बिहार की सियासी सरज़मीं गुरुवार, 9 जुलाई को सुलग उठी। विधानसभा चुनावों से पहले जैसे ही भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण की मुहिम छेड़ी, विपक्षी महागठबंधन ने इसे सत्ताधारी राजनीति का षड्यंत्र करार देते हुए राज्यव्यापी 'बिहार बंद' का बिगुल फूंका।
सुबह से ही पूरे बिहार की फिज़ा में जनांदोलन की आहट थी। तेजस्वी यादव की अगुवाई में राजद कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। राजधानी पटना की सड़कें राजनीतिक नारों से गूंज उठीं, और चौंकाने वाला दृश्य तब बना जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी स्वयं तेजस्वी संग कंधे से कंधा मिलाकर पटना की गलियों में विरोध की मशाल थामे दिखे।
राज्य के कोने-कोने से सुलगते समाचार आने लगे। नालंदा में टायर जलाकर रास्ता रोका गया, जहानाबाद रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शन हुआ, और डंडखोरा से दरभंगा, अररिया से सीतामढ़ी तक पटरियों पर विरोध का सैलाब बहता रहा। मुंगेर में भागलपुर-जयनगर एक्सप्रेस रुकी, तो अररिया में पैसेंजर ट्रेन थमी। बक्सर में राजद कार्यकर्ता सड़कों पर लेट गए, मानो कह रहे हों – “अब नहीं उठेंगे जब तक लोकतंत्र के साथ उठापटक बंद न हो।”
आज मतदाता सर्वेक्षण को लेकर विपक्ष का बिहार बंद के तहत जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सासाराम रेलवे स्टेशन पर भभुआ- पटना इंटरसिटी एक्सप्रेस को रोक दिया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने ट्रेन के सामने रेलवे की पटरी पर लेट गए तथा ट्रेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। काफी मशक्कत के बाद आरपीएफ के जवानों ने सभी को रेलवे पटरी से हटाया।
एनएच-27, एनएच-31, और दर्जनों मुख्य मार्ग ठप हो गए। लखीसराय, सीवान, गया, बेतिया, गोपालगंज, और खगड़िया में आंदोलनकारियों ने ट्रकों की कतारें लगा दीं। लोग घंटों जाम में फंसे रहे। सीतामढ़ी और सुपौल में धुएं के बादल और नारों की गूंज ने यह बता दिया कि यह सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं, जन-आक्रोश का विस्फोट है।
प्रशासन अलर्ट मोड में रहा। जगह-जगह भारी पुलिस बल की तैनाती हुई। हिंसा नहीं हुई, लेकिन जनाक्रोश की ज्वाला ने यह संकेत दे दिया कि आने वाले चुनाव में वोटर लिस्ट की पारदर्शिता एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।