बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश लगाना जरुरी

हिंदुस्तान की संस्कृति ऋग्वेद जितनी पुरानी है। ऋग्वेद की रचना ईसा मसीह के जन्म लेने के 2500 वर्ष पूर्व की है। सफल जीवन के चार सूत्र हैं-जिज्ञासा,धैर्य,नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना। नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक+अग्रता)का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना। यही चारो सूत्र आपके ज्ञान को विशेष स्वरूप प्रदान करता है। ज्ञान,शान्ति का प्रतीक है। अज्ञानता,अशांति का प्रतीक है।


विश्व में शान्ति वही कायम कर सकता है,जो ज्ञानी है। अज्ञानी तो अशांति का कारक होता है। बलात्कारी अज्ञानी होते हैं। अज्ञानता ही सारे अपराधों की जननी है। ज्ञान संस्कारों की जननी है। किसी भी देश की संस्कृति व संस्कार,उस देश में शान्ति को स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाती है। भारत जैसे देश को अपनी वैदिक संस्कृति व सभ्यता में लौटना होगा तभी इस देश में शान्ति कायम हो सकती है। सत्य, अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में सत्य,अहिंसा का प्रवाह होता। बलात्कार, भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है।


राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में करीब 32 हजार रेप के मामले दर्ज हुए थे। देश के हर राज्य से ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। इस प्रकार की घटनाएं समाज के बदलते स्वरुप,नेताओं के कोरे वादे और इंसानियत के साथ खिलवाड़ का वीभत्स रूप दर्शाती है। सरकार को हायर एजुकेशन,प्राइमरी एजुकेशन,मिडिल एजुकेशन सिस्टम में नैतिक शिक्षा के विषय का प्रावधान करना चाहिए। भारत सरकार को प्रत्येक जिले के बस स्टैंड,रेलवे स्टेशन,टैक्सी स्टैंड,टोल प्लाजा,हाई वे आदि मुख्य जगहों पर नैतिक मूल्यों से सम्बंधित कोटेशन के बैनर और पोस्टर लगवाने चाहिए। समाज वहशीपन का शिकार हो रहा है। समाज में असहिष्णुता का विकास हो रहा है। समाज में बढ़ती बेरोजगारी,अशिक्षा,नैतिक मूल्यों का पतन आदि बुराइयां ही दरिंदगी और वहशीपन का कारण हैं।


-डॉ शंकर सुवन सिंह-