यही है सही तरीका परवरिश का

नन्हें-मुन्नों की मासूम शरारतें बरबस ही हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं। उनकी एक मुस्कराहट के लिए माता-पिता कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, पर कभी-कभी ये नन्हें-मुन्ने हमारे धैर्य की परीक्षा भी लेने लगते हैं...


बच्चों की शरारतें कभी-कभी मुश्किलें भी पैदा कर देती हैं। यह परिस्थिति तब अधिक बनने लगती है, जब वे स्कूल जाना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे उनमें नए ज्ञान के साथ विभिन्न बातों की समझ विकसित होने लगती है। वे अपनी पसंद व नापसंद जाहिर करने लगते हैं। कई बार माता-पिता छोटे बच्चों की परवरिश में जाने-अनजाने कुछ गलतियां कर बैठते हैं। इससे बच्चों पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। याद रखें कि बच्चे माता-पिता का अक्स होते हैं। वे उन्हीं से सीखते हैं और अपने व्यवहार को ढालते हैं।


नियमित दिनचर्या व अनुशासन:- अक्सर माता-पिता बच्चों को अनुशासन सिखाने व उनकी दिनचर्या नियमित करने के लिए नियम तो बनाते हैं, पर उनका पालन करने को लेकर गंभीरता नहीं दिखाते। यहीं पैदा होती है समस्या। अगर आपने बच्चे के खेलने, खाने और सोने का समय नियत किया है तो यह जरूरी है कि इस संबंध में निरंतरता बनाए रखें। अगर आप बच्चों के लिए बनाए गए इन नियमों का कड़ाई से पालन नहीं करेंगे तो बच्चा कनफ्यूज हो जाएगा। जब आप उसे कुछ करने से मना करेंगी तो वह चिड़चिड़ाहट जाहिर करने लगेगा। बच्चा यह जरूर सोचेगा कि क्या वजह थी कि एक दिन आपने उसे पार्क में आधा घंटा अधिक खेलने की इजाजत दे दी, पर आज उसके जिद करने पर आप मना कर रही हैं। इसलिए बच्चों को अनुशासन का महत्व सिखाने के क्रम में उनके लिए निर्धारित दिनचर्या के नियमों के पालन में निरंतरता बनाए रखना बेहद जरूरी है।


नकारात्मक बातों को महत्व:- हरेक माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा बात व्यवहार में सबसे अच्छा बने। वहीं बच्चे अक्सर कुछ न कुछ गलतियां कर बैठते हैं। बच्चा और गलतियां न करे, इस चक्कर में माता-पिता उन्हें डांटते-फटकारते रहते हैं, पर उसके अच्छे व्यवहार पर शाबासी देना भूल जाते हैं। जब बच्चा कोई सामान फेंकता है या कुछ गलत करता है तो उसके व्यवहार को सुधारना जरूरी है, पर अगर वह कुछ अच्छा करता है तो उसके लिए पुरस्कार भी दें। यह पुरस्कार कुछ भी हो सकता है जैसे उसे बाहों में लेकर प्यार करना या उसकी तारीफ। उससे आप यह कह सकती हैं कि जिस तरह शांत रहकर तुमने मेरी बात सुनी, वह देखकर मुझे अच्छा लगा। आपसे इस प्रकार तारीफ सुनकर बच्चा अच्छे व्यवहार के लिए प्रेरित होगा।


अनुचित मांगों को मानना:- बच्चों को यह पता होता है कि माता-पिता उनसे बेहद प्यार करने हैं। अगर वह रोने का नाटक करेंगे या जिद करेंगे तो माता-पिता उनकी बातों को मान ही लेंगे। अक्सर ऐसा होता भी है। मान लीजिए आप खाना बनाने की तैयारी कर रही हैं या अन्य किसी जरूरी काम में व्यस्त हैं, तभी बच्चा जिद करना और रोना शुरू कर दे कि मुझे पार्क में जाना है, मुझे दोस्त के साथ खेलना है। जाहिर है ऐसे में आप झल्ला उठेंगी। दरअसल बच्चे को यह पता होता है कि आप उसे दुखी नहीं देख सकतीं और इस प्रकार वे न सिर्फ आपका ध्यान अपनी ओर खींच सकते हैं, बल्कि अपनी हर बात मनवा सकते हैं। अगर बच्चा बात मनवाने के लिए इस तरह रोने का नाटक कर रहा है तो बेहतर होगा कि उसकी ओर ध्यान ही न दें। थोड़ी देर में बच्चा खुद ब खुद समझ जाएगा कि उसकी यह ट्रिक काम नहीं करने वाली।


