वैश्विक सैन्य मंच पर भारत की बढ़त: चौथी सबसे बड़ी शक्ति का अनावरण

मुंबई उपभोक्ता जनघोष:  भू-राजनीतिक जटिलताओं से भरी दुनिया में, भारत चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति के रूप में खड़ा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता के प्रति इसकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।  भारत की सैन्य शक्ति के केंद्र में न केवल इसकी विविध संस्कृति और समृद्ध विरासत है, बल्कि इसकी विशाल आबादी भी है, जो रंगरूटों का एक मजबूत पूल प्रदान करती है।  कठोर भर्ती प्रक्रियाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सेना अत्यधिक समर्पित और कुशल व्यक्तियों से बनी है।

 सेना, नौसेना और वायु सेना को मिलाकर, भारत की सशस्त्र सेनाएं समन्वित और एकीकृत तरीके से काम करती हैं, जिससे राष्ट्रीय रक्षा के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की अनुमति मिलती है।  यह त्रि-सेवा संरचना विभिन्न प्रकार की सुरक्षा चुनौतियों के लिए तैयारी सुनिश्चित करती है।  भारत की सैन्य ताकत का एक प्रमुख चालक इसका आधुनिकीकरण करने का निरंतर प्रयास है, जिसमें रक्षा अनुसंधान और विकास में पर्याप्त निवेश के साथ अत्याधुनिक हथियार और उपकरण प्राप्त होते हैं, जिससे सशस्त्र बलों की प्रभावशीलता और चपलता बढ़ती है।

भारत की परमाणु क्षमताएं इसकी रक्षा रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो संभावित विरोधियों के खिलाफ एक विश्वसनीय निवारक के रूप में कार्य करती है।  भू-राजनीतिक रूप से, दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति क्षेत्रीय स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो पड़ोसी देशों और उससे आगे के देशों के साथ मजबूत राजनयिक संबंधों द्वारा समर्थित है।

आतंकवाद के मौजूदा खतरे के जवाब में, भारत के सशस्त्र बलों ने आंतरिक सुरक्षा और वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए विशेष इकाइयों और आतंकवाद विरोधी अभियानों के माध्यम से अनुकूलनशीलता और प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है।  संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में सक्रिय रूप से शामिल होकर, भारत संघर्ष से जूझ रहे क्षेत्रों में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, सैनिकों और विशेषज्ञता दोनों का योगदान देता है।

 विस्तृत समुद्र तट के साथ, भारतीय नौसेना समुद्री हितों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  एक आधुनिक और मजबूत बेड़ा पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शित करते हुए, खतरों का प्रभावी ढंग से जवाब देने की क्षमता सुनिश्चित करता है।  इसी तरह, विमान के बहुमुखी बेड़े से सुसज्जित भारतीय वायु सेना, हवाई श्रेष्ठता बनाए रखती है - जो रक्षात्मक और आक्रामक दोनों अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है।

 मित्र राष्ट्रों के साथ रणनीतिक गठबंधन भारत की रक्षा क्षमताओं को और बढ़ाते हैं, साझा खुफिया जानकारी, संयुक्त अभ्यास और उभरती सुरक्षा चुनौतियों के लिए समन्वित प्रतिक्रियाओं में सहयोग को बढ़ावा देते हैं।  दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति बनने की भारत की यात्रा लचीलेपन, रणनीतिक योजना और अनुकूलन क्षमता की कहानी है।  जैसे-जैसे वैश्विक गतिशीलता विकसित हो रही है, भारत की सैन्य ताकत घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक सुरक्षित और स्थिर भविष्य को आकार देने में आधारशिला के रूप में खड़ी है।

Edit By Priya Singh 


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नेता कोई भी हो, सबके भाषणों से गायब हैं जनता के असल मुद्दे ‘

मुल्क में नए किस्म की सियासत यानी मुद्दाविहीन राजनीति का दौर चल पड़ा है जिसमें सियासी दलों को तो फायदा हो रहा है। पर इस चलन से आवाम का कितना नुकसान हो रहा है, ये राजनेता अंदाजा नहीं लगा सकते। दरअसल, जनहित की राजनीति में मुद्दा जहां महंगाई-रोजगार का होना चाहिए, वहां धर्म-समुदाय के नाम पर जनता को आपस में भिड़ाया जा रहा है। कमोवेश, मौजूदा समय के पांच राज्यों के चुनावी हुड़दंग में चकल्लस ऐसी ही मची हुई है। चुनावी मौसम को चुनावी हुड़दंग इसलिए कहा जाने लगा है क्योंकि आमजन के मुद्दों के जगह अब सिर्फ बिना वजह का शोर होता है। सियासी भाषणों से जमकर ड्रामा हो, उसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी होती है जिसका मुख्यालय दिल्ली है।


राजधानी में सियासी पार्टियों के जितने के भी मुख्यालय हैं वहां आजकल इसी की पाठशाला लगती है। सप्ताह में करीब दो बार प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में चुनावी सभा करने पहुंच रहे हैं। वहां कुछ ऐसा बोलकर चले आते हैं जिससे माहौल एकाध दिनों तक चर्चाओं में रहता है। पिछले सप्ताह शाहजहांपुर में योगी को यूपी का उपयोगी बोल आए थे और उसके पिछले सप्ताह लाल टोपी बोलकर हंगामा कटवा दिया था। यूपी चुनाव में इस समय लाल टोपी, जालीदार टोपी, धर्म-धर्मांतरण, जिन्ना आदि के मसले ही तो गर्म हैं। दालों का रेट आसमान छू रहा है, ईंधन की कीमतें, रोजमर्रा की वस्तुएं आपे से बाहर हैं, बावजूइ इसके कोई राजनेता बोलने को राजी नहीं है।


बहरहाल, चुनाव जैसे-जैसे अपने रंगत में आता जा रहा है, कोरोना भी जोर मारने लगा है। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने करीब दर्जन भर राज्यों में रात्रि कर्फ्यू लगाया है जिनमें ज्यादातर वो राज्य हैं जिनमें चुनाव नहीं हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश में रात्रि कर्फ्यू की घोषणा हुई है। कहीं भाजपा की जबरदस्त तैयारियों पर कोरोना पानी ना फेर दे। चुनाव कहीं वर्चुअल तरीके से ना कराने पड़ जाएं। दिल्ली में बीते एक सप्ताह से रोजाना कोरोना संक्रमण के केस बढ़ रहे हैं। दिल्ली ही क्या पूरे देश में यही हाल है। संक्रमणों और मरने वालों की संख्या में भी एकाएक बढ़ोतरी हुई है। कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन ने अपने शुरुआती चरण में ही हंगामा बरपा दिया है। इसलिए दिल्ली में मुख्य चुनाव आयोग के कार्यालय में सुगबुगाहट इस बात है कि शायद चुनाव आगे बढ़ाए जाएं, इसको लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त बीते दिनों उत्तराखंड के दौरे पर पहुंचे। पंजाब भी जाने वाले हैं और आज उत्तर प्रदेश गये हैं। जहां सभी जिलों के एसपी-डीएम के साथ बैठक करके स्थिति का जायजा लेंगे। चुनाव कराने के मुताबिक अगर उनसे फीडबैक अच्छा नहीं मिला तो कुछ महीनों के लिए चुनाव टाले भी जा सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है बिहार विधानसभा चुनाव की तरह प्रचार वर्चुअल कराने का निर्णय लिया जाए। 


कोरोना की स्थिति आगे क्या रहने वाली है, किसी को पता नहीं? चिकित्सकों में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। वो तीसरी लहर का अंदाजा अक्टूबर के आसपास लगा रहे थे। डब्ल्यूएचओ ने भी यही तुक्का मारा था, हालांकि उनका अनुमान पहली लहर में भी धराशायी हुआ था। लेकिन पिछली दोनों लहरों की टाइमिंग ठीक से देखें, तो दोनों का आगमन एक ही वक्त पर हुआ था। होली त्योहार के तुरंत बाद कोरोना ने एकदम जोर पकड़ा था। शुरुआत इन्हीं दिनों यानी दिसंबर-जनवरी से होनी आरंभ हुई थी, जो धीरे-धीरे बढ़ती गई। इस हिसाब से तो मार्च-अप्रैल के लिए हमें अभी से सतर्क होना चाहिए। केंद्र सरकार और राज्यों की हुकूमतों को अभी से कमर कस लेनी चाहिए। चिकित्सा तंत्र की उन दिनों परीक्षा होती है, उन्हें अपनी तैयारियों को अभी से दुरुस्त करना चाहिए। मौसम चुनावी है इसलिए उन राज्यों को सबसे ज्यादा गंभीर होना चाहिए, जहां चुनाव हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश को, जहां सियासी दलों की रैलियों में एक साथ लाखों लोगों जुट रहे हैं। क्योंकि ऐसी गलती हम पश्चिम बंगाल चुनाव में पहले कर चुके हैं। वहां बढ़ते कोरोना के बीच चुनाव संपन्न हुए थे। चुनाव खत्म होते ही पाबंदियां लगा दी गई थीं, लेकिन तब तक संक्रमण बुरी तरह फैल चुका था। यही हाल इस वक्त यूपी में है, लेकिन इस बात की कोई परवाह नहीं कर रहा। बेशक, वहां रात्रि कर्फ्यू लगा दिया है जो कोरोना रोकने का विकल्प कतई नहीं हो सकता।


स्थिति चाहे कैसी भी हो, चुनावी रैलियों में बड़े नेताओं को भीड़ चाहिए। भीड़ जुटाने का दबाव अब सिर्फ कार्यकर्ताओं के कंधों पर नहीं होता। जिले के पटवारी, तहसीलदार, लेखपाल, ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी लगाया जाता है। रैली से पूर्व गांव के बाहर बसों को तैनात किया जाता है, उन्हें खचाखच भरने की जिम्मेदारी इन सरकारी मुलाजिमों की ही होती है। ये बात तो काफी समय से तय हो चुकी है कि अब चुनावी रैलियों में जुटने वाली भीड़ वास्तविक नहीं होती, वह लालच देकर बुलाई जाती है। मतदाताओं को पैसे भी दिए जाते हैं, जिस जिले में रैली होती है भीड़ के लोग स्थानीय नहीं, बल्कि अन्य जिलों के होते हैं। बंगाल में इसको लेकर हंगामा भी कटा था। ममता बनर्जी सार्वजनिक रूप से भाजपा पर आरोप लगाती रहीं थीं कि उनकी रैलियों में दिखने वाले चेहरे बंगाली नहीं हैं बल्कि बहारी हैं। दरअसल, ये तस्वीरें गंदी सियासत की परिभाषा को बताने के लिए पर्याप्त हैं। साफ-सुधरी राजनीति के लिए राजनेताओं को इन हथकंड़ों से तौबा करनी चाहिए।


-डॉ. रमेश ठाकुर-






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शिक्षा बेचने का गंदा धंधा

देश के अनेक राज्यों में समय-समय पर छात्रों के लिए परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष करोड़ों की संख्या में विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की परीक्षाएं देते हैं। स्कूलों व कोलेजों में भी बहुत प्रकार की परीक्षाएं आयोजित करवाई जाती हैं। अगर किसी अच्छे स्कूल या कॉलेज में दाखिला लेना हो तो परीक्षा देनी पड़ती है। किसी प्रकार की नौकरी प्राप्त करनी हो तो परीक्षा देनी पड़ती है, किसी कोर्स का दाखिला लेना हो तो परीक्षा देनी पड़ती है। लेकिन जब परीक्षा के भवन में नकल की जाती है तो परीक्ष प्रणाली पर एक प्रश्नचिन्ह लग जाता है। परीक्षा के दौरान नकल देश में कोई नई बात नहीं है और इसे समाज में बुरी नज़र से देखा जाता है। इसके बावजूद नकल का प्रचलन दशकों से देश के ज्यादातर हिस्सों में फल-फूल रहा है। इससे हमारी परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता भी कम हो जाती है। आइए, इससे जुड़े कुछ चुनिंदा पहलुओं पर विचार करें। सबसे पहले कुछेक अभिभावक भी बच्चों को नकल करवाने के लिए चारों तरफ फिरते रहते हैं। उनके लिए उनके बच्चे का परीक्षा में हर कीमत पर पास होना इज्ज़त का सवाल बन जाता है। इसके लिए पैसे लगें, सिफारिश लगे या फिर कोई भी हथकंडा अपनाना पड़े, सब जायज होता है। आसपास का इतना दबाव होता है कि कहीं कम मार्क्स आ गए या फिर मुन्ना या मुन्नी फेल हो गई तो इज्ज़त ख़राब हो जाएगी। हमारे छात्र भी अभिभावकों के इस दबाव के कारण नकल की तरफ अग्रसर हो जाते हैं और अपनी नैसर्गिक प्रतिभा का विनाश कर बैठते हैं। पैसे बनाने के लिए खुले कुछ शिक्षा संस्थान तो नकल की गारंटी पर ही छात्रों का दाखिला करवाते हैं। कुछ बरस पहले पंजाब के बॉर्डर जिले में एक उच्च शिक्षा अधिकारी को स्कूल में नकल रोकने पर कुछ घंटे के लिए बंधक बना लिया गया था और बड़े लेवल पर हस्तक्षेप होने पर स्थिति काबू में हुई। ऐसी घटनाएं सुन कर कई बार तो ऐसा महसूस होता है कि नकल से जुड़ा सब कुछ एक बड़ा नेक्सस और चक्रव्यूह है जिसे भेदने के लिए सरीखे नेतृत्व की हम सबको जरूरत है। नकल की प्रवृत्ति एक लत है। हमारे कुछ शिक्षा संस्थान भी देश में शिक्षा की गुणवत्ता को निचले स्तर पर अपने फायदों के लिए धकेल रहे हैं। उच्च शिक्षा में भी कभी-कभी ऐसी स्थितियां देखने को मिल जाती हैं। हाल ही में मुजफ्फरपुर स्थित एक यूनिवर्सिटी में परीक्षा में नकल करने से रोकने पर छात्रों ने जमकर उत्पात मचाया। शिक्षकों के साथ मारपीट की गई। एग्जाम हॉल में एक छात्र को नकल करने के आरोप में शिक्षकों ने पकड़ा। उसे एक्सपेल्ड कर बाहर निकाल दिया। उक्त छात्र ने बाहर निकलकर अपने साथियों को कॉल कर बुला लिया।


 दर्जनों की संख्या में पहुंचे छात्र अचानक से परीक्षा हॉल में प्रवेश कर गए। फिर शिक्षक के साथ मारपीट करने लगे। आंसर शीट फाड़ने का प्रयास करते हुए जमकर उत्पात मचाने लगे। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि हम छात्रों को शिक्षित करने के साथ नकल के दुष्परिणामों के बारें में समझा नहीं पाए हैं। नकल करने की जिद पर छात्रों का इस तरह का बर्ताव समाज के लिए चिंता जताने वाला है। शिक्षकों के लिए ऐसे माहौल में परीक्षा ड्यूटी करना आसान नहीं होता। परीक्षा रेगुलेटरी अथॉरिटी के लिए इस नैतिक प्रहार से निपटना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। देखने में तो यह भी आता है कि नकल करना और करवाना अब पैसा कमाने का माध्यम बन गया है। अगर नकल करवानी है तो माता-पिता के पास धन होना जरूरी हो गया है। कुछ विद्यार्थी दूसरों के लिए आज भी नकल करवाने और चिट बनाने का काम करते रहते हैं। बहुत से विद्यार्थी तो ब्लू-टूथ और एसएमएस के द्वारा भी नकल करते रहते हैं। बच्चों के मूल्यांकन में भी बहुत गड़बड़ी होने लगी है। सच यह है कि कोई भी परीक्षा प्रणाली विद्यार्थी के चरित्र के गुणों का मूल्यांकन नहीं करती है। हमारी परीक्षा प्रणाली अत्यंत दोषपूर्ण है। जो परीक्षा प्रणाली केवल कंठस्थ करने पर जोर देती है, विश्लेषण और अभिव्यक्ति पर कम ध्यान देती है, वो विद्यार्थियों की योग्यता का मूल्यांकन नहीं कर सकती। हमें सतत चलने वाली परीक्षा प्रणाली को स्कूलों और कॉलेजों में विकसित करने की जरूरत है। विद्यार्थी के ज्ञान, गुण और क्षमता का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अकादमिक परीक्षाओं में नकल करने और करवाने वालों को सोचना चाहिए कि ऐसा कब तक चलेगा।


आगे चलकर जब किसी छात्र को कोई व्यावसायिक कार्य या फिर नौकरी पाने के लिए स्किल का प्रदर्शन करना होगा, तब वे क्या करेंगे? इसी साल फरवरी में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पेपर लीक होने के मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसी घटनाएं देश की शिक्षा प्रणाली को बर्बाद कर रही हैं। भारत में स्कूल-कॉलेज की परीक्षाओं में ही नहीं, सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी नकल बहुत ज्यादा बढ़ रही है और अधिकारियों को नकलार्थियों के आधुनिक तरीकों से निपटने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। राजस्थान में हाल में हुई एक परीक्षा में नकल कराने वाले गिरोह को पकड़ा गया। पूछताछ में आरोपियों ने नकल के ऐसे तरीकों का खुलासा किया जिन्हें सुनकर सब हैरान रह गए थे। परीक्षा में चप्पल और सैनिटरी नैपकिन में डिवाइस छिपाकर नकल कराने के तरीके के साथ ही अभ्यर्थियों का एग्जाम से पहले एक ट्रेनिंग सेशन भी कराया गया था। नकल करने के तरीकों में किसी अन्य के स्थान पर प्रॉक्सी कैंडिडेट के जरिए परीक्षा देना भी शामिल है जिसे कुछ लोगों ने तो अपना पेशा ही बना लिया है। इसके अलावा पेपर चुराना और उन्हें बेचना भी एक पेशेवर अपराध बन चुका है। यह शिक्षा बेचने का गंदा धंधा है। जरूरत इस बात की है कि हम सब नकल के दुष्परिणामों के बारे में बड़े स्तर पर जागरूकता मुहिम चलाएं, ठीक जैसे वातावरण और पर्यावरण को बचाने के लिए कर रहे हैं। छात्रों का भविष्य धूमिल करने के लिए स्लो प्वाइजन का काम कर रही परीक्षाओं में नकल की प्रवृत्ति हमरी शिक्षा से जुड़ी गुणवता को धीरे-धीरे खत्म कर रही है। इसके लिए जन जागरण की भी आवश्यकता है।


 हमारे छात्र इसके विरोध में खुद आगे आएं तो कमाल हो जाए। प्रण इस बात का भी लेना होगा कि नकल की बीमारी को किसी भी कीमत पर न तो सपोर्ट किया जाना चाहिए और न ही प्रमोट किया जाना चाहिए। नकल करने की प्रवृत्ति और नकल कराने की मनोवृत्ति का मूल कहां से पैदा होता है, इसे समझने की जरूरत है। नंबरों की होड़ और फेल होने का डर इसके दो बड़े कारण हैं। फेल होने के बाद निराशा का शिकार होने वाले और सार्वजनिक रूप से अपमानित होने वाले छात्रों के लिए नकल एक टॉनिक की तरह है। सभी नकल करने वाले एक जैसे होते हैं। नकल करने वालों में प्रतिभा नहीं होती। नकल करने वाले जीवन में कुछ कर नहीं पाते। जिस समाज में फेल होना अपराध होता है, वहां नकल करना सामाजिक रूप से वैधता पा जाता है। दोनों बातें एक सिक्के के दो पहलू सरीखी हैं। नकल करने की प्रवृत्ति से छात्रों का भविष्य बिगड़ रहा है। इसके लिए शिक्षा जगत से जुड़े सभी लोगों को शिक्षा के साथ जोड़ने का सकारात्मक रास्ता खोजना चाहिए, ताकि नकल कराने के लिए दीवारों पर चढ़ने की जरूरत न पड़े। हमें ऐसा कोई रास्ता निकालना चाहिए कि हमारे छात्र परीक्षा के डर से आज़ाद हों। अभिभावक भी अपने पुराने अनुभवों को बच्चों पर लादने की कोशिश से बाज आएं। अच्छा होगा कि नंबरों की होड़ पर विराम लगे। प्रतिभा और नंबर को तराजू के दोनों तरफ रखकर तौलने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाए। इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है, लेकिन प्रवेश परीक्षाओं को आधार बनाकर या फिर नंबरों के महत्त्व को कम करके रास्ता निकाला जा सकता है।


-डा. वरिंदर भाटिया-




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घातक होगी ओमिक्रोन संक्रमण मामले में लापरवाही

देश में ओमिक्रोन के लगातार बढ़ते मामलों से दहशत का माहौल बनने लगा है। बढ़ रहे मामलों को देखते हुए फरवरी माह में कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी की जा रही है।


ऐसे में पहले से ही रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के साथ-साथ एक और लॉकडाउन का डर अभी से सताने लगा है। दरअसल, चंद दिनों में ही ओमिक्रोन के देशभर में 500 से भी ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं और यह आंकड़ा प्रतिदिन तेजी से बढ़ रहा है। इसी के चलते कुछ राज्यों द्वारा 'नाइट कर्फ्यू' लगाए जाने की शुरुआत हो चुकी है। हालांकि ओमिक्रोन को लेकर सरकार द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है कि इसमें ऑक्सीजन की जरूरत कम ही है। फिर भी संक्रमण की रफ्तार से तीसरी लहर की चिंता स्वाभाविक ही है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर इससे निपटने के लिए समय रहते केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रभावी उपाय किए जाने की सख्त आवश्यकता है।


24 नवम्बर 2021 को जहां ओमिक्रोन का पहला मामला दक्षिण अफ्रीका में सामने आया था, वहीं भारत सहित पूरी दुनिया में केवल एक महीने के अंदर ही यह 110 से भी ज्यादा देशों में फैल चुका है। इस एक महीने में दुनियाभर में इस वेरिएंट के लाखों मामले सामने आ चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका में कोरोना संक्रमण के 95 फीसदी मामलों की प्रमुख वजह ओमिक्रोन ही है। ब्रिटेन में जहां 29 नवम्बर तक ओमिक्रोन के 0.17 फीसदी मामले सामने आ रहे थे, वहीं 23 दिसम्बर तक इसके 38 फीसदी मामले दर्ज किए गए। यही हाल अमेरिका का भी है, जहां ओमिक्रोन की वजह से संक्रमण दर में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। हाल यह रहा कि 22 दिसम्बर तक हर चौथा मामला ओमिक्रोन की वजह से आया।भारत में भी यह संक्रमण फैलने की रफ्तार काफी तेज है।


चिंताजनक स्थिति यह है कि ओमिक्रोन में अब तक कुल 53 म्यूटेशन हो चुके हैं और यह डेल्टा के मुकाबले बहुत तेजी से फैलता है। डेल्टा में कुल 18 और इसके स्पाइक प्रोटीन में दो म्यूटेशन हुए थे लेकिन ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में 32 म्यूटेशन हो चुके हैं। इसके रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन में भी 10 म्यूटेशन हो चुके हैं। वायरस स्पाइक प्रोटीन के जरिये ही मानव शरीर में प्रवेश करता है। लंदन के इंपीरियल कॉलेज के वायरोलॉजिस्ट डा. टोम पीकॉक के मुताबिक वायरस में जितने ज्यादा म्यूटेशन के जरिए वेरिएंट बनेगा, वह उतना ही अधिक खतरनाक होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ओमिक्रोन को कई दिनों पहले ही 'वेरिएंट ऑफ कंर्सन' घोषित करते हुए कह चुका है कि तेजी से फैलने वाला यह वेरिएंट लोगों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। यूके स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के मुख्य चिकित्सा सलाहकार डा. सुसान हॉपकिंस का कहना है कि कोरोना का यह वेरिएंट दुनियाभर में प्रमुख डेल्टा स्ट्रेन सहित अन्य किसी भी वेरिएंट के मुकाबले बदतर होने की क्षमता रखता है। विशेषज्ञों के अनुसार डेल्टा वेरिएंट की आर वैल्यू 6-7 थी अर्थात् एक व्यक्ति वायरस को 6-7 व्यक्तियों में फैला सकता है। ओमिक्रोन की आर वैल्यू तो डेल्टा के मुकाबले करीब छह गुना ज्यादा है। इसका अर्थ है कि ओमिक्रोन से संक्रमित मरीज 35-45 लोगों में संक्रमण फैलाएगा।


भारत में ओमिक्रोन का पहला मामला 2 दिसम्बर को सामने आया था और उसके बाद से मूल वायरस के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा तेज रफ्तार से फैल रहा है। दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रोन का सबसे पहले पता लगाने वाली 'साउथ अफ्रीकन मेडिकल एसोसिएशन' की अध्यक्ष डा. एंजेलिक कोएत्जी का भारत के संदर्भ में कहना है कि कोरोना वायरस के इस नए वेरिएंट के कारण यहां संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी दिखेगी। हालांकि, मौजूदा टीकों से इस रोग को फैलने से रोकने में निश्चित ही मदद मिलेगी।टीकाकरण नहीं कराने वाले लोगों को शत-प्रतिशत खतरा है। यही वजह है कि इस समय टीकाकरण पर बहुत ज्यादा जोर दिया जा रहा है और बहुत सारी सेवाओं में टीकाकरण प्रमाण पत्र को अनिवार्य किया जा रहा है। एंजेलिक कोएत्जी का कहना है कि यदि किसी व्यक्ति का टीकाकरण हो चुका है या जो व्यक्ति पहले भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुका है, उससे संक्रमण कम लोगों को फैलेगा और टीकाकरण नहीं कराने वाले लोग वायरस को संभवतः शत-प्रतिशत फैलाएंगे।


डा. एंजेलिक कोएत्जी के मुताबिक ओमिक्रोन उच्च संक्रमण दर के साथ तेजी से फैल रहा है, लेकिन अस्पतालों में गंभीर मामले अपेक्षाकृत कम हैं। यह बच्चों को भी संक्रमित कर रहा है और वे भी औसतन 5 से 6 दिन में ठीक हो रहे हैं लेकिन ओमिक्रोन भविष्य में अपना स्वरूप बदलकर अधिक घातक बन सकता है। अधिकांश विशेषज्ञों की भांति उनका भी यही मानना है कि टीकाकरण के अलावा कोविड सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन ओमिक्रोन संक्रमण को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। लापरवाहियों के चलते भारत कोरोना की दूसरी लहर के दौरान तबाही का जो मंजर देख चुका है, ऐसे में यदि चुनावी रैलियों में सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसी प्रकार भारी भीड़ जुटाई जाती रही तो डर यही है कि कहीं फिर से वही हालात न पैदा हों, जैसे मार्च-अप्रैल में चुनाव प्रचार के लिए पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम, पुडुचेरी राज्य विधानसभा चुनावों की रैलियों में जुटाई गई भारी भीड़ के चलते हुए थे। सवाल यह भी उठता है, जब भी ऐसे सवाल उठते हैं तो संबंधित राज्यों में नाइट कर्फ्यू जैसी पाबंदियां लगाकर कोरोना के खिलाफ सख्त कदम जैसी बातें दोहराई जाने लगती हैं लेकिन यह कैसी हास्यास्पद स्थिति है कि अधिकांश जगहों पर जहां रात में सड़कें पहले ही सुनसान रहती हैं, वहां कर्फ्यू और दिन में शादी-ब्याह जैसे समारोहों में 100-200 लोग, तो रैलियों में लाखों की भीड़ इकट्ठा करने की अनुमति होती है। अदालतें इसके लिए बार-बार फटकार लगाते हुए सचेत भी करती रही हैं किन्तु डर इसी बात का है कि कहीं महज कागजों तक ही सीमित कोरोना पाबंदियां तीसरी लहर को खौफनाक न बना दें।


-योगेश कुमार गोयल-

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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जिन्हें ईसा से नफ़रत है,'मसीहाई' वह क्या जानें

मानव इतिहास में ईसा मसीह का नाम प्रत्येक धर्म व जाति के लोगों द्वारा अत्यंत सम्मान से लिया जाता है। ईसाईयों का एक वर्ग ईसा को ईश्वर मानता है और प्रभु यीशु मसीह कहकर संबोधित करता है तो दूसरा वर्ग उन्हें ख़ुदा का बेटा इसलिये कहता है क्योंकि उनका जन्म अविवाहित व पवित्र मां मरियम के पेट से ईश्वरीय चमत्कार से हुआ था। उधर मुसलमानों में भी ईसा को इसलिये पूरा सम्मान दिया जाता है क्योंकि मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार धरती पर अवतरित होने वाले एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बरों में ईसा भी एक थे। उन्होंने मुहम्मद साहब से पहले अवतार लिया था। धार्मिक मान्यताओं व विश्वासों से इतर ईसा मसीह धरती पर मानवता के लिये आदर्श मानव रूप में अवतरित हुये। करुणा,क्षमा,प्रेम,सेवा,सत्कार,शिक्षा,ग़रीबों,निर्बल,दुर्बल,असहाय,बीमार व कुष्ठ लोगों की सेवा को ही वे सबसे बड़ा धर्म व कर्तव्य मानते थे। किसी परोपकारी अथवा उद्धार करने वाले को 'मसीहा' कहकर पुकारना ईसा के सेवा भाव का ही परिणाम है। आज भारत सहित पूरे विश्व में अनेकानेक शिक्षण संस्थान,अस्पताल,कुष्ठ रोगी अस्पताल,लावारिसों के लिये खुले 'होम्स' आदि तमाम लोकहितकारी संस्थायें व संस्थान इन्हीं 'ईसा '  के मानने वालों द्वारा संचालित किये जा रहे हैं जिसका लाभ ईसाई तो कम ग़ैर ईसाई ज़्यादा उठा रहे हैं। भारत में अकेली मदर टेरेसा ने ही लाखों ग़ैर ईसाई अपेक्षित,तिरस्कृत व प्रताड़ित लोगों को नया जीवन प्रदान किया। सेवा भाव में उनकी दूसरी मिसाल मौजूद नहीं। उनकी इन्हीं सेवाओं के लिये उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया था। 


परन्तु  हर समय आँखों पर संप्रदायवाद का चश्मा लगाये रखने वालों को मानवता के प्रति इनकी सेवा,इनका त्याग व बलिदान नज़र नहीं आता। इन्हें सिर्फ़ यह दिखाई देता है कि चूँकि यह ईसाई संस्थायें हैं लिहाज़ा यह सारी सेवायें लोगों का धर्म परिवर्तन कराने के लिये ही की जाती हैं। सांप्रदायिकता की नज़रों से हर चीज़ को देखने वाले इन लोगों को यह भी बताना चाहिये कि मिशनरीज़ द्वारा चलाये जा रहे इन्हीं स्कूल व कॉलेज से शिक्षित होकर निकले करोड़ों छात्रों में से अब तक कितने छात्रों ने धर्म परिवर्तन किया और मिशनरीज़ संचालित अस्पतालों से स्वास्थ्य लाभ पाने वाले कितने मरीज़ों ने धर्म परिवर्तन किया ? इन्हें ईसा से भी दुश्मनी है,माँ मरियम से भी और अब तो गत 25 दिसंबर को हमारे देश में आगरा में तोहफ़े बांटने के प्रतीक सेंटा क्लॉज़ का भी पुतला यह कहकर फूँक दिया गया कि 'धर्म परिवर्तन हेतु लालच देने के लिये सेंटा क्लॉज़ तोहफ़े बांटता है'। क्या पूरे विश्व में और इस परंपरा की शुरुआत से ही सेंटा क्लॉज़ धर्म परिवर्तन हेतु तोहफ़े बांटता है ? विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों ने वाराणसी में भी सेंटा क्लॉज़ का पुतला फूंकने की योजना बनाई थी जिन्हें पुलिस ने नज़रबंद कर दिया क्योंकि पुलिस को कार्यक्रम की ख़बर पुतला दहन से पहले ही लग गई थी।


गत 25 दिसंबर को तो हरियाणा का अंबाला जिला भी इन संप्रदायिकतावादियों की चपेट में आ गया। अंबाला ज़िले की गिनती आम तौर  पर देश के शांतिप्रिय ज़िलों में की जाती है। साम्प्रदायिक दंगों अथवा धर्म जाति आधारित नफ़रत अथवा संघर्ष का भी इस ज़िले अथवा शहर का कोई इतिहास नहीं है। परन्तु पिछले दिनों क्रिसमस के दिन अंबाला के इस शांतिपूर्ण वातावरण को न केवल अशांत करने का कुत्सित प्रयास किया गया बल्कि अंबाला को कलंकित भी कर दिया गया। अंबाला छावनी स्थित होली रिडीमर कैथोलिक चर्च के  बाहर लगी यीशु मसीह की मूर्ति को कुछ असामाजिक तत्वों ने खंडित कर दिया। 1843 में निर्मित यह चर्च अंबाला छावनी के सबसे प्राचीन भवनों में प्रमुख है। बताया जाता है कि 1948 में इटेलियन कैपुचिन की निगरानी में होली रिडीमर कैथोलिक चर्च का निर्माण किया गया था। अंबाला के इतिहास की इस तरह की यह पहली घटना है जिसकी वजह से यहां रहने वाले ईसाई समुदाय के लोगों में अपने व अपने धर्मस्थलों की सुरक्षा के प्रति चिंता को बढ़ा दिया है।


देश के अनेक राज्यों में चर्च में तोड़ फोड़ करने,आगज़नी करने,ईसा मसीह व मरियम की मूर्तियों को खंडित करने के समाचार अक्सर आते रहते हैं। जिन शिक्षिकाओं द्वारा मिशनरीज़ स्कूल्स में शिक्षा दी जाती है,जिन्हें नन्स  के नाम से जाना जाता है उनके साथ बलात्कार करने तक की दुःखद व शर्मनाक ख़बर सुनी जा चुकी है। क्या कोई धर्म यही सिखाता है कि जो हमारे बच्चों को शिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाये उसका इस आरोप में बलात्कार किया जाये कि वह धर्म परिवर्तन कराती है ? 1999 में ओड़िसा के मनोहरपुर क्षेत्र में इन्हीं क्रूर सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्रहम स्टेंस व उनके दस वर्षीय पुत्र फ़्लिप व छः वर्षीय पुत्र टिमोथी, तीनों को सोते समय उन्हीं के वाहन में ज़िंदा जला दिया गया था। उस समय भी पूरी दुनिया में देश की बहुत बदनामी हुई थी। आज उसी मनोहरपुर के लोग प्रतिदिन ग्रहम स्टेंस व उनके बच्चों की याद में शोक मनाते आ रहे हैं।


भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफ़ग़ानिस्तान जैसे कई देश हैं जहां सक्रिय सांप्रदायिकतावादी शक्तियां जो स्वयं किसी का कल्याण नहीं कर सकतीं,जिन्हें दया करुणा प्रेम,अहिंसा,सहयोग,परोपकार पर नहीं बल्कि नफ़रत,हिंसा,क्रूरता पर यक़ीन है वही लोग किसी भी धर्म के किसी भी आराध्य अथवा महापुरुष के दुश्मन बने बैठे हैं। नफ़रत,वैमनस्य संभवतः इनके संस्कारों में शामिल है। अन्यथा मंदिर-मस्जिद-चर्च व गुरुद्वारों ने बनाने के सिवा किसी का बिगाड़ा ही क्या है ? यह धर्मस्थल व महापुरुष हमेशा से संपूर्ण मानवता के लिये प्रेरणादायी रहे हैं। किसी भी धर्म का सच्चा अनुयायी अपने दिल में किसी भी धर्म के किसी भी धर्मस्थल अथवा महापुरुष के प्रति बैर नहीं रख सकता। भारतवासियों का विशेषकर यह स्वभाव है तभी तो यह देश पूरी दुनिया में अनेकता में एकता का प्रतीक समझा  जाता है। परन्तु जिन्हें जिन्हें ईसा से नफ़रत है,मसीहाई वह क्या जानें। 


-निर्मल रानी-





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गहलोत ने फिर दिखाई जादूगरी, आलाकमान को खुश कर पायलट को कर दिया किनारे

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी जादूगरी से कांग्रेस आलाकमान को खुश कर दिया है। राजस्थान की राजनीति में उनके विरोधी माने जाने वाले सचिन पायलट व उनके समर्थकों को गहलोत किनारे लगाने में सफल रहे हैं। राजनीति में आने से पहले अशोक गहलोत जादूगरी के पेशे से जुड़े हुए थे। उनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत अपने जमाने के जाने-माने जादूगर थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी जादू की कला विरासत में मिली थी। हालांकि अशोक गहलोत जादूगरी के क्षेत्र में तो नहीं गए। मगर समय-समय पर अपनी जादूगरी दिखाकर राजनीति के क्षेत्र में वह लगातार ऊंची सीढ़ियां चढ़ते चले गए।


तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर काम कर रहे अशोक गहलोत छात्र जीवन से ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। उस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हरिदेव जोशी और परसराम मदेरणा के सानिध्य में उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाई। 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत कर इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उप मंत्री बने। गहलोत राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में भी राज्य मंत्री रहे। तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस सेवा दल के अध्यक्ष रह चुके अशोक गहलोत जैसे-जैसे राजनीति की ऊंची सीढ़ियां चढ़ते गए वैसे-वैसे एक-एक कर अपने विरोधी नेताओं का सफाया करते गये।


1998 में वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा को मात देकर पहली बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत ने उसी कार्यकाल में परसराम मदेरणा, शिवचरण माथुर, पंडित नवल किशोर शर्मा, हीरालाल देवपुरा, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, जगन्नाथ पहाड़िया, कमला, बनवारी लाल बैरवा, रामनारायण चौधरी जैसे बड़े नेताओं को एक-एक कर किनारे लगा दिया। उसके बाद गहलोत राजस्थान कांग्रेस को अपने इर्द-गिर्द घुमाने लगे। 2008 के विधानसभा चुनाव में भी राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था। इसके उपरांत भी अशोक गहलोत ने बसपा के विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवा कर अपनी सरकार बना ली थी।


2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के साथ ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। हर किसी का मानना था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे। क्योंकि 2013 का विधानसभा चुनाव अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते उनके नेतृत्व में लड़ा गया था। जिनमें कांग्रेस को महज 21 सीटें ही मिल पाई थीं। राजस्थान में कांग्रेस बहुत कमजोर स्थिति में थी। कार्यकर्ता हताश, निराश थे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह से गिरा हुआ था। उस समय कांग्रेस आलाकमान ने युवा नेता सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना कर कांग्रेस को फिर से एक बार फिर नए सिरे से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। सचिन पायलट ने पूरी सक्रियता से प्रदेश में दौरे कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया था। मगर मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तब अशोक गहलोत एक बार फिर अपनी जादूगरी दिखाते हुए बाजी पलट कर खुद मुख्यमंत्री बन गए। उस समय सचिन पायलट को मात्र उप मुख्यमंत्री बनकर ही संतोष करना पड़ा था।


2018 में गहलोत के मुख्यमंत्री बनने की जरा भी संभावना नहीं थी। मगर अशोक गहलोत दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान को अपने विश्वास में लेकर मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हो गए। उस समय कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायकों को आश्वस्त किया था कि आधे कार्यकाल के बाद पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। मगर आधा कार्यकाल बीतने से पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के सामने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी कि उनको गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करनी पड़ी। अशोक गहलोत इसी मौके की तलाश में थे। उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से सचिन पायलट व उनके समर्थक सभी मंत्रियों को पद से बर्खास्त करवा दिया।


यहां तक कि सचिन पायलट को भी उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त करवा दिया था। एक समय तो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी गई थी कि पायलट व उनके समर्थक विधायकों का कांग्रेस से निष्कासन होना तय लग रहा था। मगर ऐन वक्त पर पायलट ने बदली हुई परिस्थितियों को देखकर कांग्रेस आलाकमान के सामने सरेंडर कर दिया था। सचिन पायलट इन दिनों फिर से कांग्रेसी आलाकमान के नजदीक होकर मुख्यमंत्री बनने का दांव चल रहे थे। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व महासचिव प्रियंका गांधी भी पायलट के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे।


कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर पायलट समर्थक विधायकों को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल करने को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। हालांकि गहलोत ने सवा साल के टालमटोल के बाद पायलट समर्थक चार विधायकों को मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किया। यहां भी गहलोत के सख्त रुख के कारण भारी आरोपों के बावजूद किसी भी मंत्री को हटाया नहीं गया। कांग्रेस आलाकमान के समक्ष गहलोत किसी भी मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाने पर सहमत नहीं हुए थे। जिन मंत्रियों को आरोपों के चलते हटाने के कयास लगाए जा रहे थे। मंत्रिमंडल विस्तार में उनमें से कइयों को तो पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया।


पायलट के लगातार बढ़ते दबाव को कम करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस की एक बड़ी सफल रैली करवा कर अपनी ताकत का इजहार कर दिया है। कांग्रेस की रैली में लाखों की भीड़ जुटाकर मुख्यमंत्री गहलोत ने आलाकमान को दिखा दिया कि राजस्थान में आज भी वही सबसे बड़े लोकप्रिय नेता हैं, जो अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिला सकते हैं। जयपुर की रैली में कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी, केसी वेणुगोपाल, कमलनाथ, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित सभी बड़े नेता शामिल हुए थे। हालांकि रैली को सोनिया गांधी ने तो संबोधित नहीं किया था। मगर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। रैली की सफलता से सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी तीनों ही अभिभूत नजर आ रहे थे। रैली की सफलता के बाद कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अगले दो साल तक मुख्यमंत्री के रूप में फ्री हैंड देने के मूड में लग रहा है। कांग्रेसी हलकों में चर्चा है कि रैली की सफलता से अशोक गहलोत की पांचों अंगुलियां घी में हो गई हैं। एक तरफ जहां कांग्रेस आलाकमान उनसे खुश नजर आ रहा है। वहीं अगले दो साल तक वह अपने तरीके से मुख्यमंत्री के रूप में काम करेंगे। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। इससे गहलोत के विरोधी नेताओं के भी धीरे-धीरे सुर बदलने लगे हैं। अब वह गहलोत के समक्ष शरणागत होने लगे हैं। हालांकि चुनाव के मामले में मुख्यमंत्री गहलोत का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत 2003 के विधानसभा चुनाव में मात्र 56 सीटों पर व 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र 21 सीटों पर ही कांग्रेस को जिता पाए थे। मगर मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस आलाकमान का पलड़ा गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाये रखने के पक्ष में नजर आ रहा है। जो गहलोत के लिए बड़ी राहत की बात है।


-रमेश सर्राफ धमोरा-

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)



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प्रगति पर डिजिटल भारत अभियान

अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में सुशासन की स्थापना की थी। उन्होंने पारदर्शी तरीके से सरकार चलाई। उनकी सरकार जब बहुमत से केवल एक कदम पीछे थी,तब भी उन्होंने अनुचित प्रबंधन से सरकार बचाने का प्रयास नहीं किया था।


वस्तुतःयह उनकी विचारधारा और सार्वजनिक जीवन शैली के अनुरूप था, जिसमें निजी हितों का कोई महत्व नहीं था। उन्होंने अपने शासनकाल में भारत में टेलीकॉम क्रांति की शुरुआत की थी। टेलीकॉम से संबंधित सभी मामलों को तेजी से निपटाया गया। ट्राई की सिफारिशें लागू की गईं। स्पैक्ट्रम का आवंटन इतनी तेजी से हुआ कि मोबाइल के क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी जयंती पर एक करोड़ विद्यार्थियों को स्मार्टफोन और टैबलेट देने की योजना का शुभारंभ किया। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ईकाना स्टेडियम में अटल जयंती पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें एक लाख युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट का तोहफा दिया गया।


राजनीति और राजनीति शास्त्र दोनों अलग क्षेत्र हैं। राजनीति में सक्रियता या आचरण का बोध होता है, राजनीति शास्त्र में ज्ञान की जिज्ञासा होती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने इन दोनों क्षेत्रों में समान रूप से आदर्श का पालन किया। राजनीति में आने से पहले वह राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी थे। कानपुर के डीएवी कॉलेज में नई पीढ़ी भी उनकी यादों का अनुभव करती है। अटल जी उन नेताओं में शुमार थे,जिनके कारण किसी पद की गरिमा बढ़ती है। वह बहुत होनहार विद्यार्थी थे। विद्यार्थियों को स्मार्टफोन और टैबलेट में पढ़ाई के लिए कंटेंट मिलेगा। साथ ही रोजगार से संबंधित जानकारियां भी दी जाएंगीं। इस अवसर पर योगी अदित्यनाथ ने डिजि शक्ति पोर्टल और डिजि शक्ति अध्ययन ऐप को लांच किया। सभी स्मार्टफोन और टैबलेट में डिजि शक्ति अध्ययन ऐप इंस्टाल है। इसके माध्यम से संबंधित यूनिवर्सिटी या डिपार्टमेंट छात्रों को पढ़ाई के लिए कंटेंट देंगे। साथ ही शासन की ओर से बूट लोगो और वाल पेपर के माध्यम से रोजगारपरक योजनाओं आदि की भी जानकारी दी जाएगी। सरकार की ओर से नामी आईटी कंपनी इंफोसिस से अनुबंध किया जा रहा है। इससे इंफोसिस के शिक्षा और रोजगार से जुड़े करीब चार हजार प्रोग्राम निःशुल्क युवाओं को उपलब्ध होंगे। जिन युवाओं का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया है,उन युवाओं का डिजि शक्ति पोर्टल पर फिर से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है।


लखनऊ अटल जी कर्मभूमि रही है। उनका कहना था कि छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। इसलिए छोटा मन हमें नहीं रखना चाहिए। इसलिए विराट सोच के साथ खड़ा होने का जज्बा होना चाहिए। इस जज्बे के साथ जब हमारा युवा खड़ा होगा तो वह ही नहीं सम्पूर्ण देश मजबूती से आगे बढ़ेगा। मुख्यमंत्री ने योगी आदित्यनाथ ने समझा कि प्रदेश के बच्चे स्मार्ट फोन और टैबलेट के अभाव में पढ़ाई के लिए परेशान होते थे। इसलिए विद्यार्थियों के हित में यह निर्णय लिया। योगी आदित्यनाथ ने युवाओं से सोच ईमानदार तो काम दमदार का नारा भी लगवाया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने देश के शिक्षा विभाग की ओर से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि कोरोना कॉल में पूरी दुनिया की मेधा चहारदीवारी में कैद हो गयी। ऐसे समय में स्मार्टफोन और टैबलेट पर ही पूरी दुनिया काम करने लगी। पठन-पाठन से लेकर अन्य कार्य डीजिटल माध्यम से हुआ। अब उत्तर प्रदेश को एक नम्बर पर लाने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। अटल जी ने छह दशक तक देश की राजनीति को पूरी शुचिता एवं पारदर्शिता के साथ नई दिशा देने का कार्य किया। वह सार्वजनिक जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणादायी बना रहेगा। अटल जी का कहना था कि राजनीति सिद्धान्त विहीन नहीं होनी चाहिए, व्यक्ति को मूल्यों और सिद्धान्तों के साथ जीना चाहिए। देश समाज व सिद्धान्तों के लिए जीने वाले व्यक्ति का जीवन ही सार्थक और प्रेरणादायी होता है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विराट सोच व्यक्तित्व को भी विराटता प्रदान करती है। युवाओं को हताशा और निराशा से मुक्त होकर विराट सोच के प्रयास करने चाहिये। इसके लिए सात वर्ष पूर्व चालीस करोड़ गरीबों के जनधन बैंक खाते खुलवाए गए। वर्ष पूर्व स्टार्ट अप इण्डिया, स्टैण्ड अप इण्डिया, डिजिटल इण्डिया आदि योजनाएं प्रारम्भ की गईं।कोरोना कालखण्ड में जनधन खातों सहित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गरीबों की सहायता करना संभव हुआ। मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के अन्तर्गत प्रतियोगियों के लिए निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की गई। निकट भविष्य में प्रत्येक जनपद स्तर पर भी यह कोचिंग संस्थान प्रारम्भ किए जाएंगे। एक जनपद एक उत्पाद योजना लागू की गई। परिणामस्वरूप डेढ़ करोड़ से अधिक युवाओं को राज्य में ही उद्योगों में रोजगार प्राप्त हुआ है। स्वरोजगार हेतु संचालित योजनाओं,विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना आदि के माध्यम से साठ लाख युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा गया। पांच वर्ष पहले प्रदेश में बेरोजगारी दर लगभग अठारह प्रतिशत थी। यह अब घटकर लगभग साढ़े चार प्रतिशत रह गयी है। इसके अलावा अटल जी की जयंती पर योगी आदित्यनाथ ने आगरा में उनके पैतृक गांव बटेश्वर धाम में सांस्कृतिक संकुल घाटों का निर्माण,पर्यटन विकास एवं सौन्दर्यीकरण सहित दो सौ तीस करोड़ रुपये की ग्यारह योजनाओं का शिलान्यास लोकार्पण किया। इसमें बटेश्वर धाम में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी सांस्कृतिक संकुल का शिलान्यास प्रमुख रूप से शामिल है। 


उन्होंने वर्तमान सरकार ने सत्ता में आने पर प्रत्येक विद्यालय में संस्कृत के अध्यापकों की तत्काल तैनाती कराए जाने का निर्णय लिया। यह सुनिश्चित किया कि वहां योग्यतम आचार्य रखे जाएं। इसके अलावा, संस्कृत के बच्चों को छात्रावास में रहने की व्यवस्था करायी जाए। सरकार ने संस्कृत की शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करायी। इससे किसी भी छात्र और आचार्य को भटकना नहीं पड़ेगा। केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा अटल जी की स्मृति में अनेक कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। अटल जी के नाम पर प्रदेश की पहली मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ में स्थापित की जा चुकी है। प्रत्येक मण्डल में अटल आवासीय विद्यालय बनाए जा रहे हैं। श्रमिकों के बच्चों तथा अनाथ बच्चों को उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिए इन आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जा रही है। अटल जी के नाम पर चवालीस इण्टर कॉलेज का निर्माण हो चुका है। प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय में अटल सुशासन पीठ, अटल स्मृति उपवन, अटल बिहारी वाजपेयी संस्कृति पुरस्कार, डीएवी कॉलेज कानपुर में अटल बिहारी वाजपेयी सेण्टर ऑफ एक्सीलेंस,बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ में भी अटल बिहारी वाजपेयी पीठ,लखनऊ में अटल राष्ट्र प्रेरणा स्थल की स्थापना की गई है। इसके अलावा, प्रदेश के सबसे बड़े स्टेडियम का नाम अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम रखा गया है। प्रदेश सरकार ने विभिन्न परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। अटल जी की स्मृति में केन्द्र सरकार द्वारा देश में अटल भूजल योजना, अटल ज्योति योजना, अटल पेंशन योजना, अटल नवीनीकरण और शहरी रूपान्तरण मिशन अमृत योजना संचालित की जा रही हैं। प्रदेश सरकार अटल जी की भावनाओं के अनुरूप बटेश्वर,फतेहपुर सीकरी और बाह क्षेत्र के विकास के लिए पूरी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार अटल जी की भावनाओं के अनुरूप इस क्षेत्र को पर्यटन विकास के लिए एक सुन्दरतम पावन धाम के रूप में विकसित करने के लिए हर प्रकार का सहयोग करेगी। यहां अटल जी नाम पर एक म्यूजियम अटल म्यूजियम की स्थापना की जाएगी। जिसमें उनके पूर्वजों और उनके बचपन से लेकर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकार की योजनाओं को जोड़ते हुए इन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाएगा।


-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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संत क्यों करें हिंदुत्व की बदनामी?

देश के कुछ शहरों से ऐसे बयानों और घटनाओं की खबरें देखकर चिंता हुई, जिन्हें सख्ती से नहीं रोका गया तो वे भारत में सामाजिक कोहराम मचा सकती हैं। सच पूछा जाए तो वे भारत और हिंदुत्व, दोनों की बदनामी का कारण बन सकती हैं।


पहले हम यह देखें कि वे क्या हैं? हरिद्वार में निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा और हिंदू महासभा के नेता धर्मदास ने इतने आपत्तिजनक बयान दिए हैं कि अब पुलिस उनके खिलाफ बाकायदा जांच कर रही है। उनमें से एक ने कहा है कि हिंदू लोग किताबों को कोने में रखें और मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाएं। दूसरे ने कहा कि भारत में बसे पाकिस्तानियों की वजह से हिंदू पूजा-पाठ में बाधा होती है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जैसे लोगों का वध कर दिया जाना चाहिए। यह कितने शर्म की बात है। एक और 'हिंदू संत' ने कहा है कि इस समय भारत में श्रीलंका के तमिल आतंकवादी प्रभाकरन और भिंडरावाले जैसे लोगों की ज्रऊरत है।


इसी तरह के लोगों ने अंबाला के एक प्रसिद्ध और पुराने गिरजाघर में घुसकर ईसा मसीह की मूर्ति को तोड़ दिया। गुड़गांव में भी गिरजे में घुसकर तथाकथित हिंदूवादियों ने क्रिसमस के उत्सव को भंग कर दिया। ऐसा ही पिछले साल असम में कुछ लोगों ने किया था। रायपुर में आयोजित धर्म-संसद में अधर्म की कितनी घृणित बात हुई है। इस संसद में 20 संप्रदायों के मुखिया और कांग्रेस व भाजपाई नेताओं ने भी भाग लिया था। उनमें से ज्यादातर लोगों के भाषण तो संतुलित, मर्यादित और धर्मसंगत थे लेकिन अपने आपको हिंदू संत बतानेवाले दो वक्ताओं ने ऐसे भाषण दिए, जिन्हें सुनकर सारी संताई चूर-चूर हो जाती है। एक 'संत' ने गांधीजी की हत्या को ठीक बताया और नाथूराम गोड़से की तारीफ की। उन्होंने मुसलमानों पर इल्जाम लगाया कि वे भारत की राजनीति को काबू करने में लगे हुए हैं। किसी अन्य 'संत' ने हिंदुओं के शस्त्रीकरण की भी वकालत की। उन्होंने सारे धर्म-निरपेक्ष लोगों को 'हिंदू विरोधी' बताया।


पता नहीं, ये संत लोग कितने पढ़े-लिखे हैं? क्या उन्हें पता नहीं है कि हमारे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री और सभी सांसद उस संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं, जो धर्म-निरपेक्ष है? ये लोग अपने आपको संत कहते हैं तो क्या इनका बर्ताव संतों की तरह है? ये तो अपने आपको उग्रवादी नेताओं से भी ज्यादा नीचे गिरा रहे हैं। ये समझते हैं कि ऐसी उग्रवादी और हिंसक बातें कहकर वे हिंदुत्व की सेवा कर रहे हैं लेकिन भारत के मुट्ठीभर हिंदू भी उनसे सहमत नहीं हैं। उनके ऐसे निरंकुश बयानों से हमारे देश के मुसलमानों और ईसाइयों में भय और कट्टरता का संचार होता है। अपने तथ्यों और तर्कों के आधार पर किसी भी मजहब या संप्रदाय की समालोचना करने में कोई बुराई नहीं है, जैसे कि महापंडित महर्षि दयानंद किया करते थे लेकिन घृणा और हिंसा फैलाने से बड़ा अधर्म क्या है?


-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)





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फसलों के लिए अमृत है मावठ की बूंदें

उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्सों में सर्दी की बरसात यानी की मावठ का दौर चल रहा है। आसमान से एक एक बूंद अमृत बन कर टपक रही है तो यह रबी की फसलों को नया जीवन दे रही है।


हालांकि सर्दी के तेवर तीखे होने के साथ ही जन-जीवन प्रभावित होने लगा है। कोरोना के नए दैत्यावतार ओमिक्रान के कारण अवश्य चिंता बढ़ रही है। फिर भी दो राय नहीं कि राजस्थान सहित समूचे उत्तरी भारत में सर्दी की मावठ से किसानों के चेहरे खिल गए हैं। इस समय रबी का सीजन चल रहा है। अच्छे मानसून के कारण देश में रबी फसलों का रकबा बढ़ रहा है। रबी फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। खासतौर से गेहूं की फसल के लिए समय पर सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। राजस्थान आदि प्रदेशों में सरसों की फसल के लिए जहां पानी की आवश्यकता पूरी होगी, वहीं चने की फसल को भी बड़ी राहत मिलेगी। बागवानी फसलों में मटर, गाजर मूली आदि इससे फलेंगी-फूलेंगी। हालांकि आज गांव-गांव में बिजली उपलब्ध होने से किसान पूरी तरह तो मावठ पर निर्भर नहीं रहते पर तेज सर्दी के साथ मावठ एवं बूंदाबांदी से काश्तकारों को बड़ी राहत मिलती है। किसानों को बड़ा फायदा जहां बिजली आने की प्रतीक्षा में कड़ाके की ठण्ड में खेतों की जुताई करने से राहत मिली है, वहीं बिजली के बिल पर होने वाले खर्चे से भी प्रकृति की मावठ के कारण छुटकारा मिल गया है। मावठ की बरसात का सीधा पर्यावरणीय लाभ फसलों को मिलता है और खेत लहलहा उठते हैं। इसके साथ ही सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होने से पानी का दोहन सीमित हो जाता है। इस तरह से देखा जाए तो मावठ की यह बरसात बहुत ही लाभकारी सिद्ध होती है।


रबी फसल के समय बिजली की मांग बढ़ जाने से विद्युत वितरण निगमों को भी बिजली की व्यवस्था करने के लिए दो चार होना पड़ता है। पिछले दिनों देशव्यापी कोयला संकट के कारण बिजली निगम अभी पूरी तरह से सामान्य स्थिति में नहीं आ पाए हैं। विदेशों से आयातित कोयला भी बहुत अधिक महंगा होने से बिजली निगमों के पास दोहरा संकट हो गया है। विदेशों से आयात करने वाले निजी प्लेयर्स अब कोल इंडिया पर ही निर्भर हो गए हैं, तो इससे कोयले की मांग बढ़ गई है। किसानों को फसल के लिए समय पर बिजली उपलब्ध कराना सरकारों की प्राथमिकता होती है। यहां तक कि महंगी बिजली खरीद कर भी काश्तकारों को उपलब्ध करानी पड़ती है। इतना करने के बाद भी बिजली वितरण के समय या अन्य किसी कारण से व्यवधान के कारण किसानों का आक्रोश भी क्षेत्र में देखने को मिल जाता है। इसलिए देखा जाए तो किसान ही नहीं अपितु सभी के लिए सर्दी की मावठ राहत लेकर आती है। सर्दी की मावठ, बून्दा-बान्दी व बरसात से फसलोें को पानी मिलने से करोड़ों रुपये की बिजली की बचत हो जाती है। इसके साथ ही जल दोहन भी बच जाता है। ऐसे में सर्दी के अमृत जल मावठ का स्वागत किया जाना चाहिए।


इसमें कोई दो राय नहीं कि कड़ाके की सर्दी से जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। फिर कोरोना का दौर चल रहा है सो अलग। ऐसे में सर्दी से बचाव भी एक बड़ी आवश्यकता हो जाती है। इस मौसम में सर्दी जनित बीमारियां भी बढ़ती हैं और इसके साथ ही बुजुर्गों के लिए सर्दी का मौसम थोड़ा तकलीफदेह हो जाता है पर इसका हल सर्दी से बचाव के तरीके अपना कर किया जा सकता है। कहा जाता है कि सर्दी का मौसम स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा मौसम होता है। इस मौसम में जीवंतता होती है। आप अच्छा खा-पी सकते हैं, अच्छा पहन सकते हैं। यही कारण है कि सर्दी में खान-पान पर विशेष जोर दिया जाता है।


प्रकृति की मेहरबानी से सर्दी की मावठ किसानों के लिए वरदान बन कर आई है। हमें जरूर दो चार दिन की सर्दी की तकलीफ भुगतनी पड़ेगी पर अन्नदाता किसानों और देश के बिजली निगमों को निश्चित रूप से यह राहत का समय है। करोड़ों रुपये की बिजली की बचत होगी और खेतों में फसलें फल फूल सकेंगी। अरबों रुपयों का कोयला बचेगा तो किसानों की फसल पर लागत कम होगी। इस कोरोना के दौर में तो अर्थ व्यवस्था में खेती किसानी की भूमिका विशेष रूप से रेखांकित हुई है। ऐसे में प्रकृति के इस उपहार का स्वागत करना चाहिए।


