अदालत के कर्मचारियों का रिश्वत मांगना ‘अस्वीकार्य’ : उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालतों में काम करते हुए रिश्वत के रूप में पैसे की मांग करना ‘‘अस्वीकार्य’’ है। न्यायालय ने कहा कि न केवल न्यायाधीशों पर बल्कि वहां कार्यरत लोगों पर भी बहुत उच्च मानक लागू होते हैं।

 

उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसे व्यक्ति को दी गई सजा को संशोधित करते हुए यह टिप्पणी की जो बिहार में एक जिला अदालत में तैनात था और एक मामले में आरोपी को बरी करने के लिए 50,000 रुपये की मांग करने के आरोप में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

 

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ को अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने बताया कि पिछले 24 वर्षों से उस व्यक्ति ने बेदाग सेवा की और उसके खिलाफ यह पहला आरोप था।

 

पीठ ने कहा, ‘‘आप (अपीलकर्ता) अदालत में काम कर रहे थे और पैसे की मांग कर रहे थे...।’’ उसने कहा कि अपीलकर्ता ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था।

 

उच्चतम न्यायालय पटना उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के जनवरी 2020 के उस आदेश के खिलाफ उस व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही था, जिसमें एकल न्यायाधीश पीठ के फैसले के खिलाफ उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

 

एकल न्यायाधीश ने जनवरी 2018 में उस व्यक्ति को दी गई सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जो पहले औरंगाबाद में एक अदालत के एक पीठासीन अधिकारी के कार्यालय में तैनात था।

 

उच्चतम न्यायालय के समक्ष दलीलों के दौरान, अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि उस व्यक्ति को 2014 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और उसे दी गई सजा बेहद सख्त थी।

 

पीठ ने कहा, ‘‘सख्त क्यों कहते हैं? यह जांच के बाद दी गई है ना?”

 

वकील ने कहा कि अपीलकर्ता को जांच अधिकारी ने पहली जांच में बरी कर दिया था। उन्होंने कहा कि बाद में, एक नई विभागीय कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया था।

 

पीठ ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। यही निष्कर्ष है।’’ उसने कहा, ‘‘यदि आप अपना अपराध स्वीकार करते हैं, तो और क्या किया जा सकता है, हमें बताएं।’’

 

जब अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यदि संभव हो तो सेवा बहाल की जाए, तो पीठ ने कहा कि बहाली का कोई सवाल ही नहीं है।

 

पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘अदालत में काम करना और पैसे की मांग करना अस्वीकार्य है।’’ पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए अपना अपराध स्वीकार करने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।