G20 से भारत का कद बढ़ा

देश की राजधानी में दो दिन चली G20 समिट 10 सितंबर को खत्म हो गई। इस समिट को कुछ मायनों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है। इंडोनेशिया के बाली में पिछले साल हुई समिट की तरह नई दिल्ली समिट पर भी रूस-यूक्रेन जंग का साया नजर आया। इसके बावजूद जॉइंट डिक्लरेशन जारी हुआ।

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बातचीत की। एक डील का जिक्र सबसे ज्यादा हो रहा है। ये है भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट की इकोनॉमिक कॉरिडोर डील।

इसके अलावा करीब 3 साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस की मोदी की मौजूदगी में गर्मजोशी वाली मुलाकात भी बड़ी कामयाबी मानी जा सकती है। इसके अच्छे नतीजे जल्द देखने मिलेंगे।

 समिट की चार खास बातें

  • जॉइंट डिक्लरेशन : डिप्लोमैटिक फ्रंट पर ये भारत की बड़ी जीत है। हालांकि, इसके लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। सभी सदस्य देशों की सहमति के साथ नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लरेशन जारी हुआ। यूक्रेन मुद्दे पर सहमति बनाने में भारतीय दल ने काफी मेहनत की थी। शुरुआत में इसमें काफी दिक्कतें थीं, लेकिन मोदी ने वर्ल्ड लीडर्स के साथ पर्सनल कैमिस्ट्री का इस्तेमाल किया और ये बड़ी दिक्कत दूर हो गई। भारत की दलील यह थी कि यूक्रेन मसले का असर दूसरे अहम मुद्दों पर नहीं पड़ना चाहिए।
  • भारतयूरोप और मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर : दुनिया के कई गरीब देशों को कर्ज जाल में फंसाने वाले चीन ने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के जरिए यूरोप तक ट्रेड रूट बनाने का ख्वाब देखा है। इस मेगा प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा पाकिस्तान में है। इसे चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी CPEC कहा जाता है। अब इसके जवाब में भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर डील हुई है। इसमें भारत, यूनाइटेड अरब ऑफ एमीरेट्स (UAE), सऊदी अरब, यूरोपीय यूनियन (EU), इटली, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका शामिल हैं। जल्द ही कुछ और देश हिस्सा बनेंगे।
  • बाइलेट्रल्स : अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत मोदी ने 10 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बातचीत की। ये G20 समिट जैसे प्लेटफॉर्म पर ही मुमकिन हो सकता है। ब्रिटेन से फ्री ट्रेड डील और अमेरिका से कई समझौतों पर बातचीत जल्द ही नतीजे पर पहुंचेगी। अफ्रीकी यूनियन के 55 देश इसके लिए भारत को श्रेय दे रहे हैं। चीन, अफ्रीकी महाद्वीप में तेजी से पैर पसार रहा है। भारत अब उससे दो कदम आगे निकल जाएगा और फ्यूचर में ट्रेड और खासतौर पर मिनरल माइनिंग में भारतीय कंपनियों को इसका फायदा मिलेगा।
  • अमेरिका और सऊदी अरब की दूरियां कम हुईं : बाइडेन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) की करीब तीन साल से चली तल्खियां कम होती नजर आईं। मोदी की मौजूदगी में दोनों नेताओं ने पहली बार हाथ मिलाए। वर्ल्ड स्पेक्ट्रम में देखा जाए तो चीन ने हाल ही में सऊदी-ईरान डिप्लोमैटिक रिलेशन बहाल कराए थे। इसके बाद वो मिडिल ईस्ट में बड़ा रोल प्ले करने की कोशिश कर रहा था। बाइडेन और प्रिंस सलमान की वजह से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच आ रही दूरियों का चीन फायदा उठाना चाह रहा था। अब यह काम बहुत मुश्किल हो जाएगा।

