पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को प्रोस्टेट कैंसर,हड्डियों तक फैली बीमारी

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को प्रोस्टेट कैंसर हो गया है। यह अब हड्डियों तक फैल चुका है। बाइडेन के ऑफिस ने रविवार को बयान जारी कर इसकी जानकारी दी है।

82 साल के बाइडेन ने पिछले हफ्ते पेशाब में दिक्कत होने पर डॉक्टर को दिखाया था। जांच के बाद बीते शुक्रवार को उन्हें इस बीमारी का पता चला।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बाइडेन की बीमारी को लेकर कहा- मेलानिया और मैं उनकी बीमारी के बारे में जानकर दुखी हैं। हम जिल बाइडेन और उनके परिवार के लिए दुआ करते हैं और जो बाइडेन के जल्दी और पूरी तरह ठीक होने की कामना करते हैं।

2023 में स्किन कैंसर का इलाज कराया था

इससे पहले 2023 में जो बाइडेन को स्किन कैंसर हुआ था। व्हाइट हाउस के डॉक्टरों ने बताया कि उनकी छाती पर बेसल सेल कार्सिनोमा पाया गया था, जो एक सामान्य प्रकार का त्वचा कैंसर था। इस घाव को फरवरी में सर्जरी के दौरान हटा दिया गया था।

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक अमेरिका में, प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को होने वाला सबसे आम कैंसर है और कैंसर से होने वाली मौतों की दूसरी प्रमुख वजह है।

सबसे ज्यादा उम्र के अमेरिकी राष्ट्रपति रहे हैं बाइडेन

82 साल के बाइडेन ने 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प को हराया था और पिछले साल फिर से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उनकी उम्र और मानसिक स्थिति पर सवाल उठने की वजह से उन्होंने राष्ट्रपति पद की रेस से हटने का फैसला किया था।

उन्होंने तत्कालीन उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस को समर्थन दिया था। बाइडेन से 3 साल छोटे ट्रम्प ने पिछले साल नवंबर में कमला हैरिस को हराकर दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव जीता था।

जो बाइडेन अमेरिका में राष्ट्रपति बनने वाले सबसे ज्यादा उम्र के शख्स बने थे। जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तब उनकी उम्र 78 साल 220 दिन थी। ट्रम्प जब दूसरी बार राष्ट्रपति बने थे, तब उनकी उम्र 78 साल 61 दिन है। अमेरिकी संविधान के मुताबिक ट्रम्प तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे। ऐसे में कुछ सालों तक बाइडेन का रिकॉर्ड कायम रहेगा।

सबसे युवा सीनेटर से राष्ट्रपति तक बाइडेन के करियर पर एक नजर

राष्ट्रपति पद से हटने के साथ ही बाइडेन के 5 दशक के राजनीतिक करियर का अंत हो गया था। उन्होंने 1972 में डेलावेयर राज्य से 30 साल की उम्र में सीनेटर चुनाव जीतकर अपने करियर की शुरुआत की थी। उस वक्त बाइडेन देश के सबसे युवा सीनेटर थे।

उन्होंने 1988 और 2008 में राष्ट्रपति उम्मीदवारी की रेस में भी हिस्सा लिया था। 2008 में बराक ओबामा की जीत के बाद वो अगले 2 कार्यकाल तक उपराष्ट्रपति भी रहे थे। 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी ने डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ उन्हें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया था।

2020 में ट्रम्प को हराकर बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बने थे। 2024 में उन्होंने पार्टी के दबाव की वजह से दूसरी बार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छोड़ दी थी। इसके बाद कमला हैरिस राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं, जिन्हें ट्रम्प के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के नतीजे पर बोलते हुए बाइडेन ने कहा था कि अगर वो उम्मीदवार होते तो ट्रम्प को हरा सकते थे।

अब जानिए क्या होता है प्रोस्टेट कैंसर

एक आंकड़े के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल करीब 14 लाख लोग प्रोस्टेट कैंसर के शिकार होते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक लंग्स और माउथ कैंसर के बाद पुरुषों पर सबसे ज्यादा प्रोस्टेट कैंसर का खतरा रहता है। 50 की उम्र के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है। कई मामलों में इससे कम उम्र के मरीज भी सामने आए हैं।

कई केस ऐसे भी हैं जब तक इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। प्रोस्टेट कैंसर भीतर ही भीतर बढ़ते हुए ब्लैडर, लिवर, फेफड़ों और पेट जैसे अंगों में भी फैल जाता है। खून के साथ कैंसर की कोशिकाएं हड्डियों तक पहुंच जाती हैं, जिससे हड्डियों में बेतहाशा दर्द रहने लगता है, वह टूटने लगती हैं।

प्रोस्टेट कैंसर की वजह से संबंध बनाने से लेकर हमेशा के लिए पिता बनने की क्षमता तक खत्म हो सकती है। बीमारी ही नहीं, इसके इलाज के भी साइड इफेक्ट्स से जूझना पड़ सकता है। प्रोस्टेट कैंसर में यूज होने वाली हॉर्मोन थेरेपी से टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन बनने बंद हो सकते हैं और इरेक्टाइल डिसफंक्शन का सामना करना पड़ सकता है।

रेडिएशन थेरेपी का भी पुरुषों के रिप्रोडक्टिव हेल्थ यानी पिता बनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। जान बचाने के लिए प्रोस्टेट ग्लैंड ही निकालनी पड़ सकती है। इसीलिए अगर मरीज की उम्र कम हो, तो सर्जरी से पहले डॉक्टर मरीज को स्पर्म फ्रीज कराने की सलाह देते हैं, ताकि आईवीएफ जैसी सुविधा के जरिए व्यक्ति पिता बन सके।

स्पर्म को बचाने का इंतजाम करती है प्रोस्टेट ग्लैंड्स

प्रोस्टेट ग्लैंड्स पुरुषों के प्रजनन तंत्र का अहम हिस्सा है। इसमें बनने वाला लिक्विड स्पर्म की सुरक्षा करता है, उसे पोषण देता है और उन्हें फीमेल रिप्रोडक्टिव अंगों तक पहुंचाने में मदद करता है। यह इजेकुलेशन और यूरिनेशन के बीच एक मेकेनिकल स्विच का काम करता है। इजेकुलेशन के दौरान प्रेशर के साथ सीमन को यूरेथ्रा से बाहर फेंकता है।

