डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए मुश्किल हुआ अमेरिकी वीजा हासिल करना

अमेरिका में अब डायबिटीज, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को वीजा मिलना मुश्किल हो सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग ने शुक्रवार को दुनियाभर के अपने दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया कि गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों को अमेरिका आने या वहां रहने की अनुमति न दी जाए।

यह कदम ‘पब्लिक चार्ज’ (सार्वजनिक बोझ) नीति के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य ऐसे अप्रवासियों को रोकना है जो भविष्य में अमेरिकी सरकारी संसाधनों पर निर्भर हो सकते हैं।

वीजा अधिकारी जांचेंगे स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति

नए दिशा-निर्देशों के तहत वीजा अधिकारी अब आवेदक की उम्र, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति का आकलन करेंगे। अगर किसी व्यक्ति के भविष्य में महंगे इलाज या सरकारी सहायता पर निर्भर होने की संभावना दिखती है, तो उसका वीजा खारिज किया जा सकता है।

अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे यह तय करें कि क्या आवेदक अमेरिकी सरकार पर बोझ बन सकता है। इसमें डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, मोटापा, मेटाबॉलिक या न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसी स्थितियों को शामिल किया गया है, जो लंबे इलाज और भारी खर्च की मांग करती हैं।

स्वास्थ्य जांच में बढ़ेगी सख्ती

पहले वीजा प्रक्रिया में सिर्फ संक्रामक रोगों जैसे टीबी और एचआईवी की जांच होती थी। अब अधिकारियों को आवेदक की पुरानी बीमारियों, इलाज के खर्च और आर्थिक स्थिति का पूरा रिकॉर्ड देखने को कहा गया है।

इस दौरान उनसे यह भी पूछा जाएगा कि क्या वे बिना सरकारी सहायता के अपना इलाज खुद करा सकते हैं, क्या उनके परिवार के सदस्य (बच्चे या बुजुर्ग माता-पिता) बीमार हैं, और क्या उनकी देखभाल का खर्च आवेदक उठा सकता है।

विशेषज्ञों ने जताई चिंता

इमिग्रेशन विशेषज्ञों ने इस नीति पर चिंता जताई है। लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क के वकील चार्ल्स व्हीलर का कहना है कि “वीजा अधिकारी स्वास्थ्य स्थितियों का मूल्यांकन करने में प्रशिक्षित नहीं हैं।” वहीं, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील सोफिया जेनोवेस ने कहा कि “डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम किसी को भी हो सकती है। यदि हर बीमारी के आधार पर वीजा अस्वीकृत होने लगा तो इंटरव्यू प्रक्रिया बेहद जटिल हो जाएगी।”

किस पर पड़ेगा असर?

नया नियम सभी वीजा कैटेगरी—जैसे B-1/B-2 (पर्यटन/व्यवसाय) और F-1 (छात्र)—पर लागू हो सकता है। इसका सबसे अधिक असर उम्रदराज माता-पिता, विकलांग बच्चों वाले परिवारों और क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे पेशेवरों पर पड़ने की संभावना है।

भारतीयों पर बड़ा असर

भारत पर इस नियम का खासा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यहां डायबिटीज और मोटापे के सबसे अधिक मामले हैं। हर साल करीब 1 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, जिनमें से लगभग 70% आईटी और हेल्थकेयर प्रोफेशनल होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नीति से भारतीय आवेदनों की अस्वीकृति दर 20-30% तक बढ़ सकती है।

भारत: ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’

अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के मुताबिक, भारत में वर्तमान में 10.1 करोड़ वयस्क डायबिटीज से पीड़ित हैं, और यह संख्या 2045 तक 13.4 करोड़ तक पहुंच सकती है। ऐसे में बड़ी संख्या में भारतीय अप्रवासी इस नए नियम से प्रभावित होंगे।

संभावित परिणाम

वीजा और ग्रीन कार्ड रिजेक्शन बढ़ेगा।

लोग बीमारियों को छिपाने या इलाज टालने लगेंगे।

अप्रवासी परिवार सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं से दूर रहेंगे।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है।

नए नियम के चलते अमेरिका जाने के इच्छुक कई भारतीय पेशेवरों को अब अपने स्वास्थ्य और आर्थिक दस्तावेजों की पहले से ज्यादा तैयारी करनी होगी।


...

