दूसरी लहर के दौरान लूट मचाने वाले अस्पतालों की पहचान कर उनका ऑडिट कराना जरूरी

देश ने अभी कुछ माह पूर्व 15 अगस्त 2021 को 75वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए मनाया था। लाल किले की प्राचीर से हर वर्ष विभिन्न प्रकार की घोषणाओं के बाद भी आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश बहुत सारी ज्वंलत समस्याओं से रोजाना संघर्ष कर रहा है। चिंता की बात यह है कि बहुत सारे देशवासियों के लिए रोजी-रोटी, कपड़ा-मकान, शिक्षा-चिकित्सा हासिल करना आज भी बहुत बड़ी चुनौती बना हुआ है। सभी जानते हैं कि वर्ष 2020 से दुनिया की तरह हमारा देश भी भयावह कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन अच्छी बात यह है कि अब देश की जनता कोरोना की दूसरी प्रचंड लहर के प्रकोप से काफी हद तक उबर गयी, आज धरातल पर हालात धीरे-धीरे सामान्य होने के कगार पर हैं। हालांकि विशेषज्ञ अभी भी लोगों की लापरवाही के चलते भविष्य में कोरोना की तीसरी लहर आने का अंदेशा व्यक्त कर रहे हैं। क्योंकि दूसरी भयावह लहर के लिए जिम्मेदार कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के बाद दुनिया पर कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन का खतरा मंडरा रहा है, कोरोना विशेषज्ञों को ओमिक्रॉन के डेल्टा से तेज फैलने की आशंका है।


चिंता की बात यह है कि कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन भारत में भी पहुंच गया है। देशवासियों को उम्मीद है कि केंद्र व राज्य सरकारें कोरोना की तीसरी संभावित लहर से लड़ने के लिए धरातल पर पूर्ण रूप से तैयार होंगी क्योंकि देश में अप्रैल व मई के माह में आयी कोरोना की दूसरी बेहद प्रचंड लहर ने हमारे देश की कामचलाऊ चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी थी। धरातल पर बने भयावह हालात ने हर वर्ग के जनमानस के दिलोदिमाग को झकझोर कर रख दिया था। आजादी के 75वें वर्ष में अब भविष्य में उस तरह की स्थिति उत्पन्न होने से देश को बचाना है। हालांकि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति समझने के लिए उससे जुड़े कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो चिकित्सा क्षेत्र की स्थिति पहले से ही अच्छी नहीं है। हमारे देश में डॉक्टर, नर्स, प्रशिक्षित सहयोगी स्टाफ, अस्पताल आदि की तय मापदंड के अनुसार बहुत ज्यादा कमी है। "नेशनल हेल्थ प्रोफाइल" के मुताबिक भारत अपने स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का महज 1.02 फीसदी खर्च करता है, जोकि श्रीलंका, भूटान और नेपाल जैसे हमारे ग़रीब पड़ोसी देशों की तुलना में भी कम है।


हालांकि केंद्र की मोदी सरकार भविष्य में चिकित्सा बजट को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी कुछ दिन पहले अपने वाराणसी दौरे के दौरान "पीएम आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन" को लॉन्च किया था। उस समय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने जानकारी दी थी कि इस मिशन के अन्तर्गत देश में हर स्तर पर मजबूत हेल्थ इंफ्रा बनाने की योजना है, जिसके लिए आगामी 5 वर्ष में 64,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें सरकार का मुख्य लक्ष्य ब्लॉक, जिला, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर टेस्टिंग सुविधा के लिए लेबोरेटरी तैयार करना है, इस योजना में अगले 5 वर्षों में एक जनपद में औसतन 90-100 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, भविष्य में चिकित्सा क्षेत्र के लिए यह मोदी सरकार की एक बहुत अच्छी पहल साबित हो सकती है। हालांकि यह तो आने वाला समय ही तय करेगा कि वास्तव में यह प्रयास धरातल पर अमलीजामा लिये नजर आयेंगे या सिर्फ यह चुनावी जुमला ही साबित होंगे। लेकिन फिलहाल हम "ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज स्टडी 2021" के अनुसार गुणवत्ता और उपलब्धता के मामले में देश की स्थिति देखें तो भारत की 180 देशों में 145वीं रैंकिंग है, जो किसी भी देश की जनता को स्वस्थ रखने के दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक स्थिति है। जबकि भारत का संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को "अनुच्छेद 21" के तहत जीने का अधिकार देता है और जीवन जीने के लिए किसी भी व्यक्ति का स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है। देश में "स्वास्थ्य का अधिकार" प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, लेकिन फिर भी आजादी के 75वें वर्ष में भी देश में चिकित्सा व्यवस्था बेहाल है। जिस तरह से लोगों को विभिन्न कारणों से कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इलाज के लिए चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न प्रकार की बेहद जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा था, उसने देश के बहुत सारे छोटे व बड़े पांच सितारा अस्पतालों की अच्छी व बुरी हर तरह की सच्चाई को देशवासियों के सामने लाने का कार्य किया था। 