आमतौर पर प्रोस्टेट ग्लैंड का वजन करीब 30 ग्राम होता है। उम्र के साथ इसका साइज बढ़ता रहता है। लेकिन, कई बार इसके बढ़ने की वजह कैंसर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।


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इजरायल को मान्यता दे सकता है सीरिया, ट्रंप ने हटाए सारे प्रतिबंध, सऊदी पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति ने बदली खाड़ी देशों की राजनीति

मिडिल ईस्ट की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है और सीरिया, जो इजरायल का जानी दुश्मन रहा है, वो अब इजरायल को मान्यता दे सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा (जो पिछले साल तक अमेरिकी आतंकी सूची में था) उससे रियाद में मुलाकात की। उनके साथ सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी थे। डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अल-शरा से अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने और इजरायल को मान्यता देने को कहा है। इसके अलावा ट्रंप ने सीरिया से सारे प्रतिबंध हटाने की घोषणा कर दी है। वाइट हाउस के एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को रियाद में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की। यह मुलाकात संघर्ष-ग्रस्त देश पर प्रतिबंध हटाने की घोषणा के ठीक एक दिन बाद हुई।

वाइट हाउस के अधिकारी के मुताबिक यह बैठक डोनाल्ड ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे के हिस्से के रूप में सऊदी अरब में खाड़ी अरब नेताओं के व्यापक शिखर सम्मेलन से पहले हुई है। सीरिया, जो पिछले साल तक ईरान का प्रॉक्सी था और बशर अल-असद, जो पिछले साल तक ईरान के खेमे में थे, उनकी सरकार को अल-शरा ने गिरा दिया था। जिसके बाद बशर अल-असद भागकर रूस चले गये थे और अब ट्रंप ने सीरिया को अमेरिका के खेमे में जगह दे दी है।

इजरायल को मान्यता दे सकता है सीरिया

वाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट के आधिकारिक बयान के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप ने सीरियाई राष्ट्रपति से इजरायल के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया और कहा कि उनके पास "अपने देश में कुछ ऐतिहासिक करने का एक शानदार अवसर है।" ट्रंप ने रिया के राष्ट्रपति अल-शरा से "सभी विदेशी आतंकवादियों को सीरिया छोड़ने, फिलिस्तीनी आतंकवादियों को निर्वासित करने, ISIS को सिर उठाने से रोकने में अमेरिका की मदद करने और देश के उत्तरपूर्वी हिस्सों में ISIS हिरासत केंद्रों की जिम्मेदारी संभालने के लिए भी कहा है।"

वाइट हाउस के बयान में कहा गया है कि "सीरियाई राष्ट्रपति ने 1974 में इजरायल के साथ हुए समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है, जिसमें ईरानियों के सीरिया छोड़ने और आतंकवाद से निपटने के अलावा रासायनिक हथियारों को खत्म करने में अमेरिका-सीरिया के संयुक्त कोशिशों में दिलचस्पी दिखाई है।" वहीं सूत्रों के हवाले से द जेरूसलम पोस्ट ने लिखा है कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी ट्रंप और सीरियाई राष्ट्रपति की मुलाकात के दौरान बैठक में मौजूद थे और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इसमें शामिल हुए। लेविट ने कहा कि एर्दोगन और सऊदी क्राउन प्रिंस ने सीरिया पर प्रतिबंध हटाने के लिए ट्रंप की प्रशंसा की।

मिडिल ईस्ट में बदल जाएगी राजनीति

डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता के बाद मानकर चलिए की सीरिया, बहुत जल्द इजरायल को मान्यता दे देगा। अस-सरा को इसके जरिए अमेरिका से मान्यता मिल रही है और वो अमेरिकी खेमे का हिस्सा बन गये हैं। उनके साथ सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश खड़े हो चुके हैं। ऐसे में इजरायल को मान्यता देकर अल-सरा अमेरिका से सीरिया की मदद के लिए भारी भरकम सहायता हासिल कर सकते हैं और सीरिया के दूसरे क्षेत्र, जिनमें अभी भी विद्रोही हावी है, उनके खिलाफ ऑपरेशन चलाकर पूरे सीरिया को अपने कंट्रोल में ले सकते हैं। इसके अलावा ईरान के लिए ये बहुत बड़ा झटका है। पिछले साल तक सीरिया बशर अल-असद के शासनकाल के दौरान, ईरान के लिए एक लॉन्च पैड की तरह काम करता था। सीरिया में हिज्बुल्लाह का कैंप था, जो एक आतंकवादी संगठन है, जिसे ईरान का प्रॉक्सी माना जाता है।

लेकिन अल-सरा के शासन में आने के बाद हिज्बुल्लाह के आतंकियों को सीरिया से वापस लेबनान भागना पड़ा। वहीं ईरान, अब इजरायल के खिलाफ आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए सीरिया की जमीन का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। इसके अलावा विडंबना ये भी है कि जिस गाजा में इजरायल के भयानक ऑपरेशन के बाद भी खाड़ी देश अगर इजरायल को मान्यता देते हैं, तो फिर 'गाजा मुद्दे' का क्या होगा, ये एक बड़ा सवाल होगा?


