भारत-रूस के बीच कई अहम समझौते, पीएम मोदी-पुतिन की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस जारी

पीएम मोदी ने भारत और रूस की दोस्ती को ध्रुव तारे की तरह स्थिर बताया। उन्होंने कहा, “पिछले आठ दशकों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मानवता ने कई तरह की चुनौतियों और संकटों का सामना किया है, लेकिन इन सबके बावजूद भारत-रूस की मित्रता हमेशा अटल और भरोसेमंद रही है।”

मोदी ने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते हर कसौटी पर खरे उतरे हैं और 2030 तक आर्थिक सहयोग को मजबूत करने की नई रणनीति भी तैयार की गई है। वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भरोसा दिया कि रूस भारत को बिना किसी रुकावट के तेल की सप्लाई जारी रखेगा।

भारत दौरे पर आए पुतिन का राष्ट्रपति भवन में 21 तोपों की सलामी और गार्ड ऑफ ऑनर के साथ औपचारिक स्वागत किया गया। इसके बाद उन्होंने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी।

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अमेरिका ने बदले नियम: H-1B वीज़ा से पहले होगी सोशल मीडिया स्क्रूटनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा नियमों को और सख्त करने का आदेश दिया है। अब H-1B वीजा के आवेदकों को अपना सोशल मीडिया अकाउंट सार्वजनिक करना होगा, ताकि अमेरिकी अधिकारी उनकी प्रोफाइल, पोस्ट और लाइक्स की जांच कर सकें। यदि किसी भी आवेदक की सोशल मीडिया गतिविधि अमेरिकी हितों के खिलाफ पाई जाती है, तो वीजा जारी नहीं किया जाएगा। यही नियम H-1B आश्रितों—जैसे पत्नी, बच्चे और पेरेंट्स—के H-4 वीजा पर भी लागू होगा।

पहली बार सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच को H-1B वीजा प्रोसेस में अनिवार्य बनाया गया है। नए निर्देश 15 दिसंबर से लागू होंगे और इसके लिए सभी अमेरिकी दूतावासों को गाइडलाइन भेजी जा चुकी है। इससे पहले अगस्त से स्टडी वीजा (F-1, M-1, J-1) और विज़िटर वीजा (B-1, B-2) के लिए भी सोशल मीडिया प्रोफाइल को पब्लिक करना अनिवार्य किया गया था।

H-1B वीजा उच्च कौशल वाले प्रोफेशनल्स—जैसे डॉक्टर, इंजीनियर और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ—को जारी किया जाता है। हर साल जारी होने वाले H-1B वीजा में से करीब 70% भारतीयों को मिलता है, इसलिए नए नियमों का सबसे ज्यादा असर भी भारतीय आवेदकों पर पड़ेगा। पहले इस वीजा की फीस लगभग 9,000 डॉलर थी, लेकिन सितंबर 2025 में इसे बढ़ाकर करीब 90 लाख रुपए कर दिया गया। वीजा 3-3 साल की दो अवधि के लिए जारी होता है और 6 साल बाद आवेदक ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है।

ट्रम्प का H-1B पर रुख पिछले 9 सालों में कई बार बदला है। 2016 में उन्होंने इसे अमेरिकी हितों के खिलाफ बताया और 2019 में इसके एक्सटेंशन को निलंबित कर दिया। हालांकि हाल ही में उन्होंने फिर यू-टर्न लिया और कहा कि अमेरिका को बड़े पैमाने पर टैलेंट की जरूरत है।

H-1B में बदलावों के साथ ही ट्रम्प प्रशासन ने तीन नए वीजा कार्ड—‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’, ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ और ‘कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड’—भी लॉन्च किए हैं। इनमें से ट्रम्प गोल्ड कार्ड (कीमत 8.8 करोड़) धारक को अमेरिका में अनलिमिटेड रेसीडेंसी का अधिकार देगा।