अमेरिकी प्रतिबंधों का असर: 21 नवंबर से भारत में घटेगा रूसी तेल का आयात

भारत नवंबर के अंत से रूसी कच्चे तेल की सीधी खरीद में कमी करने की तैयारी में है। यह निर्णय रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर 21 नवंबर से लागू होने वाले नए अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनज़र लिया जा रहा है।

विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय रिफाइनरी कंपनियां — रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL), मंगलौर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (MRPL) और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड (HMEL) — जो देश के कुल रूसी तेल आयात का आधे से अधिक हिस्सा रखती हैं, अब अमेरिकी नियमों के अनुपालन में रूस से सीधे तेल की खरीद घटा सकती हैं।

अमेरिका ने लगाए कड़े प्रतिबंध

अमेरिका ने रूसी ऊर्जा दिग्गजों रोसनेफ्ट और ल्यूकऑयल पर 21 नवंबर से कठोर आर्थिक प्रतिबंध लागू करने की घोषणा की है। इन प्रतिबंधों के तहत दोनों कंपनियों की अमेरिकी संपत्तियों और वित्तीय लेनदेन पर रोक लगाई जाएगी। इतना ही नहीं, जो विदेशी कंपनियां इनके साथ बड़े सौदे करेंगी, वे भी अमेरिकी द्वितीयक प्रतिबंधों के दायरे में आ सकती हैं।

भारत अब अन्य देशों से खरीदेगा तेल

नौवहन ट्रैकिंग फर्म केप्लर के मुताबिक, भारत घटते रूसी आयात की भरपाई के लिए अब पश्चिम एशिया, दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रहा है। अक्टूबर में भारत ने अमेरिका से 5.68 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो मार्च 2021 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है।

रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश

रिलायंस का रोसनेफ्ट के साथ लंबी अवधि का आपूर्ति करार है, जबकि एमआरपीएल और एचएमईएल ने फिलहाल रूसी तेल की आगामी खेपों को स्थगित करने का निर्णय लिया है। वर्ष 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से औसतन 18 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का आयात किया था, जिसमें इन तीन कंपनियों की प्रमुख हिस्सेदारी रही।

हालांकि, गुजरात के वडिनार स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी, जिसमें रोसनेफ्ट की आंशिक हिस्सेदारी है, अपनी मौजूदा रूसी तेल आपूर्ति प्रणाली को जारी रखेगी। यह रिफाइनरी पहले से ही यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के तहत काम कर रही है और मुख्य रूप से रूसी कच्चे तेल पर निर्भर है।


...

जोहरान ममदानी बने न्यूयॉर्क के नए मेयर: भारतीय मूल के नेता ने रचा इतिहास

जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। वे अमेरिका के सबसे बड़े शहर के मेयर बनने वाले पहले दक्षिण एशियाई और मुस्लिम नेता हैं।

34 वर्षीय ममदानी लंबे समय से न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे। मंगलवार को उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा और स्वतंत्र उम्मीदवार तथा पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को मात देकर जीत हासिल की। ममदानी ने इससे पहले डेमोक्रेटिक प्राइमरी में भी कुओमो को हराया था और जून में ही अपनी जीत सुनिश्चित कर ली थी।

कौन हैं जोहरान ममदानी?

भारतीय मूल के जोहरान ममदानी मशहूर फिल्म निर्माता मीरा नायर और कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महमूद ममदानी के बेटे हैं। उनका जन्म युगांडा के कंपाला में हुआ और सात साल की उम्र में वे परिवार के साथ न्यूयॉर्क आ गए। उन्होंने ब्रोंक्स हाई स्कूल ऑफ साइंस से पढ़ाई की और बॉडॉइन कॉलेज से अफ्रीकाना अध्ययन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

राजनीति में आने से पहले ममदानी ने एक हाउसिंग कंसलटेंट के रूप में काम किया, जहाँ वे कम आय वाले परिवारों को बेदखली से बचाने में मदद करते थे।

राजनीतिक सफर

ममदानी ने 2020 में पहली बार न्यूयॉर्क राज्य विधानसभा का चुनाव जीता और 36वें विधानसभा क्षेत्र — जिसमें एस्टोरिया, डिटमार्स-स्टाइनवे और एस्टोरिया हाइट्स जैसे इलाके आते हैं — का प्रतिनिधित्व किया। आवास संकट और सामाजिक समानता के मुद्दों पर वे लगातार मुखर रहे हैं।

मेयर बनने के बाद उनके वादे

ममदानी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि मेयर बनने पर वे न्यूयॉर्क में सभी किरायेदारों का किराया स्थायी रूप से फिक्स करेंगे, ताकि आवास सुलभ बना रहे। उन्होंने यह भी वादा किया था कि बसों में यात्रा पूरी तरह मुफ्त की जाएगी और शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को अधिक सुगम बनाने के लिए प्राथमिकता वाली बस लेन और समर्पित लोडिंग जोन तैयार किए जाएंगे।

उनकी जीत को न सिर्फ दक्षिण एशियाई समुदाय, बल्कि पूरी दुनिया में प्रगतिशील राजनीति की एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।


...

