अदालत ने ईडी से पूछे कई सवाल, सोनिया गांधी और राहुल के खिलाफ दायर किया था आरोपपत्र

नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दायर आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ईडी ने राउज एवेन्यू की विशेष अदालत से कहा कि अनुसूचित अपराध मनी लॉन्ड्रिंग के लिए एक ट्रिगर है और यह अपराध की गतिविधि हो सकती है, लेकिन कंपनी की हर गतिविधि मनी लॉन्ड्रिंग नहीं हो सकती।

अदालत ने सुनवाई के दौरान ईडी से पूछा कि क्या ये शेयर अनुसूचित अपराधों से उत्पन्न हैं? अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी को कुछ चीजों को अपराध की आय के रूप में पहचानना होगा। अदालत ने पूछा क्या मनी लॉन्ड्रिंग की कार्यवाही के उद्देश्य के लिए शेयर, संपत्ति और किराए अपराध की आय बने रहेंगे?

अदालत ने उक्त टिप्पणी व सवाल तब किए जब ईडी ने कहा कि यंग इंडियन के पास आरोपितों के लाभ के लिए जारी रखने के अलावा कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं थी। ईडी ने कहा कि शेयर, संपत्ति और किराया अपराध की आय है, जबकि विज्ञापन और ऋण को बाहर रखा गया है।

ईडी ने दाखिल किया था आरोपपत्र

वहीं, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईडी से पूछा कि क्या आपके पास फोरेंसिक ऑडिटर है? अदालत को यह देखना होगा कि कंपनियां कैसे काम करती हैं और शेयर जारी करने के लिए क्या स्वीकार्य तरीके हैं। जवाब में ईडी ने कहा कि यह केवल अपराध की आय से प्राप्त संपत्ति से संबंधित हैं। एक बार शेयर जारी होने के बाद यह एक संपत्ति है। यंग इंडियन को एजेएल के शेयर जारी करना धोखाधड़ी का अपराध है। नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने 15 अप्रैल को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी समेत अन्य के विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल किया था।

अदालत इस मामले में दो जुलाई से आठ जुलाई तक प्रतिदिन सुनवाई करेगी। मामले में ईडी के साथ अन्य आरोपितों की जिरह सुनी जाएगी। कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब प्रतिवादियों ने रिकॉर्ड की जांच के लिए सुनवाई स्थगित करने की मांग की। हालांकि, ईडी ने इसका विरोध किया।


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वक्फ एक्ट; केंद्र बोला-सरकारी जमीन पर किसी का हक नहीं

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से साफ कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। सरकार ने स्पष्ट किया कि उसे 'वक्फ बाई यूजर' के नाम पर वक्फ घोषित की गई सरकारी संपत्तियों का वापस कब्जा पाने का कानूनी अधिकार है। वक्फ बाई यूजर से आशय ऐसी संपत्ति से है जहां किसी संपत्ति को औपचारिक दस्तावेज के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है। उसका आधार सिर्फ यही होता है कि इस संपत्ति का धार्मिक उपयोग लंबे समय से हो रहा है।

नए वक्फ कानून के पीछे केंद्र ने लगाया जोर

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकारों पर बुधवार को सुनवाई हुई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता के वकीलों की दी हुई दलीलों का जवाब दिया। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं।

मेहता ने कहा, 'किसी को भी सरकारी जमीन पर दावे का अधिकार नहीं है। उच्चतम न्यायालय का एक फैसला है, जिसमें कहा गया है कि अगर संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है।' केंद्र सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी मेहता ने शुरुआत में कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया है और 'किसी ने इस तरह का मामला नहीं रखा है कि संसद के पास इस कानून को पारित करने की क्षमता नहीं है।' उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट और इस तथ्य का हवाला दिया कि अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले कई राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों से परामर्श किया गया था।

वक्फ पर फैलाए जा रहे भ्रमों पर केंद्र का जवाब

पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इन दलीलों पर केंद्र से जवाब मांगा कि जिलाधिकारी के पद से ऊपर का कोई अधिकारी वक्फ संपत्तियों पर इस आधार पर दावा तय कर सकता है कि वे सरकारी हैं। मेहता ने कहा, 'यह न केवल भ्रामक है बल्कि एक गलत तर्क है।' केंद्र ने अपने लिखित नोट में अधिनियम का दृढ़ता से बचाव करते हुए कहा कि वक्फ अपनी प्रकृति से ही एक 'धर्मनिरपेक्ष अवधारणा' है और इस कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि इसके पक्ष में 'संवैधानिकता की धारणा' है।

