गहलोत ने फिर दिखाई जादूगरी, आलाकमान को खुश कर पायलट को कर दिया किनारे

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी जादूगरी से कांग्रेस आलाकमान को खुश कर दिया है। राजस्थान की राजनीति में उनके विरोधी माने जाने वाले सचिन पायलट व उनके समर्थकों को गहलोत किनारे लगाने में सफल रहे हैं। राजनीति में आने से पहले अशोक गहलोत जादूगरी के पेशे से जुड़े हुए थे। उनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत अपने जमाने के जाने-माने जादूगर थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी जादू की कला विरासत में मिली थी। हालांकि अशोक गहलोत जादूगरी के क्षेत्र में तो नहीं गए। मगर समय-समय पर अपनी जादूगरी दिखाकर राजनीति के क्षेत्र में वह लगातार ऊंची सीढ़ियां चढ़ते चले गए।


तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर काम कर रहे अशोक गहलोत छात्र जीवन से ही कांग्रेस से जुड़ गए थे। उस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हरिदेव जोशी और परसराम मदेरणा के सानिध्य में उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाई। 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत कर इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उप मंत्री बने। गहलोत राजीव गांधी व नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में भी राज्य मंत्री रहे। तीन बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस सेवा दल के अध्यक्ष रह चुके अशोक गहलोत जैसे-जैसे राजनीति की ऊंची सीढ़ियां चढ़ते गए वैसे-वैसे एक-एक कर अपने विरोधी नेताओं का सफाया करते गये।


1998 में वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा को मात देकर पहली बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत ने उसी कार्यकाल में परसराम मदेरणा, शिवचरण माथुर, पंडित नवल किशोर शर्मा, हीरालाल देवपुरा, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, जगन्नाथ पहाड़िया, कमला, बनवारी लाल बैरवा, रामनारायण चौधरी जैसे बड़े नेताओं को एक-एक कर किनारे लगा दिया। उसके बाद गहलोत राजस्थान कांग्रेस को अपने इर्द-गिर्द घुमाने लगे। 2008 के विधानसभा चुनाव में भी राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था। इसके उपरांत भी अशोक गहलोत ने बसपा के विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवा कर अपनी सरकार बना ली थी।


2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के साथ ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। हर किसी का मानना था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे। क्योंकि 2013 का विधानसभा चुनाव अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते उनके नेतृत्व में लड़ा गया था। जिनमें कांग्रेस को महज 21 सीटें ही मिल पाई थीं। राजस्थान में कांग्रेस बहुत कमजोर स्थिति में थी। कार्यकर्ता हताश, निराश थे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह से गिरा हुआ था। उस समय कांग्रेस आलाकमान ने युवा नेता सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना कर कांग्रेस को फिर से एक बार फिर नए सिरे से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। सचिन पायलट ने पूरी सक्रियता से प्रदेश में दौरे कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया था। मगर मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तब अशोक गहलोत एक बार फिर अपनी जादूगरी दिखाते हुए बाजी पलट कर खुद मुख्यमंत्री बन गए। उस समय सचिन पायलट को मात्र उप मुख्यमंत्री बनकर ही संतोष करना पड़ा था।


2018 में गहलोत के मुख्यमंत्री बनने की जरा भी संभावना नहीं थी। मगर अशोक गहलोत दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान को अपने विश्वास में लेकर मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हो गए। उस समय कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायकों को आश्वस्त किया था कि आधे कार्यकाल के बाद पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। मगर आधा कार्यकाल बीतने से पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के सामने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी कि उनको गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करनी पड़ी। अशोक गहलोत इसी मौके की तलाश में थे। उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से सचिन पायलट व उनके समर्थक सभी मंत्रियों को पद से बर्खास्त करवा दिया।


यहां तक कि सचिन पायलट को भी उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त करवा दिया था। एक समय तो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी गई थी कि पायलट व उनके समर्थक विधायकों का कांग्रेस से निष्कासन होना तय लग रहा था। मगर ऐन वक्त पर पायलट ने बदली हुई परिस्थितियों को देखकर कांग्रेस आलाकमान के सामने सरेंडर कर दिया था। सचिन पायलट इन दिनों फिर से कांग्रेसी आलाकमान के नजदीक होकर मुख्यमंत्री बनने का दांव चल रहे थे। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व महासचिव प्रियंका गांधी भी पायलट के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे।


कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर पायलट समर्थक विधायकों को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल करने को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। हालांकि गहलोत ने सवा साल के टालमटोल के बाद पायलट समर्थक चार विधायकों को मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किया। यहां भी गहलोत के सख्त रुख के कारण भारी आरोपों के बावजूद किसी भी मंत्री को हटाया नहीं गया। कांग्रेस आलाकमान के समक्ष गहलोत किसी भी मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाने पर सहमत नहीं हुए थे। जिन मंत्रियों को आरोपों के चलते हटाने के कयास लगाए जा रहे थे। मंत्रिमंडल विस्तार में उनमें से कइयों को तो पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया।


पायलट के लगातार बढ़ते दबाव को कम करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस की एक बड़ी सफल रैली करवा कर अपनी ताकत का इजहार कर दिया है। कांग्रेस की रैली में लाखों की भीड़ जुटाकर मुख्यमंत्री गहलोत ने आलाकमान को दिखा दिया कि राजस्थान में आज भी वही सबसे बड़े लोकप्रिय नेता हैं, जो अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिला सकते हैं। जयपुर की रैली में कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी, केसी वेणुगोपाल, कमलनाथ, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित सभी बड़े नेता शामिल हुए थे। हालांकि रैली को सोनिया गांधी ने तो संबोधित नहीं किया था। मगर राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। रैली की सफलता से सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी तीनों ही अभिभूत नजर आ रहे थे। रैली की सफलता के बाद कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अगले दो साल तक मुख्यमंत्री के रूप में फ्री हैंड देने के मूड में लग रहा है। कांग्रेसी हलकों में चर्चा है कि रैली की सफलता से अशोक गहलोत की पांचों अंगुलियां घी में हो गई हैं। एक तरफ जहां कांग्रेस आलाकमान उनसे खुश नजर आ रहा है। वहीं अगले दो साल तक वह अपने तरीके से मुख्यमंत्री के रूप में काम करेंगे। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। इससे गहलोत के विरोधी नेताओं के भी धीरे-धीरे सुर बदलने लगे हैं। अब वह गहलोत के समक्ष शरणागत होने लगे हैं। हालांकि चुनाव के मामले में मुख्यमंत्री गहलोत का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत 2003 के विधानसभा चुनाव में मात्र 56 सीटों पर व 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र 21 सीटों पर ही कांग्रेस को जिता पाए थे। मगर मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस आलाकमान का पलड़ा गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाये रखने के पक्ष में नजर आ रहा है। जो गहलोत के लिए बड़ी राहत की बात है।


-रमेश सर्राफ धमोरा-

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)