कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी को नकारा

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी को नकार दिया है। रिजिजू ने कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है। जबकि यहां कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता। हम जनता के सेवक हैं, हम संविधान के हिसाब से काम करते हैं। रिजिजू यूपी के प्रयागराज में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जजों की नियुक्ति में हो रही देरी पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा कि हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो। इस पर केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की नियुक्ति के लिए भेजी सिफारिश अगले पांच दिन में मंजूर हो जाएगी। हालांकि केंद्र ने 24 घंटे की भीतर ही शनिवार को पांचों सिफारिशों को मंजूरी दे दी।

किरेन रिजिजू का पूरा बयान
रिजिजू ने कहा, 'मैंने देखा कि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि 'सुप्रीम कोर्ट ने (कॉलेजियम पर) चेतावनी दी है। इस देश के मालिक यहां के लोग हैं, हम सिर्फ सेवक हैं। हमारी गाइड संविधान है। संविधान के अनुसार देश चलेगा। कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। हम अपने आप को इस महान देश के सेवक के रूप में देखते हैं, वह अपने आप में बड़ी बात है। लोगों ने हमें मौका दिया है काम करने का। आप सब प्रिवेलेज लोग हैं, जज-वकील बने हैं...पढ़ लिखकर ही बने हैं। हम खुशकिस्मत हैं कि देश के लिए काम करने के लिए जिम्मेदारी मिली है।'

कॉलेजियम ने जजों के नाम की सिफारिश की थी
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 13 दिसंबर को सरकार से 5 नामों की सिफारिश की थी। इनमें जस्टिस पंकज मिथल चीफ जस्टिस राजस्थान HC, जस्टिस संजय करोल चीफ जस्टिस पटना HC, जस्टिस पी वी संजय कुमार चीफ जस्टिस मणिपुर HC, पटना हाईकोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और इलाहाबाद HC के जस्टिस मनोज मिश्रा का नाम शामिल था।

SC में जजों की संख्या बढ़कर हुई 32
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जस्टिस एसके कौल और एएस ओका की बेंच को बताया था कि 5 जजों की नियुक्ति का वारंट जल्द ही जारी होगा। सुप्रीम कोर्ट में जजों की सैंक्शन स्ट्रेंथ CJI समेत 34 है। पांच जजों की नियुक्ति को केंद्र से मंजूरी मिलने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़कर 32 हो गई है। पहले कोर्ट 27 जजों के साथ काम हो रहा था।

जिस कॉलेजियम पर यह पूरा विवाद हो रहा है, वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अपॉइंट किया जाता है।

देश में कॉलेजियम सिस्टम साल 1993 में लागू हुआ था। कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। अभी इसमें 6 जज हैं।

केंद्र ने अपना प्रतिनिधि शामिल करने के लिए CJI को चिट्ठी लिखी थी
16 जनवरी को कानून मंत्री किरण रिजिजू ने CJI को पत्र लिखकर कॉलेजियम में अपना प्रतिनिधि शामिल करने की बात कही थी। केंद्र के रुख का जवाब देने के लिए CJI की अगुआई में कॉलेजियम ने तय किया कि इस बार सारे मामले को सार्वजनिक किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के 24 घंटे के भीतर ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्विटर पर इसकी जानकारी शेयर की। उन्होंने लिखा कि भारत के संविधान के तहत राष्ट्रपति ने हाईकोर्ट के पांच जजों को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति किया है। मैं सभी को शुभकामनाएं देता हूं।

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5 जजों के नियुक्ति को केंद्र की मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के 24 घंटे के भीतर ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्विटर पर इसकी जानकारी शेयर की। उन्होंने लिखा कि भारत के संविधान के तहत राष्ट्रपति ने हाईकोर्ट के पांच जजों को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति किया है। मैं सभी को शुभकामनाएं देता हूं। पांचों जज 6 फरवरी को शपथ लेंगे।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जजों की नियुक्ति में देरी पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने सरकार से कहा कि ये बेहद गंभीर मामला है। हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो। इस पर केंद्र ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि भेजी सिफारिश अगले पांच दिन में मंजूर हो जाएगी।

कॉलेजियम ने जजों के नाम की सिफारिश की थी
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 13 दिसंबर को सरकार से 5 नामों की सिफारिश की थी। इनमें जस्टिस पंकज मिथल चीफ जस्टिस राजस्थान HC, जस्टिस संजय करोल चीफ जस्टिस पटना HC, जस्टिस पी वी संजय कुमार चीफ जस्टिस मणिपुर HC, पटना हाईकोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और इलाहाबाद HC के जस्टिस मनोज मिश्रा का नाम शामिल था। सुप्रीम कोर्ट में जजों की सैंक्शन स्ट्रेंथ CJI समेत 34 है। 5 जजों की नियुक्ति के बाद अब 32 जज हो गए हैं। अभी भी दो पोस्ट खाली हैं। 

जिस कॉलेजियम पर यह पूरा विवाद हो रहा है, वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अपॉइंट किया जाता है।

देश में कॉलेजियम सिस्टम साल 1993 में लागू हुआ था। कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं। CJI इसमें प्रमुख होते हैं। इसके अलावा 4 मोस्ट सीनियर जज होते हैं। अभी इसमें 6 जज हैं।

केंद्र ने अपना प्रतिनिधि शामिल करने के लिए CJI को चिट्ठी लिखी थी
16 जनवरी को कानून मंत्री किरण रिजिजू ने CJI को पत्र लिखकर कॉलेजियम में अपना प्रतिनिधि शामिल करने की बात कही थी। केंद्र के रुख का जवाब देने के लिए CJI की अगुआई में कॉलेजियम ने तय किया कि इस बार सारे मामले को सार्वजनिक किया जाए।

कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी को नकार दिया है। रिजिजू ने कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है। जबकि यहां कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता। हम जनता के सेवक हैं, हम संविधान के हिसाब से काम करते हैं। रिजिजू यूपी के प्रयागराज में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। 

जजों की नियुक्ति से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में सुधार को लेकर हो रही चर्चाओं के बीच कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक बार फिर बयान दिया है। रिजिजू ने सोमवार को दिल्ली बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में कहा- देश में मजबूत लोकतंत्र के लिए आजाद न्यायपालिका का होना जरूरी है। 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी है कि कॉलेजियम में उसके प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने CJI को चिट्ठी लिखकर कहा है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकारी प्रतिनिधि शामिल करने से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और जनता के प्रति जवाबदेही भी तय होगी।

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गणतंत्र दिवस पर मोदी नई संसद बनाने वाले मजदूरों से मिले,