अमेरिकी टेक कंपनियों—जैसे इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL—द्वारा भारतीय कर्मचारियों को सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर किया जाता है। कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा इंजीनियर, डेवलपर्स और छात्र ‘एक्सपोर्ट’ करता है। लेकिन बढ़ी हुई फीस के बाद संभावना है कि भारतीय टैलेंट अब यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और मिडिल ईस्ट की ओर शिफ्ट हो सकता है।


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हॉन्गकॉन्ग के रिहाइशी कॉम्प्लेक्स में भीषण आग, 44 लोगों की मौत

हॉन्गकॉन्ग के ताई पो जिले में बुधवार को एक बड़े रिहायशी कॉम्प्लेक्स में भीषण आग लग गई। इस दुर्घटना में अब तक 44 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 279 लोग घायल बताए जा रहे हैं। यह कॉम्प्लेक्स आठ इमारतों से मिलकर बना था, जिनमें प्रत्येक में 35 मंजिलें और कुल लगभग दो हजार अपार्टमेंट थे। वांग फुक कोर्ट के ये टावर बांस की मचान से ढंके हुए थे, जहां मरम्मत का काम चल रहा था। आग की शुरुआत इन्हीं बाहरी मचानों से हुई और तेज हवा के कारण जलता हुआ मलबा एक इमारत से दूसरी में फैलता चला गया। 20 घंटे बीत जाने के बाद भी आग पूरी तरह काबू में नहीं आ सकी है।


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गोरों पर अत्याचार का हवाला देकर ट्रम्प G20 से गैरहाज़िर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस बार G20 समिट में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने साउथ अफ्रीका में गोरे किसानों पर हो रहे कथित अत्याचार को अपनी गैरमौजूदगी की वजह बताया है। इसी तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी समिट में भाग नहीं ले रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन युद्ध को लेकर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है और उन्हें गिरफ्तारी का खतरा है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी स्वास्थ्य कारणों से समिट में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। तीन बड़े वैश्विक नेताओं की अनुपस्थिति के बीच इस बार G20 में भारत की भूमिका और प्रभाव काफी बढ़ गया है। पीएम मोदी समिट के सभी तीन सत्रों में भाग लेंगे और समावेशी विकास, जलवायु संकट तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अपने विचार रखेंगे।

यात्रा से पहले पीएम मोदी ने कहा कि यह समिट विशेष है, क्योंकि पहली बार G20 की बैठक अफ्रीका महाद्वीप में आयोजित हो रही है। उन्होंने याद दिलाया कि 2023 में भारत की पहल के बाद अफ्रीकन यूनियन को G20 का हिस्सा बनाया गया था। पहली बार अफ्रीका में G20 आयोजित होने के कारण भारत की प्रतिष्ठा महाद्वीप के देशों में और बढ़ी है। अफ्रीका पहुंचने पर स्थानीय कलाकारों ने पीएम मोदी का विशेष पारंपरिक तरीके से स्वागत किया।

ट्रम्प, पुतिन और जिनपिंग की अनुपस्थिति में भारत इस समिट का सबसे प्रमुख नेतृत्वकारी चेहरा बनकर उभरा है। पीएम मोदी आर्थिक विकास, जलवायु रेज़िलियंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण दुनिया के सामने रखेंगे।

यह समिट भारत की ग्लोबल साउथ नेतृत्व क्षमता और विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूती देने का बड़ा मंच साबित होगी।


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अमेरिका ने भारत के चाय, कॉफी और मसालों पर 50% टैरिफ हटाया

अमेरिका ने भारत से आने वाली कॉफी, चाय, मसाले, ट्रॉपिकल फलों और फलों के जूस जैसे उत्पादों पर लगाए गए 50% रेसिप्रोकल टैरिफ को हटा दिया है। वाणिज्य मंत्रालय ने 17 नवंबर को इसकी जानकारी देते हुए कहा कि इस कदम से भारतीय निर्यातकों को वैश्विक बाजार में एक समान प्रतिस्पर्धा का अवसर मिलेगा। DGFT के अनुसार, यह निर्णय एक्सपोर्ट सेक्टर के लिए बड़ा लाभ साबित होगा।

