दिल्ली-NCR में खतरनाक प्रदूषण: AQI 400 के ऊपर, सांस लेना मुश्किल

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण लगातार खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। राजधानी में धुंध की मोटी परत छाई हुई है और बृहस्पतिवार (20 नवंबर) को भी हवा की गुणवत्ता बेहद खराब रही। दिल्ली के अधिकांश इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से ऊपर दर्ज किया गया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, बृहस्पतिवार सुबह 7 बजे दिल्ली का औसत AQI 399 रहा। कई क्षेत्रों में AQI ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया—पंजाबी बाग में 439, आनंद विहार में 420, बवाना में 438, बुराड़ी में 414, जहांगीरपुरी में 451 और वजीरपुर में 477 रिकॉर्ड किया गया।

इसके अलावा अलीपुर में AQI 366, चांदनी चौक में 418, आईटीओ में 400, द्वारका में 411 और नरेला में 392 दर्ज किया गया। दिल्ली से सटे इलाकों में भी स्थिति चिंताजनक है—नोएडा सेक्टर-62 में AQI 348, गाजियाबाद के वसुंधरा में 430, इंदिरापुरम में 428 और गुरुग्राम सेक्टर-51 में 342 रिकॉर्ड किया गया। इससे पहले बुधवार को दिल्ली का औसत AQI 392 था, जो ‘गंभीर’ श्रेणी के करीब पहुंच गया था।

गौरतलब है कि CPCB मानकों के अनुसार, AQI 0-50 ‘अच्छा’, 51-100 ‘संतोषजनक’, 101-200 ‘मध्यम’, 201-300 ‘खराब’, 301-400 ‘बहुत खराब’ और 401-500 ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।


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दिल्ली की हवा फिर जहरीली, मध्यप्रदेश में बढ़ी ठिठुरन

विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय मौसम प्रणालियों के बावजूद हवा की रफ्तार बेहद कम रहने से मौसम में खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि आने वाले दो दिनों में रात के तापमान में 2 से 3 डिग्री तक बढ़ोतरी हो सकती है। गुरुवार सुबह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल घने कोहरे की चादर में लिपटा रहा। वहीं, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार, सुबह 7 बजे दिल्ली के अधिकांश इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक ‘बेहद खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया, जिससे लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है और मास्क पहनना मजबूरी बन गया है। इंडिया गेट क्षेत्र में प्रदूषण की धुंध साफ दिखाई दी और AQI 400 के पार पहुंच गया।

मैदानी इलाकों में बढ़ी गलन

पहाड़ी राज्यों में जारी बर्फबारी का असर मैदानी क्षेत्रों में भी साफ दिख रहा है। मध्य प्रदेश में पिछले एक सप्ताह से कड़ाके की ठंड बनी हुई है। बीते 24 घंटों में भोपाल, इंदौर, जबलपुर, उज्जैन सहित 15 शहरों का न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे दर्ज हुआ। शाजापुर 6.4 डिग्री के साथ प्रदेश का सबसे ठंडा स्थान रहा।

अगले दो दिनों के लिए अलर्ट

भोपाल, इंदौर समेत छह जिलों में शीतलहर चलने की संभावना है और अगले दो दिनों के लिए अलर्ट जारी किया गया है। राजस्थान के माउंट आबू में पारा शून्य के करीब पहुंच गया, जबकि अन्य जिलों में तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री नीचे दर्ज हुआ है। हिमाचल प्रदेश में हालिया दिनों में बर्फबारी कम हुई है, लेकिन 29 शहरों में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री से नीचे बना हुआ है। लाहौल-स्पीति में तापमान लगातार माइनस में बना है।

राजस्थान में जमने लगी ओस की बर्फ

माउंट आबू में ठंडी बयार के चलते ओस की बूंदें जमकर बर्फ में बदल गईं। हालांकि धूप निकलने के बाद हल्की राहत मिली। फतेहपुर, नागौर, सीकर और दौसा में भी तेज सर्दी महसूस की गई।