नई दिल्ली : 74वें गणतंत्र दिवस की परेड में 23 से ज्यादा झांकियां दिखाई गईं। वहीं,सेनाओं के स्वदेशी हथियारों का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान नारी शक्ति की तस्वीर दिखी। डेयर डेविल्स ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया और फ्लाई पास्ट में राफेल गरजे। परेड खत्म होने के बाद मोदी सबसे पहले नए संसद भवन बनाने वाले मजदूरों से मिले।

मोदी राजस्थान की बंधेज पगड़ी में नजर आए। यह पीले और केसरिया रंग की थी। मोदी ने पिछली बार गणतंत्र दिवस पर कुर्ता-पायजामा पहना था। तब उनके गले में मणिपुर का पारंपरिक लेंग्यान गमछा था। इसके अलावा, उत्तराखंड की टोपी पहनी थी, जिस पर ब्रह्मकमल बना था। पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी ऐसी ही टोपी पहनते थे।

2 घंटे 28 मिनट चली परेड को फोटोज में देखिए...

सुबह 10:20 बजे:

PM मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर देश के लिए शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने वहां रखी किताब में मैसेज भी लिखा।
PM मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर देश के लिए शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने वहां रखी किताब में मैसेज भी लिखा।

सुबह 10:25 बजे:

गणतंत्र दिवस समारोह में PM मोदी (बाएं), चीफ गेस्ट मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी (बीच में) और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (दाएं)।
गणतंत्र दिवस समारोह में PM मोदी (बाएं), चीफ गेस्ट मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी (बीच में) और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (दाएं)।

सुबह 10:30 बजे:

परमवीर चक्र और अशोक चक्र विजेताओं ने परेड की शुरुआत की, इसके बाद सेना और सशस्त्र बलों की टुकड़ियों ने मार्च किया।
परमवीर चक्र और अशोक चक्र विजेताओं ने परेड की शुरुआत की, इसके बाद सेना और सशस्त्र बलों की टुकड़ियों ने मार्च किया।

सुबह 11 बजे:

वायु रक्षा प्रणाली की 512 लाइट एडी मिसाइल रेजिमेंट की लेफ्टिनेंट चेतना शर्मा ने परेड में अपने ग्रुप को लीड किया।
वायु रक्षा प्रणाली की 512 लाइट एडी मिसाइल रेजिमेंट की लेफ्टिनेंट चेतना शर्मा ने परेड में अपने ग्रुप को लीड किया।

सुबह 11:20 बजे:

गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल BSF की ऊंट रेजिमेंट। यह ट्रुप रेगिस्तानी इलाकों में पेट्रोलिंग और निगरानी करता है।
गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल BSF की ऊंट रेजिमेंट। यह ट्रुप रेगिस्तानी इलाकों में पेट्रोलिंग और निगरानी करता है।

सुबह 11:30 बजे:

उत्तराखंड ने कर्तव्य पथ पर दिखाई अपनी झांकी में कॉर्बेट नेशनल पार्क और अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम को दिखाया।
उत्तराखंड ने कर्तव्य पथ पर दिखाई अपनी झांकी में कॉर्बेट नेशनल पार्क और अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम को दिखाया।

सुबह 11:40 बजे:

परेड में उत्तर प्रदेश ने अपनी झांकी में अयोध्या में तीन दिन तक मनाया जाने वाला दीपोत्सव दिखाया।
परेड में उत्तर प्रदेश ने अपनी झांकी में अयोध्या में तीन दिन तक मनाया जाने वाला दीपोत्सव दिखाया।

दोपहर 12 बजे:

परेड में कर्तव्य पथ पर सेना के 33 डेयर डेविल्स ने 9 मोटरसाइकिल पर 'मानव पिरामिड' बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।
परेड में कर्तव्य पथ पर सेना के 33 डेयर डेविल्स ने 9 मोटरसाइकिल पर 'मानव पिरामिड' बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

दोपहर 12;10 बजे:

वायुसेना के लड़ाकू हेलिकॉप्टर्स ने कर्तव्य पथ पर फ्लाय पास्ट में हिस्सा लिया। इनमें अमेरिका से लिए गए अपाचे चॉपर भी शामिल थे।
वायुसेना के लड़ाकू हेलिकॉप्टर्स ने कर्तव्य पथ पर फ्लाय पास्ट में हिस्सा लिया। इनमें अमेरिका से लिए गए अपाचे चॉपर भी शामिल थे।

दोपहर 12:15 बजे:

कर्तव्य पथ पर दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर राष्ट्रगान के साथ गणतंत्र दिवस 2023 परेड का समापन हुआ।
कर्तव्य पथ पर दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर राष्ट्रगान के साथ गणतंत्र दिवस 2023 परेड का समापन हुआ।

दोपहर 12:20 बजे:

परेड खत्म होने के बाद PM मोदी ने मौजूद लोगों का अभिवादन किया, वे गाड़ी से उतरकर बैरिकेड्स तक गए।
परेड खत्म होने के बाद PM मोदी ने मौजूद लोगों का अभिवादन किया, वे गाड़ी से उतरकर बैरिकेड्स तक गए।
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‘हिंदू-मुस्लिम’ करना घातक होगा

हिंदू-मुस्लिम रिश्तों को लेकर सदा से ही भारत में आपसी भाईचारे और साझा विरासत का वातावरण रहा है। हां, लगभग 5-10 प्रतिशत तो हमेशा ही फसाद पर उतारू रहते हैं दोनों ओर, मगर आम तौर से गंगा-जमुनी तहज़ीब का ही अनुसरण करते चले आ रहे हैं, भारत के सभी निवासी, चाहे वे किसी भी धर्म के अनुयायी हों। कर्नाटक में जिस प्रकार से मंदिरों के निकट मुस्लिम दुकानदारों से सामान लेने के विरुद्ध वहां बैनर या पोस्टर लगाए गए हैं, उससे आपसी समभाव व सद्भाव पर कुप्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार की विघटनकारी बातों से बचने की आवश्यकता है। दक्षिण भारत के शिमोगा से एक विचलित करने वाली खबर आई है कि वहां के मंदिरों के कंप्लेक्स के बाहर कोई भी मुस्लिम अपनी किसी भी प्रकार की दुकान नहीं चलाएगा। इसका कारण बताया गया कि ये लोग बीफ का सेवन करते हैं। यह ठीक है कि बीफ के खाने से परहेज़ करना चाहिए मुस्लिमों को, क्योंकि गाय को हिंदू धर्म में माता के स्थान पर मान-सम्मान दिया गया है। जिस प्रकार से उडुपि, दक्षिण कन्नड़, टुमकुर, हासन, चिकमंग्लूर, दुर्गापुरामेशवरी आदि के मंदिरों के कैंपस में मुस्लिम पूजा सामग्री से लेकर अन्य नाना प्रकार का सामान बेचते थे, उससे न केवल इन मुस्लिम दुकानदारों के घर चलते थे बल्कि इस से अंतरधर्म सद्भावना व समभावना का सुखद प्रचार भी होता था। इन स्थानों पर बड़े-बड़े पोस्टर व बैनर लगा दिए गए हैं कि मुस्लिम दुकानदार से सौदा नहीं लिया जाए। इस प्रकार के बैनर न केवल अनैतिक व गैर कानूनी हैं बल्कि मानवता विरोधी भी हैं।

