एलन मस्क ने छोड़ा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का साथ

टेस्ला और स्पेस एक्स के प्रमुख एलन मस्क ने घोषणा की है कि उनका अमेरिकी सरकार में विशेष सरकारी कर्मचारी (SGE) के रूप में 130-दिन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व Twitter) पर लिखा कि मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सरकारी खर्च को कम करने के दिए गए मौके के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं. DOGE मिशन समय के साथ और मजबूत होता जाएगा.

Department of Government Efficiency (DOGE) एक प्रशासनिक इनोवेशन था, जिसमें मस्क को सरकारी खर्चों में कटौती और दक्षता बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई थी. इस अभियान के माध्यम से अनावश्यक सरकारी खर्च की पहचान की गई. विदेशी सहायता और सार्वजनिक प्रसारण पर खर्च कम करने के सुझाव दिए गए. NPR, PBS और विदेशी सहायता कार्यक्रमों में $9.4 बिलियन की कटौती का प्रस्ताव रखा गया. यह कदम सरकारी सुधार और फालतू खर्च खत्म करने की दिशा में उठाया गया था.

एलन मस्क का बड़ा बयान

एलन मस्क का हटना ऐसे समय पर हुआ है, जब उन्होंने ट्रंप के बिग एंड व्यूटिफूल बिल की आलोचना की है. बता दें कि बिग ब्यूटिफूल बिल में मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की टैक्स ब्रेक, रक्षा खर्च में भारी वृद्धि और आव्रजन नियंत्रण उपाय से जुड़े खर्च शामिल है. इसको लेकर मस्क ने कहा कि यह बिल DOGE के काम को कमजोर करता है. इससे घाटा बढ़ सकता है. इस पर ट्रंप ने ओवल ऑफिस में कहा था कि मैं इसके कुछ हिस्सों से खुश नहीं हूं, लेकिन हम देखेंगे कि आगे क्या होता है. 

 कांग्रेस और सीनेट में भी बंटी राय

मस्क के इस बयान को कुछ रिपब्लिकन नेताओं ने भी समर्थन दिया सीनेटर रॉन जॉनसन (विस्कॉन्सिन) ने कहा कि मैं एलन के हतोत्साहित होने से सहानुभूति रखता हूं. हालांकि, राष्ट्रपति पर दबाव डालना किसी भी तरह से असर नहीं करता है. हाउस स्पीकर माइक जॉनसन ने कहा कि वे चाहते हैं कि सीनेट में बिल में कम से कम बदलाव हों, ताकि संतुलन बना रहे. हालांकि, बिल को लेकर अगर स्टेज में सीनेट बिल में बदलाव करेगी, जिसके बाद इसे फिर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में वोटिंग के लिए लाया जाएगा.

मस्क का निजी क्षेत्र में लौटना और राजनीतिक खर्च में कटौती

सरकारी पद से हटते हुए एलन मस्क ने कहा अब मैं पूरी तरह से टेस्ला और स्पेसएक्स को समर्पित हूं. मैं अपने राजनीतिक खर्च को भी कम करूंगा, क्योंकि मेरा मानना है कि मैंने अपना योगदान दे दिया है. उनका यह बयान स्पष्ट करता है कि वे राजनीति से पीछे हटकर अपनी कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे.


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ट्रंप प्रशासन ने स्टूडेंट वीजा के इंटरव्यू पर लगाई रोक

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों को सख्त निर्देश जारी किया है। इसके तहत छात्र (F), व्यावसायिक (M) और एक्सचेंज विजिटर (J) वीजा इंटरव्यू की नई अपॉइंटमेंट्स पर रोक लगा दी गई है। अमेरिकी विदेश विभाग ने मंगलवार को कहा कि विदेशी छात्रों के लिए वीजा जांच प्रक्रिया जल्द ही और ज्यादा सख्त हो सकती है। बता दें कि वीजा जांच ट्रंप प्रशासन की बढ़ती चिंताओं के बीच उठाया गया कदम है। यह कदम विदेशी छात्रों के लिए अनिवार्य सोशल मीडिया स्क्रीनिंग लागू करने की व्यापक योजना का हिस्सा है। पोलिटिको की एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है कि जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेजों का हवाला दिया गया है।

टैमी ब्रूस ने क्या कहा?

बता दें कि स्टेट डिपार्टमेंट ब्रीफिंग में मीडिया को संबोधित करते हुए प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका सभी वीजा आवेदकों की जांच को बहुत गंभीरता से ले रहा है। ब्रूस ने कहा है कि चाहे आप छात्र हों या पर्यटक, जिसे वीजा की आवश्यकता हो या आप जो भी हों, हम आप पर नजर रखेंगे। पोलिटिको की रिपोर्ट में एक और जानकारी सामने आई है कि ट्रंप प्रशासन विदेशी छात्र वीजा जांच के लिए विचार कर रहा है, जिसमें उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच करने का प्रस्ताव भी शामिल है।

विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने क्या कहा?

विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को दिशानिर्देश देते हुए कहा कि छात्र वीजा आवेदकों के लिए नए इंटरव्यू नियुक्तियों को रोकने का आदेश दिया गया है। टैमी ब्रूस ने आगे कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम ‘प्रतिकूल’ लग सकते हैं, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अमेरिका आने वाले लोग इसके कानून को समझें। उन्होंने कहा, ‘हम यहां मीडिया के सामने यह नहीं बताने जा रहे हैं कि उठाए गए कदमों की प्रकृति क्या है। हम जो तरीके अपनाते हैं वे शायद थोड़े प्रतिकूल प्रतीत होंगे, लेकिन यह एक लक्ष्य है जिसके जरिए यह सुनिश्चित करना है कि जो लोग यहां हैं, वे कानून को समझते हैं, उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, वे यहां के अनुभव में योगदान देने जा रहे हैं। चाहे उनका प्रवास कितना भी छोटा या लंबा क्यों न हो, इसलिए मैं इसका डिटेल आपके साथ साझा नहीं करुंगी, लेकिन उम्मीद है कि यह एक ऐसा कदम है, जो हमें यह समझने में मदद करेगा कि कौन इस देश में आने का हकदार है और कौन नहीं।’

अमेरिका आने वाले कानून का करें पालन

टैमी ब्रूस ने कहा कि चाहे आप छात्र हों याया किसी भी श्रेणी के वीजा धारक हों, हम हर किसी की जांच करेंगे। इस प्रक्रिया को विवादास्पद नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि इसका उद्देश्य अमेरिका की सुरक्षा और सामाजिक हितों की रक्षा करना है। राष्ट्रपति ट्रंप और विदेश मंत्री रूबियो की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिका आने वाले लोग कानून का पालन करें, आपराधिक मानसिकता न रखें और अमेरिका में अपने प्रवास के दौरान सकारात्मक भूमिका निभाएं। वहीं, इस मामले में एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि निलंबन अस्थायी है और यह उन आवेदकों पर लागू नहीं होगा, जो पहले ही इंटरव्यू दे चुके हैं।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर की थी सख्त कार्रवाई

बता दें कि हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। प्रशासन ने यह कहते हुए हार्वर्ड में विदेशी छात्रों को दाखिला देने से मना कर दिया था कि यूनिवर्सिटी काफी उदार हो गया है और यहूदी विरोध को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, एक संघीय अदालत ने इस फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी है।


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बांग्लादेश में न दुल्हन खरीदना, न डेटिंग और शादी करना,चीन ने अपने नागरिकों के लिए जारी की एडवाइजरी

चीन में बहुत से नागरिक दूसरे देशों में दुल्हन की तलाश में आते हैं। इनमें बांग्लादेश भी शामिल है, लेकिन अब ढाका स्थिति चीनी दूतावास ने अपने नागरिकों को इस बारे में एक एडवाइजरी कर इससे दूर रहने को कहा है। चीनी दूतावास ने रविवार को जारी एडवाइजरी में चीनी नागरिकों से अवैध क्रॉस बॉर्डर विवाह से दूर रहने और ऑनलाइन मैचमेकिंग से बचकर रहने को कहा है। चीन के सरकारी मीडिया आउटलेट ग्लोबल टाइम्स ने इस बारे में जानकारी दी है।

देर रात जारी किया गया रिमाइंडर

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, दूतावास ने चीनी नागरिकों को चेतावनी दी कि वे शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म पर भ्रामक डेटिंग सामग्री के झांसे में न आएं। देर रात जारी किए गए रिमाइंडर में कहा गया है कि चीनी नागरिकों को विदेश में विवाह से संबंधित कानून का सख्ती से पालन करना चाहिए। अवैध मैचमेकिंग एजेटों से बचना चाहिए। दूतावास ने कहा कि विदेशी पत्नी खरीदने के विचार को खारिज करना चाहिए और बांग्लादेश में शादी करने से पहले दो बार सोचना चाहिए।

चीनी युवा बड़ी संख्या में गरीब दक्षिण एशियाई देशों में दुल्हन की तलाश में जाते हैं। इन देशों में चीनी युवकों को दुल्हन उपलब्ध कराने के लिए एक पूरा नेटवर्क काम करता है, जिसका एक बड़ा अवैध कारोबार फैला हुआ है। इसमें लड़कियों को फंसाकर चीनी नागरिकों से शादी करा दी जाती है। आगे चलकर ये औरतें चीन ले जाई जाती हैं, जहां उन्हें बंधक बनाकर रखा जाता है। अतीत में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।

चीन में पुरुषों को नहीं मिल रही जीवनसंगिनी

ये चेतावनियां चीन में दुल्हन की तस्करी को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आई है। लंबे समय तक एक बच्चा नीति और बेटों के लिए वरीयता के चलते चीन लैंगिक असंतुलन से जूझ रहा है। अनुमान है कि 3 करोड़ चीनी पुरुषों को जीवनसाथी नहीं मिल रहा है। इसके चलते विदेशी दुल्हनों की मांग में बढ़ावा हुआ है। बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट डेली स्टार की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश की महिलाओं को कथित शादी के बहाने चीन में बेचे जाने के मामलों के बारे में बताया गया है।


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ट्रम्प की यूरोपीय यूनियन पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूरोपीय यूनियन के देशों पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए बताया कि यूरोपीय यूनियन से आने वाले सभी प्रोडक्ट्स पर 50% टैरिफ लगेगा, जब तक कि ये प्रोडक्ट्स अमेरिका में नहीं बनाए जाते।

ट्रम्प इसे 1 जून लागू करने का प्लान बना रहे हैं। PTI की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रम्प यूरोपीय यूनियन के साथ ट्रेड डील के आगे न बढ़ने से नाराज है। EU ने आपसी सहमति से सभी टैरिफ को 0 करने का प्रस्ताव रखा है, जबकि ट्रम्प सभी तरह के आयात पर 10% टैरिफ लगाने की बात पर अड़े हैं।

