टिकैत की आंसुओं से किसान आंदोलन को मिला था जीवन, पुलिस ने कर ली थी धरना खत्म करने की तैयारी

गाजियाबाद : तीन कृषि कानूनों के विरोध में गाजियाबाद के यूपी गेट पर एक साल से चल रहे किसान आंदोलन की सफलता के तीन अहम मंत्र रहे। कृषि कानून बनने के बाद किसानों का गुबार गुस्से में बदला तो उन्होंने गाजीपुर बॉर्डर पर आकर दिल्ली को घेर लिया। 26 जनवरी के बाद बिखरते किसान आंदोलन को संजीवनी भी गाजीपुर बॉर्डर से ही मिली।


लाल किले पर धार्मिक ध्वज फहराने के बाद 28 जनवरी को पुलिस ने धरना खत्म कराने की तैयारी कर ली थी, लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे राकेश टिकैत ने पंचायत की और पुलिस की ओर से गिरफ्तारी का प्रयास किए जाने पर उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। इन आंसुओं ने किसानों के गुस्से को और भड़का दिया और तंबू छोड़कर जा चुके किसान रातोंरात फिर से गाजीपुर बॉर्डर पर आ डटे। उसी का परिणाम है कि आंदोलन न केवल फिर से जिंदा हो गया, बल्कि सरकार बैकफुट पर आ गई। किसान आंदोलन की सफलता में गाजियाबाद-दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर की भूमिका अहम रही।


सिंघु बॉर्डर पर 26 नवंबर 2020 को किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। भाकियू के अध्यक्ष नरेश टिकैत, राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत और युवा अध्यक्ष गौरव टिकैत के नेतृत्व में एक दिन बाद 27 नवंबर को किसानों का काफिला मोदीनगर पहुंचा था। 28 नवंबर की सुबह किसानों ने यूपी गेट (गाजीपुर बॉर्डर) पर डेरा डाल दिया था। 550 से अधिक ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ दिल्ली की तरफ कूच कर रहे पश्चिमी उप्र के किसानों ने दिल्ली जाने का एलान किया तो अधिकारियों के चिंताएं बढ़ गई थीं।


दिल्ली सीमा में पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए कूड़े से भरे डंपर तक खड़े कर दिए थे। बाद में किसानों ने यूपी गेट में ही डेरा जमा लिया। एक दिसंबर को उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर से किसान भी दिल्ली आ गए। तीन दिसंबर को राष्ट्रीय अध्यक्ष चौ. नरेश टिकैत ने पहली महापंचायत कर हुंकार भरी तभी उत्तराखंड के किसानों ने दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर लंगर लगाकर मंच बना लिया। इस मंच का चेहरा बने थे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता सरदार वीएम सिंह। 17 दिसंबर को किसानों ने दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर पहली बार खाप पंचायत की। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 28 से ज्यादा खापों के चौधरियों ने शिरकत कर सरकार को एक्सप्रेसवे बंद करने की चेतावनी दी।


26 जनवरी पर किसानों ने 500 से अधिक ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में मार्च किया। जिसका नेतृत्व राकेश टिकैत कर रहे थे। मगर लालकिले की प्राचीर पर एक घटना ने लोगों को किसानों के खिलाफ कर दिया। किसानों का मनोबल टूट गया और आंदोलन में तंबू व लंबर खाली होने लगे थे। आंदोलन के इतिहास में सरदार वीएम सिंह भी कई आरोप लगाकर घर लौट गए। इधर, पुलिस प्रशासन ने रास्ता खाली कराने के लिए डेढ़ हजार सुरक्षा बलों के साथ यूपी गेट पर मार्च कर माहौल गरमा दिया। 27 जनवरी का दिन किसानों के लिए काली रात जैसा गुजरा।


28 जनवरी का दिन किसान आंदोलन और अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत के लिए काफी महत्वपूर्ण था। शाम करीब 7:30 बजे पुलिस फोर्स कार्रवाई के लिए तैयार थी, लेकिन राकेश टिकैत के आंसू छलक गए। यह पल किसान आंदोलन के जीवनदान का टर्निंग प्वाइंट बन गया था। इस खबर से देश का माहौल बदल गया और यूपी गेट पर फिर जनसैलाब उमड़ने लगा। 26 नवंबर को किसान आंदोलन को एक साल पूरे हो गए। आंदोलन में 11-11 किसानों ने ढाई माह तक भूख हड़ताल की। नेता और अभिनेताओं का भी किसानों को समर्थन मिला। पंजाब, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल के नेता भी यूपी गेट पहुंचे थे। आंदोलन का यही समय था कि किसानों ने नया साल, बैशाखी, होली, गुरु पर्व, रक्षाबंधन, भाई-दूज और दीवाली भी आंदोलन स्थल पर मनाई।