 

न जाने कब भारत में यह दूषित हिंदू-मुस्लिम मानसिकता की समाप्ति होगी। यदि भारत को विश्व गुरु और 5 ट्रिलियन अर्थ व्यवस्था बनना है तो हिंदू-मुस्लिम के मकडज़ाल से बाहर निकलना होगा और केवल और केवल भारत कार्ड खेलना होगा, न कि हिंदू-मुस्लिम ‘खेला होबे’! हां, एक सोचने वाली बात यह है कि आखिर यह कांड शिमोगा से ही क्यों शुरू हुआ! इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इसी स्थान से हिजाब का अज़ाब शुरू हुआ था और 96 में से 6 छात्राओं ने बावजूद स्कूल से यह उसूल जारी होने पर कि हिजाब अन्यथा कोई और कोई धार्मिक पहनावा पहनने की अनुमति नहीं, फिर भी कक्षा की इन 6 छात्राओं ने इस बात की जि़द पकड़ ली कि वे हिजाब पहनकर ही कक्षा में आएंगी। वास्तव में उनको चंद कट्टरवादियों ने धमका दिया कि हिजाब नहीं तो किताब नहीं! एक समाज में जब एक तबक़ा जि़द पकड़ उद्दंड हो जाता है तो दूसरा तबका भी उसी रास्ते पर चल पड़ता है। 

 

इसी हिंदू-मुस्लिम पचड़े को लेकर लेखक की एक बार सरसंघचालक मोहन भागवत जी से बात हो रही थी तो उनका मत था कि अधिकतर मुस्लिम संस्कारी, राष्ट्रवादी व शांतिमय हैं, मगर कुछ स्वयंभू मुस्लिम नेता उन पर ढक्कन कस देते हैं जिसके कारण शाहीन बाग़ और हिजाब जैसी समस्याएं सामने आती रहती हैं और एक सुदृढ़ समाज को बांटने के प्रयास होते हैं। भागवत के विचार में मुस्लिम और हिंदू अलग हैं ही नहीं, भले ही उनका धर्म भिन्न हो, मगर डीएनए तो एक ही है। इसमें उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुस्लिमों के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि भारत को प्रगति के इस मुकाम तक लाने में मुसलमानों का बड़ा योगदान है। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम उनकी संतान की माफिक हैं और उनके साथ वे बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं। इस तरह दुकानदारी व दुकानदारों के मामले में हिंदू-मुस्लिम करना भारत के लिए घातक होगा। इससे बचा जाना चाहिए।

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लगातार दूसरी बार जनादेश हासिल करने वाले पहले मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में चार दशक बाद योगी आदित्यनाथ ने नया अध्याय जोड़ा है। इस अवधि में वह लगातार दूसरी बार जनादेश हासिल करने वाले पहले मुख्यमंत्री है। चुनावी समर में लोकप्रियता या समीकरण के बल पर एक बार सफलता मिल सकती है। लेकिन दूसरी बार की सफलता नेतृत्व की नेकनीयत व विश्वसनीयता पर आधारित होती है। तब नेतृत्व के यह दो गुण कारक बन जाते हैं। इस कारण चालीस वर्षों के दौरान किसी मुख्यमंत्री को दोबारा जनादेश नहीं मिला।

 

योगी आदित्यनाथ अपनी नेकनीयत व विश्वसनीयता को कायम रखने में सफल रहे। केंद्र में नरेंद्र मोदी को भी इस आधार पर सफलता मिलती रही है। गुजरात के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी यह विशेषता कायम रखी। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी व योगी आदित्यनाथ एक ही धरातल पर है। दोनों परिवारवाद की राजनीति से दूर हैं। समाज सेवा में पूरी निष्ठा व ईमानदारी से समर्पित रहते हैं।

 

विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोरोना की तीसरी लहर को लेकर संशय था। उस समय योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार की जगह कोरोना आपदा प्रबंधन को वरीयता दी। जनपदों की यात्रा कर रहे थे। सभी जगह कोरोना चिकित्सा व्यवस्था का जायजा ले रहे थे। आपदा प्रबंधन की पूरी व्यवस्था के बाद ही उन्होंने चुनाव प्रचार की तरफ ध्यान दिया। इसी प्रकार चुनाव परिणाम आने के बाद वह जन कल्याण कार्यों में सक्रिय हो गए। उन्होंने बारह से चौदह वर्ष आयु के बच्चों के वैक्सीनेशन अभियान का शुभारंभ किया। इस अभियान के सुचारू संचालन हेतु अधिकारियों को निर्देशित किया।

 

कोरोना आपदा प्रबंधन में योगी मॉडल की प्रशंसा दुनिया में रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी सराहना की थी। इस पूरी अवधि में योगी आदित्यनाथ ने कई बार प्रदेश की यात्राएं की थी। वह अनवरत प्रबंधन का जायजा लेते रहे। वैक्सिनेशन के संबन्ध में भी केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का प्रभावी संचालन सुनिश्चित किया गया। योगी आदित्यनाथ वैक्सिनेशन केंद्रों में पहुंच कर लोगों का उत्साह वर्धन करते रहे। इसके चलते उत्तर प्रदेश ने वैक्सिनेशन का रिकार्ड कायम कर दिया। यह यात्रा अगले चरण के रूप में जारी है।

 

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सर्वाधिक टेस्ट व सर्वाधिक वैक्सीनेशन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। राज्य में अब तक करीब तीस करोड़ वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैं। प्रदेश में वैक्सीन की पहली डोज के शत प्रतिशत से अधिक के लक्ष्य को प्राप्त किया जा चुका है। अब तक एक सौ तीन प्रतिशत से ऊपर वैक्सीन की प्रथम डोज पूरे प्रदेश में उपलब्ध करवाई जा चुकी है। सेकेण्ड डोज भी प्रदेश में बयासी प्रतिशत से अधिक लोगों ने ले ली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में बारह से चौदह आयु वर्ग के बच्चों के कोविड टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल चिकित्सालय में किया।

