हिमालय में 3,010 मीटर की ऊंचाई पर दुर्लभ हिम तेंदुआ कैमरा ट्रैप में कैद

कुमाऊं हिमालय में हिम तेंदुआ जनसंख्या और एल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर केंद्रित एक अहम परियोजना के दौरान शोधकर्ताओं ने वन्यजीव जगत के लिए बेहद दुर्लभ और चौंकाने वाली खोज की है। उत्तराखंड सरकार के वन विभाग द्वारा राष्ट्रीय हरित भारत मिशन के तहत वित्तपोषित यह अध्ययन नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व के कठिन और कम अध्ययन किए गए पर्वतीय क्षेत्रों में शीर्ष मांसाहारी प्रजातियों की जनसंख्या, उनके व्यवहार और पारिस्थितिक संबंधों को समझने पर केंद्रित है।

नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व में किए जा रहे इस अध्ययन में कैमरा ट्रैपिंग, चिन्ह सर्वे और आवास-उपयोग मॉडलिंग जैसे आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जा रहा है। इसके जरिए हिम तेंदुआ, उसके शिकार और अन्य मांसाहारी प्रजातियों की मौजूदगी के पैटर्न को समझने का प्रयास किया जा रहा है। शोधकर्ता यह भी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि पशुधन चराई, वन उत्पादों का संग्रहण और जलवायु परिवर्तन से बदलती वनस्पति इस पूरे एल्पाइन तंत्र और खाद्य जाल को किस तरह प्रभावित कर रहे हैं।

इसी दौरान सुंदरधुंगा घाटी में करीब 3,010 मीटर की ऊंचाई पर कैमरा ट्रैप में बाघ की उपस्थिति दर्ज हुई, जो वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह इस क्षेत्र में बाघ की अब तक की सबसे पुष्ट और उच्च-ऊंचाई उपस्थिति है। इस खोज पर आधारित एक शोध-पत्र भी प्रकाशन के लिए स्वीकार किया जा चुका है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिकॉर्ड बताता है कि बाघ अपेक्षा से कहीं अधिक ऊंचाई वाले इलाकों का भी उपयोग कर रहे हैं। इससे हिम तेंदुआ और बाघ के बीच संभावित पारिस्थितिक ओवरलैप को लेकर नई चर्चाएं शुरू हो गई हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के बीच इन प्रजातियों की आवाजाही और आवास संपर्कता पर भी नए सवाल उठ रहे हैं।

डीएओ आदित्य रत्न के अनुसार, यह खोज याद दिलाती है कि हिमालय जितना नाजुक है, उतना ही परिवर्तनशील और सक्षम भी है। यहां की वन्यजीव प्रजातियां बेहद अनुकूलनशील हैं, इसलिए दीर्घकालिक निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन जरूरी हैं। यह परियोजना आने वाले समय में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के लिए प्रभावी संरक्षण प्रबंधन की दिशा में मजबूत आधार तैयार कर सकती है।