ट्रम्प ने ओवल ऑफिस में पत्रकारों से बातचीत में साफ किया कि वे EU से कोई समझौता नहीं चाहते। अगर कंपनियां अमेरिका में निवेश करें तो टैरिफ को टाल सकते हैं।

दूसरे देशों से आने वाले स्मार्टफोन पर 25% टैरिफ

यूरोप पर टैरिफ के ऐलान से पहले ट्रम्प ने भारत और दूसरे देशों में बनने वाले आईफोन पर 25% टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी।

ट्रम्प ने कहा कि

मैंने पहले ही Apple के टिम कुक को बता दिया था कि अमेरिका में बिकने वाले iPhones अमेरिका में ही बनाए जाने चाहिए। भारत या कहीं और नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो Apple को अमेरिका को कम से कम 25% टैरिफ देना होगा।

बाद में ट्रम्प ने साफ किया कि विदेशों में बने सभी स्मार्टफोन पर टैरिफ लगेगा और यह जून के अंत तक लागू हो सकता है।

ट्रम्प नहीं चाहते कि एपल के प्रोडक्ट भारत में बनें

डोनाल्ड ट्रम्प नहीं चाहते कि एपल के प्रोडक्ट भारत में बने। पिछले हफ्ते ट्रम्प ने कंपनी के CEO टिम कुक से कहा था कि भारत में फैक्ट्रियां लगाने की जरूरत नहीं है। इंडिया अपना ख्याल खुद रख सकता है।

एपल CEO के साथ हुई इस बातचीत की जानकारी ट्रम्प ने गुरुवार (15 मई) को कतर की राजधानी दोहा में बिजनेस लीडर्स के साथ कार्यक्रम में दी। उन्होंने कहा था कि एपल को अब अमेरिका में प्रोडक्शन बढ़ाना होगा।

इसके बावजूद एपल की सबसे बड़ी कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर फॉक्सकॉन ने भारत में 1.49 बिलियन डॉलर (करीब ₹12,700 करोड़) का निवेश किया है। फॉक्सकॉन ने अपने सिंगापुर यूनिट के जरिए बीते 5 दिन में तमिलनाडु के युजहान टेक्नोलॉजी (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड में यह निवेश किया है।

2026 तक देश में सालाना 6 करोड़+ आईफोन बनेंगे

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए एपल काफी समय से अपनी सप्लाई चेन को वहां से बाहर शिफ्ट करने पर काम कर रही है।

एपल अगर अपनी असेंबलिंग भारत की ओर इस साल के आखिर तक शिफ्ट कर लेती है, तो 2026 से यहां सालाना 6 करोड़ से ज्यादा आईफोन का प्रोडक्शन होगा। ये मौजूदा कैपेसिटी से दोगुना है।

आईफोन के मैन्युफैक्चरिंग पर अभी चीन का दबदबा है। IDC के अनुसार, 2024 में कंपनी के ग्लोबल आईफोन शिपमेंट में इसका हिस्सा लगभग 28% था।


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गोरे किसानों का नरसंहार,साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति को उनका वीडियो दिखाकर जलील करते रहे ट्रंप

दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा संबंधों को फिर से सुधारने अमेरिका (Donald Trump-Cyril Ramaphosa Argumet) पहुंचे थे, लेकिन व्हाइट हाउस में ट्रंप ने उनको ऐसे जलील किया कि पूरी दुनिया ने देखा. ये बिल्कुल वैसा ही था, जैसा कुछ समय पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ हुआ था. ट्रंप ने गोरे किसानों की हत्या का ऐसा मुद्दा उठाया कि सिरिल रामफोसा से उनकी जमकर तीखी बहस होने लगी. यह ट्रंप की मीडिया के सामने किसी विदेशी नेता के साथ दूसरी बड़ी बहस थी.

ट्रंप- रामफोसा के बीच तीखी नोकझोंक

बता दें कि 1994 में रंगभेद युग के समाप्त होने के बाद से दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बीच के संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं. इस मुलाकात का मकसद दोनों देशों के बीच रिश्तों को फिर से सुधारना था. ट्रंप- रामफोसा के बीच दोस्ताना माहौल में बैठक शुरू तो हुई लेकिन खत्म वैसे नहीं हुई. क्यों कि डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के सामने अचानक 'श्वेत नरसंहार' का मुद्दा उठाकर सबको चौंका दिया. किसी ने सोचा नहीं था कि बैठक में ये मुद्दा भी उठेगा.

अचानक गरमा गया व्हाइट हाउस का माहौल

शुरुआत में तो दोनों नेताओं के बीच व्यापार और खनिज संसाधनों पर चर्चा हुई, लेकिन ट्रंप ने अचानक एक वीडियो चलवाया जिसमें दावा किया गया था कि दक्षिण अफ्रीका में हजारों श्वेत किसानों की हत्या कर दी गई है. बस फिर क्या था व्हाइट हाउस का माहौल अचानक गरमा गया. 

जब जोर-जोर चिल्लाने लगे ट्रंप

राष्ट्रपति रामफोसा हालांकि शांत रहे और वीडियो को देखते रहे. हालांकि उन्होंने वीडियो में किए गए दावे को नकार दिया. उन्होंने कहा कि वह इस वीडियो की प्रामाणिकता की जांच करेंगे. लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप शांत नहीं रहे. उन्होंने आक्रामक रुख अपनाते हुए उनको लेखों की प्रतियां दिखा डालीं, जिनमें दक्षिण अफ्रीका में मारे गए गोरे लोगों का जिक्र था. ट्रंप ने जोर-जोर से "मृत्यु, मृत्यु..." कहते हुए पन्ने पलटे, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया.