अमेरिका के केंटकी में कार्गो प्लेन क्रैश: कम-से-कम 7 की मौत

अमेरिका के केंटकी राज्य के लुईसविल शहर में मंगलवार शाम UPS कंपनी का एक कार्गो विमान उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यह हादसा स्थानीय समयानुसार शाम करीब 5 बजे हुआ। हवाई की ओर जा रहे UPS फ्लाइट 2976 ने लुईसविल मुहम्मद अली इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी, लेकिन टेकऑफ के कुछ ही देर बाद विमान क्रैश हो गया। दुर्घटना में 7 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं।

अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (FAA) ने बताया कि UPS का यह MD-11 मॉडल विमान टेकऑफ के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हुआ। हादसे के बाद एयरपोर्ट को पूरी तरह बंद कर दिया गया है और जांच की जिम्मेदारी नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड (NTSB) को सौंपी गई है, जो घटना के कारणों की विस्तृत जांच कर रहा है।

केंटकी के गवर्नर एंडी बेशियर ने X (पूर्व में ट्विटर) पर घटना पर शोक जताते हुए लिखा, “लुईसविल से आई खबर बेहद दुखद है। अब तक सात लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, और यह संख्या बढ़ सकती है। राहतकर्मी मौके पर हैं और आग बुझाने तथा जांच कार्य में जुटे हैं।”

दुर्घटना के बाद लुईसविल मेट्रो पुलिस, फायर विभाग और अन्य एजेंसियाँ राहत कार्य में लगी हैं। पुलिस के अनुसार, कई लोग घायल हुए हैं, लेकिन उनकी पहचान और स्थिति की जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में एयरपोर्ट के पास आसमान में उठता काले धुएं का विशाल गुबार देखा गया, जिससे आसपास के इलाकों में अफरातफरी मच गई।

UPS का सबसे बड़ा संचालन केंद्र लुईसविल में स्थित है। यहां कंपनी का प्रमुख लॉजिस्टिक्स हब “वर्ल्डपोर्ट” लगभग 50 लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है। इस केंद्र में प्रतिदिन करीब 12 हजार कर्मचारी लगभग 20 लाख पार्सल की प्रोसेसिंग करते हैं। हादसे के बाद सुरक्षा कारणों से एयरपोर्ट से 8 किलोमीटर के दायरे में “शेल्टर-इन-प्लेस” अलर्ट जारी किया गया है, जिसके तहत लोगों को घरों में ही रहने की सलाह दी गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, विमान में लगभग 38 हजार लीटर ईंधन था, जिसने आग को और भी भयानक बना दिया।

UPS ने एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा, “हम इस दुखद घटना से बेहद व्यथित हैं। हमारी संवेदनाएँ सभी प्रभावित परिवारों के साथ हैं। UPS अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और जिन समुदायों की हम सेवा करते हैं, उनकी सुरक्षा के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लुईसविल हमारे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारी एयरलाइन का मुख्यालय और हजारों कर्मचारियों का घर है।”

जानकारी के अनुसार, दुर्घटनाग्रस्त MD-11F विमान वर्ष 1991 में निर्मित हुआ था। इसे मूल रूप से मैकडॉनेल डगलस कंपनी ने बनाया था, बाद में इसका उत्पादन बोइंग ने जारी रखा। यह मॉडल विशेष रूप से मालवाहक सेवाओं के लिए डिजाइन किया गया है और इसे UPS, FedEx तथा Lufthansa Cargo जैसी कंपनियाँ इस्तेमाल करती हैं।

NTSB की लगभग 28 सदस्यीय टीम अब जांच का नेतृत्व कर रही है। लुईसविल एयरपोर्ट के कार्यकारी निदेशक डैन मैन ने बताया कि जांच दल बुधवार सुबह से काम शुरू करेगा और स्थानीय एजेंसियों तथा फायर विभाग के साथ मिलकर साक्ष्य जुटाएगा। उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि जांच कई दिनों तक चलेगी और इसके अलग-अलग चरणों में ब्रीफिंग दी जाएगी।”

इस बीच, सैकड़ों फायरफाइटरों ने आग पर लगभग काबू पा लिया है। फायर डिपार्टमेंट के प्रमुख ब्रायन ओ’नील ने बताया कि बचाव दल अब “ग्रिड बाय ग्रिड” इलाके की तलाशी लेकर संभावित पीड़ितों की तलाश कर रहे हैं।


...

