत हुई थी और सब इस दुख से उबर रहे थे, इसलिए किसी ने पिता की हालत पर गौर नहीं किया।

उसके पिता प्रतीश का दो महीने में ही 20 किलो वजन बढ़ गया। वे अक्सर थकान और पैरों में दर्द की बात करते थे। परिवार ने उनका ब्लड टेस्ट करवाया, जिसमें रिपोर्ट्स नॉर्मल आई। परिवार उनकी सेहत को लेकर चिंतित था, तो CT स्कैन समेत उनके कई और टेस्ट कराए गए।

इनकी रिपोर्ट्स को देवनंदा की आंटी के पास भेजा, जो नर्स हैं। उन्होंने कहा कि लिवर में कुछ गड़बड़ दिख रही है, इसे चेक कराना चाहिए। तब वे लोग प्रतीश को लेकर राजगिरी अस्पताल गए जहां यह साफ हुआ कि उन्हें लिवर में बीमारी के साथ कैंसर है। इसके बाद सिर्फ एक ही रास्ता बचा- लिवर ट्रांसप्लांट।

रेयर ब्लड ग्रुप के चलते नहीं मिला कोई डोनर
इसके बाद देवनंदा के परिवार ने उसके पिता के लिए डोनर तलाशना शुरू किया। उनका ब्लड ग्रुप B- है, जो रेयर होता है। परिवार में किसी का ब्लड ग्रुप उनसे मैच नहीं हुआ। उन्होंने परिवार के बाहर डोनर ढूंढे, लेकिन जो भी मिला उसने 30-40 लाख रुपए की डिमांड की। इतने पैसे देना देवनंदा के परिवार के लिए संभव नहीं था। देवनंदा कहती हैं कि अफसोस इस बात का भी था कि मेरा ब्लड ग्रुप O+ है।

उन्होंने आगे बताया कि जब कहीं से डोनर नहीं मिला तो राजगिरी अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि O+ यूनिवर्सल डोनर होता है, लिहाजा वह अपने लिवर का एक हिस्सा अपने पिता को डोनेट कर सकती है, लेकिन परिवार, डॉक्टर्स और देवनंदा के पेरेंट्स समेत हर कोई इसके खिलाफ था।

एक महीने की एक्सरसाइज में लिवर को बनाया डोनेशन के लिए फिट
जैसे-तैसे देवनंदा ने परिवार और डॉक्टरों को मनाया, लेकिन जब उसके लिवर का टेस्ट हुआ तो पता चला कि उसका अपना लिवर ही स्वस्थ नहीं है। ऐसे लिवर के पार्ट को वह डोनेट नहीं कर सकती थी, लेकिन देवनंदा ने हार नहीं मानी।

उसने डॉक्टरों से अपने लिए डाइट चार्ट और एक्सरसाइज बताने को कहा जिससे लिवर को स्वस्थ्य बनाया जा सके। देवनंदा ने एक महीने तक डाइट फॉलो की और एक्सरसाइज की। एक ही महीने में उसका लिवर स्वस्थ हो गया और वह लिवर का पार्ट डोनेट करने के लिए फिट हो गई।

जब कानून आया आड़े, देवनंदा ने कानून को दी चुनौती
इसके बाद देवनंदा के सामने सबसे बड़ी चुनौती आई। देश के कानून के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के लोग यानी नाबालिग ऑर्गन या ऑर्गन टिश्यू डोनेट नहीं कर सकते हैं। देवनंदा ने इस बाधा को भी पार करने की ठानी।

उसने इंटरनेट पर आर्टिकल्स और मेडिकल जर्नल खोजे ताकि पता चल सके कि इस तरह का कोई केस पहले हुआ है या नहीं। उसे एक ऐसा केस मिला जिसमें माइनर लड़की को अपना लिवर डोनेट करने की इजाजत दी गई थी, लेकिन किसी कारण से सर्जरी नहीं हो सकी।

इस मामले को आधार बनाकर उसने अपने अंकल की मदद से नवंबर 2022 में केरल कोर्ट में अर्जी दाखिल की। उसने अर्जी मे लिखा कि ह्यूमन ऑगर्न्स एंड टिश्यू एक्ट, 1994 के मुताबिक, कोई नाबालिग जीते जी अपने अंगदान नहीं कर सकता है, लेकिन 2011 में इस एक्ट में संशोधन हुआ था, जिसके मुताबिक अगर उचित कारण दिए जाएं तो यह नियम बदल सकता है।

एक्सपर्ट पैनल को मनाया, पिता को लिवर डोनेट किया
कोर्ट ने 3 डॉक्टरों के एक्सपर्ट पैनल का गठन किया, जिसने पहले तो इस डोनेशन के लिए मना कर दिया, लेकिन देवनंदा की कोशिशों के चलते एक्सपर्ट पैनल मान गया। आखिरकार 9 फरवरी को देवनंदा ने अपने लिवर का एक हिस्सा अपने पिता को डोनेट किया।

एक हफ्ते अस्पताल में रिकवरी के बाद देवनंदा अब डिस्चार्ज होकर घर आ गई है। उसने बताया कि मैं 12वीं की परीक्षाओं की तैयारी कर रही हूं और अपने पिता के घर आने का इंतजार कर रही हूं। डॉक्टरों ने मुझे बताया है कि उनकी बीमारी लौट सकती है, लेकिन मैं उनके लिए प्रार्थना कर रही हूं और उनके लिए ईश्वर से भी लड़ सकती हूं।

...