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रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट नए पोप बने,अमेरिका से पोप बनने वाले पहले कार्डिनल

वेटिकन में आज पैपल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन नए पोप का चयन हो गया। 69 साल के रॉबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को नया पोप चुन लिया गया है। वो अमेरिका से पोप बनने वाले पहले कार्डिनल हैं। उन्होंने अपने लिए पोप लियो-14 नाम चुना है।

133 कार्डिनल्स ने वोटिंग के जरिए दो-तिहाई बहुमत (89 वोट) से उन्हें पोप चुना। 1900 के बाद से यह पांचवां मौका है जब नए पोप को दो दिनों में चुन लिया गया।

वोटिंग के दूसरे ही दिन रोमन कैथोलिक चर्च के सिस्टीन चैपल पर स्थित चिमनी से सफेद धुआं निकला, जिससे पता चलता है कि नए पोप का चयन हो गया है।

नए पोप का चयन होते ही वेटिकन में मौजूद 45 हजार से ज्यादा लोगों ने जोरदार तालियां बजाई और एक दूसरे को बधाई दी। इससे पहले 7 मई को वोटिंग के पहले दिन किसी को भी पोप नहीं चुना गया था।

कल सिस्टिन चैपल में औपचारिक जुलूस और हर कार्डिनल की तरफ से गोपनीयता की शपथ लेने के बाद, बुधवार रात करीब 9:15 बजे वोटिंग का पहला दौर शुरू हुआ था।

नए पोप ने पहले संबोधन में कहा- सबके दिलों में शांति हो

पोप चुने जाने के बाद पोप लियो-14 ने सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से स्पेनिश भाषा में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने लोगों से दूसरों के लिए दया दिखाने और प्रेम के साथ रहने की अपील की।

उन्होंने कहा- मैं सभी कार्डिनल्स को शुक्रिया करना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे फ्रांसिस के उत्तराधिकारी के तौर पर चुना है। मैं उन पुरुषों और महिलाओं के साथ काम करने की कोशिश करूंगा जो मिशनरी बनकर बिना किसी डर के यीशु का प्रचार करते हैं और उनके लिए वफादार हैं।

पोप फ्रांसिस के करीबी माने जाते हैं नए पोप

पोप लियो का जन्म 14 सितंबर 1955 को अमेरिका के इलिनोय में हुआ था। वे पोप फ्रांसिस के करीबी सहयोगी माने जाते थे और उनकी विचारधारा भी पोप फ्रांसिस से मेल खाती है। उन्होंने पोप फ्रांसिस के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें तलाकशुदा और दोबारा शादी करने वाली महिलाओं को त्योहार मनाने की इजाजत दी गई थी।

कोई भी नाम चुन सकते हैं पोप

जब एक कार्डिनल को पोप चुना जाते हैं तो उनसे पूछा जाता है कि वह किस नाम से बुलाए जाना चाहते हैं। यह परंपरा 6वीं सदी से चली आ रही है। पोप के पास आजादी है कि वह कोई भी नाम चुन सकते हैं, लेकिन आमतौर पर वे पहले के पोप या संतों के नाम चुनते हैं।

7 मई को वोटिंग शुरू होने से लगभग 90 मिनट पहले सभी सिग्नल बंद कर दिए थे। लीक को रोकने के लिए कॉन्क्लेव क्षेत्र को सख्त लॉकडाउन में रखा गया था।

2013 में भी यही तरीका अपनाया गया था जब पोप फ्रांसिस के चुनाव के लिए सिग्नल ब्लॉकर्स लगाए गए थे। वेटिकन में रोजाना का काम करने वाले कर्मचारियों ने भी मौन रहने की शपथ ली है।

कॉन्क्लेव एक गुप्त और पवित्र प्रक्रिया है, जो 13वीं शताब्दी से चली आ रही है। वेटिकन के संविधान के मुताबिक पोप के निधन के 15 से 20 दिनों के भीतर कॉन्क्लेव की शुरुआत होनी चाहिए।

कॉन्क्लेव की शुरुआत से 2 दिन पहले वेटिकन के कर्मचारियों जैसे कि पुजारी, सुरक्षा गार्ड, डॉक्टर, टेक्नीशियन आदी ने प्राइवेसी की शपथ ली है, ताकि नए पोप के चुनाव की गोपनीयता बनी रहे।

वोटिंग से पहले सिस्टीन चैपल को बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग कर दिया जाता है। इस पूरे इलाके की जांच की जाती है। कार्डिनल्स के पास मोबाइल फोन, इंटरनेट और न्यूजपेपर की सुविधा नहीं होती।

पैपल कॉन्क्लेव- नए पोप की चयन प्रक्रिया

पोप की मौत के बाद अगले पोप के दावेदारों के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होती है। नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। जब पोप की मौत हो जाती है या फिर वे इस्तीफा दे देते हैं, तब कैथोलिक चर्च के कार्डिनल्स चुनाव करते हैं।

कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है, लेकिन अब तक हर पोप चुने जाने से पहले कार्डिनल रह चुके हैं।

जितने भी कार्डिनल्स नए पोप का चुनाव करेंगे, उसमें से ज्यादातर को पोप फ्रांसिस ने चुना था। इसलिए माना जा रहा है कि नए पोप भी फ्रांसिस की तरह उदार और बदलाव को स्वीकार करने वाले होंगे।

गोपनीयता की कसम खाते हैं कार्डिनल्स

कॉन्क्लेव का पहला दिन विशेष प्रार्थना सभा से शुरू होता है। प्रार्थना के दौरान सभी कार्डिनल्स एक कमरे में एकजुट होते हैं। इसमें हर एक कार्डिनल गॉस्पेल यानी पवित्र किताब पर हाथ रखकर यह कसम खाता है कि वह इस चुनाव से जुड़ी किसी भी जानकारी का कभी भी किसी और के सामने खुलासा नहीं करेगा।

इसके बाद कमरे को बंद कर दिया जाता है फिर सीक्रेट तरीके से वोटिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। वोटिंग शुरू होने के दौरान हर एक कार्डिनल को एक बैलेट दिया जाता है। वह उस पर उस शख्स का नाम लिखता है, जिसे वह पोप बनाना चाहता है।

इसके बाद इन्हें एक प्लेट में रखा जाता है। इसके बाद तीन अधिकारी इन्हें गिनते हैं। यदि किसी व्यक्ति को दो-तिहाई बहुमत मिलते हैं, तो वह नया पोप घोषित होता है। इस बार पोप बनने के लिए 89 वोट हासिल करना होगा।

काले-सफेद धुएं से पता चलता है पोप चुने गए या नहीं

अगर किसी को 89 वोट नहीं मिले तो सभी बैलेट को जला दिया जाएगा। इस दौरान बैलेट में एक खास रसायन मिलाया जाएगा, जिससे काला धुआं निकलेगा। काले धुएं का मतलब- अभी तक नए पोप को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है। सफेद धुआं तब निकलता है जब नया पोप चुन लिया जाता है।

कॉन्क्लेव के दौरान हर दिन चार बार मतदान होता है। दो सुबह में और दो दोपहर में। यदि किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिलता, तो वोटिंग की प्रक्रिया दोहराई जाती है।

अगर किसी उम्मीदवार को 89 वोट्स मिल जाएंगे, उनसे पूछा जाएगा कि क्या आप पोप के रूप में चुने जाने को स्वीकार करते हैं? उसकी मंजूरी मिलने के बाद वेटिकन की सेंट पीटर बेसिलिका की बालकनी से नए पोप मिलने की घोषणा की जाती है। इसके बाद नए पोप औपचारिक रूप से पद ग्रहण करते हैं।

पोप बनने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत क्यों होती है?