मेक्सिको में ड्रग माफियाओं पर अमेरिका करेगा एयर स्ट्राइक: बड़ा ऐलान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ड्रग तस्करी पर लगाम लगाने के लिए मेक्सिको में अमेरिकी सेना और खुफिया अधिकारियों को भेजने की तैयारी कर रहे हैं।  इस ऑपरेशन में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) की भूमिका भी हो सकती है।

दो मौजूदा और दो पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि ट्रम्प प्रशासन मेक्सिको के ड्रग कार्टेल्स को निशाना बनाने के लिए एक बड़े मिशन की योजना पर काम कर रहा है। शुरुआती ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है। योजना के तहत मेक्सिको की जमीन पर ऑपरेशन चलाने की संभावना है, हालांकि सेना भेजने का अंतिम निर्णय अभी नहीं हुआ है।

NBC न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, इस अभियान में ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशंस कमांड (JSOC) की टीमें शामिल हो सकती हैं, जो CIA के निर्देश में काम करेंगी। मिशन के तहत ड्रग लैब्स और कार्टेल सरगनाओं को निशाना बनाने के लिए ड्रोन और हवाई हमलों की योजना तैयार की जा रही है। कई ड्रोन के संचालन के लिए अमेरिकी ऑपरेटरों की ज़रूरत जमीन पर भी पड़ेगी।

फरवरी में अमेरिकी विदेश विभाग ने छह मेक्सिकन कार्टेल्स, MS-13 गैंग और वेनेज़ुएला के ट्रेन डे अरागुआ संगठन को विदेशी आतंकी समूह घोषित किया था। इसके बाद से CIA और अमेरिकी सेना को इन पर गुप्त ऑपरेशनों की अनुमति मिल गई है। ट्रम्प पहले भी कह चुके हैं कि उन्होंने वेनेज़ुएला में CIA को कार्रवाई की मंजूरी दी थी, और अब ज़रूरत पड़ने पर मेक्सिको में भी कार्टेल्स को “जमीन पर निशाना” बनाया जा सकता है।

मेक्सिको दुनिया के सबसे बड़े ड्रग नेटवर्क्स का गढ़ माना जाता है, जहां से कोकीन, हेरोइन, मेथ और फेंटेनाइल जैसी खतरनाक ड्रग्स अमेरिका तक पहुंचती हैं। अमेरिकी एजेंसियों के अनुसार, देश में ड्रग्स की सबसे बड़ी सप्लाई मेक्सिकन कार्टेल्स के ज़रिए होती है। हर साल लाखों अमेरिकी नशे की लत के शिकार होते हैं और फेंटेनाइल जैसी दवाओं से हजारों मौतें दर्ज की जाती हैं। इस वजह से अमेरिकी सरकार पर लंबे समय से दबाव रहा है कि वह तस्करी के स्रोतों पर सख्त कार्रवाई करे।

दूसरी ओर, मेक्सिको में ये कार्टेल्स इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि कई क्षेत्रों में पुलिस और प्रशासन पर हावी रहते हैं। हथियारबंद गिरोह, धमकी और भ्रष्टाचार के चलते सरकार के लिए उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। कई कार्टेल्स तो अपने इलाकों में “शैडो गवर्नमेंट” की तरह शासन चलाते हैं।

अगर यह मिशन अमल में आता है, तो यह 100 साल बाद मेक्सिको में अमेरिकी सेना की पहली तैनाती होगी। आखिरी बार 1916 में जनरल जॉन पर्शिंग ने क्रांतिकारी पैनचो विला का पीछा करने के लिए मेक्सिको में सेना भेजी थी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक अमेरिका मेक्सिको की अनुमति के बिना वहां सैन्य कार्रवाई नहीं कर सकता। मेक्सिको ने अब तक किसी भी विदेशी सैन्य हस्तक्षेप का सख्त विरोध किया है।


...