उत्तराखंड में कोहरा और बढ़ती ठंड

उत्तराखंड के निचले इलाकों में सुबह-शाम कोहरा छाया रहता है। मौसम विभाग ने अगले दिनों के लिए कड़ाके की ठंड का अलर्ट जारी किया है, जिसके दौरान तापमान में 4-5 डिग्री तक गिरावट आने की संभावना है।


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भारत में बढ़ा खतरा: 83% मरीजों में मिले मल्टीड्रग रेजिस्टेंट सुपरबग

हाल ही में Lancet eClinical Medicine में प्रकाशित एक स्टडी ने भारत में बढ़ते एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। अध्ययन के अनुसार, भारतीय मरीजों में 83% तक मल्टीड्रग रेजिस्टेंट ऑर्गैनिज्म (MDROs) पाए गए हैं, जो दुनिया के सबसे ऊंचे आंकड़ों में से एक है। यह स्थिति बताती है कि सुपरबग (Superbug) का खतरा अब सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक स्तर पर फैल चुका है।

चार देशों—भारत, इटली, अमेरिका और नीदरलैंड—में 1,200 से अधिक मरीजों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि भारत की स्थिति सबसे गंभीर है। आंकड़े इस प्रकार रहे—भारत 83%, इटली 31.5%, अमेरिका 20.1% और नीदरलैंड 10.8%। भारतीय मरीजों में विशेष रूप से 70.2% ESBL-प्रोड्यूसिंग बैक्टीरिया और 23.5% कार्बापेनेम-रेजिस्टेंट बैक्टीरिया मिले। यह बैक्टीरिया उन ‘लास्ट-रिज़ॉर्ट’ एंटीबायोटिक्स पर भी असर नहीं होने देते, जिन्हें बेहद गंभीर संक्रमण में अंतिम विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

स्टडी में यह भी पाया गया कि यह समस्या मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री से नहीं जुड़ी, बल्कि समाज में एंटीबायोटिक्स के गलत और अत्यधिक इस्तेमाल से बढ़ रही है। यह चिंताजनक है कि 80% से अधिक मरीजों में रेजिस्टेंट बैक्टीरिया पाए गए, जो एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर सख्त नियंत्रण की जरूरत को दर्शाते हैं।

भारत में रेजिस्टेंस बढ़ने की कई वजहें सामने आई हैं—बिना प्रिस्क्रिप्शन एंटीबायोटिक लेना, वायरल बीमारियों में भी दवाओं का सेवन, दवाओं का पूरा कोर्स न करना और पशुओं व खेतों में एंटीबायोटिक्स का बढ़ता उपयोग। इससे बैक्टीरिया समय के साथ मजबूत होते जाते हैं और दवाओं पर असर नहीं रहता।

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का असर बेहद गंभीर है। इससे उपचार न केवल कठिन होता है, बल्कि खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है। जहां सामान्य मरीज कुछ दिनों में कम खर्च में ठीक हो जाता है, वहीं MDR मरीज को ICU, महंगी दवाओं और लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने की जरूरत पड़ सकती है।

सुपरबग से बचाव के लिए कुछ सरल लेकिन जरूरी कदम अपनाने चाहिए—बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक न लें, बची हुई दवाओं का प्रयोग न करें, वायरल बीमारियों में एंटीबायोटिक की मांग न करें और डॉक्टर द्वारा बताए गए कोर्स को पूरा करें। साथ ही, साफ-सफाई, सुरक्षित भोजन, स्वच्छ पानी और समय पर वैक्सीन लगवाना भी बेहद जरूरी है। पालतू जानवरों में भी एंटीबायोटिक का उपयोग केवल वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर ही होना चाहिए।


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एनसीआर में दमघोंटू हवा से बिगड़ रही सेहत; फेफड़ों पर बढ़ा खतरा, मास्क पहनकर ही निकलें बाहर