कोरोना के बेहद भयावह दौर ने एक तरफ तो ईमानदारी से कार्य करने वाले देश के चंद अस्पताल प्रबंधन की पहचान करवाने का कार्य किया था, वहीं दूसरी तरफ देश के उन बहुत सारे अस्पतालों के प्रबंधन के भयावह चेहरे को भी सभी देशवासियों के सामने लाने का कार्य किया था, जिन्होंने आपदाकाल में भी चिकित्सा व्यवस्था को मानव सेवा की जगह स्वयंसेवा मानकर केवल नोट छापने की मशीन मान लिया था।


वैसे भी कोरोना की दूसरी लहर के समय उत्पन्न भयावह स्थिति के चलते आज बहुत सारे लोगों की मांग है कि कोरोना काल में इलाज करने वाले सभी अस्पतालों की विस्तार से जांच करा कर उनके चिकित्सा बिलों की स्क्रूटनी व ऑडिट किया जाये। क्योंकि सरकार के द्वारा उस आपदाकाल में लूट मचाने वाले अस्पतालों के प्रबंधन की पहचान करके इनको सजा देना अभी बाकी है, जिसको अंजाम देने के लिए कोरोना काल का सभी अस्पतालों का विस्तृत ऑडिट काफी है। वैसे भी बड़े पैमाने पर लोगों का मानना है कि महामारी में कुछ लोगों के अत्यधिक धन कमाने के लोभ-लालच ने बहुत सारे अस्पतालों को संगठित अपराध करने का सबसे बड़ा व सुरक्षित अड्डा बना दिया था। अंधाधुंध पैसे कमाने के लालच में बहुत सारे अस्पतालों के प्रबंधन मानवता के दुश्मन बन गये थे। अब इन अपराधियों को पकड़ने के लिए सभी अस्पतालों की जल्द से जल्द जांच बेहद आवश्यक है। कोरोना की भयावह दूसरी लहर में जिस वक्त कोरोना के संक्रमण से संक्रमित लोगों के परिजन निजी व सरकारी अस्पतालों में मरीज को भर्ती करवाने के लिए परेशान होकर इधर-उधर धक्के खा रहे थे, उस वक्त किसी को यह होशोहवास नहीं था कि बहुत सारे अस्पतालों का प्रबंधन इलाज की आड़ में उनके साथ क्या कर रहा है। सभी की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि किसी भी तरह उनके मरीज को अस्पताल भर्ती कर लें और उनके मरीज की हर-हाल में जान बच जाये, जिसका बहुत सारे अस्पतालों ने नाजायज फायदा उठाया। इसलिए भविष्य में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार करने के लिए अब उस समय की जांच होनी बेहद आवश्यक है। उस समय देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाली मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बहुत सारे अस्पतालों में तो मरीज के उपचार के नाम पर उनके परिजनों से लूट की जा रही थी, उपचार के नाम पर जमकर परिजनों से धन उगाही के केंद्र चलाए जा रहे थे, जिसकी अब जांच होनी आवश्यक है। कोरोना मरीजों से वसूली गई ज्यादा रकम वापस करने की मांग वाली एक जनहित याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया है, याचिका स्वीकार करते हुए माननीय कोर्ट ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा बड़े स्तर पर समाज, कोरोना मरीजों और उनके परिजनों से जुड़ा है जिनसे इलाज के समय ज्यादा पैसे लिए गए। मुद्दा महत्वपूर्ण है और इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। देहरादून के रहने वाले अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने गत आठ अक्टूबर को नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।


हालांकि यह भी कटु सत्य है कि महामारी के इस बेहद भयावह काल में जहां एक तरफ तो हमारे देश के अधिकांश क्षेत्रों के सभी कोरोना वारियर्स ने अपनी ड्यूटी को पूर्ण ईमानदारी के साथ सही ढंग से अंजाम देकर के दिन-रात मेहनत करके लोगों की अनमोल जान बचाने के लिए विभिन्न प्रकार से योगदान देने का कार्य किया था, वहीं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अधिकांश लोगों ने तो अपनी जान की परवाह ना करके बेहद कठिन विपरीत परिस्थितियों में भी लगातार मरीजों की जान बचाने के लिए दिन-रात प्रयास करने का कार्य किया था।"


