ज्ञानवापी परिसर में पहले मंदिर आया या मस्जिद

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी के व्‍यास जी तहखाने में हिंदुओं ने एक बाद फिर पूजा पाठ की शुरुआत कर दी है. ये तहखाना काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के बगल में ही है. वाराणसी कोर्ट ने 31 जनवरी को तहखाने में पूजा करने की अनुमति दी थी. 

हिंदू पक्ष का दावा है कि सोमनाथ व्यास का परिवार यहां साल 1993 तक पूजा करता रहा है. तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने दिसंबर 1993 में पूजा पाठ को रुकवा दिया था.

ऐसे में उन्हें 30 साल बाद इंसाफ मिला है. तहखाने में हिंदू धर्म के देवी देवताओं की प्राचीन मूर्तियां मौजूद हैं.

यहां हम आपको हिंदू और मुस्लिम पक्ष के दावों के आधार पर ज्ञानवापी से जुड़े सभी मामलों के बारे में बता रहे हैं. ज्ञानवापी में मंदिर और मस्जिद का क्या है विवाद, क्या है 350 साल पुराना इतिहास और क्या है व्यास जी की कहानी.

पहले जानिए व्यास जी की कहानी

ज्ञानवापी में मंदिर-मस्जिद का विवाद और व्यासजी का तहखाने में पूजा का मामला दोनों अलग-अलग केस हैं. व्यासजी का तहखाना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के पास ज्ञानवापी मस्जिद के साउथ में स्थित है. बात है साल 1819 की जब अंग्रेजों का शासन था.

वाराणसी में तब हिंदू-मुस्लिम के बीच दंगे हो गए थे. अंग्रेजों ने विवाद को शांत करने के लिए ज्ञानवापी परिसर का ऊपरी हिस्सा मुस्लिमों को दे दिया और निचले हिस्से में स्थित तहखाना हिंदुओं को दे दिया.

वाराणसी के तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने ज्ञानवापी के बगल में ही रह रहे व्यास परिवार को तहखाने में पूजा-पाठ की जिम्मेदारी सौंप दी थी. क्योंकि व्यास परिवार ही साल 1551 से यहां पूजा कर रहा था. इसके बाद 1993 तक सोमनाथ व्यास का परिवार यहां पूजा करता रहा.

1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 1993 में यूपी सरकार के आदेश पर प्रशासन ने ज्ञानवापी मस्जिद के चारों ओर लोहे की बैरिकेडिंग से घेराबंदी कर दी. सिर्फ एक मेन गेट से ही मस्जिद के भीतर जाने का रास्ता खुला रखा.

इस तरह व्यासजी के तहखाने में जाने की रास्ता बंद हो गया. इसके बाद 30 साल तक यहां पूजा पाठ नहीं हो सकी.

2022 में जब अदालत ने ज्ञानवापी के सर्वे का आदेश दिया, तब सोमनाथ व्यास जी के परिवार के एक सदस्य शैलेंद्र कुमार पाठक ने याचिका दायर की और तहखाने में दोबारा पूजा अर्चना का अधिकार मांगा. आखिरकार 31 जनवरी 2023 को उन्हें कोर्ट से अनुमति मिल गई.

व्यासजी का तहखाना 20×20 फीट यानी 400 स्क्वायर फीट का है. इसकी ऊंचाई लगभग 7 फीट है. तहखाने के भीतर भगवान शिव जी, गणेश जी, कुबेर जी, हनुमान जी और गंगा माता की सवारी मगरमच्छ की मूर्तियां हैं.

व्यास जी तहखाने में अब सुबह 2:30 से 3:30 बजे मंगला आरती की जा रही है. सुबह 11 से 1 बजे के बीच भोग आरती होती है. फिर शाम को 4 बजे एक आरती, शाम 7 से 8 बजे के बीच में सप्तर्षि आरती हो रही है. आखिरी आरती रात 10 से 11:30 बजे के बीच में हो रही है.

ज्ञानवापी में पहले मंदिर आया या मस्जिद?

ज्ञानवापी परिसर में मंदिर और मस्जिद की कानूनी लड़ाई पिछले तीन दशक से चल रही है. मंदिर पक्ष दावा करता है कि आज ज्ञानवापी वाली जगह पर करीब 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने भगवान विश्वेश्वर का मंदिर बनवाया था. 

भारत में मुस्लिम शासकों के शासनकाल के पहले से ही वहां भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मौजूद है. ये भगवान विश्वेश्वर के नाम से लोकप्रिय है. हिंदू पक्ष के अनुसार, ये ज्योतिर्लिंग देशभर में मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पवित्र माना जाता है.

ज्ञानवापी का इतिहास

साक़ी मुस्ताद खान की लिखी किताब मासिर-ए-आलमगीरी में छठे मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल के बारे बताया गया है. इसी किताब के आधार पर मंदिर पक्ष दावा करता है कि औरंगजेब के शासनकाल में भगवान विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर उसी स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था. 

साक़ी मुस्ताद खान की किताब में लिखा है कि 18 अप्रैल 1669 को सम्राट औरंगजेब को एक गलत सूचना मिलती है. उनको बताया जाता है कि थट्टा, मुल्तान और बनारस में कुछ ब्राह्मण मुसलमानों को शैतानी इल्म पढ़ाते हैं.