जिले में लगभग 10 प्रतिशत लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं, जिनमें बुजुर्गों के बाद सबसे अधिक प्रभावित बच्चे हैं। वायु प्रदूषण लगातार बढ़ने से सीओपीडी मरीजों की संख्या में 25 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है। खराब हवा के कारण सांस लेने में आ रही दिक्कतें फेफड़ों को तेजी से कमजोर कर रही हैं। नवंबर 2024 में हुए एक सर्वे के अनुसार गाजियाबाद में सीओपीडी मरीजों की संख्या पाँच लाख से बढ़कर अब छह लाख तक पहुँच गई है। बुजुर्गों के बाद बच्चों पर सबसे ज्यादा असर दिखाई दे रहा है, जबकि तीसरे स्थान पर युवा हैं। विश्व स्तर पर 21.33 करोड़, भारत में 4.37 करोड़ और उत्तर प्रदेश में 98 लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं।

आईएमए की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-एनसीआर में 30 वर्ष से ऊपर की आबादी में सीओपीडी की दर करीब 10.1 प्रतिशत है। धूमपान इसका सबसे बड़ा कारण माना गया है, जबकि धुएं का लंबे समय तक संपर्क और बढ़ता वायु प्रदूषण भी प्रमुख वजहें हैं। चिंताजनक बात यह है कि केवल 48 प्रतिशत मरीज ही उपचार ले रहे हैं, बाकी इलाज शुरू नहीं कर पाए हैं या उसे जारी नहीं रख पा रहे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्ययन में दिल्ली के 3.9 प्रतिशत लोगों में लंग ऑब्स्ट्रक्शन या सीओपीडी के लक्षण पाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार पीएम 2.5 जैसे कण प्रदूषण फेफड़ों की क्षमता को सीधे प्रभावित करते हैं और बीमारी का खतरा बढ़ाते हैं।

प्रदूषण से बचाव के लिए डॉक्टर और विशेषज्ञ गर्म व घर का बना भोजन लेने, गुड़ के सेवन, नियमित भाप लेने और प्राणायाम–अनुलोम-विलोम करने की सलाह देते हैं। वहीं बाहर निकलते समय मास्क पहनना, पर्याप्त पानी पीना और धुएं के संपर्क से बचना बेहद जरूरी है।


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दिल्ली में प्रदूषण का कहर: बढ़े ड्राई आई सिंड्रोम और एलर्जी के मामले

दिल्ली में प्रदूषण ने न सिर्फ हवा की गुणवत्ता को खराब किया है, बल्कि अब यह लोगों की आंखों की रोशनी के लिए भी खतरा बन गया है। लगातार बिगड़ता एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) आंखों में जलन, सूखापन, लालपन और धुंधलेपन जैसी समस्याओं को बढ़ा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि यह एक “अदृश्य महामारी” का रूप ले चुका है, जो धीरे-धीरे दृष्टि को प्रभावित कर रही है।

वैज्ञानिक रिपोर्टों ने जताई चिंता

‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स 2025’ के अनुसार, पीएम 2.5 के स्तर में हर 1% की वृद्धि से देश में करीब ढाई लाख नए नेत्र रोगी सामने आ रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि भारत के प्रदूषित शहरों में करीब 10 करोड़ लोग ड्राई आई सिंड्रोम से जूझ रहे हैं। दिल्ली के अस्पतालों में पिछले दो हफ्तों में आंखों के मरीजों की संख्या में 60% तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें सबसे ज्यादा मामले ड्राई आई सिंड्रोम, एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस और कॉर्निया डैमेज के हैं। अनुमान है कि दिल्ली में फिलहाल लगभग 10 लाख लोग इन तकलीफों से पीड़ित हैं, जिनमें करीब 2 लाख बच्चे शामिल हैं।