ट्रंप ने चीन पर लगाए गए टैरिफ घटाने का एलान किया

दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ हुई “सफल” बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने गुरुवार को घोषणा की कि वह चीन पर फेंटेनाइल टैरिफ घटाकर 10 प्रतिशत कर देंगे। दोनों नेताओं की मुलाकात ग्योंगजू में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन से इतर बुसान में हुई। ट्रंप ने बताया कि अमेरिका और चीन के बीच एक प्रमुख विवाद सुलझ गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि रेअर अर्थ मिनरल्स की आपूर्ति को लेकर हुआ समझौता एक साल के लिए बढ़ाया जा सकने वाला समझौता है। ट्रंप ने एयर फोर्स वन में पत्रकारों से कहा, “रेअर अर्थ मिनरल्स का मुद्दा सुलझ गया है और यह पूरी दुनिया के हित में है।” उन्होंने जोड़ा कि इस समझौते पर हर साल फिर से बातचीत की जाएगी।

यूक्रेन युद्ध पर सहयोग की सहमति

ट्रंप ने यह भी बताया कि वे और शी चिनफिंग यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों पर मिलकर काम करने पर सहमत हुए हैं। ट्रंप ने कहा, “यूक्रेन का मुद्दा विस्तार से चर्चा में आया। हमने इस पर लंबी बातचीत की और मिलकर समाधान खोजने की दिशा में काम करेंगे।” उन्होंने कहा कि चीन अमेरिका की मदद करेगा और दोनों देश इस दिशा में सहयोग बढ़ाएंगे।

शी चिनफिंग के साथ अपनी बैठक को बेहद सफल बताते हुए ट्रंप ने कहा कि वह अप्रैल 2026 में चीन का दौरा करेंगे।


...

चीन ने दोबारा खोला अमेरिकी सोयाबीन के लिए बाजार के दरवाजे

अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड डील का फ्रेमवर्क तय हो गया है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने बताया कि दोनों देशों ने चीनी आयात पर 100% अतिरिक्त टैरिफ लगाने से बचने के लिए एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर सहमति बना ली है। इस समझौते के तहत चीन फिर से अमेरिकी सोयाबीन की खरीद शुरू करेगा।

बेसेंट ने कहा कि चीन पर लागू होने वाला 100% अतिरिक्त टैरिफ अब नहीं लगेगा। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आगामी मुलाकात से पहले लिया गया है। दोनों नेता इस हफ्ते गुरुवार को साउथ कोरिया में मिलेंगे और फ्रेमवर्क पर आगे चर्चा करेंगे।

ट्रम्प इन दिनों एशियाई देशों के दौरे पर हैं। उन्होंने अपनी यात्रा की शुरुआत मलेशिया से की, जहां उन्होंने आसियान समिट के दौरान थाईलैंड और कंबोडिया के बीच हुए शांति समझौते पर हस्ताक्षर समारोह में हिस्सा लिया। इसके बाद वे जापान के लिए रवाना हो गए।

चीन ने 5 नए रेयर अर्थ मटेरियल्स के निर्यात पर लगाया नियंत्रण

चीन ने अपने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Materials) पर नियंत्रण और सख्त कर दिया है। अब वह 17 में से 12 खनिजों पर एक्सपोर्ट लाइसेंस के बिना निर्यात की अनुमति नहीं देगा।

हाल ही में चीन ने 5 नए खनिज—होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यूरोपियम और यटरबियम— को प्रतिबंधित सूची में शामिल किया है। इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और डिफेंस सेक्टर में होता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, यह कदम अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सप्लाई चेन पर बड़ा असर डाल सकता है, क्योंकि चीन दुनिया की 70% आपूर्ति और 90% प्रोसेसिंग को नियंत्रित करता है।

शीर्ष व्यापार वार्ताकार को हटाया गया

चीन ने अपने शीर्ष व्यापार वार्ताकार ली चेंगगैंग को पद से हटा दिया है। वे हाल ही में अमेरिका के साथ हुई चार दौर की वार्ताओं में शामिल थे।

सरकार ने बताया कि उन्हें विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चीन के स्थायी प्रतिनिधि पद से हटाया गया है और उनकी जगह ली योंगजीए को नियुक्त किया गया है।

यह बदलाव तब हुआ जब अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने ली चेंगगैंग के व्यवहार की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि ली बिना निमंत्रण के वॉशिंगटन आए और धमकी दी कि अगर अमेरिका ने बंदरगाह शुल्क लगाया, तो चीन "वैश्विक अव्यवस्था" फैलाएगा।