साल 1159 के चुनाव में एक साथ 2 पोप चुन लिए गए थे। कार्डिनल्स के बड़े गुट ने कार्डिनल रोलैंडो को पोप अलेक्जेंडर-3 के रूप में चुना। वहीं, कार्डिनल्स के छोटे गुट ने मोंटीसेली को पोप विक्टर-4 के रूप में चुना।

छोटे गुट के पोप को राजा फ्रेडरिक बारबोसा का समर्थन हासिल था। ऐसे में पोप अलेक्जेंडर-3 को ज्यादातर समय रोम से बाहर ही बिताना पड़ा। वहीं, कम समर्थन वाले पोप रोम में जमे रहे। यह विवाद 1164 में पोप विक्टर-4 की मौत के बाद ही समाप्त हुआ।

इसके बाद से ही पोप चुनने की प्रक्रिया में बदलाव किए गए। सभी कार्डिल्स के बीच ज्यादा से ज्यादा सहमति रहे इसलिए पोप के चुनाव के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत रखी गई है। वोटिंग की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, जब तक किसी एक को दो-तिहाई वोट नहीं मिल जाते।

वोटिंग के तीन दिन बीत जाने के बाद भी कोई पोप नहीं चुना जाता है, तो वोटिंग एक दिन के लिए रुक जाती है। 33 दौर के बाद भी अगर कोई नहीं चुना जाता है तब नए नियम के तहत टॉप-2 दावेदारों के बीच मुकाबला होता है।

नए पोप के लिए दो चुनाव जो सबसे लंबे चले

13वीं शताब्दी में सबसे लंबे समय तक पोप का चुनाव चला था। तब नवंबर 1268 से सितंबर 1271 तक पोप के लिए वोटिंग होती रही। इतने लंबे समय तक चले चुनाव की असल वजह अंदरूनी कलह और बाहरी हस्तक्षेप को बताया गया था। इसके बाद से ही बंद कमरे में वोटिंग होनी शुरू हुई।

अब तक का सबसे छोटा सम्मेलन 1503 में हुआ था, जब कार्डिनलों को पोप पायस थर्ड को नया पोप चुनने में सिर्फ 10 घंटे लगे थे। अब तक के सबसे लम्बे सम्मेलन में करीब तीन साल का वक्त लगा था।

1268 में पोप क्लेमेंट फोर्थ के उत्तराधिकारी के लिए 1271 तक सम्मेलन चला और फिर पोप ग्रेगरी X का चुनाव किया गया।

1740 में पोप के चुनाव में 7 महीने लगे थे। 21वीं सदी में अब तक पोप के चुनाव के लिए 2 कॉन्क्लेव हुए हैं। 2005 में पोप बेनेडिक्ट को 3 दिन में चार राउंड वोटिंग के बाद और 2013 में पोप फ्रांसिस को 2 दिन में 5 राउंड वोटिंग के बाद चुना गया था।

इस बारे के संभावित उत्तराधिकारियों में कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें फिलीपींस के कार्डिनल लुइस एंटोनियो तगले, अफ्रीका से कार्डिनल पीटर टर्कसन, और इटली के कार्डिनल माटेओ जुप्पी अहम हैं।


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ट्रम्प का ऐलान- विदेशों में बनी फिल्मों पर 100% टैरिफ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अब विदेशी फिल्मों को अपने निशाने पर लिया है। उन्होंने ऐलान किया है कि विदेशों में बनने वाली फिल्मों के अमेरिका में रिलीज होने पर 100% टैरिफ लगेगा।

ट्रम्प ने रविवार रात अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट कर बताया कि उन्होंने अमेरिकी वाणिज्य विभाग को इसके लिए आदेश भी दे दिए हैं।

ट्रम्प ने आरोप लगाया है कि विदेशों में बनी फिल्में अमेरिका में प्रोपगेंडा फैला सकती हैं। उन्होंने इसे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।

टैरिफ कैसे लागू होगा, फिलहाल साफ नहीं

डोनाल्ड ट्रम्प ने भले ही विदेशों में बनने वाली फिल्मों पर 100 टैरिफ कर दिया है, लेकिन फिलहाल यह साफ नहीं है कि यह कैसे लागू होगा।

ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग दुनिया के कई देशों में होती हैं। ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में फिल्मों के प्रोडक्शन में टैक्स पर छूट भी देते हैं। इसकी वजह से फिल्में अमेरिका की बजाय इन देशों में शूट हो रही हैं।

ट्रम्प पहले भी यह चिंता जता चुके हैं कि फिल्में अमेरिका के बाहर बनने लगी हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई अमेरिका में फिल्म नहीं बनाना चाहता, तो उस पर टैक्स लगना चाहिए।

अमेरिका में फिल्म प्रोडक्शन 26% घटा

अमेरिका में फिल्मों के प्रोडक्शन में लगातार गिरावट आ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 2021 के मुकाबले 2023 तक फिल्म प्रोडक्शन में 26% की गिरावट आई हैं। इसकी वजह से हॉलीवुड के लिए मशहूर लॉस एंजिलिस शहर के हालात और भी खराब हैं।

फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े संगठन मोशन पिक्चर एसोसिएशन के मुताबिक 2023 में अमेरिकी फिल्मों ने दुनिया भर में सिर्फ 22.6 अरब डॉलर की कमाई की है।

ट्रम्प पहले भी कई बार कह चुके हैं कि वो हॉलीवुड को बड़ा, बेहतर और पहले से ज्यादा मजबूत बनाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने इसके लिए उन्होंने मेल गिब्सन, जॉन वॉइट और सिल्वेस्टर स्टैलोन जैसे एक्टर्स को स्पेशल एंबेसडर भी बनाया हैं।