 

बारह से चौदह साल के बच्चों को प्रदेश के तीन सौ केन्द्रों में यह वैक्सीन उपलब्ध करवाई जा रही है। सभी के लिए प्रर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देश में चले भारत के कोरोना प्रबन्धन की दुनिया में सराहना हुई है। यहां तक कि अन्य देशों में भी भारत के कोरोना प्रबंधन मॉडल को अपनाया गया है। कोरोना के खिलाफ लागू किए गये फोर टी फॉर्मूले के तहत ट्रेस, टेस्ट, ट्रीट और टीका, इन सभी में उत्तर प्रदेश अग्रणी है।

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संकीर्णता व दोहरेपन का शिकार प्रवासी मुद्दा

भारतीय संविधान देश के किसी भी राज्य अथवा किसी भी केंद्र शासित प्रदेश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी राज्य अथवा किसी भी केंद्र शासित प्रदेश में जाकर रोज़गार,सेवा अथवा व्यवसाय करने का पूरा अधिकार देता है। परन्तु इसके बावजूद समय समय पर कुछ विशिष्टजन विशेषकर ज़िम्मेदार नेतागण ऐसी भाषा बोलने लगते हैं जिससे न केवल प्रवासी लोगों के मन में अपनी सुरक्षा के प्रति भय उत्पन्न होता है बल्कि इससे हमारी राष्ट्रीय एकता पर भी गहरा आघात लगता है। प्रायः उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़,बंगाल,राजस्थान व उत्तरांचल के लोग ही रोज़गार की तलाश में अथवा नौकरी या व्यवसाय की ख़ातिर देश के विभिन्न हिस्सों में आते जाते रहते हैं। इनमें भी विशेषकर उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों के छात्र,कामगार,श्रमिक ख़ास तौर पर मुंबई,दिल्ली,पंजाब व हरियाण जैसे राज्यों में बहुतायत में जाते हैं।इसका मुख्य कारण जहाँ इन राज्यों का जनसँख्या घनत्व है वहीँ अशिक्षा व बेरोज़गारी भी इन राज्यों की बड़ी समस्या है। इत्तेफ़ाक़ से यही देश के ऐसे दो बड़े राज्य भी हैं जो हमेशा ही देश को सबसे अधिक संख्या में नौकरशाह मुहैय्या करवाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी प्रायः इन्हीं राज्यों का वर्चस्व रहा है। अनेक महापुरुष व राजनेता इन्हीं दो राज्यों के रहे हैं। कितने सौभाग्यशाली है उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्य की धरती कि यह भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह,संत रविदास,महात्मा बुद्ध,कबीर,तुलसी व कई अन्य महापुरुषों की यह जन्म व कर्मस्थली भी रही है।

 

परन्तु कितने दुःख का विषय है कि इन्हीं राज्यों के लोग समय समय पर कुछ संकीर्ण क्षेत्रीय मानसिकता रखने वाले नेताओं की संकीर्ण सोच व तंग नज़री का शिकार होने लगते हैं। और कभी कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि यदि अपराधी प्रवृति के किसी प्रवासी ने कहीं कोई अपराध अथवा दुष्कर्म कर दिया तो स्थानीय लोग उसका ग़ुस्सा पूरे प्रवासी समाज पर उतारने पर आमादा हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सितंबर 2018 में गुजरात राज्य के साबरकांठा में एक मासूम बच्ची के साथ एक मज़दूर ने बलात्कार किया था। बलात्कार का आरोपी बिहार का रहने वाला था। इस घटना के बाद गुजरात के कई शहरों में उत्तर भारत के लोगों के विरुद्ध न केवल  विरोध-प्रदर्शन हुये बल्कि कई जगह उनके विरुद्ध स्थानीय लोगों की भीड़ हिंसक भी हो गयी।  हिंसा पर उतारू भीड़ का कहना था कि यूपी और बिहार के लोग शहर से चले जाएं वरना उन्हें मार दिया जाएगा। वे कहते सुने जा रहे थे कि 'बाहरी लोग राज्य छोड़ दें' साथ ही यह भी कि 'गुजराती लोगों को बचाया जाना चाहिए'। इस हिंसा के बाद डरे सहमे उत्तर भारतीयों ने अपने-अपने राज्य-घर-गांवों की ओर बड़ी संख्या में पलायन करना शुरू कर दिया था। उत्तर भारत के बेगुनाह लोगों पर हुए इस हमले के बाद बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों ने कई जगह प्रदर्शन किया था तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध पोस्टर लगाये थे जिसमें लिखा था - ‘गुजराती नरेंद्र मोदी बनारस छोड़ो’।

 

इन दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के उत्तर भारतीयों के बारे में दिये गये एक बयान को लेकर भाजपा विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोल दिया। चन्नी ने कहा था कि - प्रियंका पंजाबियों की बहू है। यूपी ,बिहार, दिल्ली के लोगों को यहां राज नहीं करने देना। यूपी के भइयों को पंजाब में फटकने नहीं देना है। बाद में भले ही चन्नी यह सफ़ाई देते रहे कि उनका आशय आम आदमी पार्टी के नेताओं से था,परन्तु तब तक राजनीति के महाचतुर खिलाड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चन्नी के यू पी बिहार वाले बयान को गुरु गोविन्द सिंह व संत रविदास के अपमान से जोड़ चुके थे। परन्तु जब गुजरात,कश्मीर और महाराष्ट्र से इन्हीं भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह, संत रविदास,महात्मा बुद्ध,कबीर व तुलसी के राज्यों के लोग मारे-पीटे-दुत्कारे व भगाये जा रहे थे और यही यू पी बिहार के कथित हितैषी उन राज्यों की सत्ता के साथ खड़े थे,उस समय यह भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह, संत रविदास का अपमान नहीं था? जब इन्हीं राज्यों के लोग कोरोना काल में अपने परिवार,बच्चों व वृद्ध बीमार जनों के साथ हज़ारों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर रहे थे तब  क्या वह संत रविदास व गुरु गोविन्द सिंह का अपमान नहीं था ?