अब दोनों देशों के बीच नई वार्ता की तैयारी चल रही है। अमेरिकी और चीनी अधिकारी जल्द ही मलेशिया में बैठक कर सकते हैं ताकि ट्रम्प-जिनपिंग शिखर सम्मेलन से पहले सहमति बन सके।

एक्सपर्ट बोले— अमेरिका ने पहले हमला किया, अब मासूम बन रहा

बीजिंग की रेनमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जिन कनरोंग ने कहा, "अमेरिका ने पहले चीन पर हमला किया और अब खुद को निर्दोष दिखाने की कोशिश कर रहा है।"

वहीं, फुडान यूनिवर्सिटी, शंघाई के प्रोफेसर वू शिनबो ने कहा, "ट्रम्प प्रशासन के कदम उसकी गलत मंशा उजागर करते हैं। उसने चिप्स और तकनीक पर रोक लगाई, अब चीन उसका जवाब दे रहा है।"

प्रोफेसर वू ने यह भी कहा कि ट्रम्प को रिश्ते सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, क्योंकि "चीन अब दबाव झेलने को तैयार नहीं है।"

रेनमिन यूनिवर्सिटी के ही प्रोफेसर वांग यिवेई ने कहा, "चीन ट्रम्प की रणनीति को समझ चुका है। इस बार अमेरिका ज्यादा परेशान दिख रहा है। हमारा संदेश साफ है— अमेरिका को चीन के साथ सहयोग करना होगा।"


...

रूस ने की दुनिया की पहली परमाणु-संचालित क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण

रूस ने दुनिया की पहली न्यूक्लियर पावर्ड (परमाणु ऊर्जा से चलने वाली) क्रूज मिसाइल ‘बुरेवस्तनिक-9M739’ का सफल परीक्षण किया है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रविवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इसकी पुष्टि की और बताया कि मिसाइल के सभी परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे हो चुके हैं।

रूसी सेना प्रमुख वैलेरी गेरेसिमोव ने जानकारी दी कि मिसाइल का परीक्षण 21 अक्टूबर को किया गया था। इस दौरान बुरेवस्तनिक ने 15 घंटे तक उड़ान भरी और करीब 14 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। गेरेसिमोव के अनुसार, यह इसकी अधिकतम रेंज नहीं है—यह मिसाइल इससे भी अधिक दूरी तय करने में सक्षम है। परमाणु ऊर्जा से संचालित होने के कारण इसे ‘अनलिमिटेड रेंज वाली मिसाइल’ बताया जा रहा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी स्पीड लगभग 1300 किमी/घंटा है। पुतिन ने कहा कि इस तरह की मिसाइल दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है। उन्होंने जोड़ा, “पहले कई विशेषज्ञों को यकीन नहीं था कि ऐसा हथियार बन सकता है, लेकिन अब यह वास्तविकता है।”

एयर डिफेंस सिस्टम की पकड़ से बाहर

बुरेवस्तनिक (9M730) एक क्रूज मिसाइल है, जो पारंपरिक ईंधन इंजन की बजाय न्यूक्लियर रिएक्टर से चलती है। इस वजह से यह लगभग असीमित दूरी तक उड़ान भरने में सक्षम है और दुश्मन के एंटी-मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चकमा दे सकती है।

अमेरिकी वायुसेना की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मिसाइल के सर्विस में आने के बाद रूस के पास 10 से 20 हजार किलोमीटर तक हमला करने की क्षमता होगी। इससे रूस दुनिया के किसी भी हिस्से, यहां तक कि अमेरिका तक निशाना साध सकता है।

सामान्य बैलिस्टिक मिसाइलें अंतरिक्ष में तय मार्ग पर जाती हैं, जिन्हें ट्रैक किया जा सकता है। जबकि बुरेवस्तनिक सिर्फ 50 से 100 मीटर की ऊंचाई पर उड़ती है और लगातार दिशा बदलती रहती है, जिससे इसे पकड़ना लगभग असंभव हो जाता है।

उड़ान के दौरान एक्टिव होता है न्यूक्लियर रिएक्टर

मिसाइल को लॉन्च करने के लिए ठोस ईंधन वाले रॉकेट बूस्टर का इस्तेमाल किया जाता है। लॉन्चिंग के तुरंत बाद इसका न्यूक्लियर रिएक्टर सक्रिय हो जाता है, जो आगे की उड़ान के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।