दुनिया की पहली कोविड नेजल वैक्सीन लॉन्च

नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और साइंस-टेक्नोलॉजी मिनिस्टर जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को दुनिया की पहली इंट्रानेजल कोविड-19 वैक्सीन iNCOVACC को लॉन्च किया। कोवैक्सिन बनाने वाली हैदराबाद की भारत बायोटेक ने इसे वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन (WUSM) के साथ मिलकर बनाया है। नाक से ली जाने वाली इस वैक्सीन को बूस्टर डोज के तौर पर लगाया जा सकेगा।

भारत सरकार ने 23 दिसंबर को इस वैक्सीन की मंजूरी दी थी। सबसे पहले नेजल वैक्सीन को प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसके लिए लोगों को पैसे देने होंगे। दिसंबर में भारत बायोटेक ने घोषणा की थी कि यह वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में 325 रुपए में लगवाई जा सकेगी। वहीं प्राइवेट अस्पतालों में इसके लिए 800 रुपए चुकाने होंगे। इस वैक्सीन के लिए Cowin पोर्टल से ही बुकिंग होगी।

नेजल वैक्सीन सामान्य स्प्रे की तरह ले सकेंगे
फिलहाल हमें मांसपेशियों में इंजेक्शन के जरिए वैक्सीन लगाई जा रही है। इस वैक्सीन को इंट्रामस्कुलर वैक्सीन कहते हैं। नेजल वैक्सीन वो होती है जिसे नाक के जरिए दिया जाता है। क्योंकि ये नाक के जरिए दी जाती है इसलिए इसे इंट्रानेजल वैक्सीन कहा जाता है। यानी इसे इंजेक्शन से देने की जरूरत नहीं है और न ही ओरल वैक्सीन की तरह ये पिलाई जाती है। यह एक तरह से नेजल स्प्रे जैसी है।

प्राइमरी और बूस्टर के तौर पर दी जा सकेगी
इंट्रानेजल वैक्सीन को कोवैक्सिन और कोवीशील्ड जैसी वैक्सीन्स लेने वालों को बूस्टर डोज के तौर पर दिया जाएगा। हालांकि इसे प्राइमरी वैक्सीन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत बायोटेक के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन डॉ. कृष्णा एल्ला ने कुछ समय पहले कहा था कि पोलियो की तरह इस वैक्सीन की भी 4 ड्रॉप्स काफी हैं। दोनों नॉस्ट्रिल्स में दो-दो ड्रॉप्स डाली जाएंगी।

नेजल वैक्सीन सामान्य स्प्रे की तरह ले सकेंगे
फिलहाल हमें मांसपेशियों में इंजेक्शन के जरिए वैक्सीन लगाई जा रही है। इस वैक्सीन को इंट्रामस्कुलर वैक्सीन कहते हैं। नेजल वैक्सीन वो होती है जिसे नाक के जरिए दिया जाता है। क्योंकि ये नाक के जरिए दी जाती है इसलिए इसे इंट्रानेजल वैक्सीन कहा जाता है। यानी इसे इंजेक्शन से देने की जरूरत नहीं है और न ही ओरल वैक्सीन की तरह ये पिलाई जाती है। यह एक तरह से नेजल स्प्रे जैसी है।

प्राइमरी और बूस्टर के तौर पर दी जा सकेगी
इंट्रानेजल वैक्सीन को कोवैक्सिन और कोवीशील्ड जैसी वैक्सीन्स लेने वालों को बूस्टर डोज के तौर पर दिया जाएगा। हालांकि इसे प्राइमरी वैक्सीन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत बायोटेक के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन डॉ. कृष्णा एल्ला ने कुछ समय पहले कहा था कि पोलियो की तरह इस वैक्सीन की भी 4 ड्रॉप्स काफी हैं। दोनों नॉस्ट्रिल्स में दो-दो ड्रॉप्स डाली जाएंगी।

नेजल वैक्सीन को एक पंप के जरिए नाक में भेजा जाता है। एक डोज में इसकी कुछ बूंदें ही देने की जरूरत होती है।
नेजल वैक्सीन को एक पंप के जरिए नाक में भेजा जाता है। एक डोज में इसकी कुछ बूंदें ही देने की जरूरत होती है।

इन्फेक्शन-ट्रांसमिशन ब्लॉक करेगी नेजल वैक्सीन
इस नेजल वैक्सीन का नाम iNCOVACC रखा गया है। पहले इसका नाम BBV154 था। इसकी खास बात यह है कि शरीर में जाते ही यह कोरोना के इन्फेक्शन और ट्रांसमिशन दोनों को ब्लॉक करती है। इस वैक्सीन को इंजेक्शन से नहीं दिया जाता, इसलिए इन्फेक्शन का खतरा नहीं है। इसे देने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स को भी खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ेगी।

...

