ट्रंप का दावा: भारत को सुपरपावर समूह में ऊपर लाने की वकालत

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक नए ‘कोर-5’ (हार्ड-पावर समूह) गठबंधन की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका, भारत, चीन, रूस और जापान को शामिल करने का प्रस्ताव है। इस समूह का उद्देश्य प्रमुख वैश्विक शक्तियों का एक नया मंच तैयार करना है, जो मौजूदा यूरोप-प्रधान जी-7 और अन्य पारंपरिक लोकतांत्रिक तथा आर्थिक समूहों के प्रभाव को पीछे छोड़ सकता है।

हालांकि इस विचार को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। व्हाइट हाउस ने ऐसे किसी दस्तावेज के अस्तित्व से इनकार किया है, लेकिन अमेरिकी प्रकाशन पॉलिटिको के अनुसार, इस नए हार्ड-पावर समूह का उल्लेख राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के एक विस्तृत, अप्रकाशित संस्करण में किया गया था, जिसका एक संक्षिप्त संस्करण हाल ही में व्हाइट हाउस ने जारी किया।

क्या है अमेरिका का नया ‘कोर-5’ प्लान?

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, रणनीति में एक ‘कोर फाइव’ या C-5 समूह का प्रस्ताव है, जिसमें अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान शामिल होंगे—इनमें से अधिकांश देशों की आबादी 10 करोड़ से अधिक है। यह समूह जी-7 की तर्ज पर नियमित शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। प्रस्तावित C-5 का पहला एजेंडा मध्य पूर्व में सुरक्षा मुद्दों पर केंद्रित है, विशेष रूप से इज़रायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों के सामान्यीकरण पर।

ट्रंपवादी झलक

पॉलिटिको के मुताबिक, व्हाइट हाउस ने दस्तावेज की मौजूदगी को नकार दिया है। प्रेस सचिव हन्ना केली ने बयान जारी करते हुए कहा कि 33-पृष्ठों की आधिकारिक योजना का कोई ‘वैकल्पिक, निजी या गुप्त संस्करण’ मौजूद नहीं है। बावजूद इसके, राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषक मानते हैं कि इस विचार में ट्रंपवादी विदेश नीति की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।

यह रिपोर्ट उस समय सामने आई है जब अमेरिका में इस बात पर जोरदार बहस चल रही है कि अगर ट्रंप प्रशासन फिर सत्ता में आता है तो वैश्विक व्यवस्था में किस हद तक बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। ‘कोर-5’ की अवधारणा मौजूदा वैश्विक मंचों—जैसे जी-7 और जी-20—को बहुध्रुवीय दुनिया के लिए अपर्याप्त मानती है और दुनिया की बड़ी आबादी व सैन्य-आर्थिक शक्ति वाले देशों के बीच सीधे समझौते को प्राथमिकता देती है।


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ट्रेड डील पर बड़ा खुलासा: अमेरिका बोला—भारत ने पेश किया अत्यंत आकर्षक प्रस्ताव

भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील (India-US Trade Deal) पर दो दिवसीय वार्ता दिल्ली में शुरू हो गई है। इस बीच अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने अमेरिकी सांसदों को सूचित किया कि अमेरिकी कृषि उत्पादों की बाजार पहुंच बढ़ाने को लेकर जारी वार्ताओं में भारत ने “वाशिंगटन को अब तक के सर्वोत्तम प्रस्ताव” दिए हैं। मंगलवार को वाशिंगटन डीसी में सीनेट विनियोग उपसमिति की सुनवाई के दौरान ग्रीर ने बताया कि अमेरिकी दल फिलहाल नई दिल्ली में मौजूद है और कृषि सम्बंधी संवेदनशील बाधाओं को दूर करने पर विशेष जोर दे रहा है।

अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल, उप अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि राजदूत रिक स्विट्जर के नेतृत्व में भारत पहुँचा है, जबकि भारतीय पक्ष की अगुवाई ज्वाइंट सेक्रेटरी दर्पण जैन कर रहे हैं।

किन फसलों पर विवाद?