एम्स विशेषज्ञ की चेतावनी

एम्स के सामुदायिक नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि “प्रदूषित हवा दिल्लीवासियों की आंखों की नमी छीन रही है, जिससे संक्रमण, जलन और कॉर्निया क्षति का खतरा दोगुना हो गया है। लगातार संपर्क में रहने से रेटिना और मैक्युला की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो रही हैं, जिससे दृष्टि स्थायी रूप से धुंधली पड़ सकती है।”

उन्होंने कहा कि पिछले साल नवंबर में जब एक्यूआई बेहद खराब स्तर पर था, तब आंखों के संक्रमण के मामले अचानक दोगुने हो गए थे। इस साल मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के मामलों में 30% और ग्लूकोमा के खतरे में 8% की बढ़ोतरी देखी गई है।

मुख्य आंकड़े

दिल्ली की हवा में पीएम2.5 का स्तर ग्रामीण इलाकों से 24 गुना अधिक पाया गया।

ट्रैफिक, औद्योगिक धुआं और निर्माण कार्य आंखों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक साबित हो रहे हैं।

राजधानी के अस्पतालों में रोजाना 800 से 1000 मरीज आंखों की जलन या सूखापन की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं।

लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से कॉर्निया की सतह पर महीन दरारें पड़ रही हैं, जिससे संक्रमण और दृष्टि क्षति का खतरा बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह

स्मॉग और धूल भरे दिनों में पारदर्शी सुरक्षात्मक चश्मा पहनें।

दिन में दो बार ठंडे पानी से आंखें धोएं और आइ ड्रॉप्स का प्रयोग करें।

घर और ऑफिस में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें।

व्यावसायिक चालकों के लिए नियमित नेत्र जांच अनिवार्य हो।

इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता दें।

खुले में कूड़ा या बायोमास जलाने पर सख्त कार्रवाई हो।

विशेषज्ञों का कहना है कि आंखों की सुरक्षा अब सिर्फ व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन जानी चाहिए।


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दिल्ली में AQI 400 पार, सांस लेना हुआ मुश्किल — बढ़े अस्थमा और एलर्जी के मरीज

दिल्ली-NCR में बढ़ रहा प्रदूषण

दीवाली के बाद से दिल्ली-NCR की हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। शनिवार को पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार में AQI लेवल 412 दर्ज किया गया, जिससे हवा की गुणवत्ता गंभीर कैटेगरी में पहुंच गई है। कई इलाकों में हवा की गुणवत्ता खराब होने के कारण जनपथ रोड पर पार्टिकुलेट मैटर कम करने के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जा रहा है।

स्वास्थ्य प्रभाव

सिर्फ दो दिनों के भीतर सांस लेने में कठिनाई, अस्थमा के दौरे और एलर्जिक ब्रोंकाइटिस के रोगियों में लगभग 30% की बढ़ोतरी देखी गई है। डॉक्टरों ने लोगों को मास्क पहनने और घर के अंदर रहने की सलाह दी है।

बंगाल की खाड़ी में दबाव क्षेत्र और तूफान की संभावना

मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, बंगाल की खाड़ी में एक कम दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जो 27 अक्टूबर तक तूफान में बदल सकता है। संभावित तूफान का नाम “मोन्था” रखा जा सकता है, जिसका अर्थ है सुगंधित या सुंदर फूल। इसमें हवाओं की गति 110 किमी/घंटा तक पहुंच सकती है। इससे आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, तमिलनाडु, ओडिशा और तेलंगाना में भारी बारिश होने की संभावना है।

हिमाचल, यूपी और मध्य प्रदेश में ठंड बढ़ी

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले के ताबो में न्यूनतम तापमान माइनस 2°C तक गिर गया। मैदानी राज्यों में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में तापमान में गिरावट जारी है। शनिवार सुबह वाराणसी में गंगा घाटों पर धुंध की मोटी परत देखी गई।