 

अब इसी प्रवासी मुद्दे का दूसरा पहलू भी देखिये। जिस तरह उत्तर भारतीय स्वरोज़गार हेतु देश के संपन्न राज्यों में जाते हैं ठीक उसी तरह पंजाब,हरियाणा,गुजरात,यू पी व बिहार आदि अनेक राज्यों के लोग इसी रोज़गार व व्यवसाय के लिये अथवा शिक्षा ग्रहण करने के लिये अमेरिका-कनाडा जैसे अनेक विकसित देशों में जाते हैं। आज अनेक देशों में उनकी स्थिति ऐसी है कि कोई किसी देश का प्रधानमंत्री है कई विभिन्न देशों में मंत्री,कई जज तो कई सेना व पुलिस में उच्च पदों पर तैनात हैं। कोई सांसद तो कोई वैश्विक स्तर पर उद्योग जगत के शीर्ष पर है। लाखों लोग विदेशों में बड़े बड़े ज़मींदार-किसान बन चुके हैं। यक़ीनन हमारे देश के लोगों को उन प्रवासी भारतीयों पर गर्व है जो विदेशों में रहकर भारत का नाम ऊँचा कर रहे हैं। परन्तु जब बात 2004 में सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने की आई तो यही राष्ट्रवादी 'देशभक्त ' उस समय यह कहते फिर रहे थे कि यदि विदेशी महिला प्रधानमंत्री बनी तो सर मुंडा लेंगे,उल्टी चारपाई पर लेटेंगे,भुने चने खाने लगेंगे आदि। इस तंगनज़री का आख़िर क्या जवाब है ? कल्पना कीजिये कि यदि यही रंग भेद व देशी विदेशी की संकीर्ण सोच भारतीयों के विरुद्ध विदेशों में भी पनपने लगी फिर आख़िर हमारे करोड़ों प्रवासी भारतीयों की क्या स्थिति होगी ?

 

जिस तरह विदेशों में भारतीय प्रवासी अपनी सेवायें देकर अपने अपने देशों के विकास व वहां की व्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं ठीक उसी प्रकार देश के किसी भी राज्य का प्रवासी किसी भी राज्य में श्रम कर अपनी रोज़ी रोटी तो कमाता ही है साथ साथ अपना ख़ून पसीना बहाकर वहां के निर्माण,प्रगति व विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। आम तौर पर किसी भी राज्य के आम लोगों को किसी अन्य राज्यवासी से उसके राज्य अथवा धर्म जाति के आधार पर कोई आपत्ति नहीं होती। आम तौर पर ओछी व संकीर्ण राजनीति करने वाले नेता ही केवल अपना व्यापक जनाधार सिमटता देख इस तरह के संकीर्ण विवादों को जन्म देते हैं। परिणाम स्वरूप कभी कभी विशेषकर चुनावी बेला में प्रवासी मुद्दा संकीर्णता व दोहरेपन का शिकार हो जाता है।

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महात्मा गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी मामला: अब ठाणे पुलिस ने कालीचरण महाराज को किया गिरफ्तार

ठाणे (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र के ठाणे शहर की पुलिस ने महात्मा गांधी के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में हिंदू धर्मगुरु कालीचरण महाराज को छत्तीसगढ़ से गिरफ्तार कर लिया है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

 

नौपाड़ा थाने के एक अधिकारी ने बताया कि कालीचरण महाराज को बुधवार रात छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से गिरफ्तार किया गया, जहां वह ऐसे ही एक मामले में जेल में बंद था। उसे ट्रांजिट रिमांड पर ठाणे लाया जा रहा है और बृहस्पतिवार शाम तक स्थानीय अदालत में पेश किया जाएगा।

 

इससे पहले, पिछले साल 26 दिसंबर को छत्तीसगढ़ की राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करने के आरोप में रायपुर पुलिस ने कालीचरण महाराज को गिरफ्तार किया था। वहीं, 12 जनवरी को महाराष्ट्र के वर्धा की पुलिस ने उसे इसी तरह के एक मामले में गिरफ्तार किया था।

 

नौपाड़ा थाने के अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रपिता के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता एवं महाराष्ट्र के मंत्री जितेंद्र अव्हाड की शिकायत के आधार पर कालीचरण के खिलाफ दर्ज मामले में रायपुर से उसे गिरफ्तार किया गया।

 

इससे पहले, पुणे पुलिस ने भी 19 दिसंबर 2021 को वहां आयोजित ‘शिव प्रताप दिन’ कार्यक्रम में कथित रूप से भड़काऊ भाषण के मामले में कालीचरण महाराज को गिरफ्तार किया था। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा मुगल सेनापति अफजल खान को मारे जाने की घटना की याद में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

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जातीय नेतृत्व के कुचक्र में दलित

नई दिल्ली: राजनेताओं और दलों ने डाॅ. भीमराव अंबेडकर और कथित दलित उत्थान की राजनीति को अपने राजनीतिक हितों का साधन और साध्य बना लेने से ज्यादा कुछ नहीं समझा। अतएव जो दलित एक समय मायावती की बसपा के सेवक थे, वे भाजपा और अब समाजवादी पार्टी के दर पर नतमस्तक हो रहे हैं।

 

इनमें ज्यादातर अति पिछड़े और दलित हैं। कमोबेश इसे ही स्वार्थपरक अवसरवादी राजनीति कहते हैं। साफ है, इनके लिए अंबेडकरवादी दर्शन का आदर्श स्व हित से आगे नहीं बढ़ पाया। मायावती ने भी अंबेडकर के जातिविहीन सामाजिक दर्शन को पूंजी और सामंती वैभव के भोग का पर्याय मान लिया। भविष्य में निर्मित होने वाली इन स्थितियों को शायद अंबेडकर ने 1956 में ही भांप लिया था। गोया, उन्होंने आगरा में भावुक होते हुए कहा था कि 'उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद दलितों में पढ़े-लिखे बौद्धिक वर्ग से थी कि वे समाज को दिशा देंगे लेकिन इस तबके ने हताश ही किया है।'

 

दरअसल अंबेडकर का अंतिम लक्ष्य जाति विहीन समाज की स्थापना थी। जाति टूटती तो स्वाभाविक रूप से समरसता व्याप्त होने लग जाती। लेकिन देश की राजनीति का यह दुर्भाग्यपूर्ण पहलू रहा कि नेता सवर्ण रहे हों या अवर्ण जाति, वर्ग भेद को ही आजादी के समय से सत्तारूढ़ होने का मुख्य हथियार बनाते रहे हैं।

 

आज मायावती को सबसे ज्यादा किसी तात्विक मोह ने कमजोर किया है तो वह है, धन और सत्ता लोलुपता। जबकि अंबेडकर इन आकर्षणों से सर्वथा निर्लिप्त थे। भारत ऐसा भुक्तभोगी देश रहा है कि जब वह सोने की चिड़िया कहा जाता था, तब उसे मुगलों ने लूटा और फिर अंग्रेजों ने। अंग्रेजों ने तो भारत के सामंतों और जमींदारों को इतनी निर्ममता से लूटा कि इंग्लैंड के औद्योगिक विकास की नींव ही भारत की धन-संपदा के बूते रखी गई। यहां के किसान और शिल्पकारों से खेती और वस्तु निर्माण की तकनीकें हथियाईं।