इसमें एक छोटा न्यूक्लियर पावर यूनिट लगा है, जो मिसाइल को बेहद लंबी दूरी तक उड़ने में सक्षम बनाता है। इसे जमीन पर मौजूद लॉन्च पैड से दागा जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी लॉन्च साइट मॉस्को से लगभग 475 किमी उत्तर में स्थित है, जहां रूस नौ नए लॉन्च पैड विकसित कर रहा है।

मिसाइल की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर सवाल

अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक अध्ययन संस्थान (IISS) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रूस के सामने अब भी इस मिसाइल से जुड़ी तकनीकी चुनौतियां बनी हुई हैं। इनमें मिसाइल के परमाणु इंजन को सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से संचालित करने की समस्या सबसे बड़ी है।

2016 से अब तक किए गए दर्जनों परीक्षणों में केवल आंशिक सफलता मिली है। 2019 में नेनोक्षा क्षेत्र में एक परीक्षण के दौरान हुए विस्फोट में 7 वैज्ञानिकों की मौत हो गई थी। इसके बाद पास के शहर सेवरोदविंस्क में रेडिएशन स्तर बढ़ने की पुष्टि भी हुई थी। रूस ने बाद में स्वीकार किया कि यह हादसा इसी परमाणु-संचालित मिसाइल के परीक्षण के दौरान हुआ था।


...

अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को पानी देने से किया इनकार, सीमा पर बढ़ा तनाव

अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को पानी देने से किया इनकार, कुनार नदी पर बांध बनाने की तैयारी तेज

भारत के बाद अब अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को रोकने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। अफगानिस्तान के सूचना मंत्रालय ने गुरुवार को X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर बताया कि देश के सर्वोच्च नेता मावलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने कुनार नदी पर जल्द से जल्द बांध निर्माण का आदेश दिया है।

मंत्रालय के उपमंत्री मुहाजिर फराही ने कहा कि पानी और ऊर्जा मंत्रालय को घरेलू कंपनियों को ठेका देकर प्रोजेक्ट शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। अफगानिस्तान अब विदेशी कंपनियों का इंतजार नहीं करेगा। यह निर्णय हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुई सीमा झड़पों के बाद लिया गया है।

पाक-अफगान झड़पों के बाद लिया गया फैसला

9 से 18 अक्टूबर के बीच दोनों देशों के बीच हुई झड़पों में 37 अफगान नागरिकों की मौत और 425 लोगों के घायल होने की पुष्टि हुई थी। इसके बाद तालिबान सरकार ने पाकिस्तान पर नागरिक इलाकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। इसी पृष्ठभूमि में अफगानिस्तान ने कुनार नदी पर बांध निर्माण को तेज करने का फैसला किया।

कुनार नदी: पाकिस्तान की जल आपूर्ति के लिए जीवनरेखा

करीब 480 किलोमीटर लंबी कुनार नदी अफगानिस्तान से निकलकर पाकिस्तान में चितराल नदी बन जाती है और आगे चलकर काबुल नदी में मिलती है। इसका 70–80% पानी पाकिस्तान उपयोग करता है। अगर अफगानिस्तान ने इस नदी पर बांध बना दिया, तो इसका सीधा असर खैबर पख्तूनख्वा (KPK) प्रांत पर पड़ेगा, जहाँ बाजौर और मोहम्मद जैसे इलाके पूरी तरह इसी नदी पर निर्भर हैं।

सिंचाई रुकने से फसलों के बर्बाद होने का खतरा बढ़ जाएगा। इसके अलावा, कुनार नदी पर चल रहे 20 से अधिक छोटे हाइडल प्रोजेक्ट भी प्रभावित होंगे, जो “रन-ऑफ-रिवर” तकनीक पर आधारित हैं यानी सीधे बहते पानी से बिजली पैदा करते हैं।

अफगानिस्तान को होगा फायदा

तालिबान के जल और ऊर्जा मंत्रालय के प्रवक्ता मतीउल्लाह आबिद ने बताया कि बांध का सर्वेक्षण और डिजाइन तैयार हो चुका है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर 45 मेगावाट बिजली उत्पादन होगा और 1.5 लाख एकड़ कृषि भूमि को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। इससे अफगानिस्तान में ऊर्जा संकट और खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा।