हॉलीवुड अमेरिका की बड़ी सॉफ्ट पावर

हॉलीवुड सिर्फ फिल्में बनाने की जगह नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की सॉफ्ट पावर का सबसे बड़ा हथियार भी रहा है। पिछली एक सदी से हॉलीवुड की फिल्मों ने दुनिया भर में अमेरिकी संस्कृति, भाषा, जीवनशैली और विचारधारा को पहुंचाया है।

स्पाइडरमैन, एवेंजर्स, टाइटैनिक, गॉडफादर, स्टार वॉर्स, हैरी पॉटर जैसी फिल्में सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं थीं, बल्कि अमेरिका की ग्लोबल पहचान का हिस्सा बन गई हैं।

अमेरिका में हर साल सैकड़ों फिल्में बनती हैं और इनका बाजार सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहता है। ये दुनिया के लगभग हर देश में रिलीज होती हैं। 2023 में अमेरिकी फिल्मों ने अकेले एक्सपोर्ट से 22.6 अरब डॉलर की कमाई की और 15.3 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस दिया।

हालांकि, बीते कुछ सालों में हॉलीवुड को कोविड-19 महामारी, 2023 में फिल्म यूनियनों की हड़तालें, लॉस एंजेलेस में जंगल की आग, और बढ़ती प्रोडक्शन कॉस्ट जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।


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भारत को मिलने वाला है शक्तिशाली Rafale-M विमान; फ्रांस से हो गई डील साइ

पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ रहे हैं। ऐसे में भारत रक्षा के क्षेत्र में खुद को मजबूत करने में जुटा है। इसी कड़ी में भारत और फ्रांस के बीच ऐतिहासिक राफेल डील साइन हो चुकी है। इस समझौते के तहत भारत, फ्रांस से 26 राफेल मरीन विमान खरीदेगा, जिसमें 22 सिंगल सीटर विमान और 4 डबल सीटर विमान शामिल होंगे।

भारत और फ्रांस के रक्षा मंत्रियों के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हथियारों के खरीद के मामले में यह भारत की फ्रांस के साथ अब तक की सबसे बड़ी डील है, जिसकी कीमत लगभग 63,000 करोड़ रुपए आंकी जा रही है।

कैसे साइन हुआ समझौता?

पहले इस सौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए फ्रांस के रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु को रविवार को भारत आना था, लेकिन निजी कारणों से उनकी यात्रा रद कर दी गई है। हालांकि, वह अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ वार्ता में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये शामिल हुए। नई दिल्ली में हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और भारत में फ्रांस के राजदूत थिएरी मथौ भी उपस्थित रहे।

INS विक्रांत पर होंगे तैनात

राफेल मरीन विमानों को INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। फ्रांस की विमान कंपनी दसॉ एविएशन भारत की जरूरत के हिसाब से इन विमानों में कुछ बदलाव करेगी। इसमें एंटी शिप स्ट्राइक, 10 घंटे तक फ्लाइट रिकॉर्ड करने और न्यूक्लियर हथियार लॉन्च करने जैसे फीचर मौजूद रहेंगे।

कब तक होगी डिलीवरी?

भारत और फ्रांस के बीच 26 राफेल-एम विमानों की डील साइन हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन विमानों की डिलीवरी 2028-29 में शुरू हो सकती है। वहीं 2031-32 तक फ्रांस सारे विमान भारत पहुंचा सकता है।

राफेल से ज्यादा एडवांस है राफेल-एम

भारत और फ्रांस पहले भी 36 राफेल जेट की डील कर चुके हैं। यह डील 2016 में 58,000 करोड़ रुपए में साइन हुई थी। फ्रांस ने 2022 तक सारे राफेल विमान भारत भेज दिए थे। इन राफेल विमानों को अंबाला और हाशिनारा एयरबेस से संचालित किया जाता है। हालांकि, राफेल मरीन विमान के फीचर राफेल विमान से बेहद एडवांस हैं।


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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वेटिकन में पोप को श्रद्धांजलि दी

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस के फ्यूनरल में शामिल होने के लिए आज वेटिकन पहुंचीं। वहां पहुंचकर राष्ट्रपति ने सेंट पीटर्स बेसिलिका में पोप के शव को श्रद्धांजलि दी।

राष्ट्रपति के साथ अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू, राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन और गोवा विधानसभा के उपाध्यक्ष जोशुआ डि'सूजा भी गए हैं।

पोप का 21 अप्रैल को 88 साल की उम्र में स्ट्रोक और हार्ट फैलियर से निधन हुआ था। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए सेंट पीटर्स बेसिलिका में रखा गया है।

आज अंतिम दर्शन का आखिरी दिन हैं। आज शाम उनके ताबूत को बंद कर दिया जाएगा। पोप का अंतिम संस्कार 26 अप्रैल यानी कल किया जाएगा। अंतिम संस्कार में दुनियाभर के नेता और आम लोग जुटेंगे।

अपनी मृत्यु से एक दिन पहले पोप फ्रांसिस ने ईस्टर संडे के लिए मौन आशीर्वाद दिया। उन्होंने एक बयान जारी कर गाजा समेत दुनिया भर में चल रहे संघर्ष पर बात की और शांति की अपील की। पोप के निधन पर भारतीय गृह मंत्रालय ने 3 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।

वेटिकन में नहीं दफनाया जाएगा पोप का शव

पोप फ्रांसिस को वेटिकन में नहीं दफनाया जाएगा। वे एक सदी से भी ज्यादा वक्त में वेटिकन के बाहर दफन होने वाले पहले पोप होंगे। आमतौर पर पोप को वेटिकन सिटी में सेंट पीटर्स बेसिलिका के नीचे गुफाओं में दफनाया जाता है। लेकिन पोप फ्रांसिस को रोम में टाइबर नदी के दूसरी तरफ मौजूद सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में दफनाया जाएगा।