उसने उन मुद्दों पर ध्यान दिया जो अदालत ने पहले उठाए थे और कहा कि कानून केवल धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए वक्फ प्रशासन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने का प्रयास करता है। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई गंभीर स्थिति नहीं है कि इस पर रोक लगा दी जाए। नोट में कहा गया है, 'कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी। संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है।'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- संसद के पारित कानूनों होती है संवैधानिकता

पीठ ने मंगलवार को 'कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा' को रेखांकित किया था और कहा कि वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत के लिए 'मजबूत और स्पष्ट' तथ्य पेश करने की आवश्यकता है। जब कानून के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें शुरू कीं तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत के लिए आपको एक बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला बनाना होगा, वरना संवैधानिकता की धारणा रहेगी।' केंद्र ने पीठ से तीन मुद्दों पर सुनवाई को सीमित करने का आग्रह किया था।

एक मुद्दा 'अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है। याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए। तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।

5 अप्रैल को अस्तित्व में आया नया कानून

केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई थी। इस विधेयक को लोकसभा में 288 सदस्यों के मत से पारित किया गया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने मतदान किया।


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Waqf कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी

वक्फ संशोधन कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कानून का विरोध करते हुए दलील दी कि 'कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है , जबकि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है। उन्होंने कहा कि कानून इस तरह बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया का पालन किये वक्फ संपत्ति छीन ली जाए।'

वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं

सिब्बल ने कानून की विभिन्न धाराओं को उल्लेखित कर उनकी वैधानिकता पर सवाल उठाया और वक्फ संशोधन कानून 2025 को अनुच्छेद 25 और 25 में मिले धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया। सिब्बल की दलीलें भोजनावकाश के बाद भी जारी रहेंगी।

सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। मामले में प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ सुनवाई कर रही है।

वक्फ संशोधन कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई है जबकि दूसरी ओर केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए गए जवाब में कानून को सही ठहराते हुए अंतरिम रोक का विरोध किया है।

सिब्बल ने की कानून पर अंतरिम रोक की मांग

वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा शीर्ष अदालत में दो और याचिकाएं सुनवाई पर लगी हैं जिनमें मूल वक्फ कानून को चुनौती दी गई है और मूल वक्फ कानून 1995 व 2013 को गैर मुस्लिमों के प्रति भेदभाव वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। हरिशंकर जैन और पारुल खेड़ा की इन याचिकाओं पर भी कोर्ट नोटिस जारी कर चुका है लेकिन अभी तक केंद्र ने इनका जवाब दाखिल नहीं किया है।

वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में संशोधित कानून को मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए रद करने की मांग की गई है। वैसे तो कोर्ट में दो दर्जन याचिकाएं दाखिल हुईं थी लेकिन पिछली सुनवाई 17 अप्रैल को कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार व अन्य को नोटिस जारी करते वक्त ही साफ कर दिया था कि वह सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही विचार करेगा। उन पांच याचिकाओं में एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओबैसी व जमीयत उलमा ए हिन्द की याचिका शामिल हैं।

पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने अंतरिम आदेश के मुद्दे पर केंद्र की ओर दिये गए आश्वासन को आदेश में दर्ज किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि कोर्ट के अगले आदेश तक केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जाएगी।

इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा था कि अधिसूचित या पंजीकृत वक्फ जिनमें वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) भी शामिल हैं, उन्हें गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही उनकी प्रकृति में बदलाव किया जाएगा।

कोर्ट ने उसी दिन आदेश में कह दिया था कि अगली तारीख पर होने वाली सुनवाई प्रारंभिक सुनवाई होगी और अगर जरूरत हुई तो अंतरिम आदेश भी दिया जाएगा। उसी आदेश के मद्देनजर मंगलवार को कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर सुनवाई शुरू हुई।

मंगलवार को अंतरिम आदेश के मुद्दे पर पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखना शुरू किया। हालांकि इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि कोर्ट ने अंतरिम आदेश के पहलू पर तीन मुद्दे तय किये थे और उन्हीं तीन मुद्दों पर केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया है।

आज सुनवाई के दौरान सिब्बल ने क्या दी दलीलें

कोर्ट को उन्हीं तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित रखनी चाहिए। लेकिन कपिल सिब्बल ने मेहता की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट ने मामले पर बहस को सिर्फ तीन मुद्दों तक सीमित रखने का काई आदेश नहीं दिया था। बहस कानून के सभी मुद्दों पर होगी।

