चुनाव आयोग सोमवार शाम 4:15 बजे विशेष इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा। इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी देशभर में SIR की तारीखों की घोषणा करेंगे।
सूत्रों के मुताबिक, आयोग अगले हफ्ते से पूरे देश में SIR शुरू कर सकता है। इसकी शुरुआत 10 से 15 राज्यों में होगी। सबसे पहले उन राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू होगी, जहां अगले एक साल में विधानसभा चुनाव होने हैं — जैसे असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल, जहां मई 2026 में चुनाव प्रस्तावित हैं।
कुछ राज्यों में फिलहाल नहीं होगी SIR प्रक्रिया
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि जिन राज्यों में स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं, वहां अभी SIR नहीं होगी। इसका कारण यह है कि निचले स्तर पर कर्मचारी इन चुनावों में व्यस्त रहेंगे और SIR के लिए समय नहीं निकाल पाएंगे। ऐसे राज्यों में यह प्रक्रिया स्थानीय चुनावों के बाद शुरू की जाएगी।
राज्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ दो दौर की बैठक
SIR लागू करने की रूपरेखा को अंतिम रूप देने के लिए आयोग ने हाल ही में राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) के साथ दो बैठकें की हैं। कई राज्यों ने अपनी पिछली SIR के बाद तैयार की गई वोटर लिस्ट अपनी वेबसाइट्स पर डाल दी है।
उदाहरण के लिए, दिल्ली की CEO वेबसाइट पर 2008 की वोटर लिस्ट उपलब्ध है, जब वहां अंतिम बार SIR हुई थी। उत्तराखंड में 2006 में SIR हुई थी, वहीं बिहार में हाल ही में वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी कर फाइनल डेटा 1 अक्टूबर को जारी किया गया।
अंतिम SIR बनेगी कट-ऑफ डेट
राज्यों में होने वाली यह SIR कट-ऑफ डेट के रूप में काम करेगी, जैसे बिहार की 2003 की वोटर लिस्ट को पहले किया गया था। अधिकांश राज्यों में अंतिम बार SIR 2002 से 2004 के बीच हुई थी। दिल्ली और उत्तराखंड में यह क्रमशः 2008 और 2006 में हुई थी।
अधिकांश राज्यों ने अपने मौजूदा मतदाताओं का मिलान पिछली SIR के आंकड़ों से लगभग पूरा कर लिया है। आयोग के अनुसार, इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना और यह सुनिश्चित करना है कि सूची में केवल वैध भारतीय नागरिकों के नाम हों।
SIR का मुख्य लक्ष्य: विदेशी अवैध मतदाताओं की पहचान
SIR का प्राथमिक उद्देश्य विदेशी अवैध प्रवासियों की पहचान करना है, खासकर बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोगों की। यह प्रक्रिया मतदाता सूची से फर्जी या दोहरे नाम हटाने में भी मदद करेगी।
चुनाव आयोग का फोकस फिलहाल केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम और पुडुचेरी जैसे राज्यों पर है, जहां अगले डेढ़ साल में चुनाव होने हैं।
दो दशक बाद हो रही इतनी बड़ी समीक्षा
ऐसी व्यापक समीक्षा करीब 20 साल बाद की जा रही है। आयोग के अनुसार, शहरीकरण और जनसंख्या में प्रवासन (migration) बढ़ने से मतदाता सूची के पुनरीक्षण की जरूरत महसूस की गई।
आंकड़ों के अनुसार,
आंध्र प्रदेश में 2003-04 में 5.5 करोड़ मतदाता थे, अब यह संख्या 6.6 करोड़ हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में 2003 में 11.5 करोड़ मतदाता थे, जो अब 15.9 करोड़ हैं।
दिल्ली में 2008 में 1.1 करोड़ मतदाता थे, जो अब 1.5 करोड़ तक पहुंच चुके हैं।
बीएलओ घर-घर पहुंचाएंगे प्री-फिल्ड फॉर्म
बैठक में यह तय हुआ कि बीएलओ (Booth Level Officers) हर मतदाता के घर जाकर प्री-फिल्ड फॉर्म पहुंचाएंगे। इस प्रक्रिया में 31 दिसंबर 2025 तक 18 वर्ष पूरे करने वाले नागरिकों को भी शामिल माना जाएगा।
देशभर में फिलहाल 99 करोड़ 10 लाख मतदाता हैं। इनमें से बिहार के 8 करोड़ मतदाताओं की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। 2002–2004 के SIR में कुल 70 करोड़ मतदाता दर्ज हुए थे। इस बार अनुमान है कि लगभग 21 करोड़ मतदाताओं को अपने दस्तावेज अपडेट कराने होंगे।
बिहार में SIR को लेकर विवाद
बिहार में चुनाव से पहले हुई SIR प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक विवाद हुआ था। विपक्षी दलों ने सरकार पर वोट चोरी का आरोप लगाया था। यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, हालांकि अदालत ने अब तक चुनाव आयोग की प्रक्रिया को सही बताया है।
आयोग ने बिहार की अंतिम वोटर लिस्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की है। वहीं, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए थे।
राहुल गांधी के आरोप और विवाद
18 सितंबर को राहुल गांधी ने एक 31 मिनट का प्रेजेंटेशन दिया था, जिसमें उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर “लोकतंत्र को कमजोर करने और वोट चोरी करने वालों को बचाने” का आरोप लगाया।
उन्होंने कर्नाटक की आलंद विधानसभा सीट का उदाहरण देते हुए दावा किया कि कांग्रेस समर्थकों के वोट योजनाबद्ध तरीके से हटाए गए। राहुल ने आरोप लगाया कि जिन मतदाताओं के नाम डिलीट किए गए, उनके लिए दूसरे राज्यों से ऑपरेट हो रहे मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया।
राहुल ने प्रेजेंटेशन में उन मोबाइल नंबरों और मतदाताओं के नाम भी दिखाए, जिनके नाम मतदाता सूची से हटाए गए थे — जिनमें गोदावाई के 12 पड़ोसियों के नाम भी शामिल थे।
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