मैं कर्नाटक की हिजाब गर्ल हूं

पिछले साल कर्नाटक की हिजाब गर्ल खूब चर्चा में रही। दुनियाभर में सुर्खियां बटोरीं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट में जिरह हुई। सोशल मीडिया पर मीम्स बने। कई लोगों ने तारीफ की, विदेश में पढ़ाई के ऑफर मिले, तो कुछ लोगों ने विरोध भी किया।

मैं वहीं हिजाब गर्ल मुस्कान खान हूं। जिसने अपने कॉलेज में कुछ हिंदू कट्टरवादी लड़कों के जय श्री राम का नारा लगाने पर अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए थे। उसके बाद दुनियाभर में मेरी वाहवाही तो हुई, लेकिन जिस दौर से मैं और मेरा परिवार गुजरा, वो कभी भूल नहीं सकती।

मैं कर्नाटक के मंडेया की रहने वाली हूं। फिलहाल बीकॉम सेकेंड ईयर में हूं। मेरे तीन भाई-बहन हैं। अब्बू का अपना बिजनेस है। मां घर पर रहती हैं। अब्बू ने हमेशा हम भाई-बहनों को पढ़ाने पर जोर दिया। अब्बू का कहना था कि पढ़-लिखकर लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं, तो फिर उन्हें किसी के आसरे नहीं रहना पड़ेगा।

10वीं के बाद मेरे साथ की ज्यादातर लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी। उनकी शादी कर दी गई, लेकिन मैंने कॉलेज में दाखिला लिया, क्योंकि हमारे लिए पढ़ाई और परिवार ही सब कुछ था। राजनीति और किसी तरह की दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं था।

उस दिन कॉलेज में जो हुआ, उस पर हर किसी ने मुझ पर कमेंट किए। रिश्तेदार अब्बू से कह रहे थे कि इसे कॉलेज क्यों भेजा, हंगामा हो गया न, इन सब चीजों की क्या जरूरत थी…? पर अब्बू ने मेरा साथ दिया। हिम्मत बनकर वे मेरे साथ खड़े रहे। कोई और होता तो शायद पढ़ाई छुड़वा देता, कॉलेज भेजना बंद करा देता, लेकिन अब्बू ने कहा कि तुमने जो किया ठीक किया।

दरअसल, सारा विवाद शुरू होता है हिजाब से। इस्लाम इल्म की इजाजत देता है। औरत को आजादी देता है। मुझे लगता है कि हिजाब डालना या नहीं डालना उसकी निजी चॉइस है। कोई किसी पर थोप नहीं सकता है।

हम कभी भी स्कूल या कॉलेज बुर्का पहन कर नहीं गए। घर से बुर्का पहनकर जाते थे और कॉलेज में हमें ड्रेस बदलने के लिए एक कमरा दिया गया था। वहां बुर्का निकाल कर हम सिर पर स्कार्फ बांध लेते थे। जो लड़कियां स्कार्फ नहीं बांधती थीं, वे कंधे पर दुपट्टा लेती थीं। कभी उस अनुशासन को नहीं तोड़ा।

बीते साल की बात है। बड़े भाई का रोड एक्सीडेंट हो गया था। उसे सिर में गहरी चोट आई थी। वह सीरियस था। कुछ कहा नहीं जा सकता था। हम सब डिप्रेशन में थे। दिन-रात रोते और दुआ करते बीतता था। घर में मातम जैसा माहौल था। इसी वजह से कई दिनों से मैं स्कूल भी नहीं जा पा रही थी।

एक दिन मेरी क्लासमेट का फोन आया कि इकोनॉमिक्स का असाइनमेंट जमा करने की कल आखिरी तारीख है। मेरा ध्यान तो भाई में ही था, कोई तैयारी की नहीं थी। मैंने फौरन अपनी स्कूटी निकाली और कॉलेज पहुंच गई।

मुझे पता नहीं था कि कॉलेज में क्या चल रहा है। मैंने गेट पर स्कूटी खड़ी की। उस वक्त कुछ लड़के मुझे घूर रहे थे और जय श्री राम के नारे लगा रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं अंदर गई तो वे कहने लगे कि बुर्का निकालो, बुर्का निकालो, निकालो इसे।

जबकि मैंने चूड़ीदार सूट के साथ हिजाब पहना था। वहां सिर्फ मैं और नारा लगा रहे लड़के ही मौजूद थे। बाकी कोई और नहीं था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। फिर वे लोग एकदम मेरे सामने आ गए। नारेबाजी करने लगे। इस पर मैंने भी चिल्ला कर बोल दिया अल्लाह हू अकबर..अल्लाह हू अकबर...अल्लाह हू अकबर।

इससे वे लोग और गुस्से में आ गए, लेकिन मैं डरी नहीं। सच बताऊं, तो मुझे नहीं पता कि उस वक्त मुझे कहां से हिम्मत आई थी।

मैंने यह सब पहली बार देखा था। ऐसी भीड़ से पहली बार सामना हुआ था। मुझे अंदर से इतना गुस्सा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकती। मेरा दिल जार-जार रो रहा था कि मेरा भाई बिस्तर पर है, उसकी जिंदगी खतरे में है और ये लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं। मुझे परेशान कर रहे हैं। इसी बीच एक टीचर आए और मुझे कॉलेज के अंदर ले गए।