श्वेत नरसंहार का मुद्दा उठा और फिर...

ट्रंप ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में श्वेत लोगों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया जाता है.वीडियो में हजारों श्वेत किसानों की कब्रें दिखाई गई हैं. हालांकि रामफोसा ने उनके इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ऐसा उन्होंने पहले नहीं देखा, वह इसकी जांच करवाएंगे. लेकिन ट्रंप यहीं शांत नहीं हुए उन्होंने कई लेख भी दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति को दिखाए. जिसके बाद ट्रंप का दिमाग गरमा गया और व्हाइट हाउस का माहौल भी गरम हो गया. 


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US में इजरायली दूतावास के 2 कर्मचारियों की हत्या, हमलावर ने 'फ्री फलस्तीन' के नारे लगाकर उतारा मौत के घाट

अमेरिका के वॉशिंगटन में यहूदी संग्रहालय के पास से गोलीबारी की खबर सामने आई है। इस घटना में इजरायली दूतावास के दो कर्मचारी की मौत हो गई। होमलैंड सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने इस घटना की जानकारी दी है।

नोएम ने एक्स पर एक पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया, जहां गोलीबारी हुई वह जगह एफबीआई के फील्ड ऑफिस से कुछ कदम की दूरी पर स्थित है। मामले की जांच की जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, हमलावर को फिलहाल हिरासत में ले लिया गया है, उसने इस दौरान फ्री फलस्तीन के नारे भी लगाए।

मौके पर पहुंचे अमेरिकी अटॉर्नी जनरल

वहीं अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पाम बोंडी और डीसी के कार्यवाहक अमेरिकी अटॉर्नी जीनिन पिरो कैपिटल यहूदी संग्रहालय के बाहर गोलीबारी की घटना स्थल पर पहुंच गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के राजदूत डैनी डैनन ने गोलीबारी को 'यहूदी-विरोधी आतंकवाद' का घृणित कृत्य करार दिया। हालांकि पुलिस ने अभी गोलीबारी के संभावित मकसद के बारे में कोई डिटेल नहीं दी। एक समाचार सम्मेलन की उम्मीद है।

गोलीबारी के बाद इजरायल के राजदूत का आया पोस्ट

डैनन ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'हमें विश्वास है कि अमेरिकी अधिकारी इस आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे।' इजरायल अपने नागरिकों और प्रतिनिधियों की रक्षा के लिए दृढ़ता से काम करना जारी रखेगा।


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देश में फिर कोरोना की दहशत!, मुंबई में 53 मरीज मिले पॉजिटिव-2 की मौत, अलर्ट पर विभाग

 मुंबई में एक बार फिर कोरोना संक्रमण ने रफ्तार पकड़ ली है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) क्षेत्र में अब तक कुल 53 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पुष्टि हो चुकी है, जिससे स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ गई है। वहीं, संक्रमण के चलते दो मरीजों की मौत भी दर्ज की गई है। हालांकि, दोनों ही मरीज पहले से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे—एक को मुंह का कैंसर था और दूसरा नेफ्रोटिक सिंड्रोम से पीड़ित था। दोनों ही मरीजों का इलाज मुंबई के केईएम अस्पताल में चल रहा था।

Panic of Corona again in the country! 53 patients tested positive in Mumbai, 2 died; Department on alert : बीएमसी ने कोविड मरीजों की संख्या बढ़ते देख अपने अस्पतालों में विशेष बिस्तर और अलग कमरे तैयार किए हैं। सेवन हिल्स अस्पताल में 20 MICU बेड, 20 बेड बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए तथा 60 सामान्य बिस्तरों की व्यवस्था की गई है। कस्तूरबा अस्पताल में फिलहाल 2 ICU बेड और 10 बेड का वार्ड मौजूद है। प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि ज़रूरत पड़ने पर यह क्षमता और बढ़ाई जा सकती है।

जनवरी 2025 से अप्रैल 2025 तक कोविड मामलों की संख्या बेहद कम थी, लेकिन मई के पहले सप्ताह से इसमें बढ़ोतरी देखी गई है। बीएमसी ने नागरिकों से अपील की है कि वे घबराएं नहीं, लेकिन सतर्क रहें और लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लें।

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, कोविड-19 के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं- बुखार, सूखी या कफ के साथ खांसी, गले में खराश, थकावट और शरीर में दर्द, सिरदर्द, कभी-कभी नाक बहना, सर्दी, गंध या स्वाद का न आना। यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्या होती है तो यह गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना आवश्यक है।

बीएमसी ने कहा है कि नगर निगम के अस्पतालों में उपचार, परामर्श और जांच की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। साथ ही, नागरिकों से अपील की गई है कि वे भीड़भाड़ वाले स्थानों पर मास्क का उपयोग करें, हाथों की सफाई का ध्यान रखें, और स्वास्थ्य संबंधी लक्षणों को नजरअंदाज न करें।

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पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को प्रोस्टेट कैंसर,हड्डियों तक फैली बीमारी

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को प्रोस्टेट कैंसर हो गया है। यह अब हड्डियों तक फैल चुका है। बाइडेन के ऑफिस ने रविवार को बयान जारी कर इसकी जानकारी दी है।