पित्त और कफ विकारों का घरेलू उपचार है गूलर

मोरासी परिवारी का सदस्य गूलर लंबी आयु वाला वृक्ष है। इसका वनस्पतिक नाम फीकुस ग्लोमेराता रौक्सबुर्ग है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह नदी−नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है। उत्तर प्रदेश के मैदानों में यह अपने आप ही उग आता है।

 

इसके भालाकार पत्ते 10 से सत्रह सेमी लंबे होते हैं जो जनवरी से अप्रैल तक निकलते हैं। इसकी छाल का रंग लाल−घूसर होता है। फल गोल, गुच्छों में लगते हैं। फल मार्च से जून तक आते हैं। कच्चा फल छोटा हरा होता है पकने पर फल मीठे, मुलायम तथा छोटे−छोटे दानों से युक्त होता है। इसका फल देखने में अंजीर के फल जैसा लगता है। इसके तने से क्षीर निकलता है।

 

आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार गूलर का कच्चा फल कसैला एवं दाहनाशक है। पका हुआ गूलर रुचिकारक, मीठा, शीतल, पित्तशामक, तृषाशामक, श्रमहर, कब्ज मिटाने वाला तथा पौष्टिक है। इसकी जड़ में रक्तस्राव रोकने तथा जलन शांत करने का गुण है। गूलर के कच्चे फलों की सब्जी बनाई जाती है तथा पके फल खाए जाते हैं। इसकी छाल का चूर्ण बनाकर या अन्य प्रकार से उपयोग किया जाता है।

 

गूलर के नियमित सेवन से शरीर में पित्त एवं कफ का संतुलन बना रहता है। इसलिए पित्त एवं कफ विकार नहीं होते। साथ ही इससे उदरस्थ अग्नि एवं दाह भी शांत होते हैं। पित्त रोगों में इसके पत्तों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन भी फायदेमंद होता है।

 

गूलर की छाल ग्राही है, रक्तस्राव को बंद करती है। साथ ही यह मधुमेह में भी लाभप्रद है। गूलर के कोमल−ताजा पत्तों का रस शहद में मिलाकर पीने से भी मधुमेह में राहत मिलती है। इससे पेशाब में शर्करा की मात्रा भी कम हो जाती है। गूलर के तने को दूध बवासीर एवं दस्तों के लिए श्रेष्ठ दवा है। खूनी बवासीर के रोगी को गूलर के ताजा पत्तों का रस पिलाना चाहिए। इसके नियमित सेवन से त्वचा का रंग भी निखरने लगता है।

 

हाथ−पैरों की त्वचा फटने या बिवाई फटने पर गूलर के तने के दूध का लेप करने से आराम मिलता है, पीड़ा से छुटकारा मिलता है। गूलर से स्त्रियों की मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं भी दूर होती हैं। स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने पर इसकी छाल के काढ़े का सेवन करना चाहिए। इससे अत्याधिक बहाव रुक जाता है। ऐसा होने पर गूलर के पके हुए फलों के रस में खांड या शहद मिलाकर पीना भी लाभदायक होता है। विभिन्न योनि विकारों में भी गूलर काफी फायदेमंद होता है। योनि विकारों में योनि प्रक्षालन के लिए गूलर की छाल के काढ़े का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है।

 

मुंह के छाले हों तो गूलर के पत्तों या छाल का काढ़ा मुंह में भरकर कुछ देर रखना चाहिए। इससे फायदा होता है। इससे दांत हिलने तथा मसूढ़ों से खून आने जैसी व्याधियों का निदान भी हो जाता है। यह क्रिया लगभग दो सप्ताह तक प्रतिदिन नियमित रूप से करें।

 

आग से या अन्य किसी प्रकार से जल जाने पर प्रभावित स्थान पर गूलर की छाल को लेप करने से जलन शांत हो जाती है। इससे खून का बहना भी बंद हो जाता है। पके हुए गूलर के शरबत में शक्कर, खांड या शहद मिलाकर सेवन करने से गर्मियों में पैदा होने वाली जलन तथा तृषा शांत होती है।

 

नेत्र विकारों जैसे आंखें लाल होना, आंखों में पानी आना, जलन होना आदि के उपचार में भी गूलर उपयोगी है। इसके लिए गूलर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ और महीन कपड़े से छान लें। ठंडा होने पर इसकी दो−दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। इससे नेत्र ज्योति भी बढ़ती है। नकसीर फूटती हो तो ताजा एवं पके हुए गूलर के लगभग 25 मिली लीटर रस में गुड़ या शहद मिलाकर सेवन करने या नकसीर फूटना बंद हो जाती है।

...