मैं कॉलेज में ही थी। इसी बीच मेरा वीडियो वायरल हो गया। एक सहेली ने बताया कि मुस्कान तेरा वीडियो यूट्यूब पर आ रहा है, मैंने ध्यान नहीं दिया। इतने में पता लगा कि कॉलेज में धारा 144 लग गई है। एक दोस्त ने मैसेज किया कि मुस्कान तुम टीवी पर आ रही हो, मैंने तब भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मुझे प्रिंसिपल ने बुलाया और पूछताछ की। मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया। थोड़ी देर बाद पुलिस भी आ गई। मुझे देखकर पूछने लगे कि तुम्हीं हो न वो? फिर मैंने अब्बू को फोन लगाया। उन्हें बताया कि मेरे साथ ऐसा-ऐसा हुआ है। अब्बू ने कहा कि कोई बात नहीं, तुम घर आ जाओ।

मैं घर पहुंची तो मेरा ही इंतजार हो रहा था। अब्बू के दोस्त भी घर पर ही थे। वे कह रहे थे कि देखो तुम्हारी बेटी ने क्या किया है। कैसे मीडिया में आ रही है। मैंने अब्बू को सारी बात बताई। मां लगातार रो रही थीं। वे कह रही थीं कि तुमने ऐसा क्यों किया, तुम्हें कुछ हो जाता तो…।

मैंने टीवी ऑन किया। मेरा ही वीडियो टीवी पर चल रहा था। इसी बीच मीडिया वाले भी घर आ गए। मीडिया वालों की कतार लग गई। सब आवाज दे रहे थे कि मुस्कान को बाहर भेजो, मुस्कान को बाहर भेजो। मुस्कान बताओ आखिर हुआ क्या था, घटना की जानकारी दो।

इस पर पहले तो अब्बू ने मुझे मना कर दिया कि कुछ कहना नहीं है, कहीं जाना नहीं है। इधर मीडिया की भीड़ बढ़ती जा रही थी। वे वापस जाने को तैयार नहीं थे। फिर अब्बू के कहने पर मैं बाहर आई और मीडिया को सारी बात बताई।

इसके बाद तो हर दिन मीडिया वाले घर आने लगे। विदेशी मीडिया वाले भी बहुत आए। हम लोग पागल हो गए थे, परेशान हो गए थे रोज-रोज एक ही सवाल का जवाब देते-देते।

खैर उस घटना के बाद अल्लाह ने दुनिया में इतनी इज्जत दी, इतनी शोहरत दी कि मेरे पास शब्द नहीं हैं। हर जगह से मुझे दुआएं और तारीफें मिल रही थीं। कॉलेज में जो मेरी नॉन मुस्लिम दोस्त थीं, वे भी फोन करके बोल रही थीं कि मुस्कान तुमने अच्छा किया है।

हालांकि ये एक पक्ष था, जो दुनिया को दिख रहा था। एक दूसरा पक्ष भी था जिससे सिर्फ मैं और मेरा परिवार ही गुजर रहा था। मेरे खिलाफ समाज का एक तबका खड़ा हो गया था। हमारे अपने ही हमें कोस रहे थे। पापा को ताने मार रहे थे। कई कट्टरवादी लोग धमकी भी दे रहे थे।

घर में सभी लोग डर गए थे। कई महीने हम सोए नहीं, ठीक से खाना नहीं खाया, अम्मी हमेशा कहती थी कि तूने ऐसा क्यों किया। कोई तुम्हारे साथ कुछ गलत कर देगा तो क्या होगा, हम कहां जाएंगे..वगैरह, वगैरह। खैर इस घटना के बाद मैंने रेगुलर कॉलेज जाना छोड़ दिया था। पढ़ाई डिस्टर्ब हो गई। अब मैं ओपन स्टडी कर रही हूं।

मुझे कई विदेशी यूनिवर्सिटीज से पढ़ाई के लिए ऑफर आए, लेकिन मैं परिवार को छोड़कर नहीं जा सकती। मुझे भारत पसंद है, अपने देश से प्यार है और मुझे यहीं रहना है। यहां जिन कॉलेजों से मुझे पढ़ने के लिए ऑफर आए, वहां मेरे सब्जेक्ट नहीं थे। इसलिए मैंने घर पर ही रहकर ओपन स्टडी करना शुरू किया।

अब्बू मुझे शेरनी बुलाते थे और आज भी कहते हैं कि तुम सच में शेरनी हो। इतनी हिम्मत उन लड़कियों में ही होती है, जिनके पापा उनका साथ देते हैं। मैं अगर पढ़ी-लिखी नहीं होती तो रोकर या डरकर भाग जाती, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरे अधिकार क्या हैं।

मुझे लगता है कि मैं उस कॉलेज की स्टूडेंट थी और लड़के भी उसी कॉलेज के स्टूडेंट थे। अगर उन्हें जय श्री राम कहने का हक था तो मुझे भी अल्लाह हू अकबर कहने का हक था। जैसा उनका हक, वैसा मेरा हक।

आज सब ठीक हो चुका है। मैंने उन लड़कों को भी माफ कर दिया है। उनसे कोई रंजिश नहीं है। एक और बात, यहां की पुलिस और सरकार ने हमारा साथ दिया। आज भी हम कहीं जाते हैं तो उन्हें बताकर जाते हैं। वे लोग हमारी हिफाजत करते हैं।