 इन दो मुद्दों पर ज्यादा बात नहीं

  • रूस-यूक्रेन जंग : वेस्टर्न वर्ल्ड और वहां के मीडिया की भारत से शिकायत रही है कि वो रूस के खिलाफ न तो कोई बयान देता है और न UN में उसके खिलाफ वोटिंग करता है। इसके अलावा भारत ने रूस से काफी क्रूड ऑयल खरीदा और करोड़ों डॉलर बचाए। रूस को पेमेंट रुपए में किया गया। इंडियन डिप्लोमैट्स ने नई दिल्ली G20 समिट में इस मुद्दे को पब्लिकली नहीं उठने दिया और इसी वजह से किसी तरह के मतभेद भी नहीं उभरे। हालांकि, ये ग्रेन डील से रूस के अलग होने के बाद फूड क्राइसिस बढ़ने का खतरा है और तब भारत को कोई स्टैंड जरूर लेना पड़ेगा।
  • चीन और विस्तारवाद : इंटरनेशनल फोरम्स पर भारत ने हमेशा विस्तारवाद का विरोध करते हुए इसके खिलाफ आ‌वाज उठाने की अपील की है। हालांकि, चीन का नाम लेने से गुरेज भी किया गया। इस समिट में भारत ने इस मुद्दे को तरजीह नहीं दी। 9 सितंबर को जब फॉरेन मिनिस्टर जयशंकर से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गैरमौजूदगी पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा- हम मानते हैं कि नई दिल्ली G20 समिट में चीन ने सपोर्टिंव रोल प्ले किया। हालांकि, वो कन्सट्रक्टिव शब्द से परहेज करते दिखे।

 दो बातें जो याद रखी जाएंगी
ग्लोबल साउथ : ग्लोबल साउथ काफी पुराना शब्द है, हालांकि हालिया वक्त में इसका इस्तेमाल ज्यादा होने लगा है। बहुत आसानी से समझें तो ग्लोबल साउथ उन देशों को कहा जाता है जो गरीब या कम विकसित हैं। भारत ने इन देशों के लिए आवाज बुलंद की है। इसकी मिसाल आपको अफ्रीकन यूनियन के G20 में शामिल होने से भी मिलती है। फॉरेन मिनिस्टर जयशंकर ने 9 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था- प्रधानमंत्री मोदी ने इंडोनेशिया में अफ्रीकी यूनियन के प्रेसिडेंट (तब सेनेगल के राष्ट्रपति) से G20 मेंबरशिप दिलाने का वादा किया था। ये अब पूरा हो चुका है।

टेररिज्म और मनी लॉड्रिंग : इस पर खुले मंच से बात हुई। 9 सितंबर को फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने कहा- FATF और बाकी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन्स टेररिज्म और मनी लॉन्ड्रिंग पर टास्क फोर्स बनाएंगे। इसके अलावा मेंबर कंट्री एक ब्लू प्रिंट तैयार करेंगे, ताकि टेररिज्म के सबसे बड़े सोर्स मनी लॉड्रिंग और ड्रग स्मगलिंग को काबू किया जा सके। खास बात ये है कि इस मामले में किसी आतंकी संगठन या किसी देश (मसलन पाकिस्तान) का नाम नहीं लिया गया। दरअसल, पाकिस्तान में मौजूद कई खूंखार आतंकियों पर एक्शन को चीन UN में वीटो के जरिए रोक लेता है।

 भारत का इन दो बातों पर जोर

  • G20 को विवादों का अखाड़ा  बनाएं : जब यूक्रेन मुद्दे पर जॉइंट डिक्लरेशन अटकता या फंसता दिखाई दिया तो भारत के शेरपा अमिताभ कांत और उनकी टीम ने सभी मेंबर कंट्री को समझाया कि G20 इंटरनेशनल डिस्प्यूट्स या कॉन्फ्लिक्ट्स को सॉल्व करने का प्लेटफॉर्म नहीं है। इससे नई दिल्ली समिट भी सक्सेसफुल हो गई और भविष्य के लिए दूसरे मेजबान देशों की राह भी शायद आसान हो गई है।
  • कोई पीछे  रहे : मोदी ने वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर का कॉन्सेप्ट दिया। इसके साथ ही ग्लोबल साउथ की मुश्किलों पर फोकस करने पर जोर दिया। नतीजा ये हुआ कि अफ्रीकन यूनियन को G20 की मेंबरशिप मिल गई। मोदी ने साफ कहा- विकास और बुनियादी अधिकारों की दौड़ में कोई देश पीछे न रह जाए, हमें यही तय करना है। यह अब अंतरराष्ट्रीय विचार होना चाहिए।