इस उम्र में शरीर कई बीमारियों का घर

मैं मानती हूं कि मेरी इस उम्र में शरीर कई बीमारियों का घर बन जाता है परन्तु मेरी ज्ञानेन्द्रियों के साथ इन दिनों एक विशेष प्रकार की समस्या होती जा रही है। मैं लोगों को बताती हूं मगर वे यकीन नहीं करते। वे कहते हैं कि ऐसा भी कभी हो सकता है कि शरीर में आई इतनी बड़ी खराबी क्या कुछ देर बाद ठीक हो जाए और कुछ देर बाद फिर वैसी ही हो जाए।

 

मगर यह सच है कि साल के कुछ महीनों में मैं गूंगी तथा बहरी हो जाती हूं। ऐसा तब ही होता है जब मैं अपने बड़े बेटे रणबीर के पास शहर में जाकर रहती हूं। और जैसे ही मैं छह महीने बाद गांव में अपने छोटे बेटे बलबीर के पास आती हूं तो मेरी सुनने व बोलने की सारी शक्तियां लौट आती हैं और मैं सामान्य इनसान की तरह हो जाती हूं।

 

जब मैं शहर में बड़े बेटे के पास होती हूं तो छोटी बहू का फोन हर रोज आता है और वह मुझे गांव आने के लिए कहती रहती है। उसे मुझसे कोई खास लगाव नहीं है। उसकी नजर तो मेरी बीस हजार रुपए की मासिक पेंशन तथा मेरी बैंक में रखी एफडी पर रहती है। मेरे पास जो सोना है उसे यह खटका रहता है कि कहीं झांसे में आकर मैं बड़ी बहू को न दे दूं।

 

मेरे पास बहुत सारे जीवन के अनुभव, बातें व अनगिनत किस्से हैं मगर मेरे इतने बड़े कुनबे में किसी के पास समय नहीं है कि कुछ देर मेरे पास बैठकर मेरी कोई सलाह या अनुभव की बात सुने। ये सब लोग मेरे लिए अजनबी बन चुके हैं। शहर में तो मुझे पूरा दिन चुप होकर बैठना पड़ता है। जैसे आर्मी में किसी दूसरी यूनिट से आए सिपाही की हालत नए यूनिट में होती है, कोई उससे बात नहीं करता, वैसे ही शहर के घर में मेरे साथ बुरा व्यवहार होता है। सारा दिन मैं अपने मुंह, कान, दिमाग और आंखें बन्द करके पड़ी रहती हूं।

 

शहर में हर तरह आसमान को छूते कंकरीट के जंगल सरीखे फ्लैट ही फ्लैट खड़े हैं। बेटे रणबीर का गुलमोहर सोसायटी में चार कमरों वाला फ्लैट है। वे मुझे सात गुणा सात फुट का अन्दर वाला छोटा-सा सुनसान, अंधेरा और बेरौनक-सा कमरा देते हैं जिसमें बामुश्किल एक बेड आ सकता है। इस कमरे में बाहर की दुनिया से जोडऩे वाली केवल एक छोटी-सी खिड़की है जहां से इस गुलमोहर सोसायटी का मुख्य बड़ा पार्क नजर आता है। वहां से देखकर मैं छह महीने का समय काटती हूं।

 

यहां समय काटना ही सबसे बड़ी समस्या है मेरे लिए। मैं टी वी वाले कमरे में नहीं जा सकती, मेहमान वाले लिविंग रूम में मेरी जाने की मनाही है। मैं बाहर के गैलरी वाले बरामदे में उठ, बैठ या टहल नहीं सकती क्योंकि ऐसा यहां कोई नहीं करता। छत पर तो जाने का सवाल ही नहीं उठता। अब मेरे में इतना दमखम कहां है। सब के सब अन्दर से कुंडी लगाकर रखते हैं, जैसे जेल में बन्द कैदी हों। मजाल है किसी को किसी की शक्ल नजर आ जाए।

 

मुझे समय पर भोजन मिलता है। कोई यह नहीं पूछता कि मुझे क्या खाना अच्छा लगता है। रसोई वाली जो कुछ बनाकर मेरे सम्मुख रखती है, मैं वह खा लेती हूं। मैं उससे बात करूं तो उसके पास भी समय नहीं है मुझसे सिर खपाने का। वह मुझ पर झल्ला पड़ती है। जब मेरे अपने ही मुझसे कोई बात करके राजी नहीं तो फिर वह तो बेगाना जीव है। मेरे पास एक पुराना -सा रेडियो है। कभी-कभार उसके पुराने घिसे हुए बटन मरोड़ती हूं तो उसमे से घर्र-घर्र की कुछ गाने जैसी आवाज आती है। कभी मुझे अच्छी लगती है तो कुछ देर सुन लेती हूं। आज का शोर वाला संगीत सहन कर पाना मेरे बूते की बात नहीं है।

 