दूसरे याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। इसके बाद सिब्बल ने बहस शुरू की और अपनी दलीलें रखीं। कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान उनका पक्ष स्पष्ट समझने के लिए कई सवाल पूछे जैसे कि क्या पहले के वक्फ कानून में वक्फ पंजीकृत कराना जरूरी था या स्वैच्छिक था। और क्या पंजीकृत न कराने का कोई परिणाम भी तय था।

सिब्बल ने कहा कि कानून में वक्फ पंजीकृत कराने की बात थी और मुतवल्ली की जिम्मेदारी थी वक्फ पंजीकृत कराएं और पंजीकरण न कराने पर मुतवल्ली पर कार्रवाई होने की बात थी लेकिन उस कानून में वक्फ समाप्त हो जाने जैसी कोई बात नहीं थी। सिब्बल की दलीलें भोजनावकाश के बाद भी जारी रहेंगी।


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भारत के 52वें CJI बने जस्टिस बीआर गवई

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई 2025 को पूरा हो गया है, भारत के सीजेआई संजीव खन्ना रिटायर हो गए हैं और उनका सुप्रीम कोर्ट में फेरवल भी कर दिया गया है. इसी के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज जस्टिस बीआर गवई ने देश के नए CJI का कार्यभार संभाल लिया है. वहीं 14 मई 2025 को भारत के नए सीजेआई के रूप में सीनियर मोस्ट जज जस्टिस बीआर गवई शपथ ले ली है. नए CJI जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के 52वें CJI हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि BR गवई के प्रमोशन होने पर अब उनकी सैलरी कितनी बढ़ जाएगी.

भारत के नए CJI जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज थे और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज को 2.5 लाख रुपये सैलरी मिलती है. इसके अलावा 8 लाख रुपये फर्निशिंग भत्ता, मूल वेतन का 24 प्रतिशत, 34,000 रुपये प्रति माह सत्कार भत्ता, 20 लाख रुपये ग्रेच्युटी और 15 लाख रुपये प्रति वर्ष पेंशन और साथ में महंगाई राहत भी मिलती है.

वहीं भारत के CJI को हर महीने 2.80 लाख रुपए वेतन मिलता है, साथ ही 45000 रुपए सत्कार भत्ता मिलता है, 10 लाख रुपए फर्निशिंग अलाउंस के तौर पर मिलते हैं और CJI को बंगला, गाड़ी, नौकर और 24 घंटे सिक्योरिटी के अलावा कई सुविधाएं मिलती हैं. ऐसे में अब भारत के नए CJI जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम को प्रमोशन के बाद 30 हजार रुपये ज्यादा सैलरी, अन्य भत्ते और कई तरह की सुविधाएं मिलेंगी.

भारत के नए CJI बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज हैं. साथ ही वे देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं. जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. वे 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिशनल जज नियुक्त किए गए थे . रिपोर्ट्स के अनुसार, अब बीआर गवई जस्टिस गवई का भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में छह महीने से ज्यादा का कार्यकाल होगा.

भारत के नए CJI बीआर गवई जस्टिस गवई को रिटायरमेंट के बाद भी पेंशन, भत्ते और कई सुविधाएं मिलेंगी. जिसमें CJI को रिटायरमेंट के बाद 16.80 लाख रुपये प्रति वर्ष पेंशन और साथ में महंगाई राहत और 20 लाख रुपए ग्रेच्युटी मिलती है. CJI को रिटायरमेंट के बाद सरकारी आवास, सुरक्षा गार्ड्स, नौकर और ड्राइवर के साथ रिटायरमेंट के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में अन्य कानूनी मामलों में मदद, सलाह देने का अधिकार और अन्य सुविधाएं मिलती रहती हैं.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सैलरी, ग्रेच्युटी, पेंशन, भत्ते जैसे सभी चीजों के लिए देश में सुप्रीम कोर्ट सैलरी एंड कंडीशन्स ऑफ सर्विस अधिनियम-1958 के तहत है. वहीं हाई कोर्ट की न्यायाधीशों सैलरी, ग्रेच्युटी, पेंशन, भत्ते आदि अधिनियम-1954 के तहत तय किए जाते है. इसके साथ ही समय समय पर सैलरी, पेंशन और भत्ते आदि पर संशोधन भी किया जाता है.