82 साल के बाइडेन ने पिछले हफ्ते पेशाब में दिक्कत होने पर डॉक्टर को दिखाया था। जांच के बाद बीते शुक्रवार को उन्हें इस बीमारी का पता चला।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बाइडेन की बीमारी को लेकर कहा- मेलानिया और मैं उनकी बीमारी के बारे में जानकर दुखी हैं। हम जिल बाइडेन और उनके परिवार के लिए दुआ करते हैं और जो बाइडेन के जल्दी और पूरी तरह ठीक होने की कामना करते हैं।

2023 में स्किन कैंसर का इलाज कराया था

इससे पहले 2023 में जो बाइडेन को स्किन कैंसर हुआ था। व्हाइट हाउस के डॉक्टरों ने बताया कि उनकी छाती पर बेसल सेल कार्सिनोमा पाया गया था, जो एक सामान्य प्रकार का त्वचा कैंसर था। इस घाव को फरवरी में सर्जरी के दौरान हटा दिया गया था।

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक अमेरिका में, प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को होने वाला सबसे आम कैंसर है और कैंसर से होने वाली मौतों की दूसरी प्रमुख वजह है।

सबसे ज्यादा उम्र के अमेरिकी राष्ट्रपति रहे हैं बाइडेन

82 साल के बाइडेन ने 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प को हराया था और पिछले साल फिर से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उनकी उम्र और मानसिक स्थिति पर सवाल उठने की वजह से उन्होंने राष्ट्रपति पद की रेस से हटने का फैसला किया था।

उन्होंने तत्कालीन उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को समर्थन दिया था। बाइडेन से 3 साल छोटे ट्रम्प ने पिछले साल नवंबर में कमला हैरिस को हराकर दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव जीता था।

जो बाइडेन अमेरिका में राष्ट्रपति बनने वाले सबसे ज्यादा उम्र के शख्स बने थे। जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तब उनकी उम्र 78 साल 220 दिन थी। ट्रम्प जब दूसरी बार राष्ट्रपति बने थे, तब उनकी उम्र 78 साल 61 दिन है। अमेरिकी संविधान के मुताबिक ट्रम्प तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे। ऐसे में कुछ सालों तक बाइडेन का रिकॉर्ड कायम रहेगा।

सबसे युवा सीनेटर से राष्ट्रपति तक बाइडेन के करियर पर एक नजर

राष्ट्रपति पद से हटने के साथ ही बाइडेन के 5 दशक के राजनीतिक करियर का अंत हो गया था। उन्होंने 1972 में डेलावेयर राज्य से 30 साल की उम्र में सीनेटर चुनाव जीतकर अपने करियर की शुरुआत की थी। उस वक्त बाइडेन देश के सबसे युवा सीनेटर थे।

उन्होंने 1988 और 2008 में राष्ट्रपति उम्मीदवारी की रेस में भी हिस्सा लिया था। 2008 में बराक ओबामा की जीत के बाद वो अगले 2 कार्यकाल तक उपराष्ट्रपति भी रहे थे। 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी ने डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ उन्हें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया था।

2020 में ट्रम्प को हराकर बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बने थे। 2024 में उन्होंने पार्टी के दबाव की वजह से दूसरी बार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छोड़ दी थी। इसके बाद कमला हैरिस राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं, जिन्हें ट्रम्प के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के नतीजे पर बोलते हुए बाइडेन ने कहा था कि अगर वो उम्मीदवार होते तो ट्रम्प को हरा सकते थे।

अब जानिए क्या होता है प्रोस्टेट कैंसर

एक आंकड़े के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल करीब 14 लाख लोग प्रोस्टेट कैंसर के शिकार होते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक लंग्स और माउथ कैंसर के बाद पुरुषों पर सबसे ज्यादा प्रोस्टेट कैंसर का खतरा रहता है। 50 की उम्र के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है। कई मामलों में इससे कम उम्र के मरीज भी सामने आए हैं।

कई केस ऐसे भी हैं जब तक इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। प्रोस्टेट कैंसर भीतर ही भीतर बढ़ते हुए ब्लैडर, लिवर, फेफड़ों और पेट जैसे अंगों में भी फैल जाता है। खून के साथ कैंसर की कोशिकाएं हड्डियों तक पहुंच जाती हैं, जिससे हड्डियों में बेतहाशा दर्द रहने लगता है, वह टूटने लगती हैं।

प्रोस्टेट कैंसर की वजह से संबंध बनाने से लेकर हमेशा के लिए पिता बनने की क्षमता तक खत्म हो सकती है। बीमारी ही नहीं, इसके इलाज के भी साइड इफेक्ट्स से जूझना पड़ सकता है। प्रोस्टेट कैंसर में यूज होने वाली हॉर्मोन थेरेपी से टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन बनने बंद हो सकते हैं और इरेक्टाइल डिसफंक्शन का सामना करना पड़ सकता है।

रेडिएशन थेरेपी का भी पुरुषों के रिप्रोडक्टिव हेल्थ यानी पिता बनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। जान बचाने के लिए प्रोस्टेट ग्लैंड ही निकालनी पड़ सकती है। इसीलिए अगर मरीज की उम्र कम हो, तो सर्जरी से पहले डॉक्टर मरीज को स्पर्म फ्रीज कराने की सलाह देते हैं, ताकि आईवीएफ जैसी सुविधा के जरिए व्यक्ति पिता बन सके।