तमिलनाडु और दक्षिण भारत में मौसम अलर्ट

बंगाल की खाड़ी के दबाव क्षेत्र के कारण तमिलनाडु, दक्षिण आंध्र प्रदेश, मन्नार की खाड़ी और कोमोरिन में 35-45 किमी/घंटा की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं। तमिलनाडु के कुड्डालोर, विल्लुपुरम, चेंगलपट्टू और पुडुचेरी में भारी बारिश का अलर्ट है। मछुआरों को 25 से 27 अक्टूबर के बीच समुद्र में न जाने की सलाह दी गई है।

केरल में भारी बारिश जारी

केरल के पलक्कड़, इडुक्की और त्रिशूर जिलों में भारी बारिश के कारण बांधों का जलस्तर बढ़ गया है। तिरुवनंतपुरम के ग्रामीण इलाकों में भूस्खलन से घरों को नुकसान पहुंचा। पलक्कड़ के वालयार, मालमपुझा, मूलथारा और चुलियार बांधों में जलस्तर अधिकतम क्षमता के करीब पहुंचने के कारण अधिकारियों ने कई शटर खोलने पड़े।


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मध्यप्रदेश में हर जिले में दवाओं की जांच की तैयारी

जहरीले सिरप से 26 बच्चों की मौत के बाद सरकार सख्त, 211 करोड़ का प्रस्ताव तैयार

मध्यप्रदेश में जहरीले सिरप से 26 बच्चों की मौत के बाद अब राज्य सरकार दवाओं में होने वाली मिलावट की जांच माइक्रो लेवल पर कराने की तैयारी में है। इसके लिए दवाओं की जांच के पूरे सिस्टम को अपग्रेड करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है।

दावा है कि जिलों में मोबाइल लैब की मदद से जांच की जाएगी। इस बदलाव पर करीब 211 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। यह प्रस्ताव राज्य औषधि सुरक्षा और नियामक सुदृढ़ीकरण योजना (SSDRS 2.0) के तहत केंद्र सरकार को भेजा गया है।

अब हर जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का स्वतंत्र कार्यालय

अब तक दवाओं की जांच सिर्फ भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर तक सीमित थी। अब हर जिले में ड्रग इंस्पेक्टर का स्वतंत्र कार्यालय बनाया जाएगा, जिस पर 110 करोड़ रुपए का प्रावधान है।

अभी छोटे जिलों में ड्रग इंस्पेक्टर्स अस्थायी रूप से अन्य कार्यालयों में बैठते हैं, लेकिन नए ऑफिस में आधुनिक आईटी सिस्टम, सर्वर, कंप्यूटर और प्रशिक्षण हॉल जैसे सभी जरूरी इंतजाम होंगे। दवा निरीक्षण, लाइसेंसिंग और रिपोर्टिंग प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन किया जाएगा, जिससे सैंपलिंग, मॉनिटरिंग और जांच की रफ्तार बढ़ेगी। इसके साथ ही नए ड्रग इंस्पेक्टर्स के पदों पर भर्ती भी की जाएगी।

लैब अपग्रेडेशन और नई तकनीक पर जोर

राज्य की चारों स्टेट ड्रग लैब्स — भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर — को 50 करोड़ रुपए की लागत से अपग्रेड किया जाएगा। इन लैब्स में अब माइक्रोबायोलॉजी और स्टेरिलिटी टेस्टिंग यूनिट्स स्थापित होंगी, जो यह जांचेंगी कि किसी दवा में फंगस, बैक्टीरिया या किसी अन्य रासायनिक मिलावट की मौजूदगी तो नहीं है।

लैब्स को NABL मान्यता दिलाने की प्रक्रिया भी इस प्रस्ताव में शामिल है। साथ ही एक नई माइक्रोबायोलॉजी लैब भी बनाई जाएगी, जहां अब तक संभव न रही जांचें भी की जा सकेंगी।