वित्त वर्ष 2025 में भारत ने अमेरिका को 2.5 अरब डॉलर (करीब ₹22 हजार करोड़) का कृषि निर्यात किया था। अब इनमें से लगभग ₹9 हजार करोड़ के उत्पाद टैक्स-फ्री हो गए हैं। अमेरिका ने यह टैरिफ भारत के रूसी तेल ख़रीदने के चलते लगाया था, लेकिन खाद्य महंगाई बढ़ने के कारण ट्रम्प प्रशासन ने इसे वापस लेने का फैसला किया।

ट्रम्प का नया आदेश

शुक्रवार को राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत बीफ, कॉफी और फलों समेत कई कृषि उत्पादों पर लगे शुल्क हटा दिए गए। प्रशासन के मुताबिक, महंगाई बढ़ने और उपभोक्ताओं पर बढ़ते बोझ को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 2.7% की वृद्धि हुई है—जिसमें बीफ 7% और केले 7% महंगे हुए। बढ़ती कीमतों से अमेरिकियों की मासिक खर्च में 9 हजार से 66 हजार रुपये तक का इजाफा हुआ है।

ट्रेड डील भी अंतिम चरण में

भारत और अमेरिका के बीच नई व्यापार वार्ता अपने अंतिम चरण में है। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल का कहना है कि 25% रेसिप्रोकल टैरिफ और कच्चे तेल पर अतिरिक्त 25% ड्यूटी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर लगभग सहमति बन चुकी है। फरवरी से जारी चर्चा जल्द ही समापन की ओर बढ़ सकती है।

FY25 में भारत का मजबूत निर्यात

भारत ने FY25 में अमेरिका को कुल 86.51 अरब डॉलर (करीब ₹7.66 लाख करोड़) का सामान निर्यात किया। इनमें से लगभग 48.2 अरब डॉलर (₹4.3 लाख करोड़) के एक्सपोर्ट पर ऊंचे टैरिफ लागू थे। टेक्सटाइल, ज्वेलरी और इंजीनियरिंग गुड्स जैसी टॉप 5 कैटेगरी alone लगभग 60 अरब डॉलर (₹5.3 लाख करोड़) की हिस्सेदारी रखती हैं।


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डायबिटीज और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए मुश्किल हुआ अमेरिकी वीजा हासिल करना

अमेरिका में अब डायबिटीज, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को वीजा मिलना मुश्किल हो सकता है। अमेरिकी विदेश विभाग ने शुक्रवार को दुनियाभर के अपने दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया कि गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों को अमेरिका आने या वहां रहने की अनुमति न दी जाए।

यह कदम ‘पब्लिक चार्ज’ (सार्वजनिक बोझ) नीति के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य ऐसे अप्रवासियों को रोकना है जो भविष्य में अमेरिकी सरकारी संसाधनों पर निर्भर हो सकते हैं।

वीजा अधिकारी जांचेंगे स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति

नए दिशा-निर्देशों के तहत वीजा अधिकारी अब आवेदक की उम्र, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति का आकलन करेंगे। अगर किसी व्यक्ति के भविष्य में महंगे इलाज या सरकारी सहायता पर निर्भर होने की संभावना दिखती है, तो उसका वीजा खारिज किया जा सकता है।

अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे यह तय करें कि क्या आवेदक अमेरिकी सरकार पर बोझ बन सकता है। इसमें डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, मोटापा, मेटाबॉलिक या न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसी स्थितियों को शामिल किया गया है, जो लंबे इलाज और भारी खर्च की मांग करती हैं।

स्वास्थ्य जांच में बढ़ेगी सख्ती

पहले वीजा प्रक्रिया में सिर्फ संक्रामक रोगों जैसे टीबी और एचआईवी की जांच होती थी। अब अधिकारियों को आवेदक की पुरानी बीमारियों, इलाज के खर्च और आर्थिक स्थिति का पूरा रिकॉर्ड देखने को कहा गया है।