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National Herald मामले में सोनिया-राहुल आज कोर्ट में रखेंगे अपना पक्ष

नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की ओर से आज पक्ष रखा जाएगा। उनके अधिवक्ता दोनों की ओर से अदालत में पेश होंगे और अपने मुवक्किल की ओर से दलील पेश करेंगे।

राउज एवेन्यू स्थित विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने मामले में ईडी की ओर से दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से पहले दोनों आरोपितों को नोटिस जारी कर कहा था कि निष्पक्ष सुनवाई के लिए ये जरूरी है कि हर आरोपित को सुना जाए, सभी आरोपितों को अपनी बात रखने का मौका मिले। इससे ये सुनिश्चित होगा कि मामले की सुनवाई सही तरीके से हो।

अदालत ने कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा और सुमन दुबे, सुनील भंडारी और एक निजी कंपनी यंग इंडियन डोटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड को भी नोटिस जारी किया था।


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नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया-राहुल को कोर्ट का नोटिस

नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली के राऊज एवेन्यू कोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी को नोटिस दिया। कोर्ट में मामले की दूसरी सुनवाई हुई थी।

कोर्ट ने मामले में सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, सुनील भंडारी, मेसर्स यंग इंडिया और मेसर्स डोटेक्स मर्केंडाइज प्राइवेट लिमिटेड को भी नोटिस दिया है।

स्पेशल जज विशाल गोगने ने कहा,

किसी भी स्तर पर बात सुने जाने का अधिकार निष्पक्ष सुनवाई में जान फूंकता है। मामले की अगली सुनवाई अब 8 मई को होगी।

25 अप्रैल को कोर्ट ने कहा था- चार्जशीट में कुछ डॉक्यूमेंट्स गायब हैं, दाखिल करें

25 अप्रैल को कोर्ट ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि आरोपियों का पक्ष सुने बिना हम नोटिस जारी नहीं कर सकते।

स्पेशल जज विशाल गोगने ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की याचिका पर 25 अप्रैल को पहली सुनवाई की थी। उन्होंने कहा, 'ED की चार्जशीट में कुछ डॉक्यूमेंट्स भी गायब हैं। उन डॉक्यूमेंट्स को दाखिल करिए। उसके बाद नोटिस जारी करने पर फैसला करेंगे।'

ED ने कांग्रेस के नेशनल हेराल्ड अखबार और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में 9 अप्रैल को पहली चार्जशीट दाखिल की थी। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे को आरोपी बनाया था।

ED ने कहा- हम कुछ भी नहीं छिपा रहे

ED ने कोर्ट से कहा था कि हमारी तरफ से कुछ भी नहीं छिपाया जा रहा है। संज्ञान लिए जाने से पहले उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिया जा रहा है। हम नहीं चाहते कि आदेश जारी करने में ज्यादा वक्त लगे। इसलिए कोर्ट को नोटिस जारी करना चाहिए।

इस पर जज ने कहा कि जब तक कोर्ट इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाता कि नोटिस की जरूरत है, हम कोई आदेश पारित नहीं कर सकते। आदेश जारी करने से पहले यह देखना होता है कि उसमें कोई कमी तो नहीं है।

चार्जशीट से पहले प्रॉपर्टी जब्त करने की कार्रवाई हुई

इससे पहले 12 अप्रैल 2025 को जांच के दौरान कुर्क संपत्तियों को जब्त करने की कार्रवाई की गई थी। ED ने दिल्ली के हेराल्ड हाउस (5A, बहादुर शाह जफर मार्ग), मुंबई के बांद्रा (ईस्ट) और लखनऊ के विशेश्वर नाथ रोड स्थित AJL की बिल्डिंग पर नोटिस चिपकाए गए थे।

661 करोड़ की इन अचल संपत्तियों के अलावा AJL के 90.2 करोड़ रुपए के शेयरों को ED ने नवंबर 2023 में अपराध की आय को सुरक्षित करने और आरोपी को इसे नष्ट करने से रोकने के लिए कुर्क किया था।

चार्जशीट में सोनिया आरोपी नंबर एक, राहुल नंबर दो

कांग्रेस बोली थी- यह बदले की राजनीति, BJP ने कहा- खामियाजा भुगतेंगे

कांग्रेस ने इसे बदले की राजनीति बताया। जयराम रमेश ने लिखा, 'नेशनल हेराल्ड की संपत्ति जब्त करना कानून के शासन का मुखौटा पहने हुए राज्य प्रायोजित अपराध है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करना प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की ओर से बदले की राजनीति और धमकी के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि, कांग्रेस और उसका नेतृत्व चुप नहीं रहेगा। सत्यमेव जयते।'