दोनों देशों में नहीं है जल समझौता

गौरतलब है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच काबुल नदी और उसकी सहायक नदियों के जल बंटवारे को लेकर कोई औपचारिक समझौता नहीं है। पाकिस्तान पहले भी अफगानिस्तान की डैम परियोजनाओं पर चिंता जता चुका है, क्योंकि इससे उसके इलाकों में जल की आपूर्ति कम हो सकती है।

भारत के साथ तालमेल और सिंधु संधि का संदर्भ

यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत ने भी सिंधु जल संधि को स्थगित कर पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी रोक दिया था। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने 23 अप्रैल को यह कदम उठाया था।

अफगानिस्तान का यह रुख उसके विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की हालिया भारत यात्रा के बाद सामने आया है। उन्होंने 9 अक्टूबर को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की थी, जिसमें दोनों देशों ने हाइड्रो-इलेक्ट्रिक सहयोग को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई थी।

भारत-अफगान सहयोग के बड़े प्रोजेक्ट

भारत इस समय अफगानिस्तान में दो बड़े डैम प्रोजेक्ट चला रहा है — साल्मा डैम (हेरात, 2016) और शाहतूत डैम (काबुल नदी की सहायक धारा पर)। साल्मा बांध 300 मिलियन डॉलर की लागत से बना था, जबकि शाहतूत डैम करीब 2,000 करोड़ रुपये में बन रहा है। यह डैम 20 लाख लोगों को पेयजल और 4,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा देगा। इसे 2026 तक पूरा करने की योजना है।


...

बड़ा अंतरराष्ट्रीय खुलासा — पाकिस्तान ने अमेरिकी दबाव में सौंपे थे परमाणु हथियार

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अपने देश के परमाणु हथियारों का नियंत्रण अमेरिका को सौंप दिया था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व अफसर जॉन किरियाकू ने शुक्रवार को यह दावा किया है। किरियाकू ने कहा कि अमेरिका ने मुशर्रफ को लाखों डॉलर की मदद के जरिए 'खरीद' लिया था। उनके शासनकाल में अमेरिका को पाकिस्तान की सुरक्षा और सैन्य गतिविधियों तक लगभग पूरी पहुंच थी। उन्होंने कहा,

हमने लाखों डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद दी। बदले में मुशर्रफ ने हमें सब कुछ करने दिया।

 उन्होंने यह भी कहा कि मुशर्रफ ने दोहरे खेल खेले। उन्होंने एक तरफ अमेरिका के साथ दिखावा किया और दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना और चरमपंथियों को भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां जारी रखने दिया।

'2002 में भारत-पाकिस्तान युद्ध होने वाला था'

किरियाकू ने बताया कि 2002 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के कगार पर थे। उन्होंने कहा,

इस्लामाबाद से अमेरिकी अधिकारियों के परिवारों को निकाल लिया गया था। हमें लगा कि भारत और पाकिस्तान युद्ध में उतर सकते हैं।

उन्होंने 2001 में संसद हमले के बाद भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन पराक्रम का जिक्र किया। किरियाकू ने दावा किया कि अमेरिकी उप विदेश मंत्री ने दिल्ली और इस्लामाबाद का दौरा कर दोनों देशों के बीच समझौता करवाया। 2008 मुंबई हमलों पर बात करते हुए किरियाकू ने कहा कि

मुझे नहीं लगता था कि यह अल-कायदा है। मुझे हमेशा लगता रहा कि ये पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह थे। और ऐसा ही साबित हुआ। असली कहानी यह थी कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद फैला रहा था और किसी ने कुछ नहीं किया।

PAK परमाणु वैज्ञानिक को सऊदी ने बचाया

पूर्व CIA अधिकारी ने यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान को अमेरिकी कार्रवाई से बचाने में सऊदी अरब का अहम रोल था। सऊदी ने अमेरिका को कहा कि खान को न छेड़ा जाए, जिससे अमेरिका ने अपने प्लान को छोड़ दिया।

किरियाकू ने अमेरिकी विदेश नीति पर भी सवाल उठाया और कहा कि अमेरिका लोकतंत्र का ढोंग करता है, लेकिन वास्तव में अपने स्वार्थ के अनुसार काम करता है। उन्होंने यह भी बताया कि सऊदी और अमेरिका का रिश्ता पूरी तरह लेन-देन पर आधारित है, अमेरिका तेल खरीदता है और सऊदी हथियार।

किरियाकू ने कहा कि वैश्विक ताकतों का संतुलन बदल रहा है और सऊदी अरब, चीन और भारत अपनी रणनीतिक भूमिका को नया आकार दे रहे हैं।


...