ग्रीर के अनुसार, कुछ कृषि उत्पादों को लेकर भारत में अभी भी आपत्तियाँ बनी हुई हैं, लेकिन नई दिल्ली द्वारा भेजे गए नवीनतम प्रस्ताव इस बार वार्ता में सकारात्मक और अप्रत्याशित शुरुआत का संकेत देते हैं। उन्होंने कहा कि बढ़ते स्टॉक्स और चीन से घटती मांग के बीच भारत अमेरिकी उत्पादकों के लिए एक संभावित वैकल्पिक बाजार बन सकता है।

ध्यान रहे कि भारत-अमेरिका के बीच इस ट्रेड डील पर कई महीनों से बातचीत जारी है और अब तक छह दौर पूरे हो चुके हैं। पिछले महीने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच प्रस्तावित समझौते पर “अच्छी खबर तभी मिलेगी, जब यह पूरी तरह उचित, समानता आधारित और संतुलित” होगा।


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भारत-रूस के बीच कई अहम समझौते, पीएम मोदी-पुतिन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस जारी

पीएम मोदी ने भारत और रूस की दोस्ती को ध्रुव तारे की तरह स्थिर बताया। उन्होंने कहा, “पिछले आठ दशकों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मानवता ने कई तरह की चुनौतियों और संकटों का सामना किया है, लेकिन इन सबके बावजूद भारत-रूस की मित्रता हमेशा अटल और भरोसेमंद रही है।”

मोदी ने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते हर कसौटी पर खरे उतरे हैं और 2030 तक आर्थिक सहयोग को मजबूत करने की नई रणनीति भी तैयार की गई है। वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भरोसा दिया कि रूस भारत को बिना किसी रुकावट के तेल की सप्लाई जारी रखेगा।

भारत दौरे पर आए पुतिन का राष्ट्रपति भवन में 21 तोपों की सलामी और गार्ड ऑफ ऑनर के साथ औपचारिक स्वागत किया गया। इसके बाद उन्होंने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी।

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अमेरिका ने बदले नियम: H-1B वीज़ा से पहले होगी सोशल मीडिया स्क्रूटनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा नियमों को और सख्त करने का आदेश दिया है। अब H-1B वीजा के आवेदकों को अपना सोशल मीडिया अकाउंट सार्वजनिक करना होगा, ताकि अमेरिकी अधिकारी उनकी प्रोफाइल, पोस्ट और लाइक्स की जांच कर सकें। यदि किसी भी आवेदक की सोशल मीडिया गतिविधि अमेरिकी हितों के खिलाफ पाई जाती है, तो वीजा जारी नहीं किया जाएगा। यही नियम H-1B आश्रितों—जैसे पत्नी, बच्चे और पेरेंट्स—के H-4 वीजा पर भी लागू होगा।

पहली बार सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच को H-1B वीजा प्रोसेस में अनिवार्य बनाया गया है। नए निर्देश 15 दिसंबर से लागू होंगे और इसके लिए सभी अमेरिकी दूतावासों को गाइडलाइन भेजी जा चुकी है। इससे पहले अगस्त से स्टडी वीजा (F-1, M-1, J-1) और विज़िटर वीजा (B-1, B-2) के लिए भी सोशल मीडिया प्रोफाइल को पब्लिक करना अनिवार्य किया गया था।

H-1B वीजा उच्च कौशल वाले प्रोफेशनल्स—जैसे डॉक्टर, इंजीनियर और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ—को जारी किया जाता है। हर साल जारी होने वाले H-1B वीजा में से करीब 70% भारतीयों को मिलता है, इसलिए नए नियमों का सबसे ज्यादा असर भी भारतीय आवेदकों पर पड़ेगा। पहले इस वीजा की फीस लगभग 9,000 डॉलर थी, लेकिन सितंबर 2025 में इसे बढ़ाकर करीब 90 लाख रुपए कर दिया गया। वीजा 3-3 साल की दो अवधि के लिए जारी होता है और 6 साल बाद आवेदक ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है।