पोप ने सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में अपने दफन होने का बात का खुलासा दिसंबर 2023 में किया था। उन्होंने बताया था कि वे मैगीगोर बेसिलिका से खास जुड़ाव महसूस करते हैं। वे यहां वर्जिन मैरी के सम्मान में रविवार की सुबह जाते थे।

सांता मारिया मैगीगोर में 7 अन्य पोप को भी दफनाया गया है। पोप लियो XIII आखिरी पोप थे जिन्हें वेटिकन से बाहर दफनाया गया था। उनकी मृत्यु 1903 में हुई थी।

पोप फेफड़ों में इन्फेक्शन से भी जूझ रहे थे

पिछले कई महीनों से पोप स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्हें14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका निमोनिया और एनीमिया का इलाज भी चल रहा था। वे 5 हफ्ते तक फेफड़ों में इन्फेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती थे।

इलाज के दौरान कैथलिक चर्च के हेडक्वॉर्टर वेटिकन ने बताया था कि पोप की ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में किडनी फेल होने के लक्षण दिख रहे थे। हालांकि, 14 मार्च को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था।

अगले पोप की चयन प्रक्रिया को पैपल कॉन्क्लेव कहा जाता है

नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। इसका मतलब पोप का चुनाव कराने के लिए कार्डिनल्स की गुप्त बैठक होता है। यह सम्मेलन आम तौर पर पोप का पद खाली होने के 15 से 20 दिन बाद होता है।

कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि, पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है। 1379 में अर्बन VI आखिरी पोप थे, जिन्हें कार्डिनल्स कॉलेज से नहीं चुना गया था।

निधन से पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति से मिले थे

1000 साल में पोप बनने वाले पहले गैर-यूरोपीय

पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना के एक जेसुइट पादरी थे, वो 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप बने थे। उन्हें पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उत्तराधिकारी चुना गया था। पोप फ्रांसिस बीते 1000 साल में पहले ऐसे इंसान थे जो गैर-यूरोपीय होते हुए भी कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च पद पर पहुंचे।

पोप ने समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने, सेम-सेक्स कपल्स को आशीर्वाद देने, पुनर्विवाह को धार्मिक मंजूरी देने जैसे बड़े फैसले लिए। उन्होंने चर्चों में बच्चों के यौन शोषण पर माफी भी मांगी थी।

पोप का जन्म 17 दिसम्बर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। पोप बनने से पहले उन्होंने जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो नाम से जाना जाता था। पोप फ्रांसिस के दादा-दादी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से बचने के लिए इटली छोड़कर अर्जेंटीना चले गए थे। पोप ने अपना ज्यादातर जीवन अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में बिताया है।

वे सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट्स) के सदस्य बनने वाले और अमेरिकी महाद्वीप से आने वाले पहले पोप थे। उन्होंने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की थी। साल 1998 में वे ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बने थे। साल 2001 में पोप जॉन पॉल सेकेंड ने उन्हें कार्डिनल बनाया था।

पोप फ्रांसिस के बड़े फैसले

समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने पर: पद संभालने के 4 महीने बाद ही पोप से समलैंगिकता के मुद्दे पर सवाल किया था। इस पर उन्होंने कहा, ‘अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज कर रहा है, तो मैं उसे जज करने वाला कौन होता हूं।’

पुनर्विवाह को धार्मिक मंजूरी: पोप ने दोबारा शादी करने वाले तलाकशुदा कैथोलिक लोगों को धार्मिक मान्यता दी। उन्होंने सामाजिक बहिष्कार को खत्म करने के लिए ऐसे लोगों को कम्यूनियन हासिल करने का अधिकार दिया। कम्यूनियन एक प्रथा है जिसमें यीशु के अंतिम भोज को याद करने के लिए ब्रेड/पवित्र रोटी और वाइन/अंगूर के रस का सेवन किया जाता है। इसे प्रभु भोज या यूकरिस्ट के नाम से भी जाना जाता है।

बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी: पोप फ्रांसिस ने अप्रैल 2014 में पहली बार चर्चों में बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण की बात स्वीकार की और सार्वजनिक माफी भी मांगी। चर्च के पादरियों की तरफ से किए गए इस अपराध को उन्होंने नैतिक मूल्यों की गिरावट कहा था। इससे पहले तक किसी पोप की तरफ से इस मामले पर प्रतिक्रिया नहीं देने की वजह से वेटिकन की आलोचना की जाती थी।

पिछले साल 27 सितंबर को बेल्जियम की यात्रा के दौरान बच्चों के यौन शोषण पर कैथोलिक चर्चों से माफी मांगने के लिए कहा। उन्होंने ब्रुसेल्स में पादरियों से यौन उत्पीड़न के शिकार 15 लोगों से मुलाकात भी की।


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'भारतीय कंपनियों का चीन में स्वागत, व्यापार घाटा भी कम करने को तैयार', ट्रंप के झटके से बदले चीन के सुर

 भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा लगभग 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत की कोशिश है कि इसे कैसे कम किया जाए। इस बीच डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ से परेशान चीन ने ही भारत के सामने एक बड़ा ऑफर पेश किया है। चीन अब भारत के साथ व्यापार घाटे को कम करने को तैयार है। उसने भारत के साथ मिलकर काम करने की इच्छा व्यक्त की है।

भारत से मजबूत संबंध चाहता है चीन

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए अपने पहले इंटरव्यू में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने कहा कि चीन भारत के साथ मजबूत संबंध चाहता है। हम भारत के व्यापार घाटे को भी कम करने को तैयार हैं। चीन में भारतीय निर्यात को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि भारत में भी चीनी कंपनियों को उचित माहौल दिया जाएगा। जू फेइहोंग ने कहा क प्रीमियम भारतीय प्रोडक्ट का चीनी बाजार में स्वागत है।

दोनों देशों को होगा लाभ

चीनी राजदूत ने आगे कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंध लाभदायक होंगे। व्यापार घाटे पर कहा कि चीन ने कभी जानबूझकर व्यापार अधिशेष को नहीं बढ़ाया है। यह बाजार की प्रवृत्ति और बदलती आर्थिक स्थितियों के कारण होता है। मगर हम भारत के साथ व्यापार घाटे क कम करने को तैयार हैं।