यहां की कालकोठरी में मेरे लिए एक सुखद समय सिर्फ वही होता है जब इस सोसायटी के ये पत्थरदिल इनसान होली का त्योहार मनाते हैं। उस दिन पता नहीं कैसे ये तालाबन्द दिलों वाले लोग झुण्ड के झुण्ड बाहर खुले पार्क में नमूदार होते हैं और बनावटी चेहरे से खोखली हंसी हंसते हैं।

 

सुना था कि सांप सारी सर्दियों में अपने बिल में रहकर समय काट देता है और गर्मी आने पर बाहर आकर अपनी केंचुली छोड़ता है। वैसे ही ये हर वक्त घर के अन्दर दुबके रहने वाले लोग अपनी केंचुली उतारकर होली के दिन खुले में जश्न मनाते हैं।

 

उस दिन मै पूरा दिन खिड़की से चिपकी यह अद्भुत नजारा देखती रहती हूं। ये लोग अपने खोल से बाहर आते हैं मगर इनकी सारी खुशी व हुड़दंग नकली और खोखला दिखता है। अपने घर में ये किसी का आना सहन नहीं करते क्योंकि इनके कीमती कालीन तथा सोफे खराब हो सकते हैं। होली के दिन न ही ये अपने घर में कोई मीठी गुजिया, चाट पापड़ी या पकोड़े आदि बनाते हें। सारा ताम झाम बाहर होटल से मंगवाया जाता है-वो बेकार सी नूडल, पिज्जा व डोखला वगैरा।

 

ऐसा ही आयोजन ये लोग नए साल के आगमन पर भी करते हैं। दो सौ के लगभग लोग पार्क में जमा होते हैं। स्टेज पर पता नहीं किस तरह का गाना-बजाना होता है, शोर-शराबा अधिक सुनाई देता है। सात-आठ स्थान पर आग जलाते हैं, शराब पीते हैं और वहीं नूडल, पीजा और पेस्टरी आदि से पेट भरते हैं। साल की शुभकामनाएं देकर अपने-अपने दड़बों में घुस जाते हैं और फिर अगले साल ही मिलते हैं।

 

मुझ जैसे बूढ़ों का ऐसे आयोजनों में जाना वर्जित है। हम न तो अन्य बूढ़ों से मिल सकते हैं और न ही किसी अन्य पीढ़ी के लोगों से। हर कोई बूढ़ा इतनी अलग-अलग जगह टंगा हुआ है, कोई पन्द्रहवीं मंजिल पर है तो कोई आठवीं पर। नई पीढ़ी तो अंग्रेजी में ही गिटपिट करती है और उनके मां-बाप भी उन जैसे ही हो गए हैं मानो सब के सब किसी दूसरे देश के बाशिन्दे हों।

 

तभी तो मेरे साथ यही समस्या आ जाती है जिस का बयान मैंने कहानी के शुरू में किया था। मैं सब कुछ देख सकती हूं, सब कुछ महसूस कर सकती हूं मगर मैं न तो सुन सकती हूं और न ही बोल सकती हूं। बोलूं तो क्या बोलूं, किस से बोलूं और किस जुबान में बोलूं, सब कुछ अनजाना और अबूझ है चारों तरफ।

 

मैंने अपना सारा जीवन गांव में ही काटा है। मेहनत से बच्चों को पढ़ाया। जब तक मेरे पति जिन्दा थे, सब कुछ ठीक था मगर अब मेरी उम्र पिचासी से ज्यादा हो गई है। अब घर की कमान मेरे हाथ में नहीं है। अब मैं कमजोर हूं, चलने फिरने में असमर्थ हूं और दूसरों पर पूरी तरह से निर्भर हूं। अब मैं एक प्रकार से सब पर बोझ बन गई हूं।

 

अन्य बुजुर्गों के बनिस्पत मेरे पास अपना कहने को थोड़ा सोना है, बैक में पैसा है और मासिक पेंशन है जिसकी गर्ज ये अपने लोग भी मुझे थोड़ा-बहुत पूछते हैं। अगर मैं आर्थिक रूप से पूरी तरह उन पर आश्रित होती तो अब तक कब की भुगत गई होती। कौन महंगे अस्पतालों में मेरा इलाज करवाता।

 

अब भी मेरे लिए सुकून की बात है कि जब मैं गांव में अपने छोटे लड़के बलबीर के पास होती हूं तो मुझे बहुत कम दिक्कतें पेश आती हैं। मेरी कई सहेलियां आकर मेरे पास बैठती हैं, मुझे अपने साथ ले जाती हैं, गपशप होती है, हंसी ठिठोली होती है। इससे मेरा समय अच्छा गुजरता है। घर के लोगों की उपेक्षा भरी बातें दिमागमें नहीं घुमड़तीं।

 