ट्रम्प का H-1B पर रुख पिछले 9 सालों में कई बार बदला है। 2016 में उन्होंने इसे अमेरिकी हितों के खिलाफ बताया और 2019 में इसके एक्सटेंशन को निलंबित कर दिया। हालांकि हाल ही में उन्होंने फिर यू-टर्न लिया और कहा कि अमेरिका को बड़े पैमाने पर टैलेंट की जरूरत है।

H-1B में बदलावों के साथ ही ट्रम्प प्रशासन ने तीन नए वीजा कार्ड—‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’, ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ और ‘कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड’—भी लॉन्च किए हैं। इनमें से ट्रम्प गोल्ड कार्ड (कीमत 8.8 करोड़) धारक को अमेरिका में अनलिमिटेड रेसीडेंसी का अधिकार देगा।

अमेरिकी टेक कंपनियों—जैसे इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL—द्वारा भारतीय कर्मचारियों को सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर किया जाता है। कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा इंजीनियर, डेवलपर्स और छात्र ‘एक्सपोर्ट’ करता है। लेकिन बढ़ी हुई फीस के बाद संभावना है कि भारतीय टैलेंट अब यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और मिडिल ईस्ट की ओर शिफ्ट हो सकता है।


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हॉन्गकॉन्ग के रिहाइशी कॉम्प्लेक्स में भीषण आग, 44 लोगों की मौत

हॉन्गकॉन्ग के ताई पो जिले में बुधवार को एक बड़े रिहायशी कॉम्प्लेक्स में भीषण आग लग गई। इस दुर्घटना में अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 279 लोग घायल बताए जा रहे हैं। यह कॉम्प्लेक्स आठ इमारतों से मिलकर बना था, जिनमें प्रत्येक में 35 मंजिलें और कुल लगभग दो हजार अपार्टमेंट थे। वांग फुक कोर्ट के ये टावर बांस की मचान से ढंके हुए थे, जहां मरम्मत का काम चल रहा था। आग की शुरुआत इन्हीं बाहरी मचानों से हुई और तेज हवा के कारण जलता हुआ मलबा एक इमारत से दूसरी में फैलता चला गया। 20 घंटे बीत जाने के बाद भी आग पूरी तरह काबू में नहीं आ सकी है।


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गोरों पर अत्याचार का हवाला देकर ट्रम्प G20 से गैरहाज़िर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस बार G20 समिट में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने साउथ अफ्रीका में गोरे किसानों पर हो रहे कथित अत्याचार को अपनी गैरमौजूदगी की वजह बताया है। इसी तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी समिट में भाग नहीं ले रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन युद्ध को लेकर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है और उन्हें गिरफ्तारी का खतरा है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी स्वास्थ्य कारणों से समिट में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। तीन बड़े वैश्विक नेताओं की अनुपस्थिति के बीच इस बार G20 में भारत की भूमिका और प्रभाव काफी बढ़ गया है। पीएम मोदी समिट के सभी तीन सत्रों में भाग लेंगे और समावेशी विकास, जलवायु संकट तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अपने विचार रखेंगे।

यात्रा से पहले पीएम मोदी ने कहा कि यह समिट विशेष है, क्योंकि पहली बार G20 की बैठक अफ्रीका महाद्वीप में आयोजित हो रही है। उन्होंने याद दिलाया कि 2023 में भारत की पहल के बाद अफ्रीकन यूनियन को G20 का हिस्सा बनाया गया था। पहली बार अफ्रीका में G20 आयोजित होने के कारण भारत की प्रतिष्ठा महाद्वीप के देशों में और बढ़ी है। अफ्रीका पहुंचने पर स्थानीय कलाकारों ने पीएम मोदी का विशेष पारंपरिक तरीके से स्वागत किया।

ट्रम्प, पुतिन और जिनपिंग की अनुपस्थिति में भारत इस समिट का सबसे प्रमुख नेतृत्वकारी चेहरा बनकर उभरा है। पीएम मोदी आर्थिक विकास, जलवायु रेज़िलियंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण दुनिया के सामने रखेंगे।

यह समिट भारत की ग्लोबल साउथ नेतृत्व क्षमता और विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूती देने का बड़ा मंच साबित होगी।


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अमेरिका ने भारत के चाय, कॉफी और मसालों पर 50% टैरिफ हटाया

