बीच में खड़ी चीन की दीवार! मालदीव और भारत को अब भी क्यों है एक दूसरे की जरूरत

मालदीव ने भारत के खिलाफ बयानबाजी की तो भारत के लोग हुक्का-पानी लेकर मालदीव पर चढ़ बैठे. लोगों ने मालदीव जाने की बुकिंग कैंसल की और उसे खरी-खोटी सुनाया. लोगों ने अपने लक्षद्वीप को मालदीव से बेहतर बताया. फिर मालदीव को भी बैकफुट पर आना पड़ा. वहां मंत्रियों का इस्तीफा लेना पड़ा.

दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत

राष्ट्रपति मुइज्जू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक की नौबत आ गई, लेकिन हकीकत तो ये है कि जिस तरह से भारत के बिना मालदीव का काम नहीं चल सकता है, ठीक उसी तरह से मालदीव की मुखालफत कर भारत को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. आखिर मालदीव में ऐसा क्या है कि दोनों ही देशों को एक दूसरे की सख्त जरूरत है. 

दुनिया के नक्शे पर मालदीव को देखिए. उसके पास जो सबसे बड़ी चीज है, वो है उसकी लोकेशन. मालदीव हिंद महासागर में बसा हुआ देश है और भारत के वेस्ट कोस्ट से महज 300 नॉटिकल मील की दूरी पर बसा हुआ है.

हालांकि ये जहां पर है, वो दुनिया के सबसे प्रचलित व्यापारिक समुद्री रास्तों में से एक है, जिसकी जरूरत भारत ही नहीं दुनिया के तमाम मुल्कों को है, लेकिन भारत के साथ एक और खास चीज है और वो है भारत की समुद्री इलाके की सुरक्षा, जो सीधे तौर पर हिंद महासागर में मालदीव के साथ जुड़ा हुआ है.

मालदीव के सैनिकों को ट्रेंड करता है भारत

यही वजह है कि भारत मालदीव की सुरक्षा के लिए भी उसके सैनिकों की ट्रेनिंग पर पैसे खर्च करता है. एक आंकड़ा बताता है कि मालदीव की सेना की 70 फीसदी ट्रेनिंग भारत ही करवाता है. ये ट्रेनिंग या तो आइलैंड पर होती है या फिर उन्हें इंडिया की मिलिट्री एकेडमी में ट्रेंड किया जाता है. क्योंकि भारत का मानना है कि मालदीव सुरक्षित है तो समंदर में भारत भी सुरक्षित रहेगा.

पिछले 10 साल में भारत ने मालदीव की सेना मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स के करीब 1500 जवानों को ट्रेनिंग दी है. हवाई रास्तों के जरिए समंदर पर निगरानी रखने के लिए भारत ने मालदीव की सेना को एयरक्राफ्ट और चॉपर्स तक दिए हैं. मालदीव के जवानों को आईलैंड पर वर्टिकली लैंड करने की ट्रेनिंग भी भारत ने ही दी है. इसके अलावा हिंद महासागर में चल रही गतिविधियों की निगरानी के लिए भारत मालदीव में कोस्टर रडार सिस्टम भी लगाना चाहता है.

भारत की समुद्री सुरक्षा में मालदीव की भूमिका

मालदीव के कुछ नेताओं की उल्टी-सीधी हरकत से भले ही सोशल मीडिया बौखलाया हुआ हो और लोग जी भरकर मालदीव को कोसें, छुट्टियां मनाने वहां न जाएं, लेकिन हकीकत ये है कि फिलहाल तो मालदीव के बिना हिंद महासागर में भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है. लिहाजा डिप्लोमेटिक स्तर पर भारत मालदीव के साथ बातचीत करके ही मसले सुलझा रहा है और मालदीव भी यही कर रहा है.

बाकी कहने वाले तो कह सकते हैं कि हम मालदीव के बिना भी हिंद महासागर में मजबूत स्थिति में आ सकते हैं. उनकी बात सच हो भी सकती है, लेकिन जिस तरह से चीन ने हिंद महासागर पर नजर गड़ा रखी है और मालदीव में निवेश के जरिए वो भी वहां पर अपना बेस बनाता जा रहा है, वो हमारे लिए चिंता का सबब है. यही वजह है कि हम या हमारा देश किसी जल्दबाजी में किसी नेता की बयानबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठा सकता है कि भविष्य के लिए वो नासूर बन जाए.

इंफ्रास्ट्रक्चर का काम भारत करता है

मालदीव को तो हमारी जरूरत है ही, क्योंकि मालदीव जो चावल, दाल, सब्जियां, चिकन, फल और दवाइयां खाता है, वो भारत से ही जाती है. इसके अलावा मालदीव को स्कूल बनाना हो या अस्पताल, घर बनाना हो या पुल, सड़क बनानी हो या एयरपोर्ट, उसके लिए जरूरी सारा साजो सामान जैसे सीमेंट, ईंट और बोल्डर वो सब भारत ही मालदीव को भेजता है.

बाकी तो मालदीव के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक 300 बेड का मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल है, जो भारत ने ही बनवाया है और उसका नाम इंदिरा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल है. ऐसे में अगर मालदीव भारत से दुश्मनी मोल लेता है तो उसके नागरिकों को हर रोज परेशानियां उठानी पड़ेंगी, जो कोई भी देश नहीं चाहेगा.