 

भारत के भौगोलिक विस्तार की सीमाएं सिमट जाने का कारण भी पूंजी का निजीकरण और सामंतों की भोग-विलासी जीवन शैली रही है। दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत में भी प्रशासनिक व्यवस्था में यही दुर्गुण समाविष्ट होकर देश को दीमक की तरह चाट रहा है। दलित नेता व अधिकारी भी अधिकार संपन्न होने के बाद उन्हीं कमजोरियों की गिरफ्त में आते गए। इसीलिए अगड़े-पिछड़ों का खेल और दल-बदल की महिमा मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कुटिल मंशा से आगे नहीं बढ़ पाई। यही वजह रही कि उत्तर-प्रदेश जैसे जटिल, धार्मिक व सामाजिक संरचना वाले राज्य में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती आज चुनावी सरगर्मियों के बीच मौन व उदासीन हैं। यह उनकी राजनीतिक निष्क्रियता की घोषणा तो है ही, कालांतर में नेपथ्य में चले जाने का संकेत भी है। वरना, एक समय ऐसा भी था, जब इस दलित नेत्री से बसपा को अखिल भारतीय बना देने की उम्मीद की जा रही थी और दलितों में यह उम्मीद मायावती ने ही जगाई थी कि संगठन वह शक्ति है, जो प्रजा को राजा बना सकती है।

 

बहुजन समाज पार्टी का वजूद खड़ा करने से पहले कांशीराम ने लंबे समय तक डीएस-4 के माध्यम से दलित हितों के लिए संघर्ष किया था। इसी डीएस-4 का सांगठनिक ढांचा स्थापित करते समय बसपा की बुनियाद पड़ी और समूचे हिंदी क्षेत्र में बसपा के विस्तार की प्रक्रिया आरंभ हुई। कांशीराम के वैचारिक दर्शन में दलित और वंचितों को करिश्माई अंदाज में लुभाने का चुंबकीय तेज था। फलस्वरूप बसपा एक मजबूत दलित संगठन के रूप में स्थापित हुई और उत्तर-प्रदेश में चार बार सरकार बनाई। अन्य प्रदेशों में बसपा के विधायक दल-बदल के खेल में भागीदार बनकर सरकार बनाने में सहायक बने। किसी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होने पर समर्थन का टेका लगाने का काम भी किया। केंद्र में मायावती यही भूमिका अभिनीत करके राज्यसभा सांसद बनती रहीं। इन साधनों के साध्य के लिए मायावती ने सामाजिक अभियांत्रिकी (सोशल इंजीनियरिंग) जैसे बेमेल प्रयोगों का भी सहारा लिया। इन प्रयोगों का दायित्व किसी दलित को सौंपने की बजाय, सनातनी ब्राह्मण सतीष मिश्रा के सुपुर्द किए। मसलन सत्ता प्राप्ति के लिए जातीय समीकरण बिठाने में मायावती पीछे नहीं रहीं।

 

अंबेडकर ने जाति विहीन समाज की पुरजोर पैरवी की थी। लेकिन कर्मचारी राजनीति के माध्यम से जातिगत संगठन बसपा की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले कांशीराम ने अंबेडकर के दर्शन को दरकिनार कर कहा कि 'अपनी-अपनी जातियों को मजबूत करो।' यह नारा न केवल बसपा के लिए प्रेरणास्रोत बना बल्कि मंडलवादी मुलायम सिंह, लालू प्रसाद, शरद यादव और नीतीश कुमार ने भी इसे अपना-अपना, परचम फहराने के लिए सिद्ध मंत्र मान लिया। गोया, इन नेताओं ने अंबेडकर द्वारा स्थापित जाति तोड़ो आंदोलन को जाति सुरक्षा आंदोलन में बदल दिया। इसीलिए मंडल आयोग की पिछड़ी जातियों को आरक्षण की सिफारिशें मान लेने के बाद अब जातिगत जनगणना की बात पुरजोरी से उठाई जा रही है, जिससे संख्या बल के आधार पर जातिगत आरक्षण व्यवस्था सरकारी नौकरियों के साथ-साथ विधायिका में भी की जा सके।

 

सतीश मिश्रा के बसपा में आगमन के बाद सामाजिक अभियांत्रिकी का बेमेल तड़के का सिलसिला तो शुरू हुआ ही, जिन लोगों को मायावती मनुवादी कहकर ललकारा करती थीं, उन्हीं मनुवादियों के कर्मकांड बसपा के मंचों पर सत्ता प्राप्ति के लिए अनिवार्य अनुष्ठान बन गए। चुनावी साभाओं में हवन कुंड बनाए जाने लगे और वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ भगवान परशुराम के सोने-चांदी के फरसे प्रतीक के रूप में मायावती को भेंट किए जाने लगे। 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' का जो नारा ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को बतौर गाली दिया जाता था, 'वह हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं' के सनातनी संस्कार में बदल गया।

 

मायावती ब्राह्मणों की लाचारी दूर करने के बहाने कहने लगीं, 'ब्राह्मण हशिए पर चले गए हैं, इसलिए उनकी खोई गरिमा लौटाने का काम हम करेंगे।' इस गौरव के पुनर्वास के लिए मायावती ने 2017 में उत्तर-प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा से आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव का टोटका रचकर भारत सरकार को कानून बनाने के लिए भेजा। स्वार्थपूर्ति के लिए किए जाने वाले इन आडंबरों से पता चलता है कि हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि जिस संविधान के प्रति निष्ठा व अक्षरश: पालन की शपथ लेते हैं, उसे पढ़ने-समझने की आवश्यकता ही अनुभव नहीं करते।

 

यहीं नहीं वे जिस दल के सदस्य होते हैं और उस दल के जिस नेता के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, उनके गुणगान करने में थकते नहीं हैं, अमूमन उसी व्यक्ति की विचार-प्रक्रिया को पलीता लगाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में अंबेडकर की चिंता ठीक थी कि 'मेरी चिंता इस बात के अहसास से गहरी हो जाती है कि जातिवाद और पंथवाद के रूप में मौजूद भारत की बुराइयों व कुरीतियों के कारण विभिन्न राजनीतिक दल अस्तित्व में आ सकते हैं।' आज देश में करीब 1400 राजनीतिक दल हैं, जिनका प्रमुख आधार धर्म, जाति और क्षेत्रवाद है।

 

देशभर में दलितों की आबादी 16 प्रतिशत है। पंजाब में 30, पश्चिम बंगाल में 23, उत्तर-प्रदेश में 21 और महाराष्ट्र में 10.5 फीसदी दलित आबादी है। चूंकि अंबेडकर महाराष्ट्र से थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सबसे ज्यादा दलित चेतना महाराष्ट्र में है। दलित आंदोलनों की भूमि भी महाराष्ट्र रहा है। डाॅ. अंबेडकर ने यहीं रिपब्लिकन ऑफ इंडिया (आरपीआई) राजनीतिक दल का गठन किया था। लेकिन इस पार्टी के अब तक करीब 50 विभाजन हो चुके हैं। इसके कर्ताधर्ता अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर हैं। इसी दल से निकले रामदास अठावले ने अपनी पार्टी आरपीआई-ए गठित की हुई है। उनकी मंशा भाजपा-शिवसेना तो कभी कांग्रेस-एनसीपी को समर्थन देकर सत्ता में बने रहने की रही है। यही पदलोलुपता महाराष्ट्र में दलित वर्ग को सबसे ज्यादा असंगठित किए हुए है।

 

इस नाते मायावती के इस करिश्मे को मानना पड़ेगा कि वे उत्तर-प्रदेश में अपना 22 प्रतिशत वोट 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में स्थिर रखने में सफल रही हैं। हालांकि 2014 में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें लगभग इतना ही वोट मिला था। इसी वोट की माया रही कि अगड़े और पिछड़े थैलियां लेकर उनसे बसपा का टिकट लेने की कतार में लगे रहे। किंतु अब यह मिथक टूटने को आतुर दिखाई दे रहा है। इस एक जातीय कुचक्र के टूटने भर से अन्य राजनीतिक दलों का जातिगत कुचक्र भी टूटेगा, ऐसा फिलहाल नहीं लग रहा है। गोया, जातीय गठबंधन के कुचक्र बने रहेंगे।

 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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युगों-युगों तक सूर्य की तरह प्रकाशमान रहेगा स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन

(स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी पर विशेष)

1893 में 11 सितंबर को स्वागत संबोधन से लेकर 27 सितंबर के अंतिम भाषण तक में भारत से गए गेरुआ वस्त्रधारी एक 30 वर्षीय युवक ने दुनिया के नक्शे पर लंबे समय से अग्रिम पंक्ति में शामिल अमेरिका में जाकर जब भारतीय धर्म, संस्कृति, आध्यात्म पर हिन्दी में कुछ ऐसा विचार रखा कि वह विचार ना केवल उस समय दुनिया में प्रासंगिक हुए, वरन 125 साल बाद भी दुनिया भर में उसकी चर्चा होती है तथा भारतीय अध्यात्म के स्वर्ण अक्षरों में सदियों-सदियों तक दर्ज रहेगा।

 

विवेकानंद नाम के उस युवक ने शिकागो के विश्व धर्म संसद में स्वागत से लेकर अंतिम दिन तक हिंदुस्तान की व्याख्या किया तो दुनिया चौंक उठा। तभी तो आज भी स्वामी विवेकानंद युवाओं के आदर्श हैं, दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित राष्ट्रवाद और युवा को लेकर बनाए गए संघ-संगठन स्वामी विवेकानंद से संबंधित कार्यक्रम करते रहते हैं, उनके जन्म दिवस पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। युवाओं के प्रेरक, भारतीय संस्कृति के अग्रदूत, विश्वधर्म के उद्घोषक, व्यावहारिक वेदांत के प्रणेता, वैज्ञानिक अध्यात्म के भविष्यद्रष्टा स्वामी विवेकानंद को चिर निंद्रा में सोए 120 वर्ष पूरा होने को हैं। लेकिन उनका हिमालय-सा उत्तुंग व्यक्तित्व आज भी युगाकाश पर उज्जवलीमान सूर्य की तरह प्रकाशमान है। उनका जीवन दर्शन आज भी उतना ही उत्प्रेरक एवं प्रभावी है, जितना सौ वर्ष पूर्व था। बल्कि उससे भी अधिक प्रासंगिक बन गया है। तब राजनीतिक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी मां भारती के दीन-दुर्बल संतानों को इस योद्धा सन्यासी की हुंकार ने अपनी कालजयी संस्कृति की गौरव गरिमा से परिचय कराया था। विश्वमंच पर भारतीय धर्म एवं संस्कृति के सार्वभौम संदेश की गर्जना से विश्व चमत्कृत हो उठा था, आज हम राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होते हुए भी बौद्धिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक रूप से गुलाम हैं। आज देश भौतिक-आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है, समृद्ध होते एक बड़े वर्ग की खुशहाली को देखकर इसका आभास होता है और उभरती आर्थिक शक्ति के रूप में इसका वैश्विक आकलन और यहां की प्रतिभाओं का वर्चस्व भी आश्वस्त करता है। लेकिन प्रगतिशील इंडिया और आम इंसान के गरीब भारत के बीच विषमता की जो खाई है, उसे पाटे बिना देश की समग्र प्रगति की तस्वीर अधूरी ही रहेगी।

 