मोबाइल लैब और हैंडहेल्ड डिवाइस से होगी मौके पर जांच

राज्य सरकार 4 करोड़ रुपए की लागत से हैंडहेल्ड डिवाइस खरीदेगी, जिनसे मौके पर ही दवा की जांच की जा सकेगी। इसके अलावा मोबाइल लैब्स भी तैयार की जाएंगी ताकि जिलों में तुरंत सैंपल टेस्टिंग की जा सके।

36 करोड़ रुपए ड्रग इंस्पेक्टर, लैब असिस्टेंट, केमिस्ट और डेटा एंट्री ऑपरेटर की भर्ती और वेतन के लिए।

2 करोड़ रुपए से प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाएगा, जहां अफसरों को आधुनिक जांच तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाएगी।

जहरीले सिरप से 26 बच्चों की मौत के बाद कार्रवाई तेज

प्रदेश में जहरीला कफ सिरप पीने से अब तक 26 बच्चों की मौत हो चुकी है। शुरुआती जांच में मौत की वजह किडनी फेल होना बताई गई थी, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार सिरप में मौजूद डायएथिलीन ग्लाइकॉल केमिकल ने बच्चों के अन्य अंगों — जैसे लिवर, फेफड़े और ब्रेन — को भी नुकसान पहुंचाया था।

इस हादसे के बाद सरकार ने राज्यभर में दवाओं की गुणवत्ता जांचने की दिशा में बड़ी कार्रवाई शुरू की है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।


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दीवाली के बाद दम घोंटने लगी दिल्ली की हवा, दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बना राजधानी

 दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल के बाद दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया। इस बात की जानकारी स्विस ग्रुप आईक्यूएयर ने दी। इसके मुताबिक, मंगलवार को दिल्ली में एयर क्वालिटी खतरनाक स्तर पर पहुंच गई और इसकी रीडिंग दुनिया में सबसे ज्यादा थी।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों पटाखों पर बैन में ढील दी थी और सिर्फ ग्रीन पटाखों फोड़ने के इस्तेमाल की इजाजत दी थी। हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट की तय समय सीमा के बाद भी पटाखे फोड़े गए।

कितनी रही दिल्ली की एयर क्वालिटी?

नई दिल्ली के लिए IQAir की रीडिंग 442 थी, जिससे भारतीय राजधानी दुनिया का सबसे प्रदूषित बड़ा शहर बन गई। इसका PM 2.5 कंसंट्रेशन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की बताई गई सालाना गाइडलाइन से 59 गुना ज्यादा था। पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ होता है, जिसका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है और ये फेफड़ों में जा सकता है। इसका स्तर बढ़ने पर धुंध बढ़ती है और दिल की समस्याओं का खतरा होता है।

आने वाले दिनों में भी दिल्ली को नहीं मिलेगी राहत

इसके अलावा भारत के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने भी शहर की एयर क्वालिटी को "बहुत खराब" बताया है, एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 350 रहा। CPCB 0-50 के AQI को अच्छा मानता है। आने वाले दिनों में दिल्ली को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि अर्थ साइंसेज मिनिस्ट्री का अनुमान है कि एयर क्वालिटी "बहुत खराब से खराब" कैटेगरी में रहेगी और AQI लेवल 201 से 400 के बीच रहेगा।


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दिल्ली में 'जहरीली' हवा से घुटा दम, दीवाली के बाद रेड जोन में पहुंचे NCR के 10 इलाके

दीवाली की रात के बाद मंगलवार की सुबह दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिए दमघोंटू साबित हुई। प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है, जिससे राजधानी के कई इलाके रेड जोन में पहुंच गए हैं।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बार दिवाली पर केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री और जलाने की अनुमति दी थी, लेकिन इसके बावजूद सोमवार को देशभर में अवैध पटाखों की जमकर आतिशबाज़ी हुई। इसका असर दिल्ली-NCR की हवा पर सीधा पड़ा, जो अब बेहद जहरीली हो चुकी है।

