दिल्ली में प्रदूषण ने न सिर्फ हवा की गुणवत्ता को खराब किया है, बल्कि अब यह लोगों की आंखों की रोशनी के लिए भी खतरा बन गया है। लगातार बिगड़ता एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) आंखों में जलन, सूखापन, लालपन और धुंधलेपन जैसी समस्याओं को बढ़ा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि यह एक “अदृश्य महामारी” का रूप ले चुका है, जो धीरे-धीरे दृष्टि को प्रभावित कर रही है।
वैज्ञानिक रिपोर्टों ने जताई चिंता
‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स 2025’ के अनुसार, पीएम 2.5 के स्तर में हर 1% की वृद्धि से देश में करीब ढाई लाख नए नेत्र रोगी सामने आ रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत के प्रदूषित शहरों में करीब 10 करोड़ लोग ड्राई आई सिंड्रोम से जूझ रहे हैं। दिल्ली के अस्पतालों में पिछले दो हफ्तों में आंखों के मरीजों की संख्या में 60% तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें सबसे ज्यादा मामले ड्राई आई सिंड्रोम, एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस और कॉर्निया डैमेज के हैं। अनुमान है कि दिल्ली में फिलहाल लगभग 10 लाख लोग इन तकलीफों से पीड़ित हैं, जिनमें करीब 2 लाख बच्चे शामिल हैं।
एम्स विशेषज्ञ की चेतावनी
एम्स के सामुदायिक नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि “प्रदूषित हवा दिल्लीवासियों की आंखों की नमी छीन रही है, जिससे संक्रमण, जलन और कॉर्निया क्षति का खतरा दोगुना हो गया है। लगातार संपर्क में रहने से रेटिना और मैक्युला की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो रही हैं, जिससे दृष्टि स्थायी रूप से धुंधली पड़ सकती है।”
उन्होंने कहा कि पिछले साल नवंबर में जब एक्यूआई बेहद खराब स्तर पर था, तब आंखों के संक्रमण के मामले अचानक दोगुने हो गए थे। इस साल मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के मामलों में 30% और ग्लूकोमा के खतरे में 8% की बढ़ोतरी देखी गई है।
मुख्य आंकड़े
दिल्ली की हवा में पीएम2.5 का स्तर ग्रामीण इलाकों से 24 गुना अधिक पाया गया।
ट्रैफिक, औद्योगिक धुआं और निर्माण कार्य आंखों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक साबित हो रहे हैं।
राजधानी के अस्पतालों में रोजाना 800 से 1000 मरीज आंखों की जलन या सूखापन की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं।
लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से कॉर्निया की सतह पर महीन दरारें पड़ रही हैं, जिससे संक्रमण और दृष्टि क्षति का खतरा बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह
स्मॉग और धूल भरे दिनों में पारदर्शी सुरक्षात्मक चश्मा पहनें।
दिन में दो बार ठंडे पानी से आंखें धोएं और आइ ड्रॉप्स का प्रयोग करें।
घर और ऑफिस में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें।
व्यावसायिक चालकों के लिए नियमित नेत्र जांच अनिवार्य हो।
इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता दें।
खुले में कूड़ा या बायोमास जलाने पर सख्त कार्रवाई हो।
विशेषज्ञों का कहना है कि आंखों की सुरक्षा अब सिर्फ व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन जानी चाहिए।