अमेरिका ने भारत से आने वाली कॉफी, चाय, मसाले, ट्रॉपिकल फलों और फलों के जूस जैसे उत्पादों पर लगाए गए 50% रेसिप्रोकल टैरिफ को हटा दिया है। वाणिज्य मंत्रालय ने 17 नवंबर को इसकी जानकारी देते हुए कहा कि इस कदम से भारतीय निर्यातकों को वैश्विक बाजार में एक समान प्रतिस्पर्धा का अवसर मिलेगा। DGFT के अनुसार, यह निर्णय एक्सपोर्ट सेक्टर के लिए बड़ा लाभ साबित होगा।

वित्त वर्ष 2025 में भारत ने अमेरिका को 2.5 अरब डॉलर (करीब ₹22 हजार करोड़) का कृषि निर्यात किया था। अब इनमें से लगभग ₹9 हजार करोड़ के उत्पाद टैक्स-फ्री हो गए हैं। अमेरिका ने यह टैरिफ भारत के रूसी तेल ख़रीदने के चलते लगाया था, लेकिन खाद्य महंगाई बढ़ने के कारण ट्रम्प प्रशासन ने इसे वापस लेने का फैसला किया।

ट्रम्प का नया आदेश

शुक्रवार को राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत बीफ, कॉफी और फलों समेत कई कृषि उत्पादों पर लगे शुल्क हटा दिए गए। प्रशासन के मुताबिक, महंगाई बढ़ने और उपभोक्ताओं पर बढ़ते बोझ को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 2.7% की वृद्धि हुई है—जिसमें बीफ 7% और केले 7% महंगे हुए। बढ़ती कीमतों से अमेरिकियों की मासिक खर्च में 9 हजार से 66 हजार रुपये तक का इजाफा हुआ है।

ट्रेड डील भी अंतिम चरण में

भारत और अमेरिका के बीच नई व्यापार वार्ता अपने अंतिम चरण में है। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल का कहना है कि 25% रेसिप्रोकल टैरिफ और कच्चे तेल पर अतिरिक्त 25% ड्यूटी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर लगभग सहमति बन चुकी है। फरवरी से जारी चर्चा जल्द ही समापन की ओर बढ़ सकती है।

FY25 में भारत का मजबूत निर्यात

भारत ने FY25 में अमेरिका को कुल 86.51 अरब डॉलर (करीब ₹7.66 लाख करोड़) का सामान निर्यात किया। इनमें से लगभग 48.2 अरब डॉलर (₹4.3 लाख करोड़) के एक्सपोर्ट पर ऊंचे टैरिफ लागू थे। टेक्सटाइल, ज्वेलरी और इंजीनियरिंग गुड्स जैसी टॉप 5 कैटेगरी alone लगभग 60 अरब डॉलर (₹5.3 लाख करोड़) की हिस्सेदारी रखती हैं।


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डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए मुश्किल हुआ अमेरिकी वीजा हासिल करना

अमेरिका में अब डायबिटीज, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को वीजा मिलना मुश्किल हो सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग ने शुक्रवार को दुनियाभर के अपने दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया कि गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों को अमेरिका आने या वहां रहने की अनुमति न दी जाए।

यह कदम ‘पब्लिक चार्ज’ (सार्वजनिक बोझ) नीति के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य ऐसे अप्रवासियों को रोकना है जो भविष्य में अमेरिकी सरकारी संसाधनों पर निर्भर हो सकते हैं।

वीजा अधिकारी जांचेंगे स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति

नए दिशा-निर्देशों के तहत वीजा अधिकारी अब आवेदक की उम्र, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति का आकलन करेंगे। अगर किसी व्यक्ति के भविष्य में महंगे इलाज या सरकारी सहायता पर निर्भर होने की संभावना दिखती है, तो उसका वीजा खारिज किया जा सकता है।

अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे यह तय करें कि क्या आवेदक अमेरिकी सरकार पर बोझ बन सकता है। इसमें डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, मोटापा, मेटाबॉलिक या न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसी स्थितियों को शामिल किया गया है, जो लंबे इलाज और भारी खर्च की मांग करती हैं।

