नई दिल्ली: श्रीमद्भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहा जाता है। ये हमारे संपूर्ण जीवन और वैदिक ज्ञान का सार है। आप सभी जानते है इस महाग्रंथ के वक्ता स्वयं विष्णु अवतार श्री कृष्ण जी है। इस ग्रंथ के सभी पृष्ठ ज्ञान के सार से भरे हुए है। इस महाग्रंथ में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहते है की मैं तुम्हे इस परम रहस्य को इसीलिए प्रदान कर रहा हु क्योंकि तुम मेरे मित्र और भक्त हो। इससे ये ज्ञात होता है की ये महाग्रंथ विशेष रूप से भगवदभक्त भक्तो के निमित्त है। अध्यात्मवादियो की तीन श्रेणियों है।
1. ज्ञानी2. योगी3. भक्त इस महाग्रंथ में भगवान कृष्ण अर्जुन कहते है की वे उनको इस परंपरा का सबसे पहला पात्र बना रहे है। क्योंकि उस समय प्राचीन परंपरा खंडित हो गई थी। वे चाहते थे की द्रोणशिष्य अर्जुन इस महाग्रंथ का प्रमाणिक विद्वान बने। आप सभी जानते भी है इस महाग्रंथ का उपदेश केवल विशेष रूप से अर्जुन के लिए ही दिया गया था। क्योंकि आप सभी जानते भी है अर्जुन कृष्ण भगवान का भक्त, प्रत्यक्ष शिष्य, तथा घनिष्ठ मित्र था। जिस व्यक्ति में अर्जुन जैसे गुण पाए जाते है वो इस महाग्रंथ को सबसे अच्छी तरह समझ सकता है। मेरे इस वाक्य का साधारण सा अर्थ है इस महाग्रंथ को पूर्ण रूप से समझने के लिए भक्त को भगवान से सच्ची भावना सच्चे मन और सच्चे भाव से समर्पित होना चाहिए। जैसे ही कोई सच्ची भावना के साथ भगवान का भक्त बन जाता है उसका सीधा संबंध भगवान से बन जाता है। अर्थात मुंह में राम बगल में छुरी वाली भावना नहीं होनी चाहिए। आज मैं भगवान और भक्त के मध्य होने वाले कुछ संबंध आपके सामने रख रहा हूं, आशा करता हूँ आपको अच्छे से समझ में आएगा।