इस दौरान उनसे यह भी पूछा जाएगा कि क्या वे बिना सरकारी सहायता के अपना इलाज खुद करा सकते हैं, क्या उनके परिवार के सदस्य (बच्चे या बुजुर्ग माता-पिता) बीमार हैं, और क्या उनकी देखभाल का खर्च आवेदक उठा सकता है।

विशेषज्ञों ने जताई चिंता

इमिग्रेशन विशेषज्ञों ने इस नीति पर चिंता जताई है। लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क के वकील चार्ल्स व्हीलर का कहना है कि “वीजा अधिकारी स्वास्थ्य स्थितियों का मूल्यांकन करने में प्रशिक्षित नहीं हैं।” वहीं, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील सोफिया जेनोवेस ने कहा कि “डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम किसी को भी हो सकती है। यदि हर बीमारी के आधार पर वीजा अस्वीकृत होने लगा तो इंटरव्यू प्रक्रिया बेहद जटिल हो जाएगी।”

किस पर पड़ेगा असर?

नया नियम सभी वीजा कैटेगरी—जैसे B-1/B-2 (पर्यटन/व्यवसाय) और F-1 (छात्र)—पर लागू हो सकता है। इसका सबसे अधिक असर उम्रदराज माता-पिता, विकलांग बच्चों वाले परिवारों और क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे पेशेवरों पर पड़ने की संभावना है।

भारतीयों पर बड़ा असर

भारत पर इस नियम का खासा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यहां डायबिटीज और मोटापे के सबसे अधिक मामले हैं। हर साल करीब 1 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, जिनमें से लगभग 70% आईटी और हेल्थकेयर प्रोफेशनल होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नीति से भारतीय आवेदनों की अस्वीकृति दर 20-30% तक बढ़ सकती है।

भारत: ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’

अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के मुताबिक, भारत में वर्तमान में 10.1 करोड़ वयस्क डायबिटीज से पीड़ित हैं, और यह संख्या 2045 तक 13.4 करोड़ तक पहुंच सकती है। ऐसे में बड़ी संख्या में भारतीय अप्रवासी इस नए नियम से प्रभावित होंगे।

संभावित परिणाम

वीजा और ग्रीन कार्ड रिजेक्शन बढ़ेगा।

लोग बीमारियों को छिपाने या इलाज टालने लगेंगे।

अप्रवासी परिवार सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं से दूर रहेंगे।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुशल श्रमिकों की कमी हो सकती है।

नए नियम के चलते अमेरिका जाने के इच्छुक कई भारतीय पेशेवरों को अब अपने स्वास्थ्य और आर्थिक दस्तावेजों की पहले से ज्यादा तैयारी करनी होगी।


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अमेरिकी प्रतिबंधों का असर: 21 नवंबर से भारत में घटेगा रूसी तेल का आयात

भारत नवंबर के अंत से रूसी कच्चे तेल की सीधी खरीद में कमी करने की तैयारी में है। यह निर्णय रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर 21 नवंबर से लागू होने वाले नए अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनज़र लिया जा रहा है।

विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय रिफाइनरी कंपनियां — रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL), मंगलौर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (MRPL) और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड (HMEL) — जो देश के कुल रूसी तेल आयात का आधे से अधिक हिस्सा रखती हैं, अब अमेरिकी नियमों के अनुपालन में रूस से सीधे तेल की खरीद घटा सकती हैं।

अमेरिका ने लगाए कड़े प्रतिबंध

अमेरिका ने रूसी ऊर्जा दिग्गजों रोसनेफ्ट और ल्यूकऑयल पर 21 नवंबर से कठोर आर्थिक प्रतिबंध लागू करने की घोषणा की है। इन प्रतिबंधों के तहत दोनों कंपनियों की अमेरिकी संपत्तियों और वित्तीय लेनदेन पर रोक लगाई जाएगी। इतना ही नहीं, जो विदेशी कंपनियां इनके साथ बड़े सौदे करेंगी, वे भी अमेरिकी द्वितीयक प्रतिबंधों के दायरे में आ सकती हैं।