स्पर्म को बचाने का इंतजाम करती है प्रोस्टेट ग्लैंड्स

प्रोस्टेट ग्लैंड्स पुरुषों के प्रजनन तंत्र का अहम हिस्सा है। इसमें बनने वाला लिक्विड स्पर्म की सुरक्षा करता है, उसे पोषण देता है और उन्हें फीमेल रिप्रोडक्टिव अंगों तक पहुंचाने में मदद करता है। यह इजेकुलेशन और यूरिनेशन के बीच एक मेकेनिकल स्विच का काम करता है। इजेकुलेशन के दौरान प्रेशर के साथ सीमन को यूरेथ्रा से बाहर फेंकता है।

आमतौर पर प्रोस्टेट ग्लैंड का वजन करीब 30 ग्राम होता है। उम्र के साथ इसका साइज बढ़ता रहता है। लेकिन, कई बार इसके बढ़ने की वजह कैंसर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।


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इजरायल को मान्यता दे सकता है सीरिया, ट्रंप ने हटाए सारे प्रतिबंध, सऊदी पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति ने बदली खाड़ी देशों की राजनीति

मिडिल ईस्ट की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है और सीरिया, जो इजरायल का जानी दुश्मन रहा है, वो अब इजरायल को मान्यता दे सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा (जो पिछले साल तक अमेरिकी आतंकी सूची में था) उससे रियाद में मुलाकात की। उनके साथ सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी थे। डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अल-शरा से अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने और इजरायल को मान्यता देने को कहा है। इसके अलावा ट्रंप ने सीरिया से सारे प्रतिबंध हटाने की घोषणा कर दी है। वाइट हाउस के एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को रियाद में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की। यह मुलाकात संघर्ष-ग्रस्त देश पर प्रतिबंध हटाने की घोषणा के ठीक एक दिन बाद हुई।

वाइट हाउस के अधिकारी के मुताबिक यह बैठक डोनाल्ड ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे के हिस्से के रूप में सऊदी अरब में खाड़ी अरब नेताओं के व्यापक शिखर सम्मेलन से पहले हुई है। सीरिया, जो पिछले साल तक ईरान का प्रॉक्सी था और बशर अल-असद, जो पिछले साल तक ईरान के खेमे में थे, उनकी सरकार को अल-शरा ने गिरा दिया था। जिसके बाद बशर अल-असद भागकर रूस चले गये थे और अब ट्रंप ने सीरिया को अमेरिका के खेमे में जगह दे दी है।

इजरायल को मान्यता दे सकता है सीरिया

वाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट के आधिकारिक बयान के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप ने सीरियाई राष्ट्रपति से इजरायल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया और कहा कि उनके पास "अपने देश में कुछ ऐतिहासिक करने का एक शानदार अवसर है।" ट्रंप ने रिया के राष्ट्रपति अल-शरा से "सभी विदेशी आतंकवादियों को सीरिया छोड़ने, फिलिस्तीनी आतंकवादियों को निर्वासित करने, ISIS को सिर उठाने से रोकने में अमेरिका की मदद करने और देश के उत्तरपूर्वी हिस्सों में ISIS हिरासत केंद्रों की जिम्मेदारी संभालने के लिए भी कहा है।"

वाइट हाउस के बयान में कहा गया है कि "सीरियाई राष्ट्रपति ने 1974 में इजरायल के साथ हुए समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है, जिसमें ईरानियों के सीरिया छोड़ने और आतंकवाद से निपटने के अलावा रासायनिक हथियारों को खत्म करने में अमेरिका-सीरिया के संयुक्त कोशिशों में दिलचस्पी दिखाई है।" वहीं सूत्रों के हवाले से द जेरूसलम पोस्ट ने लिखा है कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी ट्रंप और सीरियाई राष्ट्रपति की मुलाकात के दौरान बैठक में मौजूद थे और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इसमें शामिल हुए। लेविट ने कहा कि एर्दोगन और सऊदी क्राउन प्रिंस ने सीरिया पर प्रतिबंध हटाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की।

मिडिल ईस्ट में बदल जाएगी राजनीति

डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता के बाद मानकर चलिए की सीरिया, बहुत जल्द इजरायल को मान्यता दे देगा। अस-सरा को इसके जरिए अमेरिका से मान्यता मिल रही है और वो अमेरिकी खेमे का हिस्सा बन गये हैं। उनके साथ सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश खड़े हो चुके हैं। ऐसे में इजरायल को मान्यता देकर अल-सरा अमेरिका से सीरिया की मदद के लिए भारी भरकम सहायता हासिल कर सकते हैं और सीरिया के दूसरे क्षेत्र, जिनमें अभी भी विद्रोही हावी है, उनके खिलाफ ऑपरेशन चलाकर पूरे सीरिया को अपने कंट्रोल में ले सकते हैं। इसके अलावा ईरान के लिए ये बहुत बड़ा झटका है। पिछले साल तक सीरिया बशर अल-असद के शासनकाल के दौरान, ईरान के लिए एक लॉन्च पैड की तरह काम करता था। सीरिया में हिज्बुल्लाह का कैंप था, जो एक आतंकवादी संगठन है, जिसे ईरान का प्रॉक्सी माना जाता है।

लेकिन अल-सरा के शासन में आने के बाद हिज्बुल्लाह के आतंकियों को सीरिया से वापस लेबनान भागना पड़ा। वहीं ईरान, अब इजरायल के खिलाफ आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए सीरिया की जमीन का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। इसके अलावा विडंबना ये भी है कि जिस गाजा में इजरायल के भयानक ऑपरेशन के बाद भी खाड़ी देश अगर इजरायल को मान्यता देते हैं, तो फिर 'गाजा मुद्दे' का क्या होगा, ये एक बड़ा सवाल होगा?


