संकीर्णता व दोहरेपन का शिकार प्रवासी मुद्दा

भारतीय संविधान देश के किसी भी राज्य अथवा किसी भी केंद्र शासित प्रदेश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी राज्य अथवा किसी भी केंद्र शासित प्रदेश में जाकर रोज़गार,सेवा अथवा व्यवसाय करने का पूरा अधिकार देता है। परन्तु इसके बावजूद समय समय पर कुछ विशिष्टजन विशेषकर ज़िम्मेदार नेतागण ऐसी भाषा बोलने लगते हैं जिससे न केवल प्रवासी लोगों के मन में अपनी सुरक्षा के प्रति भय उत्पन्न होता है बल्कि इससे हमारी राष्ट्रीय एकता पर भी गहरा आघात लगता है। प्रायः उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़,बंगाल,राजस्थान व उत्तरांचल के लोग ही रोज़गार की तलाश में अथवा नौकरी या व्यवसाय की ख़ातिर देश के विभिन्न हिस्सों में आते जाते रहते हैं। इनमें भी विशेषकर उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों के छात्र,कामगार,श्रमिक ख़ास तौर पर मुंबई,दिल्ली,पंजाब व हरियाण जैसे राज्यों में बहुतायत में जाते हैं।इसका मुख्य कारण जहाँ इन राज्यों का जनसँख्या घनत्व है वहीँ अशिक्षा व बेरोज़गारी भी इन राज्यों की बड़ी समस्या है। इत्तेफ़ाक़ से यही देश के ऐसे दो बड़े राज्य भी हैं जो हमेशा ही देश को सबसे अधिक संख्या में नौकरशाह मुहैय्या करवाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भी प्रायः इन्हीं राज्यों का वर्चस्व रहा है। अनेक महापुरुष व राजनेता इन्हीं दो राज्यों के रहे हैं। कितने सौभाग्यशाली है उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्य की धरती कि यह भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह,संत रविदास,महात्मा बुद्ध,कबीर,तुलसी व कई अन्य महापुरुषों की यह जन्म व कर्मस्थली भी रही है।

 

परन्तु कितने दुःख का विषय है कि इन्हीं राज्यों के लोग समय समय पर कुछ संकीर्ण क्षेत्रीय मानसिकता रखने वाले नेताओं की संकीर्ण सोच व तंग नज़री का शिकार होने लगते हैं। और कभी कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि यदि अपराधी प्रवृति के किसी प्रवासी ने कहीं कोई अपराध अथवा दुष्कर्म कर दिया तो स्थानीय लोग उसका ग़ुस्सा पूरे प्रवासी समाज पर उतारने पर आमादा हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सितंबर 2018 में गुजरात राज्य के साबरकांठा में एक मासूम बच्ची के साथ एक मज़दूर ने बलात्कार किया था। बलात्कार का आरोपी बिहार का रहने वाला था। इस घटना के बाद गुजरात के कई शहरों में उत्तर भारत के लोगों के विरुद्ध न केवल  विरोध-प्रदर्शन हुये बल्कि कई जगह उनके विरुद्ध स्थानीय लोगों की भीड़ हिंसक भी हो गयी।  हिंसा पर उतारू भीड़ का कहना था कि यूपी और बिहार के लोग शहर से चले जाएं वरना उन्हें मार दिया जाएगा। वे कहते सुने जा रहे थे कि 'बाहरी लोग राज्य छोड़ दें' साथ ही यह भी कि 'गुजराती लोगों को बचाया जाना चाहिए'। इस हिंसा के बाद डरे सहमे उत्तर भारतीयों ने अपने-अपने राज्य-घर-गांवों की ओर बड़ी संख्या में पलायन करना शुरू कर दिया था। उत्तर भारत के बेगुनाह लोगों पर हुए इस हमले के बाद बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों ने कई जगह प्रदर्शन किया था तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध पोस्टर लगाये थे जिसमें लिखा था - ‘गुजराती नरेंद्र मोदी बनारस छोड़ो’।

 