इसी बीच, वायु गुणवत्ता में गिरावट को देखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने रविवार को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के दूसरे चरण को लागू करने का फैसला लिया। यह कदम शनिवार को उप-समिति द्वारा की गई समीक्षा और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) तथा भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के पूर्वानुमानों के बाद उठाया गया।


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भारत में 3 कफ सिरप पर WHO की चेतावनी, बच्चों की मौत के मामलों के बाद जांच के आदेश

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सोमवार को भारत में बनी तीन कफ सिरप को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। इनमें श्रीसन फार्मास्यूटिकल की कोल्ड्रिफ, रेडनेक्स फार्मास्यूटिकल्स की रेस्पिफ्रेश टीआर और शेप फार्मा की रीलाइफ सिरप की खेप शामिल हैं।

WHO ने कहा कि ये तीनों सिरप स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं और इनका सेवन जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है। संगठन ने दुनियाभर के देशों से अपील की है कि अगर उनके यहां ये सिरप मिल रहे हैं, तो तुरंत WHO को इसकी जानकारी दें।

कोल्ड्रिफ वही सिरप है, जिससे मध्य प्रदेश में सितंबर से अब तक 5 साल से कम उम्र के 25 बच्चों की मौत हो चुकी है। जांच में पाया गया कि इसमें डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा तय सीमा से करीब 500 गुना ज्यादा थी। यह केमिकल किडनी फेलियर का प्रमुख कारण बनता है।

WHO ने 9 अक्टूबर को भारत सरकार से पूछा था कि क्या कोल्ड्रिफ सिरप विदेशों में भी निर्यात किया गया था। इस पर भारत की सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने कहा कि फिलहाल अवैध निर्यात या विदेशी आपूर्ति का कोई सबूत नहीं मिला है।

श्रीसन फार्मा का लाइसेंस रद्द, कंपनी हुई बंद

तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मास्यूटिकल कंपनी को सोमवार को तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने स्थायी रूप से बंद कर दिया और उसका लाइसेंस रद्द कर दिया। कंपनी के मालिक रंगनाथन गोविंदन (75) को 9 अक्टूबर को चेन्नई से गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 20 अक्टूबर तक पुलिस रिमांड पर भेजा गया है।

जांच में 48% जहरीला केमिकल मिला

मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत के बाद जांच में सामने आया कि कोल्ड्रिफ सिरप (बैच नंबर SR-13) में 48.6% w/v डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) मिला हुआ था। यह सिरप “Not of Standard Quality” पाया गया। इसमें एथिलीन ग्लाइकॉल और नॉन-फार्माकॉपिया ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया गया था — जो दोनों ही केमिकल किडनी को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।

छोटे शेड में बन रही थी जहरीली दवा

जांच में खुलासा हुआ कि श्रीसन फार्मा महज 2000 वर्ग फीट के लोहे के शेड में सिरप बना रही थी। कंपनी को 2011 में तमिलनाडु फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (TNFDA) से लाइसेंस मिला था।

सरकारी जांच में पाया गया कि यूनिट ने कई राष्ट्रीय दवा सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया था, बावजूद इसके कंपनी एक दशक से अधिक समय तक बिना किसी रोक-टोक के उत्पादन करती रही।

स्वास्थ्य मंत्रालय की चेतावनी – छोटे बच्चों को कफ सिरप न दें

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 3 अक्टूबर को एक देशव्यापी हेल्थ एडवाइजरी जारी करते हुए अपील की कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह का कफ सिरप न दिया जाए।

मंत्रालय ने कहा कि 5 साल तक के बच्चों में कफ सिरप से साइड इफेक्ट्स का खतरा अधिक होता है, इसलिए बड़े बच्चों को भी ये दवाएं सिर्फ चिकित्सक की सलाह से ही दी जानी चाहिए।

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