भारत अब अन्य देशों से खरीदेगा तेल

नौवहन ट्रैकिंग फर्म केप्लर के मुताबिक, भारत घटते रूसी आयात की भरपाई के लिए अब पश्चिम एशिया, दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रहा है। अक्टूबर में भारत ने अमेरिका से 5.68 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो मार्च 2021 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है।

रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश

रिलायंस का रोसनेफ्ट के साथ लंबी अवधि का आपूर्ति करार है, जबकि एमआरपीएल और एचएमईएल ने फिलहाल रूसी तेल की आगामी खेपों को स्थगित करने का निर्णय लिया है। वर्ष 2025 की पहली छमाही में भारत ने रूस से औसतन 18 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का आयात किया था, जिसमें इन तीन कंपनियों की प्रमुख हिस्सेदारी रही।

हालांकि, गुजरात के वडिनार स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी, जिसमें रोसनेफ्ट की आंशिक हिस्सेदारी है, अपनी मौजूदा रूसी तेल आपूर्ति प्रणाली को जारी रखेगी। यह रिफाइनरी पहले से ही यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के तहत काम कर रही है और मुख्य रूप से रूसी कच्चे तेल पर निर्भर है।


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जोहरान ममदानी बने न्यूयॉर्क के नए मेयर: भारतीय मूल के नेता ने रचा इतिहास

जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। वे अमेरिका के सबसे बड़े शहर के मेयर बनने वाले पहले दक्षिण एशियाई और मुस्लिम नेता हैं।

34 वर्षीय ममदानी लंबे समय से न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव की दौड़ में सबसे आगे चल रहे थे। मंगलवार को उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा और स्वतंत्र उम्मीदवार तथा पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को मात देकर जीत हासिल की। ममदानी ने इससे पहले डेमोक्रेटिक प्राइमरी में भी कुओमो को हराया था और जून में ही अपनी जीत सुनिश्चित कर ली थी।

कौन हैं जोहरान ममदानी?

भारतीय मूल के जोहरान ममदानी मशहूर फिल्म निर्माता मीरा नायर और कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महमूद ममदानी के बेटे हैं। उनका जन्म युगांडा के कंपाला में हुआ और सात साल की उम्र में वे परिवार के साथ न्यूयॉर्क आ गए। उन्होंने ब्रोंक्स हाई स्कूल ऑफ साइंस से पढ़ाई की और बॉडॉइन कॉलेज से अफ्रीकाना अध्ययन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

राजनीति में आने से पहले ममदानी ने एक हाउसिंग कंसलटेंट के रूप में काम किया, जहाँ वे कम आय वाले परिवारों को बेदखली से बचाने में मदद करते थे।

राजनीतिक सफर

ममदानी ने 2020 में पहली बार न्यूयॉर्क राज्य विधानसभा का चुनाव जीता और 36वें विधानसभा क्षेत्र — जिसमें एस्टोरिया, डिटमार्स-स्टाइनवे और एस्टोरिया हाइट्स जैसे इलाके आते हैं — का प्रतिनिधित्व किया। आवास संकट और सामाजिक समानता के मुद्दों पर वे लगातार मुखर रहे हैं।

मेयर बनने के बाद उनके वादे

ममदानी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि मेयर बनने पर वे न्यूयॉर्क में सभी किरायेदारों का किराया स्थायी रूप से फिक्स करेंगे, ताकि आवास सुलभ बना रहे। उन्होंने यह भी वादा किया था कि बसों में यात्रा पूरी तरह मुफ्त की जाएगी और शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को अधिक सुगम बनाने के लिए प्राथमिकता वाली बस लेन और समर्पित लोडिंग जोन तैयार किए जाएंगे।

उनकी जीत को न सिर्फ दक्षिण एशियाई समुदाय, बल्कि पूरी दुनिया में प्रगतिशील राजनीति की एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।


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अमेरिका के केंटकी में कार्गो प्लेन क्रैश: कम-से-कम 7 की मौत

अमेरिका के केंटकी राज्य के लुईसविल शहर में मंगलवार शाम UPS कंपनी का एक कार्गो विमान उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यह हादसा स्थानीय समयानुसार शाम करीब 5 बजे हुआ। हवाई की ओर जा रहे UPS फ्लाइट 2976 ने लुईसविल मुहम्मद अली इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी, लेकिन टेकऑफ के कुछ ही देर बाद विमान क्रैश हो गया। दुर्घटना में 7 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं।

अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (FAA) ने बताया कि UPS का यह MD-11 मॉडल विमान टेकऑफ के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हुआ। हादसे के बाद एयरपोर्ट को पूरी तरह बंद कर दिया गया है और जांच की जिम्मेदारी नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड (NTSB) को सौंपी गई है, जो घटना के कारणों की विस्तृत जांच कर रहा है।

केंटकी के गवर्नर एंडी बेशियर ने X (पूर्व में ट्विटर) पर घटना पर शोक जताते हुए लिखा, “लुईसविल से आई खबर बेहद दुखद है। अब तक सात लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, और यह संख्या बढ़ सकती है। राहतकर्मी मौके पर हैं और आग बुझाने तथा जांच कार्य में जुटे हैं।”

दुर्घटना के बाद लुईसविल मेट्रो पुलिस, फायर विभाग और अन्य एजेंसियाँ राहत कार्य में लगी हैं। पुलिस के अनुसार, कई लोग घायल हुए हैं, लेकिन उनकी पहचान और स्थिति की जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में एयरपोर्ट के पास आसमान में उठता काले धुएं का विशाल गुबार देखा गया, जिससे आसपास के इलाकों में अफरातफरी मच गई।

UPS का सबसे बड़ा संचालन केंद्र लुईसविल में स्थित है। यहां कंपनी का प्रमुख लॉजिस्टिक्स हब “वर्ल्डपोर्ट” लगभग 50 लाख वर्ग फीट में फैला हुआ है। इस केंद्र में प्रतिदिन करीब 12 हजार कर्मचारी लगभग 20 लाख पार्सल की प्रोसेसिंग करते हैं। हादसे के बाद सुरक्षा कारणों से एयरपोर्ट से 8 किलोमीटर के दायरे में “शेल्टर-इन-प्लेस” अलर्ट जारी किया गया है, जिसके तहत लोगों को घरों में ही रहने की सलाह दी गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, विमान में लगभग 38 हजार लीटर ईंधन था, जिसने आग को और भी भयानक बना दिया।

UPS ने एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा, “हम इस दुखद घटना से बेहद व्यथित हैं। हमारी संवेदनाएँ सभी प्रभावित परिवारों के साथ हैं। UPS अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और जिन समुदायों की हम सेवा करते हैं, उनकी सुरक्षा के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लुईसविल हमारे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारी एयरलाइन का मुख्यालय और हजारों कर्मचारियों का घर है।”

जानकारी के अनुसार, दुर्घटनाग्रस्त MD-11F विमान वर्ष 1991 में निर्मित हुआ था। इसे मूल रूप से मैकडॉनेल डगलस कंपनी ने बनाया था, बाद में इसका उत्पादन बोइंग ने जारी रखा। यह मॉडल विशेष रूप से मालवाहक सेवाओं के लिए डिजाइन किया गया है और इसे UPS, FedEx तथा Lufthansa Cargo जैसी कंपनियाँ इस्तेमाल करती हैं।

NTSB की लगभग 28 सदस्यीय टीम अब जांच का नेतृत्व कर रही है। लुईसविल एयरपोर्ट के कार्यकारी निदेशक डैन मैन ने बताया कि जांच दल बुधवार सुबह से काम शुरू करेगा और स्थानीय एजेंसियों तथा फायर विभाग के साथ मिलकर साक्ष्य जुटाएगा। उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि जांच कई दिनों तक चलेगी और इसके अलग-अलग चरणों में ब्रीफिंग दी जाएगी।”

इस बीच, सैकड़ों फायरफाइटरों ने आग पर लगभग काबू पा लिया है। फायर डिपार्टमेंट के प्रमुख ब्रायन ओ’नील ने बताया कि बचाव दल अब “ग्रिड बाय ग्रिड” इलाके की तलाशी लेकर संभावित पीड़ितों की तलाश कर रहे हैं।