कोरोना के दौर की सच्चाई यह भी रही है कि बेहद भयावह झकझोर देने वाले इस काल में बहुत सारे अस्पतालों के प्रबंधकों ने तो इंसान व इंसानियत की रक्षा करने के लिए मरीजों के लिए अपने अस्पतालों के दरवाजे हर तरह से चौबीसों घंटे खुले रखने का बेहद सराहनीय कार्य किया था, जांच करके सरकार को इन सभी लोगों का सम्मान करते हुए इनाम देना चाहिए। वहीं देश के अलग-अलग क्षेत्रों के कुछ अस्पतालों ने इस मौके को "आपदा में कमाई का बेहतरीन अवसर मानकर" लोगों की जेबों पर विभिन्न हथकंडों से जमकर डाका डाल कर, आपदाकाल में भी इंसानियत को शर्मसार करने वाला कार्य किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बहुत सारे अस्पतालों में मरीजों को भर्ती करने के नाम पर उनके परिजनों से एडवांस जमा करवा कर जमकर उगाही की गयी थी, मरीज के परेशान परिजनों से इलाज के नाम पर मोटी रकम अस्पताल प्रबंधन के द्वारा पहले ही जमा करवा ली गयी थी, जिसको किसी भी परिस्थिति में जायज नहीं ठहराया जा सकता है। उस समय बहुत सारे अस्पतालों ने तो बिना समुचित इलाज, दवाई व ऑक्सीजन के ही मरीजों के परिजनों से इलाज के नाम पर जमकर लूट करते हुए लाखों रुपये का भारी-भरकम बिल वसूलने का कार्य किया था। उनका यह कृत्य इंसान की मजबूरी का फायदा उठाकर इंसानियत को बेहद शर्मसार करने वाला एक दंडनीय जघन्य अपराध है, जिसकी सजा देने के लिए अस्पतालों का कोरोना काल का ऑडिट होना बेहद आवश्यक है।


वैसे भी कोरोना की दूसरी लहर में उत्पन्न अव्यवस्था की सत्यता जानने के लिए व देश की चिकित्सा व्यवस्था में मौजूद खामियों को पहचान कर, भविष्य में उन्हें दूर करके सुधार करने के लिए देश के सभी निजी व सरकारी अस्पतालों का सरकार की निगरानी में निष्पक्ष एजेंसी के द्वारा जल्द से जल्द हर पहलू का ऑडिट होना बेहद जरूरी है। इस ऑडिट में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए प्रत्येक पहलू की बारीकी से जांच करके, रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार करने के लिए ठोस पहल करनी चाहिए।


दूसरी लहर के दौरान कोरोना या अन्य बीमारियों का इलाज करने वाले सभी निजी व सरकारी अस्पतालों की जांच करके यह पता लगाना चाहिए कि आखिर उस वक्त दवाई, इंजेक्शन, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर आदि की देश में भारी कमी क्यों हुई थी। जांच के द्वारा यह पता लगाया जाना चाहिए कि उस वक्त इलाज की आपाधापी में वास्तव में नकली दवाई व इंजेक्शनों का कितनी मात्रा में जाने-अनजाने में मरीजों पर उपयोग हो गया, इन नकली दवाओं के बाजार व लोगों के पास आने का मुख्य स्रोत क्या था। दूसरी लहर के दौरान लाईफ सेविंग ड्रग्स की देश में मारामारी क्यों हुई? दवाओं व इंजेक्शनों की कालाबाजारी करने वाले लोगों के पीछे क्या दवा निर्माता कंपनी, अस्पतालों, संगठित गिरोह या किसी अन्य व्यक्ति की तो कोई भूमिका तो नहीं थी? देशहित व जनहित में इसकी जांच समय रहते आवश्यक है और दोषियों को दंडित करना आवश्यक है। अस्पतालों में डॉक्टरों व अन्य सभी सहयोगी स्टाफ की दूसरी लहर के समय उपलब्धता की क्या स्थिति थी, इस तरह के बहुत सारे बिंदुओं पर जांच जरूरी है। सरकार के द्वारा सभी अस्पतालों का ऑडिट करके और इस ऑडिट के बाद आये परिणाम के आधार पर आपदा के दौर में व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने वाले अस्पतालों को विभिन्न प्रकार से मदद देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वहीं महामारी के दौरान कोरोना के इलाज के नाम पर लूटपाट मचाने वालें अस्पतालों की पहचान करके दोषियों को दंडित करके सभी को संदेश भी देना चाहिए, जिससे कि भविष्य में मानवता को शर्मसार करने वाले इस तरह के कृत्यों पर लगाम लगायी जा सकें। वैसे भी अस्पतालों के ऑडिट की रिपोर्ट के आधार पर सरकार को भविष्य के लिए देश के चिकित्सा क्षेत्र को बेहतर करने के लिए तैयारी करने में सहयोग मिल सकता है, देश की चिकित्सा व्यवस्था में व्याप्त खामियों को दूर करने के लिए एक उचित ठोस आधार मिल सकता है।


ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर धरातल पर काम करके भविष्य में चिकित्सा व्यवस्था को बेहतर किया जा सकता है। इससे सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि देशवासियों को भविष्य में "स्वास्थ्य का अधिकार" वास्तव में जरूरत के समय धरातल पर मिल सकता है। कोरोना काल के ऑडिट के आधार पर कार्य करके आज के समय के बीमार चिकित्सा क्षेत्र के मर्ज का स्थाई निदान करके भविष्य में इस बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र को बीमारी से मुक्त करके स्वस्थ किया जा सकता है। वैसे भी आज समय की जरूरत है कि सरकार को आजादी के 75वें वर्ष में देश की जनता को सस्ता सुलभ व उच्च गुणवत्ता पूर्ण इलाज देने के लंबे समय से लंबित वायदे को पूर्ण करने के लिए जल्द से जल्द धरातल पर ठोस पहल करते हुए, सभी देशवासियों की सेहत ठीक रखने के लिए कार्य करना चाहिए।


-दीपक कुमार त्यागी-

(स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक)