वेटिकन में आज पैपल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन नए पोप का चयन हो गया। 69 साल के रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को नया पोप चुन लिया गया है। वो अमेरिका से पोप बनने वाले पहले कार्डिनल हैं। उन्होंने अपने लिए पोप लियो-14 नाम चुना है।
133 कार्डिनल्स ने वोटिंग के जरिए दो-तिहाई बहुमत (89 वोट) से उन्हें पोप चुना। 1900 के बाद से यह पांचवां मौका है जब नए पोप को दो दिनों में चुन लिया गया।
वोटिंग के दूसरे ही दिन रोमन कैथोलिक चर्च के सिस्टीन चैपल पर स्थित चिमनी से सफेद धुआं निकला, जिससे पता चलता है कि नए पोप का चयन हो गया है।
नए पोप का चयन होते ही वेटिकन में मौजूद 45 हजार से ज्यादा लोगों ने जोरदार तालियां बजाई और एक दूसरे को बधाई दी। इससे पहले 7 मई को वोटिंग के पहले दिन किसी को भी पोप नहीं चुना गया था।
कल सिस्टिन चैपल में औपचारिक जुलूस और हर कार्डिनल की तरफ से गोपनीयता की शपथ लेने के बाद, बुधवार रात करीब 9:15 बजे वोटिंग का पहला दौर शुरू हुआ था।
नए पोप ने पहले संबोधन में कहा- सबके दिलों में शांति हो
पोप चुने जाने के बाद पोप लियो-14 ने सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से स्पेनिश भाषा में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने लोगों से दूसरों के लिए दया दिखाने और प्रेम के साथ रहने की अपील की।
उन्होंने कहा- मैं सभी कार्डिनल्स को शुक्रिया करना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे फ्रांसिस के उत्तराधिकारी के तौर पर चुना है। मैं उन पुरुषों और महिलाओं के साथ काम करने की कोशिश करूंगा जो मिशनरी बनकर बिना किसी डर के यीशु का प्रचार करते हैं और उनके लिए वफादार हैं।
पोप फ्रांसिस के करीबी माने जाते हैं नए पोप
पोप लियो का जन्म 14 सितंबर 1955 को अमेरिका के इलिनोय में हुआ था। वे पोप फ्रांसिस के करीबी सहयोगी माने जाते थे और उनकी विचारधारा भी पोप फ्रांसिस से मेल खाती है। उन्होंने पोप फ्रांसिस के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें तलाकशुदा और दोबारा शादी करने वाली महिलाओं को त्योहार मनाने की इजाजत दी गई थी।
कोई भी नाम चुन सकते हैं पोप
जब एक कार्डिनल को पोप चुना जाते हैं तो उनसे पूछा जाता है कि वह किस नाम से बुलाए जाना चाहते हैं। यह परंपरा 6वीं सदी से चली आ रही है। पोप के पास आजादी है कि वह कोई भी नाम चुन सकते हैं, लेकिन आमतौर पर वे पहले के पोप या संतों के नाम चुनते हैं।
7 मई को वोटिंग शुरू होने से लगभग 90 मिनट पहले सभी सिग्नल बंद कर दिए थे। लीक को रोकने के लिए कॉन्क्लेव क्षेत्र को सख्त लॉकडाउन में रखा गया था।
2013 में भी यही तरीका अपनाया गया था जब पोप फ्रांसिस के चुनाव के लिए सिग्नल ब्लॉकर्स लगाए गए थे। वेटिकन में रोजाना का काम करने वाले कर्मचारियों ने भी मौन रहने की शपथ ली है।
कॉन्क्लेव एक गुप्त और पवित्र प्रक्रिया है, जो 13वीं शताब्दी से चली आ रही है। वेटिकन के संविधान के मुताबिक पोप के निधन के 15 से 20 दिनों के भीतर कॉन्क्लेव की शुरुआत होनी चाहिए।
कॉन्क्लेव की शुरुआत से 2 दिन पहले वेटिकन के कर्मचारियों जैसे कि पुजारी, सुरक्षा गार्ड, डॉक्टर, टेक्नीशियन आदी ने प्राइवेसी की शपथ ली है, ताकि नए पोप के चुनाव की गोपनीयता बनी रहे।
वोटिंग से पहले सिस्टीन चैपल को बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग कर दिया जाता है। इस पूरे इलाके की जांच की जाती है। कार्डिनल्स के पास मोबाइल फोन, इंटरनेट और न्यूजपेपर की सुविधा नहीं होती।
पैपल कॉन्क्लेव- नए पोप की चयन प्रक्रिया
पोप की मौत के बाद अगले पोप के दावेदारों के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होती है। नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। जब पोप की मौत हो जाती है या फिर वे इस्तीफा दे देते हैं, तब कैथोलिक चर्च के कार्डिनल्स चुनाव करते हैं।
कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है, लेकिन अब तक हर पोप चुने जाने से पहले कार्डिनल रह चुके हैं।
जितने भी कार्डिनल्स नए पोप का चुनाव करेंगे, उसमें से ज्यादातर को पोप फ्रांसिस ने चुना था। इसलिए माना जा रहा है कि नए पोप भी फ्रांसिस की तरह उदार और बदलाव को स्वीकार करने वाले होंगे।
गोपनीयता की कसम खाते हैं कार्डिनल्स
कॉन्क्लेव का पहला दिन विशेष प्रार्थना सभा से शुरू होता है। प्रार्थना के दौरान सभी कार्डिनल्स एक कमरे में एकजुट होते हैं। इसमें हर एक कार्डिनल गॉस्पेल यानी पवित्र किताब पर हाथ रखकर यह कसम खाता है कि वह इस चुनाव से जुड़ी किसी भी जानकारी का कभी भी किसी और के सामने खुलासा नहीं करेगा।
इसके बाद कमरे को बंद कर दिया जाता है फिर सीक्रेट तरीके से वोटिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। वोटिंग शुरू होने के दौरान हर एक कार्डिनल को एक बैलेट दिया जाता है। वह उस पर उस शख्स का नाम लिखता है, जिसे वह पोप बनाना चाहता है।
इसके बाद इन्हें एक प्लेट में रखा जाता है। इसके बाद तीन अधिकारी इन्हें गिनते हैं। यदि किसी व्यक्ति को दो-तिहाई बहुमत मिलते हैं, तो वह नया पोप घोषित होता है। इस बार पोप बनने के लिए 89 वोट हासिल करना होगा।
काले-सफेद धुएं से पता चलता है पोप चुने गए या नहीं
अगर किसी को 89 वोट नहीं मिले तो सभी बैलेट को जला दिया जाएगा। इस दौरान बैलेट में एक खास रसायन मिलाया जाएगा, जिससे काला धुआं निकलेगा। काले धुएं का मतलब- अभी तक नए पोप को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है। सफेद धुआं तब निकलता है जब नया पोप चुन लिया जाता है।
कॉन्क्लेव के दौरान हर दिन चार बार मतदान होता है। दो सुबह में और दो दोपहर में। यदि किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिलता, तो वोटिंग की प्रक्रिया दोहराई जाती है।
अगर किसी उम्मीदवार को 89 वोट्स मिल जाएंगे, उनसे पूछा जाएगा कि क्या आप पोप के रूप में चुने जाने को स्वीकार करते हैं? उसकी मंजूरी मिलने के बाद वेटिकन की सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से नए पोप मिलने की घोषणा की जाती है। इसके बाद नए पोप औपचारिक रूप से पद ग्रहण करते हैं।
पोप बनने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत क्यों होती है?
साल 1159 के चुनाव में एक साथ 2 पोप चुन लिए गए थे। कार्डिनल्स के बड़े गुट ने कार्डिनल रोलैंडो को पोप अलेक्जेंडर-3 के रूप में चुना। वहीं, कार्डिनल्स के छोटे गुट ने मोंटीसेली को पोप विक्टर-4 के रूप में चुना।
छोटे गुट के पोप को राजा फ्रेडरिक बारबोसा का समर्थन हासिल था। ऐसे में पोप अलेक्जेंडर-3 को ज्यादातर समय रोम से बाहर ही बिताना पड़ा। वहीं, कम समर्थन वाले पोप रोम में जमे रहे। यह विवाद 1164 में पोप विक्टर-4 की मौत के बाद ही समाप्त हुआ।
इसके बाद से ही पोप चुनने की प्रक्रिया में बदलाव किए गए। सभी कार्डिल्स के बीच ज्यादा से ज्यादा सहमति रहे इसलिए पोप के चुनाव के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत रखी गई है। वोटिंग की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जब तक किसी एक को दो-तिहाई वोट नहीं मिल जाते।
वोटिंग के तीन दिन बीत जाने के बाद भी कोई पोप नहीं चुना जाता है, तो वोटिंग एक दिन के लिए रुक जाती है। 33 दौर के बाद भी अगर कोई नहीं चुना जाता है तब नए नियम के तहत टॉप-2 दावेदारों के बीच मुकाबला होता है।
नए पोप के लिए दो चुनाव जो सबसे लंबे चले
13वीं शताब्दी में सबसे लंबे समय तक पोप का चुनाव चला था। तब नवंबर 1268 से सितंबर 1271 तक पोप के लिए वोटिंग होती रही। इतने लंबे समय तक चले चुनाव की असल वजह अंदरूनी कलह और बाहरी हस्तक्षेप को बताया गया था। इसके बाद से ही बंद कमरे में वोटिंग होनी शुरू हुई।
अब तक का सबसे छोटा सम्मेलन 1503 में हुआ था, जब कार्डिनलों को पोप पायस थर्ड को नया पोप चुनने में सिर्फ 10 घंटे लगे थे। अब तक के सबसे लम्बे सम्मेलन में करीब तीन साल का वक्त लगा था।
1268 में पोप क्लेमेंट फोर्थ के उत्तराधिकारी के लिए 1271 तक सम्मेलन चला और फिर पोप ग्रेगरी X का चुनाव किया गया।
1740 में पोप के चुनाव में 7 महीने लगे थे। 21वीं सदी में अब तक पोप के चुनाव के लिए 2 कॉन्क्लेव हुए हैं। 2005 में पोप बेनेडिक्ट को 3 दिन में चार राउंड वोटिंग के बाद और 2013 में पोप फ्रांसिस को 2 दिन में 5 राउंड वोटिंग के बाद चुना गया था।
इस बारे के संभावित उत्तराधिकारियों में कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें फिलीपींस के कार्डिनल लुइस एंटोनियो तगले, अफ्रीका से कार्डिनल पीटर टर्कसन, और इटली के कार्डिनल माटेओ जुप्पी अहम हैं।