यूबीसी ओकनागन के वैज्ञानिकों ने यह अहम खोज की है कि पौधे एक दुर्लभ प्राकृतिक यौगिक माइट्रैफिलीन कैसे बनाते हैं, जिसे कैंसर-रोधी प्रभावों से जोड़ा जा रहा है। शोध में दो ऐसे प्रमुख एंजाइमों की पहचान की गई है, जो अणुओं को सही आकार देने और अंतिम रूप में मोड़ने का काम करते हैं। इस खोज ने उस वैज्ञानिक पहेली को सुलझा दिया है, जो वर्षों से शोधकर्ताओं को उलझाए हुए थी।
इस उपलब्धि से माइट्रैफिलीन और इससे जुड़े अन्य यौगिकों का उत्पादन भविष्य में कहीं अधिक आसान हो सकता है। साथ ही यह भी सामने आया है कि पौधे अप्रयुक्त चिकित्सीय क्षमता के साथ अत्यंत कुशल “प्राकृतिक रसायनज्ञ” की तरह काम करते हैं। माइट्रैफिलीन एक दुर्लभ प्राकृतिक पदार्थ है, जो अपनी संभावित एंटी-कैंसर भूमिका के कारण वैज्ञानिकों का ध्यान खींच रहा है।
माइट्रैफिलीन एक विशेष रासायनिक समूह स्पाइरोऑक्सिंडोल एल्कलॉइड्स का हिस्सा है। इन अणुओं की पहचान उनके अनोखे मुड़े हुए रिंग स्ट्रक्चर से होती है, जो इन्हें शक्तिशाली जैविक गुण प्रदान करता है। इन्हीं गुणों के कारण इनमें एंटी-ट्यूमर और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभाव देखे जाते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों को लंबे समय से इन यौगिकों के महत्व का अंदाजा था, लेकिन पौधों में इनके बनने की सटीक प्रक्रिया अब तक स्पष्ट नहीं थी।
जैविक रहस्य का समाधान
2023 में यूबीसी ओकनागन के इरविंग के. बार्बर फैकल्टी ऑफ साइंस में डॉ. थू थुई डांग के नेतृत्व में एक टीम ने उस पहले एंजाइम की पहचान की थी, जो इन अणुओं में मौजूद विशेष स्पाइरो संरचना बनाने में सक्षम है। इसी शोध को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टोरल छात्र तुआन आन्ह गुयेन ने माइट्रैफिलीन के निर्माण में शामिल दो अहम एंजाइमों की पहचान की। इनमें से एक एंजाइम अणु को सही त्रि-आयामी संरचना देता है, जबकि दूसरा उसे उसके अंतिम स्वरूप में बदल देता है।
डॉ. डांग के अनुसार, यह खोज किसी असेंबली लाइन की गायब कड़ियों को ढूंढने जैसी है। इससे यह समझने में मदद मिलती है कि प्रकृति इतने जटिल अणुओं का निर्माण कैसे करती है और अब वैज्ञानिक उसी प्रक्रिया को प्रयोगशाला में दोहराने के नए रास्ते तलाश सकते हैं।
माइट्रैफिलीन प्राप्त करना क्यों है मुश्किल
कई प्राकृतिक यौगिक पौधों में बेहद कम मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे उनका उत्पादन महंगा और कठिन हो जाता है। माइट्रैफिलीन भी ऐसा ही यौगिक है, जो उष्णकटिबंधीय पेड़ों जैसे माइट्रागाइना (क्रैटम) और अनकारिया (कैट्स क्लॉ) में बहुत ही कम मात्रा में मौजूद होता है। यही वजह है कि अब तक इसका बड़े पैमाने पर उपयोग संभव नहीं हो पाया था।
इको-फ्रेंडली दवा उत्पादन की ओर कदम
तुआन आन्ह गुयेन का कहना है कि इस खोज से माइट्रैफिलीन जैसे यौगिकों तक पहुंचने के लिए ग्रीन केमिस्ट्री आधारित तरीके अपनाए जा सकते हैं। इससे न केवल पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचेगा, बल्कि दवा उत्पादन भी अधिक टिकाऊ और किफायती हो सकेगा। उन्होंने इस शोध को एक ऐसे सहयोगी वातावरण का परिणाम बताया, जहां छात्र और वैज्ञानिक मिलकर वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान पर काम कर रहे हैं।