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रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट नए पोप बने,अमेरिका से पोप बनने वाले पहले कार्डिनल

वेटिकन में आज पैपल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन नए पोप का चयन हो गया। 69 साल के रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को नया पोप चुन लिया गया है। वो अमेरिका से पोप बनने वाले पहले कार्डिनल हैं। उन्होंने अपने लिए पोप लियो-14 नाम चुना है।

133 कार्डिनल्स ने वोटिंग के जरिए दो-तिहाई बहुमत (89 वोट) से उन्हें पोप चुना। 1900 के बाद से यह पांचवां मौका है जब नए पोप को दो दिनों में चुन लिया गया।

वोटिंग के दूसरे ही दिन रोमन कैथोलिक चर्च के सिस्टीन चैपल पर स्थित चिमनी से सफेद धुआं निकला, जिससे पता चलता है कि नए पोप का चयन हो गया है।

नए पोप का चयन होते ही वेटिकन में मौजूद 45 हजार से ज्यादा लोगों ने जोरदार तालियां बजाई और एक दूसरे को बधाई दी। इससे पहले 7 मई को वोटिंग के पहले दिन किसी को भी पोप नहीं चुना गया था।

कल सिस्टिन चैपल में औपचारिक जुलूस और हर कार्डिनल की तरफ से गोपनीयता की शपथ लेने के बाद, बुधवार रात करीब 9:15 बजे वोटिंग का पहला दौर शुरू हुआ था।

नए पोप ने पहले संबोधन में कहा- सबके दिलों में शांति हो

पोप चुने जाने के बाद पोप लियो-14 ने सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से स्पेनिश भाषा में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने लोगों से दूसरों के लिए दया दिखाने और प्रेम के साथ रहने की अपील की।

उन्होंने कहा- मैं सभी कार्डिनल्स को शुक्रिया करना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे फ्रांसिस के उत्तराधिकारी के तौर पर चुना है। मैं उन पुरुषों और महिलाओं के साथ काम करने की कोशिश करूंगा जो मिशनरी बनकर बिना किसी डर के यीशु का प्रचार करते हैं और उनके लिए वफादार हैं।

पोप फ्रांसिस के करीबी माने जाते हैं नए पोप

पोप लियो का जन्म 14 सितंबर 1955 को अमेरिका के इलिनोय में हुआ था। वे पोप फ्रांसिस के करीबी सहयोगी माने जाते थे और उनकी विचारधारा भी पोप फ्रांसिस से मेल खाती है। उन्होंने पोप फ्रांसिस के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें तलाकशुदा और दोबारा शादी करने वाली महिलाओं को त्योहार मनाने की इजाजत दी गई थी।

कोई भी नाम चुन सकते हैं पोप

जब एक कार्डिनल को पोप चुना जाते हैं तो उनसे पूछा जाता है कि वह किस नाम से बुलाए जाना चाहते हैं। यह परंपरा 6वीं सदी से चली आ रही है। पोप के पास आजादी है कि वह कोई भी नाम चुन सकते हैं, लेकिन आमतौर पर वे पहले के पोप या संतों के नाम चुनते हैं।

7 मई को वोटिंग शुरू होने से लगभग 90 मिनट पहले सभी सिग्नल बंद कर दिए थे। लीक को रोकने के लिए कॉन्क्लेव क्षेत्र को सख्त लॉकडाउन में रखा गया था।

2013 में भी यही तरीका अपनाया गया था जब पोप फ्रांसिस के चुनाव के लिए सिग्नल ब्लॉकर्स लगाए गए थे। वेटिकन में रोजाना का काम करने वाले कर्मचारियों ने भी मौन रहने की शपथ ली है।

कॉन्क्लेव एक गुप्त और पवित्र प्रक्रिया है, जो 13वीं शताब्दी से चली आ रही है। वेटिकन के संविधान के मुताबिक पोप के निधन के 15 से 20 दिनों के भीतर कॉन्क्लेव की शुरुआत होनी चाहिए।

कॉन्क्लेव की शुरुआत से 2 दिन पहले वेटिकन के कर्मचारियों जैसे कि पुजारी, सुरक्षा गार्ड, डॉक्टर, टेक्नीशियन आदी ने प्राइवेसी की शपथ ली है, ताकि नए पोप के चुनाव की गोपनीयता बनी रहे।

वोटिंग से पहले सिस्टीन चैपल को बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग कर दिया जाता है। इस पूरे इलाके की जांच की जाती है। कार्डिनल्स के पास मोबाइल फोन, इंटरनेट और न्यूजपेपर की सुविधा नहीं होती।

पैपल कॉन्क्लेव- नए पोप की चयन प्रक्रिया

पोप की मौत के बाद अगले पोप के दावेदारों के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होती है। नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। जब पोप की मौत हो जाती है या फिर वे इस्तीफा दे देते हैं, तब कैथोलिक चर्च के कार्डिनल्स चुनाव करते हैं।

कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है, लेकिन अब तक हर पोप चुने जाने से पहले कार्डिनल रह चुके हैं।

जितने भी कार्डिनल्स नए पोप का चुनाव करेंगे, उसमें से ज्यादातर को पोप फ्रांसिस ने चुना था। इसलिए माना जा रहा है कि नए पोप भी फ्रांसिस की तरह उदार और बदलाव को स्वीकार करने वाले होंगे।

