सोमवार को अरावली मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर्वत श्रृंखला की नई परिभाषा को लेकर पिछले महीने दिए गए अपने ही आदेश पर रोक लगा दी। इससे पहले आए फैसले के बाद पर्यावरण कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने आशंका जताई थी कि यह निर्णय अरावली के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के बड़े हिस्से को अवैध और अनियमित खनन के लिए खोल सकता है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि समिति की सिफारिशों और इस न्यायालय के पूर्व निर्देशों को फिलहाल स्थगित रखना आवश्यक है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नई समिति के गठन तक यह स्थगन प्रभावी रहेगा।
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चार संबंधित राज्यों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। साथ ही विशेषज्ञों के एक नए पैनल के गठन का निर्देश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।
गौरतलब है कि यह विवाद तब शुरू हुआ था, जब केंद्र सरकार ने अरावली की एक नई परिभाषा को अधिसूचित किया। कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का आरोप है कि यह परिभाषा बिना पर्याप्त मूल्यांकन और सार्वजनिक परामर्श के तैयार की गई थी। उनका कहना था कि इससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में अरावली के बड़े हिस्से खनन के खतरे में आ सकते हैं।
इससे पहले नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि क्षेत्र में किसी भी नई खनन गतिविधि की अनुमति देने से पहले सतत खनन के लिए एक व्यापक योजना तैयार की जाए। मौजूदा सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि अदालत ने पिछले महीने उस योजना को स्वीकार कर लिया था।
हालांकि, सीजेआई ने इस दावे से असहमति जताते हुए कहा कि समिति की रिपोर्ट और अदालत की टिप्पणियों की गलत व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कहा कि कुछ पहलुओं पर स्पष्टता जरूरी है और किसी भी तरह के कार्यान्वयन से पहले एक निष्पक्ष, तटस्थ और स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय पर विचार किया जाना चाहिए।
सीजेआई ने यह भी कहा कि स्पष्ट दिशा-निर्देश देने के लिए यह कदम आवश्यक है। यह तय किया जाना चाहिए कि नई परिभाषा ने कहीं गैर-अरावली क्षेत्रों के दायरे को अनावश्यक रूप से तो नहीं बढ़ा दिया है, जिससे अनियमित खनन को बढ़ावा मिल रहा हो।