समय के साथ-साथ मेरी दोनों बहुओं में खींचतान बढ़ती जा रही है कि कौन मुझे ज्यादा देर तक अपने साथ रखेगी। मुझ से कोई खास लेना-देना नहीं है उन्हें। उन्हें मेरे पास बैंक में रखे नोटों से सरोकार है या मेरी पेंशन की चिन्ता है। मैं जहां रहती हूं पेंशन उन्हें ही देती हूं। तभी तो दोनों बहुओं में एक अलिखित समझौता हो चुका है कि छह महीने मैं एक के पास रहूंगी और छह महीने के बाद दूसरी बहू के पास। एक दिन ज्यादा नहीं हो सकता इस हिसाब- किताब में। पिछले कई सालों में मेरा यही सफर है रोलिंग स्टोन की तरह-इधर से उधर। मेरी मर्जी कोई नहीं पूछता कि मैं क्या चाहती हूं। मैं भी मुंह बन्द करके यह सारा तमाशा देखती रहती हूं।

 

छोटा-सा पौधा होता तो आसानी से कोई भी मुझे उखाड़कर इधर से उधर रोप लेता। मगर मैं तो पूरा वृक्ष बन चुकी हूं। शहर जाती हूं तो मेरी कई जड़ें गांव में ही रह जाती हैं। वहां के कंकरीट के जंगल में पुराने तो क्या, नए पौधे नहीं पनप पाते। वहां के पत्थर घरों में इनसान नहीं, रोबोट सरीखे मशीनी मानव रहते हैं जो दिन-रात चूहा दौड़ में ही रहते हैं। तभी तो मैं वहां जाकर सूखने लगती हूं, कुम्हला जाती हूं और अपनी मौत आने से पहले ही मर-मर कर दिन काटती हूं। और उधर गांव में कृष्णा, कमला, जानकी और मेरी अन्य सहेलियां हैं। तभी तो मेरी आवाज छह महीने कुन्द हो जाती है। गांव आकर मैं खुलकर बोलती हूं, प्यार भरी नजरों से दुनिया को देखती हूं, अपनों की आवाजें सुनती हूं। जो मैं कहती हूं, वे सुनते हैं। और मैं जीवंत हां उठती हूं।

...

रेड कैटेगरी यूनिट के खरीदार ने 50 लाख रुपये जुर्माना हटाने की अपील की

नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रेड कैटेगरी यूनिट की संपत्ति खरीदने वाले एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि उसे 50 लाख रुपये की पर्यावरणीय कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन जब तक दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति मामले को सत्यापित करने की याचिका पर विचार नहीं करती, तब तक जुर्माना लागू नहीं किया जाएगा।

 

एनजीटी अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता तारा देवी ने कहा कि उनके खिलाफ आदेश का पालन किया जा रहा है और इससे वह दुखी हैं। याचिका के अनुसार, उसने संपत्ति के मालिक से 2009 में संपत्ति खरीदी थी, जहां वीनस डाइंग वर्क्‍स एक किरायेदार के रूप में काम कर रहा था। अपीलकर्ता द्वारा संपत्ति की खरीद के बाद इकाई ने काम करना बंद कर दिया। फिर भी, संपत्ति को अक्टूबर 2018 में सील कर दिया गया था।

 

24 फरवरी को पारित एनजीटी के आदेश में कहा गया है कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के 5 जुलाई, 2020 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई है, जिसमें दिल्ली में वीनस डाइंग वर्क्‍स, हैदरपुर के खिलाफ 50 लाख रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया गया है। आदेश में उल्लेख किया गया है कि इकाई गैर-अनुरूप क्षेत्र में रेड श्रेणी की गतिविधि में लगी हुई थी। कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, लेकिन कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।

 

एनजीटी के आदेश में कहा गया है, हमने इस मामले पर विचार किया है। जहां तक सीलिंग का संबंध है, एसडीएम के आदेश के खिलाफ ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील सुनवाई योग्य नहीं है। हम उस पहलू पर विचार नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस तरह के मामले पर एक उपयुक्त मंच के समक्ष विचार किया जा रहा है। यहां तक कि मुआवजे के मुद्दे पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई आदेश नहीं है। हालांकि, स्पष्टीकरण के माध्यम से अपीलकर्ता के खिलाफ आक्षेपित आदेश तब तक लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि डीपीसीसी अपीलकर्ता के इस रुख को नहीं देखता कि उसे कथित कानून का उल्लंघन करने वाला - वीनस डाइंग वर्क्‍स से कोई सरोकार नहीं है, जिसके खिलाफ आक्षेपित आदेश पारित किया गया है। तदनुसार, मामले का निस्तारण कर दिया गया है।

...

सलाद पार्लर में बनाये कैरियर, शुरू करे अपना होम बिजनेस

नई दिल्ली:  लोगो में सलाद के रूप में सब्जियों को नया रंग और आकार देकर मसालों के साथ स्वादिष्ट बना कर खाने का ट्रेड बहुत देखा जाता है। आप इस क्षेत्र में अपना कैरियर बना सकते है, और अपना होम बिजनेस शुरू कर सकते है। सलाद पार्लर सलाद डेकोरेशन में कैरियर बनाने के लिए कोई विशेष शैक्षिणिके योग्यता की जरूरत नहीं है। आप हाउस वाइफ हैं और चीजों को बेहतर तरीके से सर्व करने की कला में माहिर हैं तो सलाद डेकोरेशन या सलाद काविंग आपके लिए आय का नया साधन बन सकता है। 