इन दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के उत्तर भारतीयों के बारे में दिये गये एक बयान को लेकर भाजपा विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोल दिया। चन्नी ने कहा था कि - प्रियंका पंजाबियों की बहू है। यूपी ,बिहार, दिल्ली के लोगों को यहां राज नहीं करने देना। यूपी के भइयों को पंजाब में फटकने नहीं देना है। बाद में भले ही चन्नी यह सफ़ाई देते रहे कि उनका आशय आम आदमी पार्टी के नेताओं से था,परन्तु तब तक राजनीति के महाचतुर खिलाड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चन्नी के यू पी बिहार वाले बयान को गुरु गोविन्द सिंह व संत रविदास के अपमान से जोड़ चुके थे। परन्तु जब गुजरात,कश्मीर और महाराष्ट्र से इन्हीं भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह, संत रविदास,महात्मा बुद्ध,कबीर व तुलसी के राज्यों के लोग मारे-पीटे-दुत्कारे व भगाये जा रहे थे और यही यू पी बिहार के कथित हितैषी उन राज्यों की सत्ता के साथ खड़े थे,उस समय यह भगवान राम,कृष्ण,सीता,गुरु गोविन्द सिंह, संत रविदास का अपमान नहीं था? जब इन्हीं राज्यों के लोग कोरोना काल में अपने परिवार,बच्चों व वृद्ध बीमार जनों के साथ हज़ारों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर रहे थे तब  क्या वह संत रविदास व गुरु गोविन्द सिंह का अपमान नहीं था ?

 

अब इसी प्रवासी मुद्दे का दूसरा पहलू भी देखिये। जिस तरह उत्तर भारतीय स्वरोज़गार हेतु देश के संपन्न राज्यों में जाते हैं ठीक उसी तरह पंजाब,हरियाणा,गुजरात,यू पी व बिहार आदि अनेक राज्यों के लोग इसी रोज़गार व व्यवसाय के लिये अथवा शिक्षा ग्रहण करने के लिये अमेरिका-कनाडा जैसे अनेक विकसित देशों में जाते हैं। आज अनेक देशों में उनकी स्थिति ऐसी है कि कोई किसी देश का प्रधानमंत्री है कई विभिन्न देशों में मंत्री,कई जज तो कई सेना व पुलिस में उच्च पदों पर तैनात हैं। कोई सांसद तो कोई वैश्विक स्तर पर उद्योग जगत के शीर्ष पर है। लाखों लोग विदेशों में बड़े बड़े ज़मींदार-किसान बन चुके हैं। यक़ीनन हमारे देश के लोगों को उन प्रवासी भारतीयों पर गर्व है जो विदेशों में रहकर भारत का नाम ऊँचा कर रहे हैं। परन्तु जब बात 2004 में सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने की आई तो यही राष्ट्रवादी 'देशभक्त ' उस समय यह कहते फिर रहे थे कि यदि विदेशी महिला प्रधानमंत्री बनी तो सर मुंडा लेंगे,उल्टी चारपाई पर लेटेंगे,भुने चने खाने लगेंगे आदि। इस तंगनज़री का आख़िर क्या जवाब है ? कल्पना कीजिये कि यदि यही रंग भेद व देशी विदेशी की संकीर्ण सोच भारतीयों के विरुद्ध विदेशों में भी पनपने लगी फिर आख़िर हमारे करोड़ों प्रवासी भारतीयों की क्या स्थिति होगी ?

 

जिस तरह विदेशों में भारतीय प्रवासी अपनी सेवायें देकर अपने अपने देशों के विकास व वहां की व्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं ठीक उसी प्रकार देश के किसी भी राज्य का प्रवासी किसी भी राज्य में श्रम कर अपनी रोज़ी रोटी तो कमाता ही है साथ साथ अपना ख़ून पसीना बहाकर वहां के निर्माण,प्रगति व विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। आम तौर पर किसी भी राज्य के आम लोगों को किसी अन्य राज्यवासी से उसके राज्य अथवा धर्म जाति के आधार पर कोई आपत्ति नहीं होती। आम तौर पर ओछी व संकीर्ण राजनीति करने वाले नेता ही केवल अपना व्यापक जनाधार सिमटता देख इस तरह के संकीर्ण विवादों को जन्म देते हैं। परिणाम स्वरूप कभी कभी विशेषकर चुनावी बेला में प्रवासी मुद्दा संकीर्णता व दोहरेपन का शिकार हो जाता है।