स्वास्थ्य जांच में बढ़ेगी सख्ती

पहले वीजा प्रक्रिया में सिर्फ संक्रामक रोगों जैसे टीबी और एचआईवी की जांच होती थी। अब अधिकारियों को आवेदक की पुरानी बीमारियों, इलाज के खर्च और आर्थिक स्थिति का पूरा रिकॉर्ड देखने को कहा गया है।

इस दौरान उनसे यह भी पूछा जाएगा कि क्या वे बिना सरकारी सहायता के अपना इलाज खुद करा सकते हैं, क्या उनके परिवार के सदस्य (बच्चे या बुजुर्ग माता-पिता) बीमार हैं, और क्या उनकी देखभाल का खर्च आवेदक उठा सकता है।

विशेषज्ञों ने जताई चिंता

इमिग्रेशन विशेषज्ञों ने इस नीति पर चिंता जताई है। लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क के वकील चार्ल्स व्हीलर का कहना है कि “वीजा अधिकारी स्वास्थ्य स्थितियों का मूल्यांकन करने में प्रशिक्षित नहीं हैं।” वहीं, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील सोफिया जेनोवेस ने कहा कि “डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम किसी को भी हो सकती है। यदि हर बीमारी के आधार पर वीजा अस्वीकृत होने लगा तो इंटरव्यू प्रक्रिया बेहद जटिल हो जाएगी।”

किस पर पड़ेगा असर?

नया नियम सभी वीजा कैटेगरी—जैसे B-1/B-2 (पर्यटन/व्यवसाय) और F-1 (छात्र)—पर लागू हो सकता है। इसका सबसे अधिक असर उम्रदराज माता-पिता, विकलांग बच्चों वाले परिवारों और क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे पेशेवरों पर पड़ने की संभावना है।

भारतीयों पर बड़ा असर

भारत पर इस नियम का खासा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यहां डायबिटीज और मोटापे के सबसे अधिक मामले हैं। हर साल करीब 1 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, जिनमें से लगभग 70% आईटी और हेल्थकेयर प्रोफेशनल होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नीति से भारतीय आवेदनों की अस्वीकृति दर 20-30% तक बढ़ सकती है।

भारत: ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’

अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के मुताबिक, भारत में वर्तमान में 10.1 करोड़ वयस्क डायबिटीज से पीड़ित हैं, और यह संख्या 2045 तक 13.4 करोड़ तक पहुंच सकती है। ऐसे में बड़ी संख्या में भारतीय अप्रवासी इस नए नियम से प्रभावित होंगे।

संभावित परिणाम

वीजा और ग्रीन कार्ड रिजेक्शन बढ़ेगा।

लोग बीमारियों को छिपाने या इलाज टालने लगेंगे।

अप्रवासी परिवार सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं से दूर रहेंगे।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है।

नए नियम के चलते अमेरिका जाने के इच्छुक कई भारतीय पेशेवरों को अब अपने स्वास्थ्य और आर्थिक दस्तावेजों की पहले से ज्यादा तैयारी करनी होगी।


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अमेरिकी प्रतिबंधों का असर: 21 नवंबर से भारत में घटेगा रूसी तेल का आयात

भारत नवंबर के अंत से रूसी कच्चे तेल की सीधी खरीद में कमी करने की तैयारी में है। यह निर्णय रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर 21 नवंबर से लागू होने वाले नए अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनज़र लिया जा रहा है।

विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय रिफाइनरी कंपनियां — रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL), मंगलौर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (MRPL) और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड (HMEL) — जो देश के कुल रूसी तेल आयात का आधे से अधिक हिस्सा रखती हैं, अब अमेरिकी नियमों के अनुपालन में रूस से सीधे तेल की खरीद घटा सकती हैं।