 

यहां क्रिएटिविटी दिखाने के भरपूर मौके हैं। सबसे पहले जरूरत के मुताकि कुछ हेल्पर रखें, जो आपके बताए गए काम करेंगे। स्कूल कॉलेजों की कैंटीनों, कैटरर्सव आसपास के ऑफिसों की कैंटीनोंसे संपर्क करें, उन्हें सलाद के सैंपल दें व अलग अलग सलादों के दाम बताएं।यदि आपका सलाद पौष्टिक, स्वच्छ व समय पर उपलब्ध होगा तो आपको ऑर्डर जरूर मिलेगा। यदि आपको बडी मात्रा में ऑर्डर मिलने लगे तो हेल्परों की संख्या बढा दें। पैकिंग की कीमत सलाद डेकोरेशन में कैरियर बेस्ट है। 

 

इसके लिए पैकिंग की कीमत, आनेजाने में लगने वाला किराया, सब्जियां खरीदने काखर्च आदि मिलाकर उसमें से कम से कम मात्रा में अपना मुनाफा मिलाकर सलाद के डब्बे के दाम निश्चित कर लें। 

 

ध्यान रखने योग्य बातें:- सलाद में ऐसी सामग्रियों का यूज करें, जो रंगबिरंगी हों। अमूूमन सलाद में हरे, लाल और पीले रंग की सामग्रियों का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है। सलाद की पौष्टिकता और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। सलाद डेकोरेशन के लिएकुछ अनोखे और नए आइडिया पर विचार करें।

...

बिकनी पहन योगा करती दिखीं एक्ट्रेस मल्लिका शेरावत

नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा की मशहुर अभिनेत्री मल्लिका शेरावत अपने ग्लैमरस लुक के जानी जाती है। सोशल मीडिया में उनकी कई तस्वीरें वायरल होती रहती है। उनकी फैंस भी उनकी तस्वीरों को खूब पसंद करते है। हाल ही में उनकी एक वीडियो जमकर वायरल हो रही है। इस वीडियो में वह बिकिनी में योगा करती दिखाई दे रही हैं। अपने इस वीडियो को मल्लिका शेरावत ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है।

 

वीडियो में वह प्रिटेंड बिकिनी पहने दिखाई दे रही हैं। वह वीडियो में योगा कर रही हैं। अपने इस वीडियो को शेयर करते हुए मल्लिका शेरावत खास कैप्शन भी लिखा है। उन्होंने कैप्शन में लिखा, ‘योग पोजिसन के साथ मंडे ब्लूज को हराएं, आगे झुकना मेरा पसंदीदा पोज है क्योंकि यह सब मानसिक विश्राम, शांति और आनंद को बढ़ावा देते हैं।’

 

सोशल मीडिया पर मल्लिका शेरावत का यह योग वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। अभिनेत्री के फैंस उनके वीडियो को खूब पसंद कर रहे हैं। साथ ही कमेंट कर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कई सोशल मीडिया यूजर्स ने मल्लिका शेरावत के फीगर की जमकर तारीफ की है। बात करें अभिनेत्री के वर्कफ्रंट की तो मल्लिका शेरावत पिछले साल रिलीज हुई वेब सीरीज ‘नकाब’ में नजर आईं थीं। उनकी यह वेब सीरीज एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुई थी।

...

युवतियों को पसंद आ रहे स्वच्छता के अत्याधुनिक तरीके, पीरियड में अपना रही हाइजीनिक मेथड

चित्रकूट। जागरूकता आने से माहवारी के दौरान पुराने गंदे कपड़े लगाने का चलन समाप्ति की ओर है। युवतियों को अब इस कठिन वक्त में हाइजीनिक मेथड पसंद आ रहे हैं। एन एफ एच एस-5 का आंकड़ा इसकी गवाही देता है। एनएफएचएस-5 के आंकडें के मुताबिक जिले में वर्ष 2015-16 में, जहां 31 फीसद युवतियां हाइजीनिक मेथड अपना रही थी। वहीं वर्ष 2019 -21 में यह आंकड़ा बढ़कर 55 फीसद पहुंच गया है।

 

आशा संगिनी सरिता शुक्ला ने बुधवार को बताया कि वह समय-समय पर महिलाओं को माहवारी के दौरान साफ सफाई रखने के लिए समझाती रहती हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं को प्रेरित करते हैं कि वह माहवारी के दौरान हाइजीनिक मेथड यानी पैड का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से वह कई प्रकार के संक्रमण से बची रहेंगी। उनके समझाने का युवतियों पर खासा प्रभाव पड़ रहा है।

 

स्त्री रोग विशेषज्ञ व सर्जन डॉ रफीक अंसारी बताते हैं कि योनि में पाया जाने वाला तरल पदार्थ अम्लीय (एसीडिक) होता है जो लगभग सभी प्रकार के संक्रमण को होने से रोकता है। माहवारी के दौरान यह तरल पदार्थ क्षारीय (बेसिक) हो जाता है, इससे संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। स्वच्छता के अभाव में संक्रमण का यह खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसीलिए इस दौरान साफ सफाई की अतिरिक्त जरूरत होती है।

