पास आकर भी रह गए बहुत दूर, वो मौके पर जब भारत के हाथ से फिसल गए मेडल

 फ्रांस की राजधानी पेरिस में इसी महीने की 26 तारीख से ओलंपिक खेल शुरू हो रहे हैं। इन खेलों में भारत से शानदार प्रदर्शन की उम्मीद है। उम्मीद है कि भारतीय खिलाड़ी इस बार अपना दम दिखाएंगे और खेलों के महाकुंभ में भारत अपना बेस्ट प्रदर्शन करेगा। भारत ने पिछली बार टोक्यो ओलंपिक में सात पदक जीते थे। इस बार इस संख्या से पार जाने की उम्मीद है। भारत ने ओलंपिक में कई यादगार पल देखे हैं, लेकिन कुछ पल ऐसे भी थे जो यादगार बनने से रह गए। वो पल जब भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक पदक के बेहद करीब आकर भी चूक गए।

जब भी ओलंपिक खेलों की याद की जाती है, उन पलों की भी याद की जाती है जब भारत के हिस्से पदक आने से रह गए थे। ये एक-दो बार नहीं हुआ है, बल्कि कई दफा हुआ है। ये पल काफी भावुक करने वाले रहे हैं। हम आपको उन पलों के बारे में बता रहे हैं जब भारत के हाथ में ओलंपिक मेडल आते-आते रह गया था।

1920

पहलवान रनधीर शिंदे ने 1920 में एंटवर्प ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। वह दमदार तरीके से लड़े थे और ब्रॉन्ज मेडल मैच तक पहुंचे थे लेकिन ग्रेट ब्रिटेन के फिलिप बर्नाड से हार गए थे।

1952

हेलिंस्की ओलंपिक-1952 में भारत को कुश्ती में पहला पदक मिला था। उसे ये पदक दिलाया था केडी जाधव ने। लेकिन इसी ओलंपिक में केशव मंगवे मेडल से चूक गए थे। वह अमेरिका के जोशिया हेंसन से हार गए थे और चौथे स्थान पर रहे थे।

56

भारतीय फुटबॉल की स्थिति अभी भी अच्छी नहीं हैं। टीम का ओलंपिक मेडल जीतना दूर की कौंड़ी लगता है। लेकिन 1956 में मेलबर्न में खेले गए खेलों के महाकुंभ में टीम इंडिया ने दमदार खेल दिखा पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। बुल्गारिया ने भारत को 3-0 से हराया था और भारत चौथे स्थान पर रहते हुए पदक से महरूम रह गया था।

1960

मिल्खा सिंह का नाम भारत में कौन नहीं जानता। साल 1960 में मिल्खा सिंह ने रोम ओलंपिक में हिस्सा लिया था। मिल्खा ने पुरुषों की 400 मीटर स्प्रिंट में कदम रखने की ठानी और दमदार अंदाज में रेस की शुरुआत की। लेकिन पूरी कोशिश के बाद भी मिल्खा चौथे स्थान पर रहे और ब्रॉन्ज मेडल से चूक गए।

1972

भारतीय पहलवान प्रेमनाथ ने रोम ओलंपिक में लगभग पदक जीत लिया था। सातवें राउंड तक उन्होंने नौ पेनल्टी अंक अर्जित किए थे, लेकिन काफी करीब आकर भी मेडल से चूक गए। पहले स्कोर पेनल्टी को ध्यान में रखकर गिना जाता था। अंत में जो तीन पहलवान टॉप-3 में रहते उन्हें मेडल मिलता था। इसी ओलंपिक में सुदेश कुमार भी पदक से चूक गए थे।

1984

मौजूदा समय में भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष और उड़नपरी के नाम से मशहूर पीटी ऊषा महिलाओं की 400 मीटर हर्डल दौड़ में एक सेकेंड के 100वें हिस्से से ब्रॉन्ज मेडल से चूक गईं। इसका मलाल पीटी ऊषा को आज भी होता होगा। इन्हीं खेलों में भारतीय पहलवान राजिंदर सिंह भी ब्रॉन्ज मेडल से चूक गए थे।

2004

साल 2004 में एथेंस में खेले गए ओलंपिक में भारत को दो दिग्गज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस और महेश भूपति करीब आकर पदक नहीं जीत सके थे। इन दोनों की जोड़ी मेंस डबल्स के सेमीफाइनल में रोजर फेडरर और एंडी रोडिक की जोड़ी से हार गई थी. इसी साल महिला वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी महिलाओं के 48 किलोग्राम भारवर्ग चौथे स्थान पर रहीं थी और मेडल का अपना सपना अधूरा रह गया

2012

लंदन ओलंपिक-2012 भारत के लिए बहुत अच्छा रहा था। भारत ने छह पदक जीत थे। लेकिन ये संख्या सात भी हो सकती थी। निशानेबाज जॉयदीप कर्माकर पुरुष 50 मीटर राइफल प्रोन शूटिंग के फाइनल में पहुंच गए थे लेकिन चौथे स्थान पर रहते हुए पदक नहीं जीत सके।

2016

बीजिंग ओलंपिक-2008 में निशानेबाजी में ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाले अभिनव बिंद्रा 2016 रियो ओलंपिक में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में चौथे स्थान पर ही रह गए थे और एक और ओलंपिक पदक से चूक गए थे। इसी ओलंपिक में टेनिस में सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना मिक्स्ड डबल्स में निर्णायक मैच में हार गए थे। जिम्नास्टिक में भारतीय की महिला खिलाड़ी दीपा कर्माकर भी चौथे स्थान पर रहते हुए पदक से चूक गईं थी।

2020

टोक्यो ओंलपिक में भी भारत दो और पदक जीत सकता था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। महिला गोल्फ खिलाड़ी अदिति अशोक सिर्फ एक स्ट्रोक से मेडल जीतने से चूक गईं थीं। वहीं महिला हॉकी टीम काफी लड़ाई के बाद ब्रॉन्ज मेडल मैच में ग्रेट ब्रिटेन से हार गई थी।