-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा-

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)



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ओमिक्रॉन और सेवाओं का निर्यात

कोविड के ओमिक्रॉन वैरिएंट के उत्पन्न होने से एक बार पुनः विश्व अर्थव्यवस्था पर संकट आ पड़ा है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर लॉकडाउन की स्थिति बन रही है। ऐसी स्थिति में जो देश दूसरे देशों से कच्चे माल के आयात अथवा उत्पादित माल के निर्यात पर निर्भर रहते हैं, उनका संकट बढ़ जाता है। हाल में एक कार निर्माता के एजेंट ने बताया कि अपने देश में गाडि़यों की खरीद की इस समय लगभग 6 से 8 महीने की वेटिंग लिस्ट हो गई है। कारण यह है कि कार के उत्पादन में लगने वाला एक छोटा सा ‘सेमी कंडक्टर’, जिसका मूल्य मात्र 2000 रुपए है, वह भारत में नहीं बन रहा है और उसका आयात भी नहीं हो पा रहा है क्योंकि निर्यात करने वाले देशों में कोविड का संकट आ पड़ा है। इससे दिखाई पड़ता है कि कोविड के कारण उत्पादित माल का विश्व व्यापार संकट में है। यदि एक भी कच्चा माल उपलब्ध नहीं हुआ तो पूरा उत्पादन ठप्प हो जाता है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की पत्रिका ‘फाइनांस एंड डेवलोपमेंट’ में एक लेख में कहा गया है कि कोविड संकट के कारण तमाम देश उत्पादित माल वैश्वीकरण से पीछे हटेंगे। इसी क्रम में अपने देश में दवाओं के उद्योग पर भी वर्तमान में संकट है क्योंकि चीन से आयातित होने वाले कुछ कच्चे माल उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी तरफ हमारे निर्यात भी संकट में हैं क्योंकि इंग्लैंड और नीदरलैंड जैसे देशों में कोविड के कारण लॉकडाउन की स्थिति बन रही है और उनके द्वारा हमारा माल खरीदा नहीं जा रहा है।


 इन संकटों की विशेषता यह है कि ये माल अथवा भौतिक वस्तुओं के व्यापार से उत्पन्न हुए हैं जैसे सिलिकान चिप या दवा के कच्चे माल जिनकी ढुलाई एक देश से दूसरे देश में समुद्री जहाज अथवा हवाई जहाज से करनी होती है। माल का भौतिक उत्पादन जिस देश में होता है, यदि वह देश निर्यात न कर सके तो आयात करने वाले दूसरे देश पर संकट आ पड़ता है। इसलिए कोविड के कारण सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। तुलना में सेवा क्षेत्र की स्थिति अच्छी है। कारण यह कि सेवाएं जैसे ऑनलाइन ट्यूशन, टेली मेडिसिन, अनुवाद, सिनेमा, संगीत, साफ्टवेयर इत्यादि के माल की ढुलाई समुद्री अथवा हवाई जहाज से करने की जरूरत नहीं होती है। इसकी ढुलाई इंटरनेट के माध्यम से हो सकती है। अतः किसी देश में यदि लॉकडाउन लगा भी है तो कर्मी अपने घर में बैठकर इंटरनेट से इनका उत्पादन और सप्लाई अनवरत कर सकते हैं। इसलिए वर्तमान ओमिक्रॉन के संकट को देखते हुए हमें भी सेवा क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है। मैन्युफैक्चरिंग और सेवा में दूसरा मूल अंतर सूर्योदय और सूर्यास्त का है। आज औद्योगिक देशों में सेवा क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में हिस्सा लगभग 90 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग का 9 प्रतिशत और कृषि का मात्र एक प्रतिशत है। भारत में इस समय सेवा लगभग 60 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग लगभग 25 प्रतिशत और कृषि 15 प्रतिशत है। दोनों की तुलना करने से स्पष्ट है कि अपने देश में भी सेवा का हिस्सा 60 प्रतिशत से आगे बढ़ेगा तो मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा 25 प्रतिशत से घटेगा अथवा हम कह सकते हैं कि सेवा क्षेत्र में सूर्योदय होगा जबकि मैन्युफैक्चरिंग में सूर्यास्त रहेगा।


 इस परिस्थिति में विश्व बाजार में सेवाओं जैसे ऑनलाइन ट्यूशन की मांग में वृद्धि होगी जबकि उत्पादित माल की मांग में तुलना में कम वृद्धि होगी अथवा गिरावट भी हो सकती है। जाहिर है कि जिस क्षेत्र में मांग बढ़ने की संभावना है, उस क्षेत्र में यदि हम प्रवेश करेंगे तो अपने माल को आसानी से बेच पाएंगे। सूर्यास्त वाले क्षेत्र में हमको अपना माल बेचने में आगे तक कठिन समस्याएं आएंगी। सेवा और मैन्युफैक्चरिंग का तीसरा अंतर है कि मैन्युफैक्चरिंग में उत्तरोत्तर रोबोट और ऑटोमैटिक मशीनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। इतना सही है कि सेवा क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी रोजगार में गिरावट आ सकती है। लेकिन सेवा के तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जिनका काम कम्प्यूटर से नहीं हो सकता है जैसे ऑनलाइन ट्यूशन को लें। यदि जर्मनी में बैठे किसी युवा को आपको गणित की शिक्षा देनी है तो वह सॉफ्टवेयर प्रोग्राम से कम ही सफल होगी। उसके लिए सामने एक अध्यापक बैठा होना चाहिए जो छात्र अथवा छात्रा के प्रश्नों का उत्तर दे सके और उनकी कठिनाइयों का निवारण कर सके। लगभग एक दशक पूर्व एनिमेटेड फिल्मों का जोर था। कम्प्यूटर से बनाई गई फिल्में कुछ आईं। समयक्रम में अब इनका चलन समाप्त होने लगा है और आज एनिमेटेड सिनेमा का उत्पादन कम हो रहा है। इसका अर्थ यह है कि कुछ विशेष सेवा क्षेत्रों को छोड़ दें तो ऑनलाइन ट्यूशन जैसे तमाम स्थान हैं जहां कम्प्यूटर अथवा रोबोट मनुष्य का स्थान नहीं ले सकेंगे। इसलिए सेवा क्षेत्र तुलना में सुरक्षित रहेगा। चौथा अंतर यह है कि अपने देश में प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है। प्रति हेक्टेयर भूमि में हमारी जनसंख्या दूसरे देशों की तुलना में अधिक है। अपने देश में कोयला, बिजली और अन्य खनिज भी दूसरे देशों की तुलना में कम ही पाए जाते हैं। मैन्युफैक्चरिंग में इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अधिक होता है।


 जैसे आपको स्टील बनाने के लिए कोयला और लौह खनिज की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। यदि आपके पास कोयला नहीं है तो आपको उसका आयात करना होगा और जो कि महंगा पड़ेगा और आयातित कोयले से आपके द्वारा निर्मित स्टील महंगा पड़ेगा। ये 4 कारण बताते हैं कि आने वाले समय में सेवा क्षेत्र में हमारी स्थिति अच्छी हो सकती है। पहला कि मैन्युफैक्चरिंग का वैश्वीकरण पीछे हटेगा, दूसरा सेवा क्षेत्र का हिस्सा उत्तरोत्तर बढ़ रहा है, तीसरा सेवा क्षेत्र में रोजगार तुलना में सुरक्षित हैं और चौथा सेवा क्षेत्र के लिए प्रमुख कच्चा माल शिक्षा है जो हमारे पास उपलब्ध है और प्राकृतिक संसाधनों का अपने यहां अभाव है। इन चारों कारणों को देखते हुए हमको ओमिक्रॉन वैरिएंट का सामना करने के लिए उत्पादित माल के निर्यात के स्थान पर सेवाओं के निर्यात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह आश्चर्य की बात है कि इन तमाम तथ्यों के बावजूद सरकार का ध्यान उत्पादित माल के निर्यात पर ही अधिक दिखता है। इसका एकमात्र कारण यह दिखता है कि उत्पादित माल की फैक्टरी लगाने में जमीन का आवंटन, बिजली का कनेक्शन, पोलूशन का अनापत्ति पत्र, जंगल काटने की स्वीकृति, ड्रग लाइसेंस, फूड प्रोडक्ट का लाइसेंस इत्यादि, तमाम सरकारी लाइसेंसों की जरूरत पड़ती है जिसमें नौकरशाही को भारी लाभ होता है। इसलिए सरकार को विचार करना चाहिए कि क्या वह नौकरशाही के हितों की रक्षा करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग को ही बढ़ाएगी अथवा जनता के हित साधने के लिए सेवाओं के निर्यात पर विशेष ध्यान देगी? यह आज की चुनौती है।


-भरत झुनझुनवाला-









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