चीन के बाजार में अपार संभावनाएं

चीनी राजदूत ने शी चिनफिंग के हवाले से कहा कि चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। यहां के विशाल मध्यम-आय वर्ग में निवेश और खपत की अपार संभावनाएं हैं। भारतीय व्यवसायों को इसका लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वित्त वर्ष में भारत से चीन ने मिर्च, लौह अयस्क और सूती धागे का आयात किया। भारत भी क्रमाश: 17%, 160% और 240% से अधिक निर्यात वृद्धि का गवाह बना।

उम्मीद- भारत भी देगा उचित माहौल

जू फेइहोंग ने इंटरव्यू में कहा कि मुझे उम्मीद है कि भारत भी चीन की चिंताओं को गंभीरता से लेगा। चीन के उद्योगों के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और भेदभाव पूर्ण माहौल देगा। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कंपनियां चीनी खरीदारों और उपभोक्ताओं से जुड़ने के लिए चाइना इंटरनेशनल इम्पोर्ट एक्सपो, चाइना- एशिया एक्सपो और चाइना इंटरनेशनल कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एक्सपो जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठा सकती हैं।


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पीएम मोदी ने US के साथ मिलकर काम करने की जताई उम्मीद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 अप्रैल को टेस्ला के सीईओ एलन मस्क से फिर बात की। यह इस साल की दूसरी बातचीत है। दोनों ने टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की है। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी। 

पीएम ने कहा,

मैंने एलन मस्क से बात की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। इस बातचीत में इस साल की शुरुआत में वाशिंगटन डीसी में हमारी बैठक के दौरान शामिल किए गए विषय भी शामिल थे।

भारत अमेरिका के साथ...

पीएम ने आगे कहा-हमने टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्रों में सहयोग की अपार संभावनाओं पर चर्चा की। भारत इन क्षेत्रों में अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

बता दें कि इससे पहले पीएम मोदी और मस्क के बीच फरवरी में मुलाकात हुई थी। दो महीने के भीतर ये पीएम मोदी और एलन मस्क की ये दूसरी बातचीत है। यह बातचीत ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्द छिड़ा हुआ है। पिछले दिनों ट्रंप ने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया था।

भारत आ रहे अमेरिकी उपराष्ट्रपति

इस बीच अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी पत्नी उषा अगले हफ्ते के शुरू में भारत की यात्रा पर आएंगे और इस दौरान वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वार्ता करेंगे। यह यात्रा ट्रंप प्रशासन के शुल्क विवाद के कारण बढ़ते वैश्विक व्यापार व्यवधानों के बीच होगी। वें

स के कार्यालय ने बुधवार को बताया कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति 18 से 24 अप्रैल तक इटली और भारत की यात्रा पर रहेंगे।

टैरिफ वॉर पर विदेश मंत्रालय का बयान 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसावल ने व्यापार और टैरिफ से जुड़े मुद्दों को लेकर बताया कि वेंस के साथ चर्चा के दौरान इनका समाधान निकाला जाएगा। जायसवाल ने इस दौरान अन्य देशों को लेकर भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों की जानकारी दी।


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ट्रम्प बोले- हम चीन से अच्छा सौदा करने जा रहे

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार को कहा कि हम चीन के साथ बहुत अच्छा सौदा करने जा रहे हैं। जब ट्रम्प से पूछा गया कि क्या अमेरिका को इस बात से परेशान होना चाहिए कि उसके सहयोगी चीन के करीब आ रहे हैं, इस पर उन्होंने कहा- नहीं। बता दें कि अमेरिका ने दो दिन पहले ही चीन पर 245% टैरिफ लगाया था।

ट्रम्प ने कहा कि कोई भी हमसे मुकाबला नहीं कर सकता। मुझे लगता है कि हम चीन के साथ बहुत अच्छा सौदा करने जा रहे हैं। ट्रम्प ने दावा किया कि चीन अमेरिका के साथ बैठक करने को तैयार है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि कल मेक्सिको के राष्ट्रपति के साथ बहुत ही अच्छी बातचीत हुई। इसी तरह, मैंने जापान के बिजनेस प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की। चीन समेत हर देश हमसे मिलना चाहता है।

चीन पर लगाया बोइंग सौदे से मुकरने का आरोप

व्हाइट हाउस ने मंगलवार को कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प का मानना है कि अमेरिका नहीं बल्कि चीन को बातचीत की टेबल पर आना है। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने बीजिंग पर बोइंग के एक बड़े सौदे से मुकरने का आरोप लगाया था।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने ट्रम्प के हवाले से कहा कि गेंद चीन के पाले में है। चीन को हमारे साथ समझौता करने की जरूरत है। हमें उनके साथ समझौता करने की जरूरत नहीं है।

चीन ने कहा था- अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर से नहीं डरते

अमेरिका के 245% टैरिफ पर चीन ने कहा कि हम अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर करने से नहीं डरते। चीन ने दोबारा कहा कि अमेरिका को बातचीत करनी चाहिए। इससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि चीन को बातचीत की शुरुआत करनी होगी।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि अगर अमेरिका सच में डायलॉग और समझौते के जरिए मुद्दे को सुलझाना चाहता है, तो उसे बेमतलब का दबाव बनाना, डराना और ब्लैकमेल करना बंद करना चाहिए और चीन के साथ बराबरी, सम्मान और आपसी हित के आधार पर बात करनी चाहिए।

लिन जियान ने पत्रकारों से कहा कि 245% अमेरिकी टैरिफ के तहत अलग-अलग टैक्स रेट क्या होगा, ये आप अमेरिका से ही पूछिए। ये टैरिफ वॉर अमेरिका ने शुरू किया है, हमने नहीं। हम सिर्फ अमेरिका के एक्शन का जवाब दे रहे हैं। हमारे कदम पूरी तरह तार्किक और कानूनी हैं। हम अपने देश के अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ईमानदारी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

चीन ने बोइंग से नए विमानों की डिलीवरी लेने से मना किया

मंगलवार को यह जानकारी सामने आई थी कि चीन ने अपनी एयरलाइन कंपनियों को अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग से नए विमानों की डिलीवरी नहीं लेने के आदेश दिए हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक बीजिंग ने अमेरिका में बनने वाले विमान के पार्ट्स और डिवाइसेस की खरीद रोकने का आदेश भी दिया है।