हालांकि, BJP ने कहा है कि जो लोग भ्रष्टाचार और सार्वजनिक संपत्ति की लूट में लिप्त थे, उन्हें अब इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनवाला बोले-अब ED का मतलब डकैती तथा वंशवाद का अधिकार नहीं है। वे जनता का पैसा, संपत्ति हड़प लेते हैं और कार्रवाई होने पर विक्टिम कार्ड खेलते हैं। उन्होंने नेशनल हेराल्ड मामले में भी जनता की संपत्ति को अपना बना लिया।


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पहले आर्मी चीफ, फिर पीएम मोदी से मिले राजनाथ सिंह, पहलगाम हमले पर दोपहर 3 बजे संसदीय समिति की होगी बैठक

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आधिकारिक आवास 7, लोक कल्याण मार्ग पर मुलाकात करने पहुंचे। रक्षा मंत्री ने पीएम मोदी से लंबी बातचीत की। पीएम मोदी के आवास पर 40 मिनट तक चली बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी शामिल थे।

राजनाथ सिंह ने पीएम को ताजा हालात के बारे में अपडेट दिया है। इस बीच खबर आ रही है कि रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति की भी आज दोपहर 3 बजे बैठक होगी।

पहलगाम में चल रहे ऑपरेशन के बारे में दी जानकारी

यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब एक दिन पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान ने रक्षा मंत्री को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए लिए गए प्रमुख निर्णयों के बारे में जानकारी दी थी। बताया जा रहा है 3 बजे की बैठक में पहलगाम हमले को लेकर चर्चा होगी। इस दौरान बैठक में कई नेता भी मौजूद होंगे।

दोनों नेताओं के बीच काफी देर तक बातचीत

इस मुलाकातों से अटकलें तेज हो गई है कि भारत जल्द ही पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कदम उठा सकता है। आज की बैठक पहलगाम आतंकी हमले पर संसद परिसर में आयोजित सर्वदलीय बैठक के तीन दिन बाद हुई है, जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री ने की थी।

पहलगाम अटैक के बाद हुई  बैठक

22 अप्रैल को हुए इस हमले में 26 लोगों की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिनमें से अधिकतर पर्यटक थे, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था। यह घटना दोपहर करीब 2 बजे बैसरन मैदान में हुई। यह 2019 के पुलवामा हमले के बाद से इस क्षेत्र में सबसे घातक हमलों में से एक था, जिसमें 40 केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान शहीद हो गए थे।

घटना के बाद, 23 अप्रैल से एनआईए की टीमें घटनास्थल पर तैनात हैं और सबूतों की तलाश तेज कर दी है।


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'कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं हों खारिज', वक्फ मामले पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का हलफनामा

वक्फ संशोधन एक्ट मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया. सरकार ने कहा कि कोर्ट को कानून पर विचार कर अंतिम फैसला लेना चाहिए. कुछ धाराओं पर रोक लगाना सही नहीं है. सरकार ने कहा, "कानून को किसी धर्म के खिलाफ बताना गलत है. वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल में अधिकतम 2 सदस्य ही गैर-मुस्लिम होंगे."

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट बताया कि गैर मुस्लिम सदस्यों की मौजूदगी वक्फ बोर्ड के काम को ज्यादा समावेशी बनाएगी. सरकार ने कोर्ट को बताया, "वक्फ कानून के 100 साल के इतिहास में वक्फ बाय यूजर को रजिस्ट्रेशन के आधार पर ही मान्यता मिलती आई है. इसी के आधार पर संशोधित कानून है. सरकारी जमीन को किसी धार्मिक समुदाय का बताने की इजाजत नहीं दी जा सकती. कानून में भूमि से जुड़े रिकॉर्ड को सही करने की व्यवस्था बनाई गई है."

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "वक्फ कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के प्रयास न्यायिक समीक्षा के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं. संसदीय समिति की ओर से व्यापक, गहन, विश्लेषणात्मक अध्ययन के बाद संशोधन किये गये." केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि निजी और सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण करने के लिए प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है.

केंद्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विधायी क्षमता और अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर कानून की समीक्षा कर सकता है. न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने बताया, "मुगल काल से पहले, आजादी से पहले और आजादी के बाद वक्फ की कुल संपत्ति 18,29,163.896 एकड़ थी. 2013 के बाद वक्फ भूमि में 20,92,072.536 एकड़ की बढ़ोतरी हुई है."