 

उन्होंने बताया कि किशोरावस्था में मासिक धर्म की शुरूआत में एक से अधिक बार पैड बदलना चाहिए। ताकि संक्रमण का खतरा बिल्कुल न रहे। पीरियड के दौरान खुजली सहित अन्य किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर उसे छिपाने की गलती न करें। बल्कि डाक्टर से परामर्श लें, अन्यथा की स्थिति में बैक्टीरिया व फंगस से सम्बंधित संक्रमण हो सकता है। साफ सफाई नजर अंदाज करने पर संक्रमण बच्चेदानी में भी पहुंच सकता है। यहां तक स्वच्छता न अपनाने से प्रजनन रोग भी हो सकता है।

 

जिला मुख्यालय में रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता गुड़िया का कहना है कि माहवारी के दौरान साफ सफाई जरूरी है। इसके लिए हाइजीनिक मेथड अपनाएं। उनका कहना है वह खुद इस कठिन समय में पैड इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने अपील किया की महिलाएं माहवारी के दौरान पैड इस्तेमाल करें ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण की संभावना न रहे। 

...

महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में कोरोना बेकाबू.. देश में बीते 24 घंटे में 2,35,532 नए केस, 871 ने तोड़ा दम

नई दिल्ली। देश में एक दिन में 2,35,532 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 4,08,58,241 हो गयी है।

 

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से शनिवार सुबह आठ बजे जारी किए गए अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, देश में पिछले 24 घंटे के दौरान 871 और मरीजों की मौत होने से मृतकों की संख्या बढ़कर 4,93,198 हो गयी है।

 

मंत्रालय ने बताया कि उपचाराधीन मरीजों की संख्या 1,01,278 तक कम हो गयी है और अब इस महामारी का इलाज करा रहे मरीजों की संख्या 20,04,333 हो गयी है जो संक्रमण के कुल मामलों का 4.91 प्रतिशत है जबकि देश में मरीजों के ठीक होने की दर 93.89 प्रतिशत है।

 

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, संक्रमण की दैनिक दर 13.39 प्रतिशत दर्ज की गयी जबकि साप्ताहिक संक्रमण दर 16.89 प्रतिशत दर्ज की गयी। महामारी से ठीक होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 3,83,60,710 हो गयी हैं जबकि मृत्यु दर 1.21 प्रतिशत दर्ज की गयी।

 

अद्यतन आंकड़ों के अनुसार संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 4,08,58,241 हो गयी है। इस बीच राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक कोविड-19 रोधी टीकों की 165.04 करोड़ से अधिक खुराकें दी जा चुकी हैं।

...

डीसीडब्ल्यू का एसबीआई को नोटिस, गर्भवती महिलाओं से संबंधित रोजगार दिशा-निर्देश वापस लेने की मांग

नई दिल्ली। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को शनिवार को नोटिस जारी कर उन नए दिशा-निर्देशों को वापस लेने की मांग की, जिनके तहत नई भर्ती की स्थिति में तीन महीने से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को ‘‘अस्थायी रूप से अयोग्य’’ माना जाएगा और वे प्रसव के बाद चार महीने के भीतर बैंक में काम शुरू कर सकती हैं।

 

देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की ओर से इस मामले पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की गई। डीसीडब्ल्यू प्रमुख स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया, ''ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय स्टेट बैंक ने तीन महीने से अधिक अवधि की गर्भवती महिलाओं की भर्ती को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं और उन्हें 'अस्थायी रूप से अयोग्य' करार दिया है। यह भेदभावपूर्ण और अवैध है। हमने उन्हें नोटिस जारी कर इस महिला विरोधी नियम को वापस लेने की मांग की है।''

 

आयोग ने नोटिस में नए दिशा-निर्देशों की एक प्रति के साथ-साथ इससे पहले लागू समान नियमों की एक प्रति मांगी। इस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी गई है।

 

एसबीआई ने नई भर्तियों या पदोन्नत लोगों के लिए अपने नवीनतम मेडिकल फिटनेस दिशानिर्देशों में कहा कि तीन महीने के समय से कम गर्भवती महिला उम्मीदवारों को 'योग्य' माना जाएगा।

 

बैंक द्वारा 31 दिसंबर, 2021 को जारी फिटनेस संबंधित मानकों के अनुसार गर्भावस्था के तीन महीने से अधिक होने की स्थिति में महिला उम्मीदवार को अस्थायी रूप से अयोग्य माना जाएगा और उन्हें बच्चे के जन्म के बाद चार महीने के भीतर काम पर आने की अनुमति दी जा सकती है।

 

इससे पहले, गर्भधारण के छह महीने तक महिला उम्मीदवारों को विभिन्न शर्तों के तहत बैंक में भर्ती किया जाता था।

...