चीन ने यह आदेश अमेरिका के 145% टैरिफ के जवाब में जारी किया है। बोइंग एयरप्लेन एक अमेरिकी कंपनी है, जो एयरप्लेन, रॉकेट, सैटेलाइट, टेलीकम्युनिकेशन इक्विपमेंट और मिसाइल बनाती है। कंपनी की स्थापना 15 जुलाई 1916 को विलियम बोइंग ने की थी।

कई देशों की एयरलाइंस कंपनियां बोइंग के बनाए गए प्लेन का इस्तेमाल करती हैं। बोइंग अमेरिका की सबसे बड़ी एक्सपोर्टर कंपनी है और यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी डिफेंस डील करने वाली कंपनी भी है।

चीन ने कीमती मेटल्स की सप्लाई भी रोकी

चीन ने इस ट्रेड वॉर के बीच 7 कीमती धातुओं (रेयर अर्थ मटेरियल) के निर्यात पर भी रोक लगा दी है। चीन ने कार, ड्रोन से लेकर रोबोट और मिसाइलों तक असेंबल करने के लिए जरूरी मैग्नेट यानी चुंबकों के शिपमेंट भी चीनी बंदरगाहों पर रोक दिए हैं।

ये मटेरियल ऑटोमोबाइल, सेमीकंडक्टर और एयरोस्पेस बिजनेस के लिए बेहद अहम हैं। इस फैसले से दुनियाभर में मोटरव्हीकल, एयरक्राफ्ट, सेमीकंडक्टर और हथियार बनाने वाली कंपनियों पर असर पड़ेगा। ये महंगे हो जाएंगे।

चीन ने 4 अप्रैल को इन 7 कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था। आदेश के मुताबिक ये कीमती धातुएं और उनसे बने खास चुंबक सिर्फ स्पेशल परमिट के साथ ही चीन से बाहर भेजे जा सकते हैं।

चीन नई इंडस्ट्री व इनोवेशन बढ़ाने पर जोर दे रहा

चीन के पास अमेरिका के करीब 600 अरब पाउंड (करीब 760 अरब डॉलर) के सरकारी बॉन्ड हैं। मतलब ये कि चीन के पास अमेरिकी इकोनॉमी को प्रभावित करने की बड़ी ताकत है। वहीं, चीन ने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है।

चीन ने 1.9 लाख करोड़ डॉलर का अतिरिक्त लोन इंडस्ट्रियल सेक्टर को दिया है। इससे यहां फैक्ट्रियों का निर्माण और अपग्रेडेशन तेज हुआ। हुआवेई ने शंघाई में 35,000 इंजीनियरों के लिए एक रिसर्च सेंटर खोला है, जो गूगल के कैलिफोर्निया हेडक्वार्टर से 10 गुना बड़ा है। इससे टेक्नोलॉजी और इनोवेशन कैपेसिटी तेज होगी।


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ब्रिटेन में ट्रांसजेंडर को महिला नहीं माना जायेगा

ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों ने एक राय से फैसला लिया कि ‘महिला लिंग’ का मतलब केवल जैविक महिलाएं हैं. जजों ने स्कॉटलैंड के जेंडर-क्रिटिकल ग्रुप फॉर वुमन स्कॉटलैंड (FWS) के पक्ष में फैसला सुनाया. इस समूह ने इस मामले में अपील की थी. यह फैसला उन लोगों के लिए झटका है, जो मानते हैं कि कानूनी लिंग पहचान के तहत जो लोग जन्म के बाद महिला के रूप में परिवर्तित हुए हैं, उनको महिलाओं के सभी हक मिलने चाहिए. हालांकि अदालत ने साफ किया कि जो लोग ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान रखते हैं, वे अभी भी कानून के अन्य नियमों के तहत भेदभाव से सुरक्षित हैं.

FWS की ओर से अपील में पक्ष रखने वाले वकील ने अदालत से आग्रह किया कि कानूनी कल्पना के बजाय जैविक असलियत के तथ्यों पर विचार करें. LGBTQ+ कार्यकर्ताओं का लंबे समय से तर्क है कि अगर अदालत ने जन्म से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया, तो ट्रांसजेंडर महिलाएं कई सुविधाओं तक पहुंच नहीं बना पाएंगी. इसमें महिलाओं के आश्रयों में रहने की सुविधा भी शामिल है. यह फैसला स्कॉटिश सरकार और FWS के बीच वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद आया. जिसमें समूह का मानना था कि केवल वे लोग जो महिला के रूप में जन्मे हैं, उन्हें कानूनी रूप से महिला के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए.

‘महिला’ की परिभाषा

यह पूरी बहस समानता अधिनियम 2010 की व्याख्या करने के मकसद से थी. जिसने लिंग, जेंडर सहित कई विशेषताओं की रक्षा की और महिला को किसी भी उम्र की महिला के रूप में बताया गया है. स्कॉटिश सरकार का मानना था कि जो कोई भी महिला में परिवर्तित हो गया है और जिसने जेंडर रिकग्निशन सर्टिफिकेट हासिल किया है, उसे समानता अधिनियम के तहत महिला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. दूसरी ओर, FWS का मानना था कि जन्म के समय का जैविक लिंग अपरिवर्तनीय है और उनके जेंडर पहचान से अधिक महत्वपूर्ण है. इसलिए उनका तर्क था कि ट्रांस महिलाओं को उन महिलाओं के समान कानूनी सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए जो महिला के रूप में जन्मी हैं.

समूह ने नवंबर में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उसने 2018 के स्कॉटिश कानून के खिलाफ चुनौती पेश की, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्रों में अधिक महिलाओं को नियुक्त करना था. लेकिन इसमें वे ट्रांस महिलाएं भी शामिल थीं, जिनके पास GRC था. GRC या जेंडर रिकग्निशन सर्टिफिकेट 2004 के जेंडर रिकग्निशन एक्ट के तहत पेश किया गया था, जो लोगों को उनके लिंग को बदलने और पुरुष या महिला के रूप में पहचान बनाने की अनुमति देता है.



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