खेल का महत्व:- बच्चों के बेहतर विकास के लिए खेलना आवश्यक है। अक्सर माता-पिता सोचते हैं कि अगर बच्चा ऐसे खेलों में रुचि लेगा, जो उसके बेहतर मानसिक व शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उसके लिए सलेक्ट किए हैं तो ज्यादा अच्छा रहेगा, पर यहींवे गलती कर बैठते हैं। बच्चे को उसकी मर्जी से खेल चुनने दें। अपनी पसंद के खेल में वे स्वयं अपने लिए चुनौतियों का चुनाव करते हैं, जो न बहुत अधिक कठोर होती हैं और न बहुत आसान। इस तरह अपनी पसंद के खेल के साथ उनका विकास भी सुनिश्चित होता है। याद रखें कि बच्चों के लिए खेल का अर्थ है कि उन्हें वह करने का मौका मिले जो वे करना चाहते हैं।


ध्यान कहीं और तो नहीं:- अपने खिलौनों के साथ खेलना बच्चों को भाता है। वे चाहते हैं कि आप भी उनके साथ इस खेल और मस्ती का हिस्सा बनें। वे आपके साथ खेलना चाहते हैं। बच्चे की खुशी के लिए आप उनके साथ खेलने तो बैठ गईं पर आपका पूरा ध्यान तो मोबाइल या लैपटॉप की ओर है। यह रवैया ठीक नहींहै। बच्चे भी यह बात समझते हैं कि आप वास्तव में उनकी ओर ध्यान दे रही हैं या फिर यूं ही ध्यान देने का दिखावा कर रही हैं। क्यों न आप अपने लिए भी यह नियम बना लें कि रोजाना एक निश्चित समय आप बच्चे को देंगी। इस दौरान मोबाइल व लैपटॉप इत्यादि की ओर आपका ध्यान नहीं होगा। आपका पूरा फोकस बच्चे के साथ खेलने पर होगा। इस तरह बच्चे के साथ बिताया रोजाना आधे घंटे का समय भी उसे खुशी देने के लिए पर्याप्त है। वहीं बच्चे के साथ इस प्रकार खेलकूद व मस्ती से आप भी तरोताजा महसूस करेंगी।


झूठ पर प्रतिक्रिया:- अक्सर बच्चे आपकी डांट से बचने के लिए सच नहीं बताते और दूसरी कहानी सुनाने लग जाते हैं। माता-पिता सच जानते हैं और बच्चे के इस व्यवहार से परेशान हो उठते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा झूठ बोलने लगा है, उसकी ये आदत भविष्य में उसे बर्बादी की ओर ले जाएगी। दरअसल यहां बच्चे के व्यवहार को समझने की जरूरत है। बच्चे के इस छोटे झूठ को अनावश्यक तूल देने और उसे लेकर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। यदि बच्चा ऐसा कुछ कहता भी है तो उसके विकास की दृष्टि से उसे सामान्य ही माना जाएगा। उसके झूठ को पकड़कर न बैठ जाएं जैसे कि यदि बच्चा यह कहता है कि दूध उसने नहीं गिराया है तो उसको डांटते हुए सच्चाई उगलवाने का प्रयास करने के बजाय आप यह कह सकती हैं, तुम्हें दूध गिरने को लेकर बुरा लग रहा है, यह बात मैं समझती हूं। धैर्य के साथ धीरे-धीरे उसे प्यार से सही-गलत में फर्क समझाने का प्रयास करें। सच और झूठ का महत्व बताएं। कोई भी मनचाहा बदलाव एकदम से नहीं आ सकता। हो सकता है कि इसमें थोड़ा समय लगे, पर धीरे-धीरे बच्चा आपकी बात समझने लगेगा।