अमेरिका ने लगाए कड़े प्रतिबंध

अमेरिका ने रूसी ऊर्जा दिग्गजों रोसनेफ्ट और ल्यूकऑयल पर 21 नवंबर से कठोर आर्थिक प्रतिबंध लागू करने की घोषणा की है। इन प्रतिबंधों के तहत दोनों कंपनियों की अमेरिकी संपत्तियों और वित्तीय लेनदेन पर रोक लगाई जाएगी। इतना ही नहीं, जो विदेशी कंपनियां इनके साथ बड़े सौदे करेंगी, वे भी अमेरिकी द्वितीयक प्रतिबंधों के दायरे में आ सकती हैं।

भारत अब अन्य देशों से खरीदेगा तेल

नौवहन ट्रैकिंग फर्म केप्लर के मुताबिक, भारत घटते रूसी आयात की भरपाई के लिए अब पश्चिम एशिया, दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रहा है। अक्टूबर में भारत ने अमेरिका से 5.68 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो मार्च 2021 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है।

रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश

रिलायंस का रोसनेफ्ट के साथ लंबी अवधि का आपूर्ति करार है, जबकि एमआरपीएल और एचएमईएल ने फिलहाल रूसी तेल की आगामी खेपों को स्थगित करने का निर्णय लिया है। वर्ष 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से औसतन 18 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का आयात किया था, जिसमें इन तीन कंपनियों की प्रमुख हिस्सेदारी रही।

हालांकि, गुजरात के वडिनार स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी, जिसमें रोसनेफ्ट की आंशिक हिस्सेदारी है, अपनी मौजूदा रूसी तेल आपूर्ति प्रणाली को जारी रखेगी। यह रिफाइनरी पहले से ही यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के तहत काम कर रही है और मुख्य रूप से रूसी कच्चे तेल पर निर्भर है।


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जोहरान ममदानी बने न्यूयॉर्क के नए मेयर: भारतीय मूल के नेता ने रचा इतिहास

जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। वे अमेरिका के सबसे बड़े शहर के मेयर बनने वाले पहले दक्षिण एशियाई और मुस्लिम नेता हैं।

34 वर्षीय ममदानी लंबे समय से न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे। मंगलवार को उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा और स्वतंत्र उम्मीदवार तथा पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को मात देकर जीत हासिल की। ममदानी ने इससे पहले डेमोक्रेटिक प्राइमरी में भी कुओमो को हराया था और जून में ही अपनी जीत सुनिश्चित कर ली थी।

कौन हैं जोहरान ममदानी?

भारतीय मूल के जोहरान ममदानी मशहूर फिल्म निर्माता मीरा नायर और कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महमूद ममदानी के बेटे हैं। उनका जन्म युगांडा के कंपाला में हुआ और सात साल की उम्र में वे परिवार के साथ न्यूयॉर्क आ गए। उन्होंने ब्रोंक्स हाई स्कूल ऑफ साइंस से पढ़ाई की और बॉडॉइन कॉलेज से अफ्रीकाना अध्ययन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

राजनीति में आने से पहले ममदानी ने एक हाउसिंग कंसलटेंट के रूप में काम किया, जहाँ वे कम आय वाले परिवारों को बेदखली से बचाने में मदद करते थे।

राजनीतिक सफर

ममदानी ने 2020 में पहली बार न्यूयॉर्क राज्य विधानसभा का चुनाव जीता और 36वें विधानसभा क्षेत्र — जिसमें एस्टोरिया, डिटमार्स-स्टाइनवे और एस्टोरिया हाइट्स जैसे इलाके आते हैं — का प्रतिनिधित्व किया। आवास संकट और सामाजिक समानता के मुद्दों पर वे लगातार मुखर रहे हैं।

मेयर बनने के बाद उनके वादे

ममदानी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि मेयर बनने पर वे न्यूयॉर्क में सभी किरायेदारों का किराया स्थायी रूप से फिक्स करेंगे, ताकि आवास सुलभ बना रहे। उन्होंने यह भी वादा किया था कि बसों में यात्रा पूरी तरह मुफ्त की जाएगी और शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को अधिक सुगम बनाने के लिए प्राथमिकता वाली बस लेन और समर्पित लोडिंग जोन तैयार किए जाएंगे।

उनकी जीत को न सिर्फ दक्षिण एशियाई समुदाय, बल्कि पूरी दुनिया में प्रगतिशील राजनीति की एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।


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