
लंका के युद्ध के कुछ वर्षों बाद एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए। श्रीराम ने उनकी अभ्यर्थना की और आसन दिया। राजसभा में श्रीराम अपने भ्राता भरत, शत्रुघ्न और देवी सीता के साथ उपस्थित थे। बात करते-करते लंका युद्ध का प्रसंग आया। भरत ने बताया कि उनके भ्राता श्रीराम ने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।
अगस्त्य मुनि बोले - "हे भरत! रावण और कुंभकर्ण निःसंदेह प्रचंड वीर थे, किन्तु इन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और उन्हें पराजित कर लंका ले आया था। तब स्वयं ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए। और ये भी सत्य है कि इस पूरे संसार में मेघनाद को लक्ष्मण के अतिरिक्त कोई और मार भी नहीं सकता था, यहाँ तक कि स्वयं श्रीराम भी नहीं।" भरत को बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे।
उन्होंने श्रीराम से पूछ कि क्या ये बात सत्य है और जब राम ने इसकी पुष्टि की तो भी भरत के मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था? उन्होंने पूछा "हे महर्षि! अगर आप और भैया ऐसा कह रहे हैं तो ये बात अवश्य ही सत्य होगी और मुझे इस बात की प्रसन्नता भी है कि मेरा भाई विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है किन्तु फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ऐसा क्या रहस्य है कि मेघनाद को लक्षमण के अतिरिक्त कोई और नहीं मार सकता था?"
अगस्त्य मुनि ने कहा - "हे भरत! मेघनाद ही विश्व का एकलौता ऐसा योद्धा था जिसके पास विश्व के समस्त दिव्यास्त्र थे। उसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हा का ब्रम्हास्त्र, नारायण का नारायणास्त्र एवं महादेव का पाशुपतास्त्र भी था और उसे ये वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता था इसी कारण वो अजेय था। उस समय संसार में केवल वही एक योद्धा था जिसने अतिमहारथी योद्धा का स्तर प्राप्त किया था।
ये सत्य है कि उसके सामान योद्धा वास्तव में कोई और नहीं था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा ली और समस्त दिव्यास्त्र प्राप्त किये। भगवान रूद्र ने स्वयं ही उसे रावण से भी महान योद्धा बताया था और उसकी शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात कहा था कि वो एक सम्पूर्ण योद्धा बन चुका है और इस संसार में तो उसे कोई और परास्त नहीं कर सकता। उन्होंने यहाँ तक कहा कि उन्हें संदेह है कि स्वयं वीरभद्र भी मेघनाद को परास्त कर सके। इसके अतिरिक्त उसकी परम पवित्र पत्नी सुलोचना का सतीत्व भी उसकी रक्षा करता था।"
इसपर भरत ने कहा "हे महर्षि! आपके मुख से मेघनाद की शक्ति का ऐसा वर्णन सुनकर विश्वास हो गया कि वो वास्तव में महान योद्धा था किन्तु बात अगर केवल दिव्यास्त्र की है तो श्रीराम के पास भी सारे दिव्यास्त्र थे। उन्होंने भी त्रिदेवों के महास्त्र प्राप्त किये। साथ ही साथ महाबली हनुमान को भी ये वरदान था कि उनपर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होगा और उनके बल और पराक्रम का कहना ही क्या?
लक्ष्मण निःसंदेह महा-प्रचंड योद्धा थे और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे किन्तु उसे पाशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाद को था। फिर भी लक्षमण किस प्रकार मेघनाद का वध करने में सफल हुए। और आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे?"
इसपर अगस्त्य मुनि ने कहा "आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाद के पास थे उतने लक्ष्मण के पास नहीं थे किन्तु इंद्रजीत को ये वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जिसने:
चौदह वर्षों तक ब्रम्हचर्य का पालन किया हो।
चौदह वर्षों तक जो सोया ना हो।
चौदह वर्षों तक जिसने भोजन ना किया हो।
चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख ना देखा हो।
पूरे विश्व में केवल लक्ष्मण ही ऐसे थे जिन्होंने मेघनाद के वरदान की इन शर्तों को पूरा किया था इसी कारण केवल वही मेघनाद का वध कर सकते थे।"
तब श्रीराम बोले "हे गुरुदेव! मेघनाद और लक्ष्मण दोनों के बल और पराक्रम से मैं अवगत हूँ। अगर शक्ति की बात की जाये तो निःसंदेह इन दोनों की कोई तुलना नहीं थी। लक्ष्मण के ब्रम्हचारी होने की बात मैं समझ सकता हूँ किन्तु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उसे देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था और बगल की कुटी में लक्ष्मण…
Edit By Priya Singh