डायरेक्टर: आदित्य सरपोतदार
कास्ट: आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, परेश रावल, सत्यराज, फैसल मलिक, गीता अग्रवाल
राइटर: निरेन भट्ट, सुरेश मैथ्यू, अरुण फलारा
अवधि: 149 मिनट
रेटिंग: ⭐ 1.5/5
दिवाली के मौके पर बड़े बजट की हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स में छा जाने की उम्मीद के साथ आई थामा — लेकिन यह फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। डर, रोमांस और मिथक के मिश्रण के बावजूद फिल्म एक थकी हुई, बिखरी और अस्पष्ट कहानी पेश करती है। 149 मिनट की लंबी अवधि के बावजूद न रोमांच मिलता है, न मनोरंजन — बस अधूरापन और भ्रम।
कहानी: डर से ज़्यादा ऊब
‘थामा’ की कहानी मैडॉक यूनिवर्स के हॉरर संसार को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है। फिल्म की शुरुआत जंगलों के बीच एक प्राचीन किंवदंती से होती है — जहां “बेताल” नाम के जीव इंसानों का खून नहीं पीते। लेकिन उनका राजा यक्षासन (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) इस नियम को तोड़ना चाहता है।
दूसरी ओर आलोक गोयल (आयुष्मान खुराना), एक असफल पत्रकार, जंगल में भालू के हमले से बचते हुए ताड़का (रश्मिका मंदाना) से टकराता है — जो एक रहस्यमयी बीतालनी है। यहीं से कहानी भटकने लगती है। जंगल के दृश्य लंबे, बेजान और रोमांचहीन हैं। शहर लौटने के बाद कहानी कॉमेडी और पारिवारिक ड्रामे में बदल जाती है, पर वहां भी न हास्य बनता है, न भावनाएं।
अभिनय: दमदार कलाकार, कमजोर स्क्रिप्ट
आयुष्मान खुराना अपने किरदार में ईमानदार हैं, लेकिन स्क्रिप्ट उन्हें कुछ खास करने का मौका नहीं देती। रश्मिका मंदाना की परफॉर्मेंस अस्थिर और ओवरड्रामैटिक लगती है। दोनों के बीच कैमिस्ट्री पूरी तरह गायब है।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे शक्तिशाली अभिनेता को केवल एक “चीखते-चिल्लाते खलनायक” में सीमित कर दिया गया है। परेश रावल के संवाद कुछ जगह हंसी दिलाते हैं, पर उनका ह्यूमर जबरदस्ती ठूंसा हुआ लगता है। बाकी कास्ट का असर मामूली है।
निर्देशन और तकनीक: बिखरा ट्रीटमेंट
आदित्य सरपोतदार का निर्देशन इस बार कमजोर साबित हुआ। मुंज्या और भेड़िया जैसी फिल्मों के बाद उनसे उम्मीद थी कि वे इस हॉरर यूनिवर्स को नई ऊंचाई देंगे, लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट असंगत और अव्यवस्थित है।
विजुअल इफेक्ट्स कई जगह टीवी सीरियल स्तर के लगते हैं, जंगल के सीक्वेंस नकली प्रतीत होते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक “थामा थामा” थीम पर बार-बार लौटता है, जो झुंझलाहट पैदा करता है। एक्शन सीक्वेंस कमजोर और बिना असर के हैं।
म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर
संगीत के मोर्चे पर फिल्म पूरी तरह फीकी है। “तुम मिले” गाना थोड़ी राहत देता है, लेकिन बाकी ट्रैक्स जैसे “पॉइजन बेबी” कहानी की गति रोक देते हैं। बैकग्राउंड स्कोर ज़्यादा शोर पैदा करता है, असर नहीं छोड़ता।
कमजोर कड़ियाँ और सीमित अच्छाइयाँ
फिल्म में हॉरर, रोमांस, मिथक और यूनिवर्स कनेक्शन — सब कुछ है, पर किसी में गहराई नहीं। जहां स्त्री ने रहस्य से बांधा और भेड़िया ने मनोरंजन दिया, वहीं थामा बस थकाती है।
अच्छाई बस यही है कि कुछ हिस्सों में सिनेमैटिक यूनिवर्स के संकेत दिलचस्प हैं और परेश रावल के कुछ संवाद हल्की मुस्कान लाते हैं। लेकिन स्क्रिप्ट बिखरी हुई, अभिनय असंतुलित, विजुअल इफेक्ट्स कमजोर और संगीत परेशान करने वाला है।