इसके बाद औरंगजेब ने ऐसे सभी स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिए जाने का आदेश दिया. साथ ही औरंगजेब ने मूर्ति पूजा करने पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. औरंगजेब के आदेश पर शाही अधिकारियों ने ज्ञानवापी परिसर में मौजूद आदि विश्वेश्वर का मंदिर नष्ट कर दिया.

मुस्लिम पक्ष का दावा

इस पर मस्जिद पक्ष दावा करता है कि 1669 में किसी के भी आदेश पर कोई मंदिर नहीं तोड़ा गया था. ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद के कब्जे में ही रही. ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था के कब्जे में नहीं था.

अदालत में मस्जिद पक्ष सवाल करते हुए कहता है कि जिस आधार पर हिंदू पक्ष मंदिर को तोड़े जाने का दावा करता है क्या वो किताबें भारत सरकार या उत्तर प्रदेश सरकार के राजपत्र हैं? 350 साल पहले किसी ने क्या लिखा क्यों लिखा, उसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे कि लेखक का झुकाव. हम केवल सरकारी अधिसूचनाओं पर ही भरोसा कर सकते हैं. 

मस्जिद पक्ष ने कहा कि उनके लिए 'कट ऑफ डेट' 15 अगस्त 1947 है. 300, 700 या 1500 साल पुराना इतिहास देखने का कोई मतलब नहीं. मस्जिद पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर को अपनी संपत्ति साबित करने के लिए सरकारी रिकार्ड्स में मौजूद खसरा खतौनी पेश की. उन नक्शों को ही अपने पक्ष में अहम सबूत मानता है.

मस्जिद कमेटी ने अदालत में पेश जवाब में कहा है कि प्लॉट नंबर 9130 पर बने ढांचे का नाम आलमगीरी या ज्ञानवापी है. ये ढांचा पिछले एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है और तब से यहां रोजाना मुसलमान नमाज़ अदा कर रहे हैं.

ज्ञानवापी नाम कैसे पड़ा

ज्ञानवापी परिसर में एक प्राचीन कुआं है. मंदिर पक्ष का कहना है कि सतयुग में उस कुएं को खुद भगवान शिव शंकर ने अपने त्रिशूल से बनाया था. इस कुएं का नाम ज्ञानवापी रखा गया और फिर बाद में इसी नाम से पूरे परिसर को जाना जाने लगा.

ज्ञानवापी मामले पर अदालत में कितने केस

ज्ञानवापी परिसर से जुड़े अलग-अलग अदालतों में 20 से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं. बनारस की जिला अदालत में सबसे पहला केस साल 1991 में एडवोक्ट विजय शंकर रस्तोगी ने दायर किया. दूसरा केस जनवरी 2023 में मान बहादुर और अनुपम द्विवेदी ने मिलकर दायर किया था. 

याचिकाकर्ता शंकर रस्तोगी ने इतिहासकारों के लेख, धार्मिक ग्रंथ और नक्शों के आधार पर दावा किया है कि प्लॉट नंबर 9130 की लगभग एक बीघा, प्लॉट नंबर  9131 की 9 बिस्वा और प्लॉट नंबर 9132 की 6 धुर जमीन पर भगवान आदि विश्वेश्वर का मंदिर है. अपने दावे में उन्होंने स्कंदपुराण, काशी खंड समेत अन्य पुराणों का जिक्र किया है.

इसके अलावा बनारस की जिला अदालत ने जिस मामले पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को सर्वे का आदेश दिया है वो मुकदमा अगस्त 2021 में पांच हिंदू महिलाओं ने दायर किया था.

ये 5 महिलाएं हैं- राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक. याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर का ही हिस्सा बताया और यहां मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने की इजाजत मांगी. इसके बाद अदालत ने सर्वे किए जाने का आदेश दिया.

ASI सर्वे में क्या क्या मिला

ज्ञानवापी परिसर में 14 मई 2022 को सर्वे का शुरू हुआ. हिंदू पक्ष ने अदालत में दावा किया कि सर्वे के दौरान 16 मई को मस्जिद के वुजूखाने में शिवलिंग पाया गया. इसके बाद वुजूखाने का पूरा एरिया सील कर दिया गया. हालांकि मुस्लिम पक्ष ने इसे शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा बताया.

सर्वे किए जाने के खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम भी गया, मगर उसे वहां से कोई राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एएसआई ऐसे तरीके से सर्वे करे ताकि कोई टूट-फूट न हो. केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि बिना खुदाई और बिना तोड़ फोड़ के सर्वे किया जाएगा.

आखिरकार ASI ने 839 पेज की अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है. सर्वे में एएसआई ने बहुत बड़ा दावा किया है. उनका दावा है कि ज्ञानवापी परिसर में पहले मंदिर था और मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया.

अपनी रिपोर्ट में एएसआई ने कई सबूत भी पेश किए हैं. सर्वे के दौरान उन्हें एक पत्थर भी मिला है जिसपर मस्जिद के निर्माण का समय 1676-1677 के बीच हुआ बताया गया है. इसके अलावा 1792-93 में मस्जिद के आंगन की मरम्मत की बात कही गई है.