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'संसद सर्वोच्च, इससे ऊपर कोई नहीं', उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि संसद सर्वोच्च है और प्रतिनिधि (सांसद) यह तय करने का अंतिम अधिकार रखते हैं कि संविधान कैसा होगा, उनके ऊपर कोई भी नहीं हो सकता."

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में कहा कि संसद देश की सबसे बड़ी संस्था है और चुने हुए सांसद ही तय करेंगे कि संविधान कैसा होगा. उन्होंने कहा कि कोई भी संस्था संसद से ऊपर नहीं हो सकती. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा, “एक बार कोर्ट ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना इसका हिस्सा नहीं है (गोलकनाथ केस के संदर्भ में), फिर दूसरी बार कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है (केशवानंद भारती केस के संदर्भ में)”

"लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है", बोले धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है. अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा, “संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए. हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें. देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है. जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए.”

पहले भी दे चुके हैं ऐसा बयान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पहले भी कह चुके हैं कि लोकतंत्र में संसद सबसे ऊपर है और संविधान कैसा होगा, यह चुने हुए नेता तय करेंगे. उनके मुताबिक, सांसदों से ऊपर कोई और संस्था नहीं हो सकती. उनके इस बयान पर राज्यसभा सांसद और सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताई थी. सिब्बल ने कहा था कि उपराष्ट्रपति का यह बयान सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्था को कमजोर करता है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.


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बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग,सुप्रीम कोर्ट आज करेगा सुनवाई, अनुच्छेद 355 से क्या बदल जाएगा

सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (22 अप्रैल, 2025) को बंगाल हिंसा को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करेगा. बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई हिंसा को लेकर याचिका दाखिल की गई थी. सोमवार को इसमें नया आवेदन दाखिल कर केंद्र सरकार को राज्यपाल से रिपोर्ट मांगने के लिए कहने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की अपील की गई.

पश्चिम बंगाल की खराब कानून-व्यवस्था, राजनीतिक हिंसा और हत्याओं को लेकर 2021 से रंजना अग्निहोत्री और जितेंद्र सिंह बिसेन की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट से कहा कि आवेदन में केंद्र को राज्यपाल से संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत रिपोर्ट मांगने का निर्देश देने की मांग की गई है.

'हम पर लग रहे सरकार के कामकाज में दखल के आरोप', बोला सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने ये मांग रखी गई. इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान वह अपनी बात रखें. न्यायपालिका पर सरकार के कामकाज में दखल का आरोप लगाते हुए चल रही बयानबाजी की तरफ इशारा करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, 'हम पर पहले ही कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण का आरोप लग रह रहा है. आप चाहते हैं हम कि राष्ट्रपति को निर्देश दें?'

क्या है अनुच्छेद 355, जिसकी विष्णु शंकर जैन ने की है मांग?

नए आवेदन में मांग की गई है कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली तीन जजों की कमेटी को दी जाए. राज्य में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. अनुच्छेद 355 के तहत राज्यपाल से राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर रिपोर्ट मांगी जाए. अगर इस तरह की रिपोर्ट में राज्यपाल किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था के चरमरा जाने की रिपोर्ट देते हैं, तो राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.

बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग

विष्णु शंकर जैन ने कहा, 'कल की सूची में मद संख्या 42 पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने से संबंधित है. यह याचिका मैंने दायर की है. उस याचिका में मैंने पश्चिम बंगाल राज्य में हुई हिंसा की कुछ और घटनाओं को सामने लाने संबंधी अभियोग और निर्देश के लिए एक इंटरलोक्यूटरी आवेदन दायर किया है.' इंटरलोक्यूटरी आवेदन एक औपचारिक कानूनी अनुरोध होता है जो अंतरिम आदेश या निर्देश प्राप्त करने के लिए कोर्ट की कार्यवाही के दौरान दायर किया जाता है.

मुर्शिदाबाद हिंसा की रिटायर्ड जज से जांच की मांग

विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2021 की याचिका पर पहले नोटिस जारी किया था. उन्होंने कहा, 'जब मामले पर सुनवाई होगी तो मैं बताऊंगा कि हिंसा कैसे हुई.' एक नई याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि 2022 से अप्रैल 2025 तक हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघनों और महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं, खासतौर पर मुर्शिदाबाद में हालिया हिंसा की घटनाओं के मामले में जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की नियुक्ति की जाए. आवेदन में केंद्र को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि पश्चिम बंगाल को अनुच्छेद 355 के तहत आवश्यक निर्देश जारी करने पर विचार किया जाए.


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