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मेक्सिको में ड्रग माफियाओं पर अमेरिका करेगा एयर स्ट्राइक: बड़ा ऐलान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ड्रग तस्करी पर लगाम लगाने के लिए मेक्सिको में अमेरिकी सेना और खुफिया अधिकारियों को भेजने की तैयारी कर रहे हैं।  इस ऑपरेशन में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) की भूमिका भी हो सकती है।

दो मौजूदा और दो पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि ट्रम्प प्रशासन मेक्सिको के ड्रग कार्टेल्स को निशाना बनाने के लिए एक बड़े मिशन की योजना पर काम कर रहा है। शुरुआती ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है। योजना के तहत मेक्सिको की जमीन पर ऑपरेशन चलाने की संभावना है, हालांकि सेना भेजने का अंतिम निर्णय अभी नहीं हुआ है।

NBC न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, इस अभियान में ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशंस कमांड (JSOC) की टीमें शामिल हो सकती हैं, जो CIA के निर्देश में काम करेंगी। मिशन के तहत ड्रग लैब्स और कार्टेल सरगनाओं को निशाना बनाने के लिए ड्रोन और हवाई हमलों की योजना तैयार की जा रही है। कई ड्रोन के संचालन के लिए अमेरिकी ऑपरेटरों की ज़रूरत जमीन पर भी पड़ेगी।

फरवरी में अमेरिकी विदेश विभाग ने छह मेक्सिकन कार्टेल्स, MS-13 गैंग और वेनेज़ुएला के ट्रेन डे अरागुआ संगठन को विदेशी आतंकी समूह घोषित किया था। इसके बाद से CIA और अमेरिकी सेना को इन पर गुप्त ऑपरेशनों की अनुमति मिल गई है। ट्रम्प पहले भी कह चुके हैं कि उन्होंने वेनेज़ुएला में CIA को कार्रवाई की मंजूरी दी थी, और अब ज़रूरत पड़ने पर मेक्सिको में भी कार्टेल्स को “जमीन पर निशाना” बनाया जा सकता है।

मेक्सिको दुनिया के सबसे बड़े ड्रग नेटवर्क्स का गढ़ माना जाता है, जहां से कोकीन, हेरोइन, मेथ और फेंटेनाइल जैसी खतरनाक ड्रग्स अमेरिका तक पहुंचती हैं। अमेरिकी एजेंसियों के अनुसार, देश में ड्रग्स की सबसे बड़ी सप्लाई मेक्सिकन कार्टेल्स के ज़रिए होती है। हर साल लाखों अमेरिकी नशे की लत के शिकार होते हैं और फेंटेनाइल जैसी दवाओं से हजारों मौतें दर्ज की जाती हैं। इस वजह से अमेरिकी सरकार पर लंबे समय से दबाव रहा है कि वह तस्करी के स्रोतों पर सख्त कार्रवाई करे।

दूसरी ओर, मेक्सिको में ये कार्टेल्स इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि कई क्षेत्रों में पुलिस और प्रशासन पर हावी रहते हैं। हथियारबंद गिरोह, धमकी और भ्रष्टाचार के चलते सरकार के लिए उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। कई कार्टेल्स तो अपने इलाकों में “शैडो गवर्नमेंट” की तरह शासन चलाते हैं।

अगर यह मिशन अमल में आता है, तो यह 100 साल बाद मेक्सिको में अमेरिकी सेना की पहली तैनाती होगी। आखिरी बार 1916 में जनरल जॉन पर्शिंग ने क्रांतिकारी पैनचो विला का पीछा करने के लिए मेक्सिको में सेना भेजी थी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक अमेरिका मेक्सिको की अनुमति के बिना वहां सैन्य कार्रवाई नहीं कर सकता। मेक्सिको ने अब तक किसी भी विदेशी सैन्य हस्तक्षेप का सख्त विरोध किया है।


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