विवेकानंद की विचारों को आत्मसात कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस खाई को पाट रहे हैं, दुनिया में भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद कर रहे हैं। क्योंकि, बौद्धिक एवं सांस्कृतिक पराधीनता से मुक्त युवा शक्ति ही उस स्वप्न को साकार कर पाएगी, इसके लिए आध्यात्मिक उत्क्रांति की जरूरत है। स्वामी विवेकानंद का जीवन अपने प्रचंड प्रेरणा-प्रवाह के साथ युवाओं को इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। हर युग में स्वामी विवेकानंद के वाक्यों को मंत्रवत ग्रहण करते हुए कितने ही युवा अपना जीवन व्यापक जनहित एवं सेवा में अर्पित करते रहे हैं। अनेक युवा उनके सम्मोहन में बंधकर आदर्शोन्मुखी जीवनधारा की ओर मुड़ रहे हैं। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में सबसे पहले हमें स्वस्थ एवं वलिष्ठ शरीर की जरूरत है और बाकी चीजें बाद में आवश्यक हैं। कमजोर और रुग्ण शरीरवाला अध्यात्म के मर्म को क्या समझ पाएगा। युवाओं को लोहे की मांसपेशियों की जरूरत है और साथ ही ऐसी नस-नाड़ियों की जरूरत जो फौलाद की बनी हो। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि शरीर के साथ नस-नाड़ियों के फौलादीपन से तात्पर्य मनोबल, आत्मबल से है, जो चरित्र का बल है। संकल्प ऐसा महान हैं जिसे कोई भी बाधा रोक नहीं सके, जो अपने लक्ष्यसंधान के लिए ब्रह्मांड के बड़े-से-बड़े रहस्य का भेदन करने के लिए तत्पर हो, चाहे इसके लिए सागर की गहराइयों में ही क्यों नहीं उतरना पड़े और मृत्यु का सामना ही क्यों नहीं करना पड़े। उन्होंने कहा था कि स्वधर्म के साथ युगधर्म का बोध भी आवश्यक है, अपने कल्याण के साथ राष्ट्र, पीड़ित मानवता की सेवा जीवन का अभिन्न अंग बनें। ऐसा धर्म किस काम का, जो भूखों का पेट नहीं भर सके। अगले एक सौ वर्षों तक हमें किसी भगवान की जरूरत नहीं है। क्योंकि गरीब, पीड़ित, शोषित, अज्ञानग्रस्त, पिछड़ा समुदाय ही भगवान है। लानत है ऐसे शिक्षितों पर जो उनके आंसू नहीं पोंछ सकें, जिनके बल पर इस जीवन की दक्षता को हम अर्जित करते हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में उम्मीद है उन युवाओं से जिनकी एकमात्र पूंजी भाव संवेदना तथा आदर्श प्रेम है, ऐसे समर्पित युवा ही ईश्वरीय योजना का माध्यम बनेंगे। उन्हें वह सूझ और शक्ति मिलेगी कि वे कुछ सार्थक कार्य कर सकें। वही अपने उच्च चरित्र, सेवाभाव और विनय द्वारा देश, समाज एवं विश्व का कुछ भला कर सकेंगे। जब मेरा शरीर नहीं रहेगा तो मेरी आत्मा उनके साथ काम करेगी। स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे गए यह शब्द आज भी एक आह्वान के रूप में महसूस किए जा सकते हैं। धर्म का सार दो शब्दों में समाहित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि सच्चाई एवं अच्छाई का रास्ता विश्व का सबसे फिसलन भरा एवं कठिन मार्ग है। कितने सारे लोग इसके रास्ते में ही फिसल जाते हैं, बहक-भटक जाते हैं और कुछ मुट्ठीभर इसके पार चले जाते हैं। अपने उच्चतम ध्येय के प्रति मृत्युपर्यंत निष्ठा ही चरित्रबल और अजेय शक्ति को जन्म देती है। यह शक्ति निस्संदेह सत्य की होती है, यही सत्य संकटों में, विषमताओं में, प्रतिकूलताओं में रक्षा कवच बनकर दैवी संरक्षण देता है। इसके समक्ष धन, ऐश्वर्य, सत्ता, समस्त विद्याएं एवं सिद्धियां तुच्छ हैं, तीनों लोकों का वैभव भी इसके सामने कुछ नहीं है। चरित्र की शक्ति अजेय है, अपराजेय है, लेकिन यह एक दिन में विकसित नहीं होता है, हजारों ठोकरें खाते हुए इसका गठन करना होता है। जब चरित्र विकसित हो जाता है तो एक व्यक्ति में पूरे विश्व-ब्रह्मांड के विरोध का सामना करने की शक्ति पूर्ण प्रवाह से आ जाती है, आज जरूरत ऐसे ही चरित्रनिष्ठ युवाओं की है।

 

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मुझे ऐसे मुट्ठीभर भी युवक-युवतियां मिल जाएं तो समूचे विश्व को हिला दूंगा। ऐसे पवित्र और निस्वार्थ युवा ही किसी राष्ट्र की सच्ची संपत्ति हैं, आदर्श के प्रति समर्पित आत्मबलिदानी युवाओं की आज जरूरत है, जो लक्ष्यहित के लिए बड़ा से-बड़ा त्याग करने के लिए तैयार हों। अपने उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद ने किशोरावस्था के ऊहापोह का चित्रण करते हुए कहा था कि युवावस्था में मैं भी निर्णायक मोड़ पर था, निर्णय नहीं कर पा रहा था कि सांसारिक जीवनयापन करूं या गुरु के बताए मार्ग पर चलूं। अंत में निर्णय गुरु के पक्ष में गया, जिसमें राष्ट्र एवं व्यापक विश्वमानव का हित निहित था और मैंने अर्पित जीवन के पक्ष में निर्णय लिया। खून से लथपथ हृदय को हाथ में लेकर चलना पड़ता है, तब जाकर महान कार्य सिद्ध होते हैं। बिना त्याग के किसी बड़े कार्य की आशा नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा था जीवन में किसी एक आदर्श का होना जरूरी है। इसी आदर्श को जीवनलक्ष्य बना दें, इस पर विचार करें, इसका स्वप्न लेकर अपने रोम-रोम में समाहित कर लें, जीवन का हर पल इससे ओत-प्रोत रहे। गहराई में उतरना होगा, तभी हम जीवन का कुछ सार तत्त्व पा सकेंगे और जग का भला कर पाएंगे। पहले स्वयं पर विश्वास करना होगा, फिर भगवान एवं दूसरों पर। अपने विश्वास पर दृढ़ रहें, बाकी सब अपने आप ठीक होता जाएगा। 

By : सुरेन्द्र कुमार ''किशोरी

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धर्म संसद में दिए गए नफरत भरे भाषणों के खिलाफ याचिका की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को हरिद्वार में धर्म संसद में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिए गए नफरत भरे भाषणों के संबंध में आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तत्काल सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। सिब्बल ने प्रस्तुत किया, हम अलग-अलग समय में रह रहे हैं जहां देश में नारे सत्यमेव जयते से बदल गए हैं।

 पीठ ने सिब्बल से कहा, हम इस पर गौर करेंगे। पीठ ने सिब्बल से यह भी पूछा कि क्या कुछ जांच चल रही है? सिब्बल ने जवाब दिया कि प्राथमिकी दर्ज की गई है, लेकिन अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और कहा कि अदालत के हस्तक्षेप के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

 

संक्षिप्त सुनवाई के बाद, पीठ मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गई।

 

याचिकाकतार्ओं - एक पत्रकार, एक न्यायाधीश, और एक सुप्रीम कोर्ट के वकील - ने शीर्ष अदालत का रुख कर पिछले साल 17-19 दिसंबर के बीच अलग-अलग दो कार्यक्रमों में दिए गए घृणास्पद भाषणों से संबंधित मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। इनमें से एक कार्यक्रम हरिद्वार में आयोजित किया गया था, जहांकथित तौर पर, कई हिंदू धार्मिक नेताओं, जिन्होंने सभा को संबोधित किया। समुदाय से मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया गया था। याचिका में एक एसआईटी द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषणों की घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।

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