गोपनीयता की कसम खाते हैं कार्डिनल्स

कॉन्क्लेव का पहला दिन विशेष प्रार्थना सभा से शुरू होता है। प्रार्थना के दौरान सभी कार्डिनल्स एक कमरे में एकजुट होते हैं। इसमें हर एक कार्डिनल गॉस्पेल यानी पवित्र किताब पर हाथ रखकर यह कसम खाता है कि वह इस चुनाव से जुड़ी किसी भी जानकारी का कभी भी किसी और के सामने खुलासा नहीं करेगा।

इसके बाद कमरे को बंद कर दिया जाता है फिर सीक्रेट तरीके से वोटिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। वोटिंग शुरू होने के दौरान हर एक कार्डिनल को एक बैलेट दिया जाता है। वह उस पर उस शख्स का नाम लिखता है, जिसे वह पोप बनाना चाहता है।

इसके बाद इन्हें एक प्लेट में रखा जाता है। इसके बाद तीन अधिकारी इन्हें गिनते हैं। यदि किसी व्यक्ति को दो-तिहाई बहुमत मिलते हैं, तो वह नया पोप घोषित होता है। इस बार पोप बनने के लिए 89 वोट हासिल करना होगा।

काले-सफेद धुएं से पता चलता है पोप चुने गए या नहीं

अगर किसी को 89 वोट नहीं मिले तो सभी बैलेट को जला दिया जाएगा। इस दौरान बैलेट में एक खास रसायन मिलाया जाएगा, जिससे काला धुआं निकलेगा। काले धुएं का मतलब- अभी तक नए पोप को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है। सफेद धुआं तब निकलता है जब नया पोप चुन लिया जाता है।

कॉन्क्लेव के दौरान हर दिन चार बार मतदान होता है। दो सुबह में और दो दोपहर में। यदि किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिलता, तो वोटिंग की प्रक्रिया दोहराई जाती है।

अगर किसी उम्मीदवार को 89 वोट्स मिल जाएंगे, उनसे पूछा जाएगा कि क्या आप पोप के रूप में चुने जाने को स्वीकार करते हैं? उसकी मंजूरी मिलने के बाद वेटिकन की सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से नए पोप मिलने की घोषणा की जाती है। इसके बाद नए पोप औपचारिक रूप से पद ग्रहण करते हैं।

पोप बनने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत क्यों होती है?

साल 1159 के चुनाव में एक साथ 2 पोप चुन लिए गए थे। कार्डिनल्स के बड़े गुट ने कार्डिनल रोलैंडो को पोप अलेक्जेंडर-3 के रूप में चुना। वहीं, कार्डिनल्स के छोटे गुट ने मोंटीसेली को पोप विक्टर-4 के रूप में चुना।

छोटे गुट के पोप को राजा फ्रेडरिक बारबोसा का समर्थन हासिल था। ऐसे में पोप अलेक्जेंडर-3 को ज्यादातर समय रोम से बाहर ही बिताना पड़ा। वहीं, कम समर्थन वाले पोप रोम में जमे रहे। यह विवाद 1164 में पोप विक्टर-4 की मौत के बाद ही समाप्त हुआ।

इसके बाद से ही पोप चुनने की प्रक्रिया में बदलाव किए गए। सभी कार्डिल्स के बीच ज्यादा से ज्यादा सहमति रहे इसलिए पोप के चुनाव के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत रखी गई है। वोटिंग की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जब तक किसी एक को दो-तिहाई वोट नहीं मिल जाते।

वोटिंग के तीन दिन बीत जाने के बाद भी कोई पोप नहीं चुना जाता है, तो वोटिंग एक दिन के लिए रुक जाती है। 33 दौर के बाद भी अगर कोई नहीं चुना जाता है तब नए नियम के तहत टॉप-2 दावेदारों के बीच मुकाबला होता है।

नए पोप के लिए दो चुनाव जो सबसे लंबे चले

13वीं शताब्दी में सबसे लंबे समय तक पोप का चुनाव चला था। तब नवंबर 1268 से सितंबर 1271 तक पोप के लिए वोटिंग होती रही। इतने लंबे समय तक चले चुनाव की असल वजह अंदरूनी कलह और बाहरी हस्तक्षेप को बताया गया था। इसके बाद से ही बंद कमरे में वोटिंग होनी शुरू हुई।

अब तक का सबसे छोटा सम्मेलन 1503 में हुआ था, जब कार्डिनलों को पोप पायस थर्ड को नया पोप चुनने में सिर्फ 10 घंटे लगे थे। अब तक के सबसे लम्बे सम्मेलन में करीब तीन साल का वक्त लगा था।

1268 में पोप क्लेमेंट फोर्थ के उत्तराधिकारी के लिए 1271 तक सम्मेलन चला और फिर पोप ग्रेगरी X का चुनाव किया गया।

1740 में पोप के चुनाव में 7 महीने लगे थे। 21वीं सदी में अब तक पोप के चुनाव के लिए 2 कॉन्क्लेव हुए हैं। 2005 में पोप बेनेडिक्ट को 3 दिन में चार राउंड वोटिंग के बाद और 2013 में पोप फ्रांसिस को 2 दिन में 5 राउंड वोटिंग के बाद चुना गया था।

इस बारे के संभावित उत्तराधिकारियों में कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें फिलीपींस के कार्डिनल लुइस एंटोनियो तगले, अफ्रीका से कार्डिनल पीटर टर्कसन, और इटली के कार्डिनल माटेओ जुप्पी अहम हैं।


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